P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- XII August  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika

मलिन बस्तियों में शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन (झाँसी नगर के विशेष सन्दर्भ में)

Study of Educational and Economic Status in Slums (With Special Reference to Jhansi City)
Paper Id :  18021   Submission Date :  04/08/2023   Acceptance Date :  15/08/2023   Publication Date :  25/08/2023
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DOI:10.5281/zenodo.8398813
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कमलेश कुमार
शोध छात्र (असिस्टेंट प्रोफेसर)
समाजशास्त्र विभाग
वी0म0ल0 राजकीय महिला महाविद्यालय
झाँसी,उत्तर प्रदेश, भारत
संध्या कुमारी
एसोसिएट प्रोफेसर
समाजशास्त्र विभाग
आर्य कन्या महाविद्यालय
झाँसी, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

प्रस्तुत शोधपत्र झाँसी महानगर की मलिन बस्तियों के सामाजिक अध्ययन से सम्बंधित है। शैक्षणिक स्तर का तात्पर्य शिक्षा के उस स्तर से है जो कि समाज के सभी वर्गों को व्यैक्तिक उन्नयन हेतु प्राप्त है। किसी भी समुदाय के पुरुष व महिला सदस्य किस स्तर की शिक्षा यथा पूर्व प्राथमिक स्तर अथवा प्राथमिक स्तर या फिर उच्च शिक्षा से युक्त है। आर्थिक स्थिति भी बच्चों की शिक्षा का निर्धारण करती है। जिनकी आर्थिक स्थिति उच्च होती है वो अपने बच्चों को अच्छे विद्यालयों में शिक्षा दिलाते है। निर्धन स्थिति वाले अपने स्रोतों से अपनी आजीविका तो चला लेते है लेकिन अपने बच्चों को उच्च शिक्षा संस्थान में प्रवेश नहीं दिला पाते है। निम्न आर्थिक स्थिति वाले अपने बच्चों को विद्यालय भेज ही नहीं पाते है। मलिन बस्तियों में शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने के लिये साक्षात्कार अनुसूची के माध्यम से मलिन बस्तियों के 200 सूचनादाताओं से आँकड़ों का संकलन किया गया है। शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति के अध्ययन में मलिन बस्तियों के सूचनादाताओं में शिक्षा के स्तर, मासिक आय, व्यवसाय के प्रकार, घर की स्थिति का अध्ययन किया गया है। मलिन बस्तियों के शैक्षणिक स्थिति के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि मलिन बस्तियों के अधिकतर सूचनादाता अशिक्षित हैं जो सिर्फ अकुशल रोजगार कर पाते हैं जो उनके लिये सिर्फ जीविका अर्जन हेतु होता है। मलिन बस्तियों की आर्थिक स्थिति के अध्ययन से यह स्पष्ट होता हैं कि मलिन बस्तियों के अधिकतर सूचनादाता श्रमिक हैं और कच्चे मकान एवं झोपड़ी में रहते है और अधिकतर सूचनादाताओं की आय 2000 से 5000रू तक हैं जो उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय होने का सूचक है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The presented research paper is related to the social study of slums of Jhansi metropolis. Educational level means the level of education that all sections of the society receive for personal upliftment. What level of education do the male and female members of any community have, such as pre-primary level or primary level or higher education? Economic status also determines the education of children. Those who have high economic status provide education to their children in good schools. People with middle economic status manage their livelihood from their own resources but are not able to get their children admitted to higher education institutions. People with low economic status are not able to send their children to school. Study of educational and economic status in slums. For this, data has been collected from 200 informants of slums through interview schedule. In the study of educational and economic status, the level of education, monthly income, type of business, house condition among the informants of slums has been studied. Study of the educational status of slums leads to the conclusion that most of the informants of slums are uneducated who are able to do only unskilled employment which is only for them to earn their livelihood. From the study of the economic condition of the slums, it becomes clear that most of the informants of the slums are laborers and live in kutcha houses and huts and the income of most of the informants is between Rs 2000 to Rs 5000, which is an indicator of their poor economic condition.
मुख्य शब्द मलिन बस्तियां, शैक्षणिक स्तर, आर्थिक स्थिति, आजीविका, साक्षात्कार आदि।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Slums, Educational Level, Economic Status, Livelihood, Interview etc.
प्रस्तावना

