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निराला के काव्य में चेतना के स्वर |
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Voices of Consciousness in Nirala Poetry | |||||||
Paper Id :
19127 Submission Date :
2024-06-12 Acceptance Date :
2024-06-19 Publication Date :
2024-06-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.13355075 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ राष्ट्रीय चेतना के पुरोधा थे । वे स्वतन्त्रता प्रेमी थे । इनकी कविताओं का मूल स्वर क्रान्तिकारी है । नई शैलियों का विकास निराला ने अपने काव्य क्षेत्र में किया । ‘परिमल’, ‘गीतिका’ और ‘अनामिका’ निराला के प्रसिद्ध काव्य-संग्रह हैं । निराला की कविताएँ समाज में परिवर्तन और उत्कृष्टता की प्रेरणा देती है । इनकी रचनाएँ साहित्यिक और सामाजिक क्रांति के माध्यम से समाज में सुधार और प्रगति को बढ़ावा देने की दिशा में हैं । कविताओं में स्वतन्त्रता, व्यक्तित्व और आत्मनिर्भरता के सिद्धान्त समाहित है, जो समाज में नए विचारों को फैलाने में मदद करते हैं । |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Suryakant Tripathi 'Nirala' was a pioneer of national consciousness. He was a freedom lover. The basic tone of his poems is revolutionary. Nirala developed new styles in his poetry field. 'Parimal', 'Geetika' and 'Anamika' are famous poetry collections of Nirala. Nirala's poems inspire change and excellence in society. His works are in the direction of promoting reform and progress in society through literary and social revolution. The poems contain the principles of freedom, individuality and self-reliance, which help in spreading new ideas in the society. | ||||||
मुख्य शब्द | राष्ट्रीय भावना, सांस्कृतिक परम्परा, युवा, स्वतन्त्रता, संघर्ष, जागरण के स्वर। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Voices of National Sentiment, Cultural Tradition, Youth, Freedom, Struggle and Awakening. | ||||||
प्रस्तावना | सूर्यकांत
त्रिपाठी 'निराला' हिंदी साहित्य के एक महान् कवि, उपन्यासकार और निबंधकार हैं। जिनका काव्य जीवन के गूढ़ रहस्यों, मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक मुद्दों के प्रति गहरी चेतना का परिचायक है।
उनकी कविताओं में प्रेम, विरक्ति, संघर्ष
और प्रकृति का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है। अपनी रचनाओं के माध्यम से निराला
ने मानव जीवन की जटिलताओं, उसकी आनंद और दुःख की छवियों को
प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है। यह समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता और
जिम्मेदारी का भी प्रमाण है। |
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अध्ययन का उद्देश्य |
प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य पं सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के काव्य में जीवन के गूढ़ रहस्यों, मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक मुद्दों आदि का गहन अध्ययन करना है । |
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साहित्यावलोकन | निराला की कविताएं आज भी
प्रासंगिक है। यह न केवल उनकी व्यक्तिगत चिंताओं को प्रकट करते हैं बल्कि समकालीन
समाज की समस्याओं और मानवीय भावनाओं को भी समाहित करते हैं। निराला की रचनाएं
साहित्यिक मूल्य के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक चेतना का भी पर्याय है। निराला का
