ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- I April  - 2022
Anthology The Research
अमूर्तन और आकृतिमूलक दोनों शैलियों के प्रशंसक : जगदीश स्वामीनाथन
Fan of Both Abstract and Figurative Styles: Jagdish Swaminathan
Paper Id :  15964   Submission Date :  17/04/2022   Acceptance Date :  20/04/2022   Publication Date :  25/04/2022
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सविता वर्मा
सहआचार्य
चित्रकला विभाग
राजकीय कला महाविद्यालय,
कोटा,राजस्थान, भारत
सारांश एक चित्रकार के रूप में जगदीश स्वामीनाथन जिस तरह प्रकृति में रमते हैं, प्रकृति को ठीक उसी तरह उन्होंने अपनी कविताओं में भी पकड़ा है । उनके चित्रों के साथ- साथ उनकी कविताओं में भी उनके चित्रभाव और काव्य संवेदन के सूक्ष्म अनुभवों की प्रभावी अभिव्यक्ति है । संभवतः इसीलिये उनकी कविताओं को उनकी चित्रकृतियों के ही एक रूप में देखा वह पहचाना गया है । इस 'पहचान' को उनकी पेंटिंग्स के चित्रों में और उनकी कविताओं में महसूस किया जा सकता है ।मनमौजी, स्वच्छन्द और लगभग निरंकुश जीवन जीने वाले चित्रकार-कवि-चिन्तक स्वामीनाथन बेहद आर्टिकुलेट, सावधान, सजग और कई मामलों में बेहद सटीक व्यवहार करने वाले व्यक्ति और रचनाकार थे। वे पहले भारतीय चित्रकार थे जिन्होंने समसामयिक कला परिप्रेक्ष्य में आदिवासी और लोक कला को आधुनिक कला के समक्ष दर्जा दिलाया।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद As a painter, Jagdish Swaminathan has caught nature in the same way as he enjoys in nature. Along with his paintings, there is an effective expression of his pictorial and subtle experiences of poetic sensing in his poems as well. Perhaps that is why his poems have been seen in a form of his paintings, he has been recognized. This 'identity' can be felt in his paintings and in his poems. The painter-poet-thinker Swaminathan, who lived a temperamental, free-spirited and almost autocratic life, was extremely articulate, careful, alert and in many cases very precise. He was a man and a creator. He was the first Indian painter who brought tribal and folk art to the status of modern art in contemporary art perspective.
मुख्य शब्द निरंकुश, परिप्रेक्ष्य, स्वच्छंद, क्षितिज, द्वंद्व, सिद्धांतवादी, अख्तियार, पुनरुत्थानवाद, संजौली,प्रतिफलित, कम्युनिस्ट, विचारोत्तेजक, सभ्यताओं, संस्कृतियों, वेषभूषा, विचारोत्तेजन, मैट्रिकुलेशन,अंर्तरध्वनि,अन्तर्भेदी।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Absolutist, Perspective, Free, Horizon, Dualism, Dogmatic, Possessive, Revivalism, Condescending, Consequential, Communist, Suggestive, Civilizations, Cultures, Garb, Suggestive, Matriculation, Introspective, Intrusive.
प्रस्तावना
जे. स्वामीनाथन पहले ऐसे कलाकार थे जिन्होंने जीवन को केंद्र में रखकर अपने कलात्मक परिधि का निर्धारण किया। स्वामीनाथन ने आदिवासियों की आंतरिक संरचना में प्रवेश कर उन्हें कला रूपों के साथ संवाद स्थापित करने का अवसर दिया स्वामीनाथन ने एक पूर्ण कालीन कलाकार बनने का फैसला किया और अन्य कलाकारों के एक समूह के साथ समूह 1890 की स्थापना की। जीवन, विचार और कला के त्रिपक्ष को जिस तरह उन्होंने अभिव्यक्ति का स्वायत्त पक्ष बनाया, वो हमेशा उन्हें रचनात्मकता की दुनिया का अक्षर उल्लेख बनाए रखेगा।
अध्ययन का उद्देश्य जे स्वामीनाथन भारतीय चित्रकला के प्रयोगवादी धरातल पर संपूर्ण रंग चेतना के साथ सृजनरत रहे। भारतीय कला के क्षितिज पर अपनी एक विशेष शैली के साथ निरंतर अग्रसर रहें, इसका अध्ययन ही उद्देश्य है।
साहित्यावलोकन
कलाकार, लेखक,सिद्धांतवादी, संस्थापक सांस्कृतिक कार्यकर्ता जगदीश स्वामीनाथन अपनी उथल-पुथल भरी जिंदगी में कला, विचारों और राजनीति के जगत में हमेशा छाए रहे। वह असाधारण संकल्प वाले आत्मविश्वासी कलाकार थे। जिन्होंने समकालीन कला की स्वदेशी परख का आधार स्थापित किया। वह हमेशा पूरी तरह से आत्मनिर्भर थे। वे एक भिन्न दृष्टिकोण से सोचने वाले अधीर युवक की तरह होने की आवश्यकता पर बल देते थे और वाद-विवाद में उत्तेजक रुख अख्तियार कर लेते थे। उन्होंने किसी प्रकार के पुनरुत्थानवाद का समर्थन नहीं किया उन्होंने उस समय स्थानीयता की बात कीे। उन्होंने पौल क्ली को आत्मीय ढंग से देखा क्योंकि उन्होंने कला और आदिवासी कलाकारों के बीच काम किया था। जगदीश स्वामीनाथन गांधी और मार्क्स से प्रेरित वह लोक और आदिवासी कलाकारों के पक्षधर थे और भारतीय आधुनिक कला संसार पर उनका प्रभाव महत्वपूर्ण माना जाता है। मनमौजी, स्वच्छन्द और लगभग निरंकुश जीवन जीने वाले चित्रकार-कवि-चिन्तक स्वामीनाथन बेहद आर्टिकुलेट, सावधान, सजग और कई मामलों में बेहद सटीक व्यवहार करने वाले व्यक्ति और रचनाकार थे।
मुख्य पाठ