अत्यधिक नगरीकरण और औद्योगीकरण के प्रभाव के फलस्वरुप मलिन बस्तियों का विकास हुआ। मलिन बस्तियां वे स्थान है जहाँ असंख्य बुराइयाँ उत्पन्न होती है, और सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करती है। स्वतंत्रता के इतने वर्षों में भारत ने चहुँमुखी प्रगति की है। जहाँ अल्पसंख्या में लोग विलासी सुख सुविधाओं का उपयोग करते है वहीं इस देश की पचास प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही है। शहरों में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्ति मलिन बस्तियों में निवास करते है। एक छोटी सी कोठरी, कच्चे मकान अथवा झोपड़ी में 10 से 15 व्यक्ति तक रहते है। यहाँ जल के निकास का कोई प्रबन्ध नहीं है। इन तंग, संकरी, मलिन बस्तियों में जीवन कम और बीमारियां अधिक होती है। पीले मुरझाये चेहरे, पिचके गाल, उभरती हड्डियाँ, फटे गन्दे कपड़े यहा का सौन्दर्य है। ये मलिन बस्तियां मानवता के पतन की पराकाष्ठा है। मलिन बस्तियां निर्धन व्यक्तियों के वे स्थान है जहाँ वे स्वयं झोपड़ी अथवा लकड़ी के छोटे-छोटे मकान बनाकर रहते है। ये मकान उनके अपने भी होते है और किराये पर भी रहते है। मलिन बस्तियों की आर्थिक दृष्टिकोण से व्याख्या करते हुए आस्कर लेविस ने इन्हें निर्धनता की संस्कृति कहा है। मलिन बस्तियों के सन्दर्भ में मुम्बई में हुए एक सेमीनार में यह स्पष्ट किया गया कि मलिन बस्ती एक संकीर्ण, अव्यवस्थित बसी हुई, साधारणतः उपेक्षित क्षेत्र है जिसकी सदस्य संख्या अधिक है तथा यहाँ की संरचना भीड़युक्त अस्वास्थ्यकारी व तिरस्कार पूर्ण होती है। सामान्यतः यहाँ सामाजिक सेवा तथा कल्याणकारी संस्थाओं का अभाव पाया जाता है जो कि उनमें रहने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य अल्प आय, रहन सहन की निम्न दशायें, उनकी शारीरिक मानसिक और सामाजिक दशाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। प्रस्तुत अध्ययन मलिन बस्तियों में शैक्षिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन करना है।

अध्ययन का उद्देश्य

1. मलिन बस्तियों में शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन करना।

2. मलिन बस्तियों में व्यवसाय के प्रकार का अध्ययन करना।

3. मलिन बस्तियों में मासिक आय का अध्ययन करना।

4. मलिन बस्तियों में आवास की स्थिति का अध्ययन करना।

साहित्यावलोकन

सिंह ब्रजेन्द्रनाथ (2016): बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण झुग्गीवासियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति आमतौर पर खराब है। झुग्गीवासी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । इस दृष्टि से झुग्गीवासियों का अध्ययन महत्वपूर्ण हो जाता है।यह शोधपत्र यह कोशिश करता है कि झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों की सामाजिक आर्थिक स्थितियों से सम्बंधित सैद्धांतिक विचारों को प्रदर्शित करना और उसके कारण झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों की स्थिति में सुधार के लिये उचित उपाय करना। हम जानते है कि झुग्गीवासी संभावित मानव संसाधन के भंडार हैइसे कौशल के माध्यम से विकसित किया जा सकता है। सरकार द्वारा शुरु किये गये वृद्धि कार्यक्रम और उचित सार्वजनिक कार्यवाही के माध्यम से सामाजिक प्रावधानों और सामाजिक सुविधाओं के पुनर्वितरण से  झुग्गीवासियों की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। यह शोधपत्र प्रकृति में वैचारिक है पुस्तकों,शोध लेखोंएन एस एस ओ जैसे विभिन्न स्रोतों से एकत्रित विस्तृत साहित्य पर आधारितरिपोर्ट,भारत की जनगणना आदि।

