|
|||||||
संयुक्त राष्ट्र
संघ और मानवाधिकार |
|||||||
United Nations and Human Rights | |||||||
Paper Id :
18190 Submission Date :
2023-09-13 Acceptance Date :
2023-09-21 Publication Date :
2023-09-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.10171167 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/anthology.php#8
|
|||||||
| |||||||
सारांश |
मानव अधिकार ऐसे अधिकार हैं, जो प्रत्येक मनुष्य को, उसकी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, जातीय इत्यादि परिस्थितियों पर विचार किये बिना जन्मतः प्राप्त होते हैं।
मानवाधिकारों में वे सभी मूलभूत अधिकार शामिल हैं, जो मनुष्य को गरिमामय जीवन जीने के लिए आवष्यक होते हैं। इन अधिकारों में
गुलामी व यातना से मुक्ति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कार्य व शिक्षा का अधिकार इत्यादि शामिल हैं। संयुक्त
राष्ट्र संघ ने नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व सामाजिक अधिकारों के साथ
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत अधिकारों की एक विस्तृत श्रृंखला का निर्माण किया
है और इन मूलभूत मानवाधिकारों की रक्षा करने के लिए एवं सदस्य राष्ट्रों से उनकी
जिम्मेदारियों को पूरा करवाने के लिए एक प्रशासनिक तंत्र भी स्थापित किया है। संयुक्त
राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकार कानूनों के संरक्षण की नींव संयुक्त राष्ट्र संघ के
चार्टर व मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (10 दिसम्बर 1948) द्वारा रखी गई थी।
मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसम्बर 1948 को पेरिस में महासभा
संकल्प 217, (UNHRC) के तहत सभी
राष्ट्रों के लिए उपलब्धियों के एक सामान्य मानक के रूप में घोषित की गई थी। इसमें
सर्वप्रथम सभी राष्ट्रों द्वारा मौलिक मानवाधिकारों को सार्वभौमिक रूप से संरक्षित
करने की बात कही गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1946-47 में अपने अंग आर्थिक व सामाजिक परिषद की कार्यात्मक समिति के रूप में संयुक्त
राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की स्थापना की थी। 1993 में महासभा ने मानवाधिकार गतिविधियाँ संचालित करने के लिए उत्तरदायित्व
निश्चित करने हेतु मानवाधिकार उच्चायुक्त का पद सृजित किया। 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक संयुक्त राष्ट्र
मानवाधिकार परिषद के गठन का प्रस्ताव रखा और इसके बाद इस 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद ने 53 सदस्यीय मानवाधिकार आयोग का स्थान ले लिया। संयुक्त
राष्ट्र उच्चायुक्त का कार्यालय संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सचिवालय के
रूप में कार्य करता है। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद (UNHRC) विश्व भर में मानवाधिकारों क संरक्षण के लिए प्रमुख
अर्न्तराष्ट्रीय संस्था है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के तहत सार्वभौमिक
आवधिक समीक्षा सभी सदस्य राष्ट्रों के मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा है। यह
राष्ट्र संचालित प्रक्रिया प्रत्येक राज्य को यह घोषित करने का अवसर प्रदान करती
है कि उन्होंने अपने देश में मानवधिकार स्थितियों में सुधार करने और मानवाधिकार
उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए, कौन-कौन सी कार्यवाहियाँ की है। |
||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Human rights are such rights which every human being receives by birth, without considering his economic, social, political, religious, caste circumstances. Human rights include all those fundamental rights which a human being needs to live a dignified life. These rights include freedom from slavery and torture, freedom of expression, right to work and education, etc. The United Nations has created a wide range of internationally recognized rights, including civil, political, economic, cultural and social rights, and has created a framework