21 जून 1928 को जब स्वामीनाथन का जन्म हुआ, मूसलाधार बारिश हो रही थी। रात का समय था। स्थान था शिमला। जिस घर में जन्म हुआ उसका नाम था प्लेजेण्ट हाउस। यह संजौली में था। माँ को लगा मानो कृष्णआया है। कृष्ण के जन्म पर भी तो मूसलाधार वर्षा हुई थी। शायद यह भी एक कारण हो कि कृष्ण-श्याम की तरह स्वामीनाथन को घर में पुकारने का नाम श्यामपड़ा जो तमिल उच्चारण में चामहो गया। और वह परिजनों के बीच आजीवन चामकहकर ही बुलाये जाते रहे- चाम काका, चाम मामा आदि। शिमला के साथ स्वामीनाथन का सम्बन्ध सिर्फ़ जन्मस्थान का ही नहीं रहा। यह सम्बन्ध कई रूपों में प्रतिफलित हुआ। बचपन का बड़ा हिस्सा शिमला में ही बीता। स्कूली पढ़ाई भी वहीं हुई। दिल्ली और शिमला में सर हारकोर्ट बटलर हाई स्कूल में। इसी स्कूल में चित्रकार रामकुमार और लेखक निर्मल वर्मा भी पढ़ते थे। यहीं से निर्मल से शुरू हुई मित्रता जो जीवनपर्यत बनी रही। और रामकुमार के भी स्नेही बने रहे।    

1942 में स्वामीनाथन के मैट्रीकुलेशन का वर्ष भारत छोड़ोआन्दोलन की शुरुआत का वर्ष था। अगले वर्ष स्वामीनाथन ने दिल्ली के हिन्दू कॉलेज में प्रिमेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी, और 1943 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए। यहां वह नामचीन हस्तियों और नेताओं जैसे आचार्य नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अरूणा आसफ अली के संपर्क में आए। स्वतंत्रता के बाद वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए लेकिन 1955 में सक्रिय राजनीति से अलग हो गए । अब वह दिन में पत्रकार के रूप में काम करते थे और शाम को कुछ समय वह दिल्ली पॉलिटेक्निक में कला कक्षाओं में शामिल होते थे वहां उन पर रोमानी और स्वच्छंद प्रवृत्ति के शैलोज मुखर्जी का गहरा प्रभाव पडा।

उनकी समूची वेशभूषा एक तरह के स्वामीऔर बाबाकी तरह थी। दक्षिण भारतीय परिधान सफ़ेद लुंगी-कुरते में, अपनी दाढ़ी और लम्बे बालों के साथ स्वामीसचमुच एक स्वामी की तरह ही लगते थे। हाँ, अकसर मुँह में फँसी हुई बीड़ी, और अन्तरंग गोष्ठियों में रस-पान उन्हें ज़रूर ही एक मित्र-रूप दे देते थे। वह दूर से पहचाने जाते थे, और जब पास आ जाते थे या कोई उनके पास चला जाता था तो वह उसे बहुत अपने लगने लगते थे। स्वामी का चुम्बकीय व्यक्तित्व था।