डॉ सौरभ वर्मा (2017): यह शोधपत्र बरेली महानगर की मलिन बस्तियों के आथ्रियाक एवं सामाजिक जीवन के अध्ययन पर आधारित है। शोध में बरेली महानगर के मलिन बस्तियों के निवासी अपने सीमित संसाधन के कारण आर्थिक रूप से अपने ग्रामीण क्षेत्र के सम्बंधियों से भी पिछड़े हुए है। उनकी प्रति व्यक्ति आय ग्रामीण क्षेत्र के लोगों से भी कम है। मलिन बस्तियों के निवासी अपनी अर्द्धकुशल एवं अकुशल क्षमता के कारण अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में असफल  रहे हैं। मलिन बस्तियों में अस्वस्थ वातावरणगंदगीस्वच्छ जल का अभाव,शैक्षिक स्तर का अभाव भी आर्थिक विकास को प्रभावित करता है।मलिन बस्ती के निवासी परिवार में गरीबी के स्तर को देखते हुए परिवार की महिलायें अनैतिक कार्यों में लिप्त हो जाती है जिससे स्वास्थ्य सम्बंधी अनेक समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। मलिन बस्ती के निवासी सामान्यतः वे परिवार होते है जो रोजी रोटी की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं। मलिन बस्ती के निवासी अपनी अकुशल और अर्द्धकुशल क्षमता के कारण अपने परिवार के जीवनयापन हेतु दैनिक वेतन पर रोजगार की तलाश करते है। कुपोषणअपराधबोधगंदी आदतेंआपसी झगड़े आदि इन परिवारों के विकास में बाधक बनते है जिससे समाज का उच्च वर्ग इन परिवारों के युवाओं और महिलाओं को अपने निहित स्वार्थों को प्रयोग में लातें है।

मिश्र एवं यादव(2020): मलिन बस्तियों की सामाजिक एवं शैक्षणिक स्थिति इलाहाबाद नगर के अध्ययन के अवलोकन में पाया गया कि सुविधायुक्त मकानों में रहने के कारण बच्चों की शिक्षा में सुधार हुआ है। जो लोग सुविधायुक्त मकानों में रहते है उनके बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्राप्त होती है साथ ही जो लोग सुविधायुक्त मकानों में नहीं रहते हैं उनको निःशुल्क शिक्षा प्राप्त नहीं होती है। जो लोग सुविधायुक्त मकानों में रहते है उनके बच्चों को विद्यालय में मध्यान्ह भोजन प्राप्त होता है और जिन लोंगों के बच्चे सुविधायुक्त मकानों में नहीं रहते है उनके बच्चों को विद्यालय में मध्यान्ह भोजन नहीं प्राप्त होता है। इस प्रकार निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता मलिन बस्ती में जो लोग सुविधायुक्त मकानों में रहतें है उनके बच्चों की शिक्षा में सुधार हुआ है और जिन लोगों के बच्चे सुविधायुक्त मकान में नहीं रहते है उनकी शिक्षा में सुधार नहीं हुआ है।

गीताश्रीवास्तव (2022).: प्रस्तुत शोध में मलिन बस्तियों के बच्चों की शैक्षिक समस्याओं का अध्ययन किया गया है। नगरीकरण और औद्योगीकरण के फलस्वरुप मलिन बस्तियों का विकास हुआ है। मलिन बस्तियां वे स्थान है जहाँ असंख्य बुराइयां उत्पन्न होती है और सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करती है । अशिक्षा और जागरुकता के अभाव में इन मलिन बस्तियों के बच्चों का विकास नहीं हो सकता है। मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों के शिक्षा के विकास के लिये सरकार तथा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा अनेक योजनायें चलायी जा रही हैइसक बावजूद भी वहाँ की स्थितियों में सुधार नहीं दिखायी देता है। मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में अनेक समस्यायें आती है जिससे उनकी शिक्षा में अवरोध आता है। मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों की शैक्षिक स्थिति संताषजनक नहीं है क्योंकि मलिन बस्तियों में सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा किये जा रहे शैक्षिक विकास के प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे है। मलिन बस्तियों में स्कूल होते हुए भी बच्चे स्कूल नहीं जाते है और छोटे मोटे काम में लगे रहते है। बहुत से अभिभावक शिक्षा के महत्व को नहीं समझते है वे बच्चों को स्कूल इसलिये भेजते है कि वहाँ सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधायें जैसे छात्रवृत्ति की प्राप्ति होती है।

