ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- VII October  - 2023
Anthology The Research

जिला बैतूल में कृषि फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तकनीक व प्राकृतिक कारकों की प्रभावशीलता का अध्ययन

Study of Effectiveness of Technology and Natural factors on Production and Productivity of Agricultural Crops in District Betul
Paper Id :  18214   Submission Date :  2023-10-11   Acceptance Date :  2023-10-19   Publication Date :  2023-10-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
DOI:10.5281/zenodo.10101433
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सविता चौहान
शोधार्थी
अर्थशास्त्र विभाग
उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान
भोपाल,म.प्र., भारत
महिपाल सिंह यादव
प्रोफेसर
अर्थशास्त्र विभाग
उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान
भोपाल, म.प्र., भारत
सारांश

प्रस्तुत शोध पत्र में जिला बैतूल की प्रमुख कृषि फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तकनीकी व प्राकृतिक कारकों जैसे - खाद, बीज, तापमान, वर्षा तथा जलवायु के प्रभाव का अध्ययन किया गया हैं। समय काल वर्ष 2005-06 से 2019-20 तक के संमकों को संकलित कर शोध पत्र का विश्लेषण किया गया हैं। उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तकनीकी कारकों के अलावा प्राकृतिक कारकों का भी प्रभाव होता है। इन कारकों के आंकलन में प्रतीपगमन सांख्यिकी विधि का प्रयोग किया गया है। तकनीकी व प्राकृतिक कारक कृषि फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता को सकारात्मक एवम् नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।  

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the presented research paper, the effect of technical and natural factors like fertilizer, seeds, temperature, rainfall and climate on the production and productivity of major agricultural crops of district Betul has been studied. The research paper has been analyzed by compiling data from the time period 2005-06 to 2019-20. Apart from technical factors, natural factors also have an impact on production and productivity. Regression statistical method has been used to assess these factors. Technological and natural factors positively and negatively affect the production and productivity of agricultural crops.
मुख्य शब्द जिला बैतूल, कृषि फसल, उत्पादन, उत्पादकता, तकनीक, प्राकृतिक प्रभावशीलता।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद District Betul, Agricultural Crops, Production, Productivity, Technology, Natural Effectiveness.
प्रस्तावना

कृषि भारतीय अर्थव्यस्था के विकास का आधार ही नहीं बल्कि यह मानव के विकास के साथ-साथ औद्योगिक विकास का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता को बढ़ाने की दिशा में सरकार के प्रयास स्वतंत्रता के पूर्व तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् से ही रहा है। परन्तु यह क्षेत्र पूरी तरह प्रकृति पर आधारित होने के कारण कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता में वृद्धि के स्तर में परिवर्तन होता रहता है। कृषि के विकास पर भारत सरकार व मध्यप्रदेश सरकार के द्वारा अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं पर बल दिया गया। साथ ही मध्यप्रदेश सरकार के द्वारा कृषक कल्याण हेतु किसानों की आय को दो गुनी करने का रोडमैप तैयार किया गया भूमि सुधार, चकबन्दी, सिंचाई, विद्युत, आवागमन, कृषि साख की दिशा में कदम उठाए गए हैं इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य, भावान्तर, फसल बीमा योजना, किसान सम्मान निधि इत्यादि कई योजनाबद्ध प्रयास किये गये परन्तु फिर भी कृषि से जुड़ी कई चुनौतियां हैं आधुनिक तकनीक के विकास के सम्बन्ध में सरकार के द्वारा किए गए योजनाबद्ध प्रयास के पश्चात् भी कृषि की पिछड़ी अवस्था हैं।

कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हेतु तकनीकी साधनों का सही मात्रा व सन्तुलित प्रयोग आवश्यक है। कृषि भूमि के कम रकबे में अधिक उत्पादन की रणनीति पर बल दिया जाए। यह तब सम्भव होता है जब प्राकृतिक संसाधनों का तर्कसंगत प्रयोग किया जाए और प्राकृतिक संसाधन जैसे तापमान, वर्षा जलवायु आदि सभी अनुकूल हो तभी कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता पर अच्छा प्रभाव पड़ता हैं। पर्यावरण सुरक्षा, संसाधनों का संरक्षण आदि सभी कारक कृषि उत्पादन को प्रभावित करते हैं।

बैतूल एक कृषि पर आधारित क्षेत्र हैं कार्यशील जनसंख्या का लगभग आधे से अधिक प्रतिशत भाग कृषि कार्य में संलग्न हैं। सन् 2018-19 के जिन्स के आधार पर कार्यशील भूमि का 48 प्रतिशत भू-भाग सिंचित हैं जो कि 50 प्रतिशत से कम भाग सिंचित होने के कारण कृषि भूमि का अधिकांश प्रतिशत भाग पड़ती तथा बंजर हैं। चालु पड़ती भूमि का क्षेत्र 0.211 लाख हे. तथा निरा फसलीय भूमि का क्षेत्र 4.203 लाख हे. हैं। इस प्रकार खरीफ तथा रबी फसलों का क्षेत्रफल 6.119 लाख हे. हैं। अतः इस क्षेत्र के विकास हेतु प्रत्यक्ष रूप से जाँच किया जाना आवश्यक हैं ताकि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता के कारकों के पिछड़े होने के कारकों की जानकारी के साथ उसमें सुधार किया जा सके।