to protect these fundamental human rights and to ensure that member states fulfill their responsibilities. Administrative system has also been established. The foundation of the protection of human rights laws by the United Nations was laid by the Charter of the United Nations and the Universal Declaration of Human Rights (10 December 1948). The Universal Declaration of Human Rights was promulgated by the United Nations General Assembly in Paris on 10 December 1948 under General Assembly Resolution 217, (UNHRC) as a common standard of achievements for all nations. In this, first of all, it has been said that fundamental human rights should be universally protected by all nations. The United Nations had established the United Nations Human Rights Commission in 1946-47 as a functional committee of its organ Economic and Social Council. In 1993, the General Assembly created the post of High Commissioner for Human Rights to establish accountability for carrying out human rights activities. In 2006, the United Nations General Assembly proposed the formation of a United Nations Human Rights Council, and this 47-member Human Rights Council replaced the 53-member Human Rights Commission. The Office of the United Nations High Commissioner serves as the secretariat of the United Nations Human Rights Council. The United Nations Human Rights Council (UNHRC) is the main international organization for the protection of human rights around the world. The Universal Periodic Review under the UN Human Rights Council is a review of the human rights records of all member states. This country-driven process provides an opportunity for each State to declare what actions it has taken to improve human rights conditions in its country and meet its human rights responsibilities. | ||||||
मुख्य शब्द | संयुक्त राष्ट्र चार्टर, संयुक्त राष्ट्र महासभा, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, अर्न्तराष्ट्रीय प्रसंविदाएँ, सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | United Nations Charter, United Nations General Assembly, Universal Declaration of Human Rights, International Covenants, Universal Periodic Review. | ||||||
प्रस्तावना | द्वितीय महायुद्ध की
विभीषिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। अमेरिकी
राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने 6 जनवरी 1941 को अमेरिकी संसद में चार प्रकार की स्वतंत्रताओं को विश्व व्यापी महत्व की
बताया था। ये हैं - विचार अभिव्यक्ति, ईश्वर उपासना, अभाव से मुक्ति तथा भय से मुक्ति। यही वे आधार
स्तम्भ थे जिन पर संयुक्त राष्ट्र संघ की नींव रखी गई। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय
संगठन है जिसके उद्देश्य में उल्लेखित है कि यह अन्तर्राष्ट्रीय कानून को
सुविधाजनक बनाने में सहयोग अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानवाधिकार और विश्व शांति के लिए कार्य करेगा। |
||||||
अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य विश्व में मानवाधिकारों के संरक्षण में संयुक्त राष्ट्र द्वारा उठाए गए
विभिन्न कदमों की विस्तृत व्याख्या करना है। विश्व में मानवाधिकारों के संरक्षण
हेतु सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की
गई ताकि विश्व कं समस्त सदस्य राष्ट्र अपने नागरिकों को एक सुरक्षित व गरिमामय जीवन
जीने का अधिकार दे सकें। मानवाधिकारों का
उल्लंघन होने की दशा में संयुक्त राष्ट्र जिन कदमों का सहारा लेता है, उनको प्रकाश में लाने का प्रयास भी इस शोध पत्र के माध्यम
से किया गया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (Universal
Periodic Review) द्वारा सदस्य देशों को अपने नागरिकों के
मानवाधिकारों को संरक्षित करने हेतु आवश्यक कदम उठाने हेतु निर्देशित करती है। |
