P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- XI , ISSUE- III November  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika

भारतीय भाषाएँ एवं मानवीय अधिकार

Indian Languages and Human Rights
Paper Id :  18262   Submission Date :  15/11/2023   Acceptance Date :  23/11/2023   Publication Date :  25/11/2023
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DOI:10.5281/zenodo.10245607
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जीत कौर
रिसर्च स्कॉलर
हिंदी विभाग
कश्मीर विश्वविद्यालय
जम्मू-कश्मीर,भारत
सारांश

भारत विविधताओं का देश है जहाँ धार्मिकजातिगतसंप्रदायों इत्यादि की विविधता के साथ-साथ विभिन्न संस्कृति को मानने वाले लोग रहते हैंजिनकी अपनी-अपनी मान्यताएँ और परंपराएँ हैं। इसके साथ- साथ भारत में भाषायी विविधता भी दिखाई पड़ती है। भाषायी विविधता से परिपूर्ण देश होने के कारण ही भारत को बहुभाषी देश कहा जाता है। यहाँ कई भाषाएँउपभाषाएँ एवं बोलियाँ अस्तित्व में हैंजिन्हें विद्वानों ने भाषा परिवारों के अन्तर्गत रखा है। प्रत्येक भाषा परिवार में एक सीमित क्षेत्र को रखा गया है तथा उस क्षेत्र विशेष के अन्तर्गत आने वाली सभी भाषाओं को उस भाषा परिवार में रखा गया हैताकि पाठक को भारतीय भाषाओं के अध्ययन की सुविधा हो और वह सरलता पूर्वक इनका अध्ययन कर सके। अध्ययन के साथ-साथ पाठक-वर्ग भारतीय भाषाओं से अवगत तो होगा ही तथा इन भाषाओं को सुरक्षित रखने के प्रति उसका जो कर्तव्य है उसका बोध भी उसे हो जाए।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद India is a country of diversity where along with religious, caste, sectarian diversity, people live following different cultures, who have their own beliefs and traditions. Along with this, linguistic diversity is also visible in India. India is called a multilingual country because it is a country full of linguistic diversity. Many languages and dialects exist here, which scholars have placed under language families. A limited area has been kept in each language family and all the languages falling under that particular area have been kept in that language family, so that the reader has the facility to study Indian languages and he can study them easily. Along with study, the readership will become aware of Indian languages and also become aware of its duty to preserve these languages. One of the fundamental rights of Indian citizens under Article 12 to 35 of Part 3 of the Indian Constitution is that every citizen of India has the full right to protect and maintain his culture, language and script. Understanding the importance of language, we will describe Indian languages in this research paper.
मुख्य शब्द भारतीय भाषाएँ, भाषा परिवार, उपभाषा, बोली, मानव अधिकार, भारतीय संविधान, नागरिक।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Indian languages, language family, dialect, dialect, human rights, Indian Constitution, citizen.
प्रस्तावना

भारतीय संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 12 से 35 के अन्तर्गत भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों में से एक अधिकार यह भी है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को अपनी संस्कृतिभाषा और लिपि को सुरक्षित एवं उसे बनाए रखने का पूर्ण अधिकार है। भाषा के महत्व को समझते हुए हम इस शोध-पत्र में भारतीय भाषाओं का वर्णन करेंगे। 

अध्ययन का उद्देश्य

मानव समुदाय के लिए भाषा एक महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य साधन हैजिसके बिना उसके जीवन का विकास असंभव है। वर्तमान समय में भारतीय नागरिक विदेशी संस्कृति एवं प्रवृति को प्रमुखता देते हुए उसकी ओर अधिक से अधिक आकर्षित हो रहे हैं तथा अपनी भाषासंस्कृति एवं परंपराओं से विमुख होते जा रहे हैंजिससे हमारी भाषाएँ कहीं-न-कहीं पिछडती जा रही हैं। प्रस्तुत शोध-पत्र के माध्यम से हमने भारतीय भाषाओं के प्रति सजगता एवं उनके अस्तित्व को सुरक्षित रखने का एक छोटा सा प्रयास किया है।

साहित्यावलोकन

भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं जिनका नामकरण भौगोलिक आधार पर है। भारतीय भाषाओं को जानने व इनका अध्ययन करने के लिए हमें सर्वप्रथम भारत के भाषा परिवारों को जानना चाहिए, जो इस प्रकार हैं:-

