ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VI , ISSUE- VI September  (Part-1) - 2021
Anthology The Research

रामधारी सिंह दिनकरकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना

National Consciousness in the Works of Ramdhari Singh Dinkar
Paper Id :  19116   Submission Date :  2021-09-07   Acceptance Date :  2021-09-19   Publication Date :  2021-09-25
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DOI:10.5281/zenodo.13254767
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शैलेन्द्र पाल सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
साहू जैन पीजी कॉलेज
नजीबाबाद,बिजनौर, उ.प्र., भारत
सारांश

यह शोध पत्र प्रसिद्ध हिंदी कवि रामधारी सिंह दिनकरकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना की भूमिका का विश्लेषण किया गया है। रामधारी सिंह दिनकरभारतीय साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर थे। जिनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना, स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक मुद्दों की गहन अभिव्यक्ति होती है। उनकी कविताओं और लेखन में राष्ट्रप्रेम, देशभक्ति और स्वतंत्रता की भावना स्पष्ट रुप से प्रकट होती है। इसमें उनकी प्रमुख रचनाओं में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना का तथा उनके साहित्य का अध्ययन किया गया है। दिनकरकी कविताएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद के सामाजिक एवं राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करती हैं। यह अध्ययन उनकी कविताओं में प्रकट होने वाले राष्ट्रवादी विचारों, सामाजिक जागरुकता और स्वराज्य की आकांक्षाओं को उजागर करता है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद This research paper analyzes the role of national consciousness in the works of famous Hindi poet Ramdhari Singh 'Dinkar'. Ramdhari Singh 'Dinkar' was a prominent figure in Indian literature. His works have a deep expression of national consciousness, freedom struggle and social issues. The spirit of nationalism, patriotism and independence is clearly visible in his poems and writings. In this, the spirit of nationalism and independence in his major works and his literature have been studied. 'Dinkar's' poems reflect the social and political scenario during and after the Indian freedom struggle. This study highlights the nationalist ideas, social awareness and aspirations of self-rule visible in his poems.
मुख्य शब्द रामधारी सिंह ‘दिनकर’, राष्ट्रीय चेतना, स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय साहित्य, कविताएँ, सामाजिक न्याय, साम्प्रदायिक सद्भावना।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Ramdhari Singh 'Dinkar', National Consciousness, Freedom Struggle, Indian Literature, Poems, Social Justice, Communal Harmony.
प्रस्तावना

रामधारी सिंह दिनकरहिंदी साहित्य के प्रमुख कवि और लेखक थे, जिनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। उनकी कविताओं में देशभक्ति, स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक मुद्दों का सजीव चित्रण है। रामधारी सिंह दिनकरका जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के सिमरिया गाँव में हुआ था। वे भारतीय स्वाधीनता संग्राम के समय के एक प्रमुख कवि थे। दिनकरकी कविताओं ने भारतीय जनमानस को प्रेरित किया और उनमें राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल किया। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक न्याय और साम्प्रदायिक सद्भावना का अद्भुत संगम मिलता है।

रामधारी सिंह दिनकर’ (1908-1974) हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक हैं। उनके कार्यों में स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय गौरव के विषय प्रमुख हैं। दिनकरकी कविताएं भारतीय जनता के दिल में गहरी छाप छोड़ने वाली और राष्ट्रीय चेतना को प्रोत्साहित करने वाली मानी जाती हैं। वे उन कवियों में से थे जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने की कोशिश की है।

रामधारी सिंह दिनकरकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना को किस प्रकार और किस हद तक प्रतिबिंबित किया गया है, यह समझना महत्वपूर्ण है। उनकी कविताओं का गहन विश्लेषण करके यह देखा जा सकता है कि वे कैसे भारत की आजादी की लड़ाई और सामाजिक सुधारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं। इस शोध का उद्देश्य यह जानना है कि उनकी कविताओं में राष्ट्रीय चेतना की क्या भूमिका है और यह किस प्रकार उनकी रचनाओं में अभिव्यक्त होती है।

अध्ययन का उद्देश्य
  1. दिनकरकी रचनाओं में राष्ट्रीयता की भावना का विश्लेषण करना।
  2. उनकी कविताओं में स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक मुद्दों का अध्ययन।
  3. दिनकरकी रचनाओं का साहित्यिक मूल्यांकन करना।
  4. दिनकरकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना के प्रमुख तत्वों की पहचान करना।
  5. उनकी कविताओं का विश्लेषण करना और यह देखना कि वे कैसे स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार के विचारों को बढ़ावा देती हैं।
  6. दिनकर की रचनाओं के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव को समझना।
  7. यह मूल्यांकन करना कि उनकी कविताएं वर्तमान संदर्भ में भी किस प्रकार प्रासंगिक हैं।
साहित्यावलोकन

