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पंचायतीराज में महिलाओं
की भागीदारी व स्थिति एक शोधपरक अध्ययन (मकराना पंचायत समिति के विशेष संदर्भ में)
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Participation and Status of Women in Panchayati Raj: A Research Study (With Special Reference to Makrana Panchayat Samiti) |
Paper Id :
19216 Submission Date :
2024-08-11 Acceptance Date :
2024-08-21 Publication Date :
2024-08-24
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DOI:10.5281/zenodo.13380206
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मंजू लता रत्नू
शोधार्थी
लोकप्रशासन विभाग
जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय
जोधपुर,राजस्थान, भारत
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सारांश
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शिक्षा के अभाव के कारण विशेष रूप से मकराना जिले में महिला आरक्षण व्यवस्था के कारण पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को पहुंचाने का लाभ व सुअवसर भले ही प्राप्त हो गया हो, परन्तु सही मायने में महिलाओं के साथ जुड़ा अशिक्षा का श्राप उन्हें अपनी उचित भूमिका को निभाने से वंचित ही रख रहा है। शिक्षा की इस दयनीय हालत की वजह से महिला प्रतिनिधियों को न तो सरकार द्वारा चलाये जा रहे ग्रामीण विकास के विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी है और न ही वे ग्रामीण शोषण के चक्र से मुक्त हो पा रही है। ग्रामीण महिलाओं को यदि सरकार द्वारा चलाये जा रहे विकास कार्यक्रमों से परिचित कराया भी जाता है तो भी वे इन लाभों को प्राप्त करने का साहस तक नहीं जुटा पाती है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद |
Due to lack of education, especially in Makrana district, women reservation system may have provided benefits and opportunities to women in Panchayati Raj institutions, but in reality, the curse of illiteracy associated with women is depriving them from playing their proper role. Due to this pathetic state of education, women representatives are neither aware of the various rural development programs run by the government nor are they able to free themselves from the cycle of rural exploitation. Even if rural women are introduced to the development programs run by the government, they are unable to muster the courage to avail these benefits. |
मुख्य शब्द
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पंचायती राज, विश्लेषणात्मक अध्ययन, भूमिका, ग्राम पंचायत, आरक्षण, पृष्ठ भूमि, 73वाँ संविधान संशोधन, शोधार्थी, चेतना। |
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद |
Panchayati Raj, Analytical Study, Introduction, Gram Panchayat, Reservation, Background, 73rd Constitutional Amendment, Researchers, Awareness. |
प्रस्तावना
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मकराना पंचायत के पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी के सन्दर्भ में हमने विस्तार से विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया, लेकिन जब महिलाओं की बात आती है तो चाहे वे पूर्ण रूप से विकास में अपनी भूमिका निभाना चाहे, उसके समक्ष अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती है। मकराना ग्राम पंचायत भी इससे अछूती नहीं है। पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के समक्ष उपस्थित कठिनाइयों का अध्ययन करने के साथ-साथ उन समस्याओं के समाधान