||||||
साहित्यावलोकन | इस शोध पत्र के लेखन में
सम्बन्धित साहित्य की भी समीक्षा की गई है। डॉ. रामसिंह सैनी द्वारा लिखित मानवाधिकार:
संयुक्त राष्ट्र और भारत भााग-2, IAS प्रदर्शित
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और भारत, सतीश चतुर्वेदी लिखित मानवाधिकार और संयुक्त राष्ट्रसंघ Julie A Mertus लिखित “ The United Nations and Human Rights : A Guide
for a New Era” फ्रेडरिक मैग्रेट एण्ड फिलिप आल्सटन लिखित “The United
nations and Human Rights : A critical Appraisal (Law)”बरट्रेन्द्र जी, रामचरण लिखित, “The UN and the Human Rights : The
Protection Role and Jurisprudence of the United Nations Human Rights Council”.जॉन पी. हमफ्रे लिखित“Human Rights and the United Nations
: A great Adventure”, आर्थर एच. राबर्टसन लिखित “Human Rights
in the world : An Introduction to the International Protection of Human Rights”
इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार
केन्द्र द्वारा निर्गमित पुस्तक “United Nations Action in the field of Human
Rights का भी इस शोध पत्र के लेखन में उपयोग किया गया
है। |
||||||
मुख्य पाठ |
संयुक्त राष्ट्र
चार्टर और मानवाधिकारों की पहल संयुक्त राष्ट्र संघ की
स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर के साथ हुई। इस संस्था की संरचना में महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय तथा
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय है। संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य है- युद्ध रोकना, मानवाधिकारों की रक्षा करना, अन्तर्राष्ट्रीय कानून को निभाने की प्रक्रिया जुटाना, सामाजिक व आर्थिक विकास, जीवन स्तर सुधारना व बीमारियों से लड़ना आदि। द्वितीय विश्व युद्ध के नरसंहार
के बाद संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों को बहुत अपरिहार्य माना था। ऐसी घटनाओं
को भविष्य में रोकने के लिए 1948 में महासभा ने
मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की। संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र
या चार्टर वह पत्र है जिस पर 50 देशों के
हस्ताक्षर द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ स्थापित हुआ। इस पत्र को संयुक्त राष्ट्र
संघ का संविधान माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर 26 जून 1945 को सैनफ्रांसिस्को
में हस्ताक्षर किये गये। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में कुल 19 अध्याय है जिनमें 111 धाराएँ है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर की विविध धाराओं में संयुक्त राष्ट्र के
उद्देश्य, सदस्यता प्रक्रिया, संयुक्त राष्ट्र के अंग, विवादों का शांतिपूर्ण निपटारा, अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक व आर्थिक सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय, सचिवालय, सुरक्षा परिषद, न्यास परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद आदि का वर्णन है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर का 9वाँ व 10वाँ अध्याय
मानवाधिकारों से सम्बन्धित है जिसमें आर्थिक व सामाजिक सहयोग तथा आर्थिक व सामाजिक
परिषद का विवरण है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के 9वें अध्याय में धारा 55(C) के अन्तर्गत कहा गया है कि
संयुक्त राष्ट्र सभी के लिए बिना किसी जाति, धर्म, लिंग के भेदभाव के मानवाधिकारों व आधारभूत
स्वतंत्रताओं के लिए सार्वभौम सम्मान व निगरानी के लिए कार्य करेगा। इसी तरह 10वें अध्याय की धारा 62 (II) में कहा गया है कि आर्थिक व सामाजिक परिषद सभी के लिए बिना किसी भेदभाव
के मानवाधिकारों व आधारभूत स्वतंत्रता के लिए सम्मान व निगरानी करेगी। वास्तव में 10वें अध्याय में वर्णित आर्थिक व सामाजिक परिषद से ही
मानवाधिकारों की अवधारणा जुड़ी है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर की धारा 68 के अनुसार आर्थिक व सामाजिक परिषद को मानवाधिकारों के
संवर्धन के लिए आर्थिक व सामाजिक क्षेत्रों में विविधि आयोग स्थापित करने का
अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र
के मानवाधिकार सम्बन्धी उपबंध संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र
में मानवाधिकारों का संदर्भ सात जगह मिलता है - 1. प्रस्तावना, 2. संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों से सम्बन्धित धारा 1 3. महासभा के उत्तरदायित्वों से
सम्बन्धित धारा 13 4. मानवाधिकार आयोग सम्बन्धी धारा 18. 5. आर्थिक व सामाजिक सहयोग से
सम्बन्धित धारा 55. 6. आर्थिक व सामाजिक परिषद के
कार्यो से सम्बन्धित धारा 62. 7. न्यास पद्धति के उद्देश्यों से
सम्बन्धित धारा 76. संयुक्त राष्ट्र चार्टर की
उपरोक्त धाराओं में मानवाधिकारों का वर्णन मिलता है। संयुक्त राष्ट्र
मानवाधिकार आयोग (परिषद) यह मानवाधिकारों के संरक्षण
व संवर्द्धन के लिए संयुक्त राष्ट्र की मुख्य कार्यकारी संस्था है। 15 मार्च 2006 को संयुक्त
राष्ट्र महासभा ने इसको संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से प्रतिस्थापित कर
दिया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की स्थापना 1946 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने आर्थिक व सामाजिक परिषद की एक कार्यात्मक समिति
के रूप में की थी। यह आर्थिक व सामाजिक परिषद की सहायक संस्था है। 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद ने 53 सदस्यीय मानवाधिकार आयोग का स्थान लिया है। संयुक्त
राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का मुख्य कार्य संसार भर में मानवाधिकारों का संरक्षण व
संवर्द्धन है। इसका मुख्यालय जैनेवा (स्विटजरलैण्ड) में है। संयुक्त राष्ट्र
घोषणापत्र के द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के जिन अंगों की स्थापना मानवाधिकारों के
संरक्षण के लिए की गई थी उनमें महासभा के बाद दूसरा स्थान आर्थिक व सामाजिक परिषद
का है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में 47 सदस्य हैं, जो क्षेत्रीय समूह के हिसाब से तीन साल के लिए
इस तरह चुने जाते हैं - 1. अफ्रीकन राज्य - 13 2. एशिया प्रशांत - 13 3. पूर्वी यूरोपीय राज्य - 6 4. लैटिन अमेरिका व कैरेबियन
राज्य - 8 5. पश्चिमी यूरोप व अन्य राज्य - 7 आयोग को 16 जून 2006 को समाप्त कर
दिया गया तथा 19 जून 2006 को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की प्रथम बैठक हुई। नई मानवाधिकार परिषद
स्थायी है तथा प्रत्यक्ष रूप से महासभा के अधीन है। यह कहीं भी व किसी भी देश में
मानवाधिकारों के उल्लंघन का गहन विश्लेषण करती है। मानवाधिकारों के संरक्षण के
लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNOHCHR)मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त
पूरे संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था में मानवाधिकारों संबंधी गतिविधियों में समन्वय
स्थापित करता है तथा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सचिवालय के रूप में
कार्य करता है। इसका कार्यालय जैनेवा (स्विटजरलैण्ड) में है। इसकी स्थापना संयुक्त
राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 48/141 द्वारा 20 दिसम्बर 1993 में हुई थी। इस
पद पर पहले उच्चायुक्त की नियुक्ति 1994 में की गई। संयुक्त राष्ट्र सुधार (संषोधन) कार्यक्रम के तहत मानवाधिकारों के
लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त कार्यालय तथा मानवाधिकार केन्द्र दोनों को 15 सितम्बर 1997 को एक कर दिया
गया। OHCHR संगठनात्मक रूप से दो पदों द्वारा संचालित होता
है - (1) मानवाधिकार उच्चायुक्त अधीनस्थ सैकेट्री जनरल (UNDER
SECRETARY GENERAL) (2) मानवाधिकार उप उच्चायुक्त (DEPUTY
SECRETARY GENERAL) मानवाधिकार उच्चायुक्त
अधीनस्थ सैकेट्री जनरल मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की सभी गतिविधियों तथा प्रशासन के लिए उत्तरदायी होता है
तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा जो कार्य सौंपे जाते हैं उनका क्रियान्वयन करता
है। यह संयुक्त राष्ट्र सैकेट्री जनरल (महासचिव) के प्रति उत्तरदायी होता है। यह
