P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- XI , ISSUE- III November  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika

कृषि विकास का स्तर एवं सामाजिक-आर्थिक विकास जनपद हापुड़ का एक भौगोलिक अध्ययन

A Geographical Study of the Level of Agricultural Development and Socio-Economic Development of Hapur District
Paper Id :  18288   Submission Date :  14/11/2023   Acceptance Date :  21/11/2023   Publication Date :  25/11/2023
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अमरजीत सिंह
शोधार्थी
भूगोल विभाग
मेरठ कॉलेज
मेरठ,उत्तर प्रदेश, भारत
राजीव कुमार
प्रोफेसर
भूगोल विभाग
मेरठ कॉलेज
मेरठ, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

कृषि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है। इस पर विभिन्न प्रकार के उद्योग-धन्धे निर्भर हैं। कृषि में तकनीकी के प्रयोग से उत्पादन में वृद्धि हुई है, जिस कारण से उद्योग-धन्धे विकसित हुए हैं। उद्योग-धन्धों के विकास ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मदद की है। पशुपालन ने प्रत्यक्ष रूप से कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया है। कृषि फसलों के प्रतिरूप में परिवर्तन करके तथा उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग करके न केवल उच्च उत्पादन को प्राप्त किया है, बल्कि उद्योग-धन्धों के विकास हेतु कच्चे माल की आपूर्ति भी प्रदान की है। यातायात एवं परिवहन सुविधाओं ने कृषि के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक विकास को परिवर्तित किया है। इसके परिणाम स्वरूप ही अद्यःसंरचनात्मक विकास का स्तर उच्च हो पा रहा है। यद्यपि आधारभूत संरचना के विकास से सुविधा केन्द्रों का विकास हुआ है, परन्तु कृषि योग्य भूमि का अतिक्रमण भी हुआ है, जिससे विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Agriculture is the main basis of rural economy. Various types of industries depend on it. The use of technology in agriculture has increased production, due to which industries have developed. The development of industries has helped in developing the rural economy. Animal husbandry has directly improved the economic condition of farmers. By changing the pattern of agricultural crops and using improved varieties of seeds, not only higher production has been achieved, but it has also provided the supply of raw materials for the development of industries. Transport and transport facilities have transformed agriculture as well as social and economic development. As a result of this, the level of infrastructural development is becoming higher. Although the development of infrastructure has led to the development of convenience centres, there has also been encroachment of cultivable land, due to which various types of environmental problems have also arisen.
मुख्य शब्द कृषि विकास, तकनीकी, अद्यःसंरचनात्मक विकास, सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन, संसाधन, सेवाएँ।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Agricultural Development, Technology, Infrastructure Development, Socio-Economic Change, Resources, Services.
प्रस्तावना

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। कृषि में उन्नत तकनीकी के प्रयोग से कृषि उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। कृषि उत्पादन में वृद्धि से उद्योग-धन्धों का विकास तीव्र गति से हुआ है। उक्त विकास ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मदद की है। बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण तथा रोजगार की आपूर्ति कृषि ने पूर्ण की है। इसके बावजूद भी अपेक्षित आर्थिक विकास की दर प्राप्त नहीं हो पा रही है। ग्रामीण स्तर पर धर्मवाद, जातिवाद, लिंगभेद इत्यादि समस्याएँ विकास में अवरोधक बनी हुई हैं। साक्षरता की दर में वृद्धि ने सामाजिक एवं आर्थिक विकास की दर को बढ़ाने में मदद की है। ग्रामीण स्तर पर सेवा केन्द्र विकसित हो रहे हैं, जिससे संरचनात्मक विकास को गति मिल रही है। सड़क परिवहन मार्गों को विकसित करने से पलायन एवं बेरोजगारी जैसी समस्या को कम करने में मदद मिली है। कृषि क्षेत्र का विकास कृषि आधारित उद्योग-धन्धों तथा बाजार में खाद्य पदार्थों की मांग पर निर्भर करता है, जिस तीव्र गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, उस दर से उत्पादन नहीं हो रहा है। रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग ने कृषि उत्पादन बढ़ाने में मदद की है, परन्तु खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को प्रभावित किया है।