तमिल भाषी, हिन्दी प्रेमी, अँग्रेज़ी में अच्छा अधिकार रखने वाले स्वामी के जो भी निकट आया, वह उनके निकट होने की इच्छा रखने लगता था। एक बार किसी के निकट आ जाने पर वह स्वयं तो सामने वाले व्यक्ति को अपने निकट का, बिल्कुल अपना ही मानने लगते थे, दूसरे को भी यही लगता था, यही कारण था कि उनकी मित्र-मण्डली बहुत बड़ी थी। कला और कविता को एक साथ साधने का अभ्यास रवींद्रनाथ ठाकुर के बाद अगर किसी के यहां बड़े फलक पर दिखता है तो वे स्वामीनाथन ही थे।

कला और कविता को लेकर, सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक जीवन को लेकर स्वामी हमेशा स्वयं को, और औरों को भी एक विचारोत्तेजन से भरते रहे हैं। वह एक विशेष शैली का स्वामी था, और एक विशेष आत्मा का भी |' एक चित्रकार के रूप में जगदीश स्वामीनाथन जिस तरह प्रकृति में रमते हैं, प्रकृति को ठीक उसी तरह उन्होंने अपनी कविताओं में भी 'पकड़ा' है । उनके चित्रों के साथ साथ उनकी कविताओं में भी उनके चित्रभाव और काव्य संवेदन के सूक्ष्म अनुभवों की प्रभावी अभिव्यक्ति है । संभवतः इसीलिये उनकी कविताओं को उनकी चित्रकृतियों के ही एक रूप में देखा व पहचाना गया है । इस 'पहचान' को उनकी पेंटिंग्स के चित्रों में और उनकी कविताओं में महसूस किया जा सकता है ।

स्वामी उन विलक्षण लोगों में से थे जो अपने समय में दुनिया को, सृष्टि को, सभ्यताओं-संस्कृतियों को, राजनीति को, मनुष्य को, प्रकृति को, जीवन शैलियों को खुली आँखों से देखते रहे और उन्हें समझने-समझाने की चेष्टा करते रहे। वे रचनात्मक चीज़ों के ही पक्षधर थे और पूर्व-पश्चिमके द्वन्द्व में कभी ज़्यादा नहीं पड़े। जहाँ उन्हें रचना में खरापन, कला में एक नवोन्मेषी उभार दिखायी पड़ा या किसी पुरानी चीज़ में कुछ ऐसे तत्व, जिनमें समकालीन प्रासंगिकता देखी जा सके, वे उसके साथ हो लिये। स्वामी का स्वभाव प्रतिरोधी भी था, जिसे अँग्रेज़ी में कॉम्बैटिव कहा गया है। गीता कपूर ने स्वामी के लिए एकाधिक बार इस शब्द का इस्तेमाल किया है। हाँ, प्रतिरोधी प्रवृत्ति उनमें थी जो एक प्रकार के जुझारुपन की ओर भी ले जाती थी। स्वामी से पहले यह स्वभाव, यह प्रवृत्ति सूज़ा में ही देखने को मिलती है। स्वामी अपनी जीवन शैली में, लोगों से मिलने-जुलने के मामले में किसी भेद-विभेद के पक्षधर नहीं थे। कलाकार या व्यक्ति चाहे सामान्य कोटि का हो, या बुद्धि-वैभव और रचना में विलक्षण, उसके साथ व्यवहारएक-सा हो, यही वह चाहते थे। ऐसा सामाजिक व्यवहारस्वयं भी करते थे। स्वामी जैसे व्यक्ति और कलाकार का अत्यन्त सक्रिय, क्रियाशील दिमाग़ और दिल तो अपने को मानो लगातार एक प्रवाह में रखता था और कुछ न कुछ बुनता भी रहता था। अपने को कई तरह से पुनर्नवा करता रहता था। उसके विचारों में परिवर्तन भी होता था जो किसी विचलनकी जगह प्रज्ञा और जीवनी शक्ति का एक नवोन्मेष हुआ करता था। उनका जीवन रोज़ के हिसाब से भी छोटी-बड़ी घटनाओं का अम्बार रहा है। मानो एक ही दिन में इतने प्रसंग घट जाते थे कि लगता था कि वह एक दिन मानो एक जीवन के बराबर हो। इनमें कई प्रसंग कुछ नाटकीय और अप्रत्याशित भी होते थे। यह अकारण नहीं है कि उनके मित्रों-परिजनों, युवा मित्रों, लेखकों कलाकारों (जिनमें आदिवासी कलाकार बड़ी संख्या में शामिल हैं) से लेकर, विभिन्न क्षेत्रों के अधिकारियों-कर्मचारियों के पास उनसे जुड़े हुए कई सच्चे क़िस्से हैं, जो उनके कोमल मन और साहसिक बीहड़मन का पता एक साथ देते हैं। लेखकों-कलाकारों और कर्मचारियों-अधिकारियों के अलावा, रंगकर्मियों, फ़िल्मकारों, नृत्य-संगीत की दुनिया के लोगों सहित, न जाने कितने अन्य लोगों से स्वामी के सम्बन्ध रहे हैं। स्वामी में अनौपचारिक बातचीत को भी तत्काल एक विमर्श में बुन देने की अद्भुत क्षमता थी। वह बहुत प्लानिंगकरने में विश्वास नहीं रखते थे और भविष्य के एकाध कार्यक्रम को छोड़कर, शेष कोई घोषणा नहीं करते थे।