अध्ययन का उद्देश्य

1. जिला बैतूल में कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता का विवरण एवम् अध्ययन करना।

2. कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तकनीकी कारकों की प्रभावशीलता का आंकलन ।  

3. जिला बैतूल में कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता पर प्राकृतिक कारकों के प्रभावशीलता का अध्ययन करना। 

साहित्यावलोकन

प्रस्तुत साहित्य सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र के उत्पादन एवम् उत्पादकता का विश्लेषण करते हुए तकनीकी एवम् प्राकृतिक कारकों के प्रभावशीलता का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया हैं। जिसमें विभिन्न अर्थशास्त्रियों के कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तकनीकी एवम् प्राकृतिक कारकों के प्रभाव से सम्बन्धित विचारों को सम्मिलित किया गया हैं साहित्य सर्वेक्षण में जिला बैतूल के विषय शोध का अभाव हैं, साथ ही सूक्ष्म स्तर पर शोध कार्य नगण्य हैं। अतः प्रस्तुत शोध अध्ययन में शिक्षाविदों द्वारा पूर्व में किए गये शोध कार्यो के आधार पर इस साहित्य सर्वेक्षण में कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तकनीकी एवम् प्राकृतिक कारकों के प्रभाव को लेकर जिज्ञासा विकसित हुई हैं। साहित्य सर्वेक्षण निम्नानुसार हैं-

R.P Christensen (1964)  The Role of Agricultural Productivity in Economic Development ने अपने अध्ययन में कृषि उत्पादकता का महत्व और आर्थिक विकास का अध्ययन राष्ट्रीय स्तर पर किया तथा कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए प्राकृतिक कारकों पर विचार किया है। इस क्षेत्र के विकास हेतु उन्नत तकनीकों, भूमि, पूंजी, श्रम के अतिरिक्त साधनों पर ध्यान केन्द्रित किया गया तथा कृषि उत्पादकता के विकास के योगदान के लिए तीन महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार किया। 

Singh (2004), ‘Agriculture Productivity Trends in Uttar Pradesh A Disgnostic Study’ ने अपनी पुस्तक में कृषि फसलों की उत्पादकता का अध्ययन किया है और पाया कि कृषि फसलों में सिंचाई उचित मात्रा में न की जाये तो अधिक उत्पादन देने वाले उन्नत किस्म के बीज, अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग, कीटनाशक दवाओं का प्रयोग तथा खाद आदि का प्रयोग करने पर भी आशा के अनुरूप परिणाम प्राप्त नहीं हो सकते हैं।

Bhushan Surya (2005)  Total Factor Productivity Growth of Wheat in India : A Malmquist Approach  ने अपने शोध अध्ययन में गेहूं के उत्पादकता में वृद्धि का विश्लेषण करने के लिए प्रचालिक व अप्रचालिक सांख्यिकी आंकड़ों को लेकर सम्पूर्ण भारत पर अध्ययन किया है। इस विश्लेषण में गेहूं की उत्पादकता में वृद्धि के लिए उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग, सिंचाई के साधनों पर उचित मात्रा में उपयोग, खरपतवार, कीटनाशक दवाओं का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग, कृषि यंत्रों एवम् आधुनिक तकनीकों के प्रयोग पर बल दिया तथा इस विश्लेषण में परम्परागत साधनों के स्थान पर तीव्र विकास के लिए कृषि रसायनों एवम् मशीनरी के प्रयोग पर जोर दिया गया। 

Surabhi Mittal, Praduman Kumar (2006)  Agricultural Productivity Trends in India : Sustainability Issues ने अपने अध्ययन में कृषि उत्पादकता की स्थिरता कृषि फसलों के रूझान एवम् कृषि मुद्दे पर 1980-1990 के लिए आंकड़ों को लेकर सम्पूर्ण भारत पर अध्ययन किया। कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने अध्ययन में अच्छे किस्म के बीजों, रासायनिक उर्वरकों, नयी तकनीक, खाद, सिंचाई के साधनों पर विशेष जोर दिया है एवम् सरकारी निवेश इन्फ्रास्ट्रक्चर, रूलर इन्फ्रास्ट्रक्चर कृषि नीतियां, आधुनिक तकनीकों, कृषि यंत्रों को भी कृषि उत्पादकता में वृद्धि के लिए आवश्यक माना। उन्होंने अपने अध्ययन में कृषि के विकास के आगत एवम् निर्गत साधनों पर भी विशेष बल दिया है।

Kumudha D. (2012) Agricultural Development in India- An Overview ने अपने अध्ययन में कृषि के विकास और सुधार पर अध्ययन सम्पूर्ण भारत पर किया तथा इस अवलोकन में उन्होंने गेहूं, मक्का तथा चावल फसलों के उत्पादन पर बल दिया गया। इस विश्लेषण में यह स्पष्ट किया गया कि 1960 से 1980 के बीच के दौर में मक्का, गेहूं तथा चावल के उत्पादन में व्यापक स्तर पर सुधार एवम् विकास करने पर जोर दिया गया। भारत में कृषि क्षेत्र के विकास पर बल देते हुए उन्होंने गरीबी, भूखमरी तथा बढ़ रही जनसंख्या जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किया है।

