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भारत में लोकतंत्र एवं निर्वाचन आयोग |
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Democracy and Election Commission in India | |||||||
Paper Id :
19052 Submission Date :
2021-09-06 Acceptance Date :
2021-09-18 Publication Date :
2021-09-22
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.13141069 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
लोकतंत्र सरकार की एक प्रणाली को संदर्भित करता है, लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए एक निर्वाचन प्रणाली की आवश्यकता होती है, यहां यह आवश्यक है कि यह निर्वाचन प्रणाली स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होनी चाहिए। यदि निर्वाचन प्रणाली दोषपूर्ण होगी तो लोकतंत्र के लिए खतरा उत्पन्न हो जाएगा। भारतीय संविधान निर्माता इस बात से भली-भांति परिचित थे कि लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग का होना अति आवश्यक है। अतः संविधान निर्माताओं ने भारत में एक निष्पक्ष एवं स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की स्थापना का प्रावधान किया। इसके अलावा, भारत निस्संदेह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। जहां विभिन्न स्तरों पर समय-समय पर चुनाव संपन्न होते रहते हैं। भारत निर्वाचन आयोग ने अनेक चुनौतियों के बावजूद संविधान में निहित मूल्यों में आस्था रखते हुए चुनाव में समानता, निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता के सिद्धांतों के आधार पर राष्ट्रीय और राज्य स्तर के चुनावों का सफलतापूर्वक संचालन कर देश की चुनावी प्रणाली के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ाने और उसे मजबूती प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। समकालीन राजनीतिक व्यवस्था की प्रकृति, संचालन एवं विस्थापन को समझने हेतु निर्वाचन आयोग एवं आयोग द्वारा संपादित निर्वाचनों का व्यवस्थित अध्ययन एक उपयोगी उपागम सिद्ध हो सकता है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Democracy refers to a system of government, an electoral system is required for the successful functioning of democracy, here it is necessary that this electoral system should be free and fair. If the electoral system is faulty, then there will be a threat to democracy. The Indian Constitution makers were well aware of the fact that an independent Election Commission is very important for the successful functioning of democracy. Therefore, the Constitution makers made a provision for the establishment of an impartial and independent Election Commission in India. Apart from this, India is undoubtedly the largest democracy in the world. Where elections are held from time to time at various levels. Despite many challenges, the Election Commission of India has done an important job of increasing and strengthening the people's faith in the electoral system of the country by successfully conducting national and state level elections on the basis of the principles of equality, fairness and freedom in elections, keeping faith in the values enshrined in the Constitution. A systematic study of the Election Commission and the elections conducted by the Commission can prove to be a useful approach to understand the nature, functioning and displacement of the contemporary political system. | ||||||
मुख्य शब्द | लोकतंत्र, निर्वाचन प्रणाली, निर्वाचन आयोग, राजनीतिक व्यवस्था, निष्पक्षता। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Democracy, Electoral System, Election Commission, Political System, Fairness. | ||||||
प्रस्तावना | सभ्यता और संस्कृति के विकास क्रम में मानव ने अपने समक्ष जिन प्रणालियों तथा मूल्यों की स्थापना की, उनमें लोकतंत्र का अतिविशिष्ट स्थान है। अपनी संपूर्ण विकास यात्रा के दौरान मानव के लिए उसके स्वयं की पहचान, गरिमा और आत्मसम्मान की खोज एक मत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है तथा लोकतंत्र एक प्रणाली अथवा व्यवस्था के रूप में इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। भारतीय संविधान निर्माताओं ने विविधता में एकता के सूत्र को ध्यान में रखते हुए विविध संस्कृति, भाषा, जाति, धर्म, संप्रदाय, वर्ग, नस्ल, रंग, लिंग व क्षेत्र वाले बहुल भारतीय समाज के लिए विवेक एवं मूल्य आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था को अंगीकार कर स्थापित किया। भारत संसदीय एवं संघीय व्यवस्था पर आधारित एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जिसके हृदय में नियमित, स्वतंत्र एवं न्यायसंगत निर्वाचन के प्रति गहरी निष्ठा है।