ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- VI September  - 2023
Anthology The Research

एक देश एक चुनावका भविष्य एवं चुनौतियां

Future and Challenges of “One Country One Election”
Paper Id :  18100   Submission Date :  11/09/2023   Acceptance Date :  20/09/2023   Publication Date :  25/09/2023
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DOI:10.5281/zenodo.8395027
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अजय कुमार यादव
शोध छात्र
पाश्चात्य इतिहास विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय
लखनऊ,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि भारत के कुछ राज्यों में अक्सर चुनाव होते रहते हैं। भारतीय निर्वाचन आयोग के अनुसार पिछले 30 वर्षों में एक भी ऐसा वर्ष नहीं रहा है जब किसी राज्य की विधानसभा, लोकसभा या दोनों के चुनाव न हुए हों। अतः बार-बार होने वाले इन ¬चुनावों के कारण राज्य मशीनरी एवं भारत के निर्वाचन आयोग के संसाधनों एवं जनशक्ति का अत्यधिक दोहन होता है। साथ ही आचार संहिता के कारण विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं। अतः इन जोखिमों को कम करने के लिए पिछले कुछ समय से एक देश एक चुनाव की अवधारणा पर चर्चा जोर-शोर से हो रही है तथा इसके पक्ष एवं विपक्ष में विद्वत्जनों द्वारा विभिन्न मंचों पर तर्क एवं दलीले प्रस्तुत की जा रही हैं। इस पेपर के माध्यम से एक देश एक चुनाव की अवधारणा का विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। साथ ही उसके समक्ष उपस्थित चुनौतियों को भी उजागर करने का प्रयास किया गया है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the last few years, it has been observed that elections are held frequently in some states of India. According to the Election Commission of India, in the last 30 years there has not been a single year when elections for the Legislative Assembly, Lok Sabha or both of any state were not held. Therefore, due to these frequent elections, the resources and manpower of the state machinery and the Election Commission of India are over-exploited. Besides, development work also gets affected due to the code of conduct. Therefore, to reduce these risks, the concept of one country, one election is being discussed vigorously for some time and scholars are presenting arguments in its favor and against it on various forums. Through this paper an attempt has been made to analyze the concept of one country one election. An attempt has also been made to highlight the challenges facing it.
मुख्य शब्द राष्ट्र, लोकतंत्र, चुनाव प्रणाली, राजनीतिक दल, संविधान।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Nation, Democracy, Election System, Political Parties, Constitution.
प्रस्तावना

किसी भी लोकतंत्र में व्यवस्था संचालन के लिए जनता की सीधी भागीदारी संभव नहीं है। अतः सरकारी व्यवस्था को चलाने के लिए जनता को अपना प्रतिनिधि चुनना आवश्यक होता है, जिसे चुनाव या निर्वाचन कहा जाता है। इसे सरल भाषा में ऐसे समझा जा सकता है कि ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था जिसमें नागरिक अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं, जो देश के शासन एवं प्रशासन को चलाने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। इन प्रतिनिधियों के चुनने की विधि को चुनाव कहा जाता है।

चुनाव प्रक्रिया किसी भी लोकतांत्रिक देश की पहचान होती है तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था को जीवंत रखने का एक महत्वपूर्ण साधन भी। किसी भी लोकतांत्रिक देश की चुनाव प्रणाली जहाँ उस देश की प्रगति में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करती है, वही वहाँ के लोगों को अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए एक गरिमामयी जीवन जीने का आधार भी प्रदान करती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है (चीन सबसे ज्यादा आबादी होने के बावजूद एक साम्यवादी देश है।) जहाँ चुनाव प्रक्रिया लगातार हर समय चलती ही रहती है। यद्यपि चुनाव प्रक्रिया में संशोधन से संबन्धित प्रयास भारत में स्वतंत्रता के बाद से ही शुरू हो गये थे तथा समय-समय पर विभिन्न संशोधनों के माध्यम से चुनाव प्रणाली को और अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के प्रयास भी किये जाते रहे हैं। तथापि वर्तमान में चुनाव प्रक्रिया में संशोधन कर एक नयी चुनावी व्यवस्था एक देश एक चुनावको लागू करने से संबन्धित मुद्दा देश के राजनीतिक चर्चा के केन्द्र में है।

