|
|||||||
वर्तमान समय और मूल्य आधारित
शिक्षा |
|||||||
Present Time and Value Based Education | |||||||
Paper Id :
18203 Submission Date :
2023-10-13 Acceptance Date :
2023-10-22 Publication Date :
2023-10-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.10209554 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/anthology.php#8
|
|||||||
| |||||||
सारांश |
वर्तमान समय में हमारे नैतिक मूल्यों
का तेजी से विघटन हो रहा है। जब से शिक्षा का उद्देश्य धन कमाना और नौकरी प्राप्त
करने तक सीमित हो गया है तब से हमारे नैतिक मूल्य में निरन्तर गिरावट हो रही है।
इसका मुख्य कारण आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की चकाचौंध है। इस बदलते परिवेश में जरूरत है नये
ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान के साथ मूल्य आधारित शिक्षा को पाठ्यक्रम में
शामिल किया जाये ताकि हमारे बच्चे अपने रीति-रिवाज, परम्परा, सभ्यता-संस्कृति, धर्म एवं नैतिक मूल्यों से भी जुड़े रहे और
विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें। यही समय की मांग भी है। मूल्य आधारित
शिक्षा के द्वारा समाज में हो रहे अनेकानेक दुराचारों को समाप्त किया जा सकता है। |
||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In the present times, our moral values are rapidly disintegrating. Since the purpose of education has become limited to earning money and getting a job, our moral values are continuously declining. The main reason for this is the glamor of modernization, industrialization and urbanization. In this changing environment, there is a need to include value based education along with new knowledge, science and technology in the curriculum so that our children remain connected to their customs, traditions, civilization, culture, religion and moral values and interact with the world. To be able to walk step by step. This is also the demand of time. Many evils happening in the society can be eliminated through value based education. | ||||||
मुख्य शब्द | मूल्य, शिक्षा, परम्परा, सभ्यता, संस्कृति, तकनीकी, आधुनीकीकरण। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Values, Education, Tradition, Civilization, Culture, Technology, Modernization. | ||||||
प्रस्तावना | विश्व के सभी धर्म, सम्प्रदाय, समाज व राष्ट्र शिक्षा के
महत्त्व को स्वीकारते है, क्योकि शिक्षा के बिना किसी समाज व राष्ट्र का समुचित व
चहुंमुखी विकास नही हो सकता है। शिक्षा समाज के विभिन्न वर्गों में बेेहतर समन्वय
स्थापित करती है। शिक्षा सम्पूर्ण जीवन का सार है और शिक्षा की आधारशिला संस्कार
और मूल्य होते है। यहाँ शिक्षा से तात्पर्य मूल्य आधारित शिक्षा से है। मूल्यविहीन
शिक्षा किसी भी समाज व राष्ट्र के पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह होती है। मूल्यविहीन
शिक्षा से कोई भी समाज परिपक्व नहीं बनता बल्कि असंवेदनशील हो जाता है और किसी भी
असंवेदनशील समाज का सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं है। मूल्य आधारित शिक्षा समाज व राष्ट्र
को सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाती है। किसी समाज व राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए
शिक्षा प्राण है तो नैतिक मूल्य उसकी आत्मा। नैतिक मूल्यों से तात्पर्य आदर्श
