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मध्यप्रदेश राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की कृषि
वित्त की आवश्यकता |
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Need of Agricultural Finance of Small and Marginal Farmers in Dhar District of Madhya Pradesh State | |||||||
Paper Id :
18555 Submission Date :
2024-02-13 Acceptance Date :
2024-02-22 Publication Date :
2024-02-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.10799940 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
धार जिले के लघु एवं सीमान्त कृषकों को उन्नत किस्म के बीजों के
क्रय हेतु, उर्वरकों के क्रय हेतु, कीटनाशक दवाईयों के क्रय हेतु,
सिंचाई सुविधाओं के विकास हेतु,
भूमि सुधार और भूमि विकास
संबंधी योजनाओं के लिए तथा कृषि औजारों और मशीनों के क्रय हेतु कृषि वित्त की
आवश्यकता होती है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | There is a need for agricultural finance, to the small and marginal farmers of Dhar district for the purchase of improved quality seeds, for the purchase of fertilizers, for the purchase of pesticides, for the development of irrigation facilities, for the schemes related to land reform and land development and for the purchase of agricultural tools and machines. | ||||||
मुख्य शब्द | कृषि वित्त, बीज , उर्वरक, सिंचाई, कृषि यंत्र। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Agricultural Finance, Seeds, Fertilizers, Irrigation, Agricultural Equipment. | ||||||
प्रस्तावना | भारत की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान हैं। उत्पादन एवं रोजगार
के अवसर के लिए भारत की अर्थव्यवस्था सर्वाधिक कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर हैं। कृषि वित्त का आय उस वित्त से हैं जो कि प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से
खेतों में उत्पाद बढ़ाने हेतु प्रदत्त किया गया हो। अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाये रखने और उसे विकास की ओर उन्मुख करने के
लिये वित्त का महत्वपूर्ण स्थान हैं। प्रो. किण्डलबरजर ने ठीक ही लिखा हैं कि “वित्त
विकास प्रक्रिया में केन्द्रीय स्थान ही नहीं रखता वरन् उसके लिये सामाजिक महत्व
भी रखता हैं। पूँजी निर्माण की प्रक्रिया परस्पर क्रियात्मक तथा संचयी होती हैं, क्योंकि पूँजी निर्माण आय में वृद्धि करता हैं, जिससे और अधिक पूँजी निर्माण संभव होता हैं।' प्रत्यक्ष कृषि ऋण से तात्पर्य उस ऋण से हैं जो कि बैंकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किसान को दिया जाता हैं एवं उसी से वसूल भी किया जाता हैं। अप्रत्यक्ष कृषि ऋण वे ऋण हैं जो कि प्रत्यक्ष रूप से किसान को नहीं दिये जाते हैं परन्तु उन ऋणों का उपयोग कृषि उत्पाद के विकास के लिये होता हैं। उदाहरण स्वरूप उर्वरक का व्यापारी इत्यादि। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. उन्नत
किस्म के बीजों के क्रय हेतु कृषि वित्त की आवश्यकता का अध्ययन करना| 2.
उर्वरकों के क्रय हेतु कृषि वित्त की आवश्यकता का अध्ययन करना| 3. कीटनाशक
दवाइयों के क्रय हेतु कृषि वित्त की आवश्यकता का अध्ययन करना| 4. सिंचाई
सुविधाओं के विकास हेतु कृषि वित्त की आवश्यकता का अध्ययन करना| 5. भूमि
सुधार और भूमि विकास संबंधी योजनाओं के लिए कृषि वित्त की आवश्यकता का अध्ययन करना| 6. सिंचाई प्रभारों का भुगतान करने हेतु कृषि वित्त की आवश्यकता का अध्ययन करना| 7. कृषि औजारों और मशीनों को क्रय करने हेतु कृषि वित्त की आवश्यकता का अध्ययन करना| |