सामाजिक एवं आर्थिक विकास पर सुविधा केन्द्रों का प्रभाव स्पष्ट रूप से पड़ता है। जिन क्षेत्रों में सुविधा केन्द्रों का उच्च संकेन्द्रण पाया जाता है, वहां पर सामाजिक एवं आर्थिक विकास की दर उच्च प्राप्त होती है, जबकि समस्या ग्रहस्त क्षेत्रों में सुविधा केन्द्रों का अभाव पाया जाता है। कृषि विकास को गति प्रदान करने में कृषि तकनीकी तथा उन्नत किस्म के बीजों व रासायनिक उर्वरक इत्यादि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इसके साथ ही साथ वित्तीय सुविधाओं व परिवहन सुविधाओं ने कृषि विकास को गति प्रदान की है। इस कृषि विकास से न केवल कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी विकसित हुई है। समन्वित कृषि ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तीव्र गति से विकसित करने में योगदान दिया है। समन्वित कृषि ने कृषकों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया है। इसके साथ ही साथ पर्यावरण को विकसित करने में योगदान प्रदान किया है। कृषि में सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न प्रकार की अनुदानित सुविधाओं ने कृषि विकास में अहम योगदान प्रदान किया है। इसके बावजूद भी कृषि में क्षेत्रीय असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। इसी असन्तुलन ने सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को जन्म दिया है।

अध्ययन का उद्देश्य

1. अध्ययन क्षेत्र में कृषि विकास के स्तर को ज्ञात करना।

2. अध्ययन क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के स्तर को ज्ञात करना।