रामधारी सिंह दिनकरकी रचनाओं पर पूर्व में किए गए शोध और साहित्यिक आलोचनाओं का विश्लेषण किया गया है। विभिन्न विद्वानों और आलोचकों ने दिनकरके काव्य में राष्ट्रीय चेतना का अध्ययन किया है। प्रमुख समीक्षाएं निम्नलिखित है-

डॉ. नंदकिशोर नवल (1985) ने दिनकरका काव्य में उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता और सामाजिक चेतना को विस्तार से समझाया है। डॉ. नामवर सिंह (2000) ने दिनकरकी रचनाओं के माध्यम से भारतीय समाज में हो रहे परिवर्तनों का गहन विश्लेषण किया है। डॉ. गणेश त्रिपाठी (1995) ने हिंदी साहित्य का इतिहासमें दिनकरकी कविताओं के राष्ट्रीय और सामाजिक पहलुओं को प्रस्तुत किया है।
मुख्य पाठ

रामधारी सिंह दिनकरकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना:

रामधारी सिंह दिनकरकी कविताओं में राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संग्राम के विचारों का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। उनकी प्रमुख रचनाओं में से कुछ हैं रश्मिरथीयह महाभारत के पात्र कर्ण की कहानी है, जिसमें राष्ट्रभक्ति और संघर्ष की भावना झलकती है। परशुराम की प्रतीक्षायह कविता भारत में सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर एक कटाक्ष है। उर्वशीयह एक महाकाव्य है जो प्रेम और संघर्ष के बीच की संघर्षशीलता को दर्शाता है। हुंकारयह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को जागरुक और प्रेरित करने के लिए लिखी गई थी।

दिनकरभारतीय साहित्य के प्रख्यात कवि, लेखक और समाज सुधारक थे। उनकी कविताओं में राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संग्राम की गूंज स्पष्ट रुप से सुनी जा सकती है। दिनकरने अपने साहित्य के माध्यम से सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक समस्याओं पर गहरा विचार व्यक्त किया है। उनके काव्य में भारतीय समाज को जागृत करने की उनकी भूमिका प्रमुख है। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय चेतना दिनकरका साहित्य स्वतंत्रता संग्राम की भावनाओं से ओत-प्रोत है। उनकी कविताएँ ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनमानस की भावना को प्रतिबिंबित करती हैं। परशुराम की प्रतीक्षामें, ‘दिनकरभारतीयों को अपनी वीरता और आत्म-सम्मान के प्रति जागरुक करने का प्रयास करते हैं। वे लिखते हैं-

‘‘शूरमा, नहीं विचलित होंगे, अपनी राहों से

अरे, कायर, हट जाएँगे अपने पथ से

परशुराम के समक्ष, नतमस्तक हैं राजा

क्योंकि उन्होंने त्यागा नहीं, अपने देश का सम्मान।’’

यह कविता न केवल परशुराम के चरित्र को महिमामंडित करती है, बल्कि भारतीयों को अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा भी देती है। सामाजिक और राजनीतिक चेतना दिनकरकी रचनाओं में सामाजिक और राजनीतिक चेतना का महत्वपूर्ण स्थान है।

रश्मिरथीमें, दिनकर कर्ण के जीवन के माध्यम से सामाजिक असमानताओं और जातिगत भेदभाव की आलोचना करते हैं। वे कहते हैं-

‘‘मैं कर्ण हूँ, अधीर जगत का नायक

संघर्ष में जीवन, बलिदान में अद्वितीय

आता हूँ तुम्हारी जाति की दीवार को तोड़ने

करने को पुनः जीवन में प्रेम का संचार।’’

इस कविता के माध्यम से, ‘दिनकरने समाज में व्याप्त अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और समानता और स्वतंत्रता का संदेश दिया है। भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय गौरव दिनकरकी कविताओं में प्रमुखता से मिलता है। संस्कृति के चार अध्यायमें, उन्होंने भारतीय संस्कृति की महत्ता और उसके विभिन्न पहलुओं पर गहराई से विचार किया है। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति की समृद्ध धरोहर को संरक्षित और प्रसारित किया जाना चाहिए ताकि आगामी पीढ़ियाँ अपने अतीत पर गर्व कर सकें। क्रांति और संघर्ष का आह्वान दिनकरकी कविताएँ संघर्ष और क्रांति के प्रतीक के रुप में देखी जाती हैं।

हुंकारमें, वे स्पष्ट रुप से भारतीयों को अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए प्रेरित करते हैं-

‘‘अब भी अगर ना जागे तो समझ लो कि सपनों में समेटी यह क्रांति अधूरी रह जाएगी।’’

‘‘भुजाओं में भरे ज्वाला, ना हो भय से पलायन’’