सिद्धांत तथा नैतिकता से है। मूल्यों का विकास समाज में होता है। मूल्य
अभिवृत्तियाँ एवं आदर्श व्यक्ति के आचरण व व्यवहार को निर्देशित करते है। हमारे
जीवन को आनन्दमयव सुखमय बनाने में मूल्य आधारित शिक्षा का विशेष महत्व है। |
||||||
अध्ययन का उद्देश्य | 1. वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का आलोचनात्मक विश्लेषण करना। 2. मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व को समझना। 3. मूल्य आधारित शिक्षा के सन्दर्भ में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
कितनी कारगर साबित होगी,
का विश्लेषण करना। |
||||||
साहित्यावलोकन | डॉ सत्यनारायण दुबे ‘शरतेन्दु’ मूल्य नींव है और शिक्षा के सभी पक्ष उस पर
आश्रित भवन, मूल्यों द्वारा ही शिक्षा का दिशा निर्देशन होता है। विद्या ज्ञान या
शिक्षा बिना जीवन व्यर्थ है और मूल्यहीन शिक्षा भी किसी उपयोग की नहीं होती, अतः
व्यक्ति को मूल्ययुक्त शिक्षा मिलनी चाहिए आर.ए. शर्मा “मूल्य आधारित शिक्षा का सम्बन्ध व्यक्ति के संपूर्ण विकास से होता है इस प्रकार के विकास में जानकारी (ज्ञान) के साथ नैतिक और सौन्दर्यानुभूति गुणों की संवेदनशीलता सम्मिलित होती है।” |
||||||
मुख्य पाठ |
नैतिक व चारित्रिक शिक्षा पर वल देते हुए
स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा कहा था कि-’’शिक्षा
मनुष्य के भीतर निहित पूर्णता का विकास है।’’ वह शिक्षा जो बालक के जीवन
में परिस्थितियों के अनुरूप समायोजन करना नही सिखाती, जो
उनमें नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों का विकास नही कर सकती, जो
उसके मन में परहित भावना और आत्मविश्वास नही पैदा कर सकती, क्या
उसे भी हम शिक्षा कह सकते है ? शिक्षा के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए
स्वामी जी ने कहा था-कि सही मायने में शिक्षा वह है जो मनुष्य का सर्वांगीण विकास
कर सकें तथा उसे एक आदर्श कर्तव्यनिष्ठ, नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों
से परिपूर्ण नागरिक बना सकें ताकि समाज व राष्ट्र सही दिशा में अग्रसर हो सके। शिक्षा की प्रक्रिया युगसापेक्ष होती है। युग की गति और उसके नित्य नए परिवर्तनों के अनुरूप प्रत्येक युग में शिक्षा का अर्थ परिभाषा, उद्देश्य के साथ ही उसका स्वरूप भी परिवर्तित होता रहता है। यही मानव इतिहास की सच्चाई है। वर्तमान परिवेश में जहां एक तरफ बच्चों को महंगे तथा सभी सुविधाओं से युक्त स्कूलों में दाखिला करने की होड़ मची हुई है, तो वहीं दूसरी तरफ अधिक आय वह व्यवसाय का मार्ग प्रशस्त करने वाली कोचिंग क्लासों में भारी भीड़ लगी हुई है। वर्तमान समय में हमारा उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करके रोजगार प्राप्त करने तक सीमित हो गया है। पुरानी शिक्षा प्रणाली की अगर हम बात करें तो यह मनुष्य को सिर्फ पैसा कमाने की मशीनी होड़ की तरफ ढकेल रही है जिसकी वजह से मनुष्य को ना तो समाज व राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का भान है और ना ही प्रकृति से प्रेम।हम विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में आगे तो निकल रहे हैं चन्द्रमा और मंगल जैसें ग्रहों पर पहुँच चुकें हैं और वहाँ जीवन की सम्भावना को तलाशने में लगे हुए है परन्तु पृथ्वी पर जीवनी है तो उसे विनाश कि तरफ ढ़केल रहे है हमारे चारों तरफ प्रदूषण फैल रहा है हमारे हम अपने परंपरागत नैतिक मूल्यों को रूढ़िवादिता का नाम देकर उससे दूर होते जा रहे हैं। इस समय आधुनिकीकरण, नगरीकरण, औद्योगीकरण की चकाचौंध में मूल्य आधारित शिक्षा की बात कहीं दब सी गई है। इस भौतिकवादी युग में मनुष्यता एवं मानवता बहुत पीछे छूट गई है। व्यक्ति की संवेदनाएं दिन प्रतिदिन मरती जा रही है। हमारे आस-पास बहुत सारी भौतिक सुख समृद्धि है किंतु हमारी परंपरा, सभ्यता, संस्कृति, नैतिक मूल्य, एवं आपसी संबंधों की जड़े खोखली होती जा रही है। इस बदलते परिवेश में सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि हम कैसे अपने समाज व राष्ट्र के अस्तित्व को बचाएं तथा अपनी परंपरा, संस्कृति व मूल्यों को कैसे सुरक्षित रखें ।