Mazumdar Lavlu (2012) "Agriculture Productivity and Food Security in the Developing World" ने अपने अध्ययन में खाद्य सुरक्षा के महत्व चुनौतियों और खाद्य सुरक्षा के विकास का अध्ययन सम्पूर्ण भारत पर किया है। इसमें गरीबी और ग्रामीण गरीबी के मुद्दे के विकास पर बल दिया है। इस शोध अध्ययन में सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक समस्याओं के उत्थान पर प्रकाश डाला गया है और सामाजिक मूल्य और खाद्य सुरक्षा जैसे तत्वों का अध्ययन किया गया है और खाद्य सुरक्षा के दो स्तरीय पद्धतियों की खोज की है। गरीबी देश में होने वाली भोजन की कमी तथा कुपोषण जैसी गम्भीर समस्याओं पर विचार है। कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हेतु सिंचाई साधनों के रूप में नहर, तालाब, कुंआ और ट्यूबवेल आदि स्रोत का होना आवश्यक है। 

Khajuria Sojia, Sakshi (2015)  Agricultural Productivity in India : Trends, Challenges and Suggestions ने अपने अध्ययन में कृषि फसलों के रूझान एवम् कृषि उत्पादकता की चुनौतियों, सुझाव का अध्ययन सम्पूर्ण भारत पर किया है। इस अध्ययन में कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता की प्रवृत्तियों का अध्ययन द्वितीयक स्रोतों से समंकों का संग्रहण कर सम्पूर्ण भारत पर किया तथा इसमें कृषि नीति, किसान कल्याण कार्यक्रम, सिंचाई सुविधाओं के लिए कुंआ आदि महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार किया गया है। इस अध्ययन में प्राथमिक एवम् द्वितीयक दोनों क्षेत्रों के विकास पर प्रकाश डाला गया है एवम् कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत सब्जी, फलों, चीनी, कपास तथा जूट की खेती करने पर विचार किया गया।

Suresh A. (2015) Efficiency of Agricultural Production in India : An analysis using Non Paramentric Approach ने अपने अध्ययन में भारत में Non - Parametric टेस्ट का उपयोग करते हुए कृषि उत्पादन की दक्षता पर अध्ययन सम्पूर्ण भारत पर किया। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि भारत के विभिन्न राज्यों में कृषि के क्षेत्र में जो भारी भिन्नता है, उसका प्रमुख कारण कृषि सम्बन्धी तकनीकी शिक्षा, सिंचाई साधनों का अभाव, रासायनिक उर्वरकों, उन्नत किस्म के बीजों का अभाव होना है। इस अध्ययन में खाद्यान्नों के सुरक्षा और पोषण स्तर में सुधार के लिए दो महत्वपूर्ण रणनीतियों पर विशेष बल दिया गया है। इस प्रकार इस अध्ययन में Faster Technology & While Technology से कार्य शुरू करने की स्थापना पर बल दिया गया है।

Narayan and Bansi Patel (2015) An Economic Analysis of Trends in Agriculture Growth and Production in Gujarat ने अपने अध्ययन में कृषि विकास और कृषि उत्पादन का विश्लेषण भारत के गुजरात राज्य पर किया तथा इस विश्लेषण में बेरोजगारी, जनसंख्या जैसे मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित किया और वर्ष 2001-2002 से 2011-12 के लिए द्वितीयक स्रोतों से समंकों को संकलित कर कृषि क्षेत्र के विकास हेतु गेहूं, कपास, फल और दूध के उत्पादन पर बल दिया तथा इस अध्ययन में कृषि फसलों की विविधता पर भी प्रकाश डाला गया और गरीबी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किया।

Kumar Ajay (2018)  Agricultural growth and Productivity in India ने अपने अध्ययन में उल्लेख किया कि आजादी के बाद के कृषि विकास और कृषि उत्पादकता की प्रवृत्तियों पर विचार किया है। इस अध्ययन में कृषि विकास के लिए पूंजी, श्रम आदि साधनों पर विशेष बल दिया है। कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए कृषि रणनीतियों और विविध प्रकार के कृषि फसलों यानि उन्नत किस्म के बीजों को अपनाने पर जोर दिया। कृषि विकास के लिए निवेश पूंजी, जनसंख्या, मजदूर आदि को शामिल किया। 

परिकल्पना H₀; कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तकनीक व प्राकृतिक कारकों का धनात्मक प्रभाव होता हैं।
H₁; कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तकनीक व प्राकृतिक कारकों का धनात्मक प्रभाव नहीं होता हैं।
अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी

Y = α+βxβx₂+U

Y = उत्पादन एवम् उत्पादकता (आश्रित चर)

α = स्थिर गुणांक

β = स्थिर गुणांक

X = तकनीकी कारक (स्वतंत्र चर)

Xप्राकृतिक कारक (स्वतंत्र चर)

U = त्रुटि प्रमाप (सम्भावय त्रुटि)

विश्लेषण

जिला बैतूल में कृषि फसलों के कुल उत्पादन एवम् उत्पादकता का विश्लेषण:

कृषीय फसलों के कुल उत्पादन एवम् उत्पादकता को तालिका 1 में उल्लेखित किया गया है।

तालिका - 1 कृषीय फसलों का कुल उत्पादन एवम् उत्पादकता का विवरण  

फसल

(वर्ष)

खाद्यान्न फसल

दलहन फसल

तिलहन फसल

व्यापारिक फसल

2005

336.6
(5573)