काव्य आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। |
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मुख्य पाठ |
हिन्दी जगत के समक्ष निराला ने माँ भारति की एक स्वतन्त्र छवि के रूप में अंकित की है । राष्ट्र के हित के लिए देश प्रेमी ‘निराला’ साहित्यिक, दार्शनिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक सभी क्षेत्रों में इनके विचार एक नई उत्तेजना लेकर आते हैं । एक नवीन उन्मेष के साथ ही उन्होंने अपने गीतों में माँ भारति के चित्र को उत्कीर्ण किया है, वह जन-जन का कंठहार बन गया । ‘भारति वंदना’ निराला की एक प्रसिद्ध कविता है । इस कविता में निराला ने भारतीय संस्कृति, परम्पराओं और देवी-देवताओं की स्तुति की है । वे इस कविता में भारतीय समाज की रूपरेखा को उभारते है और उसकी गहरी पारम्परिक धाराओं का महत्त्व बताते है । भारति वंदना की पहली कविता जिसमें वे अपने विशिष्ट दृष्टिकोण से भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय भावनाओं को व्यक्त करते हैं । इस कविता में निराला ने भारत की समृद्ध धरोहर, ऐतिहासिक वीरता और समाज की सांस्कृतिक विविधता की प्रशंसा की है । वे भारतीय समाज के सार्वभौमिकता और विविधता को महसूस करते हैं, जिससे भारतीय समाज की एकत्र शक्ति और सहयोगिता का संदेश प्रकट होता है । निराला की कविता में एक समृद्ध राष्ट्रीय भावना और गर्व की भावना प्रतिफलित होती हैं, जिसमें भारतीय समाज की विविधता, एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का समर्थन किया गया है - भारति जय, विजय करे । कनक-शस्य-कमलधरे । लंका पदतल शतदल, गर्जितोर्मि सागर-जल, धोता शुचि चरण युगल स्तव कर बहु-अर्थ-भरे । तरु-तृण-वन-लता वसन, अन्चल में खचित सुमन । गंगा ज्योतिर्जल-कण धवन धार हार गले । (गीतिका, पृ. 73) निराला की ‘मातृ वंदना’ कविता उनके भावनात्मक और संवेदनशील लेखन का अद्वितीय उदाहरण है । इस कविता में वे माँ की महत्त्वपूर्ण भूमिका और मातृत्व के गहरे अर्थ को समझाते हैं । इसे उनकी भावनाओं और समाज के प्रति उनकी दृष्टि का एक बेहतरीन व्यक्ति माना जाता है । ‘मातृ वंदना’ कविता में यह श्रेणी इंसान के जीवन में स्वार्थपरता के सभी पहलुओं को संकेत करती है जैसे कि अपने लाभ के लिए काम करना और अपनी भलाई की चिंता करना । यह अभिव्यक्ति एक पूरी समर्पण और श्रद्धा को व्यक्त करती है, जिसमें कवि अपने माँ के प्रति अपने शरीर, मन और आत्मा का समर्पण करने को तैयार हैं । अपने कठिन परिश्रम के सभी फलों को अपनी माँ के पास समर्पित कर दिया है । इसमें उनके आदर्श और प्रयासों का भाव है । कवि अपनी वाणी को मातृभूमि की वेदना से गौरवान्वित करता है । हर कंठ-कंठ से जन्मभूमि की पुकार सुनना चाहता है । विदेशी आक्रांताओं से पददलित जन्मभूमि के चरणों में जीवन अर्पित कर के आँसुओं को पोंछ देने की कामना कवि करता है - नर-जीवन के स्वार्थ सकल बलि हों तेरे चरणों पर, माँ मेरे श्रम-संचित सब फल । जीवन के रथ पर चढ़कर, सदा मृत्यु-पथ पर बढ़कर, महाकाल के खरतर शर सह सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर, जागे मेरे उर में तेरी मूर्ति अश्रुजल-धौत विमल दृग-जल से पा बल कर दें जननि, जन्म-श्रम-संचित फल । बाधाएँ आएँ तन पर, देखूँ, तुझे नयन-मन भर, मुझे देख तू सजल दृगों से अपलक, उर के शतदल पर, क्लेद-युक्त अपना तन दूँगा, मुक्त करूँगा तुझे अटल, तेरे चरणों पर देकर बलि सकल श्रेय-श्रम-संचित फल । (गीतिका, पृ. 