आज पूरे भारतवर्ष में यह एक ज्वलंत एवं चिंतनीय विषय बन गया है। हमारी परंपराए सभ्यताए संस्कृति व नैतिक मूल्यों का निरंतर विघटन हमारे कार्यों एवं रहन-सहन में स्पष्ट देखा जा सकता है। हमारा समाज व राष्ट्र मूल्यहीन होता जा रहा है। हमारे समाज में लोगों द्वारा जिस प्रकार का आचरण व व्यवहार का प्रकटीकरण किया जा रहा है, इससे ऐसा लग रहा है कि हमारे समाज से हमारी परंपरा, सभ्यता, संस्कृति तथा नैतिक मूल्यों का दिन प्रतिदिन विघटन होता जा रहा है। यही कारण है कि आज हमारे समाज में भौतिक संपन्नता होने के बावजूद भी हमारे समाज व राष्ट्र को अराजकता की स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति हेतु जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, धर्मवाद, संप्रदायवाद, भ्रष्टाचार एवं आतंकवाद जैसे मुद्दों को बढ़ावा मिल रहा है। इस बदलते परिवेश में हमारे नैतिक मूल्य भी
बदल रहे हैं। वर्तमान समय में बच्चें आधुनिकीकरण, नगरीकरण, औद्योगिकरण
और वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि के कारण पुरानी विचारधारा से चिपके रहना नहीं चाहते
हैं। ऐसी स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए ऐसे नैतिक मूल्यों को जोड़ने का असफल प्रयास
नहीं करना चाहिए जो वर्तमान समयानुरूप नहीं रहे। ऐसे दौर में आवश्यकता है कि हम
अपनी परंपरा,
सभ्यता, संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों में समय की
मांग को मद्दे नजर रखते हुए आवश्यक संशोधन करके स्वीकार करना ही समझदारी है। नवीन
ज्ञान-विज्ञान,
तकनीकी शिक्षा तथा परंपरा, सभ्यता, संस्कृति
एवं नैतिक मूल्यों में समन्वय करके शिक्षा को अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं, क्योंकि
विश्व में नित नए आविष्कार हो रहे हैं ऐसे में हमें ऐसी शिक्षा व्यवस्था को अपनाना
होगा जो हमें अपनी परंपरा,
सभ्यता, संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों से जोड़ कर रखे, साथ ही ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान से भी परिपूर्ण करें, तभी
हम इस भौतिकवादी युग में विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकते हैं। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री
माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि वर्तमान समय में
अगर विश्व के सभी देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना है तो अपनी सोच और
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करना होगा। हमारे वर्तमान
प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया की बात करते है तथा तकनीकी ज्ञान को
बढ़ावा देने की बात करते हैं साथ ही इस बात पर भी बल देते हैं कि हम अपनी परंपरा, सभ्यता, संस्कृति एवं
नैतिक मूल्यों से भी जुड़े रहें और यह सब तभी संभव है जब हम समय की मांग को देखते
हुए अपनी सोच व वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आवश्यक संशोधन करें। राष्ट्रीय शिक्षा
नीति 2020 परंपरागत नैतिक मूल्यों के संरक्षण एवं संवर्धन
की पुनर्व्याख्या करती है। इस शिक्षा नीति