[1] भारत में संविधान के लागु होने से वर्तमान तक लोकतंत्र एक शासन प्रणाली के रूप में निश्चय ही परिपक्व हुआ है। लोकतंत्र की इसी परिपक्वता में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन की परंपरा ने लगातार अपनी महती भूमिका का निर्वहन किया है। यह निर्वाचन की प्रक्रिया ऐतिहासिक रूप से लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का सर्वाधिक सरल एवं महत्वपूर्ण संकेतक है। निर्वाचन वह माध्यम है, जिसके द्वारा सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था, आम जनता एवं बुद्धिजीवी वर्ग तथा व्यक्ति एवं सरकार के मध्य संपर्क का मार्ग प्रशस्त होता है। यह राजनीतिक समाजीकरण एवं राजनीतिक सहभागिता को सुनिश्चित करने वाला जटिल घटनाक्रम है, जो न सिर्फ सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्थाओं को प्रभावित करता है वरन् उनके द्वारा स्वयं भी प्रभावित होता है अर्थात् ‘प्रत्येक निर्वाचन सामाजिक परिवर्तन की वृहत प्रक्रिया का एक स्थिर चित्र होता है।‘[2] निर्वाचन की प्रक्रिया को व्यावहारिक रूप देने वाले उपकरणों में राजनीतिक दल एवं मतदाताओं के साथ-साथ निर्वाचन आयोग की अहम भूमिका है। भारत में संसदीय लोकतंत्र में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं तथा स्थानीय स्वशासन के निर्वाचन में लोकतंत्र के व्यावहारिक स्वरूप की विशेष अभिव्यक्ति निर्वाचनों के माध्यम से होती है, अतः लोकतंत्र का मूल निर्वाचन होता है। संसदीय शासन प्रणाली का मूल आधार ही वयस्क मताधिकार पर आधारित स्वच्छ, स्वतंत्र एवं नियतकालिक निर्वाचन है। सरकार द्वारा अपने हितों के लिए निर्वाचन को प्रभावित करने की क्षमता किसी भी देश में नहीं होनी चाहिए। इस तथ्य को ध्यान में रखकर भारतीय संविधान निर्माताओं ने एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की स्थापना की। उन्होंने निर्वाचन से सम्बंधित पृथक अध्ध्याय को ही संविधान में अंतःस्थापित कर दिया। इस प्रकार भारतीय संविधान एकमात्र ऐसा संविधान है जो स्वच्छ एवं स्वतंत्र निर्वाचन को बनाए रखने के लिए निर्वाचन को संविधान में पृथक स्थान प्रदान करता है, ताकि भारत में लोकतंत्र का रक्त संचरण होता रहे।[3] इसीलिए भारतीय संविधान में संविधान निर्माताओं ने निर्वाचन के अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण करने वाली संस्था निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष बनाने की परिकल्पना की थी। निर्वाचन आयोग भारतीय लोकतंत्र के चौथे संस्थागत अंग के रूप में उभरा है। यह लोकतंत्र के क्रियान्वयन व सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।[4] स्वायत्त एवं संवैधानिक निर्वाचन आयोग भारतीय संविधान की एक विशिष्ट खोज है।[5] भारत एक लोकतांत्रिक देश है। भारतीय लोकतंत्र विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र है। जिसमें लगभग 100 करोड़ से भी अधिक मतदाता हैं। भारत में चुनाव भारतीय संविधान के तहत बनाये गये भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा संपन्न करवाए जाते हैैं। |
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अध्ययन का उद्देश्य |
प्रस्तुत शोधपत्र “भारत में लोकतंत्र एवं निर्वाचन आयोग” के अध्ययन हेतु निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं- 1- भारत में निर्वाचन प्रणाली का अध्धयन करना। 2- लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की भूमिका को रेखांकित करना। 3- भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष उत्पन होने वाली चुनौतियों का अध्धयन करना। 4- भारत में समकालीन राजनीतिक व्यवस्था की प्रकृति, संचालन एवं विस्थापन को समझने का प्रयास करना। |
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोधपत्र “भारत में लोकतंत्र एवं निर्वाचन आयोग” केे अध्ययन के लिए अनेक प्रकार के साहित्य उपलब्ध हैं। आर.एस. आढ़ा (2008), भारत में निर्वाचन व्यवस्था- चुनौतियाँ एवं संभावनाएं, ए. बी. डी. पब्लिशर्स, जयपुर, डॉ. पंकज तिवारी, भारतीय लोकतंत्र एवं चुनाव आयोग, सीण्वीण्गेना, भारतीय तुलनात्मक राजनीति, सुभाष कश्यप (2006), भारत का संविधान और संवैधानिक विधि, (नेशनल बुक ट्रस्ट आफ इण्डिया, नई दिल्ली) आदि। उपर्युक्त साहित्य सर्वेक्षण से यह बात स्पष्ट दिखाई पड़ती है कि इन पुस्तकों एवं लेखों में “भारत में लोकतंत्र एवं निर्वाचन आयोग” से संबंधित पहलुओं का उल्लेख तो मिलता है, परंतु किसी भी लेख या पुस्तक में निर्वाचन प्रणाली एवं निर्वाचन आयोग से सम्बंधित सभी आयामों के चिंतन एवं विश्लेषण का अभाव है। प्रस्तुत शोधपत्र में इन सभी परिप्रेक्ष्य को समझने और विश्लेषित करने का एक अभिनव प्रयास किया गया है। |
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मुख्य पाठ |
