ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- IX December  - 2023
Anthology The Research
चरखारी में पर्यटन की एक झलक
A Glimpse of Tourism in Charkhari
Paper Id :  18400   Submission Date :  11/12/2023   Acceptance Date :  18/12/2023   Publication Date :  25/12/2023
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DOI:10.5281/zenodo.10604401
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सुमन सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
भूगोल विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, चरखारी,
महोबा,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

चरखारी उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित चित्रकूट धाम मण्डल के महोबा जनपद की एक तहसील है। भौगोलिक रूप से इसकी स्थिति 25023‘ 54.39” उत्तरी अक्षांश एवं 79056‘ 02.83” पूर्वी देशान्तर पर है। यह महोबा से 21 किमीदूर उत्तर- पश्चिम में स्थित है। सड़क मार्ग द्वारा महोबाछतरपुरखजुराहोचित्रकूटझाँसी एवं कानपुर से जुड़ा हुआ है। समीपस्थ रेलवे स्टेशन चरखारी रोड (इलाहाबाद-झांसी रेलमार्ग) है जो चरखारी से 10 किमीकी दूरी पर स्थित है। चरखारी नगर को छत्रसाल के वंशज राजा खुमान सिंह ने सन् 1761 में बसाया था। उस समय से लेकर आजादी तक चरखारी उत्तर भारत की एक शक्तिशाली रियासत थी जिसका क्षेत्रफल 808 वर्ग मील तथा जनसंख्या 120351 थी। इनके अन्तिम शासक राजा जयेन्द्र सिंह थे।

हरी-भरी पहाड़ियोंउपत्यकाओंकमलपुष्पों से आच्छादित सरोवरों और जयपुर की तर्ज पर बने मनोहर बाजार को देख यहाँ आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों ने इसे ‘बुन्देलखण्ड का हृदय‘, ‘बुन्देलखण्ड का कश्मीर‘ आदि उपमाओं से अलंकृत किया।

चरखारी में विजय सागरजय सागरगुमान सागरमलखान सागररतन सागर तथा मदन सागर आदि रमणीय सरोवर गुमान बिहारी जू मन्दिरगोवर्धन नाथ जू मन्दिरवासुदेव मन्दिरमाँ काली मन्दिरत्रिकूट के मन्दिर आदि रमणीक देवालयटोला तालब वन पार्कड्योढ़ी दरवाजाराजमहलमंगलगढ़ दुर्गगोवर्धन नाथ जू का मेला परिसररायल थियेटरअर्जुन बांध आदि पर्यटन के केन्द्र स्थल हैं। शासन और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार होकर यह पर्यटक स्थल अपनी दुर्दशा को झेल रहा है। यदि इस पर्यटन स्थल में पुनः सुधार कर ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के अवशेषों का पुनर्निमाण व सुरक्षा-संरक्षा कर मूलभूत सुविधाएं प्रदान कर दी जाये तो यहाँ पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनाया जा सकता है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Charkhari is a tehsil of Mahoba district of Chitrakoot Dham division located in Bundelkhand region of Uttar Pradesh. Geographically its location is at 250 23' 54.39" north latitude and 790 56' 02.83" east longitude. It is situated 21 km north-west of Mahoba. Mahoba is connected by road to Chhatarpur, Khajuraho, Chitrakoot, Jhansi and Kanpur. The nearest railway station is Charkhari Road (Allahabad-Jhansi Railway) which is located at a distance of 10 km from Charkhari. Charkhari Nagar was settled in 1761 by Raja Khuman Singh, a descendant of Chhatrasal. From that time till independence, Charkhari was a powerful princely state of North India with an area of 808 square miles and population of 120351. Their last ruler was Raja Jayendra Singh.
Seeing the lush green hills, valleys, lakes covered with lotus flowers and the beautiful market built on the lines of Jaipur, the domestic and foreign tourists coming here decorated it with epithets like 'Heart of Bundelkhand', 'Kashmir of Bundelkhand' etc.
Vijay Sagar, Jai Sagar, Guman Sagar, Malkhan Sagar, Ratan Sagar and Madan Sagar in Charkhari, beautiful lakes like Guman Bihari Zoo Manidar, Govardhan Nath Zoo Temple, Vasudev Temple, Maa Kali Temple, Trikut Temple etc., beautiful temples, Tola Talab Forest Park. , Deodhi Darwaza, Rajmahal, Mangalgarh Fort, fair complex of Govardhan Nath Zoo, Royal Theatre, Arjun Dam etc. are the center of tourism. This tourist spot is facing its plight as a victim of government and political neglect. If this tourist place is improved and the remains of historical and archaeological importance are rebuilt, protected and basic facilities are provided, then it can be made a center of tourist attraction.
मुख्य शब्द पर्यटन, पर्यटक, समरसता, सृजन, सामरिक, निधि, सद्भाव, वीरांगना, नैसर्गिक, शिल्प, सौन्दर्य, धरोहर, अनूठी, विरासत, आलम्ब, सरोवर, त्रिकूट, परिवेष्ठित, भ्रमरों, रजवाड़ा, रियासत, शासक, बुन्देल, राजप्रसाद, महल, परम्परा आदि।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Tourism, Tourist, Harmony, Creation, Strategic, Treasure, Harmony, Heroic, Natural, Craft, Beauty, Heritage, Unique, Inheritance, Fulcrum, Lake, Trikut, Surrounded, Confusion, Princely State, Principality, Ruler, Bundel, Rajprasad, Palace, Tradition etc.
प्रस्तावना

