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G-20 सम्मेलन और भारतीय विदेश नीति
: समसामयिक संदर्भ में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन |
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G-20 Summit and Indian Foreign Policy: An Analytical Study in Contemporary Context | |||||||
Paper Id :
18258 Submission Date :
2023-11-11 Acceptance Date :
2023-11-21 Publication Date :
2023-11-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.10450200 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
वर्तमान में विश्व एक
असंतुलन और दिशाहीनता का शिकार है। जलवायु परिवर्तन और अन्य अंतर्राष्ट्रीय खतरों
के प्रति भी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया अप्रभावी रही है। वैश्वीकरण से पीछे हटना
और संरक्षणवाद, व्यापार का क्षेत्रीयकरण, शक्ति संतुलन का स्थानांतरण, नई शक्तियों का उदय और कई देशों के मध्य की रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता जैसे
कारकों ने विश्व के भू-राजनीतिक और आर्थिक गुरुत्व केंद्रों को एशिया की ओर
स्थानांतरित कर दिया है। राज्यों के बीच और उनके अंदर असमानता की स्थिति ने एक
संकीर्ण राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद को जन्म दिया है। हम एक नए ध्रुवीकृत युग में
प्रवेश कर रहे हैं और ‘एंथ्रोपोसीन’ युग के पारिस्थितिक संकटों का सामना कर रहे हैं, जहाँ जलवायु परिवर्तन एक अस्तित्वपरक खतरा बनता जा रहा है। भारतीय विदेश नीति का एक
प्रमुख सिद्धांत 'वसुधैव कुटुंबकम' का सही अर्थ सार्वभौमिक भाईचारे और सभी प्राणियों
के परस्पर जुड़ाव के सार को समाहित करता है। भारत की अध्यक्षता में आयोजित हुए G-20 सम्मेलन के द्वारा एक दुनिया, एक परिवार और एक भविष्य का मूल मंत्र लिए हुए भारत ने अपनी
ओर से यह सराहनीय प्रयास किया है कि दुनिया के बड़े देश जो आमतौर पर दुनिया के सबसे
बड़े आर्थिक समूह G-20 समूह के सदस्य भी हैं, अपने मध्य के विवादों का हल निकालें और एक स्वर में जलवायु
परिवर्तन, आतंकवाद, आर्थिक निम्नीकरण और असमानता जैसे संकटों का समाधान निकालें। भारत की
अध्यक्षता में आयेजित हुए G-20 के सफल सम्मेलन से विश्व को इस बात की उम्मीद
है कि वर्तमान वैश्विक विभाजन में कमी आएगी, क्योंकि भारत की विदेश नीति दुनिया में संतुलन के साथ मिलकर कार्य करने पर जोर
देती है और भारत ग्लोबल साउथ देशों और दुनिया के मध्य एक सेतु के रूप में अपनी
भूमिका निभाता है।
ध्यातव्य है कि वर्तमान में
भारत, विश्व के लगभग सभी मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज
करा रहा है और अधिकांश बहुपक्षीय संस्थानों में उसकी स्थिति मजबूत हो रही है। भारत
द्वारा G-20 की अध्यक्षता ‘ग्लोबल साउथ’ के उद्देश्य को समर्थन देने के साथ-साथ नई
महत्वाकांक्षा लेकर आई है। इसके साथ ही इसने ‘थर्ड वर्ल्ड’ की एकजुटता पर नए विचारों और उद्देश्यों को
सामने ला दिया है। भारत का मॉडल इस मामले में बेहद अद्वितीय है और ग्लोबल साउथ के
देशों का मार्गदर्शन करने में वर्तमान में सबसे बेहतर और सुसंगत है। G-20 के माध्यम से भारत कोविड महामारी के बाद आई दिक्कतों से
दुनियाभर के विकासशील और अल्पविकसित देशों की रुकी हुई या नकारात्मक विकास दर को
