|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
बालिका
शिक्षा : चुनौतियां एवं अवसर |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Girls Education: Challenges and Opportunities | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
18667 Submission Date :
2024-03-10 Acceptance Date :
2024-03-19 Publication Date :
2024-03-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.11065058 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/anthology.php#8
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सारांश |
'शिक्षा
सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं।' शिक्षा
मानव समाज का एक अभिन्न अंग है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने उद्देश्यों को पूरा कर
सकता है। शिक्षा बच्चे को सही और गलत का अंतर सिखाती है और जानवर से इंसान बनाती है।
इसलिए हर बच्चे को शिक्षित करना माता-पिता का कर्तव्य है। शिक्षा का अर्थ - बुद्धि
प्लस चरित्र - यही सच्ची शिक्षा का लक्ष्य है।' शिक्षा हमारे आस-पास की चीज़ों के
बारे में सीखने की प्रक्रिया है। यह हमें किसी भी वास्तु स्थिति को आसानी से समझने, किसी भी प्रकार की समस्या से निपटने
और पूरे जीवन काल के विभिन्न आयामों को संतुलित करने में मदद करता है। शिक्षा सभी मनुष्यों
का पहला और सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। शिक्षा के बिना मानव जीवन अधूरा एवं बेकार है।
शिक्षा लोगों को जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती
है। शिक्षा मनुष्य के ज्ञान, कौशल, आत्मविश्वास और व्यक्तित्व को बेहतर
बनाती है। यह हमारे जीवन में दूसरों से बात करने की बौद्धिक समानता को बढ़ाता है। शिक्षा
परिपक्वता लाती है और समाज की बजाय परिवेश में रहना सिखाती है। जीवन में आगे बढ़ने
और सफलता हासिल करने के लिए बेहतर शिक्षा हर किसी के लिए बेहद जरूरी है। शिक्षा मनुष्य
में आत्मविश्वास का विकास करती है तथा उसके व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होती है।
जीवन में सफलता हासिल करने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा हर किसी के लिए जरूरी है।
यह जीवन के कठिन समय में चुनौतियों का सामना करने का पाठ सीखने में बहुत मदद करता है।
संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया के दौरान प्राप्त ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के
प्रति आत्मनिर्भर बनाता है। शिक्षा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए आवश्यक है क्योंकि
दोनों मिलकर एक स्वस्थ और शिक्षित समाज का निर्माण करते हैं। महिलाएँ किसी भी नागरिक
समाज का अभिन्न अंग हैं। दोस्त, बेटी, भाभी, पत्नी, बहू और मां के साथ-साथ महिलाएं एक
कामकाजी महिला के रूप में भी काम करती हैं। महिलाएं समाज के हर क्षेत्र में पुरुषों
के लिए सुविधा प्रदाता का काम करती हैं। विश्व की पचास प्रतिशत आबादी महिलाओं की है, लेकिन इन सबके बावजूद आज भी महिला
को पालन-पोषण,
कार्यस्थल, भूमि का स्वामित्व और उच्चतम शिक्षा
का अधिकार नहीं है। यह कानून सभी क्षेत्रों में महिलाओं और पुरुषों की समानता सुनिश्चित
करता है। लेकिन अभी भी कई महिलाएं हैं जो नकारात्मक विचारधारा, सुरक्षा की चिंता, पारंपरिक और सांस्कृतिक कारणों से
अशिक्षित हैं। समाज का वह अभिन्न अंग आज विश्व में अपनी पहचान बनाने जा रहा है। थरूर के शब्दों में "आज आजादी के 65 वर्ष
बाद भी 82.1
प्रतिशत
पुरुष शिक्षा अनुपात की तुलना में महिला शिक्षा का अनुपात केवल 65.5 प्रतिशत ही है।" यदि
हम चाहते हैं कि भारत का सर्वांगीण विकास हो और यह विकास सतत रूप से होता रहे तो महिला