पर्यटन हमारे जीवन की सरसता का मूल है। पर्यटन रहित जीवन हमारे लिए भार स्वरूप है। वर्तमान में मानव जीवन अधिकाधिक जटिल एवं संघर्षमय बनता जा रहा है। एक क्षण के लिए भी हम अपने ह्नदय में संतोष और विश्राम का अनुभव नहीं कर पाते हैं। धनी हो या निर्धन, प्रत्येक व्यक्ति अपनी समस्याओं और चिन्ताओं से घिरा हुआ है। जीवन की शुष्कता और नीरसता को दूर करने में पर्यटन हमारा सहचर है।(1)

पिछले दशक से भारत में पर्यटन एक सशक्त उद्योग के रूप में उभरकर सामने आया है। स्वदेशी और विदेशी पर्यटकों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी के कारण हर वर्ष विदेशी मुद्रा की आय में काफी वृद्धि हो रही है। इससे लोगों को रोजगार के नए अवसर तथा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे की संस्कृति एवं परम्पराओं को जानने का अवसर मिला है।(2)

भारत सरकार ने नवम्बर 1982 में पहली बार पर्यटन नीति की घोषणा की। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी पर्यटकों के सम्मुख भारत को आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में प्रस्तुत करना तो था ही साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आपसी समझ विकसित करना, राष्ट्रीय आय बढ़ाना, रोजगार के अवसरों का सृजन तथा राष्ट्रीय एकता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर युवाओं को समझाकर उनके मध्य सामंजस्य स्थापित करना भी था। पर्यटन नीति में अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन को विदेशी मुद्रा के अर्जन का एक प्रमुख स्रोत माना गया और उसे प्राथमिकता दी गयी है। घरेलू पर्यटन के सम्बन्ध में कहा गया है कि पर्यटकों में सर्वाधिक संख्या घरेलू पर्यटकों की होती है। सर्वेक्षणों एवं अध्य्यनों से यह तथ्य सामने आए हैं कि घरेलू पर्यटकों में तीर्थस्थलों की यात्रा करने वालों की संख्या सबसे अधिक होती है, वहीं अन्तर्राष्टीªय पर्यटक हमारे पुरातात्विक, ऐतिहासिक एवं सामरिक निधि को देखने के लिए लालायित रहते हैं।(3)

इस प्रकार पर्यटन अब एक लाभकारी व्यवसाय के रूप में जाना जाने लगा है। इससे निम्नलिखित सामाजिक एवं आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं-

1. पर्यटन राष्टीªय एकता और अन्तर्राष्टीªय सद्भाव को बढ़ाता है।

2. यह रोजगाार का व्यापक सृजन करता है।

3. पर्यटन विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायक सिद्ध होता है।

4. पर्यटन से परिवहन के साधनों को प्रोत्साहन मिलता है।

5. पर्यटन से औद्योगिक शाखाओं का विकास होता है।

6. पर्यटकों से कर राजस्व की वसूली होती है।

7. संस्कृति के प्रचार-प्रसार में पर्यटन सहायक है।

8. पर्यटन स्थानीय हस्तकलाओं एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सहायक होता है।

इसके अतिरिक्त पर्यटन से फलोत्पादन, कृषि, होटल, सड़क, आवास, मनोरंजन के साधनों, गाइडों एवं अन्य उपयोगी सेवाओं को भी प्रोत्साहन मिलता है। पर्यटकों द्वारा आरामदायक वस्तुओं पर किया गया व्यय फुटकर विक्रेताओं, निर्माताओं एवं भोजनालयों तथा परिवहन सहित अन्य व्यावसायिक वर्गों के लिए आय का सृजन करती है। वह इस आय से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