महासचिव को संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार सम्बन्धी नीतियों व कार्यक्रमों के बारे
में सलाह देता है। यह मानवाधिकार संगठनो व समितियों की बैठकों में महासचिव का
प्रतिनिधित्व करता है। मानवाधिकार उप उच्चायुक्त
(असिस्टेंट सैकेट्री जनरल) मानवाधिकार उच्चायुक्त को उसकी गतिविधियों में सहायता
देने के लिए एक उप उच्चायुक्त होता है। यह उच्चायुक्त की अनुपस्थिति में कार्यभार
सम्भालता है। यह उच्चायुक्त के प्रति उत्तरदायी होता है। संयुक्त राष्ट्र
मानवाधिकार उच्चायुक्त से निम्न दायित्व निभाने की अपेक्षा की गई - 1. मानवाधिकारों के लिए
अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग विकसित करना। 2. पूरी संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था
में मानवाधिकारों सम्बन्धी कार्यों व गतिविधियों में समन्वय स्थापित करना। 3. मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों
का संज्ञान लेना। 4. किसी भी राष्ट्र में राष्ट्रीय
मानवाधिकारों के आधारभूत ढाँचे की स्थापना को प्रोत्साहित करना। 5. मानवाधिकारों से सम्बन्धित
संयुक्त राष्ट्र द्वारा सौंपे गये दायित्वों का निर्वहन करना तथा मानवाधिकारों के
प्रोत्साहन व संरक्षण के लिए उपयुक्त सिफारिशें करना। 6. मानवाधिकारों का समुचित
कार्यान्वयन सुनिश्चित करने एवं मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन रोकने के लिए
रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करना। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र
मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु प्रभावी संस्था है। मानवाधिकारों की
सार्वभौमिक घोषणा(UDHR) 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा की गई।
इसके अन्तर्गत उन मौलिक अधिकारों की घोषणा की गई जो मनुष्य होने के नाते उसे मिलने
अपरिहार्य है। ‘‘मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’’ मानवाधिकारों के इतिहास में मील का पत्थर है। यह घोषणा
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पेरिस में “General
Assembly Resolution 217 । (तृतीय)" के तहत
घोषित हुई जिसमें कुछ अधिकारों को सभी देशों व उसके लोगों के लिए सार्वभौम माना
गया। इस घोषणा द्वारा कुछ अधिकारों को बिना देश व काल की परिस्थितियों के सभी
मनुष्यों के लिए सामान्य माना गया। मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR)
(Universal Declaration of Human Rights) में तीस धाराऐं हैं,
इनमें हर व्यक्ति को जीने की स्वतंत्रता का अधिकार, दासता या गुलामी से आजादी, अमानवीय व्यवहार व सजा से
आजादी, कानून के समक्ष समानता, कानून
का समान संरक्षण, यातनाओं से आजादी, अपने
राज्य में कहीं भी घूमने व बसने की आजादी, किसी भी देश को
(अपने को भी) छोड़ने का अधिकार (धारा 13), उत्पीड़न से बचने
हेतु दूसरे देश में शरण लेने का अधिकार (धारा 14), किसी भी राष्ट्रीयता को प्राप्त करने का अधिकार (धारा 15), उच्च आयु प्राप्त पुरूष व महिला को विवाह करने का अधिकार
(धारा 16), सम्पत्ति अर्जित करने का अधिकार (धारा 11), विचारों की आजादी व धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी (धारा 18), अभिव्यक्ति की आजादी (धारा 19), शांतिपूर्ण सभा करने की आजादी (धारा 20), आराम करने का अधिकार, कार्य के घंटे सुनिश्चित करने का अधिकार, उचित जीवन स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य व आवास का अधिकार, माँ व बच्चों को विशेष देखभाल का अधिकार, सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार, कार्य करने का अधिकार, रोजगार चुनने का अधिकार, कार्य की उचित
दशाऐं प्राप्त करने का अधिकार आदि शामिल है। UDHR की धारा 13 व 14 का अपराधियों द्वारा गलत इस्तेमाल भी खूब किया
गया है। मानव अधिकारों की विश्व व्यापी घोषणा के अनेक सिद्धान्तों को विभिन्न देशों ने अपने संविधानों व कानूनों
में शामिल किया है तथा वहाँ के न्यायालयों ने उन्हें अपने निर्णय का आधार माना है।
मानवाधिकारों की
सार्वभौमिक घोषणा के बाद महासभा द्वारा जारी अन्य घोषणाएँ 10 दिसम्बर 1948 की सार्वभौमिक घोषणा के बाद महासभा ने मानवाधिकारों के सम्बन्ध में कई अन्य