शिक्षा एक गम्भीर मसला है। महिला शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने की आवश्यकता
है जिससे महिला व समाज के साथ-साथ देश का भी निरंतर विकास हो सके। |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | 'Education is the most powerful weapon you can use to change the world.' Education is an integral part of human society through which man can fulfill his objectives. Education teaches the child the difference between right and wrong and transforms him from an animal to a human being. Therefore it is the duty of parents to educate every child. Meaning of education - intelligence plus character - this is the goal of true education.' Education is the process of learning about the things around us. It helps us to easily understand any Vaastu situation, deal with any type of problem and balance different dimensions of the entire life span. Education is the first and most important right of all human beings. Without education, human life is incomplete and useless. Education motivates people to set goals and move forward in life. Education improves the knowledge, skills, confidence and personality of a human being. It increases the intellectual equality of talking to others in our life. Education brings maturity and teaches to live in the environment instead of the society. Better education is very important for everyone to move ahead in life and achieve success. Education develops self-confidence in a person and helps in building his personality. Education is necessary for everyone to achieve success in life and do something different. It helps a lot in learning the lesson of facing challenges in difficult times of life. The knowledge gained during the entire learning process makes every person self-reliant in his life. Education is essential for both men and women because together they create a healthy and educated society. Women are an integral part of any civil society. Along with being a friend, daughter, sister-in-law, wife, daughter-in-law and mother, women also work as a working woman. Women work as facilitators for men in every sphere of society. Fifty percent of the world's population is women, but despite all this, women still do not have the right to parenting, workplace, land ownership and higher education. This law ensures equality of women and men in all fields. But there are still many women who are uneducated due to negative ideology, safety concerns, traditional and cultural reasons. That integral part of the society is going to make its mark in the world today. In Tharoor's words "Today, even after 65 years of independence, the female education ratio is only 65.5 percent compared to the male education ratio of 82.1 percent." If we want India to have all-round development and this development should continue continuously, then women's education is a serious issue. There is a need to shed light on various aspects of women's education so that there can be continuous development of women and society as well as the country. |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | बालिका, शिक्षा, चुनौतियां, अवसर, जनगणना| | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Girl Child, Education, Challenges, Opportunities, Census. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना | महिला