बुन्देलखण्ड अपनी बहु आयामी विशिष्टता के कारण आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। आल्हा-ऊदल की वीरभूमि महोबा, वेदव्यास की जन्मभूमि कालपी, केशव एवं मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिवनी झांसी को कौन नहीं जानता। संग्रामिक क्षेत्र में बुन्देली धरा को वैश्विक महत्व प्रदान करने वाली वीरागंना दुर्गावती, महारानी लक्ष्मीबाई, राजा मर्दन सिंह, चन्द्रशेखर आजाद तथा पं0 परमानन्द जैसे पुरोधा इसी क्षेत्र के नर पुंगव हैं। बुन्देलखण्ड ने केवल साहित्यिक, सांग्रामिक एवं धार्मिक क्षेत्र में ही राष्ट्रीय गौरव को अन्तुंग नहीं किया अपितु इस क्षेत्र की नैसर्गिक सुषमा ने विश्व के पर्यटन इतिहास में अपने प्राकृतिक वैभव के नए पुष्ठ जोड़े हैं। चित्रकूट जैसे धार्मिक धरोहर के धनी क्षेत्र तथा खजुराहो जैसे विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल को कौन नहीं जानता। इतना सब कुछ होने के बाबजूद बुन्देलखण्ड में पर्यटन विकास उतना नहीं हुआ जितना कि अपेक्षित था। इस क्षेत्र में पर्यटन की सम्भावनाओं का पता लगाने की दृष्टि से  जनवरी 1988 में एक अध्ययन दल ने हमीरपुर का सर्वेक्षण किया था। उस दल ने महोबा एवं चरखारी को चुना एवं अपनी रिर्पोट में यहां पर्यटन की पर्याप्त सम्भावनाओं पर प्रकाश डाला।

माण्डव ऋषि की पुण्यतोया, 21 सरोवरों से घिरी बुन्देलखण्ड की कश्मीरएवं बुन्देलखण्ड का मिनि वृन्दावनके उपनाम से सम्बोधित चरखारीशिल्प सौन्दर्य की अनूठी नगरी है। यहाँ के प्राकृतिक वैभव की वीथिकाओं में सैलानियों का सैलाब उमड़ सकता है यदि इसे सरकार का सहयोग, सलिल एवं नागरिक चेतना का आलम्ब प्राप्त हो जाये।
अध्ययन का उद्देश्य

इस शोध अध्ययन का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के पर्यटन मानचित्र में महोबा जनपद के उत्तर- पश्चिम भाग में स्थित ऊंची पहाड़ियों की मनोरम श्रृखलाओं से एवं उपत्यकाओं से आच्छादित, चतुर्दिक कमलपुष्पों से सुशोभित सरोवरों के बीच बसी चरखारी के प्राकृतिक वैभव की वीथियों में पर्यटन विकास हेतु प्रशासन एवं स्थानीय जनता का ध्यानाकर्षण करना ताकि चरखारी में पर्यटन की निहित सम्भावनाओं का अधिकतम विकास किया जा सके जिससे यह क्षेत्र अपनी आर्थिक उन्नति करते हुए प्रदेश ही नहीं अपितु राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास में अपना महत्वपूर्ण सहयोग दे सके।

साहित्यावलोकन

कमलदलों से परिपूर्णनयनाभिराम झीलोंसुन्दर सरोवरोंप्राकृतिक वनोंपहाड़ियों की श्रृखलाओं एवं उपत्यकाओं से परिवेष्टित कश्मीर की वादियों को मात देती चरखारी को बुन्देलखण्ड का कश्मीर कहा गया है। यहाँ स्थित सरोवरों में कमलदलों पर गुनगुनाते भ्रमरों तथा चतुर्दिक फैली हरीतिमा को देखकर सभी का मन प्रसन्न हो जाता है। सरोवरों व झीलों के अतिरिक्त टोलातालाब वन पार्कप्रमुख देवमन्दिरमंगलगढ़ दुर्गड्योढ़ी दरवाजारायल थियेटर एवं अर्जुन बांध आदि