अध्ययन का उद्देश्य

इस शोध अध्ययन का महत्वपूर्ण उद्देश्य है कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में चुनाव संबन्धी समस्याओं के समाधान में एक देश एक चुनावकी भूमिका का विश्लेषण करना तथा पक्ष एवं विपक्ष में दिये जा रहे विभिन्न तर्कों का अवलोकन करना है। इसके अलावा एक देश एक चुनावके समक्ष उपस्थित चुनौतियों को उजागर करते हुए उसके उचित समाधान को प्रस्तुत करना इस शोध लेख का उद्देश्य है।

साहित्यावलोकन

इस लेख को पूर्ण करने हेतु प्राथमिक स्रोतों के साथ-साथ द्वितीय स्रोतों पर विशेष जोर दिया गया है। प्राथमिक स्रोतों के अंतर्गत जहाँ एनसीईआरटी, भारतीय चुनाव आयोग तथा नीति आयोग के तथ्यों एवं आँकड़ों का उपयोग किया गया है। वहीं द्वितीयक स्रोतों में विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं तथा इस विषय पर प्रकाशित समाचार पत्रों का उपयोग किया गया है। जैसे इण्डिया टुडे, दृष्टि आईएस, नवभारत टाइम्स, जागरण जोश, अमर उजाला आदि।

मुख्य पाठ

एक देश एक चुनाव प्रणाली क्या है ?

देश की वर्तमान चुनाव प्रणाली में लोकसभा एवं विधानसभा के लिए पाँच साल के अंतराल में अलग-अलग चुनाव होते हैं, क्योंकि राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह लोकसभा या अन्य विधानसभाओं के कार्यकाल के समाप्त होने के साथ ही समाप्त हो। यानि जब लोकसभा या विधानसभाओं के कार्यकाल समय से पहले समाप्त हो या उनमें से किसी एक को समय से पहले ही भंग कर दिया जाता है तो इस परिस्थिति में चुनाव कराने का कार्यक्रम सालभर चलता रहता है। जिससे सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है।

एक देश एक चुनाव का विचार भारतीय चुनाव चक्र को इस तरह से संरचित करने के बारे में है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ अर्थात समकालिक हो। इसका अर्थ होगा कि मतदाता एक ही दिन में (चरणबद्ध तरीके से) लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के चुनाव के लिए अपना वोट डाल सकेंगे।

एक देश एक चुनाव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत में विधानसभाओं और लोकसभा के लिए एक साथ चुनाव कराना कोई नया विचार नहीं है। भारत में स्वतंत्रता के बाद से ही 1952, 1957, 1962 तथा 1967 में लोकसभा तथा विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित हो चुके हैं। अतः इससे स्पष्ट होता है कि देश के शासन-प्रशासन तथा अन्य सभी मशीनरी को एक देश एक चुनाव का पहले से ही अनुभव रहा है।

1967 के  आम चुनाव के बाद भारतीय राजनीति में एक नये दौर की शुरूआत हुई। जिसके तहत 1968-69 के बीच कुछ विधानसभाओं का समय से पहले ही विघटन हो गया था, जिसमें अधिकतर गैर कांग्रेसी राज्य या कांग्रेस के नेतृत्व क्षमता पर ऊंगली उठाने वाले तथा कांग्रेस नेतृत्व का विरोध करने वाले कांग्रेस शासित राज्य थे। अतः राजनीतिक महत्वकांक्षा तथा राजनीतिक स्वार्थवाद की ही देन है कि पहले से चली आ रही एक देश एक चुनाव की प्रक्रिया को खण्डित कर दिया गया था। जिससे देश मध्यवर्ती चुनाव या निरन्तर चुनाव के लिये अभिशप्त हुआ तथा देश में असंवैधानिक एवम् अलोकतांत्रिक रवायतों में वृद्धि हुई।