एक शिक्षिका,
एक
माता,
एक
राजनीतिज्ञ,
एक
नियोक्ता या एक कर्मचारी हो सकती है। वह पुरुष की प्रथम शिक्षिका कही जाती है। उसके
द्वारा बच्चों को जो मूल्य दिये जाते हैं। बच्चा पूरा जीवन हर राह पर उनके मार्गदर्शन
से ही चलता है। इसलिये यदि सतत विकास हेतु महिला को शिक्षित किया जाता है तो जीवन में
न केवल अपने लिये बल्कि भावी पीढ़ी के लिये भी कठोर परिवर्तन ला सकती है। सतत विकास
कुछ भी नहीं बल्कि वर्तमान में जो सुविधायें एवं प्रौद्योगिकी हमें स्वयं से मिल रही
है आदि का उपयोग भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किये बिना करना है। बेहतर
सतत विकास वहीं है जो एक महिला को शिक्षित करके प्राप्त किया जा सकता है। सभी के लिये
शिक्षा विश्व का एजेन्डा है। भारत में भी शिक्षा का अधिकार अधिनियम वर्ष 2009 के अनुसार शिक्षा - लिंग, रंग, जाति, धर्म की प्रवाह किये बिना हर बच्चे
का मौलिक अधिकार है। लेकिन वास्तविकता में ऐसा बिल्कुल नहीं है, विशेषकर महिला शिक्षा के मामले में
। ज्यादातर बेटों को अध्ययन हेतु स्कूलों में भेजा जा रहा है। प्राथमिक चरण में स्कूल
छोड़ने वाले बच्चों में लड़कों की तुलना में लड़कियों का अनुपात कई गुना अधिक है। आज
दुनिया की वयस्क आबादी का 17 प्रतिशत
अनपढ़ है,
उनमें
से एक तिहाई महिलायें हैं। लगभग 122 मिलियन
युवा विश्व स्तर पर अनपढ़ हैं जिनमें से युवा महिलायें 60.7 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व कर रही
हैं। जहाँ तक भारत देश में साक्षरता दर का संबंध है, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष अनुपात
82
प्रतिशत
की तुलना में महिला अनुपात केवल 65 प्रतिशत
ही है। इसलिये शिक्षित महिलायें किसी भी देश की सरकार के लिये सर्वाधिक प्राथमिकता
होनी चाहिए। यदि हम निरंतर विकास के लिये शिक्षा की बात करते हैं तो महिला शिक्षा हमारी
प्राथमिकता होनी चाहिए | तभी समाज और परिवार के उत्थान मे अपना योगदान दे सकती
है | |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अध्ययन का उद्देश्य | 1. किशोरियों के उच्च शिक्षा प्राप्ति में आने वाली मनोवैज्ञानिक बाधाओं का अध्ययन करना। 2. भौतिक सुविधायें उपलब्ध होते हुए भी शिक्षा प्राप्त न करने के कारणों को जानना। 3. किशोरियों के शिक्षा प्राप्ति में आने वाली भौतिक बाधाओं का अध्ययन करना। 4. किशोरियों के शिक्षा प्राप्ति में आने वाली भौतिक बाधाओं के समाधान के उपाय जानना। 5. किशोरियों के शिक्षा प्राप्ति में आने वाली मनावैज्ञानिक बाधाओं के समाधान के उपाय जानना। |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
साहित्यावलोकन | फातिमा (2003) ने 'पारिवारिक वातावरण एक शैक्षणिक उपलब्धि' का अध्ययन किया। उन्होंने यह पता भारतीय शिक्षा शोध पत्रिका, वर्ष-38 अंक-1, जनवरी-जून,2019 33 लगाने की कोशिश की, कि अनुकूल पारिवारिक वातावरण उच्च शैक्षणिक उपलब्धि प्राप्त करने में सहायक होता है। वहीं प्रतिकूल पारिवारिक वातावरण निम्न शैक्षिक उपलब्धि के लिये जिम्मेदार होता है। सिल्क
(2003) ने ग्रेड 9 से 12 आयु वर्ग के 9564 किशोरों का एक नमूना लेकर माता-पिता के मनोवैज्ञानिक
नियंत्रण और माता-पिता की स्वायत्तता देने और किशोरों के मनो-सामाजिक काम-काज के संकेतकों
के बीच संबंध का पता लगाने का प्रयास किया। प्रतिभागियों को एक व्यापक पैरेन्टिंग प्रश्नावली