भारत में निर्वाचन आयोग की रचना एवं संगठन भारत के प्रमुख संवैधानिक निकायों में से चुनाव आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। भारतीय निर्वाचन आयोग का गठन 25 जनवरी, 1950 (अब राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है) को किया गया था, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। भारतीय निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र एवं अर्धन्यायिक संस्थान है, जिसका गठन भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से प्रतिनिधिक संस्थानों में प्रतिनिधि चुनने के लिए किया गया था। भारतीय संविधान के भाग-15 के अनुच्छेद 324 में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 324(1) में निर्वाचन आयोग की रचना के संबंध में व्यवस्था की गई है कि, “इस संविधान के अधीन होने वाले संसद और प्रत्येक राज्य की विधायिका के समस्त निर्वाचनों और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए मतदाता सूचियों के निर्माण तथा उसके संचालन से संबंधित कार्य का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण एक आयोग में निहित होगा, जिसे संविधान में निर्वाचन आयोग कहा गया है।” अनुच्छेद 324(2) के अनुसार एक मुख्य चुनाव आयुक्त के स्थाई पद की व्यवस्था की गई है तथा उसकी सहायता के लिए कुछ अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं, जिनकी व्यवस्था राष्ट्रपति द्वारा इस संबंध में संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के अंतर्गत की जाएगी। अनुच्छेद 324(3) के अनुसार जब कोई अन्य निर्वाचन आयुक्त इस प्रकार नियुक्त किया जाता है, तब मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा। वर्तमान में निर्वाचन आयोग तीन सदस्यीय है। अनुच्छेद 324(4) के अनुसार लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के लिए होने वाले प्रत्येक सामान्य निर्वाचन से पूर्व तथा जिन राज्यों में विधान परिषद हैं, वहाँ विधान परिषद के प्रथम चुनाव एवं प्रत्येक 2 वर्ष बाद होने वाले चुनाव के पूर्व राष्ट्रपति चुनाव आयोग के परामर्श से उतने क्षेत्रीय निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करेगा, जितनी कि वह आवश्यक समझे और जो निर्वाचन आयोग को सौंपे गए कार्यों के संपादन में उसकी सहायता करेंगे। अनुच्छेद 324(5) के अनुसार संसद द्वारा बनाई गई किसी भी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए निर्वाचन आयुक्त एवं प्रादेशिक आयुक्तों की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होगी जो राष्ट्रपति नियम द्वारा निश्चित करें। परंतु मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति और उन्हीं आधारों पर ही हटाया जा सकेगा, जिस रीति और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है अन्यथा नहीं और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा। परंतु किसी अन्य निर्वाचन आयुक्त या प्रादेशिक आयुक्त को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर ही पद से हटाया जाएगा अन्यथा नहीं। अनुच्छेद 324(6) के अनुसार राष्ट्रपति एवं राज्यपाल का यह दायित्व होगा कि निर्वाचन आयोग की मांग पर उसके तथा क्षेत्रीय आयोग के लिए निर्वाचन आयोग को सौंपे गए कार्यों के संपादन के लिए आवश्यक कर्मचारियों का प्रबंध करें।[6] चुनाव संबंधित अतिआवश्यक उपबंध निर्मित करने की शक्ति संसद को प्राप्त है। इस संबंध में संसद द्वारा दो कानूनों का निर्माण किया गया है। जनप्रतिनिधि कानून, 1950 द्वारा मतदाताओं को अहर्ता तथा मतदाता सूची तैयार करने के संबंध में निर्णय किया गया। इस विधि द्वारा निर्वाचन क्षेत्र को परिसीमित करने की प्रक्रिया, संसद में विभिन्न राज्यों के स्थानों की संख्या तथा प्रत्येक राज्य के विधान मंडलों में सदस्यों की संख्या भी निर्धारित की गई। जनप्रतिनिधि कानून, 1951 के द्वारा इस निर्वाचन का संचालन एवं प्रबंधन करने की प्रशासनिक व्यवस्था, मतदान, निर्वाचन संबंधित विवाद, उप-चुनाव इत्यादि विषयों का विस्तृत रूप से प्रबंध किया गया। इसके उपरांत दोनों कानूनों में आवश्यकता अनुसार संशोधन किए गए।[7] भारत निर्वाचन आयोग की संवैधानिक नियुक्ति 1950 में अपनी स्थापना के बाद से 15 अक्टूबर, 1989 तक चुनाव आयोग एक सदस्यीय निकाय था, तथा मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ही इसका एकमात्र सदस्य होता था। 16 अक्टूबर, 1989 को मतदान की आयु 21 वर्ष से बदलकर 18 वर्ष कर दी गई। इसलिए चुनाव आयोग के बढ़ते काम को संभालने के लिए राष्ट्रपति ने दो और चुनाव आयुक्त नियुक्त किए। तब से, चुनाव आयोग एक बहुसदस्यीय निकाय बन गया, जिसमें 3 चुनाव आयुक्त होते थे। बाद में, जनवरी 1990 में चुनाव आयुक्तों के दोनों पद समाप्त कर दिये गये और चुनाव आयोग को पूर्ववत स्थिति में लौटा दिया गया। अक्टूबर, 1993 में फिर से यही हुआ, जब राष्ट्रपति ने दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की। तब से चुनाव आयोग 3 आयुक्तों वाली बहु-सदस्यीय संस्था के रूप में काम करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य चुनाव आयुक्तों को वेतन सहित समान शक्तियां और पारिश्रमिक प्राप्त हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्तों के बीच मतभेद की स्थिति में, मामले का निर्णय आयोग द्वारा बहुमत से किया जाता है। वे 6 वर्ष की अवधि या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते हैं। उन्हें अपने कार्यकाल की समाप्ति से पहले कभी भी हटाया जा सकता है या वे इस्तीफा दे सकते हैं। चुनाव आयोग की स्वतंत्रता एवं संवैधानिक प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग के स्वतंत्र और निष्पक्ष कामकाज को सुरक्षित रखने और सुनिश्चित करने के प्रावधानों का उल्लेख है, जो इस प्रकार हैं- मुख्य चुनाव आयुक्त को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की जाती है। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान तरीके और उन्हीं आधारों पर पद से हटाया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, उन्हें राष्ट्रपति द्वारा संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर या तो सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है। इस प्रकार, वह राष्ट्रपति की इच्छा तक अपने पद पर नहीं रहता, यद्यपि वह राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। मुख्य चुनाव आयुक्त की सेवा शर्तों में उनकी नियुक्ति के बाद उनके लिए अहितकर परिवर्तन नहीं किया जा सकता। किसी अन्य चुनाव आयुक्त या क्षेत्रीय आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के बिना पद से नहीं हटाया जा सकता। यद्यपि संविधान में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुरक्षित रखने तथा सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है, फिर भी इसमें कुछ खामियां देखी जा सकती हैं, जैसेः संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों की योग्यताएं (कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की गई हैं। संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल निर्दिष्ट नहीं किया गया है। संविधान ने सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी भी अन्य नियुक्ति से वंचित नहीं किया है। भारतीय निर्वाचन आयोग के कार्य संविधान के अनुच्छेद 324 में संसदीय चुनावों, विधानसभा चुनावों, भारत के राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पदों के लिए चुनावों की देख-रेख, उनके निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार चुनाव आयोग को दिया गया है। निर्वाचन आयोग इस बात की पूर्ण व्यवस्था करता है कि देश में निर्वाचनों के लिए समुचित एवं शांतिपूर्ण वातावरण बना रहे। वह निर्वाचन के लिए समस्त प्रकार की प्रशासनिक तैयारियों की देख-रेख एवं आंकलन करता है तथा समस्त राज्य इकाइयों को तत्संबंधी आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करता है। निर्वाचन आयोग कानूनों के अनुसार निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन से लेकर निश्चित अंतराल के पश्चात निर्वाचन नामावलियाँ तैयार करना, वैध मतदाताओं का पंजीकरण करना, राजनीतिक दलों को अधिसूचित कर चुनाव चिह्न आवंटित करना, राजनीतिक दलों को राज्य दल एवं राष्ट्रीय दल का दर्जा प्रदान करना, आचार संहिता का निर्माण करना, निष्पक्ष निर्वाचन हेतु चुनावों पर नियंत्रण, निर्देशन एवं अधीक्षण करना, निर्वाचन संबंधी विवादों के हल के लिए अधिकारी नियुक्त करना, विधान परिषद के सदस्यों की अयोग्यता के संबंध में राज्यपाल को सलाह प्रदान करना, मतदान प्रोत्साहन हेतु जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करवाना, मतदान केंद्रों की पहचान, नवाचार एवं चुनाव सुधार हेतु प्रयास करना, न्यायालय के आदेशों को लागू करना, मीडिया (पेड न्यूज) पर नियंत्रण करना आदि निर्वाचन आयोग के प्रमुख दायित्व हैं, जिन्हें हम निम्न बिंदुओं के अंतर्गत विश्लेषित कर सकते हैं- निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन निर्वाचन आयोग का सर्वप्रथम एवं महत्वपूर्ण कार्य निर्वाचन क्षेत्रों का परीक्षण करना है, 1952 में संपन्न होने वाले आम चुनाव के लिए निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अधीन राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए आदेश के आधार पर किया गया था, लेकिन यह व्यवस्था संतोषजनक नहीं पाई गई। अतः संसद द्वारा परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952 पारित किया गया था। इसमें प्रावधान किया गया कि 10 वर्ष बाद होने वाली प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना चाहिए। इस कार्य को करने के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया गया। मुख्य निर्वाचन आयुक्त इस आयोग का अध्यक्ष होता है, आयोग के अन्य दो सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। सदस्य के रूप में वह व्यक्ति नियुक्त किया जाता है, जो सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के वर्तमान अथवा पूर्व न्यायाधीश हो। आयोग की सहायता के लिए दो से लेकर सात तक सहायक सदस्यों की नियुक्ति की जाती है। ये सदस्य सम्बद्ध राज्य के लोकसभा के लिए अथवा राज्य विधान मंडलों के लिए निर्वाचित सदस्य में से चुने जाते हैं। इस परिसीमन आयोग के द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों का जो सीमांकन किया जाता है, वह अंतिम होता है। किन्तु सीमांकन को अंतिम रूप देने से पहले यह आयोग नागरिकों द्वारा उठायी गई आपत्तियों को सुनता है तथा उन पर खुली बैठक में विचार किया जाता है। मतदाता सूचियां तैयार करवाना अनुच्छेद 324(1) में यह प्रावधान किया गया है कि चुनाव के आयोजन के लिए निर्वाचन नामावली तैयार करवाना तथा उनमें राज्य निर्वाचन तंत्र की सहायता से समय-समय पर संशोधन एवं नवीनीकरण कराना निर्वाचन आयोग का एक कार्य है। यह नवीनीकरण प्रत्येक आम चुनाव के पूर्व तथा प्रत्येक जनगणना के पश्चात आवश्यक रूप से करवाया जाना होता है, ताकि मतदाता सूचियां चुनाव के लिए अद्धतन बनी रहें। निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव के प्रत्येक सामान्य चुनाव या मध्यावधि चुनाव के पूर्व निर्वाचक नामावली तैयार