66.3
(3900)

193.8
(3881)

216.6
(7481)

2006

356.5
(5725)

75.7
(4330)

216.6
(4210)

239.0
(8100)

2007

326.1
(5363)

42.6
(2711)

221.8
(4248)

245.0
(7232)

2008

341.9
(5601)

48.4
(2922)

235.7
(4386)

253.6
(7179)

2009

357.9
(5450)

53.4
(2976)

243.3
(4710)

262.4
(7425)

2010

341.2
(5850)

41.9
(2202)

266.9
(4631)

6308.2
(6557)

2011

390.4
(6525)

73.6
(3467)

276.4
(5227)

291.8
(7300)

2012

486.6
(7907)

73.0
(3995)

299.4
(5332)

334.6
(8723)

2013

411.3
(6428)

47.7
(2965)

145.0
(3953)

192.5
(7157)

2014

506.8
(7596)

48.2
(3058)

158.2
(3474)

229.5
(7670)

2015

583.9
(9663)

57.1
(3642)

49.5
(3370)

126.5
(7776)

2016

681.2
(9708)

77.1
(4329)

312.6
(5343)

390.7
(10032)

2017

707.7
(10586)

99.6
(5225)

128.4
(4159)

199.1
(8884)

2018

650.3
(9788)

68.4
(3949)

193.5
(4785)

262.7
(9510)

2019

1297.5
(10419)

90.41
(4040)

129.8
(4233)

238.2
(9153)

2020

1398.2
(10880)

110.3
(4810)

99.2
(4300)

211.7
(9370)

स्रोत: जिला सांख्यिकी पुस्तिका कृषि विकास बैतूल 2005-06, 2011-12 2019-20

नोट:1 कोष्ठक में दिए गये संमक उत्पादकता से सम्बन्धित है, जो किलो प्रति हे. में है।

2 उत्पादन से सम्बन्धित संमक हजार मिट्रिक टन में है।

जिला बैतूल में खाद्यान्न फसलों का कुल उत्पादन वर्ष 2005 में 336.67 हजार मीट्रिक टन था जो बढ़़कर वर्ष 2020 में 1398.25 हजार मीट्रिक टन हो गया। इसी तरह कुल उत्पादकता वर्ष 2005 में 5573 किलो प्रति हे. था जो बढ़कर वर्ष 2020 में 10880 किलो प्रति हे. हो गया। दलहन फसल का उत्पादन वर्ष 2005 में 66.3 हजार मीट्रिक टन था जो बढ़कर 2020 में 110.3 हजार मीट्रिक टन हो गया इसी प्रकार तिलहन तथा व्यापारिक फसलों का कुल उत्पादन वर्ष 2005 में 193.8, 216.6 हजार मीट्रिक टन था जो घटकर 2020 में 99.2 211.7 हजार मीट्रिक टन हो गया। जिसका मुख्य कारण सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य एवम् भावान्तर नीतियाँ रही है।   

रासायनिक उर्वरक:- कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हेतु रासायनिक उर्वरकों या खाद एक महत्वपूर्ण आगत है। जिला बैतूल के भौगोलिक क्षेत्र में मौजूद विभिन्न प्रकार की कृषि योग्य भूमि में नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की कमी पायी जाती है। जिसे पूरा करने हेतु रासायनिक उर्वरकों के रूप में यूरिया, डीएपी, सुफरफॉस्फेट, जिंक, पोटाश, एनपीके (12:32:16), तथा जैविक खाद के रूप में गोबर खाद, बायोमास संयत्र आदि खाद का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न अर्थशास्त्रियों व शिक्षाविदों के द्वारा किये शोध अध्ययन में यह पाया गया कि पिछले कई वर्षो से कृषि उत्पादन को बढ़ाने में जैविक खाद उपयोगी है। तथा इसके अन्तर्गत रासायनिक उर्वरकों से उत्पन्न होने वाले दोष नहीं है। जिला बैतूल में रासायनिक उर्वरकों के प्रभाव को तालिका 2 के द्वारा व्याख्या की गई हैं।

तालिका - 2 रासायनिक उर्वरकों के वितरण का विश्लेषण (मिट्रिक टन मे)

उर्वरक

वर्ष

यूरिया

सुपर फॉस्फेट

डीएपी

पोटाश

एनपीके 12:32:16

अन्य

योग

2005

21730

7464

7932

1569

1914

351

40960

2006

25025

6593

11027

1.811

1321

233

46010

2007

30908

4905

7387

1.228

4638

364

49430

2008

26138

3951

9786

1.677

1526

1282

44360

2009

36107

8640

17849

2428

486

1031

66541

2010

46486

13855

19594

2762

313

1039

84049

2011

42133

14702

14130

1416

89

4982

77452

2012

47766

17301

21302

1747

499

2142

90757

2013

48889

17383

24267

2083

75

1173

93870

2014

47162

14866

20618

2077

0

757

85480

2015

53910

14029

21767

2562

50

1133

93451

स्रोत; जिला सांख्यिकी पुस्तिका कृषि विकास बैतूल 2005-06, 2011-12 2014-15

जिला बैतूल में रासायनिक उर्वरकों व जैविक खाद के प्रयोग में क्रमशः वृद्धि होती जा रही है अध्ययन में पाया गया है कि जिला बैतूल में अध्ययन काल में यूरिया का प्रयोग दुगना से अधिक हुआ है इसी तरह डीएपी एवम् पोटास का प्रयोग भी दुगना से अधिक रहा है इसका तात्पर्य यह हैं कि जिला बैतूल का कृषक अपनी फसलों के उत्पादन में वृद्धि करने में अत्यधिक जागरूक एवम् उत्सुक हैं इसलिए पन्द्रह वर्षों के रासायनिक उर्वरकों की खपत में जिला बैतूल में दो से तीन गुना की वृद्धि जो कि खाद्यान्न, दलहन, तिलहन एवम् व्यापारिक फसलों के उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव डालेगी।