हेतु कुछ उपाय भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे। मकराना ग्राम पंचायत में आरक्षण के पश्चात् महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की गइ है। जानकार आश्चर्य हुआ कि निर्वाचित महिलाएं ऐसी भी है जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है। पंचायती राज व्यवस्था जिन उद्देश्यों को लेकर बना उसके उद्देश्यों को गति देने में 73वाँ संविधान मील का पत्थर साबित हुआ है। इस संशोधन अधिनियम के तहत महिलाओं का आरक्षण एक सराहनीय कदम है। इससे ग्रामीण महिलाओं में जागृति व चेतना उत्पन्न हुई है।
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अध्ययन का उद्देश्य
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प्रस्तुत शोध पत्र में निम्न उद्देश्यों की पूर्ति का प्रयास किया गया है - - मकराना पंचायत समिति में महिलाओं की भागीदारी व स्थिति में सहायक व बाधक तत्वों का अध्ययन करना।
- मकराना पंचायत समिति में महिलाओं की भागीदारी व स्थिति के कारणों व समाधान का तुलनात्मक अध्ययन करना।
- मकराना पंचायत समिति में महिलाओं की भागीदारी व स्थिति में सुधार से लाभान्वित महिलाओं का वास्तविक अध्ययन करना।
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साहित्यावलोकन
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प्रस्तुत शोधपत्र के लिए विभिन्न पुस्तकों जैसे जगदीश गहलोत की “राजपूताने का इतिहास”, डॉ. महिपाल की "ग्रामीण योजनायें और पंचायती राज", सुखवीर सिंह गहलोत रचित "राजस्थान पंचायती राज कानून" एवं कुलदीप सिंह की "ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज" आदि का अध्ययन किया गया है। |
सामग्री और क्रियाविधि
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प्रस्तुत शोध पत्र में विश्लेषणात्मक, आलोचनात्मक तथा व्यवहारिक शोध प्रविधियों का प्रयोग किया है। शोध पत्र को उपयोगी बनाने के लिए विभिन्न संदर्भ पुस्तकों, समाचार पत्रों, विभिन्न पत्रिकाओं तथा विभिन्न बेवसाइटों की सहायता ली गई है।
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विश्लेषण
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पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी व स्थिति शिक्षा महिलाओं के विकास में शिक्षा का अभाव सबसे विकट समस्या है। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति के विवेक का सामान्यतः विकास नहीं होता है। अशिक्षित व्यक्ति को गुमराह करना अपेक्षाकृत सरल होता है। पूर्व पंचायत अधिनियम की धारा-13 में पंचायतों के सरपंच पद के लिए प्रत्याशी के लिए हिन्दी भाषा ज्ञान की योग्यता अर्थात् पढ़ने लिखने की योग्यता आवश्यक थी। यदि कोई व्यक्ति निरक्षर होता तो वह सरपंच पद का प्रत्याशी नहीं होता। इस दृष्टि से देखें तो पहले अधिनियम की यह व्यवस्था उचित थी कि सरपंच पद के लिए व्यक्ति का साक्षर होना आवश्यक है क्योंकि उसे न्यायिक एवं प्रशासनिक कार्य करने होते हैं, लेकिन वर्तमान में अधिनियम की धारा 19 में निर्धारित अर्हताओं में हिन्दी पढ़ने लिखने की योग्यता को स्थान नहीं दिया गया है। अब कोई भी ऐसा व्यक्ति पुरूष अथवा महिला पंचायती राज का प्रत्याशी हो सकता है जो निरक्षर है, परन्तु नवीन पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत विपुल मात्रा में निर्वाचित होकर आई महिलाओं में न तो अनुभव है और न ही शिक्षा। गांवों में महिलाओं को शीघ्र साक्षर करना बहुत कठिन कार्य है। समुचित प्रशिक्षण व्यवस्था पंचायती राज व्यवस्था के पदाधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी दोनों स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। कुछ अन्य संगठन भी पंचायतों के