करवाता है। आयोग द्वारा तैयार की गई निर्वाचक नामावली के आधार पर ही निर्वाचन संपन्न करवाया जाता है। निर्वाचक नामावली को इस उद्देश्य से तैयार किया जाता है कि वे सभी व्यक्ति जो मताधिकार की योग्यता रखते हैं, मतदाता सूची में सम्मिलित हो जाएँ एवं कोई भी मताधिकार योग्य व्यक्ति इससे वंचित न रह जाये। राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना निर्वाचन आयोग का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य राजनीतिक दलों को पंजीकृत करना एवं उन्हें मान्यता प्रदान करना है। निर्वाचन आयोग उन्हें चुनाव चिह्न प्रदान करता है। राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने के लिए निर्वाचन आयोग कुछ मापदंड निर्धारित करता है। यह चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किये गए प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय दलों का दर्जा प्रदान करता है। किसी राजनीतिक दल को राज्य में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल तभी माना जाएगा जब वह राजनीतिक दल निम्नलिखित में से किसी एक शर्त को पूरा करता हो- 1. आम चुनावों या विधान सभा चुनावों में, पार्टी ने राज्य की विधान सभा में 3% सीटें जीती हैं (न्यूनतम 3 सीटों के अधीन)। 2. लोकसभा आम चुनावों में, पार्टी ने राज्य के लिए आवंटित प्रत्येक 25 लोकसभा सीट में से 1 लोकसभा सीट जीती है। 3. लोकसभा या विधान सभा के आम चुनाव में, पार्टी ने किसी राज्य में न्यूनतम 6% वोट प्राप्त किए हों और इसके अतिरिक्त उसने 1 लोकसभा या 2 विधान सभा सीटें जीती हों। 4. लोकसभा या विधान सभा के आम चुनाव में पार्टी को किसी राज्य में 8% वोट मिले हों। किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल तभी माना जाएगा जब, वह राजनीतिक दल निम्नलिखित में से किसी एक शर्त को पूरा करता हो- 5. जब कोई राजनितिक दल कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से लोकसभा चुनाव में 2% सीटें (11 सीटें) जीतता है। 6. लोकसभा या विधान सभा के आम चुनाव में राजनीतिक दल को चार राज्यों में 6% वोट मिलते हैं और इसके अतिरिक्त वह 4 लोकसभा सीटें भी प्राप्त करता है। 7. किसी राजनीतिक दल को चार या अधिक राज्यों में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त हो। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दोनों ही दलों को आगामी सभी लोकसभा या राज्य चुनावों में इन शर्तों को पूरा करना होगा। अन्यथा, वे अपना दर्जा खो देंगे। निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों को आरक्षित चुनाव चिह्न प्रदान करना निर्वाचन आयोग प्रत्येक राष्ट्रीय राजनीतिक दल को एक विशेष चिह्न आवंटित करता है, जिसे वह राजनीतिक दल पूरे देश में प्रयोग कर सकता है। इसी तरह प्रत्येक राज्य स्तरीय दल को एक चिह्न आवंटित किया जाता है, जिसे वह पूरे राज्य में प्रयोग कर सकता है। इन चिह्नों को आरक्षित चिह्न कहा जाता है, जिन्हें कोई अन्य दल या प्रत्याशी प्रयोग नहीं कर सकता है। निर्वाचन आयोग के अर्ध-न्यायिक कार्य निर्वाचन आयोग को प्राप्त अर्ध-न्यायिक कार्यों में दो कार्य महत्वपूर्ण हैं। प्रथम,संविधान के अनुच्छेद 103 के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह संसद के सदस्यों की अनर्हताओं के संबंध में आयोग से परामर्श कर सकता है। निर्वाचन आयोग संसद तथा राज्य विधान मंडलों के सदस्यों की अनर्हताओं के प्रश्न पर राष्ट्रपति एवं राज्यपालों को परामर्श देता है। यद्धपि संविधान में व्यवस्था की गई है कि किसी भी संसद सदस्य और राज्य विधानमंडल के सदस्यों की अहर्ता का निर्णय राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा क्रमशः किया जाएगा। किंतु राष्ट्रपति व राज्यपाल ऐसा निर्णय करते करने से पूर्व निर्वाचन आयोग की सहमति लेंगे और आयोग द्वारा इस संदर्भ में दी गई सहमति बाध्यकारी होगी। द्वितीय, संविधान के अनुच्छेद 192 के अंतर्गत राज्यों के विधानमंडलों के सदस्यों की योग्यता के संबंध में यह अधिकार राज्यपाल को दिया गया है। किंतु इस संबंध में आयोग के लिए कोई निश्चित निर्देश नहीं दिए गए हैं और न ही निश्चित नियमों की व्यवस्था की गई है। चुनाव प्रक्रिया का का संचालन निर्वाचन आयोग का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य चुनाव प्रक्रिया का संचालन करना होता है। जन प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 14 के अनुसार चुनाव प्रक्रिया का प्रारंभ राष्ट्रपति द्वारा की गई अधिसूचना से होता है। इसके पश्चात ही निर्वाचन आयोग अपनी अधिसूचना जारी करता है, जिससे वह नामांकन भरे जाने, उसकी जांच किए जाने, नामों की वापसी तथा मतदान की तिथियों की घोषणा करता है। उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त निर्वाचन आयोग अन्य कार्य यथा- राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के लिए आदर्श आचार संहिता जारी करना, राजनीतिक दलों को आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर चुनाव प्रचार के लिए सुविधा प्रदान करना, राजनीतिक दलों के लिए प्रति उम्मीदवार चुनाव अभियान खर्च की सीमा निर्धारित करना, मतदाताओं को राजनीतिक प्रशिक्षण देना, चुनाव याचिकाओं के संबंध में सरकार को परामर्श देना, जाली मतदान को