P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- XII August  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika

ग्रामीण महिलाओं हेतु राज्य एवं स्वैच्छिक संगठनों द्वारा चलाए जा रहे मासिक धर्म संबंधी निदानात्मक कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का समाजशास्त्रीय अध्ययन (उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के विशेष सन्दर्भ में)

Sociological Study Of The Effectiveness of Menstrual Diagnostic Programs Run By The State And Voluntary Organizations For Rural Women (With Special Reference to Basti District of Uttar Pradesh)
Paper Id :  18019   Submission Date :  08/08/2023   Acceptance Date :  21/08/2023   Publication Date :  25/08/2023
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
DOI:10.5281/zenodo.8383263
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अंजली त्रिपाठी
शोधार्थी
समाज शास्त्र विभाग
वनस्थली विद्यापीठ
टोंक, निवाई,राजस्थान, भारत
राजश्री मठपाल
असिस्टेंट प्रोफेसर
समाज शास्त्र विभाग
वनस्थली विद्यापीठ
टोंक, निवाई, राजस्थान, भारत
सारांश

एक ऐसा समाज जिसकी जड़े पितृसत्ता मे निहित हो,महिलाओं पर अंतहीन प्रतिबंध लगाता है। कोई भी दो लिंगों के बीच प्राकृतिक असमानता के अस्तित्व से इनकार नहीं कर सकता,लेकिन हमें इस बात का अंधा अनुकरण नहीं करना चाहिए। हमें इस तथ्य को ध्यान रखना चाहिए कि लिंग एक "सामाजिक अवधारणा" है ,जो सामाजिक असमानता को बढ़ावा देता है। महिलाओं को 'दूसरा लिंग' होने के कारण विभिन्न असमानताओं का सामना करना पड़ता है। इसमें से एक मासिक धर्म संबंधी वर्जनाओं का मुद्दा है जो महिलाओं के शारीरिक,मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य तथा सामाजिक विकास पर प्रभाव डालता है। मासिक धर्म जैविक परिपक्वता की एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। किशोरियों व महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित महावारी अति आवश्यक है। परन्तु भारतीय परिवेश में सामान्यतः इसे विवशता कमजोरी और अपराध बोध से जोड़ा जाता है। अतः प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य विभिन्न प्राथमिक व द्वितीयक तथ्यों के आधार पर राज्य सरकार एवं विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों द्वारा चलाये जा रहे मासिक धर्म संबंधी निदानात्मक कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का अध्ययन करना है। शोध कार्य उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के कुदरहा व बनकटी ब्लाक के ग्रामीण क्षेत्र के 180 महिलाओं व किशोरियों के बीच सम्पन्न किया गया। गैर-संभावना निदर्शन पद्धति के उद्देश्यपूर्ण निदर्शन विधि का प्रयोग कर सूचना व तथ्य एकत्रित किये गये। तथ्य संकलन हेतु प्राथमिक स्रोत साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया। तथ्यों का विश्लेषण एवं व्याख्या सामान्य प्रतिशत विधि द्वारा किया गया।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद A society rooted in patriarchy imposes endless restrictions on women. One cannot deny the existence of natural inequality between the two sexes, but we should not follow it blindly. We must take note of the fact that gender is a "social concept" which promotes social inequality. Women face various inequalities due to being the 'second gender'. One of these is the issue of menstrual taboos that affect women's physical, mental and emotional health and social development. Menstruation is a normal natural process of biological maturation. Safe menstruation is very important for the health of adolescent girls and women. But in the Indian environment it is generally associated with helplessness, weakness and guilt.
Therefore, the purpose of the presented research paper is to study the effectiveness of the menstrual diagnostic programs being run by the state government and various voluntary organizations on the basis of various primary and secondary facts. The research work was conducted among 180 women and adolescent girls of rural areas of Kudarha and Bankati blocks of Basti district of Uttar Pradesh. Information and facts were collected by using purposive sampling method of non-probability sampling method. Primary source interview schedule was used for data collection. The analysis and interpretation of the data was done by the simple percentage method.
मुख्य शब्द ग्रामीण महिलाएँ, मासिक धर्म,राज्य एवं स्वैच्छिक संगठन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Rural Women, Menstruation, State and Voluntary Organizations.
प्रस्तावना