3. अध्ययन क्षेत्र में कृषि विकास के कारकों को ज्ञात करना।

4. अध्ययन क्षेत्र के फसल प्रतिरूप एवं उत्पादकता को ज्ञात करना।

साहित्यावलोकन

प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने हेतु विभिन्न शोध पत्रों एवं शोध ग्रंथों का अध्ययन किया गया है। इन शोध पत्रों एवं शोध ग्रंथों के साहित्यिक समीक्षा को निम्न प्रकार से वर्णित किया गया है- त्रिपाठी एवं प्रसाद (2009) ने अपना शोध पत्र भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कृषि का विकास के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि कृषि का आर्थिक विकास में योगदान मुख्यतः अन्य विकसित देशों में है। यह जनसंख्या को भोजन की आपूर्ति के साथ-साथ श्रम एवं रोजगार तथा उद्योग-धन्धों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कच्चे माल की आपूर्ति कराती है। भारत में कृषि समन्वित विकास का प्रमुख आधार है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में कृषि उत्पादन, उत्पादकता, भूमि उपयोग प्रतिरूप तथा फसल प्रतिरूप में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है। बोर ठाकुर एवं सिंह (2012) ने अपना शोध पत्र कृषि में अनुसंधान के सन्दर्भ मेंप्रस्तुत किया। इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। यह भारत के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत कई अन्य क्षेत्र सम्मिलित हैं। द्वितीयक क्षेत्र कृषि पर ही निर्भर हैं। कृषि में अनुसंधान के लिए भारत में लगभग 27500 कृषि वैज्ञानिक लगे हुए हैं, जो कृषि विकास के सन्दर्भ में अनुसंधान का कार्य कर रहे हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कृषि विकास हेतु विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ प्रदान कर रही है, जिससे कृषि विकास का स्तर उच्च हो रहा है। खान एवं सिंह (2016) ने अपना शोध पत्र कृषि लागत, कृषि आय एवं कृषक जीवन स्तर का सूक्ष्म स्तरीय अध्ययनपीलीभीत जनपद के ग्राम परसिया उ॰प्र॰ के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया गया है। एक एकड़ धान और गेहूँ का उत्पादन करने में 31473 रू॰ की औसत लागत आती है और 46950 रू॰ की औसत आय प्राप्त होती है। यह बचत 5 परिवार के सदस्यों के लिए बहुत ही कम है। इतनी कम आय में कृषक अपने परिवार का खर्चा नहीं चला पाते हैं, जिस कारण से कृषक कृषि कार्यों को छोड़कर अन्य कार्यों की ओर अग्रसर हो रहे हैं। सुरेन्द्र (2020) ने अपना शोध पत्र भारत में कृषि विकास - राज्य स्तर पर विश्लेषणनामक शीर्षक पर प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध में पाया कि विकासशील एवं पिछड़े देशों के विकास में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृषि केवल भोजन की आपूर्ति ही नहीं करती है, बल्कि वह रोजगार, उद्योग-धन्धों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध कराती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब व हरियाणा राज्य में कृषि विकसित अवस्था में है, जबकि पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्र में कृषि पिछड़ी हुई दशा में है। चौरसिया एवं चौरसिया (2021) ने कृषि विकास की समस्याएँ एवं संभावनाएँ - जनपद जौनपुर उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ मेंअपना अध्ययन प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि कृषि क्षेत्र में उपयोग अति आवश्यक है। कृषि का व्यापक स्तर पर व्यापारीकरण एवं कृषि उत्पादन में विविधता को विकसित करना अनिवार्य है, जिससे सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ मृदा की उर्वरा शक्ति को लम्बी अवधि तक बनाये रखा जा सकता है। मिश्र (2021) ने अपना शोध पत्र कृषि विकास एवं पर्यावरण प्रदूषण - भदोही जनपद का एक प्रतीक अध्ययननामक शीर्षक पर प्रस्तुत किया। इन्होंने बताया कि प्राचीन काल में कृषि कार्य परम्परागत कृषि यंत्रों से की जाती थी, जिससे कृषि कार्यों में समय एवं श्रम तो अधिक लगता था, परन्तु पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकी की समस्या उत्पन्न नहीं होती थी। वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि में नवीनतम तकनीकी एवं कृषि यंत्रों का प्रयोग बढ़ गया है, जिससे विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं। कृषि में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग करने से जैविक पर्यावरण प्रभावित हुआ है। कीटनाशकों के प्रयोग ने तो खेत के पारिस्थितिकी तंत्र को ही बिगाड़ दिया है। चौरसिया, चौरसिया एवं तिवारी (2021) ने अपना शोध पत्र जौनपुर जनपद (उ॰प्र॰) में कृषि विकास में अवस्थापनात्मक कारकों की भूमिकानामक शीर्षक पर प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध पत्र में बताया कि कृषि प्रतिरूप तथा कृषि उत्पादकता दोनों पर प्राविधिकी संबंधी घटकों का महत्वपूर्ण प्रभाव पाया जाता है। कृषि विकास में कृषि तकनीकी के साथ-साथ अवस्थापनात्मक तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी उच्च उपलब्धता कृषि विकास के लिए एक मार्ग प्रसस्त करती है।


परिकल्पना 1. अध्ययन क्षेत्र में कृषि को विकसित करने में कृषि तकनीकी एवं परिवहन सुविधाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
2. अध्ययन क्षेत्र में उद्योग-धन्धों के विकास एवं शिक्षण सुविधाओं के विकास ने सामाजिक एवं आर्थिक विकास को गति प्रदान की है।
3. अध्ययन क्षेत्र में कृषि का विकास उच्च कृषि तकनीकी का परिणाम है।
4. भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन ने कृषि उत्पादकता एवं फसल प्रतिरूप को परिवर्तित किया है।
सामग्री और क्रियाविधि

प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने हेतु प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। प्राथमिक आँकड़े अध्ययन क्षेत्र से प्रश्नावली एवं अनुसूची का प्रयोग करके व्यक्तिगत साक्षात्कार विधि से प्राप्त किये गये हैं। सेम्पल सर्वे के आधार पर प्राथमिक आँकड़े प्राप्त करने का प्रयास किया गया है। द्वितीयक आँकड़े जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद हापुड़ तथा विभिन्न वेबसाईट्स, विभिन्न शोध पत्रों, शोध ग्रंथों से प्राप्त किये गये हैं। शोध समस्या के स्तर को प्राप्त करने हेतु विभिन्न सांख्यिकी विधियों का प्रयोग किया गया है। इसके साथ ही आँकड़ों को सारणीयन में व्यवस्थित कर विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है।

