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मीरा बाई की कृष्ण भक्ति का आध्यात्मिक आधार |
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Spiritual Basis Of Devotion Of Mira Bai To Krishna | |||||||
Paper Id :
18921 Submission Date :
2024-06-05 Acceptance Date :
2024-06-22 Publication Date :
2024-06-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.13842023 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
भक्ति यानि किसी के प्रति समर्पण भाव रखना हैं। भक्ति ईश्वर से जुड़ने का माध्यम हैं। सभी कही न कही भक्ति करते ही हैं। इसलिए हमारी इस पावन धरा पर अनेक भक्त भी हुए हैं। उनमें से ही एक हैं ‘‘मीरा बाई’’। जिन्होंने कृष्ण भक्ति को ही सब कुछ मान लिया। उनका मानना था कि श्री कृष्ण ही उन्हें भवसागर पार करवायेंगे। मीरा बाई ने भक्ति की अलख जगई थी उन्होंने सब कुछ त्याग कर वैराग्य ले लिया। मीरा बाई ने हिन्दी जगत में भी अपना योगदान दिया उन्होंने अनेक भजन, काव्य, छंद, दोहे की रचना की। मीरा अपने आध्यात्मिक संदेश को कीर्त्तन के माध्यम से प्रस्तुत करती है लोगों के सामने व उन्हें भी कहती हैं कि भक्ति करो सत्संग करो पहले थोड़ी परेशानी आयेगी पर यही आपको पार लगाएगी क्योंकि इस काया (शरीर) पर घमंड नहीं करना यह तो मीट्टी में मील जाएगा और हम साथ कुछ नहीं लेजा पायेगे इसलिए हरि (श्री कृष्ण) के चरणों में शरण लो।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Bhakti means having a feeling of dedication towards someone. Devotion is a medium to connect with God. Devotion awakens faith in our mind. Many types of devotion have been mentioned in the scriptures like Vedas, Puranas, Geeta etc. which include Navadha Bhakti, Prem Bhakti, Sadhana Bhakti, Desh Bhakti, Mother Bhakti, Pitra Bhakti, Guru Bhakti etc. Everyone does devotion somewhere or the other. That's why there are many devotees on this power of ours. One of them is “Meera Bai”. Who accepted Krishna devotion as everything. He believed that only Shri Krishna would help him cross the ocean of existence. Meera Bai had awakened the flame of devotion, she left everything and took to Vairagya. Meera Bai also contributed to the Hindi world. She composed many hymns, poems, verses and couplets. Meera presents her spiritual message to the people through kirtan and also tells them to do devotion, do satsang, there will be some trouble at first but this will help you overcome because do not be proud of this body, it will turn into dust. And we will not be able to take anything with us, so take refuge at the feet of Hari (Shri Krishna). | ||||||
मुख्य शब्द | मीरा बाई, कृष्ण, भक्ति, आध्यात्मिक, संगीत। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Meera Bai, Krishna, Devotional, Spiritual, Music. | ||||||
प्रस्तावना | मीरा बाई कृष्ण भक्त थी। बचपन से ही मीरा बाई कृष्ण जी को अपना पति मानती थी व उन्हीं के भजन पूजा करती थी। मीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। चितौड़ के महाराजा भोजराज इनके पति थे। महाराजा भोजराज महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय में ही उनके पति की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद वे विरक्त हो गई और साधु संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगी। पति के देहांत के बाद उनकी कृष्ण भक्ति बढ़ती ही चली गई। वह मंदिरों में जाकर कृष्ण भजन करती और नाचती। यह सब राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कही बार किसी न किसी तरह से उन्हें मारने की कोशिश की जिससे परेशान होकर मीरा द्वारका और वृन्दावन चली गई। मीरा के समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल का समय चल रहा था। बाबर का हिन्दुस्तान पर हमला और प्रसिद्ध खानवा का युद्ध उसी समय हुआ था। इन सभी परिस्थितियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण पद्धति सर्वमान्य हैं। |