तकनीकी उन्नति और समानता, तर्कसंगतता के प्रगतिशील विचार 21 वीं सदी की वास्तविकता हैं। हालांकि, यह वास्तविकता एक महिला की कड़वी वास्तविकता पर ग्रहण लगाने में विफल रहती है। समाज तब भ्रमित होता है जब वह सोचता है कि मासिक धर्म बहिष्कार अतीत की कहानी है ,परन्तु यह एक महिला की जीवित वास्तविकता है। समाज को महिलाओं पर सदियों पुराने प्रतिबंध लगाना अच्छा लगता है, लेकिन अगर हमें प्राचीन प्रथाओं को जारी रखना है तो हमने आधुनिकता को क्यों अपनाया है? क्या यह विडम्बना नहीं है? सांस्कृतिक, समा रूप से, मासिक धर्म को अभी भी अशुद्ध माना जाता है । इस मिथक की उत्पत्ति वैदिक काल से होती है और इसे अक्सर इंद्र द्वारा वृत्रों के वध से जोड़ा जाता है।क्योंकि, वेद में यह घोषित किया गया है कि ब्राह्मण-हत्या का अपराध, हर महीने मासिक धर्म के रूप में प्रकट होता है क्योंकि महिलाओं ने इंद्र के अपराध का एक हिस्सा अपने ऊपर ले लिया था हालांकि,वेदों में एकांतवास या मासिक धर्म वाली महिला पर लगाए गए प्रतिबंधों के बारे में किसी श्लोक का उल्लेख नहीं है। वास्तव में, वेदों में वर्णित'अग्निहोत्री यज्ञ' जिसे महायज्ञ के रूप में देखा जाता है, वैदिकों (पुरुषों और महिलाओं दोनों) द्वारा बिना किसी असफलता के प्रतिदिन किया जाना चाहिए। तो अगर महिलाओं को एकांत में रखा जाना चाहिए था और हर महीने पूजा करने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए था, तो फिर उन्होंने यह यज्ञ कैसे किया? इस प्रकार, वेदों ने कभी भी प्राकृतिक/पौराणिक घटना पर किसी महिला की स्वतंत्रता या गतिशीलता को बाधित नहीं किया।इसके अलावा, हिंदू आस्था में, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को सामान्य जीवन में भाग लेने से मना किया जाता है। उसे अपने परिवार और अपने जीवन के रोजमर्रा के कामों में लौटने की अनुमति देने से पहले उसे "शुद्ध" किया जाना चाहिए। हालाँकि, वैज्ञानिक रूप से यह ज्ञात है कि मासिक धर्म का वास्तविक कारण ओव्यूलेशन है जिसके बाद गर्भधारण की संभावना चूक जाती है जिसके परिणामस्वरूप एंडोमेट्रियल वाहिकाओं से रक्तस्राव होता है और इसके बाद अगले चक्र की तैयारी होती है। इसलिए, इस धारणा के बने रहने का कोई कारण नहीं दिखता कि मासिक धर्म वाली महिलाएं "अशुद्ध" होती हैं। इस सम्बन्ध मे यदि हम आंकड़ों की ओर गौर करें तो पाएंगे की 'इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ' के 'भारत में स्कूलों में मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता की तत्परता (2020 )' के परिणामों में पाया गया कि आधी से भी कम लड़कियों को मासिक धर्म की उम्र से पहले मासिक धर्म के बारे में जानकारी थी। इसके अतिरिक्त, भारत में लड़कियों पर यूनिफॉर्म नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के अध्ययन (2020) के शोध से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में गरीब घरों की किशोरियों मासिक धर्म के दौरान जरूरत की उचित स्वच्छता सुविधाओं से वंचित है, जिससे हर दो में से एक किशोरी अपने मासिक धर्म के दौरान पैसे की कमी भी वजह से सैनिटरी पैड या टैम्पोन का इस्तेमाल नहीं कर पाती है। हर माह मासिक धर्म के दौरान कई किशोरियों को मासिक धर्म के पीछे के जैविक कारणों का पता नहीं होता है, और न ही वे अपने साथ अचानक होने वाले भेदभाव को समझ पाती है।

अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य विभिन्न प्राथमिक व द्वितीयक तथ्यों के आधार पर राज्य सरकार एवं विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों द्वारा मासिक धर्म संबंधी चलाये जा रहे निदानात्मक कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का अध्ययन करना है।

1. ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक धर्म सम्बन्धित व्याप्त सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक निरयोग्यता को ज्ञात करना।

2. किशोरियों में मासिक धर्म स्वच्छता के लिए प्रचलित प्रथाओं का पता लगाना।

3. उत्तरदाताओं और उनकी माताओं की शैक्षिक स्थिति के साथ माहवारी से पहले मासिक धर्म के बारे में जागरूकता और मासिक धर्म स्वच्छता के लिए प्रथाओं के संबंध का पता लगाना।

साहित्यावलोकन

लाओगे, ए. एस. स्टर्न, आर. कूपर्स डी (2018) ने अपना शोध फैक्टर्स अफेक्टिंग मेंस्ट्रुअल हाइजीन एंड देयर इम्प्लीकेशन फॉर हेल्थ प्रमोशन शीर्षक के अंतर्गत अपना शोध किया तथा शोध के निष्कर्षों के अनुसार गरीबी, अशिक्षा और अज्ञानता जैसे कारक है जो मेंस्ट्रुअल हाइजीन की प्राप्ति में बाधक है। मेंस्ट्रुअल हाइजीन नहीं होने से स्वास्थ्य सेवाओं पर असर होता है किशोरी बालिकाओं को मेंस्टुअल हाइजीन नहीं मिलने से वे संक्रमण का शिकार होती हैं और जीवनभर के लिए प्रजनन समस्याओं से ग्रस्त होकर देश के भविष्य की राह में बाधा होती है।

ठाकरे एट एल (2018) के शोध के अनुसार किशोरियों में मासिक धर्म अक्सर खराब प्रथाओं एवं संबंधी समस्याओं से जुड़ा होता है। प्रस्तुत अध्ययन नागपुर की स्कूल जाने वाली किशोरियों पर किया गया जिसमें शहरी व ग्रामीण किशोरियों की मासिक धर्म संबंधित समस्याओं का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि ग्रामीण किशोरियों को अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा है क्योंकि उनमें अज्ञानता थी व उनके परिवार में शिक्षा के अभाव की वजह से उन्हें उनकी रूढ़िवादी विचारों को सहन करना पड़ा।

नीलसन (2020) ने स्वच्छता संरक्षण हर महिला का स्वास्थ्य अधिकार पर अपने अध्ययन में अस्वच्छ प्रथाओं और महिलाओं के स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव का विश्लेषण किया है। अध्ययन से पता चलता है कि मासिक धर्म के दिनों के दौरान अपर्याप्त सुरक्षा के कारण 12 वर्ष से 18 वर्ष की आयु वर्ग की किशोरियों को प्रत्येक माह में 5 दिवस की छुट्टी लेनी पड़ती है। इनमें से कुछ किशोरियों ने मासिक धर्म शुरू होने के बाद स्कूल छोड़ दिया था। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्यकर मासिक धर्म प्रथाओं के कारण 70 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को अपने जीवनकाल में किसी न किसी प्रकार का प्रजनन पथ संक्रमण (RTI) होता है।

अच्युतन के मधुपलानी. एस. कोलिल. वी. के. बी. श्रीसुथम के, श्रीदेवी ए. (2021) ने अपनी शोध "केले के छिलकों से सेनेटरी पैड भारत में स्वच्छ माहवारी के लिए सुविधाजनक एवं स्वीकार्यता"

