P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- XII August  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika

मेरठ जनपद के ग्रामीण क्षेत्र में, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कुटीर उद्योग धंधों की प्रासंगिकता

Relevance of Cottage Industries in the Present Context in the Rural Areas of Meerut District
Paper Id :  18041   Submission Date :  12/08/2023   Acceptance Date :  22/08/2023   Publication Date :  25/08/2023
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मयंक मोहन
विभागाध्यक्ष
अर्थशास्त्र विभाग
मुलतानीमल मोदी कॉलेज
मोदीनगर,उत्तर प्रदेश, भारत
मौ0 आमिर
शोधार्थी
अर्थशास्त्र विभाग
मुलतानीमल मोदी कॉलेज,
मोदीनगर, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

भारत वर्ष में कुटीर उद्योगों का संचालन देश के संपूर्ण ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता रहा है, क्योंकि इन उद्योगों की भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कुटीर उद्योग जो कि श्रम प्रधान उद्योग होने के कारण लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं तथा उनकी जीविका उपार्जन का महत्वपूर्ण स्रोत भी हैं। कुटीर उद्योग, परिवारों के सदस्यों का एक ऐसा सामूहिक संगठन है जिसके अन्तर्गत स्वतन्त्र उत्पादनकर्ता अपने कुशल परिश्रम एवं न्यूनतम पूँजी की सहायता से उत्पादन कार्य करता है। देश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में कुछ उद्योग ऐसे होते हैं जिन्हें परिवार के सदस्यों द्वारा अपने घरों या किराए पर मकान व दुकान लेकर स्वयं प्रारम्भ किया जा सकता है ऐसे उद्योगों को कुटीर उद्योगों की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार के उद्योगों में हस्तकला व कुशल श्रम की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। कृषि से सम्बन्धित कच्चे माल से लेकर उनके निर्माण व उनका उत्पादन तथा विपणन तक का कार्य विभिन्न प्रकार के कुटीर उद्योगों के अन्तर्गत आते हैं, जैसे- मिट्टी के बर्तन, लकड़ी की टोकरी, चटाई निर्माण आदि। यहाँ यह बात ध्यान रखना आवश्यक है कि अधिकांशतः कुटीर उद्योग असंगठित क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र अपनी विशेष भूमिका रखता है। व्यवसाय एवं रोजगार की प्रकृति के सन्दर्भ में कुटीर उद्योगों ने असंगठित क्षेत्र में अहम योगदान किया है। पशुपालन, हस्तशिल्प, बीड़ी उद्योग, पापड़ उद्योग आदि कुटीर उद्योगों के उदाहरण हैं जो रोजगार का सृजन करने में व्यापक स्तर पर सफल हुए है। वर्तमान मशीनी युग ने जहाँ एक और लघु व विस्तृत उद्योगों के विकास में योगदान दिया है तो वहीं दूसरी ओर देश के ग्रामीण क्षेत्र में कुटीर उद्योग विभिन्न समस्याओं के दौर से गुजरते हुए अपने उद्देश्य के प्रति तटस्थ हैं।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In India, Cottage industries have been operating in the entire rural areas of the country, because these industries have played an important role in the Indian rural economy. Cottage industries which being labor intensive industries provide employment to lakhs of people and are also an important source of earning their livelihood. Cottage industry is such a collective organization of family members, under which the independent producer does production work with the help of his skilled labor and minimum capital. There are some industries in the rural and urban areas of the country which can be started by the family members themselves by taking houses and shops at their homes or on rent. Such industries are known as cottage industries. Handicraft and skilled labor play an important role in this type of industries.
From raw materials related to agriculture to their manufacture and their production and marketing, work comes under different types of cottage industries, such as pottery, wooden basket, mat making etc. It is necessary to note here that most of the cottage industries come under the unorganized sector.
The unorganized sector plays a special role in the Indian economy. In terms of nature of business and employment, cottage industries have made significant contribution in the unorganized sector. Animal husbandry, handicrafts, beedi industry, papad industry etc. are examples of cottage industries which have been successful in generating employment on a large scale. While the present machine age has contributed to the development of small and extensive industries, on the other hand, cottage industries in the rural areas of the country are passing through various problems and are neutral towards their purpose.


