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केन्द्रीय एवं प्रादेशिक उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत अध्यापिकाओं के विद्यालयी समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Comparative Study of School Adjustment of Female Teachers Working In Central And Regional Higher Secondary Schools | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
17958 Submission Date :
2023-08-11 Acceptance Date :
2023-08-18 Publication Date :
2023-08-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
समायोजन
का शिक्षा में अत्यधिक महत्व है क्योंकि व्यक्ति जब कुसमायोजित होता है तब इसका उसके
सीखने व सिखाने दोनो पर प्रभाव पड़ता है। ऐसी दशा में शिक्षक का समायोजित होना अत्यन्त
आवश्यक हो जाता है क्योंकि शिक्षक के कुसमायोजित
होने का प्रभाव शिक्षार्थी, विद्यालय वातावरण तथा स्वयं की क्षमता पर पड़ता है। अतः
उचित शिक्षा के लिए शिक्षक व छात्र दोनों का सुसमायोजित होना आवश्यक होता है। समायोजन की यह स्थिति केन्द्रीय विद्यालयों
एवं राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों को भी प्रचुर मात्रा
में प्रभावित करती है। इनके सुसमायोजन एवं कुसमायोजन से विद्यालय का समस्त शैक्षिक
वातावरण प्रभावित होता है। केंद्रीय विद्यालयों व राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालयों में पुरूष
व महिलाओं की समान कार्यस्थली, शैक्षिक योग्यता, भर्ती- प्रक्रिया व वेतनमान होने के
बावजूद भी महिला शिक्षिकाओं को पुरूषों व विद्यालय वातावरण के साथ समायोजन करना पड़ता
है। अतः शोधकर्त्री ने अपना विषय "केन्द्रिय एवं प्रादेशिक उच्च माध्यमिक विद्यालयों
में कार्यरत अध्यापिकाओं के विद्यालयी समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन" शोध हेतु चुना।
शोध के माध्यम से शिक्षिकाओं द्वारा अपने कार्यस्थली में किए जाने वाले अनेक अदृश्य
समायोजनों को जानने का प्रयास किया गया है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Adjustment has great importance in education because when a person is maladjusted, it affects both his learning and teaching. In such a situation, it becomes very important for the teacher to be adjusted because the teacher's maladjustment affects the learner, the school environment and his own ability. Therefore, for proper education, it is necessary for both the teacher and the student to be well adjusted. This situation of adjustment also affects the teachers working in Kendriya Vidyalayas and higher secondary schools of Rajasthan to a great extent. The entire educational environment of the school is affected by their adjustment and maladjustment. Despite men and women having equal workplace, educational qualification, recruitment process and pay scale in central schools and higher secondary schools of Rajasthan, women teachers have to adjust to men and the school environment. Therefore, the researcher chose “Comparative study of school adjustment of female teachers working in central and regional higher secondary schools” as her research topic. Through research, an attempt has been made to know the many invisible adjustments made by teachers in their workplace. |
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मुख्य शब्द | केन्द्रीय एवं प्रादेशिक, उच्च माध्यमिक, समायोजन। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Central and Regional, Higher Secondary, Adjustment. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना | समायोजन का शिक्षा