मुख्य पाठ

चरखारी का भौगोलिक परिचय

चरखारी उत्तर प्रदेश के दक्षिणी पठारी भाग में अवस्थित महोबा जनपद के पश्चिमोत्तर भाग में महोबा जनपद की एक प्रमुख तहसील है। 11 फरवरी 1995 से पूर्व यह हमीरपुर से जुड़ा था तत्पश्चात इसी तिथि को नया महोबा जिला बनने पर चरखारी को महोबा जिला की तहसील के रूप में सम्मिलित किया गया। भौगोलिक रूप से इसकी स्थिति 250 23‘ 54.39” उत्तरी अक्षांश एवं 790 56‘ 02.83” पूर्वी देशान्तर पर है। चरखारी तहसील का जिला महोबा की सीमाएं उत्तर में हमीरपुर जनपद, पुर्व में बांदा जनपद, पश्चिम में झांसी जनपद एवं दक्षिण में मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद से घिरी हैं। चरखारी नगर महोबा से कानपुर मार्ग पर महोबा मुख्यालय से 21 किमी0 की दूरी पर स्थित है। समीपस्थ रेलवे स्टेशन चरखारी रोड (इलाहाबाद-झांसी रेलमार्ग) है जो चरखारी से 10 किमी0 की दूरी पर स्थित है। खजुराहो पर्यटन केन्द्र से चरखारी की दुरी 85 किमी0 है।

चरखारी तहसील का उत्तरी भाग मैदानी तथा दक्षिणी भाग पठारी है। समस्त क्षेत्र असमतल है एवं अधिकांश भुमि असिंचित है। स्थान-स्थान पर विन्ध्यांचल से जुड़ी हुई पहाड़ियों की श्रृंखलाएं हैं जिनकी ऊंचाई 100 से 300 फीट तक है। वर्मा, अर्जून एवं सीह इस क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदियाँ हैं। सिंचाई हेतु चरखारी के समीप अर्जुन नदी पर अर्जुन बांध निर्मित है। सभी नदियाँ बरसाती हैं जो ग्रीष्म ऋतु में सूख जाती हैं। यहाँ की 30% जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है। यहाँ की कृषि मानसून पर निर्भर है। सिंचाई के साधनों का अभाव है। ग्रीष्म ऋतु में धूलभरी आंधियाँ एवं लू चलती है जो जन सामान्य को बेचैन कर देती है। जून माह में तापमान 480 250 सेण्टग्रेट तक पहुंच जाता है जबकि जनवरी में तापमान 2 से 40 सेण्टीग्रेट तक गिर जाता है। इस जलवायु का प्रभाव यहाँ के जीवों, वनस्पतियों एवं कृषि पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

चरखारी में कांवर पडुवा, राकड़ के साथ ऊसर मिट्टी का विस्तार अधिक है। सिंचाई के साधनों के अभाव में फसलों की प्रति हेक्टेयर पैदावार कम है। यहाँ सिंचाई के मुख्य साधन तालाब हैं। चरखारी में रबी की फसलों में गेहूं, चना, मसूर, जौ, अलसी, सरसों, मटर, अरहर आदि तथा खरीफ की फसलों में

बाजरा, मूं, उरद, मक्का, सन, तिल आदि जायद फसल में नदियों के किनारे खरबूज, तरबूज, ककड़ी, खीरा तथा तालाबों में भसींड़ा, सिंघाड़ा एवं कसेरू उगाये जाते हैं।

चरखारी की पहाड़ियाँ अधिकतर ग्रेनाइट की हैं जहाँ उच्च कोटि का ग्रेनाइट पाया जाता है जिससे कई स्टोन क्रेशर यहाँ चलते हैं। चरखारी के समीप गौरहरी गांव में गौरा पत्थर पाया जाता है। इस पत्थर से स्थानीय कारीगरों द्वारा विविध प्रकार की वस्तुओं तथा सुन्दर मूर्तियों का निर्माण किया जाता है जो दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं।




चरखारी के प्रमुख सरोवर

विजय सागर

चरखारी रियासत के शासकों में सबसे लम्बा शासनकाल विजय बहादुर सिंह जू देव का रहा। महाराज विजय बहादुर इस रियासत के संस्थापक खुमान सिंह के पुत्र थे। इन्होंने विजय सागर का निर्माण कराया था। यह सरोवर 22.33 हेक्टेयर के क्षेत्र में विस्तारित एवं कमल पुष्पों से आच्छादित है। इसका परिक्षेत्र लघु प्राचीर से आवृत सलिल सौन्दर्य को उड़ेलता, नयनाभिरामी बनता ऐसा प्रतीत होता है कि मानो इनके किनारे स्थित नाट्य साहित्य के सृजन का केन्द्र लेक व्यू (तालकोठी) इसकी सौन्दर्य सर्जना कर रहा हो।