विषय पर पूर्ण किया। उन्होने शोध के परिणामों के आधार पर यह प्रतिपादित किया की हमें हमारे देश के उपलब्ध संसाधनों की मदद से सुविधाजनक मेंस्ट्रुअल हाइजीन की बात करना होगा। उन्होंने केले के छिलकों से सेनेटरी नैपकिन बनाने का ब्लूप्रिंट प्रस्तुत किया जिससे कम से कम खर्च में हम हमारे देश की किशोरियों को मेंसुरल हाइजीन की सौगात दे सकें।

चौहान, एस कुमार, पी. ढिल्लन, पी. श्रीवास्तव, एस. (2021) ने अपने शोध को "यूस आफ सैनेटरी नैपकीन्स अमंग एडोलसेंट गर्ल्स" शीर्षक से पूरा कर प्रस्तुत किया। शोध में शोधार्थी ने देश के विभिन्न भागों में प्रयुक्त होने वाले सेनेटरी नैपकिन के प्रयोग की बात की। शोध के निष्कर्षानुसार हमारे देश के गांवों में स्वच्छता तथा स्वास्थ्य आधारित स्टुअल हाइजीन अभी हमारे देश में प्रतिपादित नहीं हो पाया है।

इस प्रकार उपरोक्त अध्ययनों के पुनरावलोकन के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि  महिलाओं व किशोरियों के मासिक धर्म विषय  पर शोध कार्य करना अनेक शोधकर्ताओं के लिए एक रुचिकर विषय रहा है।

प्रत्येक दशक में इस विषय के अध्ययन कर विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला गया; परन्तु अधिकांश शोध कार्यों में इससे सम्बन्धित स्वास्थ्य, हयजीन जैसे पक्षों पर ज़्यादा ध्यान दिया गया है, परन्तू मासिक धर्म से सम्बन्धित आज भी जो अनेक सामाजिक र्नियोग्यताएं, बाध्यकारी, सामाजिक सांस्कृतिक प्रथाएं व वर्जनाएं व्याप्त हैं विषेशकर  ग्रामीण क्षत्रों मे ये बात और भी सत्य प्रतीत होती है जो की महिलोओ व किशोरियो के सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक रूप से आगे बढ़ने मे अवरोध बनी है। इस पक्ष पर शोध कार्य का अभाव है। अतः समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं व किशोरियों का अध्ययन करना वर्तमान नवीन सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण है।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध में महिलाओं की सामाजिक व मानसिक स्वास्थ्य का अध्ययन किया गया है। साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं,सरकारी प्रयासों द्वारा महिलाओं को सैनिटरी पैड की उपलब्धता कराये जाने में किए गए प्रयास,जागरूकता कार्यक्रमों का अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में तथ्यों के संकलन हेतु गैर संभावना निदर्शन पद्धति के उद्देश्यपूर्ण निदर्शन विधि का उपयोग किया गया है। इस विधि के अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता विशेष उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए समग्र में उन्हीं इकाइयों का चयन जानबूझकर करता है जिसे वह पूर्व ज्ञान के आधार पर उस समग्र का प्रतिनिधि समझता है। अत: प्रस्तुत अध्ययन मे समय सीमा एवं धन की लागत को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जनपद के बनकटी व कुदरहा ब्लॉक के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं व किशोरियो से जुड़े 'मासिक धर्म' सम्बंधित तथ्य व सूचना एकत्रित किये गये है। इस शोध में 9 गांवों की कुल 180 उत्तरदानियों को सम्मिलित किया गया है। तथ्य संकलन हेतु प्राथमिक स्रोत साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया है। तथ्यों का विश्लेषण एवं व्याख्या सामान्य प्रतिशत विधि द्वारा किया गया। अध्ययन क्षेत्र- प्रस्तुत शोध अध्ययन उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद की बनकटी ब्लाक व कुदरहा ब्लाक के ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पन्न किया गया है। अध्ययन का समग्र - शोध कार्य हेतु अध्ययन के समग्र के रूप में बनकटी ब्लाक के ग्रामीण क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली महिलाओं एवं किशोरियों पर केंद्रित रहा। ग्राम पंचायत अमईपार रौतापार ,तथा कुसहवा के 9 गांवों का चयन संभाव्य निदर्शन विधि से किया गया तथा प्रत्येक गांव से कुल 20 किशोरियों व महिलाओं का चयन संभाव्य निदर्शन विधि द्वारा उत्तरदाता के रूप में किया गया । गाँवो के नाम कुरमौल, जनजन, अमईपार (अमईपार ग्राम पंचायत),दौलतपुर,नराड़,बखरिया(रौतापार ग्राम पंचायत)लोईयाभारी कला,कुशहवा,चौबाह(कुशहवा ग्राम पंचायत)है। प्रस्तुत शोध कार्य मे क्षेत्रीय विधि का प्रयोग कर यह अध्ययन मार्च-जून 2023 के बीच उ.प्र. के बस्ती जिले के बनकटी व कुदरहा ब्लॉक के ग्रामीण स्वास्थ्य और प्रशिक्षण केंद्र के क्षेत्र अभ्यास क्षेत्र में 15-18 आयु वर्ग की किशोरियों तथा 18-40 आयु वर्ग के महिलाओ 180 किशोरियों और महिलाओं के बीच आयोजित किया गया । तथ्यों के संकलन हेतु पूर्व संरचित, अर्ध संरचित साक्षात्कार अनुसूची का उपयोग किया गया। सामान्य प्रतिशत तथा सारणीयन आदि सांख्यिकीय विधियों का उपयोग करके डेटा का सांख्यिकीय विश्लेषण किया गया।
परिणाम