न्यादर्ष

प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने हेतु 12 गाँवों का चयन यादृच्छिक विधि (Randomly Method) के द्वारा किया गया है। इन गाँवों से कुल 240 सेम्पल एकत्र किये गये हैं। प्रत्येक गाँव से 20-20 सेम्पल का चयन किया गया है। प्राथमिक आँकड़े एकत्र करने हेतु चयनित न्यादर्श प्रारूप को निम्न प्रकार से तैयार किया गया है-

तालिका

सेम्पल हेतु चयनित गाँवों का विवरण

क्र॰सं॰

विकास खण्ड

कुल गाँव

चयनित गाँव

चयनित न्यादर्श

1-

धौलाना

64

1- लालपुर

2- ककराना

3- निधौली

20

20

20

2-

हापुड़

110

4- कमालपुर

5- आलमपुर

6- फिरोजपुर

20

20

20

3-

सिम्भावली

75

7- दरियापुर

8- हिम्मतपुर

9- शकरपुर

20

20

20

4-

गढ़मुक्तेश्वर

80

10- आलमगीरपुर

11- बिरामपुर

12- गदावली

20

20

20

योग 2012

329

 

240

विश्लेषण

शोध समस्या

अध्ययन क्षेत्र में कृषि विकास में असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो रही हैजिस कारण से सामाजिक एवं आर्थिक विषमता उत्पन्न हो रही है। नगर एवं कस्बों के निकटवर्ती क्षेत्र में कृषि का विकास उच्च स्तर पर हैजबकि ग्रामीण क्षेत्र के समीप कृषि पिछड़ी हुई दशा में पायी गयी है। नगर के समीप कृषि में हार्टीकल्चर की कृषि को वरीयता प्रदान करने से कृषकों की आय में वृद्धि हुई हैजबकि ग्रामीण स्तर पर अनाज की कृषि विकसित होने से आर्थिक विकास की दर धीमी बनी हुई है।

अध्ययन क्षेत्र

प्रस्तुत शोध को पूर्ण करने हेतु हापुड़ जनपद को चयनित किया गया है। इसकी अवस्थिति उत्तर प्रदेश राज्य के पश्चिमी भाग में राष्ट्रीय राजधानी नगर दिल्ली के समीप स्थित है। जनपद हापुड़ की उत्तरी सीमा पर जनपद मेरठदक्षिणी सीमा पर जनपद बुलन्दशहर पूर्वी सीमा पर जनपद अमरोहा तथा पश्चिमी सीमा पर गाजियाबाद व गौतमबुद्ध नगर अवस्थित हैं। वर्ष 2011 के अनुसार जनपद हापुड़ का भौगोलिक क्षेत्रफल 1116 वर्ग किमी॰ हैइसके अन्तर्गत 329 गाँव सम्मिलित हैं। इस जनपद में 4 विकास खण्ड धौलानाहापुड़सिम्भावली तथा गढ़मुक्तेश्वर सम्मिलित हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग जी॰टी॰ रोड इसके मध्य से होकर गुजरता है। वर्ष 2011 के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या 13.38 लाख हैजिसमें 9.40 लाख जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है।

आँकड़ों का संग्रह एवं विधि तंत्र

प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने हेतु प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। प्राथमिक आँकड़े अध्ययन क्षेत्र से प्रश्नावली एवं अनुसूची का प्रयोग करके व्यक्तिगत साक्षात्कार विधि से प्राप्त किये गये हैं। सेम्पल सर्वे के आधार पर प्राथमिक आँकड़े प्राप्त करने का प्रयास किया गया है। द्वितीयक आँकड़े जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद हापुड़ तथा विभिन्न वेबसाईट्सविभिन्न शोध पत्रोंशोध ग्रंथों से प्राप्त किये गये हैं। शोध समस्या के स्तर को प्राप्त करने हेतु विभिन्न सांख्यिकी विधियों का प्रयोग किया गया है। इसके साथ ही आँकड़ों को सारणीयन में व्यवस्थित कर विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है।