कृषिय फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता पर रासायनिक उर्वरकों के प्रभाव का आंकलन:

कृषि फसलों के उत्पादन पर रासायनिक उर्वरकों की प्रभावशीलता का आंकलन तालिका 3 में आंकलन किया गया है।                         

तालिका - 3 कृषि फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर रासायनिक उर्वरकों की प्रभाव का आकलन

प्रतीपगमन समीकरण के चर  

फसल

α

β(x)

t

खाद्यान्न

200.6

(3352.1)

0.002

(0.045)

3.14*

(3.21*)

62

(89)

दलहन

61.7

(3637.2)

-6.62

(-0.004)

3.15*

(0.44)

31

(65)

तिलहन

266.3

(4282.6)

-0.004

(0.002)

0.74

(0.04)

73

(71)

व्यापारिक

- 481.3

(7328.6)

0.018

(0.002)

0.6

(0.25)

86

(92)

नोट:-1: कोष्ठक में दिए गये संमक उत्पादकता से सम्बन्धित है। 2R² का मान प्रतिशत में हैं।

जिला बैतूल में कृषि फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर रासायनिक उर्वरकों के प्रभाव का आंकलन प्रतीपगमन सांख्यिकी विधि से किया गया है। सांख्यिकी की प्रतीपगमन विश्लेषण में उत्पादन एवम् उत्पादकता को परतन्त्र चर एवम् विभिन्न रासायनिक उर्वरकों के योग को स्वतन्त्र चर के रूप में लिया गया हैं जिसमें खाद्यान्न फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर रासायनिक उर्वरकों के प्रभाव का आकलन करने पर यह पाया गया कि का मान 60 प्रतिशत से भी अधिक है जो कि रासायनिक उर्वरकों का खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करते है परन्तु दलहन फसलों के उत्पादन पर ऋणात्मक प्रभाव को व्यक्त करते है। इसी तरह तिलहन तथा व्यापारिक फसलों के का मान 70 प्रतिशत से भी अधिक है जो कि धनात्मक सार्थकता स्तर को व्यक्त करते है। जिसकी सार्थकता 1% 5% पर आंकलित की गई है।

तापमान का फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर प्रभाव

प्रस्तुत शोध अध्ययन में तापमान कारकों का जिला बैतूल की विभिन्न फसलों पर उसके प्रभाव का अध्ययन वर्ष 2005-2017 की समयावधि में किया गया है। तापमान की दृष्टि से देखा जाये तो यह एक समशीतोष्ण जलवायु वाला क्षेत्र है। यहां का उत्तरी भाग अधिक समतल तथा बाकी के भाग पहाड़ी और पठारी है। जिला सांख्यिकी आँकड़ों के अनुसार यह एक सम नम व स्वास्थ्य वर्धक जलवायु वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र का न्यूनतम तापमान 3o सेन्टीग्रेट तथा अधिकतम तापमान 43o सेन्टीग्रेट के मध्य रहता है, मई को अत्यधिक तापमान का महीना माना गया है। इस प्रकार विगत 20 वर्षो में जिला बैतूल में न्युनतम, अधिकतम तथा औसत तापमान में भारी अन्तराल व परिवर्तन होने के कारण कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता में भी अन्तराल की स्थिति बनी हुई है। अध्ययन क्षेत्र में विगत वर्षो में तापमान की स्थिति का विवरण तालिका- द्वारा उल्लेखित किया गया है

तालिका - 4 जिला बैतूल में वर्षवार औसत तापमान का विवरण (सेन्टीग्रेड में)

वर्ष         

न्यूनतम

अधिकतम

योग

2005

N.A.

37.0

37.0

2006

N.A.

38.8

38.8

2007

18.7

43.4

62.1

2008

24.0

43.2

67.2

2009

32.4

44.3

76.7

2010

25.2

44.5

69.7

2011

21.8

43.2

65

2012

24.6

43.3

67.9

2013

22.2

41.6

63.8

2014

26.5

42.9

69.4

2015

24.2

42.4

66.6

2016

24.3

41.8

66.1

2017

23.4

43.4

66.8

स्रोत: आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय, मध्यप्रदेश, भोपाल

जिला बैतूल में वर्ष 2005-06 में अधिकतम तापमान 37.0 डिग्री सेन्टीग्रेट था जो बढ़कर वर्ष 2017 में 43.4 डिग्री सेन्टीग्रेट हो गया। इसी प्रकार न्यूनतम तापमान वर्ष 2007 में 18.7 डिग्री सेन्टीग्रेट था जो बढ़कर वर्ष 2017 में 23.4 डिग्री सेन्टीग्रेट हो गया और विगत वर्षो के तापमान में अन्तराल की स्थिति का खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण प्रतीपगमन सांख्यिकी विधि के द्वारा किया गया है।