घोषणाऐं भी की। उनमें 1959 व 1991 की शिशु अधिकार घोषणाएँ, 1960 की उपनिवेषों
को स्वतंत्रता प्रदान करने सम्बन्धी घोषणा, 1963 में रंग भेद के आधार पर सभी प्रकार के भेद भावों को समाप्त करने की घोषणा, 1981 में धर्म के आधार पर सभी प्रकार के भेदभाव समाप्ति की
घोषणा, 1984 में सभी लोगों शांति से
जीने के अधिकार की घोषणा आदि शामिल हैं। मानवाधिकारों से
सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदाएँ 1950 के दषक में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा यह
महसूस किया गया कि मानवाधिकारों के सम्बन्ध में केवल घोषणाएँ करना व प्रस्ताव
पारित करना ही काफी नहीं है वरन् उन्हें कारगर रूप देने के लिए या क्रियान्विति के
लिए कोई नया कानूनी रूप दिया जाना चाहिए। इस बात को मानते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ
ने मानवाधिकारों से सम्बन्धित प्रश्नों पर दो अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओ के
प्रारूप तैयार किये - 1. नागरिक व राजनैतिक अधिकारों पर
अन्तर्राष्ट्रीय समझौता (ICCPR) –International Covenant on Civil and
Political Rights 2. आर्थिक, सामाजिक
व सांस्कृतिक अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (ICESCR)
–International Covenant on Economic Social and Cultural Rights इन दोनों प्रसंविदाओं पर
महासभा ने 16 दिसम्बर 1966 को स्वीकृति प्रदान की। यह माना गया कि 35 सदस्यों
के अनुमोदन के बाद ये लागू होंगी। 35 सदस्यों के अनुमोदन के
बाद 3 जनवरी 1976 को (ICESCR) तथा 23
मार्च 1976 को (ICCPR) लागू हुई। ICCPR ICCPR की धारा 49 में कहा गया कि यह समझौता 35 सदस्यों द्वारा
अनुमोदन के तीन माह बाद लागू होगा। फलतः 35 सदस्यों के अनुमोदन के तीन माह बाद यह 23 मार्च 1976 को लागू हुआ। इस प्रसंविदा में जिन मानवाधिकार
का उल्लेख है उनमें लोगों को घूमने-फिरने की स्वतंत्रता, जीने की स्वतंत्रता, कानून के समक्ष समानता, विश्वास व धर्म की स्वतंत्रता, विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता तथा चुनावों में भाग लेने की
स्वतंत्रता आदि शामिल है। ICCPR का नियंत्रण संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार
समिति द्वारा किया जाता है जो कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की एक अलग
संस्था है। सदस्य राज्यों की नियमित रिपोर्टो के द्वारा यह देखती है कि
मानवाधिकारों का क्रियान्वयन किस सीमा तक हो रहा है। ICESCR ICESCR इसे भी संयुक्त राष्ट्र महासभा
ने 16 दिसम्बर 1966 को स्वीकृत किया था। इसके बाद 3 जनवरी 1976 को यह लागू हुआ। इस प्रसंविदा में जिन
मानवाधिकारों को शामिल किया गया, उनमें- काम करने
का अधिकार, उचित जीवन स्तर प्राप्त करने का अधिकार, सामाजिक संरक्षण व शिक्षा का अधिकार, मजदूर संघ बनाने का अधिकार, सांस्कृतिक जीवन का अधिकार, कार्य की उचित
दशाएँ प्राप्त करने का अधिकार आदि शामिल है। सदस्य राष्ट्र इन दोनों
संधियों को स्वीकार कर सकते थे अथवा दोनों में से एक को। उनके अनुमोदन के बाद भी
उनका संयुक्त राष्ट्र के प्रति केवल इतना उत्तरदायित्व था कि वे समय-समय पर
संयुक्त राष्ट्र महासचिव को प्रतिवेदन भेजते रहें कि उन्होंने उल्लेखित
मानवाधिकारों में से किन-किन पर कितना अमल किया है। मानवाधिकार
संरक्षण व संवर्द्धन हेतु संयुक्त राष्ट्र उप आयोग मानवाधिकार संरक्षण व
संवर्द्धन हेतु संयुक्त राष्ट्र उप आयोग की स्थापना 1947 में की गई थी जिसमें 12 सदस्य थे। यह पूर्ववर्त्ती संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की मुख्य सहायक
संस्था थी। 1999 से पहले इसे संयुक्त राष्ट्र अल्पसंख्यक भेदभाव
उन्मूलन एवं सुरक्षा उप आयोग कहा जाता था। यह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग का
थिंक टैंक समझा जाता था। अगस्त 2006 में इसे पुर्नगठित किया गया तथा इसकी जगह एक सलाहकार परिषद
बनायी गई जिसमें 26 सदस्य थे। यह मानवाधिकार परिषद को सहायता करते
थे। 26 सदस्यीय उप आयोग का मुख्य कार्य मानवाधिकार
सम्बन्धी मुद्दों पर अध्ययन करना तथा मानवाधिकारों के सम्बन्ध में किसी भी तरह का