आगे बढ़ाने का एक आह्वान किया है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | At present, the world is a victim of imbalance and directionlessness. We are neither in a state of bipolar cold war nor moving towards a multipolar system, rather the entire world is gradually getting divided into many power centres. The lack of a united or coherent international response to the COVID-19 pandemic has confirmed the absence of an international order in the world and the ineffectiveness of multilateral institutions. The international response to climate change and other international threats has also been ineffective. Factors such as retreat from globalization and protectionism, regionalization of trade, shifting balance of power, emergence of new powers and strategic rivalry among many countries have shifted the world's geopolitical and economic centers of gravity towards Asia. The state of inequality between and within states has given rise to a narrow nationalism and regionalism. We are entering a new polarized era and facing the ecological crises of the ‘Anthropocene’ era, where climate change is becoming an existential threat. The true meaning of Vasudhaiva Kutumbakam, a core principle of Indian foreign policy, captures the essence of universal brotherhood and interconnectedness of all beings. Through the G-20 conference organized under the chairmanship of India, with the basic mantra of one world, one family and one future, India has made a commendable effort on its part that the big countries of the world, which are usually the world's largest economic group, They are also members of the Group of 20, resolve disputes among themselves and address crises like climate change, terrorism, economic degradation and inequality with one voice. The successful G-20 conference held under the chairmanship of India gives the world hope that the current global divide will reduce, because India's foreign policy emphasizes on working together with balance in the world and India will work with the countries of the Global South. And plays its role as a bridge between the worlds. It is noteworthy that at present India is making its presence felt on almost all the forums of the world and its position is getting strengthened in most of the multilateral institutions. India's chairmanship of the G-20 brings with it new ambitions while supporting the cause of the 'Global South'. Along with this, it has brought forward new ideas and objectives on the solidarity of the 'Third World'. India's model is extremely unique in this regard and is currently the best and most consistent in guiding the countries of the Global South. Through the G-20, India has given a call to take forward the stalled or negative growth rate of developing and underdeveloped countries around the world due to the problems faced by the Covid pandemic. |
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मुख्य शब्द | वैश्वीकरण, तृतीय विश्व, बहु ध्रुवीयता, साझा दृष्टिकोण, औपनिवेशीकरण। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Globalization, Third World, Multi-polarity, Shared Perspective, Colonization. | ||||||
प्रस्तावना | वैश्वीकरण
और अन्य कारणों की वजह से समस्याएं आज वैश्विक स्तर पर हैं और उनका समाधान कुछ
देशों के प्रयासों से संभव नहीं है, वही दूसरी ओर एक राष्ट्र की समस्याएं न
केवल उस अकेले देश को प्रभावित करती हैं बल्कि पूरी दुनिया में उसका प्रभाव पड़ता
है। एक आकलन के मुताबिक यदि राष्ट्र वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए पुरजोर
तरीके से साथ आते हैं तो दुनियाभर की गहन समस्यों में तेजी और गुणवत्तापूर्ण तरीके
से सुधार किया जा सकता है। कोरोना महामारी, राष्ट्रों के मध्य संघर्ष,