जय सागर

महोबा से आने पर नगर प्रवेश करते ही नगर एवं बाईपास मार्ग के मध्य स्थित यह तालाब सैलानियों के लिए स्वागत सरोवर का काम करता है। इसका निर्माण इस रियासत के छठवें शासक जयसिंह जू देव के शासनकाल (1860 ई0) में उनके दीवान तात्यासाहिब गौर द्वारा कराया गया। यह सरोवर भी प्राकृतिक कमलपुष्पों से आच्छादित प्राकृतिक सौन्दर्य को प्रर्कीण करता है।

गुमान सागर

यह नगर के पश्चिमी छोर में रायनपुर मुहल्ले में स्थित गुमान बिहारी मन्दिर से लगा हुआ एक कलात्मक कोंण पर बना है। इस सरोवर को चरखारी रियासत के आठवें शासक महाराजा जुझार सिंह जू देव द्वारा 1890 ई0 में बनवाया गया था। इस सरोवर का नामकरण महारानी गुमान सिंह के नाम पर किया गया था। पश्चिमी तट पर भव्य मन्दिरों की लम्बी श्रृंखला की खूबसमरती से युक्त इस सरोवर के मध्य दो टापू स्थित हैं।

मलखान सागर

महाराजा जयसिंह के बाद (1880 ई0) महाराजा मलखान सिंह चरखारी रियासत के शासक बने। इन्होंने मलखान सागर का निर्माण कराया था जो चरखारी रोड स्टेशन की ओर जाने वाले सड़क मार्ग के पश्चिम में सूपा चौराहे के पास अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है।          

रतन सागर

महाराजा विजय विक्रमादित्य ने चरखारी में 48 वर्षों तक शासन किया था। इन्होंने एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया था जिसे रतन सागर कहा जाता है। इस सरोवर के एक भाग में मेहराब स्थित है। महाराजा ने यहाँ एक बगीचा भी लगवाया था जिसे मोतीबाग कहते हैं। पार्श्व में रमना का निर्माण कराया था जहाँ जंगली जानवर रहते हैं।

जल-तल मापक यंत्र- चरखारी के सरोवर प्राचीन कलाकारी के बेजोड़ नमूने हैं। सभी सरोवर एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुए थे, जिसके कारण इन सरोवरों में पानी की कभी कमी नहीं रही। रतन सागर स्थित मन्दिर तालाबों के जल-तल का मापक यंत्र था। मन्दिर में स्थित भगवान कृष्ण की मूर्ति तक पानी आने पर बाढ़ का खतरा माना जाता था।[4]

चरखारी के प्रमुख देव मन्दिर

चरखारी के राजा कृष्णबिहारी जू के अनन्य भक्त रहे हैं। फलतः उनके द्वारा इस नगर में देव मन्दिरों का निर्माण कराया गया, जो आज भी नगर में भक्तों की आस्था के केन्द्र बने हुए हैं। कृष्ण मन्दिरों की मेदिनी होने के कारण चरखारी का पूर्व नाम चक्रपुरी था। चरखारी के प्रमुख दर्शनीय देव मन्दिर निम्नलिखित हैं-             

1. गुमान बिहारी जू का मन्दिर-

चरखारी के मन्दिरों में गुमान बिहारी जू का मन्दिर एक ऐसा दर्शनीय स्थल है जहाँ ऐसा लगता है मानो वास्तुकला सजीव हो उठी हो। सचमुच यह आस्था का स्थल वास्तु वैभव का प्रतीक बन चुका है। गुमान सरोवर के तट पर बना यह मन्दिर केवल नगर के निवासियों की श्रद्धा एवं भक्ति का ही प्रमुख केन्द्र नहीं है अपितु पंक्तिबद्ध मन्दिरों के साथ स्थापत्यकला का उत्कृष्ट नमूना भी प्रस्तुत करता है। यहाँ पर प्रातः एवं सायं होने वाली आराधना एक ऐसे आध्यात्मिक पर्यावरण का निर्माण करती है जिससे व्यक्तियों के वैचारिक प्रदूषण के निवारण में मद्द मिलती है।

2. गोवर्धन नाथ जू का मन्दिर-

इस रियासत के राजाओं में मलखान सिंह एक शासक हुए जिन्होंने इस रियासत के गौरव को उर्ध्वगामी बनाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी। ड्योढ़ी दरवाजा के समीप स्थित यह मन्दिर भी दर्शनीय, आराधना एवं उपासना का प्रमुख केन्द्र है।