भेदभाव रोकने के लिए सिफारिशें करना आदि। सारांषतः संयुक्त राष्ट्र
संघ ने मानवाधिकार संरक्षण की दिषा में अपनी विविध संस्थाओं जैसे- अन्तर्राष्ट्रीय
श्रम संगठन, संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय शिशु निधि, संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय शरणार्थी उच्च आयोग तथा
महिलाओं की स्थिति से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र आयोग आदि के द्वारा महती कार्य
किया है। संयुक्त राष्ट्र ने 1948 की घोषणा के
सम्बन्ध में 1966 व 1976 में मानवाधिकारों से सम्बन्धित दो प्रसंविदाएँ भी पारित की। साथ ही जातीये
भेदभाव अन्य प्रकार की यातनाओं जैसे-भुखमरी, बेरोजगारी आदि द्वारा मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए एक 43 सदस्यीय मानवाधिकार आयोग तथा अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने
एवं भेदभावों को दूर करने के लिए 26 सदस्यीय विशेषज्ञों का एक उच्चायोग बनाया है। साथ ही लगभग सभी देशों में
राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार हनन रोकने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन
किया गया है। |
||||||
निष्कर्ष |
लेकिन अभी भी काफी कुछ किया
जाना शेष है। वर्तमान वैश्विक स्थिति के अवलोकन के बाद यह कहना समीचीन है कि मानवाधिकारों
की रक्षा का संकल्प आज भी अधूरा है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इतने प्रयासों के
बावजूद संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व की लगभग आधी से अधिक आबादी
मानवाधिकारों से वंचित है। एक रिपोर्ट के मुताबिक आज भी लगभग 120 देशों में मानवाधिकारों का हनन हो रहा है तथा लगभग 10 लाख व्यक्ति बंदीगृहों में बंद पड़े हैं। आज भी समूचे विश्व में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। इतने बड़े स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय सरकारी तथा गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद भी
मानवाधिकारों के उल्लंघन के कई कारण हैं, जैसे- मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच प्रक्रिया बेहद दोषपूर्ण व
पक्षपातपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग की जाँच समिति में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, लैटिन अमेरिका एवं अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि रहते हैं जो शिकायतों की जाँच ठीक तरीके से न करके पक्षपातपूर्ण ढंग से करते हैं, जिसके पीछे राजनैतिक स्वार्थ छुपा होता है। मानवाधिकारों के
गम्भीर उल्लंघन से निपटने में विश्व व्यवस्था की अक्षमता प्रमुख कमजोरी है। एषिया
में मानवाधिकारों की कोई क्षेत्रीय व्यवस्था नहीं है। इन अधिकारों की व्याख्या और
लागू करने का अधिकार भी ऐसे अलग-अलग देशों पर छोड़ दिया गया है जिनके दृष्टिकोण में
भारी अंतर है। मानवाधिकारों को लागू करवाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के पास पुलिस
व्यवस्था नहीं है, जो विश्व के देशों पर मानवाधिकारों की सार्वभौम
घोषणा को लागू करने के लिए दबाव डाल सके। लेकिन इतना कहा जा सकता है
कि विश्व में मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने में सफलताएँ प्राप्त हो रही हैं। |
||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. क्यू आर जेवियर पैरे ज डि. यूनाईटेड नेशन्स इन
दी फील्ड ऑफ ह्यूमन राइट्स, न्यायार्क, यूनिपब 1985. 2. फोरसाइथ डेविड पी. ह्यूमन राइट्स एंण्ड वर्ल्ड
पॉलिटिक्स, लिंकन यूनिवर्सिटी ऑफ नेबरास्का प्रेस 1983. 3. मैरौन, थियोडोर (संपादक) ह्नयूमन राइट्स इन इन्टरनेशनल लॉ, भाग द्वितीय, ऑक्सफोर्ड क्लियरेंडन प्रेस 1984. 4. मौस्कोविज, मौसेस, इन्टरनेंशनल कन्सर्न विद् ह्नयूमन राईट्स, न्यूयॉर्क: डौब्स फैरी, 1974. 5. राबर्टसन, आर्थर एच, ह्नयूमन राईट्स इन दा वर्ल्ड: एन इन्ट्रोडेक्षन, टू दा इन्टरनेशनल प्रोटेक्षन ऑफ ह्नयूमन राईट्स, न्यूयॉर्क: सैन्ट मार्टिन प्रेस, 1982. 6. वान बोवर, थियो, पीपल मैटर: व्यूज ऑन दा इन्टरनेशनल ह्नयूमन
राईट्स पॉलिसी, एक्सटरडम, मैलनहॉफ, 1982. 7. दी यूनाईटेड नेशन्स एण्ड ह्नयूमन राईट्स, न्यूयार्क, यू.एन.