स्वामी की कृतियों में रचे संसार का सत्य एक ऐसे मौलिक सर्जक का सत्य है जो काल, इतिहास, आकांक्षा और आगत- विगत की प्राथमिकता से मुक्त है। यही कारण है कि किसी विशेष पद्धति, संरचना और संदर्भ में रखकर उनकी कृतियों को देखना सर्वथा असंभव नहीं तो दुष्कर अवश्य है। अशोक वाजपेयी  कहते हैं कि "स्वामी की कला में कला का इतिहास अंर्तरध्वनि या रूपायित नहीं है, उसमें कला का प्राकरूप पाने की चेष्टा है। यह चेस्टा इतिहास में है; हालांकि उसकी छलांग इतिहास के पार जाने की है। इस चेस्टा को हम पश्चिम  का मुंह जोहती चालू भारतीय आधुनिकता के विलोम के रूप में देख सकते हैं। उसमें गहरा जातीय अवबोध सक्रिय हैवह भारतीय अवबोध जिसमें सब समय एक साथ है, तभी तत्काल है।"एक अन्तर्भेदी दृष्टि मानो स्वामी के पास हमेशा मौजूद रहती थी। नाक-कान भी चौकन्ने ही रहते थे।

स्वामीनाथ में आधुनिक भारतीय कला को एक नए विचार - प्रविधि से संयुक्त कर ऐसा असंभव कार्य किया जिसकी आवश्यकता महसूस की जा रही थी, पर पश्चिमी दबावों और भारतीय अपेक्षाओं के द्वंद्व में ऐसा कार्य अन्य कलाकार नहीं कर सके। हमारे देश का आकाश खुला हुआ है उसमें धूप भरी होती है चटक रंगों वाली चीजें चटक रंगों में दिखती हैं स्वामीनाथन के चित्रों में रंग भी धूप से चमकते हुए हैं लाल पीले हरे नीले का इस्तेमाल उनके चित्रों में खूब हुआ है धूप में चीजों की परछाई भी दिखती है उनके कुछ चित्रों में ऊपर उड़ती चिड़िया की परछाई भी नीचे दिखती है धरती और आकाश का विस्तार उनके चित्र में बहुत अच्छा लगता है।

चित्रकार स्वामीनाथन को चिड़िया बनाना बहुत पसंद था उनके कई चित्रों में यह चिड़िया दूर आकाश में उड़ती हुई दिखाई पड़ जाती है कई बार वह किस किसी चट्टान पर बैठी होती है और वह चट्टान भी उड़ रही होती है ऐसा लगता है जैसे चट्टान को चिड़िया ही अपने पंखों पर आकाश में उड़ा रही है आकाश पर कभी-कभी सूर्य या चंद्रमा का भी आकार होता है और पहाड़ भी दिखाई पड़ जाते हैं कभी-कभी पेड़ फूल भी दिख जाते हैं उनके चित्र को देखकर कभी लगता है जैसे धरती आकाश मिल रहे हो एक दूसरे से। उन्होंने कहा था : ‘कला में मनुष्य, मनुष्य को ही सम्बोधित होता है, किसी पशु-पक्षी या वनस्पति-जगत को नहीं। उसके सोचने-करने में भले ही सृष्टि के अनेकों तत्व समा जाएँ पर वह जो कुछ भी सोचता-करता-बनाता है, वह मनुष्य को ही तो ध्यान में रखकर, उसे ही प्रेषित करता है।