महिलाओं/किशोरी उत्तरदात्रियो द्वारा प्राप्त तथ्य
सारणी क्रमांक- 1

क्रम संख्या

मासिक धर्म को अपवित्र  निषेध समझना

उत्तरदात्रियो की संख्या

प्रतिशत

1

हाँ

171

95

2

नहीं

9

5

 

कुल योग

180

100

उपर्युक्त सारणी में तथ्यों से स्पष्ट होता है कि कुल चयनित 180 उत्तर दाता में से 95% ग्रामीण महिलाएं व किशोरिया मासिक धर्म के दौरान स्वयं को अपवित्र समझकर धार्मिक क्रियाकलाप वह किसी विशिष्ट व्यक्ति के संपर्क में आने का निषेध करती हैं जबकि केवल पांच प्रश्न उत्तरदात्री मासिक धर्म को अपवित्र नहीं मानती हैं।
सारणी क्रमांक- 2

क्रम संख्या

मासिक धर्म के दौरान भेद-भाव का शिकार होना

उत्तरदात्रियो की संख्या

प्रतिशत

1

हाँ

162

90

2

नहीं

18

10

 

कुल योग

180

100

उपयुक्त सारणी में वर्णित तथ्यों से स्पष्ट होता है कि कुल 180 उत्तर दाता में से मासिक धर्म के दौरान  90% उत्तर दाता स्वयं को सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से भेदभाव का शिकार पाते हैं जबकि केवल 10% उत्तर दाता स्वयं को शिकायतों का शिकार नहीं पाती हैं।
सारणी क्रमांक- 3

क्रम संख्या

मासिक धर्म के दौरान 

उपयोग की जाने वाली वस्तु

उत्तरदात्रियो की 

संख्या

प्रतिशत

1

सेनेटरी नैपकिन

108

60

2

कपड़ा या अन्य

72

40

 

कुल योग

180

100

सारणी क्रमांक 3 से स्पष्ट होता है कि मासिक धर्म के दौरान कुल सा 180 में से 60% उत्तर दात्री सेनेटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं जबकि शेष  40% उत्तर दात्री कपड़े  का उपयोग कर रही थी।
सारणी क्रमांक- 4