आयरलैण्ड के विद्वान जार्ज  ग्रियर्सन का कहना है कि भारत में चार भाषा परिवारों की भाषाएँ बोली जाती हैं:-

1. द्रविड़ परिवार

2. आस्ट्रिक परिवार

3. तिब्बती- चीनी परिवार

4. भारोपीय परिवार[1]

जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार द्रविड़ परिवार में ‍तमिल, मलयालम, तेलगू, कन्नड़, गौंड, ब्राहुई, कुर्ड, ओराब तथा माल्टी आदि भाषाएँ सम्मिलित हैं। आस्ट्रिक परिवार में कोल य मुंडा, जिनमें संथाली, मुंडारी आदि भाषाएँ सम्मिलित हैं। तिब्बती-चीनी परिवार के अन्तर्गत लुशेई, मारो, मिश्मी, बोडो के अतिरिक्त बुरुशास्की, अंडमानी, करेन तथा मन आदि भाषाएँ सम्मिलित हैं। भारोपीय परिवार के अन्तर्गत ग्रियर्सन ने भारत से लेकर पूरे यूरोप तक बोली जाने वाली भाषाओं को सम्मिलित किया है।[2]

जार्ज ग्रियर्सन ने भारोपीय परिवार की भाषाओं को भी भारत के भाषा परिवार में सम्मिलित किया है जबकि हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश में भारत के चार भाषा परिवार दिए हैं और उनमें भारोपीय परिवार का कहीं वर्णन नहीं मिलता है, जिनके नाम इस प्रकार से दिया गया है:-

1. आर्य भाषा परिवार

2. द्रविड़ भाषा परिवार

3. कोल भाषा परिवार

4. तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार[3]

यहाँ आर्य भाषा परिवार में प्राचीन आर्य भाषा संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि के अतिरिक्त हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती, मराठी, असमिया, बांग्ला, उड़िया आदि को स्थान दिया गया है।  द्रविड़ भाषा परिवार में ‍तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम आदि तथा कोल भाषा परिवार में मुंडारी, संथाली, कुर्कू, सबर आदि भाषाएँ हैं। तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार में मणिपुरी, मिजो, निशि, नागामीज आदि भाषाओं को रखा गया है।[4]

 उपर्युक्त विवेचन के आधार यह कहा जा सकता है कि भारतीय भाषाओं की सूची अधिक विस्तृत है, जिन्हें विद्वानों से अपने-अपने ढंग से वर्गीकृत किया है जिसे हिंदी साहित्य ज्ञानकोश तथा ग्रियर्सन द्वारा किया गया भारतीय भाषाओं का वर्गीकरण के रूप में देखा जा सकता है। ग्रियर्सन द्वारा किया गया भारतीय भाषाओं के वर्गीकरण में भारोपीय परिवार के अन्तर्गत यूरोप के कुछ क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाओं को भी भारत के भाषा परिवारों में सम्मिलित कर दिया गया है। अत: अपने-अपने मत के आधार पर यह वर्गीकरण देखा जा सकता है।  प्रत्येक भाषा परिवार में कई भाषाएँ एवं उनकी उपभाषाओं व बोलियों को देखा जा सकता है, जो एक निश्चित भू-भाग से जुड़ी हुई हैं।

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में आज भारतीय भाषाओं की संख्या बाईस (22) तक देखने को मिलती है। आरम्भ में जब संविधान लागू हुआ था तब केवल चौदह (14) ही प्रादेशिक भाषाओं को भारतीय संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त थी, जिनमें असमिया, उड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, पंजाबी, बंगला, मराठी, मलयालम, संस्कृत और हिन्दी को सम्मिलित किया गया था। 1967 ईस्वी में 21वें संविधान संशोधन विधायक द्वारा सिन्धी भाषा को जोड़ा गया तथा 1992  ईस्वी में 71वें संविधान संशोधन विधायक द्वारा कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को जोड़कर 18 भारतीय  भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में महत्त्व दिया गया। इसके पश्चात वर्ष 2003 में 92वें संविधान संशोधन विधायक द्वारा बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली चार भारतीय भाषाओं को मान्यता देते हुए भाषाओं की सूची बाईस (22) देखने को मिलती है।[5]