आर्थिक नकारात्मकता,
जलवायु परिवर्तन,
स्वास्थ्य,
आतंकवाद और आपूर्ति शृंखला के
अवरुद्ध होने से वैश्विक एकता और अधिक जरूरी हो गई है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोधपत्र का
उद्देश्य G-20 सम्मेलन और भारतीय विदेश नीति
का समसामयिक संदर्भ में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन करना है। किया है। |
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साहित्यावलोकन | दुनिया को संतुलित करने के प्रयास में
और उत्तर पर नजर रखते हुए भारत ‘दक्षिण’ को साधने की उम्मीद कर रहा है। ग्लोबल साउथ के कई देश अभी भी गरीबी और
आर्थिक असमानता से जूझ रहे हैं, जिससे उनके लिये विकास संबंधी पहलों को लागू करना कठिन सिद्ध हो सकता
है। ग्लोबल साउथ के कई देशों में व्याप्त राजनीतिक अस्थिरता दीर्घकालिक विकास
योजनाओं को क्रियान्वित करना कठिन बना सकती है और विदेशी निवेश के लिये प्रतिकूल
वातावरण का भी निर्माण कर सकती है। ग्लोबल साउथ के कई देशों में सड़कों, बंदरगाहों और बिजली जैसी
बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, जिससे विदेशी निवेश को आकर्षित करना तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
कठिन साबित हो सकता है। इन देशों में जलवायु परिवर्तन एक बढ़ती हुई चिंता का विषय
है क्योंकि यह गरीबी एवं असमानता की मौजूदा स्थिति को और गंभीर बना सकती है तथा
विकास के लिये नई चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती है। |
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विश्लेषण | भारत ने 01 दिसंबर 2022 को
इंडोनेशिया से G-20 की अध्यक्षता संभाली।
भारत की अध्यक्षता में नई
दिल्ली में G-20 शिखर
सम्मेलन का सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, यह विश्व स्तर पर
भारत के लिए कुछ सकारात्मक सुर्खियाँ उत्पन्न करने में कामयाब रहा। यहां तक कि भारत के कट्टर आलोचकों को भी यह स्वीकार करना पड़ा कि उनकी उम्मीदों के
विपरीत, नई दिल्ली एक ऐसे समय में एक सफल शिखर सम्मेलन
आयोजित करने में कामयाब रही जब भू-राजनीतिक और विकासात्मक
दोष-रेखाएं दिन पर दिन तेज होती जा रही हैं। चीनी राष्ट्रपति
शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (और
शायद इसकी वजह से) की अनुपस्थिति के बावजूद, दुनिया का एक बड़ा हिस्सा सहमत हुआ और भारत की वैश्विक विकास प्राथमिकताओं
पर अपनी मुहर लगाई। नई दिल्ली से एक मजबूत संदेश गया है कि भारत अब, पहले से कहीं अधिक, आगे बढ़कर नेतृत्व करने और
अपनी पुरानी उदासीनता को दूर करने के लिए तैयार है। भारत ने अपनी अध्यक्षता में दिल्ली में आयोजित इस सम्मेलन
में अल्प विकसित और विकासशील देशों को विशेष महत्व दिया है, ताकि
वे अपना सतत विकास कर सकें। G-20 की एकवर्षीय
अध्यक्षता भारत के लिये वैश्विक दक्षिण को एकजुट करने का एक अवसर बना जहाँ भारत और
वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों ने एक साथ आने तथा साझा समस्याओं एवं चुनौतियों के
साथ ही सहयोग एवं सहभागिता के अवसरों पर चर्चा करने के लिये एक मंच का उपयोग किया। G-20 शिखर सम्मेलन में भारत और वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों ने अपनी चिंताओं
को अभिव्यक्त किया और आर्थिक विकास, व्यापार, निवेश एवं विकास जैसे प्रमुख मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण साझा किया। यह
शिखर सम्मेलन भारत और वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों के लिये अपने प्रयासों को
समन्वित करने तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने एवं गरीबी को कम करने के उद्देश्य
से क्रियान्वित पहलों पर सहयोग करने के लिये एक मंच के रूप में भी काम करेगा। भारत की G-20 अध्यक्षता दुनिया के लिए कई सारे अवसर ले कर आई