क्रम संख्या

मासिक धर्म के दौरान कपड़ों 

का पुनः प्रयोग करना

उत्तरदात्रियो की 

संख्या

प्रतिशत

1

हाँ

90

50

2

नहीं

90

50

 

कुल योग

180

100

सारणी क्रमांक 4 से स्पष्ट होता है कि 50%  उत्तरदात्री मासिक धर्म के में उपयोग  कपड़ों का दुबारा धूल करके उपयोग करती हैं जबकि आधी उत्तरदात्री सेनेटरी पैड या कपड़ों का दोबारा उपयोग में नहीं लाते हैं।

सारणी क्रमांक -5

क्रम संख्या

सरकार के द्वारा आंगनबाड़ियों/आशा या अन्य 

के जरिए सेनेटरी पैड वितरित किए जाते हैं

उत्तरदात्रियो कीसंख्या

प्रतिशत

1

हाँ

54

30

2

नहीं

126

70

 

कुल योग

180

100

युक्त सारणी से स्पष्ट होता है कि कुल 180 उत्तर दाताओं में से 70% उत्तर दाताओं को यह पता नहीं है कि उनके क्षेत्र में आंगनबाड़ियों आशाओं के जरिए किसी प्रकार के सरकार द्वारा सेनेटरी पैड का वितरण किया जाता है।
सारणी क्रमांक -6

क्रम संख्या

स्वयंसेवी संस्थाओंसरकारी प्रयास 

द्वारा जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन

उत्तरदात्रियो की संख्या

प्रतिशत

1

हाँ

9

5

2

नहीं

9

5

3

पता नही

162

90

 

 

180

100

स्वैच्छिक संगठनों या सरकारी द्वारा जागरूकता कार्यक्रम कार्यक्रमों की बात करें तो 90% उत्तर दाताओं को यह पता नहीं है कि उनके क्षेत्र में किसी भी प्रकार का जागरूकता अभियान या शिविर का आयोजन किया गया है कि केवल पांच प्रश्न उत्तर दाता इसमें सहमत हैं। उक्त शोध द्वारा प्राप्त तथ्यों को यदि हम समाज की दृष्टिकोण से देखे तो सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से, मासिक धर्म को अभी भी अशुद्ध व दूषित माना जाता है।

भारत में आज २१वीं सदी में भी मासिक धर्म और इससे संबंधी व्यवहारों में महिलाओं और किशोरियों के लिए अनेक वर्जनायें और सामाजिक-सांस्कृतिक अवरोध है। महिलाएं स्वयं इसे टैबू मानती है और इस विषय पर सार्वजनिक रूप से बात करने में संकोच करती हैं। मासिक धर्म को लेकर आज भी हमारा समाज खुल कर बात नही करना चाहता विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में ये बात और भी सत्य प्रतीत होता है, जहां महिलाओं को ले कर आज भी तमाम प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक निर्योग्यता व्याप्त है। इस शोध के दौरान हमें ज्ञात पाया कि मासिक धर्म के दौरान, 65% उत्तरत्रियों को अलग बिस्तर पर सोना पड़ता है, 95% उत्तरदाताओं को इस दौरान रसोई घर में जाना, भोजन बनाना, अचार छूना आदि करना निषिद्ध है।

अतः कहा जा सकता है की आज 21वी शताब्दी के भारत में भी हमारा सामाजिक ताना-बाना व पितृसत्तात्मक संकीर्ण विचारधारा लोगों के मस्तिष्क में ना सिर्फ मौजूद है बल्कि महिलाओं के  सामाजिक गतिशीलता में बहुत बड़ी बाधा बनी हुयी है।

माहवारी के बारे में जागरूकता, मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता प्रथाओं और आरटीआई के लक्षणों के बारे में उनकी जागरूकता का पता लगाने के लिए चयनित उत्तरदाताओं के बीच फोकस समूह चर्चा आयोजित की गई।