22) ‘छत्रपति शिवाजी का पत्र’ (1922) में भारतीय राष्ट्रीयता और स्वाधीनता के प्रति गहरी श्रद्धांजलि व्यक्त होती है । इसमें औरंगजेब के समर्थक जयसिंह के लिए नही, बल्कि अंग्रेज-बहादुर के समर्थक आधुनिक ‘जयसिंहों’ के लिए हैं। निराला ने भारतीय सांस्कृतिक क्रान्ति का आह्वान किया है । उन्होंने बारम्बार भारतवासियों को सचेत किया है, वे कहते है - फूलों की सेज पर सोए हो, काटों की राह भी आह भर पार की क्षत्रियों का खून यदि, हृदय में जागती है वीर, यदि माता क्षत्राणी की दिव्य मूर्ति, स्फूर्ति यदि अंग-अंग को उकसा रही, आ रही है याद यदि अपनी मरजाद की, चाहते तो यदि कुछ प्रतिकार तुम रहते तलवार के म्यान में, आओ वीर, स्वगत है, साद बुलाता हूँ । हैं जो बहादुर समर के, वे मरके भी माता को बचायेंगे । शत्रुओं को खून से धो सके यदि एक भी तुम माँ का दाग, कितना अनुराग देशवासियों का पाओगे । निर्जर हो जाओगे - अमर कहलाओगे । (परिमल, पृ. 225) निराला की कविताएँ आने वाले युग के लोगों को प्रेरित करती हैं । उनके विचार और उनकी कला समाज में नए और उच्च आदर्शाें की ओर दिशा प्रदान करते हैं, जिससे युवा पीढ़ी को नई सोच का संदेश मिलता है और वे समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित होते है । ‘जागो फिर एक बार’ कविता में भी सांस्कृतिक परम्परा की दुहाई देकर आत्म गौरव का भाव जगाया। अंग्रेजो के प्रति निराला का विद्रोह मुखर हुआ है । दासता की जंजीरों में जकड़ा भारत जिस त्रासद पीड़ा को झेल रहा था उसके लिए निराला की सिंहनाद जैसी काव्य के स्वर जन-जन के मन को आंदोलित करने वाली थी । अकाली सिक्खों के शौर्य तथा गीत की वाणी को स्मरण किया - शेरों की माँद में आया है आज स्यार जागों फिर एक बार ! (परिमल, पृ. 180) निराला की कविताएँ आनें वाले युग के लोगों को प्रेरित करती हैं । उनके विचार और उनकी कला समाज में नए और उच्च आदर्शों की ओर दिशा प्रदान करतें हैं, जिससे युवा पीढ़ी को नए सोच का संदेश मिलता है और वे समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित होते है - ¬मुक्त हो सदा ही तुम बाधा-विहन-बन्द-छन्द ज्यों । डूबे आनन्द में सच्चिदानन्द-रूप । महा-मन्त्र ऋषियों का अणुओं-परमाणुओं में फूँका हुआ, ’’तुम हो महान्, तुम सदा हो महान्, है नश्वर यह दीन भाव । (परिमल, पृ. 204) ‘बादल राग’ कविता जो निराला की राष्ट्रीय भावनाओं और अद्वितीय कविता की शैली का प्रतीक है । इसमें भारतीय समाज की विविधता और एकता का प्रतिनिधित्व करते हैं । बादलों के बिना भी वे अदृश्य रहते हैं । इस कविता में एक ओर औपनिवेशिक शोषण के विरोध की बात कही है तो दूसरी और सामंती उत्पीड़न का भी विरोध किया है- जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर, तुझे बुलाता कृषक अधीर, ऐ विप्लव के वीर ! चूस लिया है उसका सार, हाड़ मात्र ही हैं आधार, ऐ जीवन के पारावार ! (परिमल, बादल राग - 6 पृ. 188) ‘बादल राग’ खण्ड-6 की कविता में बादल विप्लववादी के रूप में अंकित किया गया है । निराला ने सृष्टि को विप्लव आस्था से भरा है । वे घन को संबोधित करते हुए कहते है - यह तेरी रण-तरी भरी आकांक्षाओं से, घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के आशाओं से नव जीवन की, ऊँचा कर सिर, ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल ! फिर फिर । (परिमल, बादल राग-6 पृ. 186) ‘बादल राग’ की छः कविताओं में बादल को प्रतीक बनाकर क्रांति करने और परिवर्तन लाने का संदेश भी दिया है । जिसमें स्वतन्त्रता संघर्ष के ओज का और नवजीवन के निर्माण को प्रस्तुत किया - झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर ! राग-अमर ! अम्बर में भर निज रोर ! झर झरझर निर्झर-गिरि-सर में, घर, मरु, तरु मर्मर, सागर में, सरित-तडित-गति-चकित पवन में मन में, विजन-गहन-कानन में, आनन-आनन में, रव-घेर-कठोर- राग-अमर ! अम्बर में भर निज रोर ! (परिमल, बादल राग-1पृ. 