पब्लिकेषन्स 8. पीटर बेहर तथा लिओन गोर्डेनकर, द यूनाईटेड नेशन्स, न्यूयॉर्क, प्रेगर, 1984. 9. आशा हंस, द यूनाईटेड नेशन्स, दिल्ली, अमर प्रकाशन, 1986. 10. वाल्टर आर. शार्प, द यूनाईटेड नेशन्स, इकोनोमिक एण्ड सोशल काउन्सिल, न्यूयॉर्क:
कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रेस, 1969. 11. नन्दलाल, फ्राम कलैक्टिव सिक्योरिटी टू पीस कीपिंग, नई दिल्ली, 1975. 12. एन्ड्रयू मार्टिन, कलैक्टिव सिक्योरिटी: ए प्रोग्रेस रिपोर्ट, पेरिस: यूनेस्को, 1952. 13. के.पी. सक्सेना, दी यू.एन. एण्ड कलैक्टिव सिक्योरिटी: ए हिस्टोरिकल एनालिसिस, दिल्ली: डी.के. पब्लिशिंग हाऊस, 1974. 14. हिल, मार्टिन दा यूनाईटेड नेशन्स सिस्टम, कॉर्डिनेटिंग इट्स ईकोनोमिक एण्ड सोशल वर्क, कैम्ब्रिज: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1978. 15. चियांग पे हेग, नॉन गवर्नमेन्टल ऑर्गेनाईजेशन्स एण्ड दी यूनाईटेड नेशन्स, न्यूयॉर्क, प्रंगर
पब्लिशर्स, 1981. 16. रॉबर्ट जैक्सन, स्टेडी ऑफ दा कैपेसिटी ऑफ दा यूनाईटेड नेशन्स, खण्ड-2, जैनेवा: संयुक्त राष्ट्र पब्लिकेशन्स, 1969. 17. टी.वी. सत्यमूर्ति, दि पॉलिटिक्स ऑफ इन्टरनेशनल कॉपरेशन: कन्ट्रास्टिंग कन्सेप्सन्स ऑफ यूनेस्को, जेनेवा, लिबरैटी ड्रोज, 1964. 18. कोहन, बेंजामिन, वीद दा यूनाईटेड नेशन्स: कॉन्सटीट्यूशन
डवलपमेंन्ट, ग्रोथ एण्ड पोसिबिलिटीज: कैम्ब्रिज, हावर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1961. 19. गुजरिच, एल.एम., यू.एन. इन ए चैंजिंग वर्ल्ड, न्यूयॉर्क: कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रेस, 1974. 20. निकोलस, एच.जी., द यूनाईटेड नेशन्स एज ए पॉलिटिकल इन्स्टीट्यूषन, लन्दन ऑक्सफोर्ड, यूनिवर्सिटी प्रेस, 1975. 21. रिग्स्, रॉबर्ट एण्ड प्लानों, जैक सी., द यूनाईटेड नेशन्स: इन्टरनेशनल ऑर्गेनाईजेशन एण्ड वर्ल्ड पॉलिटिक्स, शिकागो, न्यू जर्सी
प्रेस, 1988. 22. ईवान ल्यूअर्ड, द यूनाईटेड नेशन्स: हाउ इट वर्क्स एण्ड वॉट इट डज, लंदन: मैक्मिलन, 1979. 23. रोजेलिन, हिग्गिन्स, द डवलपमेन्ट ऑफ इन्टरनेशनल लॉ, थ्रू दा पॉलिटिकल ऑरगन्स, ऑफ दा यूनाईटेड नेशन्स, लंदन, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1963. 24. ऊँ थांट, टुवर्ड वर्ल्ड पीस, न्यूयॉर्क, योस्लॉफ, 1969. 25. बी.एन. मेहरिश, इन्टरनेशनल ऑर्गेनाईजेशन्स, दिल्ली, विषाल, 1976. 26. सुशील चन्द्रसिंह, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, लखनऊ, हिन्दी समिति, 1970. 27. रामसखा गौतम, संयुक्त राष्ट्र, भोपाल, मध्यप्रदेश हिन्दी अकादमी, 1975. 28. डी.डब्ल्यू बावेट, द लॉ ऑफ इन्टरनेशनल इन्सटीट्यूशन्स, लंदन, स्टीवंस, 1963. 29. आर.पी. दोखलिया, द कॉडिफिकेशन ऑफ पब्लिक इन्टरनेशनल लॉ, मैनचेस्टर, मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी प्रेस, 1970. 30. वाल्टर, आर. शार्प, दा यूनाईटेड नेशन्स, इकॉनोमिक एण्ड सोशल काउन्सिल, न्यूयॉर्क, कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रेस, 1969 31. सुधीर सेन, यूनाईटेड नेशन्स इकोनॉमिक डवलपमेन्ट: नीड फॉर ए स्ट्रेटैजी, न्यूयॉर्क, ओशियाना, 1969. 32. दृष्टि IAS, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और भारत, 7 मार्च 2002. 33. Smith, Rhona, K.M. International Human
Rights, Oxford University Press, Newyork, 2007. 34. Kennedy, Paul M., The Parliament of Man :
The past-Present and future of the united Nations, Random house Pub. New york,
2006. 35. Frederic Megret, Philip Alston (Ed.), The United Nations and Human Rights : A Critical Appraisal (Law), Oxford University, Press, Oxford 2020 (यह किताब मानवाधिकारों से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र के प्रत्येक मुख्य अंग के कार्य, उपलब्धियों, कार्यवाहियों आदि का आलोचनात्मक परीक्षण करती है) |