उत्तरदाताओं में से लगभग आधा हिस्सा मासिक धर्म शुरू होने से पहले इसके बारे में जागरूक था और उनके लिए माताएं जानकारी का मुख्य स्रोत थीं। उपयोग किए गए पैड/कपड़ों के निपटान की विधि नियमित कूड़ेदान में है और उनमें से कोई भी इसका पुन: उपयोग नहीं कर रहा था। उन्होंने हमें बताया कि वे बाजार से नैपकिन खरीदने में सहज नहीं हैं।एक उत्तरदाता ने कहा कि "एक ही कपड़े के दोबारा इस्तेमाल से संक्रमण होता है"

लगभग एक-तिहाई विवाहित उत्तरदाताओं को माहवारी शुरू होने से पहले ही इसके बारे में पता था और उनके लिए माताएँ जानकारी का मुख्य स्रोत थीं।

आधी लड़कियां व महिलाएं पुराने कपड़े को धोती हैं और फिर से इस्तेमाल करती हैं; जबकि, बाकी लोगों ने कपड़ों को या तो नियमित कूड़ेदान में डाल दिया या फिर उसे जमीन में गाड़ दिया।

एक उत्तरदाता ने कहा कि, "आजकल सूती कपड़ों की कमी के कारण हम इसका पुन: उपयोग कर रहे हैं"

मासिक धर्म के दौरान स्वच्छ प्रथाओं का आंकलन करते समय, उत्तरदाताओं की आर्थिक स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है; और हमारे अध्ययन में, यह देखा गया कि उत्तरदाता जो उच्च आर्थिक वर्ग  में थे, मध्य  और निम्न वर्ग की तुलना में अधिक स्वच्छ प्रथाओं को बनाए रखती हैँ।

एक उत्तरदाता ने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए बताया की "प्रथम बार महामारी के दौरान वो स्कूल मे थी,उसे इस विषय मे पहले से जानकारी प्राप्त ना होने के कारण वो डर गयी तथा खुद को शर्मिंदा महसूस करते हुए सहेलियों से साझा कियाशारीरिक पीड़ा मे हि खुद को छिपा कर घर पहुंची जहा माँ  से भी साझा करने मे शुरु मे झिझक महसूस हुयी" एक उत्तरदाता ने महामारी को धार्मिक किस्से से जोड़ते हुए "महिलाओं के लिए भगवान शंकर का श्राप" माना।