के साथ ही मनोवैज्ञानिक समायोजन के उपायों की प्रश्नावली दी गयी । निष्कर्ष निकला कि
किशोरों के मनोवैज्ञानिक नियंत्रण पर माता-पिता की स्वायत्तता देने का अनुकूल प्रभाव
पड़ता है। खानम
(2006) ने माध्यमिक स्कूल स्तर पर परिवार के वातावरण का पुरुष व महिला छात्रों की शैक्षणिक
उपलब्धि के बीच संबंध का अध्ययन किया। उन्होंने यह पता लगाने का प्रयास किया कि जब
पारिवारिक वातावरण बेहद अनुकूल हो या बेहद प्रतिकूल हो तो शैक्षिक स्तर पर क्या प्रभाव
पड़ता है। अन्वेषक पारिवारिक वातावरण व शैक्षणिक उपलब्धि के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध
प्राप्त नहीं कर पायी । पुरुष एवं महिला छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि पारिवारिक वातावरण
के प्रभाव से मुक्त पायी गयी। |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य पाठ |
शोध 1. शिक्षित वर्ग के लोगों में और अधिक जागरूकता अपने पाल्यों (किशोरियों) की शिक्षा प्राप्ति हेतु उत्पन्न होगी। 2. स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किशोरियों में शिक्षा हेतु जागरूकता का प्रचार-प्रसार करने में मददगार साबित होगी। 3. सरकार को किशोरियों के लिए शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए योजनायें बनाने में सहायक होगा। 4. इस अध्ययन से निर्देशन तथा परामर्शदाताओं का ध्यान इस ओर आकर्षित होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों की किशोरियों को विषय के चुनाव, अपने भविष्य को लेकर निर्देशन तथा परामर्श की आवश्यकता होती है और उचित समय पर मिला उचित निर्देशन और मार्गदर्शन उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगा 5. यह अध्ययन किशोरियों में जो भय, संवेग और आत्मविश्वास की कमी आदि विकार होते हैं, उन्हें के उपायों पर भी प्रकाश डालेगा। |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सामग्री और क्रियाविधि | शोध
समस्या कथन के उपरान्त, शोधार्थिनी
को शोध विधि निर्धारित करनी आवश्यक हो जाती है। शोधार्थिनी द्वारा प्रश्नावली के माध्यम
से न्यादर्शित गाँवों में जाकर आकड़ें एकत्रित किये गये, जिस वजह से शोध की प्रकृति वर्णनात्मक
है। अतः शोधार्थिनी द्वारा वर्णनात्मक विधि का प्रयोग किया गया शोधार्थिनी द्वारा किशोरियों
की शिक्षा प्राप्ति के मार्ग में आने वाली भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक बाधाओं से संबंधित
प्रश्नावली तैयार की गई। |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
न्यादर्ष |
शोध हेतु शोधार्थिनी को न्यादर्शन प्रणाली अपनानी पड़ती है। शोधार्थिनी द्वारा यादृच्छिकी न्यादर्श प्रणाली के माध्यम से कुल 590 गाँवों के 10 प्रतिशत अर्थात् 59 गाँवों की किशोरियों को न्यादर्शन के रूप में चयनित किया गया| |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विश्लेषण | तालिका - 1 किशोरियों की शिक्षा प्राप्ति में मनोवैज्ञानिक बाधायें
प्रभाव डालती है।
तालिका 1 से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सर्वाधिक 47.63 प्रतिशत किशोरियां इस बात से सहमत है कि उनकी शिक्षा प्राप्ति में मनोवैज्ञानिक बाधायें प्रभाव डालती है। वहीं 16.14 प्रतिशत किशोरियां इस बात से पूर्णतः सहमत है। 5.40 किशोरियां तटस्थ है। वहीं केवल 5.21 प्रतिशत किशोरियां ही इस मत से पूर्णतः असहमत है कि मनोवैज्ञानिक बाधाओं उच्च शिक्षा प्राप्ति में बाधक है तथा 24.66 प्रतिशत किशोरियां इस मत से असहमत है कि उनकी उच्च शिक्षा प्राप्ति में मनोवैज्ञानिक बाधायें प्रभाव डालती है। तालिका – 2 किशोरियों की शिक्षा प्राप्ति में भौतिक बाधायें प्रभाव
डालती है।