है जिसके माध्यम से उन वैश्विक समस्याओं को हल करने का मौका है जो अभी तक लंबित
पड़ी हुई थी। महाशक्ति के रूप में आगे बढ़ते भारत के पास यह सामर्थ्य है कि वह इन
चुनौतियों से निपटते हुए सभी देशों को एक मंच पर ला कर वैश्विक समस्यों का समाधान
करने की पहल करे। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल 20 शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लेकर आए बल्कि उन्होनें वैश्विक समस्याओं को हल करने के लिए इसे एक अच्छी स्थिति करार दिया। लेकिन यूक्रेन
में जारी युद्ध पर समूह के नेताओं में मतभेद थे और घोषणा पत्र के साथ ही ये मतभेद
भी खत्म हो गए। इस शिखर सम्मेलन के आयोजन से पहले कई लोग
इसे लेकर काफी आशंकित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मेलन के पहले
दिन सर्वसम्मति से अंतिम समझौते की घोषणा करके उन संदेहों को दूर करने में सक्षम
हुए जो यूरोप में जारी युद्ध की भाषा से जुड़े थे। इस घोषणा पत्र पर रूस और चीन
दोनों ने साइन किए थे। ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक ने कहा कि समूह एक 'बहुत मजबूत' संदेश देने पर सहमत हुआ है। जर्मन
चांसलर ओलाफ स्कोल्ज ने इसे 'भारतीय
कूटनीति की सफलता' और कहा, 'कई
लोगों ने पहले नहीं सोचा था कि यह संभव होगा।' इस बार
के जी-20 घोषणा पत्र में पिछले साल की तुलना में नरम
शब्द थे। यह सीधे तौर पर रूस की निंदा न करने में सफल रहा। सभी देश घोषणा पर सहमत
हुए, जिससे भारत को कूटनीतिक सफलता का दावा करने का
मौका मिला। कुछ विशेषज्ञों ने समझौते को रूस की जीत के रूप में देखा, जबकि अन्य ने इसे पश्चिम के लिए एक उपलब्धि बताया। लेकिन अधिकांश इस बात
पर सहमत हैं कि यह भारत के लिए विदेश नीति की जीत है। विल्सन सेंटर के साउथ एशिया
इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन ने सात प्रमुख औद्योगिक देशों के समूह का
जिक्र किया। उन्होनें कहा, 'हम जी-20 को आखिरकार एक वास्तविक वैश्विक इकाई के रूप में और जी-7 की छाया से उभरते हुए देख रहे हैं।' यह पश्चिमी
और गैर-पश्चिमी शक्तियों और ग्लोबल साउथ के साझा लक्ष्यों को
आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने के एक सफल केस स्टडी के रूप में उभर रहा है।' G-20 की अध्यक्षता भारत के लिए कई
कारणों से मायने रखती है- 1. अफ्रीकी संघ (African Union) को G-20 संगठन में पूर्ण सदस्य के रूप में
शामिल करने का निर्णय लिया गया। 2. ‘नई दिल्ली लीडर्स डिक्लेरेशन’ पर सदस्य देशों के
प्रमुखों द्वारा हस्ताक्षर किया गया, जहाँ तय किया गया
है कि समावेशी विकास पर बल दिया जाएगा। 3. भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle
East-Europe Economic Corridor- IMEC) की
स्थापना के लिये भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, संयुक्त अरब अमीरात, फ्राँस, जर्मनी और इटली की सरकारों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए। 4. वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuel Alliance-GBA) का निर्माण किया गया जिसमें भारत, अमेरिका, ब्राज़ील, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, इटली, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त
अरब अमीरात शामिल हैं। यह गठबंधन जैव ईंधन के अधिकतम उपयोग पर बल देगा। 5. इसके अलावा ‘वन फ्यूचर अलायंस’ का शुभारंभ किया गया और एक
‘ग्लोबल डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर रिपॉजिटरी’ की स्थापना की गई। 6. G-20 नेताओं ने वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने पर सहमति
व्यक्त की और अनियंत्रित कोयला ऊर्जा को चरणबद्ध तरीके से कम करने की आवश्यकता को
स्वीकार किया। भारतीय विदेश नीति के रूप में एजेंडे का निर्धारण- एजेंडा
विशेषकर बहुपक्षीय मंचों पर शक्ति और प्रभाव हासिल करने और बढ़ाने के लिए एक मौलिक