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साहित्यावलोकन | लघु एवम् सीमांत कृषकों की कृषि वित्त
की आवश्यकता के संबंध में "भारतीय कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उल्लेख
किया गया है| प्रस्तुत शोध अध्ययन में अनुसंधान की दैव निदशन पद्धति, सविचार व अवलोकन एवं सर्वेक्षण पद्धति के आधार पर संकलित
प्राथमिक एवं द्वितीयक संमको का उपयोग किया गया।
प्राथमिक समंको को प्राप्त करने के लिए धार जिले के 10 विकासखण्डों से पर्याप्त
प्रतिनिधित्व के अनुसार चयनित 100 सीमान्त कृषक व 100 लघु कृषक कुल 200 कृषकों का
साक्षात्कार करके प्रश्नावली अनुसार सर्वेक्षण कार्य किया गया। |
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मुख्य पाठ |
लघु एवं सीमान्त कृषकों को निम्नलिखित कार्यों के लिये कृषि वित्त की आवश्यकता
होतीं है - 1. उन्नत किस्म के बीजों के क्रय हेतु बीज से अभिप्राय बोने व रोपाई करने के लिये उपयोग में लाये जाने वाले
खाद्यान्न फसलों के बीज, दलहनो व तिलहनो के बीज,
फल एवं सब्जियों के बीज, कपास बीज, पशुओं के लिए चारा (घास) के बीज, कन्द, प्रकन्द, जड़े-कलमें, कार्यिक रूप में प्रवर्धित
अन्य पदार्थ तथा जुट बीज से है| बीजों को संबंधित एवं संरक्षित करके उनमें अनुवांशिक गुणो में वृद्धि कर फसलों के उत्पादन को बढ़ाने
वाले बीज उन्नत बीज का महत्वपूर्ण योगदान होता हैं। खरीफ, रबी व जायद तथा अन्य मौसमी फसलों के उत्पादन हेतु समय-समय
पर लघु एवं सीमान्त कृषकों को उन्नत किस्म के बीजों के क्रय हेतु कृषि वित्त की
आवशयकता होती हैं। 2. उर्वरक (खाद) के क्रय हेतु उर्वरक कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक तत्व होता क्योंकि कृषि फसलों की वृद्धि
हेतु आवश्यक खनिज तत्व जैसे - नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश , गंधक परम्परागत एवं जैवीय खादों का भी प्रयोग किया जाता
हैं। नाईट्रोजन:- इससे पत्ते और फसल की बाढ़ अधिक होती हैं, पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। इसके आभाव में पौधे पीले
पड़ जाते हैं. बीज पतले और सिकुड़े हुए रह जाते हैं। फास्फोरस:- इससे जड़ो की बाढ़ अच्छी होती हैं और वे स्वस्थ और मजबूत
होती हैं, फसल जल्दी पकती हैं और बीज
पुष्ट होते हैं। उपज भी अधिक होती हैं। दलहन की फसलों और फलों के लिए इसका खाद
बहुत अच्छा होता हैं। पौटाश:- शर्करायुक्त पदार्थों की बनावट के लिए व फलों के सुंदर
आकार तथा उनके अच्छे स्वाद के लिए इसकी आवश्यकता होती हैं। पौधे मजबूत होते हैं
जिससे वे बीमारियों से बचाव कर सकते हैं। गंघक:- मिट्टी में गंधक की कमी के कारण फसल की कीट - व्याधियों के
प्रति निरोधक क्षमता में कमी के साथ जड़ो की ग्रंथियो की कमी से नई कोपलें पीली
पड़नें लगती हैं, इसकी पूर्ती के लिए गंधक
युक्त उर्वरक जैसे -का उपयोग करने से इनके प्रमुख तत्व की पूर्ति के साथ गंधक की
भी पूर्ति हो जाती हैं। इस प्रकार कृषि फसलों के उत्पादन में वृद्धि हेतु उर्वरक की आवश्यकता वर्ष -
प्रतिवर्ष होती हैं, अतः उर्वरकों के क्रय हेतु
समय - समय पर कृषि वित्त की आवश्यकता होती हैं | 3. कीटनाशक दवाईयों के क्रय हेतु अधिक उपज देने वाले बीजों तथा
उर्वरकों के प्रयोग के साथ-साथ गहरी जुताई और सिंचाई की ओर ध्यान दिया जाता हैं तो
पौधों की वृद्धि के साथ-साथ अपतृण तथा खरपतवार,
पौधो में लगनें वाले कीटाणु तथा रोग भी बढ़ जाते हैं। फसलों को कीड़ो और फफूंद,जीवाणओं तथा विषाणु जनित रोगों से बचाने के लिये कीटनाशक
एवं रोग विनाशी रसायनो का उपयोग किया जाता हैं। रासायनिक कीटनाशक यथा- इण्डोसल्फान,
लिण्डेन, डायकोफॉल, क्लोरोपायरीफॉस,डायजिनान, डायमिथिएट, ट्राइजोफास, एसीफेट, मेलाथियान, मोनोक्रोटोफास,
मिथाइल पैराथियान, इमीडेक्लोप्रिड फोरेट, क्विनालफॉस,