प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने देश को बोली व भाषाओं का अधिक से अधिक व्यवहार में तथा अपनी आने वाली पीढ़ी को भी अपनी क्षेत्रीय बोली एवं मातृ बोली से अवगत कराये ताकि देश की प्रत्येक भाषा और बोली सँजोकर रहे।    

भारतीय भाषाओं के वर्णन के पश्चात भाषा पर मानवीय अधिकारों का विवेचन इस प्रकार है:-

मानव अधिकार से तात्पर्य है, वह अधिकार जो व्यक्ति के जीवन हित, कल्याण, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। श्रीनिवास शास्त्री के अनुसार, “अधिकार समुदाय के कानून द्वारा स्वीकृत वह व्यवस्था नियम अथवा रीति है जो नागरिक के सर्वोच्च नैतिक कल्याण में सहायक हो।”[6] भारत जैसे विशाल देश में जीवन का हर पहलू मानवाधिकार से जुड़ा है। भाषा भी एक ऐसा ही पहलू है जो मानव जीवन के विकास एवं अस्मिता से जुड़ा हुआ है। भाषा के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त करने की स्वतन्त्रता मानव का एक  मौलिक आधिकार है। व्यक्ति अपने मित्रों/ सहयोगियों के साथ हो, परिवार के साथ हो या फिर अपने समाज के भीतर किसी भी व्यक्ति के साथ, उसे अपने विचारों, भावनाओं, इच्छाओं और आवश्यकताओं को उनके साथ सांझा करना उसके अस्तित्व की वास्त्विक कुंजी है तथा भाषा ही वह साधन है जिसके द्वारा व्यक्ति सामुदायिक और सांस्कृतिक जीवन में अपनी भागेदारी अंकित/ दर्ज करा सकता है। इससे व्यक्ति मनुष्येतर प्राणियों से भिन्न अपनी एक भूमिका प्रकट करने में सक्षम रहता है। इस संदर्भ में कामताप्रसाद गुरु लिखते हैं कि, “भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली भाँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टता समझ सकता है। मनुष्य के कार्य उसके विचारों से उत्पन्न होते हैं और इन कार्यों में दूसरों की सहायता अथवा सहमति प्राप्त करने के लिए उसे वे विचार दूसरों पर प्रकट करने पड़ते हैं। जगत का अधिकांश व्यवहार, बोलचाल अथवा लिखा-पढ़ी से चलता है, इसलिए भाषा जगत् के व्यवहार का मूल है।”[7]  अत: मनुष्य भाषा के साथ ऐसा जुड़ा हुआ है कि वह भाषा के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है। व्यक्ति की दैनिक चर्या भाषा से ही शुरू होकर भाषा से ही समाप्त होती है। 

वर्तमान समय में भाषा पर मनुष्य ने भिन्न-भिन्न रूपों में अधिकार प्राप्त कर लिया है। अपनी मातृभाषा पर तो बचपन से ही उसका अधिकार होता है इसके साथ-साथ अपनी क्षेत्रीय भाषा तथा कई अन्य भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर उन्हें व्यवहार में लाना अपना परम अधिकार मान लेता है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु व्यक्ति प्राचीन काल से ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण करता रहा है। परंतु आज का व्यक्ति विश्व के किसी भी देश में किसी भी स्थान पर, जहाँ उसकी अपनी जरूरतें आसानी से पूर्ण हों निवास करता है। वहाँ पर जाने से पूर्व ही व्यक्ति वहाँ की भाषा को सबसे पहले सीखना अपना लक्ष्य समझता है । भाषा पर सामर्थ्य पाते ही वह उस स्थान पर और वहाँ के वातावरण में स्वयं को शीघ्रता से ढाल लेता है।