और प्राथमिक उपकरण है। साल भर चलने वाली G-20 की
अध्यक्षता भारत को वैश्विक एजेंडा निर्धारित करने, नीतियों
को स्पष्ट करने और महत्वपूर्ण आर्थिक, विकास, सामाजिक-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर आम सहमति
बनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है। ग्लोबल साउथ की आवाज़ के अगुआ के रूप में - वैश्विक मंचों पर, भारत हमेशा ग्लोबल साउथ की
आवाज़ बनने के लिए प्रचार और प्रयास करना चाहता था। भारत ग्लोबल साउथ के हितों और
ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में नई दिल्ली की अपनी साख को आगे बढ़ाने के लिए अपनी G-20 नेतृत्व भूमिका का उपयोग कर सकता है। रैंड कॉरपोरेशन में इंडो-पैसिफिक की नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले विश्लेषक डेरेक ग्रॉसमैन
ने कहते हैं, 'भारत का बयान उभरते ग्लोबल साउथ की आवाज का
प्रतीक है। यह भारत के लिए बड़ा बदलाव है खासकर चीन के खिलाफ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा
के संदर्भ में, जिससे उसे इस गुट का नेता बनने में मदद
मिल रही है।' शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री ने
यह भी घोषणा की कि समूह ने अफ्रीकी संघ को एक स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने
पर सहमति व्यक्त की है। साथ ही वैश्विक दक्षिण के विकासशील देशों के लिए
महत्वपूर्ण अन्य प्रमुख मुद्दों पर प्रगति की है। समावेशी विकास के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु - बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार करके उन्हें अधिक समावेशी
और जिम्मेदार बनाना भारतीय विदेश नीति की सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं में से एक
है। जलवायु परिवर्तन, आर्थिक सुधार, महामारी और बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव जैसे मुद्दों का
सामना करते हुए, वैश्विक समुदाय प्रभावी और जवाबदेह
बहुपक्षीय संस्थानों की तलाश कर रहा है जो क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
इसलिए, भारत ने 21वीं सदी की
चुनौतियों से निपटने के लिए उपयुक्त सुधारित बहुपक्षवाद को अपनी राष्ट्रपति
प्राथमिकताओं में से एक के रूप में रखा। यदि भारत के नेतृत्व में G-20, लंबे समय से लंबित इस मुद्दे पर प्रगति की सुविधा प्रदान करता है, तो इससे वैश्विक राजनीति में भारत का कद और रुतबा बढ़ेगा। वैश्विक संकटों के समाधान हेतु - भारत
का G-20 की अध्यक्षता का पद ऐसे समय में आया है जब
वैश्विक स्तर पर उतार-चढ़ाव के दौर के साथ-साथ वैश्विक तनाव भी बढ़ रहा है। दुनिया को कई चुनौतियों का सामना करना
पड़ रहा है, जिनमें कोविड-19 के बाद आर्थिक सुधार, जलवायु परिवर्तन, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा संकट, आपूर्ति श्रृंखला
में व्यवधान और संघर्ष शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को उम्मीद है कि भारत इन
मुद्दों के समाधान के लिए वैश्विक सहमति बनाने और वैश्विक आम वस्तुओं के भविष्य के
एजेंडे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसी तरह, दुनिया यह भी उम्मीद कर रही है कि भारत देशों के बीच बढ़ते विभाजन को न
केवल विकासशील और विकसित दुनिया बल्कि पश्चिम के बीच भी दरार, खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में पाटेगा। वैश्विक संस्थानों का पुनरुद्धार - असफल और लड़खड़ाती बहुपक्षवाद जल्द ही पुनर्जीवित नहीं होने वाली है, सिर्फ इसलिए कि भारत का मानना है कि उसे
अफ्रीकी संघ को जी-20 के पवित्र दायरे में लाना चाहिए
या भारत लाने में कामयाब रहा। वैश्विक संस्थानों का पुनरुद्धार इस बात पर निर्भर
करता है कि शक्ति संतुलन तेजी से विकसित होने पर प्रमुख हितधारक, विशेष रूप से प्रमुख शक्तियां एक-दूसरे से कैसे
