ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- IV July  - 2023
Anthology The Research
सामाजिक विकास के क्षेत्र में शिक्षा का महत्व: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
Importance of Education in the Field of Social Development: An Analytical Study
Paper Id :  17943   Submission Date :  16/07/2023   Acceptance Date :  22/07/2023   Publication Date :  25/07/2023
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रिंकू कुमारी
शोध छात्रा
राजनीति विज्ञान
भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय
मुजफ्फरपुर, बिहार, भारत
सारांश सामाजिक विकास के कई आयाम है लेकिन शिक्षा का स्थान अहम है। शिक्षा ना केवल व्यक्तिगत विकास है बल्कि समाज और राष्ट्रीय विकास के समृद्ध विकास की एक समग्र प्रक्रिया है, किसी भी राष्ट्र के विकास का नीव है। पूर्व से आज तक शिक्षा सामाजिक परिवर्तन और विकास का एक माध्यम है जो स्वयं विकास की प्रक्रिया में एक आवश्यक उत्पादक सामग्री का गठन करती है जो आज समाज के बृहत् रूप से स्वीकार किया जाता है शिक्षा की गुणवत्ता शिक्षित युवा अपने स्थित जीवन सै परे सोचने और अपने समाजो के विकास में योगदान करने की क्षमता रखते है। शिक्षा अपने अधिकारों, कर्तव्य ,नागरिकता का आधार है जो समाज के विकास की भूमिका रखती है। गांव हो या शहर सभी क्षेत्र मैं लोगों को शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है स्कूल कॉलेज ऐसी शिक्षा नहीं प्रदान कर रही है, जिससे बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो सके। सामाजिक विकास के लिए शिक्षा के स्तर को सुधारना होगा जिसके लिए सरकार को नई शिक्षा पद्धति में शिक्षण की गुणवत्ता का मूल्यांकन अनिवार्य है और एन आई टी द्वारा उसे मजबूत बनाने की जरूरत है। युवा ही देश का भविष्य है और प्राथमिक शिक्षा उच्च शिक्षा की नींव है सरकार को प्राथमिक शिक्षा के स्तर को मजबूत बनाने की जरूरत है ताकि उच्च शिक्षा मजबूती से अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगा और समाज के प्रत्येक नागरिक की आर्थिक स्थिति में सुधार हो तभी समाज विकसित होगा।आज शिक्षा का क्षेत्र बढ़ गया है, जिसका अध्ययन आवश्यक है और शिक्षक विद्यार्थी का समन्वय आवश्यक है। शिक्षाआजीवन चलाने की प्रक्रिया है, विकास की प्रक्रिया जिसमें समाज- बालक -अध्यापक तीनों की भूमिका अहम है। विकसित, विकासशील और अविकसित सभी राष्ट्र के आर्थिक विकास में के लिए शिक्षा का विकास पहले करना पड़ता है शिक्षा उत्प्रेरक शक्ति है, जिसमें समाजिक, आर्थिक गति प्रदान करता है। समाज प्रगति शिक्षा के प्रयास से ही संभव है, विकसित राष्ट्र औद्योगिककृत होता है जिसमें जीवन यापन उच्च होता है, फिनलैंड ,कनाडा जैसे देश शिक्षा व्यवस्था उच्च है ,भारतीय शिक्षा प्रणाली को व्यवहारिक होना आवश्यक है क्योंकि सिद्धांत सिर्फ पुस्तक में ही रह जाती है। भारतीय शिक्षा प्रणाली व्यवसाय और मुनाफे के बारे में होती है यह शिक्षा का निजी संस्थाओं विद्यालय ,कोचिंग संस्थाओं तक ले रहा है जिसमें शिक्षा का एक व्यापार है और उसमें मुनाफा कमाना है, इससे अलावा भारत में छात्रों को आंकड़ों गणित के हजारों समीकरण पूर्व के महान सेनानियों जन्म मृत्यु आदि सभी के सिद्धांतों पर जोर दिया जाता है, विदेशों में कुशलता व्यवहारिक वातावरण आधार से शिक्षा प्रदान की जाती है। आज देश में सबसे बड़ी समस्या कार्यालय में काम ना करना या बंद होना जिसमें स्कूल-कॉलेज इससे प्रभावित होती है और विद्यार्थियों का मनोबल कम होता है। राजनीतिक दल इसका अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करते है। आज पढ़ाई के तरीके में बदलाव लाना जरूरी है ,खुलकर विषय पर चर्चा करना और जिज्ञासाओं का समाधान होना चाहिए ताकि उनका भविष्य अच्छा हो ASER की रिपोर्ट के अनुसार इंग्लिश भाषा पढ़ने की क्षमता घटती जा रही है इंग्लिश मीडियम में पढ़ने के बाद भी उनका लैंग्वेज सही तरीके से नहीं है जो नहीं होना चाहिए। शिक्षा द्वारा समाज के निर्धारित आर्थिक, सामाजिक सुधार होना आवश्यक है शिक्षा ही प्रगति का आधार है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद There are many dimensions of social development but the place of education is important. Education is not only individual development but a holistic process of prosperous development of society and national development, it is the foundation of development of any nation. From past to today, education is a medium of social change and development, which itself constitutes an essential productive material in the process of development, which is widely accepted by the society today. They have the ability to contribute to the development of their societies. Education is the basis of its rights, duties, citizenship which plays a role in the development of the society. Whether it is a village or a city, it is necessary for people to get education in all areas, schools and colleges are not providing such education, which can solve the problem of unemployment. For social development, the level of education has to be improved, for which it is necessary for the government to evaluate the quality of teaching in the new education system and it needs to be strengthened by NIT. Youth is the future of the country and primary education is the foundation of higher education. The government needs to strengthen the level of primary education so that higher education will firmly achieve its goal and the economic condition of every citizen of the society will improve only then the society will develop. Today the field of education has increased, which needs to be studied. And teacher-student coordination is necessary. Education is a lifelong process, a process of development in which the role of all three, society-child-teacher is important. For the economic development of all developed, developing and underdeveloped nations, education has to be developed first. Education is the driving force, which provides social, economic momentum. Society progress is possible only through the efforts of education, developed nation is industrialized in which living is high, countries like Finland, Canada have high education system, Indian education system It is necessary to be practical because the theory remains only in the book. Indian education system is all about business and profit. Apart from this, students in India are emphasized on the principles of thousands of mathematical equations, great fighters of the past, birth and death, etc., education is imparted in foreign countries on the basis of skillful practical environment. Today the biggest problem in the country is lack of work in the office. To do or stop in which school-colleges are affected by this and the morale of the students is low. Political parties use it for their own selfishness. Today it is necessary to change the way of education, to openly discuss the subject and to solve the curiosities. So that their future is good, according to the report of ASER, the ability to read English language is decreasing, even after studying in English medium, their language is not in the right way, which should not happen. It is necessary to have determined economic, social reform of the society through education. Education is the basis of progress.
मुख्य शब्द सामाजिक विकास, शिक्षा पद्धति, विकसित राष्ट्र, शिक्षण संस्थान।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Social Development, Education System, Developed Countries, Educational Institutions
प्रस्तावना

शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति अपने सर्वाधिक विकास कर सकता है। प्राचीन काल से ही शिक्षा के माध्यम से समाज परिवर्तन होता रहा है यह एक ऐसा उपकरण है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपना और समाज का विकास करता है जैसा कि यहां लोगों मैं परिवर्तन की प्रकृति और रूप के बारे में ज्ञान प्रदान करता है जिसके फलस्वरूप समाज परिवर्तन के अनुकूलन के बारे में निर्णय ले सकता है समाज शिक्षा के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करता है तो ठीक उसी प्रकार शिक्षा भी समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करता है चाहे आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक स्वरूप शिक्षा का प्रचार प्रसार जैसे जैसे होता है वैसे वैसे समाज व्यक्तियों के स्थिति दृष्टिकोण रहन-सहन खानपान रीति रिवाज पर असर डालता है और समाज का स्वरूप बदलता है सही शिक्षा प्राप्त होने से व्यक्तियों को समझाता है और अपनी अभिव्यक्ति स्थिति को सुधारों के प्रयास में सफलता होता है समाज की मांग और मांग की पूर्ति हेतु किया गया उत्पादन ही समाज को संतुष्टि करता है। सही शिक्षा प्राप्त नहीं होने के कारण बेरोजगारी, अपराधीकरण जैसी समस्या उत्पन्न होता है। वर्तमान में कई विद्यालय उच्च विद्यालय हैं, विद्यार्थी के गुणवंता शिक्षा में कितनी है? यह सवाल सभी के सामने है, सरकार विद्यालयों का निर्माण करते हैं ताकि हमारे राष्ट्र का भाबी भविष्य शिक्षित हो सके कोई भी नीति हो जब तक उसका क्रियान्वयन सही तरीके से ना किया जाए वह सफल नहीं होता है उसके लिए नीति लागू करने वाले और नीति लाभान्वित होने वाले दोनों पक्षों को सहयोग की आवश्यकता होती है। अनुच्छेद 21के अंतर्गत शिक्षा पाने का अधिकार है जिसके तहत राष्ट्र में शिक्षा का प्रचार प्रसार राज्य का दायित्व है जिसके तहत राज्य अपने क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के विद्यालयों का निर्माण करते हैं जिसमें बच्चों का शिक्षा के माध्यम से सर्वांगीण विकास हो सके लेकिन समाज में सरकारी विद्यालय को नाम पर कितना शिक्षा विद्यार्थियों को प्राप्त होता है यह एक सोचने सवाल है। फोबेल के अनुसार शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक अपनी आंतरिक शक्तियों को बाहर की ओर प्रकट करता है।