एक ओर मनुष्य ने एक से अधिक भाषाओं को बोलना सीखा है वहीं दूसरी ओर उसने भाषा के लिखित रूप का प्रयोग करके अपने ऐतिहासिक तथ्यों, संस्कृति, परंपराओं, संस्कारों इत्यादि को भी संजोकर रखने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है। आज के इस  वैज्ञानिक युग में व्यक्ति को भाषाई ज्ञान होने के कारण ही सूचनाओं को कई भाषाओं के लोगों तक सूचित करने में सफलता प्राप्त की है। वह एक ही समय पर एक घटना को कई भाषाओं में रूपांतरित करके कई लोगों तक पहुँचा सकता है। इतना ही नहीं आज मनुष्य ने कई भाषाओं के तंत्रांशों (सॉफ्टवेयरों) का भी निर्माण कर लिया है और भाषाओं के ज्ञान को प्राप्त करना लोगों के लिए सुलभ बना दिया है। आज व्यक्ति को किसी भी भाषा सीखने में कठिनाई नहीं आती है और न ही भाषा सीखने के लिए भाषा-विशेषज्ञों को ढूँढने की आवश्यकता पड़ती है। वह इन्टरनेट की सहायता से अपने घर में बैठकर ही अपनी रूचि के अनुसार अपने मोबाइल या कम्प्यूटर पर भाषा को सीख सकता है। आज का व्यक्ति भिन्न-भिन्न देशों की भाषा सीखने में रूचि रखना है।

भारत देश में आज के समय में एक बहुत बड़ी विडम्बना देखने को मिलती है कि जहाँ व्यक्ति ने एक से अधिक भाषाओं पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया है वहीं वह अपनी भारतीय भाषाओं से दूर होता जा रहा है। वह विदेशी भाषा में बात करना अपना अभिमान मानता है तथा अपने परिवार व बच्चों के साथ अपनी भाषा में बात करना उसे निंदनीय लगता है। जबकि अपनी बोली व भाषा को अस्तित्व में रखना उसका पहला अधिकार है। परंतु आज के भारतवासियों के दिन की शुरुआत ही गुड मॉर्निंग से होती है और अंत गुड ईवनिंग से होता है। वह जितना बाहरी अर्थात विदेशी दुनिया से जुड़ रहा है उतना ही अपने देश की संस्कृति से दूर होता जा रहा है। प्रत्येक भारत के नागरिक को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसे भारतीय भाषाओं को अस्तित्व में रखना अपना एक मानवाधिकार समझना चाहिए तथा धरोहर के रूप में सदैव संजोकर करना अपना परम अधिकार समझना चाहिए तभी हमारी भारतीय भाषाएँ एवं बोलियां अस्तित्व में रह सकती हैं।

निष्कर्ष

अत: निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि भारत एक बहुभाषी देश है। यहाँ कई भाषाएँ एवं बोलियां बोली जाती हैं। भाषाशास्त्रियों ने इन भाषाओं को चार भाषा परिवारों में वर्गीकृत करके भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की भाषाओं को एक निश्चित परिवार में रखकर पाठकों के लिए अध्ययन की सुविधा को सरल बना दिया है। भाषा व्यक्ति के जीवन का महत्त्वपूर्ण एवं अनिवार्य बिन्दू है। भाषा व्यक्ति से इस प्रकार जुड़ी है कि इसके बिना मानव जीवन की कल्पना कठिन है। भाषा ही मनुष्य को अन्य सभी प्राणियों से अलग करती है। व्यक्ति अपनी भावनाओं इत्यादि को भाषा के माध्यम से ही अभिव्यक्त करता है। इसलिए व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपनी भाषा को सुरक्षित रखकर अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाए। भारतीय संविधान के अन्तर्गत भारतीय नागरिक के छह मूल अधिकारों में से एक अधिकार यह भी है कि भारत के नागरिक को अपनी भाषा को सुरक्षित रखने का अधिकार है। इस बात को ध्यान में रखते हुए हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपनी देश व देश की भाषाओं को जीवित और सुरक्षित रखें। 

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. सुखवाल. बालमुकुंद और प्रभुलाल वर्माहिन्दी साहित्य का तथ्यात्मक अनुशीलनसाहित्यागार प्रकाशन जयपुरसंस्करण-2014पृ. 27 

2. वहींपृ. 2728

3. शंभुनाथहिन्दी साहित्य ज्ञानकोश-5वाणी प्रकाशन नई दिल्लीप्रथम संस्करण-2019पृ. 2564

4. वहींपृ. 2564

5.  सुखवाल. बालमुकुंद और प्रभुलाल वर्माहिन्दी साहित्य का तथ्यात्मक अनुशीलनसाहित्यागार प्रकाशन जयपुरसंस्करण-2014पृ. 384, 385

6. http://www.jkppgcollege.comमानव अधिकार: अर्थपरिभाषाएँ और प्रकृति

7. गुरू. पं. कामताप्रसादहिन्दी व्याकरणइंडियन प्रेस लिमिटेड प्रयागसंशोधित संस्करण-1984पृ. 01