संबंधित हैं। मध्य शक्ति के रूप में भारत केवल दुनिया को यह याद दिलाकर अधिक
गतिशीलता पर जोर देने की कोशिश कर सकता है कि मौजूदा वैश्विक संस्थाएं उभरती विश्व
व्यवस्था का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। अमेरिका और भारत के मध्य बढ़ते संबंध - इस वर्ष जी-20 प्रक्रिया और परिणाम भारत की
अपनी विदेश नीति प्राथमिकताओं के अनुरूप होने की गाथा है। आज भारतीय बाहरी जुड़ाव
को आकार देने वाली सबसे महत्वपूर्ण प्रवृत्ति वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच
असाधारण अभिसरण है। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के
अटूट समर्थन के साथ जी-20 के नतीजे की पटकथा एक ऐसे
रिश्ते के परिवर्तन को रेखांकित करती है जिसका दायरा तेजी से वैश्विक होता जा रहा
है। भारत और अमेरिका अक्सर वैश्विक मंचों पर एक-दूसरे के
विरोधी हुआ करते थे, लेकिन आज अमेरिका एक कदम पीछे हटने
को तैयार है, अगर इसका मतलब भारत को बढ़त हासिल करना
है। बेशक, यह अपने दिल की भलाई के लिए नहीं किया जा रहा
है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है कि
भारत-अमेरिका संबंध वैश्विक परिणामों को आकार देते रहें।
भारत अमेरिका के साथ अपने तालमेल का लाभ उठाने में बेहतर हो रहा है। इसलिए, भारत के लिए यह
व्यापक अमेरिकी समर्थन व्यापक पश्चिम के साथ भारत के संबंधों को बदल रहा है।
हालाँकि यूरोप शुरू में यूक्रेन पर जी-20 की भाषा को
कमजोर करने का समर्थन करने के लिए अनिच्छुक था, लेकिन
अमेरिका भारत के साथ इस विभाजन को पाटने में महत्वपूर्ण था। भारत इस बात से अच्छी
तरह वाकिफ है कि ऐसे समय में जब चीन का उदय वैश्विक रणनीतिक प्राथमिकताओं को आकार
दे रहा है, पश्चिम के साथ मजबूत जुड़ाव एक नीतिगत
अनिवार्यता है। यूक्रेन द्वारा पेश की गई चुनौती के बावजूद, पश्चिम के साथ भारत के संबंध मजबूत हुए हैं। रूस पर भारत की स्थिति की यह समझ ही थी
जिसने न केवल नई दिल्ली घोषणा को संभव बनाया, बल्कि भारत को रूस
के साथ संचार के अपने चैनल खुले रखने की भी अनुमति दी। रूस का प्रश्न आज भारतीय
विदेश नीति विमर्श में केंद्रीय है। घटती शक्ति के साथ संबंधों को प्रबंधित करना
कूटनीति में एक कठिन काम है और नई दिल्ली रूसी चिंताओं को दूर करने के लिए उत्सुक
है कि वह इसे छोड़ने की योजना बना रही है। यह फिर से उस तरीके से परिलक्षित हुआ
जिस तरह से भारत ने जी-20 में यूक्रेन मुद्दे पर संपर्क
किया था, जहां क्षेत्रीय संप्रभुता और संयुक्त राष्ट्र
चार्टर से लेकर परमाणु हथियारों के उपयोग के खतरे तक कई मुद्दों पर रूस को बिना
नाम लिए निशाना बनाया गया था। रूस के लिए, चीन के
आलिंगन में अधिक आराम है, जिससे यह भारत के सामने सबसे
महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है। चीन के प्रति संतुलक के रूप में कार्य - संपूर्ण जी-20 प्रक्रिया के दौरान चीन का दबदबा
रहा, जहां उसकी अवरोधक प्रवृत्ति पूरे प्रदर्शन पर थी, लेकिन भारत ने भी बीजिंग के खिलाफ दबाव डालने के लिए अन्य समान विचारधारा
वाले देशों के साथ काम करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया। दुनिया के एक बड़े
हिस्से और विशेष रूप से ग्लोबल साउथ द्वारा 'बिगाड़ने
वाले' के रूप में देखे जाने के खतरे ने आखिरकार चीन को
मेज पर ला खड़ा किया। लेकिन शी जिनपिंग की अनुपस्थिति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि
कैसे चीन-भारत द्वंद तेजी से वैश्विक मंचों पर अपने आप में
एक प्रमुख दोष-रेखा के रूप में उभर रहा है। पुरानी आशावाद कि
द्विपक्षीय रूप से चीन और भारत के बीच कठिन संबंध हैं, वे
वैश्विक स्तर पर एक साथ काम करने की कोशिश कर सकते हैं, पूरी तरह से धूमिल हो गया है। जी20 में, भारत ने दिखाया कि जहां बीजिंग के पास अधिक आर्थिक और सैन्य ताकत हो सकती