मुख्य पाठ

अध्ययन क्षेत्र


पहुंज और वेतवा नदी के बीच बसा झाँसी शहर वीरतासाहस स्वाभिमान का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीनकाल में झाँसी चेदि राष्ट्रजेजाक भुक्तिजझोटी और बुन्देलखण्ड का हिस्सा थी। झाँसी चन्देल राजाओं का गढ़ था। इस स्थान का नाम बलवंत नगर था। लेकिन 11वीं शताब्दी में झाँसी ने अपना महत्व खो दिया। ओरछा के राजा वीर सिंह देव के अधीन झाँसी फिर से प्रमुखता से उभरी। राजा वीरसिंह देव के मुगल सम्राट जहाँगीर के साथ अच्छे सम्बंध थे।1613 में राजा वीर सिंह देव ने झाँसी के किले का निर्माण कराया था। 1627 में उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र जुहार सिंह उनके उत्तराधिकारी बने। पन्ना के महाराजा छत्रसाल बुन्देला एक अच्छे प्रशासक एवं बहादुर योद्धा थे। 1729 में मोहम्मद खान बंगश ने छत्रसाल पर आक्रमण किया। पेशवा बाजीराव प्रथम ने महाराजा छत्रसाल की मदद की और मुगल सेना को हराया। कृतज्ञता के प्रतीक के रुप में महाराजा छत्रसाल ने मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम का अपने राज्य का एक हिस्सा देने की पेशकश की। इस भाग में झाँसी भी सम्मिलित था। किले के विस्तारित हिस्से को शंकरगढ़ कहा जाता है। 1757 में नरोशंकर को प्रशवा ने वापस बुला लिया। उनके बाद माधव गोविन्द काकिर्डे और फिर बाबूलाल कन्हाई को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। 1766 में विश्वास राव लक्ष्मण को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। उनका कार्यकाल 1766 से 1769 तक था। उनके बाद रघुनाथ राव (द्वितीय) नेवालकर को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। वह बहुत योग्य प्रशासक थे। उन्होने राज्य के राजस्व में वृद्धि की। उनक द्वारा महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया। उनहोने अपने निवास के लिये नगर में एक सुन्दर इमारत रानी महल का निर्माण कराया। 1796 में रघुनाथ राव ने अपने भाई शिवराव हरि के पक्ष में सूबेदारी पारित कर दी।1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा के बीच संघिपर हस्ताक्षर किये गये। शिवराव की मृत्यु के बाद उनके पोते रामचंद्रराव को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। वह एक अच्छे प्रशासक नहीं थे। 1835 में रामचंद्रराव की मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु के बाद रघुनाथराव तृतीय को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया। 1838 में रघुनाथराव तृतीय की भी मृत्यु हो गयी। तब ब्रिटिश शासकों ने गंगाधरराव को झाँसी के राजा के रुप में स्वीकार कर लिया। रघुनाथ राव तृतीय के काल में अकुशल प्रशासन के कारण झाँसी की वित्तीय स्थिति बहुत नाजुक थी। राजा गंगाधरराव एक बहुत अच्छे प्रशासक थे। वह बहुत उदार और सहानुभूति से भरे हुए थे। उन्होने झाँसी को बहुत अच्छा प्रशासन दिया। उनके काल में झाँसी की स्थानीय जनता बहुत संतुष्ट थी।

राजा गंगाधरराव का विवाह 1842 ई0 में मणिकर्णिका के साथ हुआ। इस विवाह के बाद मणिकर्णिका का नया नाम लक्ष्मीबाई दिया गयाजिन्होने 1857 ई0 में अंग्रजो के खिलाफ सेना का नेतृत्व किया। उन्होने 1858 ई0 में भारतीय स्वतंत्रता के लिये अपना जीवन बलिदान कर दिया। 1861 में ब्रिटिश सरकार ने झाँसी का किला और झाँसी शहर जीवाजीराव सिंधिया को देे दिया। झाँसी तब ग्वालियर राज्य का हिस्सा बन गई थी। 1886 में अंग्रेजों ने ग्वालियर राज्य से झाँसी वापस ले ली। स्वतंत्र भारत में झाँसी को उत्तर प्रदेश में शामिल कर लिया गया।