अध्ययन का उद्देश्य

सामाजिक विकास के लिए शिक्षा के स्तर का सुधार, स्थिति का अध्ययन किया गया है ताकि समाज अपने उत्कृष्ट स्थान प्राप्त कर सके। वर्तमान में शिक्षा सिर्फ व्यापार बन गया है इसके सुधार की जरूरत है, उनका वर्णन है।

साहित्यावलोकन

जॉन डीवी ने अपनी पुस्तक स्कूल तथा समाज एवं जनतंत्र और शिक्षा: में शैक्षणिक समाजशास्त्र के महत्व को स्वीकार करते हैं और शिक्षक को समाजिक प्रक्रिया मानते हैं, मुख्य रूप से शिक्षा पर सामाजिक परिस्थितियों के प्रभाव, शिक्षा की प्रकृति और सामाजिक परिवर्तनों में शिक्षा की भूमिका पर प्रकाश डालते हैं। समाज में कई पहलू होते हैं सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक,आर्थिक सभी को शिक्षा प्रभावित करता है सिर्फसमाजिक पहलू प्रभावित नहीं होता है बल्कि किसी भी समाज की संरचना उसकी उपलब्ध अलग-अलग तरह के होते है, शिक्षा नीति आधार भूमि तय करता है

परिकल्पना 1. सामाजिक विकास का स्तंभ शिक्षा है, सिद्धांतों के अलावा बारिश होना आवश्यक है l
2. शुद्ध शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार सबको है जिसके लिए शिक्षण संस्थान में सुधार, गुणवंता होनी चाहिए शिक्षक का मूल्यांकन समय-समय पर होना चाहिए ताकि विद्यार्थियों को सही शिक्षा प्राप्त हो सके।
सामग्री और क्रियाविधि
प्राथमिक एवं द्वितीयक पद्धति का उपयोग किया गया है।
विश्लेषण