में अत्यधिक महत्व है क्योंकि व्यक्ति जब कुसमायोजित होता है तब इसका उसके सीखने व
सिखााने दोनों पर प्रभाव पड़ता है। ऐसी दशा में शिक्षक का समायोेजित होना अत्यन्त
आवश्यक हो जाता है क्योंकि शिक्षक के कुसमायोजित होने का प्रभाव शिक्षार्थी
विद्यालय वातावरण तथा स्वयं की क्षमता पर पड़ता हैं। अतः उचित शिक्षा के लिए शिक्षक
व छात्र दोनों का सुसमायोजित होना आवश्यक होता हैं। समायोजन की यह स्थिति
केन्द्रीय विद्यालयों एवं राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत
शिक्षकों को भी प्रचुर मात्रा में प्रभावित करती है। इनके सुसमायोजन एवं कुसमायोजन
से विद्यालय का समस्त शैक्षिक वातावरण प्रभावित होता है। केन्द्रीय विद्यालयों व
राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालयों में पुरुष व महिलाओं की समान कार्यस्थली,
शैक्षिक योग्यता, भर्ती-प्रक्रिया व
वेतनमान होने के बावजूद भी महिला शिक्षिकाओं को पुरुषों व विद्यालय वातावरण के साथ
समायोजन करना पड़ता है। शोध के माध्यम से शिक्षिकाओं द्वारा अपने कार्यस्थली में
किए जाने वाले अनेक अदृश्य समायोजनों को जानने का प्रयास किया गया। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. राजस्थान के केन्द्रीय विद्यालय
तथा राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालय की अध्यापिकाओं का विद्यालय के शैक्षिक
वातावरण के समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन। 2. राजस्थान के केन्द्रीय विद्यालय
तथा राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालय की अध्यापिकाओं का विद्यालय के सामाजिक
वातावरण के समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन। 3. राजस्थान के केन्द्रीय विद्यालय
तथा राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालय की अध्यापिकाओं का विद्यालय के व्यावसायिक
वातावरण के समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन। 4. राजस्थान के केन्द्रीय विद्यालय
तथा राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालय की अध्यापिकाओं का विद्यालय के
मनोवैज्ञानिक वातावरण के समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन। |
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साहित्यावलोकन | श्री एस.
अग्रवाल(1980) श्री बी. डी. गुप्ता (1988), श्री एच. सी. मौर्य (1991), श्रीमती ज्योत्सना सक्सेना (1995), श्री एच. सिंह (2003), श्री एन. वाय. शफीक (2003)
श्री के कुलश्रेष्ठ (2004) |
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सामग्री और क्रियाविधि |
शोध कार्य में सर्वेक्षण विधि द्वारा प्रदत्तों का संकलन किया गया है। |
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न्यादर्ष |
शोध कार्य में समंको के संकलन हेतु यादृच्छिक न्यादर्श, सौ उद्देश्य न्यादर्श, व स्तरित न्यादर्श पद्धति का प्रयोग किया
गया जिसमें कोटा व जयपुर संभाग को यादृच्छिक न्यादर्श विधि से चयन किया गया। शोधकार्य के लिए विद्यालयों का चयन स्तरित न्यादर्श पद्धति द्वारा किया गया है
तथा विद्यालयों से अध्यापिकाओं का चयन करने के लिए लॉटरी पद्वति व सौदेश्य
न्यादर्श पद्धति का चयन किया। |
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प्रयुक्त उपकरण | प्रस्तुत शोध में अनुसंधान उपकरण के रूप में स्वनिर्मित समायोजन प्रश्नावली का प्रयोग किया गया। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विश्लेषण | राजस्थान के केन्द्रीय विद्यालय तथा राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालय की
अध्यापिकाओं का विद्यालय के शैक्षिक वातावरण के समायोजन में सार्थक अन्तर सम्बन्धी