मुख्य शब्द ग्रामीण क्षेत्र एवं कुटीर उद्योग।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Rural areas and Cottage Industries
प्रस्तावना

मेरठ जनपद के ग्रामीण क्षेत्र में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कुटीर उद्योग धन्धों की प्रासंगिकता के अध्ययन का प्रमुख औचित्य तो यही है कि जो कुटीर उद्योग ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का आधार स्तम्भ है, उनके योगदान का अध्ययन करना तथा साथ ही कुटीर उद्योग धंधों के संचालन में आने वाली विभिन्न समस्याओं को दृष्टिगोचर करना भी है। इस लेख के अन्तर्गत इस बात का भी अध्ययन किया जायेगा कि सरकार द्वारा इन उद्योगों के आर्थिक विकास हेतु किस प्रकार की सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों का संचालन किया जाता है। यहां इस बात का विश्लेषण किया जायेगा कि गत कुछ वर्षों में कुटीर उद्योगों में वृद्धि हुई है अथवा नहीं, यदि हुई है तो उसका स्वरूप किस प्रकार का है? इन उद्योगों के संचालन से रोजगार किस प्रकार प्रभावित हो रहा है? वें कौन से कारक हैं जो कि कुटीर उद्योगों को सकारात्मक एवं नकारात्मक रुप से प्रभावित कर रहे हैं? और अन्त में लेख उद्देश्य पूर्ण हो सके उसके लिये ग्रामीण क्षेत्र के विकास हेतु कुटीर उद्योगों के प्रस्तावित योजनाओं को सफल बनाने के लिए रचनात्मक सुझाव भी प्रस्तुत किये जायेगें।

अध्ययन का उद्देश्य

पिछले लगभग दो दशकों से ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने व्यक्तियों का पलायन शहरों की और हो रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि शहरों में रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध होंगे तथा उनके आर्थिक विकास के साथ-साथ उनका सामाजिक विकास भी होगा किन्तु देखने में आया है कि ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर आने वाले अधिकांश व्यक्ति जो सपने लेकर आते हैं वो पूर्ण नहीं हो पाते तथा वे अधिकांशत: दैनिक वेतन भोगी के रूप में एक निम्न स्तरीय जीवन को व्यतीत करने के लिए बाध्य हो जाते हैं

इस लेख का उद्देश्य यही है कि वर्तमान में कुटीर उद्योग धंधों को यदि सही प्रकार से प्रोत्साहित किया जाये तो न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले ग्रामीण को रोजगार के नये अवसर मिलेंगे अपितु वे अपने उद्योग-धंधों को संचालित कर आर्थिक रूप से सुदृढ़ होकर अपने तथा अपने परिवार के लिए एक बेहतर जीवन का निर्माण कर सकेंगे

साहित्यावलोकन

कुटीर उद्योग धन्धों की प्रांसगिकता कोई नया विषय नहीं है चूंकि भारत में प्रारम्भ से ही ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग धन्धे रक्त वाहिनी के रूप में कार्य कर रहे हैं तो समय-समय पर विभिन्न विद्धजनों एवं महापुरूषों ने इस विषय पर अपने विचार प्रकट किये हैं। महात्मा गांधी ने कहा था कि, कुटीर उद्योग धन्धे भारतीय ग्रामीण क्षेत्र की आत्मा के रूप में कार्य कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त अन्य महापुरूषों ने अपने विचार निम्न प्रकार प्रस्तुत किये हैं, पी0एन0धर तथा एच0एफ0 लिडाल के अनुसार, ’’कुटीर उद्योग लगभग पूरी तरह घरेलू उद्योग होते है इसमें किराये के मजदूरों का बहुत कम या बिल्कुल ही प्रयोग नहीं किया जाता। ये उद्योग कच्चा माल स्थानीय बाजारों से प्राप्त करते है और अपना अधिकांश उत्पादन स्थानीय बाजारों में ही बेचते हैं। यह लघु आकार के ग्रामीण, स्थानीय एवं पिछड़ी तकनीक वाले उद्योग होते है।’’

भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योगों का महत्व निम्न उद्गारों से भी स्पष्ट होता है-

श्री जवाहर लाल नेहरू का कथन ’’भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर तथा लघु उद्योगो का बहुत अधिक महत्व है।’’

डॉ0 श्यामा प्रसाद मुकर्जी के अनुसार, ’’भारत गाँवों का देश है। अतः सरकार को सन्तुलित अर्थव्यवस्था की दृष्टि से कुटीर तथा लघु उद्योगों को सर्वाधिक महत्व प्रदान करना चाहिए।’’

योजना आयोग, ’’लघु एवं कुटीर उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग है जिनकी कभी उपेक्षा नहीं की जा सकती है।’’

मोरारजी देसाई, ’’लघु एवं कुटीर उद्योगों से देहाती लोगों को जो अधिकांश समय बेरोजगार रहते है पूर्ण अथवा अंशकालिक रोजगार मिलता है।’’

प्रोफेसर अतवीर सिंह, अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष, चौधरी चरण सिंह यूनीवर्सिटी ने दिनांक 26 जुलाई 2023 में राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्र हिन्दुस्तान के पृष्ठ संख्या 6 पर बताया कि, ’’वेस्ट यूपी के संपन्नता का मुख्य कारण गंगा-जमुना का दोआब है। यहां की जमीन सबसे उर्वर है। किसान मेहनती हैं। नोएडा के विकास से वेस्ट यूपी का विकास बढ़ा है। इसमें प्रॉपर्टी के रेट लगातार बढ़ रहे हैं।’’

प्रोफेसर दिनेश कुमार, वरिष्ठ प्राध्यापक, अर्थशास्त्र विभाग, चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी ने दिनांक 26 जुलाई 2023 में राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्र हिन्दुस्तान के पृष्ठ संख्या 6 पर बताया कि, ’’समृद्धि का बड़ा कारण वेस्ट यूपी का एक बड़ा हिस्सा एन सी आर में है। जो भी विदेशी निवेश आया वह दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और उसके आस-पास के क्षेत्र में आया है। एमएसएमई का मुख्य केंद्र मेरठ है। ओडीओपी से पहले ही यहां के जिले उद्योग में अपनी पहचान बनाए हुए हैं।’’

श्री सोविक घोष एवं उषा दास ने जून, 2021 में पत्रिका कुरूक्षेत्र की पृष्ठ संख्या 17 पर अपने लेख में बताया कि, ’’ भारत गांवों का देश है और इसकी आत्मा गांव में निवास करती है। महात्मा गांधी का यह कथन अब भी प्रासंगिक बना हुआ है ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है, ऐसे में रोजगार की तलाश में लोगों का गांव से शहरों में पलायन होता है। हालांकि ग्रामीण इलाकों में उद्यमिता का विकास करके बेरोजगारी की चुनौती से निपटा जा सकता है। आर्थिक विकास में उद्यम संबंधी गतिविधियों का अहम योगदान होता है और इन गतिविधियों की मदद से ग्रामीण इलाकों में भी आय और रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी की संभावना है। साथ ही स्थानीय श्रम और कच्चे माल का भी ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो सकेगा।’’