भारत की राजनीतिक पटल पर एक देश एक चुनाव का मुद्दा काफी पहले से ही चर्चा में रहा है। चुनाव आयोग की वार्षिक रिपोर्ट 1983’ में भी एक साथ चुनाव कराने का विचार प्रस्तुत किया गया था। विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट 1999’ में भी एक देश एक चुनाव का समर्थन किया गया था। अगस्त 2018 में भारत के विधि आयोग द्वारा एक साथ चुनावों पर एक मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी थी। जिसमें एक देश एक चुनाव के लिए चुनावी कानून में बदलाव की सिफारिश की गयी थी। आयोग का तर्क था कि एक साथ चुनाव कराने से सार्वजनिक धन की बचत हो सकती है तथा साथ ही प्रशासनिक व्यवस्था एवं सुरक्षा बलों पर पड़ने वाले दबाव को भी कम किया जा सकता है।

भारत के प्रधानमंत्री ने एक देश एक चुनाव के विचार तथा अन्य मुद्दों पर चर्चा करने के लिए 19 जून 2019 को सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों के साथ बैठक की। इससे स्पष्ट होता है कि एक देश एक चुनाव का मुद्दा राजनीतिक गलियारे में काफी पहले से ही चर्चा का विषय रहा है।

एक देश एक चुनाव के पक्ष में तर्क

1. एक साथ चुनाव के पक्ष में सबसे बड़ा तर्क सरकारी धन की बचत का है। यदि देश एक राष्ट्र एक चुनाव की राजनीतिक व्यवस्था को अपनाता है तो इससे भारी धन की बचत होगी। देश के 31 राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में कुल 4120 विधायक हैं। बड़े विधानसभाओं के लिए व्यय की अधिकतम सीमा 28 लाख रूपया है। इसका मतलब है कि यदि सभी विधानसभाओं के लिए एक बार में चुनाव हो तो कुल लागत लगभग 11 अरब रूपया बैठता है। लेकिन आमतौर पर हर साल लगभग पाँच राज्यों में चुनाव होते रहते हैं।

2. जहाँ 1951-1952 में लोकसभा के पहले चुनाव के लिए 53 पार्टियों ने चुनाव लड़ा था तथा लगभग 1874 उम्मीद्वारों ने इस चुनाव में भाग लिया था। इस चुनाव में लगभग 11 करोड़ रूपया खर्च हुआ था तो वहीं 2019 के आम चुनाव में 610 राजनीतिक दल तथा लगभग 9000 उम्मीद्वार थे। इस चुनाव में लगभग 60000 करोड़ रूपये (ए.डी.आर द्वारा घोषित चुनाव खर्च) खर्च हुआ था।

3. चुनाव के दौरान संबन्धित सरकार देश एवं राज्यों में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए भारी जनशक्ति एवं मशीनरी तैयार करती है। चुनाव प्रक्रिया में बड़ी संख्या में शिक्षकों सहित लोक-सेवकों की व्यस्तता के कारण नियमित अंतराल पर होने वाले चुनाव आवश्यक सेवाओं के वितरण में बाधा डालते हैं।

4. चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू हो जाती है और यह आय दिन किसी न किसी राज्य में होता रहता है। आचार संहिता लागू हो जाने के कारण जन कल्याण की नयी योजनाएं शुरू नहीं हो पाती हैं। अतः एक साथ चुनाव केन्द्र एवं राज्य सरकारों की नीतियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों में निरन्तरता सुनिश्चित करेगा।

5. चुनाव के दौरान वोट बैंक तुष्टिकरण चर्चा का विषय बन जाता है। चुनाव नजदीक होने के साथ अधिकांश राजनीतिक दल, चुनाव जीतने के लिये जाति, धर्म एवं साम्प्रदायिक मुद्दों को चर्चा में रखते हैं जो सामाजिक व्यवस्था के लिए एक नकारात्मक पक्ष है।

6. यह एक खुला रहस्य है कि चुनाव काले धन से लड़े जाते हैं। देश में चुनाव के दौरान भारी मात्रा में काला धन, सफेद किया जाता है। इसलिए यदि पूरे साल चुनाव कराये जायें तो देश में समानान्तर अर्थव्यवस्था बढ़ने की संभावना है।