है, वहीं नई दिल्ली कई तरीकों से चीन को चुनौती देने
में अपनी साझेदारी का लाभ उठा सकती है। अफ्रीका से मध्य पूर्व तक पुराने और नए हितधारकों तक भारत
की वैश्विक पहुंच, G-20 में पर्याप्त प्रदर्शन पर, नई दिल्ली की विदेश नीति की आकांक्षाओं को आकार देने वाली अंतिम प्रवृत्ति
है। यह कोई पुरानी शैली का तीसरा विश्ववाद नहीं है जिसे कुछ लोग ग़लती से समझ रहे
हैं। यह समान विचारधारा वाले अभिनेताओं के तदर्थ गठबंधन बनाकर स्पष्ट रूप से
परिभाषित उद्देश्यों की आंतरिक रूप से व्यावहारिक खोज है। अधिक आत्मविश्वासी और
आत्मविश्वासी भारत आज वैश्विक राजनीति में एक नई दिशा तय कर रहा है। जी-20 शिखर सम्मेलन में इसकी सफलता बहुपक्षीय व्यवस्था में इसकी भूमिका के बारे
में कम है, और इस बारे में अधिक है कि यह अतीत के
वैचारिक बोझ के बिना अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों को कैसे आगे बढ़ाने की कोशिश कर
रही है। सर्वसम्मत घोषणा पत्र की क्रियान्विति- "इस आयोजित जी-20 समूह की भारत की अध्यक्षता के
नेताओं के शिखर सम्मेलन में ‘नई दिल्ली घोषणा’ को सर्वसम्मति से अपनाने के साथ एक बड़ी सफलता मिली। यह खासतौर पर
महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इस किस्म की सर्वानुमति की उम्मीद बहुत ही कम थी।
विभिन्न विशेषज्ञों, राजनयिकों और अधिकारियों ने इस बात
की उम्मीद बहुत कम ही लगा रखी थी कि भारत के वार्ताकार वह हासिल करने में कामयाब
होंगे जो अब तक कुछ देश ही कर पाए हैं: यूक्रेन युद्ध
के मुद्दे पर “पश्चिमी” जी-7-ईयू धुरी और रूस-चीन गठबंधन के बीच मेल-मिलाप। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में, दोनों
पक्षों के वीटो की वजह से इस मसले पर अब तक एक भी बयान पारित नहीं हो पाया है। भले
ही 2022 में इंडोनेशियाई जी-20 वार्ताकार रूस की आलोचना (जी-7 ने इन पर जोर दिया था) के संदर्भ में एक
संयुक्त बयान देने में कामयाब रहे, लेकिन यह आम सहमति
ज्यादा देर तक कायम नहीं रही और रूस एवं चीन ने इस साल इसे दोहराने से इनकार कर
दिया। चूंकि हरेक भारतीय मंत्रिस्तरीय बैठक संयुक्त बयान में सफलता के बगैर समाप्त
हुई थी, लिहाजा भारत की वार्ता टीम ने यूक्रेन से जुड़े
पैराग्राफ से निपटने से पहले अन्य मुद्दों पर आम सहमति हासिल करने का एक ज्यादा
सुविचारित नजरिया अपनाया। जी-7 द्वारा रूस की आलोचना करने वाली भाषा के अपने आग्रह से
समझौता करते हुए अपेक्षाकृत ज्यादा तटस्थ पैराग्राफ रखने के लिए मान जाने के बाद
एक सफलता मिली। इस घोषणापत्र ने वह हासिल किया जो आज के वैश्विक ध्रुवीकरण के दौर
में दरअसल नामुमकिन है। उस प्रक्रिया में, भारत की “मध्यम मार्ग” की नीति उसकी सबसे बड़ी ताकत रही।
साथ ही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा साल भर के
दौरान जी-20 के कई नेताओं से व्यक्तिगत रूप से संपर्क
साधने की भी भूमिका रही। एक अन्य महत्वपूर्ण पहल “ग्लोबल
साउथ” को शामिल करने की रही, जिसमें कई ऐसे जी-20 सदस्य भी शामिल थे, जो इस झगड़े में किसी का भी पक्ष लेने के अनिच्छुक थे और इसके बजाय
वैश्विक विकास के मुद्दों से जुड़ी प्राथमिकताओं की ओर बढ़ना चाहते थे। नतीजतन,
83 पैराग्राफों वाली इस घोषणा ने क्रिप्टोकरेंसी के विनियमन के
मसले पर प्रगति की और दक्षिणी दुनिया के देशों के लिए जलवायु परिवर्तन संबंधी
अनुकूलन और उत्सर्जन में कमी लाने वाली परियोजनाओं के लिए आवश्य कलगभग 10 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा तय किया। हालांकि, वह