कृषि विकास का स्तर

कृषि विकास में भौगोलिकसामाजिकआर्थिकतकनीकी तथा संस्थागत कारक महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं। उपजाऊ मृदासिंचाई की सुविधासमतल भूमिवर्षातापमानआर्द्रतावित्तपरिवहन सुविधाएँउन्नत बीजरासायनिक उर्वरककृषि यंत्र एवं उपकरण इत्यादि कृषि विकास को प्रभावित करते हैं। जिन क्षेत्रों में उक्त सुविधाएँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैंवहां पर कृषि विकास का स्तर उच्च पाया जाता हैजबकि इसकी अल्पता वाले क्षेत्र में कृषि पिछड़ी हुई दशा में पायी जाती है। अध्ययन क्षेत्र में कृषि विकास का स्तर ज्ञात करने के लिए Z-Score एवं Composite Z-Score विधि का प्रयोग किया गया हैजो निम्नवत् है-

(i)      The model of z-score method is as follows–

Where,

Zi = The standard score of z-score of ith variable

x = The individual observation

= The mean of variable, and

σ = Standard deviation

(ii)     The model of composite mean z-score is thus–


Where,

C.S. = Composite z-score

Zij = z-score of an indicator j in area i,

N = Number of variables


अध्ययन क्षेत्र जनपद हापुड़ का कृषि विकास का स्तर उत्पादकता (X1)वित्तीय सुविधाएँ (X2)बीज विक्रय केन्द्र (X3)उर्वरक वितरण केन्द्र (X4)कीटनाशक विक्रय केन्द्र (X5)ग्रामीण गोदाम (X6)सिंचाई सुविधाएँ (X7)परिवहन सुविधाएँ (X8) तथा कृषि यंत्र उपलब्धता (X9) चरों के आधार पर z-score तथा composite z-score  विधि के द्वारा प्राप्त किया गया हैजिसमें कृषि विकास का सर्वोच्च स्तर (0.84) विकास खण्ड हापुड़ तथा सबसे निम्न स्तर (-0.71) सिम्भावली विकास खण्ड में पाया गया है। धौलाना विकास खण्ड में कृषि विकास का स्तर (-0.35) प्राप्त हुआ हैजबकि गढ़मुक्तेश्वर विकास खण्ड में कृषि विकास का स्तर (0.08) प्राप्त हुआ है। उक्त आँकड़ों से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्र में कृषि विकास के स्तर में असमानता मिलती हैजिसका प्रमुख कारण वहां पर उपलब्ध संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग एवं तकनीकी कारकों का प्रभाव है।

सामाजिक एवं आर्थिक विकास का स्तरः-

किसी भी क्षेत्र का सामाजिक एवं आर्थिक विकास वहां पर उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों के उपयोग पर निर्भर करता है। इसके साथ ही साथ क्षेत्र में उपलब्ध सामाजिक एवं आर्थिक सुविधाऐं सामाजिक एवं आर्थिक विकास को प्रभावित करती हैं। अध्ययन क्षेत्र के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के स्तर को प्राप्त करने के लिए z-score तथा composite z-score विधि का प्रयोग किया गया हैजिसके आधार पर सामाजिक एवं आर्थिक विकास को प्राप्त करने का प्रयास किया गया है। अध्ययन क्षेत्र जनपद हापुड़ में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के स्तर को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-