मुख्य पाठ

मेरठ जनपद समृद्ध कृषि क्षेत्रों के साथ-साथ कई पारंपरिक एवं आधुनिक कुटीर उद्योगों और एक सक्षम अर्थव्यवस्था वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में लेखन सामग्री का उत्पादन, आइसक्रीम उद्योग, रबड़ की हवाई चप्पल, मसाला उद्योग, दियासलाई उद्योग, चटाई एवं मिट्टी के खिलौने आदि कुटीर उद्योग क्रियाशील हैं जो कि मेरठ जनपद की आर्थिक व्यवस्था को सक्षम बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। जनपद के प्रत्येक ग्रामीण क्षेत्र में चलने वाले छोटे-छोटे कुटीर उद्योग यहाँ की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। प्रायः यह देखने में आया है कि विशेष प्रकार के कुटीर उद्योग किसी विशेष शहर या विशेष स्थान पर फल-फूलता है जिसका मुख्य सम्बन्ध उस स्थान विशेष पर संसाधनों की उपलब्धता या कलात्मक प्रतिभा का पाया जाना हो सकता है। मेरठ जनपद के प्रत्येक ग्रामीण क्षेत्र ने किसी न किसी उत्पाद को बनाने में विशेष योग्यता हासिल कर रखी है जैसे- मेरठ जनपद के गोकुलपुर ओर भटीपुरा में खेल का सामान व पठन सामग्री का उत्पादन, शाहजहांपुर में मिट्टी के बरतन तथा लकड़ी की टोकरी और अचार उद्योग, लावण में कंबल उद्योग, हापुड़ के ग्रामीण क्षेत्र में पापड़ उद्योग तथा अगरबत्ती उद्योग आदि।

कुटीर उद्योगों का महत्व

कुटीर उद्योगों के पक्ष में जो तर्क दिए जाते हैं उस में रोजगार की वृद्धि आय में वृद्धि, संसाधनों का उचित विदोहन, सहायक व्यवसाय, उद्योग विकेंद्रीकरण एवं महिला रोजगार आदि बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। किसी भी देश के ग्रामीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने प्राकृतिक संसाधनों एवं सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन से कुटीर उद्योगों के उत्थान हेतु एक सुनियोजित योजना पर कार्य करें, जिससे देश का संतुलित विकास हो सके। भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आर्थिक ढांचे के लिए कुटीर उद्योगों की उतनी ही आवश्यकता है जिनती लघु ओर वृहत क्षेत्र के उद्योगों की है। कुटीर उद्योग एक तरफ तो कृषि के विकल्प के रूप में नजर आते हैं, जिससे प्राकृतिक साधनों का अनुकूलतम प्रयोग तो होता ही है साथ ही देश में पारंपरिक सद्धभावना, सहकारिता, समानता की भावना को भी बल मिलता है। कुटीर उद्योगों की इन्हीं विशेषताओं के कारण वर्तमान में भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योगों की आवश्यकता निरंतर बढ़ती ही जा रही है।

वर्तमान में कुटीर उद्योगों की प्रसांगिकता

हस्तकला एवं कुशल कारीगरी पर आधारित कुटीर उद्योग एक ऐसा उद्योग है जो समय के अनुसार अपने आप को परिवर्तित करता रहता है अर्थात जो व्यक्ति के कौशल तथा उसकी सूझ-बूझ के साथ उसके तकनीकी परिवर्तन के विकास पर समय-समय पर परिवर्तित होता रहा है। परन्तु मशीनीकरण के इस वर्तमान दौर में भी कुटीर उद्योगों ने अपनी पहचान को बनाये रखा है। कुटीर उद्योगों द्वारा आत्मनिर्भर गाँव का विचार महात्मा गाँधी द्वारा भारत के स्वतंत्रता से बहुत पहले प्रस्तावित ग्रामीण विकास के वैकल्पिक मॉडलों में से एक माना जाता है, जिसका प्राथमिक ध्यान एक ऐसे समाज के समग्र विकास पर है जहाँ व्यक्तियों को आर्थिक प्रणाली के केंद्र में रखा जाता है। हालांकि वर्तमान में जहाँ शहरी क्षेत्रों में एक तरफ बड़े-बड़े एवं विस्तृत उद्योग हैं वहाँ कुटीर उद्योग का स्तर कम हुआ है परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग अभी भी अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। वहीं दूसरी ओर सतत् विकास को महत्त्व मिलने के साथ कुटीर उद्योगों की गाँधीवादी अवधारणा को महत्त्व मिलना शुरु हो जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने दृष्टिकोण में मानव के समग्र विकास को महत्व दिया है। इसलिए भारत जैसे देश में जहाँ अधिकांश जनसंख्या ग्रामीणों में निवास करती है वहाँ कुटीर उद्योग अपने उद्देश्यों के प्रति तटस्थ नजर आते हैं।