रोकने के लिए सरकारों को पहचान-पत्र जारी करने का निर्देश देना, मतदान केंद्रों की सूची का प्रकाशन करना, निष्पक्ष चुनाव संपन्न करवाने हेतु पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करना, किसी चुनाव में हुई अनियमितताओं के आधार पर उस निर्वाचन को रद्द करना, समय-समय पर संसद अथवा राज्य विधानमंडलों में रिक्त होने वाले स्थानों के लिए उप चुनावों का आयोजन करना आदि भी संपन्न किये जाते हैं। भारत निर्वाचन आयोग की उपलब्धियां निर्वाचन आयोग 1952 से लगातार राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय चुनावों का सफलतापूर्वक संचालन करता आ रहा है। निर्वाचन आयोग ने मतदान में लोगों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए लगातार प्रयास किए हैं। भारत के निर्वाचन आयोग की हीरक जयंती के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने आयोग को भारतीय लोकतंत्र का स्तंभ माना। डॉ. सिंह के अनुसार भारत के संविधान निर्माताओं ने व्यस्क मताधिकार के सिद्धांत को स्वीकार कर भारत की जनता के प्रति विश्वास को व्यक्त किया और उसकी उम्मीदों को यथार्थ स्वरूप देने का दायित्व चुनाव आयोग ने निभाया। भारत में चुनाव आयोग की प्रमुख उपलब्धियां निम्न बिंदुओं के अंतर्गत बतायी जा सकते हैं- भारत जैसे विशाल भौगोलिक देश में चुनाव आयोग ने प्रत्येक कोने में सफलतापूर्वक पहुंचकर निर्वाचन का महत्वपूर्ण दायित्व निभाया है। हिमाच्छादित पर्वत चोटी से लेकर राजस्थान के रेगिस्तान तक तथा सागर में तैरते छोटे-छोटे दीपों से लेकर दूरस्थ गांव, ढाणियों तक पहुंच बनाई है, देश में लोकतंत्र के पर्व में जनता की समग्र भागीदारी एवं मताधिकार के प्रयोग को सबके लिए व्यावहारिक रूप से उपलब्ध करवाना अपने आप में एक चुनौती है, जिसका सामना भारत निर्वाचन आयोग ने सफलतापूर्वक किया है। देश में लगातार बदलती तस्वीर तथा विकसित होती तकनीक के अनुरूप चुनाव आयोग ने स्वयं को लगातार अद्धतन करने का प्रयास किया। देश के पहले आम चुनाव में जनता को मतदान का अनुभव नहीं था, तब चुनाव आयोग द्वारा मतदान को सरलतम पद्धति से संपन्न करवाया गया। मतदान केंद्र पर राजनीतिक दलों व उम्मीदवारों की चुनाव चिह्न युक्त मतपेटियां रखी गई थी, मतदाताओं को समझने के लिए अधिक कठिनाई न हो और चुनाव चिह्न देखकर भी अपने मनपसंद उम्मीदवार को की मतपेटी में अपना मत डाल दें। तब से लेकर अब तक हुए सभी चुनावों में परिस्थितियों के अनुरूप आमूल-चूल परिवर्तन आ गया है। अब मतदाता शिक्षित एवं जागरूक हुआ है तथा तकनीकी का विकास तेजी से हुआ है। इसके अनुरूप चुनाव आयोग ने सतत परिवर्तन किया है। आज मत पेटियों का स्थान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ने ले लिया है। मतदाता को सिर्फ बटन दबाना होता है। मतदान की गणना का कार्य भी सहज एवं शीघ्रता से संपन्न करवाया जा सकता है। मतदान की पवित्रता को बनाए रखने एवं मतदाता के मन में विश्वास बना रहे, इसके लिए वीवीपैट जैसी मशीन को भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के साथ जोड़ा गया है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के ऐप्स जैसे वोटर हेल्प लाइन ऐप, C&VIGIL ऐप आदि की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई है। निर्वाचन आयोग ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का उपयोग करते हुए हरित चुनाव की संकल्पना को साकार करने की दिशा में प्रयास किया। भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस.वाई. कुरैशी कहा था कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के प्रयोग से लगभग 11000 टन कागज जो कि 280000 पेड़ों के काटने से बनता है, की बचत हुई है। चुनावों में प्रत्याशियों के व्यवहार एवं भाषा को संयमित एवं नियंत्रित करने का कार्य भी भारत निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है। निर्वाचन आयोग की ओर से चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही आदर्श आचार संहिता के माध्यम से चुनाव आयोग न केवल प्रत्याशियों को नियंत्रित करता है, अपितु राज्य एवं केंद्र सरकार को भी अपनी सीमाओं में रहने का निर्देश निर्वाचन आयोग द्वारा दिया जाता है। सरकारें जनता को लुभाने के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद जन-प्रिय घोषणाएं नहीं कर सकती वस्तुतः ऐसी घोषणाएं चुनाव के दौरान जनता को मत देने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से की जाती हैं, उन्हें पूरा करने का उद्देश्य अदृश्य होता है। निर्वाचन की प्रक्रिया स्वच्छ एवं पारदर्शी बनी रहे इसके लिए भारत निर्वाचन आयोग ने समय-समय पर कुछ कदम उठाए हैं-चुनाव आयोग द्वारा मतदाता पहचान पत्र तैयार करवाना, संवेदनशील मतदान केंद्रों की वीडियो रिकॉर्डिंग करवाना, आईसीटी एप्लीकेशनों का उपयोग करना आदि, ताकि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव का संपादन हो सके। चुनाव आयोग द्वारा नोटा (NONE OF THE ABOVE) का प्रयोग भी इस दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है। निष्पक्ष चुनाव के संपादन के लिए 17वीं लोकसभा चुनाव में चुनाव के लिए होने वाले चुनाव प्रचार को पश्चिम बंगाल में नियत तिथि से 24 घंटे पहले ही स्थगित कर दिया गया। ऐसा निर्णय प्रचार के दौरान होने वाली हिंसक घटनाओं को देखते हुए चुनाव आयोग द्वारा लिया गया। साथ ही पश्चिम बंगाल के प्रमुख शासन सचिव तथा अतिरिक्त महानिदेशक सी.