एक डिग्री सेंटीग्रट तापमान बढ़ जाने पर खाद्य फसलों के उत्पादन में 3-4 करोड़ टन अनाज की कमी हो सकती है। गेहूं उत्पादन के प्रारंभिक अवस्था में लगभग 10-15तापमान का होना आवश्यक है। यह फसल बैतूल क्षेत्र में पाले की समस्या से अधिक प्रभावित होती है। यदि 2 से 3 माह तक कोहरा (पाला) की समस्या उत्पन्न नहीं होती है तो गेहूं व अन्य खाद्य फसलों के उत्पादन पर अधिक अच्छा प्रभाव पड़ता है।

कृषिय फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तापमान के प्रभाव का विवरण:-

अध्ययन क्षेत्र में खाद्यान्न, दलहन, तिलहन एवम् व्यापारिक फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तापमान के प्रभाव को तालिका- 5 में आंकलन किया गया है।

तालिका - 5 कृषीय फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तापमान की प्रभावशीलता

प्रतीपगमन समीकरण के चर  

फसल

α

β(x)

t

खाद्यान्न

119.3

(4232.5)

1.773

(45.22)

1.044

(0.983)

68

(85)

दलहन

84.7

(5043.0)

- 0.36

(-24.27)

0.836

(1.206)

17

(81)

तिलहन

179.7

(3518.4)

0.503

(13.68)

0.258

(0.83)

78

(65)

व्यापारिक

-951.4

(7862.6)

26.507

(- 0.85)

0.671

(0.035)

72

(96)

नोट:1: कोष्टक में दिये गये समंक उत्पादकता से सम्बन्धित है। 2: R² का मान प्रतिशत में हैं।

3: सांख्यिकी विश्लेषण में उत्पादन एवम् उत्पादकता परतन्त्र एवम् तापमान को स्वतंत्र चर लिया हैं।    

जिला बैतूल में कृषिय फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तापमान के प्रभाव का आकलन प्रतीपगमन सांख्यिकी विधि द्वारा आंकलन किया गया है। खाद्यान्न फसलों के अन्तर्गत मुख्यतः गेहूँ, चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, कोदो कुटकी के का मान कृमशः 60 प्रतिशत से अधिक है जो कि तापमान की खाद्यान्न फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करते है। जिसकी सार्थकता 1% व 5% पर आकलित की गयी है,

दलहन फसलों के उत्पादन पर तापमान का प्रभाव ऋणात्मक है क्योंकि का मान कम है इस प्रकार दलहन फसलों के उत्पादन में कमी का प्रमुख कारण तापमान का बदलता स्वरूप, जलवायु परिवर्तन, व मौसम का अनिश्चित होना है। β(x₁) का मान ऋणात्मक होने के कारण यह कहा जा सकता की तापमान की अनिश्चितता दलहन फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता को प्रभावित करती है।

इसी तरह तिलहन फसल के रूप में सोयाबीन, मूंगफली, सरसों, अलसी, सूरजमूखी, रामतिल, तिल, इत्यादि फसलों का उत्पादन किया जाता है। तिलहन फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तापमान स्वतंत्र चर का मान अधिक है स्वतंत्र चर का मान 60 70 प्रतिशत से अधिक होने के कारण यह तिलहन फसलों के उत्पादन व उत्पादकता पर धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करती है। तापमान का उतार चढ़ाव किसी न रूप में फसलों के उत्पादन को प्रभावित करती है। अतः अन्तर सार्थक है।

व्यापारिक फसलों के अन्तर्गत जिला बैतूल में सर्वाधिक मात्रा में गन्ना, सोयाबीन, मूंगफली, आदि फसलों का उत्पादन किया जाता है। जिसके उत्पादन हेतु एक पृथक वातावरण का होना आवश्यक है। 200 दिन तक पाला व ओला रहित मौसम, स्वच्छ आकाश, स्वच्छ पर्यावरण, तेज व चमकदार धूप, और धीमी वायु का होना आवश्यक है। परन्तु का मान अत्यधिक होने के कारण यह विश्लेषित किया जा सकता है कि व्यापारिक फसलों पर तापमान का ऋणात्मक प्रभाव है जिसका तात्पर्य यह हुआ कि तापमान में वृद्धि होने पर फसलों के उत्पादन पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है।

व्यापारिक फसलों की उत्पादकता पर तापमान स्वतंत्र चर का मान 96 प्रतिशत है जो कि व्यापारिक फसलों की उत्पादकता पर धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करता है। अतः अन्तर सार्थक है। जिसका तात्पर्य यह है कि तापमान का व्यापारिक फसलों की उत्पादकता और सम्पूर्ण बैतूल जिला में प्रभाव करता हैं।

कृषि क्षेत्र के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर वर्षा के प्रभाव का विश्लेषण:

बैतूल क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत फसलीय क्षेत्र पूर्णतया वर्षा पर निर्भर है। यहां वर्षा अनिश्चित व अनियमित रहती है। वर्षा एक प्राकृतिक घटक है। इसका कोई समय निश्चित नहीं होता है। जिसका कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता पर अनुकूल एवम् प्रतिकूल दोनों प्रकार का प्रभाव पड़ता है। कभी अधिक वर्षा होने के कारण बाढ़ आती है, तो कभी कम वर्षा के कारण फसल सूख जाती है, तो कभी पाला, ओलावृष्टि की स्थिति उत्पन्न होती है। इसी कारण कृषि क्षेत्र को मानसून का जुआ कहा जाता है। क्योंकि यह क्षेत्र पूरी तरह मानसून पर निर्भर है। जिसके कारण बैतूल क्षेत्र में विगत वर्षो में कृषि के क्षेत्र में विभिन्न फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता के स्तर में उतार-चढ़ाव की स्थिति देखने को मिलती है। प्रस्तुत अध्याय में विगत वर्षो में वर्षा की स्थिति का विवरण तालिका - 6 द्वारा उल्लेखित  किया गया है।

तालिका 6 जिला बैतूल में वर्षवार वर्षा का विवरण

वर्ष

न्यूनतम वर्षा (मि.मि.)

औसत वार्षिक वर्षा (मि.मि.)

2005

814.2

1035.40

2006

1042.8

1221.00

2007

1523.9

1273.80

2008

938.1

884.50

2009

1069.5

976.60

2010

1145.8

989.09

2011

866.5

762.19

2012

1452.2

1658.12

2013

1848.1

1864.40

2014

1054.6

1270.15

2015

935.5

962.79

2016

998.8

1152.78

2017

760.2

6406.5

2018

515.4

616.0

2019

1218.0

1204.1

2020

962.6

13775.7

स्त्रोत: अधीक्षक भू-अभिलेख, बैतूल

जिला बैतूल में वर्षा का व्यवहार एवम् प्रकृति अनियमित एवम् अनिश्चित हैं औसत वार्षिक वर्षा का एक समान प्रवृत्ति नहीं दिखायी दे रही है इसमें अत्यधिक मात्रा में उच्चावचन हैं औसत वर्षा का विवरण वर्ष 2005 से 2020 के मध्य किया गया जिसमें पाया गया हैं औसत वर्षा वर्ष 2005 से वर्ष 2007 तक में वृद्धि हो रही हैं तथा 2008 में गिरावट अंकित की गई परन्तु 2009 एवम् 2010 में औसत वर्षा में वृद्धि के संकेत मिल रहे परन्तु अध्ययन काल के प्रारंभिक वर्षो से कम हैं। वर्ष 2018 में सबसे कम औसत वर्षा रही तथा 2020 में सबसे अधिक औसत वर्षा रही। वर्षा की अनिश्चितता का प्रभाव बैतूल क्षेत्र की विभिन्न तहसीलों में बोयी जाने वाली विभिन्न फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता का आकलन प्रतीपगमन विश्लेषण के माध्यम से किया गया है।     

कृषिय फसलों के उत्पादन पर न्यूनतम वर्षा के प्रभावशीलता का विवरण ː

प्रस्तुत अध्ययन में जिला बैतूल की कृषिय फसलों के उत्पादन पर न्यूनतम वर्षा के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। जिसके आधार पर विगत वर्षो में खाद्यान्न, दलहन, तिलहन एवम् व्यापारिक फसलों के उत्पादन पर न्यूनतम वर्षा के प्रभाव को तालिका- 7 के द्वारा प्रदर्शित किया गया है।

तालिका 7 कृषिय फसलों के उत्पादन पर न्यूनतम वर्षा का प्रभावशीलता

प्रतीपगमन समीकरण के चर  

फसल

α

β(x)

t

खाद्यान्न

731.6

(10039.3)

-0.147

(-2.191)

0.542

(1.311)

37

(78)

दलहन

91.2

(4795.8)

-0.023

(-1.062)

1.53

(1.724)

19

(76)

तिलहन

177.3

(4486.0)

0.019

(-0.089)

0.306

(0.180)

77

(61)

व्यापारिक

312.0

(9242.9)

0.295

(-1.069)

0.231

(1.316)

66

(79)

नोट:1: कोष्टक में दिये गये संमक उत्पादकता से सम्बन्धित है। 2: का मान प्रतिशत में है।   

जिला बैतूल में खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर न्यूनतम वर्षा के प्रभाव का प्रतीपगमन सांख्यिकी विधि से आकलन किया गया है। जिसकी सार्थकता 1% एवम् 5% पर आंकलित करने पर यह ज्ञात होता कि खाद्यान्न फसलों के का मान 50 प्रतिशत से भी कम हैं। β(x) का मान ऋणात्मक होने के कारण यह कहा जा सकता की न्यूनतम वर्षा की अनिश्चितता खाद्यान्न फसलों के उत्पादन को प्रभावित करती है। जिसका तात्पर्य यह हुआ कि न्युनतम वर्षा का खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर प्रभाव अत्यधिक पड़ता हैं। परन्तु खाद्यान्न फसलों की उत्पादकता का का मान 78 प्रतिशत है। जो कि धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करते है।

इसी तरह दलहन फसलों के उत्पादन पर न्यनूतम वर्षा स्वतंत्र चर का मान इकाई से कम है। का मान 20 प्रतिशत से भी कम हैं। β(x) का मान ऋणात्मक होने के कारण यह कहा जा सकता कि न्यूनतम वर्षा की अनिश्चितता दलहन फसलों के उत्पादन को प्रभावित करती    है।