रंगछवि और शब्द के बीच की एक सूत्रता पर कला जगत में आधुनिक दौर में आलोचकीय बहस तो खूब हुई, पर इस एकसूत्रता को साधने वाले कम ही हुए हैं।जगदीश स्वामीनाथन का नाम इस लिहाज से अहम है कि वह न सिर्फ इस एकसूत्रता की कसौटी पर खरे उतरते हैं बल्कि अपनी तूलिका और कलम से मनुष्य की चेतना और संवेदना का गहन स्पर्श करते हुए अभिव्यक्ति की एक स्वायत्त और सघन दुनिया भी रखते हैं। 1958 में ललित कला अकादमी से पोलैंड के लिए उन्हें छात्रवृत्ति मिली, जिस पर वे वार्सा गए और वहां जाकर वहां के ललित कला संकाय में चित्रकला का अध्ययन किया । 1968-70 के लिए उन्हें 'समकालीन कला में देव प्रतिमाओं के महत्व' विषय पर प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरु फेलौशिप दी गई। उन्हें 1969 साओपाओलो  अंतरराष्ट्रीय कला द्विवार्षिकी की अंतरराष्ट्रीय ज्यूरी का सदस्य भी बनाया गया । आधुनिक भारतीय कला में जगदीश स्वामीनाथन ऐसे पहले कला संग्राहक के रूप में याद किए जाएंगे जिन्होंने 'रूपअंर' को नागर और आदिवासी, लोक कला का अद्भुत संग्रहालय बनाया। आदिवासी कला पर 'हस्तकौशल को समझते हुए'पुस्तक भी उन्होंने लिखी और इस कला को भारतीय कला की मुख्यधारा में प्रतिष्ठित किया।

जे.स्वामीनाथन कुछ प्रमुख रचनाएँ

गाँव का झल्ला ,पुराना रिश्ता , सेव और सुग्गा , दूसरा पहाड़ , जलता दयार मनचला पेड़ , कौन मरा, ग्राम देवता , श्रेणियाँ:

 

Bird, Tree and Mountain Series              Bird, Tree and Mountain Series

 

Lily by my window                             Bird & Mountain Series      

         

Tribal Motif                                 Bird, Tree and Mountain                       

निष्कर्ष स्वामी की कला आत्मलोचन की कला भी है स्वयं स्वामी कला में अपनी ही आलोचना करते हैं। उनकी कला का सबसे अहम पक्ष है उनकी सतह का विनियोजन। यह सतह दर्शक को विचलित करती है। सतह छूती है और अपने रिक्ति में भी गहरे अर्थ के रहस्य को प्रकट करती है उनकी कृतियों में टूटे हुए अक्षर भी अपने अधूरे जन्म की कथा कहते हैं। स्वयं स्वामी ने इनके बारे में लिखा है "हम पाते हैं कि इन रेखा कानों में रेखाएं लिपि बनने की ओर प्रयत्नशील है। वे एक ऐसी भाषा के बिखरे हुए अधूरे अक्षर हैं जिसे उत्पन्न होना बाकी है।"स्वामी की कला में प्रकृति तो है, पर मनुष्य बहुत कम है जगदीश स्वामीनाथन को भोपाल में रूपंकर (भारत भवन) का प्रथम निदेशक नियुक्त किया गया। जिसका उद्घाटन 13 फरवरी 1982 में हुआ था। जे स्वामीनाथन को मरणोपरांत मध्य प्रदेश सरकार ने कालिदास सम्मान प्रदान किया। 2007 में, स्वामीनाथन द्वारा एक शीर्षकहीन कृति को क्रिस्टी में $312,000 में नीलाम किया गया था। जीवन, विचार और कला के त्रिपक्ष को जिस तरह उन्होंने अभिव्यक्ति का स्वायत्त पक्ष बनाया, वो हमेशा उन्हें रचनात्मकता की दुनिया का अक्षर उल्लेख बनाए रखेगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. भारत संदर्श, नवदीप सूरी ( खंड 24 अंक 6/2010 ) 2. जगदीश स्वामीनाथन, ज्योतिष जोशी, समकालीन भारतीय कला श्रृंखला (ललित कला अकादमी, नई दिल्ली) 3. भारतीय कला के हस्ताक्षर, ज्योतिष जोशी। 4. जे स्वामीनाथन, कृष्ण खन्ना द्वारा। 5. ललित कला अकादमी, 1994 6. https://en-m-wikipedia-org.translate.goog/wiki/Jagdish_Swaminathan