मानव कुछ ऐसी जन्मजात शक्तियां लेकर पैदा हुआ है जो प्राकृतिक की सर्वोत्तम रचना है, मानव प्रकृति की देन है और मानव बहुत हद तक प्रकृति को समझा और विकास किया है यह सब शिक्षा के माध्यम से पूरा हुआ है, मानव शिक्षा के सहारे चांद और मंगल ग्रह पर पहुंच गया है विश्व के कई राष्ट्र है जिसने आर्थिक विकास के आधार पर उसे उनका स्थान प्राप्त हुआ, जो राष्ट्र जितना आर्थिक विकसित है वह उतना ही शिक्षित हुए हैं। शिक्षा व्यक्ति को सशक्त बनाता है आज ज्ञान विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास का मार्ग तैयार करने में शिक्षा का प्रमुख योगदान है। ब्राउन के अनुसार 'शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो समाज में व्यवहार में परिवर्तन लाती है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावी ढंग से सक्षम बनाती है, समाज की गतिविधियों में भाग लेना और समाज की प्रगति में सकारात्मक योगदान देना। 'लेकिन शिक्षा प्रणालियां सभी राष्ट्रों में एक समान नहीं है सभी अपनी जरूरतों के मुताबिक उसे क्रियान्वयन करते हैं लेकिन उद्देश्य एक ही हैं मानव मन को रचनात्मक बनाना भारतीय शिक्षा प्रणाली सिद्धांत ज्ञान का समर्थन करते हैं और विकसित राष्ट्रों में शिक्षा प्रणाली अधिक लचीली है छात्रों को केवल मुख्यधारा के विकल्प के अलावा विभिन्न कैरियर के अवसर का पीछा करने की अनुमति देता है। अमेरिका शिक्षा शैक्षणिक प्रणाली पर अधिक खर्च करता है, वहां संयुक्त राज्य में लगभग 8 7% राज्य के स्वामित्व वाली पब्लिक स्कूलों में जाते हैं 10% निजी स्कूलों में बाकी घर के स्कूलों में जाते हैं। हमारे यहां राज्य द्वारा स्कूलों में छात्र 11 करोड़ जाते हैं पर शिक्षा की गुणवंता बहुत ही कम है निजी स्कूलों में 7 करोड़। सरकार का शिक्षा पर बजट 46.356 करोड़ और निजी स्कूलों की मनमानी फीस, जिससे मध्यम वर्ग के परिवारों का आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो जाता है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का लेवल 10% है बच्चे और शिक्षकों दोनों की स्थिति सोचनीय है बच्चे से स्कूल में पैसे के लिए जाते हैं अगर वह 70% उपस्थिति नहीं देंगे उनका नाम काट दिया जाएगा ,शिक्षक विषय वस्तु से दूर पढ़ाते हैं और ना पढ़ाने के कारण जो उन्होंने पढा है वह भूल जाते हैं ,बच्चे को सही ज्ञान भी नहीं दे पाते। शिक्षक से सवाल पूछे जाने पर सही उत्तर प्राप्त नहीं होता है तो भला बच्चे से सही उम्मीद कैसे कर सकते हैं? बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में मैंने सरकारी स्कूल के छात्र और छात्राओं से सवाल पूछे जिसका उत्तर विषय वस्तु से कई मिल दूर था, विषय क्या होता है वह भी उन्हें पता नहीं, जो हमारे समाज का भविष्य है अगर उनकी शिक्षा इस प्रकार होगी तो भला समाज कैसे विकास करें? मैंने कई छात्र-छात्राओं से कई सवाल किए पर जवाब सही नहीं मिला बच्चे का कहना है कि अगर कक्षा में शिक्षक से कोई सवाल करते हैं तो शिक्षक उन्हें किसी बहाने टाल देते है, यह समस्या किसी एक ही स्कूल की नहीं है बहुत सारे स्कूल है जहां शिक्षा  आशिक हो रहा है, नाम के लिए स्कूल बच्चे जाते हैं पर सही जानकारी नहीं होने के कारण भविष्य में बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है। आज बच्चे सरकारी स्कूल में नाम लिखवा तो लेते हैं पर स्कूल में पढ़ने की वजह एक अच्छी कोचिंग की तलाश करते हैं ताकि उनका नंबर अच्छा आ जाए जिसके कारण अभिभावक को अधिक मूल्य देखकर भी उन्हें अलग से पढ़ाना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता है और निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी फीस जिससे अभिभावक की मजबूरी बन जाती है उसे देने के लिए विवश होते हैं। स्कूल का अर्थ एक इमारत नहीं है उसमें अच्छे शिक्षक गुणवंतापूर्ण शिक्षा व्यवस्था, व्यवहारिक पाठ्यक्रम, उपयुक्त माहौल होना आवश्यक है।