7. अलग-अलग समय पर होने वाले विभिन्न चुनावों के कारण राजनीतिक दल दीर्घकालिक नीतियों एवं कार्यक्रमों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय तत्कालीन चुनाव लाभ के सन्दर्भ में सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

8. एक साथ लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव कराने से आम मतदाताओं में चुनाव के प्रति उत्साह बना रहेगा, जिससे मतदान प्रतिशत में वृद्धि होगी।

एक देश एक चुनावके विपक्ष में तर्क

1. एक देश एक चुनाव के विपक्ष में तर्क देने वाले लोगों का मानना है कि यद्यपि कि देश में एक चुनाव का विचार अच्छा है, लेकिन इसे लागू किया जाना उतना ही अव्यवहारिक भी है। भारत एक विशाल भौगोलिक एवं जनसंख्या वाला देश है तथा देश की भौगोलिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधता इसकी महत्वपूर्ण पहचान है। अक्सर देखा जाता है कि राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं। क्षेत्रीय दल स्थानीय मुद्दों को लक्ष्य बनाते हैं जबकि राष्ट्रीय दल, राष्ट्रीय मुद्दों को। ऐसे में संभावना है कि क्षेत्रीय दल स्थानीय महत्वपूर्ण मुद्दों को मजबूती से उठा नहीं पायेंगे। साथ ही चुनावी खर्च एवं चुनावी रणनीति के मामले में क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पायेंगे। अतः एक साथ चुनाव क्षेत्रीय दलों को स्वीकार्य नहीं होगा।

2. विपक्षी दलों का मानना है कि इस तरह के विचार-विमर्श से भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की संघीय प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। एक साथ चुनाव से राजनीतिक सत्ता का केन्द्रीकरण होगा तथा केन्द्र एवं राज्यों में एक ही दल सत्ता में आयेगी। अतः पूरे देश की राजनीतिक सत्ता की चाभी कुछ लोगों के पास ही सीमित हो जायेगी। इस प्रकार एक देश एक व्यक्ति, एक व्यक्ति एक विचार और अंत में एक देश एक राजनीतिक दल के निर्माण की प्रवृत्ति को बल मिलेगा।

3. नियमित चुनाव होते रहने के कारण सरकारें लोगों की इच्छा को सुनने के लिए बाध्य होती हैं, लेकिन सभी चुनाव एक साथ सम्पन्न होने के कारण सरकार की जनता के प्रति जबावदेही में कमी आयेगी। साथ ही सरकार को वापस बुलाये जाने के डर के बिना एक निश्चित कार्यकाल निरंकुश प्रवृत्तियों को जन्म दे सकता है।

4. वर्तमान व्यवस्था को इसलिए अपनाया गया ताकि नियमित चुनाव करा कर लोकतंत्र की इच्छा को कायम रखा जा सके और लोग मतदान के अधिकार के माध्यम से अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति कर सकें, लेकिन वर्तमान चुनाव प्रणाली को संशोधित करने का अर्थ है लोगों की लोकतांत्रिक इच्छाशक्ति के साथ छेड़छाड़ करना।

चुनौतियां-

1. एक देश एक चुनाव के लिए लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को समकालिक करने की आवश्यकता होगी ताकि दोनों के चुनाव एक निश्चित समय के भीतर हो सकें। उदाहरण के लिए वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल मई 2024 तक है, लेकिन कई ऐसे राज्य हैं जहाँ का विधानसभा चुनाव पिछले साल हो गया था तथा कुछ राज्यों के चुनाव इस साल के अंत में ही होने हैं। इस प्रकार अलग राज्यों के कार्यकाल पूरा होने की अलग-अलग तारीखें हैं।

2. लोकतंत्र में सभी चुनाव एक साथ कराना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य होगा, क्योंकि यदि लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो भी गये तो ऐसी स्थिति को लम्बे समय तक बनायें रखना चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि जैसे ही कोई सरकार अपनी सदन में विश्वास खो देगी तो यह व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जायेगी।