3. गोपाल जू का मन्दिर-

सदर बाजार से लगी हुई पहाड़ी पर अवस्थित यह मन्दिर भी यहाँ के कृष्ण प्रेम का उदाहरण है। इस रमणीय स्थल को प्रकृति का उदात्त अनुदान मिला है।

4. वासुदेव मन्दिर-

चरखारी के बजरिया मुहल्ला से जुड़ी पहाड़ी पर बना यह पावनधाम अपने अतीत में कई कथानकों को छिपाए हुए है। इस देवालय से कुँवर पूरनमल की गद्दी उनकी मल्ल महारत की आज भी गवाही देती है। यह मन्दिर बड़ा ही रमणीक है।

5. माँ काली का मन्दिर-

म्ंगलगढ़ दुर्ग के बगल एवं चरखारी के खंदिया मुहल्ला से जुड़ा यह मन्दिर श्रद्धा एवं भक्ति का पुनीत स्थल है। वर्ष के दोनों नवरात्रियों में यहाँ श्रद्धालुओं की अपार भीड़ होती है। इस सिद्धपीठ में प्रकृति की मनोरमता एवं सुन्दरता का मणिकंचन योग हुआ है। आस्था के इस केन्द्र को प्रकृति की प्रचुर सुरम्यता का सुयोग मिलता है।

6. त्रिकूट के मन्दिर-

चरखारी पर्वत श्रेणियों से घिरी प्रकृति के अनुदानों से सदैव निहाल रही है। शैल शिखरों के सौन्दर्य ने प्रकृति की इस दुलारी देव नगरी को और भी अधिक सुन्दर बना दिया है। तीन ओर से पहाड़ों के शिखरों में बने माँ अंजनी, भगवान शिव का लिंग तथा नन्दी का मन्दिर वे पुण्य स्थल हैं, जहाँ पर श्रद्धा का संगम प्रवाहित होता है।

टोला तालाब वन पार्क

चरखारी से 03 किमी0 दूर पूर्वोत्तर दिशा में टोला तालाब नांमक पर्यटन स्थल है। महाराज जयसिंह ने वन क्षेत्र में स्थित इस टोला नांमक स्थान का चयन किया था। यहीं पर श्रोताओं के रूकने हेतु टोला नांमक ग्राम बसाया गया था तथा हवन-पूजन हेतु नवमढ़ी मन्दिर का निर्माण करवाया गया था। यहाँ विभिन्न धातुओं एवं रत्नों से नौ ग्रहों की स्थापना की गयी। इसलिए इसे नवमढ़ी नाम प्रदान किया गया। यहाँ नौ शिवलिंगों की स्थापना इस प्रकार से करायी गयी कि किसी भी दिशा से तीन शिवलिंगों का दर्शन एक साथ हो सके। इस मन्दिर के निकट उत्तर दिशा में सुरम्य पहाड़ी पर हनुमान जी का एक सुन्दर मन्दिर है। महोबा को पर्यटन नगरी का दर्जा मिलने के बाद इस दर्शनीय स्थल का विकास किया गया था। यहाँ चिल्ड्रेन पार्क, मृगबिहार, झूलापार्क, चेतना केन्द्र, निरीक्षण भवन आदि संलग्न दर्शनीय स्थल हैं। टोला तालाब के चारों ओर कच्चा मार्ग व पौधरोपण करके इस पर्यटन स्थल को मनमोहक एवं आर्कषक बनाया गया है। तालाब में कमल के पुष्प खिलते हैं जो इसकी शोभा को और बढ़ा देते हैं। टोला तालाब के समीप वन विभाग की नर्सरी है जहाँ अनेक प्रकार के पौधे उगाए जाते हैं। पहले इस क्षेत्र में नीलगाय, हिरन आदि जंगली जानवर भ्रमण करते थे जो अब दिखाई नहीं पड़ते।

ड्योढ़ी दरवाजा

सन् 18570 में जब गदर पड़ी, स्वतन्त्रता सेनानियों ने चरखारी को घेर लिया था, उसमें स्वतन्त्रता सेनानी तात्याटोपे भी थे। इन्होंने महाराजा रतनसिंह से किले की मांग की। मांग पूरी न किए जाने पर युद्ध छिड़ गया तथा तात्याटोपे ने घमासान लड़ाई की। चरखारी पर आक्रमण के समय बाँदा के नबाब भी तात्याटोपे का साथ दे रहे थे, इसलिए महाराजा रतनसिंह ने बाँदा के नबाब के ऊपर चढ़ाई कर दी और वहाँ से कई सामग्री लूट कर चरखारी लाए। लूटे हुए सामान में सोने के कलश और फाटक थे।[5] यही विशाल फाटक ड्योढ़ी दरवाजा में लगा है एवं दोनों गुम्बदों पर दो कलश हैं जो उस वक्त के युद्ध की याद दिलाते हैं।