आंकड़ों के विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सर्वाधिक 43.98 प्रतिशत किशोरियां इस बात से सहमत है कि उनकी शिक्षा प्राप्ति में भौतिक बाधायें प्रभाव डालती है। वहीं 15.37 प्रतिशत किशोरियां इस बात से पूर्णतः सहमत है। 6.85 किशोरियां तटस्थ है। वहीं केवल 7.68 प्रतिशत किशोरियां ही इस मत से पूर्णतः असहमत है कि भौतिक बाधाओं उच्च शिक्षा प्राप्ति में बाधक है तथा 27.33 प्रतिशत किशोरियां इस मत से असहमत है कि उनकी उच्च शिक्षा प्राप्ति में भौतिक बाधायें प्रभाव डालती है। |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
परिणाम |
सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण व महिला शिक्षा के लिए चलाई जा रही योजनाओं गौरा देवी कन्या धन योजना, कस्तूरबा गाँधी आवासीय विद्यालय योजना, जनश्री शिक्षा सहयोग योजना, राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना एवं निःशुल्क कन्या आवासीय शिक्षा योजना आदि के पश्चात् भी ग्रामीण पिछड़े क्षेत्रों की किशोरियों उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हैं । किशोरियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए अधिक अवसर प्राप्त नहीं हो पाते हैं। शहरी क्षेत्रों की किशोरियॉ तो फिर भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रयास करती हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की किशोरियों के लिए स्थितियाँ बिल्कुल प्रतिकूल हैं। अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र की किशोरियॉ अपनी माध्यमिक शिक्षा कन्या इण्टर कालेज से प्राप्त करती है जिस कारण वे सहशिक्षा वाले महाविद्यालय में प्रवेश लेकर किशोरों के साथ शिक्षा ग्रहण करने में झिझकती है और जिले में कन्या महाविद्यालय पर्याप्त मात्रा में नहीं होने के कारण अधिकतर किशोरियों को अच्छे प्राप्तांक न होने के कारण उनमें प्रवेश नहीं मिल पाता है और वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हो जाती है। अधिकतर शिक्षण संस्थानों में बालिका शौचालय तो है परन्तु वे पर्याप्त मात्रा में नहीं है यह भी एक कारण है कि किशोरियॉ महाविद्यालय में जाकर शिक्षा ग्रहण नहीं करती है। शिक्षण संस्थानों के अभाव में ग्रामीण पिछड़े क्षेत्रों की किशोरियाँ अपने घर से शिक्षा ग्रहण करने के लिए अन्य जिलों में नहीं जा पाती क्योंकि घर से बाहर जाकर वहाँ के वातावरण में खुद को ढालना इन किशोरियों के लिये सहज नहीं होता है इन कठिनाईयों के कारण के उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाती हैं । किशोरियों को अपने भविष्य में विषयों को चयन करने के लिए उचित निर्देशन व परामर्श का अभाव रहता है। इस कारण भी वे अपनी उच्च शिक्षा में चुने जाने वाले विषयों को लेकर भ्रमित रहती हैं और शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाती हैं । किशोरियाँ अपने आस-पड़ोस में ऐसी परिस्थितियाँ देखती हैं जिसके कारण वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित नहीं होती हैं। उनके आस-पड़ोस की महिलायें भी उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाती जिस कारण से किशोरियों के सम्मुख ऐसा कोई उदाहरण नहीं होता है कि महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा महत्वपूर्ण है व किशोरियाँ अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की किशारियों का विवाह अल्प आयु में ही कर दिया जाता है व उनके ससुराल पक्ष को उनकी पढ़ाई-लिखाई से कोई सरोकार नहीं होता है। ये किशोरियाँ अपने ऊपर होने वाले आर्थिक व्यय के लिये भी अपने ससुराल पक्ष पर ही निर्भर हो जाती है और उनकी इच्छाओं और आकांक्षाओं को ससुराल में कोई स्थान नहीं