3. इस व्यवस्था को लागू करने के लिए संविधान में कम से कम पाँच संशोधन करने होंगे। इनमें मुख्य रूप से संसद के सदनों की अवधि से संबन्धित अनुच्छेद 83, राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबन्धित अनुच्छेद 85, राज्य विधानमण्डलों की अवधि से संबन्धित अनुच्छेद 172, राज्य विधानमण्डलों के विघटन से संबन्धित अनुच्छेद 174 तथा राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने से संबन्धित अनुच्छेद 356 शामिल है। इन तमाम छोटे-बड़े संशोधनों के लिए सदन में विशेष बहुमत की आवश्यकता पड़ेगी तथा इसके लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों को इस संवैधानिक संशोधन की पुष्टि करना आवश्यक होगा और इसके लिए अनिवार्य है कि सभी राज्य सरकारों से सहमति प्राप्त की जाये।

4. जन प्रतिनिधि अधिनियम 1951 में संसद और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल के स्थिरता के प्रावधानों के लिए संशोधन करना होगा तथा साथ ही जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा-2 में एक चुनाव की परिभाषा को शामिल करना आवश्यक होगा।

सुझाव-

यदि सरकार इस संसदीय स्वरूप को जारी रखना चाहती है तो इसके लिए निम्नलिखित समाधानों पर विचार किया जा सकता है -

1. यद्यपि एक देश एक चुनाव का मुद्दा संविधान के संघीय ढांचे को प्रभावित करता है। अतः देश की क्षेत्रीय दलों की चिंताओं को दूर करने के लिए इस पर उचित विचार-विमर्श की आवश्यकता है जिससे कि इस विधान को लागू करने में आसानी हो।

2. यदि केन्द्र या राज्य सरकार अपना कार्यकाल पूर्ण करने से पहले ही गिर जाती है तो इस परिस्थिति में सदन के दूसरे या तीसरे प्रमुख व्यक्ति या किसी राजनीतिक दल के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना या सदन को अपना नेता चुनने का अधिकार दिया जाना चाहिए।

3. संविधान में कुछ हद तक संशोधन कर यह प्रावधान किया जाना चाहिए कि किसी भी विधानसभा का कार्यकाल, लोकसभा के कार्यकाल के 6 महीने पहले या बाद पूर्ण हो रहा हो, तो भी चुनाव लोकसभा के चुनाव के साथ ही किया जाये।

निष्कर्ष

एक देश एक चुनाव की जरूरत है या नहीं इस पर आम सहमति होनी चाहिए। एक देश एक चुनाव के माध्यम से समवर्ती निर्णयों को क्रियान्वित करने के लिए संविधान एवं विभिन्न नियमों को पुष्ट किया जाना चाहिये और इसे इसलिए भी किया जाना चाहिए ताकि वोट आधारित राजनीतिक प्रणाली तथा संघवाद के आवश्यक बुनियादी सिद्धान्तों को नुकसान न पहुँचे। एक परिपक्व लोकतंत्र होने के नाते भारत में विचार-विमर्श की नीतियों का अनुसरण करना होगा तथा देश के सभी मुख्य राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर इसका स्थायी हल खोजा जाना चाहिए तथा साथ ही विचार-विमर्श की इस कड़ी में देश की आम जनता का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. एनसीईआरटी, चुनाव और प्रतिनिधित्व पेज नं0-51
2.https://www.legal service india.com/legal/article -1763
3.https://www.jagranjosh.com/genralknowledge/one-nation-one-election 1561032672
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7.https://hindi.webdunia.com/my-blog/ek-desh-ek-chunav-11907020013
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9.https://www.sanskritias.com/hindi/news-articals/one-nation-one-election-27
10.https://www.indiatoday.in/india/story/one-nation-one-election-prism
11.https://www.2thepoint.in/possibility-of-one-nation-one-election.
12.https://www.insightsonindia.com/2019/06/17/one-nation-one-election
13.https://www.timesofindia.indiatimes.com/Indiaone-nation-one-election-two.