मेरठ के ग्रामीण कृषि के सहायक धंधों के रूप में लघु एवं कुटीर उद्योग का विशेष योगदान है- पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय, बागवानी, सूत कातना, कपड़ा बनाना, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी की टोकरी, मधुमक्खी पालन आदि ऐसे अनेक उद्योग हैं जो कृषि के साथ-साथ सरलता से किए जा सकते हैं तथा रोजगार के अवसर प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि कुटीर उद्योगों को विकसित किए बिना ग्रामीण लोगों की आर्थिक समस्याओं का निराकरण नहीं किया जा सकता है। साथ ही आर्थिक गतिविधियों के विकेंद्रीकरण की मदद से प्रादेशिक असंतुलन को भी कुटीर उद्योगों के माध्यम से कम किया जा सकता है।

ग्रामीण क्षेत्रों की विभिन्न समस्याओं जैसे पलायन, बेरोजगारी, आजीविका के साधनों की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच, पूँजी की न्यूनता तथा श्रम बल की बहुलता आदि समस्याओं को कम करने में कुटीर उद्योग वर्तमान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अतः हम कह सकते हैं कि मेरठ के ग्रामीण कुटीर उद्योग वर्तमान में पूर्ण प्रसांगिकता रखते हैं।

कुटीर उद्योगों के विकास को प्रभावित करने वाले कारक

निम्नलिखित कारक हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं-

1. गांवों में रहने वाले अधिकांश लोग रूढ़िवादी प्रकृति के हैं और वे शिक्षा में ज्यादा रुचि नहीं लेते हैं। जो कि ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास को प्रतिकूल तरीके से प्रत्यक्ष रूप से काफी हद तक प्रभावित करता है।

2. अधिकांश लोग अभी भी शिक्षा के महत्व के बारे में अनजान हैं। केन्द्र और राज्य सरकार दोनों द्वारा कई कदम उठाए जाते हैं, फिर भी अधिकांश ग्रामीण इन योजनाओं के बारे में अनजान हैं।

3. कुटीर उद्योगों में सामान्यतः इतना लाभ नहीं हो पाता जिससे कि भविष्य में अधिक तरक्की की जा सके इसलिये अधिकांश परिवार इनके प्रति उदासीन रहते हैं तथा बाहर जाकर रोजगार तलाशते हैं।

4. कच्चे माल की समस्या, बाजार की समस्या, वित्त की समस्या इन उद्योगों को अपना वर्चस्व बनाये रखने में सदैव बाधक रही है।

5. सरकार एवं सरकारी तंत्र का उदासीन रवैया भी इन उद्योगों के कम होने का मुख्य कारण रहे हैं।

6. जनसंख्या एक अन्य कारक है जो रोजगार को प्रभावित करता है। कोई भी रोजगार कार्यक्रम इतनी उच्च दर के साथ बढ़ती आबादी को पूर्ण रोजगार प्रदान नहीं कर सकता है।

7. ग्रामीण जनता बड़े आकार के परिवार को पसंद करती हैं ताकि वे अपने घरेलू काम में सहायक हो सकें। आम तौर पर ग्रामीण लोग अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने में रुचि नहीं लेते हैं। वे चाहते हैं कि वे कृषि कार्य में या किसी अन्य सहायक या घरेलू काम में अपना सहयोग दें।

8. गरीबी एक महत्वपूर्ण कारक है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास को प्रभावित करती है। मेरठ जनपद में ग्रामीण लोग अभी भी अपनी आजीविका अर्जित करने के लिए कृषि पर निर्भर हैं। वे प्राइमिटिव का उपयोग करते हैं।