उपरोक्त सारणी में जनपद हापुड़ का सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को दर्शाया गया हैजिसे z-score एवं composite z-score के आधार पर साक्षरता (X1)स्वास्थ्य सुविधाएँ (X2)प्राथमिक विद्यालय (X3)उच्च प्राथमिक विद्यालय (X4)माध्यमिक विद्यालय (X5)वित्तीय सुविधाएँ (X6)परिवहन सुविधाएँ (X7) तथा लघु उद्योग-धन्धे (X8) चरों के आधार पर तैयार किया गया है। यहां पर सामाजिक एवं आर्थिक विकास का सर्वोच्च स्तर 1.10 हापुड़ विकास खण्ड तथा सबसे निम्न स्तर -0.68 सिम्भावली विकास खण्ड में पाया गया है। धौलाना विकास खण्ड में सामाजिक एवं आर्थिक विकास का स्तर -0.20 तथा गढ़मुक्तेश्वर विकास खण्ड में -0.05 प्राप्त हुआ है। हापुड़ विकास खण्ड में उच्च स्तर मिलने का कारण आधारभूत संसाधनों का विकसित होना तथा सुविधा केन्द्रों का विकसित होना है।

कृषि विकास के कारकः-

अध्ययन क्षेत्र जनपद हापुड़ में कृषि विकास को गति करने वाले प्रमुख कारकों में उपजाऊ जलोढ़ मृदा की उपलब्धतासिंचाई के विकसित संसाधनकृषि सुविधा केन्द्रवित्तीय सुविधाएँस्थानीय बाजारपरिवहन सुविधाएँअनुकूल जलवायविक दशाएँसस्ता एवं कुशल श्रमउच्च तकनीकी उपलब्धता इत्यादि कारक विद्यमान हैं। इन कारकों ने अध्ययन क्षेत्र में कृषि विकास को गति प्रदान की है। कृषि विकास हेतु उपलब्ध प्रमुख सुविधाओं के स्थानिक वितरण को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-





सारणी

जनपद हापुड़ में कृषि विकास हेतु प्रमुख सुविधाओं की उपलब्धता

(वर्ष 2021-22)

क्र॰सं॰

सुविधाएँ

संख्या

प्रति हजार जनसंख्या पर उपलब्धता

1-

बीज विक्रय केन्द्र

सहकारिता विभाग

कृषि विभाग

अन्य

160

36

03

121

0-170

0-040

0-003

0-128

2-

उर्वरक विक्रय केन्द्र

सहकारिता विभाग

कृषि विभाग

अन्य

345

44

0

301

0-367

0-047

0-0

0-320

3-

कीटनाशक विक्रय केन्द्र

सहकारिता विभाग

कृषि विभाग

अन्य

283

0

4

279

0-301

0-00

0-004

0-297

4-

ग्रामीण गोदाम

सहकारिता विभाग

कृषि विभाग

अन्य

76

76

0

0

0-081

0-081

0-0

0-0

5-

शीत भण्डार गृह

07

0-007

6-

प्रारम्भिक कृषि ऋण सहकारी समितियाँ

36

0-038

7-

सहकारी बैंक शाखाएँ

13

0-013

8-

राष्ट्रीयकृत बैंक शाखाएँ

50

0-053

9-

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

12

0-013

10-

अन्य गैर राष्ट्रीयकृत बैंक शाखाएँ

6

0-006

स्रोतः  जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद हापुड़वर्ष 2021

उपरोक्त सारणी में अध्ययन क्षेत्र जनपद हापुड़ में ग्रामीण स्तर पर उपलब्ध प्रमुख कृषि विकासात्मक सुविधाओं की उपलब्धता को प्रति 1000 जनसंख्या पर दर्शाया गया है। इसमें बीज विक्रय केन्द्रों की उपलब्धता 0.170उर्वरक विक्रय केन्द्र की उपलब्धता 0.367कीटनाशक विक्रय केन्द्र की उपलब्धता 0.301ग्रामीण गोदामों की उपलब्धता 0.081 प्राप्त हुई है। यहां पर शीत भण्डार गृह की उपलब्धता 0.007प्रारम्भिक कृषि ऋण सहकारी समितियों की उपलब्धता 0.038सहकारी बैंक शाखाओं की उपलब्धता 0.053क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक शाखाओं की उपलब्धता 0.013 तथा अन्य गैर राष्ट्रीयकृत बैंक शाखाओं की उपलब्धता 0.006 प्राप्त हुई है। कृषि विकास में उक्त सुविधाएँ महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती हैं।