में मातृभाषा, विज्ञान, तकनीकी, खेलकूद तथा सभ्यता, संस्कृति, परंपरा के संरक्षण एवं संवर्धन और साथ
ही साथ मूल्य आधारित शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है। यह नीति बालक में संवैधानिक
मूल्यों, कर्तव्यों, सभ्यता एवं संस्कृति से जुड़े रहने के
साथ ही वैश्विक नागरिक की भूमिका एवं कर्तव्य के प्रति जागरूक करने पर बल देती है
ताकि ऐसे नागरिक का निर्माण हो सके जो समाज, राष्ट्र एवं विश्व कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा के साथ शाश्वत एवं सार्वभौमिक नैतिक मूल्यों को
समन्वित कर बच्चों को शिक्षित करने पर बल दिया गया है। इस शिक्षा नीति की सबसे
अच्छी विशेषता ये है कि इसमें बालक के समग्र व्यक्तित्व विकास की परिकल्पना की गई
है। जिससे कुशल, बहुप्रतिभावान और आदर्श नागरिकों का निर्माण हो
सकें साथ ही हमारे समाज व राष्ट्र के बेहतर भविष्य का निर्माण किया जा सकें। यह
शिक्षा नीति अगर सही ढंग से क्रियान्वित हो गई तो हमें और हमारे देश को नई
ऊंचाइयों पर पहुंचाएगी इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि 21वीं सदी में जब भारत विश्व गुरु बनने की ओर तीव्र गति से
अग्रसर है। इस समय यह शिक्षा नीति भारत के लिए मील का पत्थर साबित होगी क्योंकि इस
शिक्षा नीति का उद्देश्य संज्ञानात्मक विकास के साथ-साथ चरित्र निर्माण और 21वीं सदी के मुख्य कौशल से सुसज्जित करना भी है। अब देखना यह
है कि यह शिक्षा नीति भविष्य में कितनी कारगर साबित हो पाती है। मूल्य आधारित शिक्षा के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव- वर्तमान समय में मूल्य के निरंतर गिरावट के कारणों में मुख्य रूप से आधुनिकीकरण, औद्योगिकरण, नगरीकरण, पारिवारिक एवं सामाजिक ढांचे में परिवर्तन, आपसी संबंधों की खोखली होती जड़ें अभिभावकों की अपने बच्चों के प्रति कर्तव्यों की उदासीनता व दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली आदि के साथ ही शिक्षक भी जिम्मेदार है जिनके कंधों पर मूल्यों को गतिमान बनाए रखने का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व है, किंतु शिक्षक अपनी निजी स्वार्थ की पूर्ति में लगे हैं। अतः बच्चों में मूल्य के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है कि शिक्षक अभिभावक व समाज अपने-अपने उत्तरदायित्वों का सही ढंग से निर्वहन करें ताकि बच्चों में उचित मूल्यों का विकास हो सकें। वर्तमान समय में सदाचरण, सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया, शांति, परोपकार, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, उदारता आदि शाश्वत परंपरागत मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा की अत्यंत आवश्यकता है। मूल्य न केवल व्यक्तिगत उत्थान के लिए वल्कि सामाजिक एवं राष्ट्रीय उत्थान एवं शांति के लिए भी बेहद जरूरी है। मूल्य आधारित शिक्षा के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव निम्न है- 1.
छात्रों को उनकी क्षमता के अनुरूप अध्ययन के लिए पूर्ण
स्वतंत्रता दी जाए जिससे छात्र का स्वाभाविक एवं संतुलित रूप से शारीरिक मानसिक
बौद्धिक सामाजिक नैतिक एवं चारित्रिक आदि सर्वांगीण विकास हो सकें। 2.
प्रत्येक छात्र का आदर्श उसका शिक्षक होता है। शिक्षक का
आचरण और व्यवहार आदर्श होना चाहिए ताकि उसका व्यक्तित्व छात्रों के लिए अनुकरणीय
हो। शिक्षक छात्रों का दिशा निर्देशक, मित्र, और
मार्गदर्शन होता है। अतः यह सर्वविदित है कि बालक का सर्वांगीण विकास एक कुशल एवं
प्रतिभावान शिक्षक पर ही निर्भर करता है। 3.