सरकार के द्वारा कुटीर उद्योगों के विकास के लिये संचालित योजनाएं एवं कार्यक्रम

कुटीर उद्योगों के विकास के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में ग्रामीण विकास के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए हैं। इन ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का मुख्य कार्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना और कुटीर उद्योगों को इतना शक्तिशाली बनाना है कि ग्रामीण समाज के गरीबों में सबसे गरीबों का उत्थान सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से किया जा सके है।  कार्य ग्रामीण विकास के लिए जुड़े विभिन्न विभागों के सहयोग से प्राप्त किया जा सकता है। निम्नलिखित ग्रामीण विकास कार्यक्रम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शुरू किए गए हैं-

1. स्वर्ण जयती ग्राम स्वरोजगार योजना(SJGSY)

2. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (JGSY)

3. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजाना(PMGY)

4. अंबेडकर ग्राम विकास परियोजना (AVDP)

5. दीन दयाल उपाध्याय कौशल योजना (DDUGKY)

उपरोक्त सरकारी योजनाये तो उदाहरण मात्र हैं इनके अतिरिक्त अन्य बहुत सी योजनायें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कुटीर उद्योगों के विकास से संबंधित हैं। ये योजनाएं मेरठ जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों के उत्थान में निरन्तर प्रयासरत् हैं।

परिकल्पना मेरठ जनपद के ग्रामीण क्षेत्र में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कुटीर उद्योग धन्धों की प्रांसगिकता के सदंर्भ में परिकल्पनायें निम्न प्रकार हैं-
1. मेरठ जनपद में पिछले दो दशकों में कुटीर उद्योग धन्धों में काफी कमी आयी है।
2. कुटीर उद्योग प्रारम्भ करने के लिये जिन आधारभूत वस्तुओं की आवश्यकता होती है उनका अभाव है जैसे कि कच्चा माल, विक्रय के लिये बाजार, प्रशिक्षण इत्यादि की सुविधा।
3. कुटीर उद्योगों के विकास के लिये सरकारी योजनाओं का पर्याप्त न होना।
4. कुटीर उद्योगों में कार्यरत् लोगों का आर्थिक विकास न होना।
विश्लेषण

मेरठ जनपद में ग्रामीण कृषि क्षेत्र के साथ-साथ गैर कृषि क्षेत्र भी है। कुटीर उद्योग का यह क्षेत्र अपनी हस्तकला को बनाए रखते हुए जनपद की संस्कृति, विरासत का न सिर्फ प्रतिनिधित्व कर रहा है अपितु यह क्षेत्र पीढ़ी दर पीढ़ी इस विरासत का हस्तांतरण करता रहा है। कुटीर उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों का एक आर्थिक स्वरूप है और किसानों और ग्रामीण लोगों के लिए वैकल्पिक आजीविका बन गया है। मेरठ जनपद की आर्थिक व्यवस्था में इन उद्योगों ने समय-समय पर अपनी महत्ता का परिचय दिया तथा जनपद की अर्थव्यवस्था में इन उद्योगों का जो योगदान है उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती है। मेरठ जनपद की अर्थव्यवस्था में उनके योगदान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ‘‘इस जनपद में सन् 2015 में कुटीर उद्योगों की लगभग 7922 इकाईयाँ कार्यरत थी।’’

इसमें कोई शक नहीं कि मेरठ जनपद एक मजबूत आर्थिक अर्थव्यवस्था वाला क्षेत्र है परन्तु अभी भी मेरठ जनपद की लगभग 40% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। मेरठ जनपद में कुटीर उद्योग धंधों का विस्तृत दायरा विद्वान है। आर्थिक उत्पादन के क्षेत्र का सबसे लाभप्रद पहलू कम पूँजी निवेश से उद्यमियों के संचालन तथा घर आधारित श्रम का अत्यधिक उपयोग है।