2011 की अंतिम जनगणना रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य की कुल जनसंख्या 19.98 करोड़ है जो कि देश के अन्य राज्यों के सन्दर्भ में सर्वाधिक है और विश्व के देशों के सन्दर्भ में चीनभारत अमेरिका और इण्डोनेशिया के बाद 5वें स्थान पर है। भारत की कुल आबादी में से 16.50 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में रहती है। लेकिन प्रदेश का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 7.33 प्रतिशत ही है। क्षेत्रफल में यह राजस्थानमध्य प्रदेशमहाराष्ट्रतथा आंध्र प्रदेश के बाद 5 वें स्थान पर है। देश की कुल जनसंख्या में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या का हिस्सा 6वां है। देश की कुल शहरी जनसंख्या में उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान 11.79 प्रतिशत है जबकि देश की कुल ग्रामीण जनसंख्या में उत्तर प्रदेश का स्थान प्रथम 18.63 प्रतिशत है। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में मलिन बस्तियों की जनसंख्या 1.08 करोड़ है।

तालिका संख्या 01 उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगरों में मलिन बस्तियों की जनसंख्या जनगणना 2011 के अनुसार  

नगर

नगर की जनसंख्या

 नगर की जनसंख्या में मलिन जनसंख्या

मलिन जनसंख्या का नगर की जनसंख्या से प्रतिशत

झाँसी

505693

99500

19-68

ललितपुर

133305

7445

5-58

चरखारी

27760

3506

12-63

महोबा

95216

9281

9-75

बाँदा

160473

12267

7-64

चित्रकूटधाम कर्वी

57402

581

1-01


झांसी  उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में एक नगर निगम शहर है। झांसी शहर को 60 वार्डों में विभाजित किया गया हैजिसके लिये हर पाँच साल में चुनाव होते है। झांसी नगर की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 505,693 हैजिसमे 265449 पुरूष है जबकि 240244 महिलायें है। 0-6 वर्ष आयु के बच्चों की जनसंख्या 55824 है जो कुल जनसंख्या की 11.04 प्रतिशत है। झांसी नगर का महिला लिंग अनुपात 905 है। जबकि बाल लिंग अनुपात 866 है। झांसी नगर की साक्षरता दर 83.02 प्रतिशत है। झांसी नगर में पुरूष साक्षरता लगभग 88.90 प्रतिशत है जबकि महिला साक्षरता 76.57 प्रतिशत है। झांसी नगर निगम का कुल प्रशासन 91150 से अधिक घरों में है जिसमें यह पानी और सीवरेज जैसी बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति करता है। यह नगर निगम की सीमा के भीतर सड़कों का निर्माण करने और अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली सम्पत्तियों पर कर लगाने के लिये भी अधिकृत है। 2011 की जनगणना के अनुसार झांसी नगर में मलिन बस्तियों की जनसंख्या कुल जनसंख्या की 19.68 प्रतिशत है। झांसी नगर में 30 मलिन बस्तियां अधिसूचित है। प्रस्तुत शोध उत्तर प्रदेश के झाँसी नगर की मलिन बस्तियों मे शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन आंकड़ों के आधार पर किया गया है।

सामग्री और क्रियाविधि

प्राथमिक स्रोत: प्रस्तुत शोध अध्ययन में तथ्य संकलन के लिये प्राथ्मिक स्रोत के रुप में साक्षात्कार अनुसूची, अवलोकन, समूह चर्चा आदि विधियों का प्रयोग किया गया।

द्वितीयक स्रोत: प्रस्तुत शोध अध्ययन में द्वितीयक स्रोत के रुप में  विद्वानों  द्वारा  लिखित ग्रन्थ, सर्वेक्षण प्रतिवेदन सरकार द्वारा दस्तावेजों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का उपयोग किया गया है।

विश्लेषण

विश्लेषणात्मक पृष्ठभूमि: समस्त संकलित आंकड़ो या सूचनाओं को चयनित क्षेत्रों से संकलित किया गया है, जिसके आधार पर मास्टर चार्ट तैयार किया गया है, तत्पश्चात सारणीयन कर विश्लेषण एवं विवेचन किया गया है।

मलिन बस्तियों की शैक्षणिक स्थिति का अध्यय्न:

जबसे मानव ने इस ग्रह पर कदम रखा तब से वह अपने आपको दुनिया को समझने के लिये शिक्षा प्राप्त कर रहा है। इस शिक्षा के बलबूते पर ही वह अपने जीवन में आने वाली समस्याओं का शारीरिक,मानसिक और भावनात्मक स्तर पर मुकाबला कर रहा है। शिक्षा मनुष्य की सोंच में व्यापक बदलाव लाकर उसकी समझ के दायरे को बढ़ाती है।जिससे वह मानव जाति की सेवा में योगदान दे सके। अत्यधिक नगरीकरण और औद्योगीकरण के प्रभाव के फलस्वरुप मलिन बस्तियों का विकास हुआ है। मलिन बस्तियां वे स्थान है जहाँ असंख्य बुराइयां उत्पन्न होती है और सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करती है। अशिक्षा और जागरुकता के अभाव में मलिन बस्तियों में मनुष्य का विकास नहीं हो सकता है। मलिन बस्तियों में रहने वाले बहुत कम कमाते है। वे ज्यादातर असंगठित क्षेत्र में काम करते है। उनके पास इतना पैसा नहीं होता जिससे वह अपने बच्चों को स्कूल भेज सके। मलिन बस्तियों के वातावरण में गन्दगी होती है तथा पीने के लिये साफ जल की कमी तथा खुले शौचालयों के कारण अधिकाँश बीमारियों के शिकार होते है तथा नियमित रुप से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते है। इस शोध अध्ययन के अन्तर्गत झाँसी महानगर की मलिन बस्तियों के परिवारों की शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन एवं विश्लेषण निम्न बिन्दुओं पर करने का प्रयास किया गया ।

तालिका संख्या- 02 शैक्षिक स्तर के आधार पर वर्गीकरण

प्रस्तुत तालिका संख्या 02 से स्पष्ट हैं कि मलिन बस्तियों में अशिक्षित सूचनादाताओं की संख्या 54 प्रतिशत पायी गयी और प्राइमरी तक की शिक्षा प्राप्त सूचनादाताओं की संख्या 11.5 प्रतिशत है। जूनियर तक शिक्षा प्राप्त सूचनादाताओं की संख्या 19.5 प्रतिशत है। माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त सूचनादाताओं की संख्या 13.5 प्रतिशत है। स्नातक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त सूचनादाताओं की संख्या 1.5 प्रतिशत पायी गयी । तालिका के


अध्ययन से स्पष्ट है कि मलिन बस्तियों में आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण मलिन बस्तियों के लोग शिक्षा नहीं ग्रहण कर पाते है। मलिन बस्तियों के 21 प्रतिशत सूचनादाता जूनियर तक की शिक्षा ग्रहण कर पाते है।  मलिन बस्तियों के 1.5 प्रतिशत लोग ही उच्च शिक्षित हो पाते है। मलिन बस्तियों के लोग अपनी जीविका अर्जन हेतु कमा पाते हैं जिससे स्वयं और बच्चों को शिक्षित नहीं कर पाते है। वर्तमान शिक्षा मंहगी होने का कारण मलिन बस्तियों के लोग शिक्षा अर्जित करने में असमर्थता महसूस करते है।

मलिन बस्तियों की आर्थिक स्थिति का अध्ययन:

झाँसी महानगर के मलिन बस्ती निवासी अपने सीमित संसाधनों के कारण अपने ग्रामीण क्षेत्र के सम्बंधियों से आर्थिक रुप से पिछड़े हुए है क्योंकि जब वे ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में अपनी आजीविका चलाने एवं जीवनयापन के लिये आये तो शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय अधिक थी जिसमें उनकें अकुशल एवं अर्द्धकुशल कार्यक्षमता के चलते यह मलिन बस्ती निवासी अपने आपको समाज की मुख्यधारा से जोड़कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने में असफल रहे। मलिन बस्ती निवासियों की गरीबी का मुख्य कारण उनका निम्न स्तरीय आर्थिक स्तर होने के साथ-साथ अन्य कारक भी है। अनुपयुक्त दैनिक आय के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा,दूषित जल एवं कर्ज मे दबे रहने के कारण उनकी आर्थिक विकास दर नहीं बढ़ती है। मलिन बस्ती निवासियों की गरीबी का मुख्य कारण यह हंे कि उनको सामाजिक सुरक्षा समाज के अन्य वर्गों के द्वारा प्राप्त नहीं होती है।इस शोध अध्ययन के अन्तर्गत झाँसी महानगर की मलिन बस्तियों के परिवारों की  आर्थिक स्थिति का अध्ययन एवं विश्लेषण निम्न बिन्दुओं पर करने का प्रयास किया गया है।

व्यवसाय के आधार पर आर्थिक स्थिति का अध्ययनः

तालिका संख्या-03 व्यवसाय के आधार पर वर्गीकरण:

क्रम सं.