मूल्य आधारित शिक्षा के लिए आवश्यक है कि घर परिवार एवं
विद्यालयों के द्वारा विशिष्ट एवं संगठित होकर प्रयास किया जाए ताकि बच्चे नवीन
ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के साथ ही अपनी परंपरा एवं संस्कृति से भी जुड़े
रहें। 4.
वर्तमान समय में हमारी पुरानी परंपरा, सभ्यता, संस्कृति, नैतिक
मूल्यों में भी समय के साथ परिवर्तन की आवश्यकता है। अतः परंपरागत नैतिक मूल्यों
में परिवर्तन करके और नवीन ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के साथ समन्वित करके
शिक्षा को अधिक प्रभावशाली बनाया जाय। 5.
शिक्षा केवल नौकरी व भौतिक उपलब्धियां प्राप्त करने का साधन
नहीं बल्कि छात्रों का बौद्धिक, मानसिक, सामाजिक आदि यहां तक
की सर्वांगीण विकास करने का सशक्त माध्यम होना चाहिए ताकि एक कुशल, जिम्मेदार, कर्तव्यनिष्ठ
एवं ईमानदार नागरिक का निर्माण हो सकें। 6.
प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में
मूल्य आधारित शिक्षा अनिवार्य कर दिया जाए एवं ऐसे पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाए
जो छात्रों में आत्मविश्वास, नई चेतना, नई उमंगे, एवं
नई जोश को जागृत करते हुए हमारी परंपरा, सभ्यता, संस्कृति
और नैतिक मूल्य से भी जोड़ें तथा उनमें सर्वधर्म समभाव की भावना का विकास कर सकें। |
||||||
निष्कर्ष |
अंत में निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते
हैं कि वर्तमान समय में मूल्य आधारित शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि
वर्तमान में नैतिक मूल्यों का विघटन तेजी से हो रहा है ऐसे में एक ही उम्मीद की
किरण नजर आ रही है वह है मूल्य आधारित शिक्षा। आवश्यकता है मूल्य आधारित शिक्षा
द्वारा बच्चों को अपनी अनमोल सभ्यता, संस्कृति, परंपरा
व नैतिक मूल्यों से जोड़ने व उससे परिचित करवाने की क्योंकि अपनी सभ्यता, संस्कृति, परंपरा
और नैतिक मूल्यों से जुड़कर ही एक बेहतर समाज व राष्ट्र का निर्माण हो सकता है
किंतु अपनी परंपरा,
सभ्यता व संस्कृति से जुड़ने के साथ ही नवीन ज्ञान-विज्ञान व
तकनीकी शिक्षा भी बेहद जरूरी है तभी हम और हमारा समाज व राष्ट्र विकास के पथ पर
अग्रसर हो सकते हैं। अतः समय की मांग को देखते हुए यह आवश्यक है कि परंपरागत
शिक्षा के साथ नवीन ज्ञान विज्ञान व तकनीकी शिक्षा को समन्वित किया जाए ताकि हम
विश्व के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय
श्री नरेंद्र मोदी जी ने एक बार अपने संबोधन में कहा था कि-हमारे छात्र ग्लोबल
सिटिजन तो बने साथ ही अपनी जड़ों से भी जुड़े रहे। जड़ से जग तक, मनुष्य
से मानवता तक,
अतीत से आधुनिकता तक का सफर जड़ों से जुड़कर करें तभी सशक्त
एवं आत्मनिर्भर भारत का निर्माण होगा। उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का स्वरूप तय किया गया है। अब देखना यह है कि भविष्य में यह शिक्षा नीति
कितनी कारगर साबित होती है। |
||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1 शर्मा आर.ए., मानव मूल्य एवं शिक्षा,
आर. लाल बुक डिपो 2008 |