निष्कर्ष

हमारे शोध के दौरान यह ज्ञात हुआ की- महिलाओं में पीरियड को लेकर जन जागरूकता की कमी या समस्यायें बनी हुई हैं इसके लिए सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं है। सरकार अस्पतालों से लेकर स्कूलों तक इसके लिए कोई विशेष कार्य नहीं कर पायी है जिससे महिलाओं और बच्चियों में इसे लेकर जागरूकता फैले। स्कूली स्तर पर भी इस पर खुलकर बात नहीं की जाती है जबकि बच्चियों को सीखने का यह प्राथमिक केन्द्र है। यहाँ उनके स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर खुलकर बातचीत हो सकती है। कम से कम महिला कॉलेजों या स्कूलों में तो हो ही सकती है क्योंकि वहाँ पर छात्र और शिक्षक दोनों महिलाएं ही होती हैं। किंतु वास्तव में ऐसा नहीं हो रहा है। इसके अलावा आंगनबाड़ी, आशा या फिर इसी तरह की सरकारी महिला कर्मचारी इस क्षेत्र में बेहतर कार्य कर सकती हैं। लेकिन ऐसा उदाहरण कम ही मिलता है कि इस तरह की समस्याओं पर वे ग्रामीण एवं शहरी स्तर पर लोगों के बीच खुलकर बातें करती हैं। कई बार महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर सरकार के द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं लेकिन उनमें भी मासिक धर्म जैसे मुद्दों पर चर्चा कम ही होती है जिससे कि यह महिलाओं के स्वास्थ्य का एक मुख्य विषय नहीं बन पाता है। सरकारी स्तर पर देखा जाये तो मासिक धर्म के दौरान महिला कर्मचारियों को किसी प्रकार की छुट्टी नहीं मिलती है। यही हाल निजी क्षेत्रों का भी है, जबकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को आराम की आवश्यकता होती है। चूंकि निजी क्षेत्रों में नौकरी खोने का डर रहता है इसलिए महिलाएं इसे बताने से कतराती हैं। सरकारी दफ्तरों में भी महिलाएं इस पर कम ही बात करती हैं। भारत में एक बड़ी समस्या यह है कि पैड बनाने या उसकी गुणवत्ता को लेकर जो मानक हैं वह 1980 के बीआईएस (BIS) आधारित मानक हैं जो कि काफी पुराना है। समय के साथ उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है जिससे कि उसके निर्माण और गुणवत्ता पर सही तरीके से निगरानी नहीं हो पा रही है। मासिक धर्म और मासिक धर्म प्रथाओं को अभी भी कई सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है जो मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के मार्ग में एक बड़ी बाधा हैं। शोध अध्ययन के द्वारा यह ज्ञात हुआ कि परिवार में आज भी पुरानी मान्यताओं के कारण एवं परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण माहवारी के समय में किशोरियाँ सैनेटरी पैड को खरीदने एवं उसका उपयोग करने में असमर्थ रहती हैं एवं उसकी जगह पर वे कपड़े का उपयोग करती है, जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से बिल्कुल भी ठीक नहीं है। किशोरियाँ व महिलाएँ अज्ञानता एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूक न होने की वजह से अक्सर अपने मासिक धर्म या माहवारी के दौरान स्वच्छता का ध्यान नहीं रखती हैं। ऐसा करने वाली किशोरियाँ इस बात से अनजान रहती हैं कि इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। यही वजह है कि माहवारी यानी पीरियड्स के दौरान सफाई रखने की सलाह दी जाती है। अज्ञानता और शर्म तथा पैसे बचाने के चलते वे कई बार माहवारी के समय सैनेटरी नैपकिन का प्रयोग नहीं करती। वह इस समय कपड़े का प्रयोग करना ही बेहतर समझती है, क्योंकि ऐसा करना उनके लिए आसान होता है, हालांकि ऐसा करते समय वो अनजाने में ही सही अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही होती हैं। अतः यह आवश्यक है कि किशोरियों को स्वास्थ एवं स्वच्छता से संबंधित संपूर्ण जानकारी होना चाहिए। मासिक धर्म को लेकर समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करना होगा। लोगों में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है तथा यह नारी के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है इस बात को बताने की भी आवश्यकता है। इस प्रकार अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन "क्षमता उपागम " को उक्त तथ्यों के साथ विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट होता है की क्षमता दृष्टिकोण की अवधारणा व्यक्तियों की जीवन जीने की क्षमताओं और स्वतंत्रता का मूल्यांकन करने पर जोर देती है। हमें केवल आय या संसाधन वितरण पर ध्यान केंद्रित न करकेशिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, राजनीतिक भागीदारी और सामाजिक कल्याण जैसे कारकों को भी शामिल करना चाहिए। लोगों की क्षमताओं को बढ़ाने और उनके अवसरों का विस्तार करने को प्राथमिकता देकर, एक ऐसे समाज की स्थापना करनी चाहिए, जो भौतिक कल्याण से परे हो और व्यक्तियों के समग्र विकास का पोषण करता हो।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

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15. NRHM वेबसाइट पर उपलब्ध सामग्री
16. मेन्स्ट्रपीडिया कामिक्स http://www.menstrupedia.com/
17. माहवारी स्वास्थ्य व स्वच्छता संबंधी विषय आधारित फिल्म मैत्रेयी लिंक- http://www.healthphone.org/mythri/mythri-hindi.htm
18. अम्मा जी कहती है- जीना इसी का नाम है विषय व्यक्तिगत सफाई एवं स्वच्छता fetch-http://www.healthphone.org/ammaji/menstrual-hygiene.htm