आज शिक्षा पाने का अर्थ आर्थिक विकास करना है, नौकरी पाना है जिससे परिवार चला सके। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के अतिरिक्त प्रशासन और व्यवसाय जैसे तत्वों के समाविष्ट होने के कारण इसकी दशा और दिशा एक सामान्य शिक्षा प्रणाली से बिल्कुल भी हो चुकी है, इसका मूल उद्देश्य अक्षर ज्ञान से शुरू होकर जीविकोपार्जन के किसी साधन तक सीमित हो चुका है, जिसके कारण मनुष्य का सर्वांगीण विकास बाधित होता है आगे चलकर बहुत सारी समस्या उत्पन्न होती है। शिक्षा का लक्ष्य सभी को समानता प्रदान करना है यहां मानव के भीतर जो गुण मौजूद है उनको विकसित करना और उन्हें पूर्णता प्रदान करना होता है, उसके सर्वांगीण विकास से समाज में भ्रष्टाचार, संप्रदाय भेदभाव जैसी समस्या दूर हो सकती है। शैक्षणिक पाठ्यक्रम का एक निश्चित लक्ष्य और उद्देश्य होना चाहिए ताकि भविष्य में उनका उपयोग कर सामाजिक और अध्यात्मिक दोनों को समझ सके और समाज को सभ्य बना सकें। व्यक्ति शिक्षा के मूल्य कुछ समझे और ईमानदारी पूर्वक दायित्व को निभाएंगे तो समाज अच्छे गुण शिक्षक एवं विद्यार्थी होंगे। मैंने  लिखने के क्रम में प्राथमिक माध्यमिक स्कूलों में जाकर शिक्षा की गुणवत्ता पर चर्चा की उसके दौरान कुछ प्रश्नों को मैंने शिक्षक और विद्यार्थियों के समक्ष रखा जिनका विवरण इस प्रकार है-

1.सामाजिक विकास का स्तंभ शिक्षा है इस पर विशिष्ट ध्यान देने की जरूरत है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
2. प्रारंभिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि प्राथमिक शिक्षा ही उच्च शिक्षा की नींव है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
3. प्राथमिक शिक्षा पाने का सबको अधिकार है तो इसकी गुणवंता बढ़ाने की जरूरत है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
4. शिक्षा से ही व्यक्तित्व का विकास होता है और व्यक्तित्व से समाज का विकास होता है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
5. क्या शिक्षण पद्धति में उसकी गुणवत्ता में कमी आई है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
6. क्या शिक्षण पद्धति के गुणवत्ता की कमी का कारण शिक्षक है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
7. कई विशेषज्ञ सिर्फ शिक्षक को ही इसके लिए जिम्मेदार मानते है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
8 शिक्षा के क्षेत्र में सिर्फ शिक्षक नहीं सरकार भी उसके भागीदार होते हैं इसलिए उनका दायित्व महत्वपूर्ण होता है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
9. सिर्फ शिक्षक का दोष देना उचित नहीं होगा।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
10. सरकार को शिक्षकों का समय समय पर मूल्यांकन करवाना जरूरी है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
11. शिक्षक को भी नई-नई शिक्षण पद्धति का अवलोकन करना जरूरी है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
12. शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक और विद्यार्थी दोनों का मनोबल बढ़ाने की जरूरत है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
13. शिक्षा नीति में सरकार और शिक्षक दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
14. भारतीय शिक्षण प्रणाली में बदलाव की जरूरत है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
15. सैद्धांतिक शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा प्रणाली पर जोर देने की आवश्यकता है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
16. सिद्धांत शिक्षा प्रणाली सिर्फ रटने  की विद्या है जो आज के समय में उचित नहीं है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
17व्यवहारिक शिक्षा पद्धति से विद्यार्थियों का स्मरणीय ज्ञान बढ़ता है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
18. भारतीय राज्य में शिक्षा अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है सभी को एक रूप देने की जरूरत है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
19. खेलकूद ,संगीत आदि भाषाओं को शामिल के साथ अनिवार्य करना जरूरी है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
20. विद्यालयों में सभी प्रकार की व्यवस्थाओं का निरीक्षण करना आवश्यक है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
21. निरीक्षण अधिकारियों का निष्पक्ष होना अति आवश्यक है क्योंकि शिक्षा देश का भविष्य होता है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
22. स्वच्छ शिक्षा ही देश की बेरोजगारी दूर कर सकता है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
23. शिक्षा को भी निजीकरण करना आवश्यक है बेहतर स्वरूप के लिए।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
24 स्वच्छ शिक्षा तभी स्वच्छ देश होगा जिसके लिए व्यवहारिक शिक्षा अनिवार्य है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव
25. भारत को विकसित राष्ट्र कहलाने के लिए शिक्षा पर अधिक से अधिक ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि शिक्षा के माध्यम से सभी क्षेत्रों में हम विकास कर सकते है।
i. हां
ii. नहीं
iii. सुझाव