177) ‘निराला’ ने अपनी जननी से कायरता दूर करने का वरदान माँगा है । साथ ही वीरतापूर्वक मृत्यु का वरण करने की बात भी कही, वे माँ से अनुनय कर कहते है कि- दे, मैं करूँ वरण जननि, दुखहरण पद-राग-रंजित मरण । भीरुता के बँधे पाश बस छिन्न हों, मार्ग के रोध विश्वास से भिन्न हों, आज्ञा, जननि, दिवश-निशि करूँ अनुसरण । (गीतिका, पृ. 97) निराला के काव्य को नामवर सिंह अपनी सोच में अद्वितीय और उन्नत कहते थे । उन्होंने निराला के काव्य की समृद्धि, उसी अद्वितीयता और रोमांचकता को सहारा । उन्होंने निराला की विशेषता, उसकी विरह और दृष्टि को वे गहराई से समझने का प्रयास करते थे । नामवर सिंह ने निराला को एक विचारशील और गंभीर कवि के रूप में उजागर किया, जो अपने समय के सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश को अद्वितीय ढ़ंग से प्रस्तुत करते थे । नामवर सिंह मानते भी थे, उन्होंने कहा - ‘‘यह निराला ही है, जो तमाम रूढ़ियोें को चुनौती देते हुए अपनी सद्यः परिणीता कन्या के रूप का खुलकर वर्णन करते हैं और यह कहना नहीं भूलते कि ‘पुष्प-से तेरी स्वयं रची !’ है किसी कवि में इतना साहस और संयम !’’ निराला की राष्ट्रीय चेतना में जीवन की जागरूकता के सभी पक्षों की विवेचना है । वे धन, पुण्य और प्रेम के माध्यम से आर्थिक सम्पन्नता को भी राष्ट्रीय निर्माण का आधार मानते है - जागो, जीवन-धनिके ! विश्व-पण्य-प्रिय वणिके ! दुःख-भार भारत तम-केवल, वीर्य-सूर्य के ढके सकल दल, खोलो उषा-पटल निज कर अयि, छविमयी, दिन-मणिके । गह कर अकल तूलि, रँग-रँगकर बहु जीवनोपाय,भर दो घर, भारति, भारत को फिर दो वर ज्ञान-विपणि-खनि के । (गीतिका, पृ.17) निराला की ‘परलोक’ कविता में वे अपने विचारों और दृष्टिकोण से जीवन और मृत्यु के माध्यम से परलोक की ओर संकेत करते है । उनका यह विचार है कि जीवन का अंत एक नयी प्रारम्भ की ओर जाता है, एक परलोक में जो हमारे सांसारिक जीवन से भिन्न है । वे इस अनदेखी जगह को एक स्वर्ग के रूप में देखते है, जहाँ वे इष्ट की अनुपलब्धि में अभ्यर्थना के साथ उपालम्भ और अर्चना दोनों का सुन्दर मेल कर देते हैं, जैसे- नयन मुँदेंगे जब, क्या देंगे ? चिर-प्रिय-दर्शन ? शत-सहस्त्र-जीवन-पुलकित, प्लुत प्यालाकर्षण ? अमरण-रणमय मृदु-पद-रज ? (परिमल, परलोक, पृ. 63) ‘तुलसीदास’ निराला का महत्त्वपूर्ण प्रबंध काव्य है । इसका मुख्य उद्धेश्य सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संदेश देना है । इसमें निराला ने राष्ट्र के सांस्कृतिक गौरव का गुणगान किया है । ‘तुलसीदास’ के रूप में निराला ने आधुनिक कवि के स्वाधीनता सम्बन्धी भाषा के उदय और विकास का चित्रण किया है- वीरों का गढ़, वह कालिंजर, सिंहों के लिए आज पिंजर नर हैं भीतर बाहर किन्नर-गण गाते पीकर ज्यों प्राणों का आसव, देखा असुरों ने दैहिक दव, बन्धन में फँस आत्मा-बांधव दुख पाते । जागो, जागो आया प्रभात, बीती वह, बीती अन्ध रात, झरता भर ज्योतिर्मय प्रपात पूर्वाचल बाँधो, बाँधो किरणें चेतन, तेजस्वी, है तमजिज्जीवन, आती भारत की ज्योर्धन महिमाबल (तुलसीदास) निराला के कविताओं में राष्ट्रीय चेतन को समाज, धर्म, राष्ट्र और मानवीय भावनाओं के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है । सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों के साथ समाज की स्थिति पर विचार किया और व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से समाज के अन्यायों को उजागर किया है । भारतीय समाज की संस्कृति और धार्मिकता के प्रति अपनी विशेष भावना को व्यक्त किया है । इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना का स्पर्श साफ़ दिखता