आई.डी. को भी पद से हटा दिया गया। ऐसे अनेक उदाहरण है जो भारत में चुनाव आयोग की तत्परता को दर्शाते हैं। चुनाव आयोग के समक्ष चुनौतियां अपनी स्थापना से लेकर वर्तमान तक भारत निर्वाचन आयोग ने अपनी समस्त क्षमताओं का प्रयोग करते हुए चुनाव संपन्न करवाए हैं तथापि कई कठिनाइयां व समस्याएं लोकतंत्र के उत्साह को काफी कम भी कर देती हैं। निर्वाचन आयोग के समक्ष प्रमुख चुनौतियां को निम्न बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है। भ्रष्टाचार- यद्यपि निर्वाचन आयोग ने समय-समय पर भ्रष्ट गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए प्रयास किया है, चुनाव में मतदाताओं को विभिन्न प्रकार के लालच देकर प्रत्याशियों द्वारा प्रयास किया जाता है, निर्वाचन आयोग द्वारा इन गतिविधियों को रोक पाना एक दुष्कर कार्य बन जाता है, इसके लिए और सख्त कानून की आवश्यकता है। काले धन का प्रयोग- भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने अपनी पुस्तक ‘‘एन अनडाक्यूमेंटेड वंडर: द मेकिंग ऑफ द ग्रेट इंडिया इलेक्शन” के लोकार्पण के समय बोलते हुए काले धन के प्रयोग को भारतीय चुनाव आयोग के समक्ष बड़ी चुनौती बताया। यद्धपि चुनाव के दौरान आयोग द्वारा खर्च की सीमा तय कर दी गई है तथापि काले धन का प्रचुर प्रयोग चुनाव के दौरान होता है, ऐसे धन का चूकि कोई लेखा-जोखा नहीं होता है, अतः खर्च की सीमा रेखा कब और कितनी लंबी जाती है, पता लगाना अत्यंत कठिन है। त्रुटिपूर्ण मतदाता सूचियां - यद्यपि प्रत्येक लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव से पूर्व निर्वाचन आयोग की ओर से मतदाता सूचियां तैयार की जाती हैं। लेकिन यह देखने में आता है कि मतदाता सूचियां पूर्ण नहीं हो पाती हैं, परिणाम स्वरुप बहुत से नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग ही नहीं कर पाते हैं। राजनीतिक अपराधीकरण- चुनाव आयोग के समक्ष एक अन्य महत्वपूर्ण चुनौती राजनीतिक अपराधीकरण के रूप में देखी जा सकती है। चुनाव आयोग के लिए दागी प्रत्याशियों को चुनाव की प्रक्रिया से दूर रख पाना कई बार संभव नहीं हो पाता। चुनाव में उम्मीदवारों के आपराधिक रिकार्ड को देखा जाये तो हम पाते हैं कि बड़ी संख्या में दागी नेता चुनाव जीत जाते हैं। सरकारी सुविधाओं का दुरुपयोग- सामान्यतः देखने में आता है कि चुनाव में सरकारी पद चाहे शासन में हो या प्रशासन में, का दुरुपयोग आम बात हो जाती है। चुनाव आयोग द्वारा इस संबंध में समय-समय पर निर्देश भी जारी किए जाते हैं, लेकिन फिर भी इसके दुष्परिणामों की घटनाओं को रोका नहीं जा सका है। चुनाव आयोग को केंद्र व राज्य सरकार या चुनाव क्षेत्र के प्रशासन पर काफी सीमा तक निर्भर रहना पड़ता है। उनके लिए बहुत निष्पक्ष होकर कड़े कदम उठा पाना एक कठिन कार्य हो जाता है। अवैध मत- भारत में यद्यपि साक्षरता की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी अनेक अशिक्षित मतदाता हैं, जो अपने मत का सही प्रयोग नहीं कर पाते हैं। ऐसे में अवैध मतों की संख्या बढ़ जाती है, जो चुनाव परिणामों को संदूषित कर देती है। सही मतदाता से उचित प्रक्रिया से मतदान करवा पाना चुनाव आयोग के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। सीमित शक्तियां- चुनाव आयोग के समक्ष एक महत्वपूर्ण चुनौती यह है कि चुनाव आयोग के कर्तव्यों की श्रृंखला तो लंबी है, लेकिन उनके अधिकार सीमित हैं। मतदाता सूची तैयार करना, दूर-दराज क्षेत्रों तक चुनाव, धनबल व भुजबल का सामना करना आदि बड़ी चुनौतियां हैं, जिसका सामना सीमित संसाधनों व अधिकारों से करना कठिन कार्य है। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति- सामान्यतः चुनाव आयुक्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी होते हैं। जिनकी नियुक्ति में उनकी योग्यता के साथ-साथ सत्तारूढ़ दल की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह नियुक्ति प्रक्रिया उन्हें सत्तारूढ़ दल के प्रति झुकने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिसके लिए जिससे निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया का संपादन करने में बाधा उत्पन्न होती है। सत्तारूढ़ दल भी यह प्रयास करता है कि अपने हित साधने के लिए निर्वाचन आयोग पर दबाव बनाया जाए। भारत में लोकतंत्र को मजबूत करने के उपाय उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भारत चुनाव आयोग के समक्ष विराट दायित्व हैं तथा उनके संसाधन सीमित हैं। इसी प्रकार उसके अधिकार सीमित हैं तथा समस्याएं और चुनौतियां बहुत अधिक हैं। इन स्थितियों से निपटने के लिए समय-समय पर कुछ समितियों एवं आयोगों ने सुझाव भी दिए हैं। तारकुंडे समिति, दिनेश गोस्वामी समिति, विधि आयोग तथा संविधान समीक्षा आयोग ने चुनाव को बेहतर तरीके से संपन्न करवाने के लिए अपने सुझाव साझा किए हैं। चुनाव आयोग के समक्ष उपस्थित इन चुनौतियों का समाधान कर स्वच्छ एवं स्वतंत्र चुनाव के मार्ग में बाधाओं को दूर करने के लिए कुछ निम्न सुझाव उल्लेखनीय हैं- चुनाव आयुक्त की नियुक्ति- चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एक