पाई चार्ट द्वारा शिक्षा के दोषी तत्व 

इन प्रश्नों के आधार पर शिक्षकों से जब वार्तालाप हो रही थी तब उन्होंने कहा किस सरकार के साथ-साथ  अभिभावक भी दोषी हैं इसलिए सिर्फ शिक्षक को दोष देना उचित नहीं होगा, अभिभावक सरकारी स्कूल में नाम लिखवाते हैं और बच्चों को सही समय पर भेजते नहीं है। सभी जगह सभी शिक्षकों का अलग-अलग अपना विचार था किसी ने अभिभावक को दोषी ठहराया तो किसी ने सरकार को स्वयं को दोषी कोई नहीं मानता लेकिन यहां बिल्कुल सत्य है की शिक्षक भी उतने ही दोषी हैं जितने अभिभावक, शिक्षक नियमित रूप से अगर कक्षा में शिक्षा व्यवस्था दे तो बच्चों को कोचिंग में जाना नहीं पड़ेगा, योग्य शिक्षक है तो कुछ योग्य नहीं है लेकिन फिर भी शिक्षक है यह बहुत बड़ा सवाल है की व्यवस्था में जो योग्य शिक्षक हैं उन पर दबाव रहता है या दूसरों को देखकर वह भी नियमित रूप से शिक्षा प्रदान नहीं करते जिसके कारण शिक्षा खराब होता जा रहा है। सरकार को समय-समय पर शिक्षकों का मूल्यांकन होना चाहिए।

सरकार को समाज के विकास के लिए निजी स्कूलों के बीज को निश्चित करना होगा ताकि सामान्य वर्ग इसे देने में परेशानी ना हो इसे देकर अपनी शिक्षा पूरी कर सके। सरकारी स्कूलों की शिक्षा को सही करना सरकार का प्राथमिक कार्य है सरकारी स्कूलों की क्षमता बढ़ाना होगा और उचित व्यवस्था अति आवश्यक है सभी राज्य स्तर पर विद्यालय सही शिक्षा प्रदान करें तो किसी भी वर्ग के बच्चों को निजी विद्यालयों में जाने की जरूरत नहीं होगी ,समय-समय पर शिक्षक का मूल्यांकन करना आवश्यक है ताकि विद्यालय  जाए तो विद्यार्थियों के सभी प्रश्नों के उत्तर उन्हें दे और उन्हें समझाने की कला हो।

किताबों को पढ़ने से ज्ञान आता है यह ज्ञान को निरंतरता की जरूरत है, पर वही ज्ञान अगर अनुभव के साथ हो तो वह भूलते नहीं हैl विचारों की कोई स्थापित प्रणाली नहीं होती है जो हर समय सही होगी यह उतना ही मानवतावादी है जितनी कि किसी भी स्थापित सिद्धांतों की तुलना में मानव जीवन और मानव हित की चीजों के साथ इसका संबंध है शिक्षाएक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी दोनों का समन्वय ना हो तो शिक्षा का समावेशन नहीं होता है l सिद्धांत के साथ-साथ शिक्षा अगर व्यवहारिक हो तो विद्यार्थियों को समझने में और अनुभव के आधार पर ज्ञान अर्जन करने में अधिक सफलता प्राप्त होगी, जिससे समाज में अपने आप को योग्य साबित कर सकेंगेl व्यवहारिकता मौखिकता को कम करती और कार्य वृद्धि को प्रोत्साहित करती है आज व्यवहारिकता संयुक्त राष्ट्र में सबसे प्रमुख स्थान पर है जो दो सिद्धांतों पर आधारित है शिक्षा में एक सामाजिक कार्य होना चाहिए और शिक्षा को वास्तविक जीवन का अनुभव प्रदान करना चाहिए शिक्षा का उद्देश्य व्यवहारिकता के अनुसार बच्चे को अपने जीवन में मूल्य को समझ बनाना हैl जॉन रॉल्स कहते हैं  कि शिक्षा के नए मूल्यों को निर्माण करना चाहिए शिक्षक का मुख्य कार्य शिक्षक को अपने मूल्य विकसित करने की स्थिति में लाना हैl”  शिक्षाका उद्देश्य, आवेगो, रुचियां, इच्छाओं और क्षमताओं का निर्देशन करना जो अपने वातावरण में  बच्चों की इच्छा को पूरी करती हैl