जीवाश्म ईंधन को “चरणबद्ध तरीके से हटाने” से जुड़ी किसी भी समयसीमा पर सहमत होने में नाकाम रही। कई अन्य पहलें भी रही। मसलन, 55-सदस्यीय अफ्रीकी संघ को शामिल करने के कदम ने उस असंतुलन को दुरुस्त कर दिया है जो अब तक सिर्फ यूरोपीय संघ को ही जी-20 में एक क्षेत्रीय समूह के रूप में दाखिल होने की इजाजत देता था। वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस) उस दुनिया के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के बारे में और ज्यादा अनुसंधान और वितरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रहा जो अभी भी जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है। अंत में, अमेरिकी निवेश के वादे के साथ एक भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर के निर्माण से जुड़ी चमकदार संभावनाएं हैं। हालांकि, इसके वित्तपोषण और कार्यान्वयन का विवरण अभी भी तैयार किए जाने की जरूरत है। जी-20 को एक सामान्य एवं एक ही स्थल पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम के ढर्रे से बाहर ले जाने और 60 से ज्यादा शहरों में 200 बैठकें आयोजित करने, 125 देशों के 1,00,000 से अधिक आधिकारिक आगंतुकों की मेजबानी करने के भारत के प्रयास को एक अनूठी पहल के रूप में देखा गया है, भले ही काफी ज्यादा अतिरिक्त खर्च की कीमत पर। अब यह देखना बाकी है कि भविष्य के जी-20 शिखर सम्मेलनों में इस चलन का अनुसरण करने का एक व्यवहारिक उदाहरण देखने को मिलेगा या नहीं। इन सबसे भी ऊपर, भारत का जी-20 आयोजन एक ऐसे संगठन को “लोकप्रिय” बनाने के अपने प्रयास में एक अमिट छाप छोड़ता है जिसे अब तक एक नीरस और उबाऊ कार्यक्रम के रूप में देखा जाता रहा है जो विश्व नेताओं को एक उच्च मेज पर लाता है, जहां रहस्यमय विषयों पर चर्चा की जाती है, लेकिन लिए गए फैसलों की कोई समीक्षा नहीं की जाती है, और व्यापक वैश्विक आबादी के जीवन में कोई वास्तविक बदलाव नहीं लाया जाता है। इस लिहाज से, भारत द्वारा जी20 की अध्यक्षता छोड़ने से पहले इस साल नवंबर में एक आभासी “समीक्षा” बैठक आयोजित करने का श्री मोदी का फैसला बीते सप्ताह के अंत में लिए गए निर्णयों के कार्यान्वयन और समीक्षा को सुनिश्चित करने का एक मौका देता है जिसे “भारत का जी20 क्षण” करार दिया गया है। |
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निष्कर्ष |
दिल्ली
में आयोजित G-20 बैठक में भारत ने आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की और बाधाओं के बावजूद इस स्तर
के आयोजन के अनुरूप एक सर्वसम्मत घोषणा प्रस्तुत करने में सफल रहा।
इस प्रकार
इस सम्मेलन में भारत द्वारा अध्यक्षता करना और वसुदेव कुटुंबकम के लक्ष्य की
पूर्ति हेतु भारत द्वारा इस सम्मेलन के द्वारा किए गए प्रयास निश्चित रूप से भारत
की विदेश नीति को एक नए परचम तक पहुंचा रहे हैं और इससे न केवल वैश्विक स्तर पर
भारत की प्रतिष्ठा और सम्मान में वृद्धि हुई है अपितु भारत के विदेश नीति के
सिद्धांतों को संपूर्ण विश्व द्वारा मान्यता भी मिली है। यह इस शताब्दी में भारत
के राष्ट्रीय हितों और विदेशनीति के लक्षण के अनुरूप भारत की बढ़ती शक्ति को इंगित
करती है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. अरोड़ा, वी. के. एण्ड अप्पादोराय, इण्डिया इन वर्ल्ड अफेअर्स, स्ट्रेलिगं पब्लिशर्स प्रा. लि., न्यू देहली, 1975. 2. अवस्थी, रामकुमार, राजनीति शास्त्र के नये क्षितिज, द मैकमिलन कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड, नई दिल्ली, 1972. 3. आडवाणी, एल.के., मेरा देश मेरा जीवन, भारत रूपा एण्ड कम्पनी, नई दिल्ली, 2008. 4. गुप्ता, डी. सी., इन्टरनेशनल अफेअर्स पार्ट-2, 1946-61, मेट्रोपोलिटन बुक वक्र्स, दिल्ली, 1962. 5. समद्दर, सुजीत, डिफेन्स, डवलपमेन्ट एण्ड नेशनल सिक्युरिटी, ज्ञान प्रकाशन, नई दिल्ली, 2005. 6. चेम्लिंग, आर. धीरज, ‘इण्डिया एण्ड द यूनाइटेड नेशंस, एसोशिएटेड पब्लिशिंग हाउस, न्यू देहली, 1978. 7. वर्मा, एस. पी. एण्ड मिश्रा के. पी. (सं.),
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