प्रोफेनोफॉस, इथियान, कार्बोरिल, मेथोमिल, साइपरमेप्रिन,
डेल्टामेथरीन, लेम्बड़ा
ट्राईहलोथिन, फेन्प्रोपेथिन इत्यादि होते
हैं। इनका प्रयोग विभिन्न फसलों पर भिन्न-भिन्न कीटाणुओं व जीवाणुओं तथा
खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए किया जाता हैं। अतः कीटनाशक रासायनिक दवाईयों के
खरीदने के लिए भी कृषि वित्त की आवशयकता होती हैं। 4. सिंचाई सुविधाओं के विकास हेतु उथले और गहरे नलकूपों, तालाबो आदि का निर्माण और
ड्रिलिंग मशीनों की खरीद हेतु। सतही कुओं का निर्माण,उन्हें गहरा करना और साफ
करना, कुओं की खुदाई, कुओं का विद्युतीकरण,
ऑयल इंजन की खरीद और बिजली के मोटर और पंपो को संस्थापित करना। i. मोटर पंपों की खरीद और उनका
संस्थापन, खेतो में नाले का निर्माण
(खुला और भूमिगत) उद्वहन सिंचाई परियोजना का
निर्माण। ii. छिड़काव प्रणाली वाली सिंचाई व्यवस्था का संस्थापन। iii. जनरेटर सेटो की खरीद (कृषि
प्रयोजनों के लिए उपयोग किये जाने वाले पंप सेटों को शक्तिचालित करने के लिए हों) 5. भूमि सुधार और भूमि विकास संबंधी योजनाओं के लिए खेतो में मेड़ बनाना, भूमि को समतल करना, धान उगाने वाले खेतों को नम सिंचाई वाले खेतो मे बदलना, बंजर भूमि विकास,
खेतो में नालो को विकसित करना,
खेतो में मिट॒टी का सुधार और लवणता की रोकथाम,
गड्ढ़ों को भरना, बुलडोजरों की खरीद इत्यादि
। 6. कृषि फार्म के लिए भवनो ओर इमारतो आदि का निर्माण जैसे - बैलो को रखने के लिए शेड,
औजारों को रखने के लिए शेड, ट्रैक्टर और ट्राली को रखने के लिए शेड कृषि फार्म के लिए
भंडार आदि 7. सिंचाई प्रभारो का भुगतान करने हेतु कुओं और नलकापों से भाड़े पर पानी लेने के लिए प्रभार, नहर जल प्रभार, आयल इंजनो और विद्युत मोटरो का रख रखाव, मजदूरो की मजदूरी का भुगतान,
बिजली के लिए प्रभार, किराये पर यंत्र देने वाली सेवा इकाइयों को सेवा प्रभार
आदि। 8. कृषि औजारों और मशीनों को क्रय करने हेतु i. कृषि औजारों में इन्हें शामिल किया गया हैं - लोहैं का हल, हैंरो, होज, भूमि समतलक,
मेड़ बनाने वाला औजार, हाथ औजार, छिड़काव यंत्र,
झाड़न, पुवाल का गढ्ठर बनाने वाला
यंत्र,गन्ना पेरने वाली मशीन , थ्रेशर मशीन आदि। ii. खेती के लिए मशीनों की खरीदी हेतु जैसे - ट्रैक्टर, ट्रेलर, विद्युतचलित हल, ट्रैक्टर के सहायक उपकरण (जैसे डिस्क हल) आदि। iii. मिनीट्रक, बैलगाड़ियाँ और अन्य परिवहन उपकरणों की खरीदी हेतु जिससे
कृषि संबंधी वस्तुओं और खेती की उपज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा या लाया
जा सके। iv. हल चलाने के लिए बैलों के
खरीद हेतु ऋण। 9. भंडार संबंधी सुविधाओं का निर्माण और उन्हें चलाना i. भंडारगृहो, गोदामो, शीतगृहो का निर्माण और उन्हें चलाना। ii. फसलों के संकर बीजों का उत्पादन और संसाधन। |
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निष्कर्ष |
कृषि अपेक्षाकृत अंसंगठित व्यवसाय हैं। इसकी सफलता या असफलता बहुत कुछ मौसम पर
निर्भर होती हैं| किसानो को बीज, खाद, कृषि औजार, बैल आदि खरीदने
भूमि पर स्थायी सुधार करने,कुएं खुदवाने, मजदूरी देने के लिए वित्त की जरूरत होती हैं।
कृषि के वाणिज्यिकरण के बाद इन कार्यो के लिए ऋण की मांग बढ़ती हैं। आजकल खेती
में धीरे-धीरे मशीनों का प्रयोग बढ़ रहा हैं। सिंचाई के लिए भी किसान निजी नलकूप
लगाने में दिलचस्पी लेने लगे हैं। इन पूंजीगत उपकरणों में भारी निवेश करना होता हैं,
और बहुत से किसानो के साधन इस दृष्टि से अपर्याप्त होते हैं। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. जिला
सांख्यिकी पुस्तिका - कलेक्टर कार्यालय
धार 2. साक्षात्कार
प्रशनावली सूची 3. कृषि जगत
भोपाल, पत्रिका 4. स्थानीय समाचार पत्र उपसंचालक कृषि कार्यालय धार (म0प्र0) 5. साख पुस्तिका - जिला अग्रणी बैंक ऑफ इंडिया - धार |