तिलहन फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर न्यूनतम वर्षा स्वतंत्र चर का मान इकाई से अधिक है परन्तु का मान 60 70 प्रतिशत से अधिक है जो कि धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करते है। जिसका तात्पर्य यह है कि तिलहन फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर वर्षा का अत्यधिक प्रभाव हैं।

इसी तरह व्यापारिक फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर न्यूनतम वर्षा स्वतंत्र चर का मान इकाई से अधिक हैं। का मान 66 79 प्रतिशत है जो कि व्यापारिक फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करते हैं। जिसका तात्पर्य यह है कि न्यूनतम वर्षा भी व्यापारिक फसलों की उत्पादकता को कॉफी सीमा तक प्रभावित करती है।

औसत वार्षिक वर्षा:

जिला बैतूल की औसत वार्षिक वर्षा 1083.9 मिलीमीटर है किन्तु वर्ष 2019-20 में 1204.1 मिलीमीटर वर्षा हुई। सतपुडा पर्वत श्रंखला के दक्षिण भाग में वर्षा सामान्यतः दक्षिण से उत्तर की ओर अधिक वर्षा होती है। जिला बैतूल में अधिकतम वर्षा मध्य भाग में होती है, तथा 15 जून से लेकर जून के अंतिम सप्ताह तक दक्षिण-पश्चिम मानसून पहुँच जाता है। जून से सितम्बर तक जिले की वार्षिक वर्षा 80 से 85 प्रतिशत तक पहुच जाती है। विगत वर्षो की औसत वार्षिक वर्षा में कॉफी अन्तर है।      

कृषीय फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर औसत वार्षिक वर्षा के प्रभाव का विवरणः-

अध्ययन विश्लेषण में खाद्यान्न, दलहन, तिलहन एवम् व्यापारिक फसलों के उत्पादन पर औस वार्षिक वर्षा की प्रभावशीलता का आकलन तालिका-8 के द्वारा प्रदर्शित किया गया है।                

तालिका - 8 कृषीय फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर औसत वार्षिक वर्षा का प्रभाव

फसल

α

β(x)

t

खाद्यान्न

424.9

(6960.0)

0.065

(0.324)

3.421*

(2.234*)

53

(89)

दलहन

57.6

(3353.6)

0.004

(0.134)

4.23*

(2.481*)

51

(70)

तिलहन

 219.9

(4426.2)

-0.009

(-0.016)

1.8

(0.340)

70

(61)

व्यापारिक

736.7

(7829.3)

-0.049

(0.118)

0.408

(1.55)

60

(68)

नोट:1: कोष्टक में दिये गये समंक उत्पादकता से सम्बन्धित है 2:का मान प्रतिशत में हैं।

खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर औसत वर्षा स्वतंत्र चर का मान इकाई से अधिक है। का मान 53 प्रतिशत है जो कि फसलों के उत्पादन पर धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करता है व्यापारिक फसलों की उत्पादकता पर का मान 89 प्रतिशत है जो कि स्वतन्त्र चर का परतंत्र चर पर सार्थक प्रभाव व्यक्त करता हैं। औसत वर्षा खाद्यान्न फसलों के लिए लाभप्रद हैं। जिसकी सार्थकता 1% एवम् 5% पर आंकलित की गयी है।

इसी तरह दलहन फसलों के उत्पादन व उत्पादकता पर औसत वार्षिक वर्षा का मान इकाई से अधिक है, जो धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करता है। का मान 70 प्रतिशत हैं जिसका तात्पर्य यह है कि दलहनों की फसल पर औसत वर्षा का प्रभाव सकारात्मक हैं।

तिलहन फसलों की उत्पादन पर औसत वार्षिक वर्षा स्वतंत्र चर का मान इकाई से अधिक है जो कि धनात्मक प्रभाव व्यक्त करते हैं। अतः अन्तर सार्थक है। इसके का मान भी 70 प्रतिशत से अधिक जो इंगित करता है कि औसत वर्षा का प्रभाव तिलहन फसलों पर प्रभावशील है। तिलहन फसलों की उत्पादकता का का मान 61 प्रतिशत हैं जिसका तात्पर्य यह है कि तिलहन फसल की उत्पादकता पर औसत वर्षा का प्रभाव सकारात्मक हैं।

जिला बैतूल में व्यापारिक फसल के अन्तर्गत अधिकांशत कपास तथा गन्ना का उत्पादन किया जाता है। व्यापारिक फसलों की उत्पादकता पर औसत वार्षिक वर्षा स्वतंत्र चर का मान इकाई से अधिक है। का मान 68 प्रतिशत हैं जिसका अभिप्राय यह है कि व्यापारिक फसलों की उत्पादकता पर औसत वर्षा का प्रभाव सकारात्मक हैं।

निष्कर्ष

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि प्रस्तुत पत्र में जिला बैतूल की प्रमुख कृषि फसलों जैसे-खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, एवम् व्यापारिक फसलों के उत्पादन एवम् उत्पादकता पर तकनीक व प्राकृतिक कारकों के प्रभाव का अध्ययन प्रतीपगमन सांख्यिकी विधि से किया गया है। जिसके आधार यह निष्कर्ष निकलता है कि विगत वर्षो में कृषि उत्पादन एवम् उत्पादकता पर लाभदायक एवम् हानिकारक दोनों प्रकार के प्रभाव सामने आये है। 

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