फसल प्रतिरूपः-

फसल प्रतिरूप से तात्पर्य किसी क्षेत्र में एक वर्ष में उगाई जाने वाली फसलों तथा उनकी कुल फसलों में अंशदान (भागीदारी) से है। अध्ययन क्षेत्र में खाद्यान्नदलहन एवं तिलहन की कृषि के साथ-साथ गन्ने की कृषिसब्जियों की कृषि व चारा की कृषि भी की जाती है। अध्ययन क्षेत्र जनपद हापुड़ के फसल प्रतिरूप को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-

सारणी

जनपद हापुड़ में फसल प्रतिरूप की स्थिति (वर्ष 2020-21)

क्र॰सं॰

प्रमुख फसल

क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)

प्रतिशत

1-

चावल

20585

17-63

2-

गेहूँ

43061

36-89

3-

जौं

340

0-29

4-

मक्का

741

0-64

कुल धान्य

64727

55-45

5-

उड़द

772

0-66

6-

मूंग

281

0-24

7-

मसूर

187

0-16

8-

मटर

95

0-08

9-

अरहर

848

0-73

कुल दलहन

2183

1-87

10-

सरसों

1949

1-67

11-

गन्ना

36374

31-16

12-

आलू

3403

2-91

13-

अन्य सब्जियाँ

8107

6-94

योग

116743

100

स्रोतः  जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद हापुड़वर्ष 2021

उपरोक्त सारणी के अनुसार वर्ष 2020-21 के अन्तर्गत धान्य फसलों का उत्पादन 55.45 प्रतिशत भू-भाग पर किया जाता हैइसमें चावल की कृषि का क्षेत्र 17.63 प्रतिशत भू-भाग पर तथा गेहूँ का क्षेत्र 36.89 प्रतिशत भू-भाग पर उत्पादन किया जाता हैजबकि जौं का उत्पादन 0.29 प्रतिशत मक्का का उत्पादन 0.64 प्रतिशत भू-भाग पर किया जाता है। उड़द की कृषि 0.66 प्रतिशतमूंग की कृषि  0.24 प्रतिशत मसूर की कृषि 0.16 प्रतिशतमटर की कृषि 0.08 प्रतिशत तथा अरहर की कृषि 0.73 प्रतिशत क्षेत्र पर उत्पादन किया जाता है। यहां पर सरसों की कृषि 1.67 प्रतिशत क्षेत्र पर तथा गन्ने की कृषि 31.16 प्रतिशत क्षेत्र पर की जाती है। आलू की कृषि 2.91 प्रतिशत तथा अन्य सब्जियों की कृषि 6.94 प्रतिशत क्षेत्र पर की जाती है। अध्ययन क्षेत्र में 85.68 प्रतिशत क्षेत्र पर चावलगेहूँ तथा गन्ने की कृषि की जाती हैजबकि शेष 14.32 प्रतिशत क्षेत्र पर शेष फसलों की कृषि की जाती है। उक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि यहां पर दलहन एवं तिलहन फसलों का उत्पादन अपेक्षाकृत कम क्षेत्र पर किया जाता है।

कृषि उत्पादनः-

हरित क्रांति के पश्चात भारत में कृषि उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। कृषि में उन्नत किस्म के बीजरासायनिक उर्वरक तथा सिंचाई के साधनों के विकसित होने से कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है। कृषि सुविधा केन्द्रों तथा यातायात एवं परिवहन सुविधाओं के विकास ने कृषि को विकसित करने में योगदान दिया है। कृषि उत्पादन हेतु चयनित गाँवों से सर्वेक्षित आंकड़ों के आधार पर औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादन का मूल्यांकन किया गया है। चयनित गाँवों में कृषि उत्पादन के वितरण को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-