मिलता है जिससे उनके आत्मविश्वास में कमी आ जाती है। जबकि शिक्षा ज्ञान प्रदान करके रोजगार प्रदान करने व आत्मविश्वास में सुधार के लिये एक आवश्यक उपकरण है। शिक्षा रोजगार के अवसर, आय एवं आत्मनिर्भरता बढ़ाती है। रोजगार से आय प्राप्त होती है और महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। कार्यरत महिलाओं को परिवार के सदस्यों द्वारा उचित महत्व दिया जाता है। इसलिये किशोरियों की उच्च शिक्षा पर उचित ध्यान देना आवश्यक हो जाता है। किशोरियाँ अपने माता-पिता पर खर्च का बोझ नहीं डालना चाहती । अधिकांश किशोरियों की यह मानसिकता होती है कि उनके घर की आर्थिक स्थिति निम्न होने के कारण वे अपने माता-पिता पर अपनी पढ़ाई का बोझ नहीं डालना चाहती है। उनकी यह सोच होती है कि उनके माता-पिता को उनकी शादी पर भी खर्च करना है जिस कारण वे स्वतः ही उच्च शिक्षा से विमुख हो जाती है। माता-पिता बेटों की शिक्षा को बेटी की शिक्षा से अधिक महत्व देते हैं तथा आर्थिक तंगी होने के कारण बेटों की शिक्षा पर व्यय करना जरूरी समझते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में माता-पिता की मनोवृत्ति लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को शिक्षित करने की अधिक होती है। उनका मानना है कि लड़कियों को शिक्षित करना समय व धन दोनों का अपव्यय है । " उत्तराखण्ड सरकार द्वारा बारहवीं में 80 प्रतिशत से ऊपर अंक प्राप्त करने वाली छात्राओं को शिक्षा प्राप्त करने हेतु छात्रवृत्ति दी जाती है। किन्तु कई बार यह देखा गया है कि प्रतिभाशाली छात्रायें जो ग्रामीण क्षेत्रों की होती हैं कई प्रकार मनोवैज्ञानिक विकारों की वजह से भी उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं करती है। अक्सर यह देखने व सुनने में प्रतीत हुआ है कि ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियां अंतर्मुखी होती हैं, जिस कारण वे अकेले घर से बाहर किसी कार्य को करने, शिक्षा ग्रहण करने आदि के लिए नहीं जाती हैं। यदि कुछ ग्रामीण अभिभावक, माता-पिता अपनी लड़की को उच्च शिक्षा हेतु दूसरे शहर में भेजने हेतु प्रेरित करते भी हैं तो उनमें संकोच रहता है, कारणवश परिवार के किसी सदस्य को उन्हें दूसरे शहर में छोड़ना व घर लाने के लिए साथ आना-जाना पड़ता है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है और किशोरियां उच्च शिक्षा ग्रहण करने दूसरे शहर नहीं जा पाती हैं। किशोरियों पर बचपन से ही घर परिवार व छोटे भाई बहनों की देखभाल की जिम्मेदारी डाल दी जाती है, इसलिए भी वे शिक्षा प्राप्त करने के लिए परिवार को छोड़कर नहीं जाना चाहती। किशोरियाँ दिन भर तो गृह कार्यों व अन्य कार्यों में व्यस्त रहती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में रोशनी के पर्याप्त साधन (विद्युतीकरण) न होने के कारण वे अध्ययन नहीं कर पाती हैं जिस कारण परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त न होने के कारण अपने समुदाय में कहीं उनका परिहास न हो, इस भय से अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़ देती हैं। |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
निष्कर्ष |
वर्तमान में शिक्षित लड़कियां देश के हर कोने और देश के हर क्षेत्र में अपना
परचम फैलाकर पुरुष वर्ग के साथ कदम से कदम मिलाकर कार्य कर रही हैं। इतना ही नहीं वह
हर क्षेत्र में प्रसिद्ध व प्रख्यात हो रही हैं। इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा,
कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स, सानिया मिर्जा इत्यादि जैसे अनेकं नाम हैं जो अपने-अपने कार्यक्षेत्र में प्रसिद्धि