प्रकृति ने जीवन दिया, समाज ने पाला है, शिक्षा ऐसा शस्त्र है जिसके सहारे जीवन मंगलमय कर जाना हैl

निष्कर्ष

किताबों को पढ़ने से ज्ञान आता है यह ज्ञान को निरंतरता की जरूरत है, पर वही ज्ञान अगर अनुभव के साथ हो तो वह भूलते नहीं है। विचारों की कोई स्थापित प्रणाली नहीं होती है जो हर समय सही होगी यह उतना ही मानवतावादी है जितनी कि किसी भी स्थापित सिद्धांतों की तुलना में मानव जीवन और मानव हित की चीजों के साथ इसका संबंध है शिक्षाएक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी दोनों का समन्वय ना हो तो शिक्षा का समावेशन नहीं होता है। सिद्धांत के साथ-साथ शिक्षा अगर व्यवहारिक हो तो विद्यार्थियों को समझने में और अनुभव के आधार पर ज्ञान अर्जन करने में अधिक सफलता प्राप्त होगी, जिससे समाज में अपने आप को योग्य साबित कर सकेंगेl व्यवहारिकता मौखिकता को कम करती और कार्य वृद्धि को प्रोत्साहित करती है आज व्यवहारिकता संयुक्त राष्ट्र में सबसे प्रमुख स्थान पर है जो दो सिद्धांतों पर आधारित है शिक्षा में एक सामाजिक कार्य होना चाहिए और शिक्षा को वास्तविक जीवन का अनुभव प्रदान करना चाहिए शिक्षा का उद्देश्य व्यवहारिकता के अनुसार बच्चे को अपने जीवन में मूल्य को समझ बनाना है। जॉन रॉल्स कहते हैं कि शिक्षा के नए मूल्यों को निर्माण करना चाहिए शिक्षक का मुख्य कार्य शिक्षक को अपने मूल्य विकसित करने की स्थिति में लाना है।शिक्षाका उद्देश्य, आवेगो, रुचियां, इच्छाओं और क्षमताओं का निर्देशन करना जो अपने वातावरण में बच्चों की इच्छा को पूरी करती है। प्रकृति ने जीवन दिया, समाज ने पाला है, शिक्षा ऐसा शस्त्र है जिसके सहारे जीवन मंगलमय कर जाना है। आज के बच्चे कल का भविष्य है उनके साथ खिलवाड़ भविष्य के साथ खिलवाड़ के बराबर है सरकार को समय-समय पर शिक्षकों का मूल्यांकन करना चाहिए ताकि शिक्षा व्यवस्था मजबूत हो सके। सरकार को नई शिक्षा पद्धति को शीघ्र से शीघ्र लागू करना चाहिए क्योंकि जब तक व्यवहारिक शिक्षा पर ध्यान नहीं देंगे तब तक बच्चों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाएगा और देश का आर्थिक विकास इनके सर्वांगीण विकास पर ही टीका है। निजी स्कूलों का मनमानी फीस पर रोक लगना चाहिए। खेलकूद संगीत आदि को अनिवार्य विषय के रूप में बना देना चाहिए। अभिभावक को जागरूकता के लिए कई कार्यक्रम सरकार को चलाने की जरूरत है ताकि सरकार इनको भी जागृत कर सके और अपने बच्चे को समय-समय पर नियमित रूप से विद्यालय भेज सकें इसके लिए शिक्षक और अभिभावक के बीच समय-समय पर वार्तालाप होना चाहिए।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. harrlibary.blogspot.com/2019/06/educafinand social development essay

2. United Nation (2002) Report of the world sumit on sustainable development

3. Retrieved from https:// Sustainable development un.org/milestones/wssd

4. श्रीवास्तव टी/ सामाजिक परिवर्तन 2016 में शिक्षा की भूमिका

5. Google

6. पत्र, पत्रिकाएं