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अध्ययन का उद्देश्य | मीरा बाई विषय लेने का उद्देश्य मेरे लिए मीराबाई के निस्वार्थ प्रेम, भक्ति व नारी शक्ति को बढ़ावा देना है तथा मीरा बाई की विचारधारा से राव को अवगत करवाना है क्योंकि यह एक विचारणीय मुद्दा है कि जहाँ सारा जगत भक्त शिरोमणि मीरा बाई को जानता है वहीं इतिहास में मीराबाई का बहुत कम जिक्र हैं। मीरा बाई के बारे में आज भी उनके जन्म-मरण पर कोई ठोस सबूत नहीं है। मीरा बाई केवल भक्त के रूप में ही नहीं देखा जा सकता है अपितु मीराबाई हिंदी जगत के मध्यकाल की एक महान कवयित्री भी थी। मीरा बाई ने भक्ति की अलख जगा कर अनोखी पहल की थी। मीरा के पद, भजन, रागे, कवितायें आज भी पुस्तकों में उपलब्ध है। |
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोधपत्र के लिए स्वामी बुधानन्द की मीरा की प्रेमोपासना, मीरा कांत की 'मीरा मुक्ति की साधिका', डॉ. शशिप्रभा की 'मीरा कोश', परशुराम चतुर्वेदी की 'मीराबाई', प्रो. देशराज सिंह भाटी की 'मीराबाई और उनकी पदावली', एस.एस.गौतम की 'नारी चेतना की प्रतीक मीराबाई', विश्वेश्व नाथ रेऊ की 'मारवाड़ का इतिहास' आदि का अध्ययन किया गया है। |
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मुख्य पाठ |
मीरा बाई एक राजपूत राजकुमारी थी इसके बावजूद उन्होंने भक्ति की ऐसी अलख जगाई जब राजकुमारियां परदे में रहा करती थी। उन्होंने संघर्ष किया। एक स्त्री होकर आने वाली सभी समस्याओं को पार किया। मीरा बाई स्त्री जाति के लिए एक बहुत बड़ा उदाहरण है। आत्मसर्म्पण को बताया हैं जो किसी के भी द्वारा पार कर पाना लगभग नामुकिन हैं। मीरा द्वारा रैदास जी को गुरु बनाना व उनके द्वारा ज्ञान प्राप्त करना बताया हैं। जिससे जात-पात से दूर व एकता का संदेश जाता हैं। कृष्ण भक्ति और मीरा बाई मीरा बाई का जन्म 1498 ई. में पाली के कुड़की गाँव में दूदा जी के चौधे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। मीरा बचपन से ही कृष्ण भक्ति करने लगी थी। इनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राजपरिवार में राणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ था। विवाह के कुछ साल में ही भोजराज की युद्ध के दौरान मृत्यु हो गयी थी। तत्पश्चात् मीरा ने वैराग्य ले लिया था। उन्होने राजघराणा छोड़ जगह-जगह कृष्ण भक्ति भजन, संत्संग करती। मीरा के देवर विक्रम सिंह को मीरा का इस प्रकार साधुओं के साथ किर्तन करना उन्हें पसन्द नहीं था इसलिए उन्होंने कही बार मीरा को मारने का प्रयास किया पर विफल रहें।
इससे परेशान होकर मीरा द्वारीका, वृन्दावन चली गई। मीरा को सभी देवी स्वरूप प्रेम व सम्मान करते थे। मीरा सत्संग करती व घंटों गिरधर के आगे नाचती रहती। मीरा ने एक भजन में कहा है- ‘‘मेरा तो शिखर गोपाल दूसरो न कोए’’। मीरा गिरधर को ही अपना सब कुछ मानती थी। मीरा के समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल चल रही थी। प्रसिद्ध खानवा का युद्ध, बाबर का हिन्दुस्तान पर हमला उसी समय हुआ था। माना जाता है कि मीरा ने अपने अन्तिम समय द्वारिका में बिताया व भक्ति करते-करते 1547 में वही द्वारिका स्थित कृष्ण मूर्ति में ही समा गई। उसके बाद किसी ने मीरो को नहीं देखा। मीरा बाई हिन्दी जगत की एक महान कवियित्री भी हैं। |
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निष्कर्ष |
सही मायने में जन सामान्य को मीरा की प्रेममय भक्ति का सही मायने में संदेश पहुचाना है। मीरा द्वारा गाये पदो को गीत को अधिक से अधिक प्रकाशित कर के संजों के रखना हैं, जिससे मीरा की यशख्याति जन-जन में हो। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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