ड्योढ़ी दरवाजा बालुका पत्थरों से निर्मित है जिसमें कलाकृतियाँ चित्रित्र हैं। ड्योढ़ी दरवाजा के अन्दर विस्तृत परिसर में राजमहल बना हुआ है, जो अब खण्डहर में तब्दील होता जा रहा है। सदर बाजार में दूर से ही सड़क मार्ग से भव्य व विशाल ड्योढ़ी दरवाजा आज दर्शनीय एवं कौतूहल उत्पन्न करता है।

मंगलगढ़ दुर्ग

विशाल क्षेत्रफल में बने प्राकृतिक सुषमा से घिरे किले के पूर्व की ओर दूर-दूर तक रतन सागर फैला हुआ है। किले के चारों ओर सुन्दर मार्ग बना हुआ था परन्तु अब यह मार्ग जीर्ण-शीर्ण हो चुका है।

मंगलगढ़ किला अपने तोपखाने के लिए प्रसिद्ध रहा है, उस समय यहाँ के तोपखाने में 33 तोपें थी जिनमें अष्टधातु की 3 तोपे सर्वश्रेष्ठ थी। शत्रुओं को घायल करने हेतु चौड़े मुख की तोपे थी। ये तोपे अब दुर्ग में उपेक्षित पड़ी हैं। मंगलगढ़ किले पर पहुंचने हेतु सीढ़ियाँ एवं मार्ग बने हैं। सीढ़ियाँ एवं खंदिया की ओर बना हुआ मार्ग क्षतिग्रस्त हो गया है। किले में लोहे का एक सुन्दर द्वार है। किले के ऊपर पानी के अनेक भण्डार हैं- बिहारी सागर, राजा सागर, रमनकुण्डा, सिद्धन की बहर, चौपड़ा, महावीर बहर तथा बखत। इनमें बिहारी सागर सबसे बड़ा है। दो तालाबों के समीप भव्य बरामदे बने हुए हैं। ये रानी महल के पास स्थित हैं। कुछ तालाबों के सुन्दर घाट अभी भी सुरक्षित हैं।

किले पर स्थित भव्य मन्दिरों में बांके बिहारी जू देव तथा बखत बिहारी जू देव का मन्दिर प्रमुख है। इनके अलावा सिद्ध बाबा का मन्दिर एवं हनुमान मन्दिर भी है। मंगलगढ़ दुर्ग में बने भवनों में राजमहल, महारानी महल, सरदार महल तथा किलेदार का महल प्रमुख है। यहाँ बारूदखाना, अटाला, भण्डार गृह, तोपखाना, चक्कीघर तथा बहला आदि भवन भी दर्शनीय हैं। समय की मार से ये भवन धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं।[6]

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद यह किला उपेक्षित रहा। वर्तमान में यह डी0 आर डी0 0 के पास है। यह पूरा किला दर्शनीय है। किले के ऊपर से सम्पूर्ण चरखारी नगर एवं आस-पास के गांवों के दृश्य मनोरम लगते हैं। यह विशाल दुर्ग का एक छोटा सा वर्णन है। यहाँ देखने को इतना है कि बार-बार देखने पर भी मन नहीं भरता है।


रायल थियेटर

बुन्देलखण्ड की लगभग 35 रियासतों में चरखारी को प्राकृतिक सुषमा, संगीत एवं साहित्य के क्षेत्र मे धनी होने का गौरव प्राप्त रहा है। यहाँ रजवाड़ों के समय निर्मित मन्दिर एवं राजप्रसाद केवल पुरातात्विक महत्व को ही प्रकट नहीं करते अपितु राजाओं की वास्तुप्रियता का भी परिचय देते हैं। महाराजा अरिमर्दन सिंह के शासनकाल में बना रायल थियेटर कुछ ऐसी ही कहानी का गवाह बना हुआ है। रायल थियेटर गोवर्धन नाथ जू के मेला परिसर में बनाया गया। थियेटर के बाहर रोडरोलर द्वारा 50 हार्स पावर के जेनरेटर द्वारा बिजली उत्पन्न की जाती थी। नाट्यशाला में चार बालकनियों में पंखे लगवाए गए थे जिनमें रानियां बैठकर नाटक देखा करती थी। इस नाट्यशाला में सामाजिक, धार्मिक तथा शिक्षाप्रद खेल प्रदर्शित होते थे।