निष्कर्ष

आधुनिक समय में भी कुटीर उद्योग दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर में सुधार के अवसर पैदा कर रहे हैं। कुटीर उद्योग विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जमीन पर उतरने के लिए उन्हें बहुत कम निवेश की आवश्यकता होती है। सफल कुटीर उद्योग बनाने में विकासशील देशों के तुलनात्मक लाभ भी हैं। उनके रहने की कम लागत प्रतिस्पर्धी कीमतों पर श्रम-गहन वस्तुओं का उत्पादन करना संभव बनाती है, जिससे एक छोटा व्यवसाय पर्याप्त लाभ कमा सकता है।

कुटीर उद्योग भी ग्रमीण क्षेत्रों में पूरक आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। जब बढ़ता मौसम समाप्त होता है, तो कुछ किसान आय उत्पन्न करने के लिए अपने कुटीर उद्योगों की ओर रुख करते हैं। गाँवों में, एक कुटीर उद्योग समय के साथ बढ़ सकता है क्योंकि स्थानीय निवासी स्थानीय बाजारों में बिक्री के लिए यहाँ तक कि विदेशों में निर्यात के लिए, शिल्प का उत्पादन करने के लिए एक साथ आते हैं। कुछ कुटीर उद्योग समय के साथ बढ़ते हैं और समुदाय में दूसरों को रोजगार देते हैं। क्योंकि उनके उत्पादों को पारंपरिक उपकरणों और मशीनरी का उपयोग करके दस्तकारी की जाती है, उनकी उत्पादकता बड़े पैमाने पर निर्माण के उत्पादों की मात्रा में प्रतिस्पर्धा करने की संभावना नहीं है।

भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव कुटीर उद्योगों के विकास के लिये निम्न लिखित सुझाव दिये गये हैं-
1. कुटीर उद्योगों में वृद्धि से अधिक पूंजी को लगाये बिना बेरोजगारी को कम किया जा सकता है।
2. स्थानीय कौशल, प्रतिभा और संसाधनों के कुशलतम् उपयोग से ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों का विकास संभव है।
3. यदि सरकारी योजनाओं में लाभार्थियों का चयन करने में उचित ध्यान दिया जाता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये योजनाएं ग्रामीण निवासियों के लिए अधिक लाभदायक सिद्ध होगीं और अधिक लोग रोजगार प्राप्त करेंगे।
4. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आर्थिक विकास कार्यक्रमों के बारे में जागरूक होना चाहिए और उन्हें केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं और योजनाओं में सीधे शामिल होना चाहिए।
5. ग्रामीण क्षेत्रों के कुटीर उद्योगों के लिए अधिक वित्त की आवश्यकता है ताकि ये बढ़ सकें और तेजी से विकसित हो सकें।
6. कुटीर उद्योगों के तेजी से विकास के लिए उनकी दक्षता और योग्यता को बढ़ाने के लिए श्रम को तकनीकी ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिए।
7. मजबूत बाजार संगठनों को विकसित किया जाना चाहिए ताकि कारीगर अपने उत्पादन को उचित कीमतों पर बेच सकें।
भविष्य के अध्ययन के लिए विचार व युवाओं को सलाह- लगातार परिवर्तित होती बेरोजगारी की संरचना में लगातार होते परिवर्तन की समस्या पर ध्यानकेंद्रित करते हुए किसी को भी केवल सरकारी नौकरी की प्रतीक्षा में नहीं रहना चाहिए बल्कि अब वक्त आ गया है कि युवाओं को आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ उत्पादन के नए-नए तरीकों और साधनों को खोजने के प्रयास करने होंगे। शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की तलाश करने के बजाय स्वयं को स्थानीय स्तर पर स्थापित करना होगा तथा स्थानीय व्यवसाय का समर्थन करते हुए बेहतर विकल्प तलाशने होंगे।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. घोष मधुसूदन, ‘‘कृषि विकास तथा भारत में ग्रामीण गरीबी’’।
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5. कुजनेेटस एस0,‘‘आर्थिक विकास तथा आय असमानता’’।
6. पत्रिकाएं एवं समाचार-पत्र
7. योजना
8. कुरूक्षेत्र
9. अमर उजाला
10. दैनिक जागरण