सारणी-
सांख्यिकी आधार पर प्राप्त क्रान्तिक अनुपात 0.042 आता है तथा सांख्यिकी आधार पर प्राप्त निष्कर्षो से यह विदित होता है कि 95 प्रतिशत (0.05) सार्थकता स्तर के मूल्य 1.96 से यह बहुत कम है। अतः यह परिकल्पना अस्वीकृत की जाती है। परिकल्पना।।: राजस्थान के केन्द्रीय विद्यालय
तथा राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालय की अध्यापिकाओं का विद्यालय के सामाजिक
वातावरण के समायोजन में सार्थक अन्तर सम्बन्धी सारण:-
सांख्यिकी आधार पर प्राप्त क्रान्तिक अनुपात 0.073 आता है तथा सांख्यिकी आधार पर प्राप्त
निष्कर्षो से यह विदित होता है कि 95 प्रतिशत (0.05) सार्थकता स्तर के मूल्य 1.96 से यह बहुत कम है। अतः
यह परिकल्पना अस्वीकृत की जाती है। परिकल्पना ।।।: राजस्थान के केन्द्रीय विद्यालय तथा राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालय की
अध्यापिकाओं के विद्यालय के व्यावसायिक वातावरण के समायोजन में सार्थक अन्तर
सम्बन्धी सारणीः-
सांख्यिकी आधार पर प्राप्त क्रान्तिक अनुपात 0.075 आता है तथा सांख्यिकी आधार पर प्राप्त निष्कर्षो से यह विदित होता है कि 95 प्रतिशत (0.05) सार्थकता स्तर के मूल्य 1.96 से यह बहुत कम है। अतः यह परिकल्पना अस्वीकृत की जाती है। परिकल्पना IV: राजस्थान के केन्द्रीय विद्यालय
तथा राजस्थान के उच्च माध्यमिक विद्यालय की अध्यापिकाओं का विद्यालय के
मनोवैज्ञानिक वातावरण के समायोजन में सार्थक अन्तर सम्बन्धी सारणी:-
सांख्यिकी आधार पर प्राप्त क्रान्तिक अनुपात 0.59 आता है तथा सांख्यिकी आधार पर प्राप्त
निष्कर्षो से यह विदित होता है कि 95 प्रतिशत (0.05) सार्थकता स्तर के मूल्य 1.96 से यह बहुत कम है। अतः
यह परिकल्पना अस्वीकृत की जाती है। |
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जाँच - परिणाम | . | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
निष्कर्ष |
सभी विषयों के
विश्लेषण के आधार पर निम्न निष्कर्ष प्राप्त हुए- 1. केन्द्रीय विद्यालय तथा राजकीय
उच्च माध्यमिक विद्यालय की लगभग 60 प्रतिशत अध्यापिकाओं
का मानना है कि शैक्षिक समायोजन का विद्यालय वातावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 2. केन्द्रीय विद्यालय तथा राजकीय
उच्च माध्यमिक विद्यालय की लगभग 60 प्रतिशत अध्यापिकाओं
का मानना है कि सामाजिक समायोजन का विद्यालय वातावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 3. केन्द्रीय विद्यालय तथा राजकीय
उच्च माध्यमिक विद्यालय की लगभग 60 प्रतिशत अध्यापिकाओं
का मानना है कि व्यवसायिक समायोजन का विद्यालय वातावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
है। 4. केन्द्रीय विद्यालय तथा राजकीय
उच्च माध्यमिक विद्यालय की लगभग 60 प्रतिशत अध्यापिकाओं
का मानना है कि मनोवैज्ञानिक समायोजन का विद्यालय वातावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. नायक, जे.पी.:
‘‘शिक्षा आयोग व उसके बाद”, वाक्देवी
प्रकाशन, बीकानेर,1998 2. पटनायक, डी.वी.: ‘‘अध्यापक शिक्षा, भारत में विद्यालयी शिक्षा : वर्तमान स्थिति और भावी आवश्यकताएं”,
एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली, 1986
3. पाण्डेय रामशुक्ल एवं मिश्र
करूणा शंकर: भारतीय शिक्षा की ज्वलन्त समस्याएं, बोहरा
पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, इलाहाबाद, 1990 4. पाठक एवं त्यागी: शिक्षा के
सिद्वान्त”, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, 1992 5. पुरोहित, जे.एन., व्यास, एच,सी., शर्मा, आर.ए.: ‘‘भावी शिक्षकों के लिए आधारभूत कार्यक्रम” , राजस्थान
हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 1990 6. ब्रूनर, जेरोम, एस.: ‘‘शिक्षा
की प्रक्रिया”, मैकमिलन, नई
दिल्ली, 1980 |