है जो व्यक्ति को उसकी आत्मा के मूल्यों और समाज की समस्याओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं । निराला के काव्य उनकी भावनाओं को सुंदरता से व्यक्त करते है और राष्ट्रीय और मानवीय मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित करते है । ‘जन्मभूमि’ कविता में निराला ने जन्मभूमि, भारत के प्रति अपनी गहरी भावना को व्यक्त किया है । इस कविता में निराला ने अपने देश की स्थिति, सामाजिक और आर्थिक विकास में होने वाली गंभीर समस्याओं को उजागर किया है । वे अपने देश की समृद्धि और विकास के लिए अपनी प्रार्थना व्यक्त करते है । निराला भारत माता की प्राचीनता, विशालता, धार्मिकता और समृद्धि की भावना को बयान करते हैं । जन्मभूमि के प्रति प्रेम व सम्मान व्यक्त किया है । इसके माध्यम से वे बताते है कि भारत एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक देश है, जो उनकी दृष्टि में अनमोल है - बन्दूँ मैं अमल कमल, - चिर सेवित चरण युगल - शोभामय शान्तिनिलय पाप ताप हारी । मुक्तबंध, घनानन्द मुदमंगलकारी ।। वधिर विश्व चकित भीत सुन भैरव वाणी । जन्मभूमि मेरी है जगन्महारानी ।। कवि ने देवी सरस्वती की वन्दना कर उससे ज्ञान के प्रकाश, स्वाधीनता और स्वच्छन्दता का वरदान माँगा है कि नए जीवन का संदेश भारतवासियों को दे, ताकि ये लोग भी नवीनता को अपनाकर वास्तविक जीवन में सुख और आनन्द पा सकें - वर दे, वीणावादिनी वर दे ! प्रिय स्वतन्त्र-रव अमृत-मन्त्र नव भारत में भर दे ! काट अन्ध-उर के बन्धन-स्तर बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर, कलषु भेद तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दे ! नवगति, नवलय, ताले-छन्द नव, नवल कण्ठ, नव जलद-मन्द्ररव, नव नभ के नव विहग-वृन्द को नव पर नव स्वर दे ! (गीतिका, पृ. 3) ‘दिल्ली’ कविता में दिल्ली के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व को बयान करते हैं । जहां पुरानी और नई दुनियाओं का संगम होता है, जिसमें समृद्धि के अंश और व्यथा की झलक साथ-साथ नजर आती है । निराला ने दिल्ली की अनगिनत रंग-बिरंगी और पुरानी धरोहरों की महक को व्यक्त किया जो इस शहर के अद्वितीय रूप को चित्रित करता है । उन्होंने इस शहर में अनूठी विशेषताओं को महसूस करने के लिए कविताओं में एक अद्वितीय भावनात्मक रंग भरा है- नारियों की महिमा उस सती संयोगिता ने किया आहूत जहाँ विजित स्वजातियों को आत्म-बलिदान से- ‘पढ़ो रे, पढ़ो रे पाठ, भारत के अविश्वस्त अवनत ललाट पर निज चिताभस्म का टीका लगाते हुए -’ सुनते ही रहे खड़े भय से विवर्ण जहाँ अविश्वस्त, संज्ञाहीन, पतित, आत्मविस्मृत नर ? बीत गये कितने काल क्या यह वही देश है बदले किरीट जिसने सैकड़ो महीप-भाल ? क्या यह वही देश है । (अनामिका, दिल्ली) |
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निष्कर्ष |
निराला के काव्यों में चेतना के स्वर का सार उनकी गहरी धार्मिक और मानवीय चिंतन में निहित है । उनकी कविताओं में समाज की अन्याय, व्यक्तिगत और सामाजिक उत्थान की चुनौतियां और अध्यात्मिक खोज उजागर होती हैं । उन्होंने धर्म, ध्यान, प्रेम और मानवीयता के विभिन्न पहलुओं पर गहरा विचार किया । उनकी कविताओं में स्वतन्त्रता के प्रति उनकी प्रेरणा, विश्वास और उत्साह अनुभूत होते हैं, जो समाज को सुधारने और उसे उत्तेजित करने की कोशिश करते हैं । चेतना के स्वर में निराला की सजीव और गहराई से भरी व्यक्तिगत अनुभूतियाँ उजागर होती हैं, जो उनकी कविताओं को एक अद्वितीय और सुसंगत अनुभव बनाती है । |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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