 व्यवसाय के आधार पर

कुल संख्या

प्रतिशत

1

सरकारी नौकरी

01

0-5%

2

प्राइवेट नौकरी

01

0-5%

3

श्रमिक

192

96%

4

स्वयं का कार्य

06

3%

कुल संख्या

200

100%

प्रस्तुत तालिका संख्या-03 के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि मलिन बस्तियों के कुल सूचनादाताओं में से सरकारी नौकरी करने करने वाले 0.5 प्रतिशत सूचनादाता हैं और प्राइवेट नौकरी करने वाले 0.5 प्रतिशत है। मलिन बस्तियों में श्रमिक वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा 96 प्रतिशत है और स्वयं का कार्य करने वाले 3 प्रतिशत है। तालिका के अवलोकन से ज्ञात होता हैं कि मलिन बस्ती में अधिकतर लोग श्रमिक हैं और अपनी जीविका का अर्जन कर रहें है।

 




घर की स्थिति के आधार पर आर्थिक स्थिति का अध्ययन:

तालिका संख्या-04 घर की स्थिति के आधार पर वर्गीकरण

क्रम सं.

घर की स्थिति

कुल संख्या

प्रतिशत

1

कच्चा

163

81-5%

2

पक्का

21

10-5%

3

झोपड़ी

16

8%

कुल संख्या

200

100%

प्रस्तुत तालिका संख्या 04 के अध्ययन के आधार पर स्पष्ट होता है कि मलिन बस्तियों में कच्चे मकान मे रहने वाले सूचनादाता 81.5 प्रतिशत है और पक्के मकान में रहने वाले 10.5 प्रतिशत सूचनादाता है और झोपड़ी में रहने वाले सूचनादाता का संख्या 8 प्रतिशत है।

 

तालिका के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि है मलिन बस्तियों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण घर की स्थिति अच्छी नहीं रहती है।

मासिक आय के आधार पर आर्थिक स्थिति का अध्ययन:

तालिका संख्या-05 मासिक आय के आधार पर वर्गीकरण

क्रम सं.

 मासिक आय के आधार पर

कुल संख्या

प्रतिशत

1

रू 2000 से कम

50

25%

2

रू 2000 से 5000 तक

129

64-5%

3

रू 5000 से 10000 तक

20

10%

4

रू 10000 से अधिक

01

0-5%

कुल

200

100%

प्रस्तुत तालिका 05 के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि मलिन बस्तियों के 2000 रू से कम आय वाले सूचनादाताओं की संख्या 25 प्रतिशत हैं,और 2000से 5000रू तक आय वाले सूचनादाताओं की संख्या 64.5 प्रतिशत है, और 5000से 10000 रू तक आय वाले सूचनादाताओं की संख्या 10 प्रतिशत हैं, और 10000रू से अधिक आय वाले सूचनादाताओं की संख्या 0.5 प्रतिशत हैं। तालिका के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि मलिन


बस्तियों में अधिकतर सूचनादाता 2000 से 5000रू तक आय वाले हैं जो उनकी सिर्फ जीविका अर्जन हेतु आय है।

निष्कर्ष

मलिन बस्तियों के शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता हं कि मलिन बस्तियों में अशिक्षित सूचनादाताओं की संख्या 54 प्रतिशत पायी गयीहैं। तालिका के अध्ययन से स्पष्ट है कि मलिन बस्तियों में आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण मलिन बस्तियों के लोग शिक्षा नहीं ग्रहण कर पाते है। मलिन बस्तियों के 21 प्रतिशत सूचनादाता जूनियर तक की शिक्षा ग्रहण कर पाते है। मलिन बस्तियों के 1.5 प्रतिशत लोग ही उच्च शिक्षित हो पाते है। मलिन बस्तियों के लोग अपनी जीविका अर्जन हेतु कमा पाते हं जिससे स्वयं और बच्चों को शिक्षित नहीं कर पाते है। वर्तमान शिक्षा मंहगी होने का कारण मलिन बस्तियों के लोग शिक्षा अर्जित करने में असमर्थता महसूस करते है। मलिन बस्तियों की आर्थिक स्थिति के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता हैं कि मलिन बस्तियों में अधिकतर सूचनादाता 5000 रू तक आय वाले जो सिर्फ उनके जीविकाअर्जन हेतु उनकी आय है।मलिन बस्तियों में श्रमिक वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा 96 प्रतिशत है। मलिन बस्तियों के अधिकतर सूचनादाता कच्चे मकान एवं झोपड़ी में रहते है।

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