तुम्हारा ही है यह काल, उठो और करो विद्रोह

यह कविता भारतीयों को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता दिनकरकी रचनाओं में राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संदेश भी स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है।

रश्मिरथी में, वे कहते है-

‘‘एकता के सूत्र में बंधे हम, जैसे फूलों की माला,

हमारी विविधता में है एकता, यही हमारी असली पहचान।’’

उनकी कविताएँ भारतीयों को एकजुट होने और अपने देश की सेवा में समर्पित होने के लिए प्रेरित करती हैं।

हुंकार:

हुंकार में दिनकरने अत्याचार और शोषण के खिलाफ आवाज उठाई है। इस कृति में उन्होंने भारतीय जनता को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। दिनकरकी हुंकार जनता की हुंकार बन गई और इसने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कुरुक्षेत्र:

महाभारत के युद्ध के संदर्भ में लिखी गई इस कृति में दिनकरने युद्ध की विभीषिका और शांति की आवश्यकता को व्यक्त किया है। कुरुक्षेत्र में उन्होंने आधुनिक युग के राजनीतिक संघर्षों की आलोचना की है और राष्ट्रीय एकता की महत्ता पर बल दिया है। 

रेणुका:

इस काव्य संग्रह में दिनकरने भारतीय संस्कृति और इतिहास की महत्ता को प्रस्तुत किया है। उन्होंने भारतीय समाज में हो रहे परिवर्तन और उसके प्रभाव को बखूबी चित्रित किया है। दिनकरकी रेणुका भारतीय समाज के पुनरुत्थान का प्रतीक है।

उर्वशी:

इस महाकाव्य में उन्होंने प्रेम, समाज, और राष्ट्रीयता के बीच के संबंध को उजागर किया है। दिनकरकी उर्वशी न केवल एक प्रेम कथा है, बल्कि यह राष्ट्रीय चेतना की एक अद्भुत प्रस्तुति भी है।

दिनकरका योगदान केवल उनकी कविताओं तक सीमित नहीं था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया और अपनी कविताओं के माध्यम से जनजागृति का कार्य किया।

दिनकरकी रचनाएँ केवल साहित्यिक मूल्य नहीं रखतीं, बल्कि वे सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने समय के सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बेबाकी से लिखा और अपने विचारों को प्रस्तुत किया।

रामधारी सिंह दिनकरकी रचनाएं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद के सामाजिक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी कविताओं में राष्ट्रीय चेतना, समाज सुधार और संघर्ष की भावना प्रमुख हैं। दिनकर का साहित्य भारतीय जनमानस को जागरुक और प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। रामधारी सिंह दिनकरकी रचनाओं में निहित राष्ट्रीय चेतना का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। उनके साहित्यिक योगदान ने न केवल भारतीय समाज को प्रेरित किया बल्कि राष्ट्रीय भावना को भी प्रबल किया है।
निष्कर्ष

रामधारी सिंह दिनकरकी रचनाएँ भारतीय साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उनकी कविताएँ न केवल स्वतंत्रता संग्राम के समय में बल्कि आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। दिनकरने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय समाज को जागरुक किया है। उनकी कविताओं में सामाजिक न्याय, सांस्कृतिक गौरव और राष्ट्रीय एकता का संदेश हमेशा जीवित रहेगा।

रामधारी सिंह दिनकरकी रचनाएँ राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संग्राम की भावना से ओतप्रोत हैं। उनकी कविताओं में देशभक्ति और समाज सुधार का स्पष्ट संदेश है। उनकी कविताएँ भारतीय जनमानस को प्रेरित करने वाली और स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष को व्यक्त करने वाली हैं। दिनकरने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय समाज को नई दिशा दी है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
  1. दिनकर’, रामधारी सिंह: रश्मिरथी’, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद 
  2. दिनकर’, रामधारी सिंह: उर्वशी’, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली,
  3. दिनकर’, रामधारी सिंह: कुरुक्षेत्र’, राष्ट्रभाषा परिषद, पटना (बिहार)
  4. दिनकर’, रामधारी सिंह: हुंकार’, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली
  5. दिनकर’, रामधारी सिंह: परशुराम की प्रतीक्षा’: साहित्य भवन प्रकाशन, आगरा
  6. दिनकर’, रामधारी सिंह: संस्कृति के चार अध्याय, साहित्य भवन प्रकाशन, आगरा
  7. नवल, नंदकिशोर: दिनकर का काव्य. राजकमल प्रकाशन, दिल्ली
  8. त्रिपाठी, गणेश: दिनकर की रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना, वाणी प्रकाशन, दिल्ली
  9. सिंह, नामवर: हिंदी साहित्य का इतिहास, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली
  10. स्वविवेक पर आधारित।