प्राप्त कर चुकी हैं। इतना ही नहीं उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य के एक पहाड़ी जिले अल्मोड़ा
की एकता बिष्ट ने क्रिकेट जैसे पुरुष प्रधान खेल में अपनी प्रसिद्धि प्राप्त की है।
अतः किशोरियों को भी शिक्षा प्राप्ति के लिए थोड़ा सा प्रेरित किया जाय व ऐसे उदाहरण
उनके सामने प्रस्तुत किये जाये जो उन्हें शिक्षा के महत्व के विषय में जागरूक करें
तो यह कहा जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्र की किशोरियां भी शिक्षा प्राप्ति का प्रयास
करेगी शिक्षा महिलाओं के सशक्तिकरण का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है यह एक ऐसा क्षेत्र
है जो महिलाओं के भेदभाव के कुछ उदाहरण प्रदान करता है। किशोरियों को बुनियादी शिक्षा
प्रदान करना उन्हें बहुत अधिक शक्ति देने का एक उपयुक्त तरीका है जो उन्हें जीवन के
प्रत्येक क्षेत्र में वास्तविक विकल्प देने के साथ-साथ सक्षम भी बनाता है। जो किशोरियां
शिक्षित है उन किशोरियों को एक स्वस्थ व खुशहाल जीवन व्यतीत करने का अवसर प्राप्त होता
है और किशोरियों के शिक्षित होने से समाज को भी महत्वपूर्ण लाभ होता है। एक शिक्षित
महिला कौशल सूचना और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होती है। एक शिक्षित महिला प्रत्येक कार्य
क्षेत्र में एक बेहतर कारीगर साबित होती है। अतः महिलाओं को अधिक से अधिक शिक्षा प्राप्त
करने के अवसर प्रदान किये जाने चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि वे सामान्य वर्ग की किशोरियों को भी
शिक्षा प्राप्ति हेतु प्रोत्साहित करने के लिये उन्हें आर्थिक मदद प्रदान करने के लिये
छात्रवृत्ति प्रदान करें ताकि वे आर्थिक तंगी के कारण अपनी पढ़ाई बीच में ही न छोड़ें
और ग्रामीण क्षेत्र की किशोरियां भी शिक्षा प्राप्त कर देश के विकास में अपना योगदान
प्रदान कर सकें। |
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. क्रोसब्रे, एफ. जे. (1971). द इफेक्ट ऑफ फेमिली लाईफ ऍजुकेशन ऑन वेल्यू एण्ड ऐटिट्यूट ऑफ एडोल्सेन्ट. डेजरटेशन एबस्ट्रेक्ट इंटरनेशनल, 31: 5839 2. मूस, रोल्फ, इ. (1975). थ्योरिज ऑफ एडॉलसेन्स, थर्ड एडिशन. न्यूयार्कः रेन्डम हाऊस. 3. गुप्ता, एम. एण्ड गुप्ता, पी (1978). एरियाज ऑफ एडॉल्सेन्ट प्रोबल्मस एण्ड द रिलेशनसिप बिटवीन दैम. इण्डियन साइकोलॉजिकल रिव्यू, 16; 1-4. 4. मालमाविस्ट, सी.पी. (1979). डेवलेपमेन्ट फरॉम 13 टू 16 ईयरस्. इन जे.डी. नोसप्टिज (इडी), बेसिक हैण्डबुक ऑफ चाइल्ड साइकेट्री, वॉल्यूम टू न्यूयार्क : बेसिक बुकस् 5. गुप्ता, एम एण्ड गुप्ता, पी. (1980). द पैटर्न ऑफ प्रोबल्मस् ऑफ ऍडोल्शेनस गर्लस् इन अर्बन इण्डिया, एशियन जरनल ऑफ सॉइकोलॉजी एण्ड ऍजुकेशन, 6:23-31. 6. अग्रवाल, के.एल. (1986). ए स्ट्डी ऑफ द इफैक्ट ऑफ पैरेन्टल इन्करेजमेण्ट अपॉन द एजुकेशनल डेवलप्मेण्ट ऑफ द स्टूडेन्टस'. पीएच.डी. एजु., गढ़वाल यूनिव. 7. आनन्द, एस.पी. (1989). मेन्टल हैल्थ ऑफ हाईस्कूल स्टूडेन्टस इण्डियन एजुकेशनल रिव्यू (आइईआर), वाल्यू.24 (2), 14-2. 8. भाटिया, बी.डी. एण्ड चन्द्रा, आर. (1993). एडॉल्सेन्ट मदर - अन अनप्रिपेर्यड चाईल्ड, इंडियन जरनल ऑफ मेटरनल एण्ड चाईल्ड हैल्थ. जुलाई-सितम्बर; 4 (3); 67-70 9. बहेन्दे, ए.ए. (1994). ए स्टॅडी ऑफ सैक्सुअललिटी ऑफ एडॉल्सेन्ट गर्लस् एण्ड ब्वॉयज इन अंडर प्रिविलेजेड ग्रुपस् इन बॉम्ब द इंडियन जरनल ऑफ सोशियल वर्क. (अक्टूबर). 55 (4):557-572 10. मैथ्यू, ए. (1996). ऍक्सपैक्टेशन ऑफ कॉलेज स्टूडेन्टस रिगार्डिग देयर मैरिज पार्टनर. द जरनल ऑफ फैमिली वैलफेयर, XII (13):46-52 11. फूलीगनि, ए.