महत्वपूर्ण कार्य है, उनसे निष्पक्ष एवं स्वतंत्रता के साथ आचरण भी अपेक्षित है। अतः इस पद के चयन के लिए बनी समिति के सदस्य यदि सत्ता के विभिन्न वर्गों से हो तो स्वस्थ व्यवस्था स्थापित की जा सकती है यथा - प्रधानमंत्री, विपक्ष का नेता, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा सिविल संगठनों के जागरूक लोग। संगठन- चुनाव आयोग से संबंधित विभिन्न सुझावों में बहु-सदस्यीय आयोग का सुझाव दिया जाता रहा है तथा वर्तमान में ऐसा है भी, लेकिन आयोग को व्यापक रूप देने के लिए सदस्य संख्या तीन से बढ़कर पांच की जा सकती है तथा मुख्य चुनाव आयुक्त इसकी अध्यक्षता करें तो बेहतर परिणाम की अपेक्षा है। शक्तियां- चुनाव आयोग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा उसकी शक्तियां सीमित है, ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग को अधिक शक्तिशाली बनाया जाए, ताकि इससे सकारात्मक परिवर्तन आ सकें। सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकने के लिए भी चुनाव आयोग को सशक्त बनाना आवश्यक है। संसाधन- विशाल जनसंख्या, विशाल भौगोलिक क्षेत्र तथा बहुआयामी संस्कृति में मतदाताओं एवं प्रत्याशियों को समुचित चुनावी व्यवस्था के लिए पर्याप्त मानवीय एवं आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता होती है। केंद्र व राज्य सरकारों पर कम निर्भरता होने से आयोग अधिक तत्परता से कार्य कर सकेगा । मतदाता- लोकतंत्र को सफल बनाने वाले कारकों में सबसे महत्वपूर्ण कारक मतदाता है। यदि मतदाता सक्रिय और जागरूक नहीं हो तो लोकतंत्र अर्थहीन हो जाता है। चुनाव आयोग के सामने मतदाताओं को जागरूक बनाना ही सबसे बड़ी चुनौती है। यद्यपि इस दिशा में चुनाव आयोग द्वारा सकारात्मक कदम उठाए गए हैं। लेकिन फिर भी मतदाता को जागरूक बनाने के लिए निर्वाचन आयोग को और अधिक प्रयास करने होंगे। इस दिशा में मतदाताओं का भी यह दायित्व है कि लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए वे भी निर्वाचन आयोग की मुहिम में अपनी आहुति दें। |
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निष्कर्ष |
अंत में, भारत में लोकतंत्र संविधान निर्माताओं द्वारा भारत के नागरिकों को दिया गया उपहार है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इस देश के नागरिकों को लोकतंत्र के महान मूल्य का एहसास होना चाहिए और उसकी सराहना करनी चाहिए। भारत में लोकतंत्र निश्चित रूप से दुनिया में अद्वितीय है। चुनाव आयोग ने भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के लिए महत्वपर्ण कार्य किये हैं। वर्ष 1999 में तेरहवीं लोकसभा के चुनाव के दौरान कार्यकारी सरकार को वास्तविक व महत्वपूर्ण निर्णय लेने से रोका। इसके पश्चात महाराष्ट्र के एक नेता को साम्प्रदायिक भाषण देने के कारण 6 वर्ष के लिए अयोग्य घोषित कर, चुनावों के दौरान धर्म, जाति के प्रभाव को रोकने का प्रयास किया गया। निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रक्रिया का आधुनिकीकरण करने के लिए एक ओर फोटो पहचान-पत्र लागू किये तो दूसरी ओर इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का प्रयोग किया। चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर में निष्पक्ष चुना करायें, जिसकी प्रशंसा विदेशी पर्यवेक्षकों ने भी की। इसी कारण मुख्य निर्वाचन आयुक्त को एशियाई पुरस्कार से सम्मानित किया गया। निर्वाचन आयोग ने वर्ष 2003 में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ चुनाव आचार संहिता के दौरान अधिकारियों के स्थानान्तरण पर रोक लगाई। यहां तक कि राजस्थान में थानाधिकारी के स्थानांतरण करने पर सरकार को फटकार लगाई। वर्ष 2007 में उत्तरप्रदेश एवं बिहार के विधान सभा चुनावों में निष्पक्षता बनाये रखने के लिए चुनाव आयोग ने केन्द्रीय पर्यवेक्षकों व केन्द्रीय पुलिस बल का प्रयोग किया, जिसके कारण इन राज्यों में बूथ कैप्चरिगं व धांधली नहीं हो पायी और जनता ने निडर होकर मतदान किया। चुनाव आयोग ने निष्पक्ष व क्रिायाशील भूमिका केवल भारत में ही नहीं अपितु भूटान, अफगानिस्तान जैसे देशांे में भी अदा की है। इस प्रकार स्पष्ट है कि निर्वाचन आयोग ने स्वतत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराकर भारत मे लोकतंत्र की रक्षा की है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. तारीक अशरफ, इलेक्शन 2004, बुकलेव 2004, पृ. 1 2. सुब्रत के. मित्रा और वी. बी. सिंह, डेमोक्रेसी एंड सोशल चेंज इन इंडिया, सेज पब्लिकेशन, दिल्ली, 1999 3. आर.एस. आढ़ा, भारत में निर्वाचन व्यवस्था- चुनौतियाँ एवं संभावनाएं, ए. बी. डी. पब्लिशर्स, जयपुर, 2008, पृ. 19 4. इलेक्शन कमिशन एंड फंक्शनिंग डेमोक्रेसी, इकोनामिक एंड पॉलीटिकल वीकली, वॉल्यूम 41, (अप्रैल 29- मई5, 2006) पृ. 1635-1640 5. रेहान अली, द वर्किंग ऑफ़ द इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, नई दिल्ली, 2001, पृ. 99 6. गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया 1951 द कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ इंडिया, आर्टिकल पृ. 324-329 7. ए. पी. अवस्थी, भारतीय शासन एवं राजनीति, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल प्रकाशन, आगरा |