इस रंगमंच की ख्याति की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि लोग नाटक देखने कोलकाता से आते थे। इस नाट्यशाला को टीकमगढ़, छतरपुर, बिजावर, पन्ना, सरीला एवं दतियां जैसी रियासतों का सानिध्य प्राप्त था। इस थियेटर ने लगभग एक दशक से अधिक समय तक शोहरत की नई ऊंचाईयों को प्राप्त किया और चरखारी को कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में लोकप्रियता प्रदान की।(7)

अर्जुन बांध

अर्जुन बांध परियोजना का निर्माण 1951-1955 के मध्य हुआ है। चरखारी रियासत में गोरखा गांव के पास अर्जुन बांध है जो लगभग 75 वर्ष प्राचीन है तथा स्थानीय लोगों में काफी छाया हुआ है। यह स्थानीय जल की आवश्यकताओं की पूर्ति का बहुत बड़ा साधन है। अर्जुन बांध के आस-पास भरे खेत और उसकी हरियाली आँखों को मुग्ध कर देती है। खेतों के साथ दूर खड़े पहाड़ का दर्शन बड़ा ही मनमोहक होता है। जब पहाडों से टकराती हुई और खेतों की फसलों को छूती हुई हवा व्यक्ति तक पहुंचती है तो उसकी खुशबू से मन प्रफुल्लित हो जाता है। यह बांध किसी झरने से कम नहीं है। जब भी बारिश होती है तो बांध पानी से लबालब होकर बहुत सुन्दर हो जाता है। अगस्त और सितम्बर के महीने में अर्जुन बांध का यह नजारा अद्भुत और रमणीक होता है। अर्जुन बांध न केवल चरखारी अपितु सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड के लिए खुशियों का वरदान है।

निष्कर्ष

चरखारी उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित चित्रकूट धाम मण्डल के महोबा जनपद की एक तहसील है। चरखारी नगर को छत्रसाल के वंशज राजा खुमान सिंह ने सन् 1761 में बसाया था। उस समय से लेकर आजादी तक चरखारी उत्तर भारत की एक शक्तिशाली रियासत थी जिसका क्षेत्रफल 808 वर्ग मील तथा जनसंख्या 120351 थी। इसके अन्तिम शासक राजा जयेन्द्र सिंह थे।

हरी-भरी पहाड़ियों, उपत्यकाओं, कमलपुष्पों से आचछादित सरोवरों और जयपुर की तर्ज पर बने मनोहर बाजार को देख यहाँ आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों ने इसे बुन्देलखण्ड का हृदय‘, ‘बुन्देलखण्ड का कश्मीर आदि उपमाओं से अलंकृत किया किंतु शासन और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार होकर यह पर्यटक स्थल अपनी दुर्दशा को झेल रहा है। यदि इस पर्यटन स्थल में पुनः सुधार कर ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के अवशेषों का पुनर्निमाण व सुरक्षा-संरक्षा कर मूलभूत सुविधाएं प्रदान कर दी जाये तो यहाँ पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनाया जा सकता है जिससे न केवल प्रादेशिक अपितु राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होगी।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. विपिन कुमार, 1991, विकासोन्मुख भारतीय पर्यटन उद्योग योजना, वर्ष-35, अंक-3, 542-योजना भवन, नई दिल्ली, पृ0- 9-10.

2. कुमारी कल्पना, 1974, पर्यटन यात्राओं का भौगोलिक महत्व, भूदर्शन, वर्ष-7, अंक-4, पृ0- 11-114, उदयपुर।

3. डॉ0 स्वामी प्रसाद एवं डॉ0 भवानीदीन, 2000, पर्यटन केन्द्र महोबा के विकास के अवरोधात्मक पक्ष, यू0 जी0 सी0 द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार (केन्द्र- राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चरखारी), 02 फरवरी 2002 में प्रस्तुत शोधपत्र।

4. सहस्र श्री गोवर्धन नाथ जू मेला, 1996 स्मारिका, चरखारी (महोबा) पृ0 8-9.

5. दैनिक जागरण, 5 अप्रैल 2010, कानपुर, पृ0-6.

6. सहस्र श्री गोवर्धन नाथ जू मेला, 1996 स्मारिका, चरखारी (महोबा) पृ0 24-25

7. डॉ0 अजिर बिहारी चौबे, 2000, मंगलगढ़ दुर्ग, ऐतिहासिक विवेचन, यू0 जी0 सी0 द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय सेमिनार, 2 फरवरी 2000, स्थान- राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चरखारी में प्रस्तुत शोध पत्र