जे. (1997). द ऐकेडमिक अचिवमेन्ट ऑफ एडॉल्सेन्टस् फरॉम इमिग्रेन्ट फैमिलीज: द रोल्स ऑफ फैमिली बैकग्राउण्ड, एटिट्यूडस, एण्ड बिहेवियर. चाइल्ड डेवलेप्मेन्ट: एबस्ट्रैक्टस एण्ड बिबिलियोग्राफी, वॉल्यू. 71 (3). पब्लिसड बॉय द यूनिव. ऑफ शिकागो प्रेस फॉर द सोसाइटी फॉर रिसर्च इन चाइल्ड डेवलेप्मेण्ट. 12. स्वदेश मोहन, (1998). बिल्डिंग पर्सनल एण्ड कॅरियर कन्सियसनैस इन गर्लस्. डिपाट. ऑफ ऍजुकेशनल सॉइकोलाजी एण्ड फाउण्डेशन ऑफ ऍजुकेशन, एनसीईआरटी, न्यू दिल्ली विकास पब्लिसिंग हाऊस. 13. केट्समबिस, एस. (2001). एक्सपैंडिंग नॉलेज ऑफ पैरेन्टल इनवॉलमेण्ट इन चिल्ड्रन्स सैकेण्ड्री एजुकेशन : कनैक्शनस विथ हाईस्कूल सिनियर्स' ऐकेडमिक सक्सेस. सोशियल सॉइकोलाजी ऑफ ऍजुकेशन, वॉल्यू. 5(2), 149-177. 39 14. नायर, एम.के. सी. एण्ड मिनी, के. पॉल. (2002). 'साइकोसोमैटिक प्रॉब्लमस् ऑफ एडॉल्सेन्ट' "फैमिली लाईफ एजुकेशन फॉर प्लस वन स्टूडेन्ट्स", टीन्स जरनल ऑफ टीनएज् केयर एण्ड प्री मेरिटल काउंन्सिलिंग, वॉल्य 2 नं. 10 एण्ड 11, जुलाई- दिसम्बर 15. फातिमा, आई. (2003). रिलेशनशिप ऑफ फैमिली क्लाइमेट टू एकेडमिक अचिवमेण्ट. एम. एड डेजरेटशन, डिपाट. ऑफ एजुकेशन, ए.एम.यू. 16. नायर, एम. के.सी., मिमी. के. पॉल एण्ड दिव्या रानी, वी.वी. (2003). "एडॉल्सेन्ट सॉइकोलॉजिकल इश्यूज, पीर ग्रुप ऍडजेसमेन्ट, सैल्फ इवैल्यूशन एण्ड फैमिली प्रॉब्लमस्" टीन्स जरनल ऑफ टीनएज् केयर एण्ड प्री मेरिटल काउंन्सिलिंग, वॉल्य 3 नं. 12, जनवरी-मार्च,. 17. साण्डस, टी. एण्ड प्लनकैट, एस. डब्लू. (2005). ए न्यू स्केल टू मेजर एडॉलसेन्ट रिपोर्टस ऑफ अकेडमिक सपोर्ट बॉय मदर्स, फॉदर्स, टीचर्स एण्ड फ्रेण्डस इन लेटिनो इमिग्रेन्ट फैमलीज, हिस्पेनिक जरनल ऑफ बिहेवियरल साइन्सेज, वॉल्य. 27 (2), 244-253. 18.खानम, आर. (2006). फैमिली क्लाइमेट एज ए कोरिलेट ऑफ अकेडमिक अचिवमेण्ट ऑफ मेल एण्ड फिमेल स्टूडेन्टस् एट द सेकेण्डरी स्कूल लेवल. एम.एड. डैजरटेशन. एएमयू, अलीगढ़ पीपी: 10, 11, 13, 15. 19.अयोध्या, पी. (2007). इमोशनल प्रॉब्लमस् इन सेकेण्डरी स्कूल चिल्ड्रन एण्ड इट्स रिलेशन टू लाईफ इवेन्ट्स एण्ड स्कोलस्टिक अचिवमेन्ट, जरनल ऑफ कम्यूनिटी गाइडेन्स एण्ड रिसर्च, वाल्यू. 24 (3). 347-355. 20.यूवाइफो, वी.ओ. (2008). द इफैक्टस् ऑफ फैमिली स्ट्रक्चर एण्ड पेरेन्टहुड ऑन द अकेडमिक परफॉरमेन्स ऑफ नाईजेरियन यूनिर्वसिटी स्टूडेन्ट्स डिपार्टमेन्ट ऑफ वोकेशनल एण्ड टेक्निकल ऍजुकेशन, एमब्रोज अली यूनिर्वसिटी, एकपोमा, एडो स्टेट, नाईजीरिया. 21. कौर, जे. एटॉल. (2009). होम एन्वॉयरमेन्ट एण्ड अकेडमिक अचिवमेण्ट एज कोरिलेटस् ऑफ सेल्फ- कॉन्सेप्ट अमंग एडॉल्सेन्टस डिपार्टमेण्ट ऑफ एजुकेशन, पंजाब यूनिवर्सिटी, पटियाला, पंजाब, इण्डिया. 22. वेले, आर. एस. एण्ड कॉम्बैल, जे.एल. (2010). अचिवमेन्ट गोल्स ऑफ एडॉल्सेन्ट फिगर स्केटर्स : इम्पैक्ट ऑन सैल्फ कॉन्फिडेन्स, एन्जॉयटी, एण्ड परफॉरमेन्स, मियामी यूनिव 23. www.arc-worldwide.org यह बेवसाइट भारत की किशोरियों की रिपोर्ट प्रदान करती है 1 24. www.samuha.org - यह स्वयंसेवी संस्था है जो नई दिल्ली में किशारों के लिए कार्य करती है। 25. www.uksocialwelfare.org.in - यह वैब पोर्टल समाज कल्याण विभाग उत्तराखण्ड के लिए कार्यरत है। 26. www.unicef.org - यह वेबसाइट बच्चों के लिए है जो बच्चों और किशोरों से संबंधित प्रायोजित परियोजनाओं, मॉडलस और कार्यक्रमों की जानकारी उपलब्ध कराती है। 27. बी.एससी., बी.एड., एम.ए. (इतिहास एवं शिक्षाशास्त्र), पीएच.डी. शोधार्थी/ शिक्षक, हिमगिरी जी विश्वविद्यालय, देहरादून / बेसिक शिक्षा, उत्तराखण्ड। 28. एसोसिएट प्रोफेसर, शिक्षा विभाग, हिमगिरी जी विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखण्ड। |