उपरोक्त सारणी के अध्ययन क्षेत्र में चयनित फसलों का औसत उत्पादन प्रदर्शित किया गया है। इन चयनित गाँवों में चावल का औसत उत्पादन 43.30 कुन्तल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ हैगेहूँ का औसत उत्पादन 37.13 कुन्तल प्रति हेक्टेयरमक्का 27.75 कुन्तल प्रति हेक्टेयरउड़द का उत्पादन 25.97 कुन्तल प्रति हेक्टेयरमूंग का उत्पादन 25.93 कुन्तल प्रति हेक्टेयरमटर का उत्पादन 26.68 कुन्तल प्रति हेक्टेयरमसूर का उत्पादन 28.42 कुन्तल प्रति हेक्टेयरगन्ना का उत्पादन 902.75 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तथा आलू का औसत उत्पादन 350.13 कुन्तल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ है। उक्त आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि अध्ययन क्षेत्र में उच्च कृषि उत्पादन के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकसित हुई है।

निष्कर्ष

अध्ययन क्षेत्र में कृषि विकास का सर्वोच्च स्तर 1.58 गढ़मुक्तेश्वर में प्राप्त हुआ है। यहां पर उच्च स्तर होने का प्रमुख कारण उपजाऊ मृदा, सिंचाई के पर्याप्त संसाधन, परिवहन सुविधाओं का विकास तथा कृषि सुविधा केन्द्रों का विकसित होना पाया गया है। इसके साथ ही साथ स्थानीय बाजार की उपलब्धता ने आर्थिक विकास को गति प्रदान की है। यहां पर सामाजिक एवं आर्थिक विकास का उच्च स्तर 1.10 हापुड़ विकास खण्ड में प्राप्त हुआ है। यहां पर उच्च स्तर मिलने का प्रमुख कारण सेवा केन्द्रों की उच्च उपलब्धता तथा आधारभूत संरचना का विकसित होना पाया गया है। नगरीय क्षेत्र की निकटता होने के कारण हापुड़ विकास खण्ड में सामाजिक एवं आर्थिक विकास की दर उच्च पायी गयी है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों की उच्च उपलब्धता ने कृषि विकास को गति प्रदान की है। यहां पर विकसित स्थानीय बाजार तथा परिवहन की सुविधाएँ आर्थिक विकास की दर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। नगरीय क्षेत्र में कृषि उत्पादों की नियमित मांग ने कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन किया है। नगरीय क्षेत्र के आस-पास फल-फूल एवं साग-सब्जी की कृषि अधिकांशतः अध्ययन क्षेत्र में की जा रही है, जिससे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को सब्जियों की आपूर्ति की जाती है। इससे हापुड़ जनपद को नियमित आय की प्राप्ति हो रही है। इसके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मदद मिल रही है।

भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव ग्रामीण स्तर पर कृषि क्षेत्र में विषमता तथा सामाजिक एवं आर्थिक विकास में असमानता को कम करने हेतु स्थानीय स्तर पर संसाधनों को विकसित कर नियोजन की प्रक्रिया को अपनाना होगा। यहां पर कृषि को विकसित करने तथा आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने हेतु निम्न उपाय किये जा सकते हैं-
1. समन्वित कृषि को वरीयता प्रदान कर आर्थिक विकास के स्तर को उच्च किया जा सकता है। इसके साथ ही साथ आर्थिक असमानता को भी कम करने में सहायता मिलेगी।
2. ग्रामीण स्तर पर यातायात एवं परिवहन सुविधाओं को विकसित कर नगरीय क्षेत्र से जोड़कर विकास की गति को बढ़ाया जा सकता है।
3. ग्रामीण स्तर पर कृषि आधारित उद्योग-धन्धे विकसित कर रोजगार के नये अवसर प्रदान किये जा सकते हैं, जिससे गरीबी एवं बेरोजगारी की दर को कम किया जा सकता है।
4. पशुपालन, मत्स्यन, कुककुट पालन तथा मधुमक्खी पालन को वरीयता प्रदान कर अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। इससे कृषकों की आर्थिक स्थिति में तीव्र गति से सुधार होना अपेक्षित है।
5. भूमिगत जल के गिरते स्तर को बचाने हेतु कम सिंचाई वाली फसलों का उत्पादन किया जाये। साथ ही साथ लघु कालिक फसल वाले बीजों का प्रयोग कृषि हेतु किया जाये ताकि समय, श्रम, धन तथा जल को बचाया जा सके।
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