पदाधिकारियों को प्रशिक्षण देने लगे हैं, लेकिन इसके बावजूद भी पंचायतों के अधिकतर पदाधिकारियों को प्रशिक्षण नहीं के बराबर दिया जा रहा है। हमने अपने शोध के दौरान इस प्रशिक्षण को प्रभावी रूप से लागू नहीं करने के कारणों का पता लगाया जो निम्नलिखित हैं - 1. केन्द्रीय तथा राज्य स्तर पर प्रशिक्षण की कोई स्पष्ट नीति नहीं है। हालांकि सरकारी स्तर पर राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान, राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय ग्रामीण विकास संस्थान पंचायत प्रतिनिधियों को अपने दायित्वों के कुशल निर्वहन के लिए प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं, परन्तु ये प्रयत्न अपर्याप्त हैं। 2. प्रशिक्षण देने के लिए स्टाफ की कमी है। किसी भी प्रशिक्षण संस्थान का स्थानान्तरण भी एक सजा है। इस कारण जो प्रशिक्षण संस्थान में कार्य करते हैं उनमें उत्साह तथा प्रेरणा शक्ति का अभाव है। 3. प्रशिक्षण देने के लिए कोई वैज्ञानिक तकनीकी नहीं है। प्रशिक्षणकर्ता अपनी समझ से कार्यक्रम तैयार करते हैं। इससे प्रशिक्षण प्रभावी सिद्ध नहीं हो पाता। प्रशिक्षण की अवधि, प्रणाली एवं गुणवत्ता तीनों में सुधार की आवश्यकता है। 4. प्रशिक्षण लगातार नहीं दिया जाता तथा एक बार के प्रशिक्षण को ही पर्याप्त माना जाता है। 5. प्रशिक्षण पर आने वाले व्यय को देखते हुए पंचायती राज संस्थाओं को अपने सदस्य भेजने में कठिनाई होती है। 6. प्रशिक्षण देने के पश्चात् प्रशिक्षण संस्थान इसका आंकलन तथा विस्तार से अध्ययन नहीं करते जिससे प्रशिक्षण एक औपचारिकता बनकर रह जाता है। घूंघट की समस्या घूंघट राजस्थान की महिलाओं की एक परम्परा है। ग्रामीण समाज में वर्तमान में कई बदलाव आए हैं, लेकिन घूंघट हटाना उनकी परम्परा के खिलाफ है। ग्राम पंचायत मकराना में यह समस्या दिखाई देती है। सामाजिक पिछड़ापन भी जब अधिक है तो रूढ़िगत बुराइयां भी यहां अधिक देखने को मिलेगी। कुछ महिला प्रतिनिधियों का कहना है कि वे घूंघट हटाना चाहती हैं, मगर बैठकों में उनके पति तथा रिश्तेदार जो एक तरह से उनके प्रतिनिधि की हैसियत से बैठे रहते हैं जिसकी वजह से उन्हें लाज आती है इसलिए पर्दा करके बैठना पड़ता है। दूसरी तरफ उनका यह भी कहना है कि वे घूंघट हटाना चाहे तब भी ऐसा करना मुमकिन नहीं है क्योंकि उनके पति तथा रिश्तेदार उन्हें गाली-गलौच देते हैं इसलिए वे विवश हैं। उनके पति यह समझते हैं कि वे दूसरे पुरूष प्रतिनिधि से बातें करेंगी तो कुछ गलत बातें सीखकर आयेगी। सामाजिक दबाव के कारण वे आज यह त्रासदी झेल रही हैं। घूंघट के कारण वे पंचायत बैठकों में अपने क्षेत्र की समस्याओं के बारे में तथा विकास कार्यों के बारे में चर्चा नहीं कर पाती। ये महिलाएं अपनी पंचायतों से सम्बन्धित जानकारियों को हासिल करने के लिए पुरूष प्रतिनिधियों से न तो खुलकर बात कर सकती हैं और न ही वे प्रशासनिक अधिकारियों से कोई सम्पर्क स्थापित कर सकती हैं। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम में महिला आरक्षण व्यवस्था के कारण राजनीति में महिलाओं की सीधी भागीदारी को सुनिश्चित अवश्य कर दिया है, परन्तु राजनीतिक अधिकार और कर्तव्यों के प्रति आम महिलाओं में घोर अज्ञानता है। पंचायती राज की प्रतिनिधि महिलाएं भी अपने कार्यकाल के दौरान अपने वोट देने, चुनाव में खड़े होने, चुनाव प्रचार करने, राजनीतिक दलों, महिला आरक्षण व्यवस्था इत्यादि मसलों को पिछले आठ वर्षों के दौरान कार्य करते-करते पहचान हो गई है, फिर भी उनमें अपने राजनीतिक अधिकारों व कर्तव्य के प्रति जागरूकता अभी भी सुसुप्त अवस्था में ही है। उनमें स्वविवेक, स्वनिर्णय के अधिकारों का विकास करने का प्रथम तो अवसर ही नहीं दिया गया। अतः स्वाभाविक रूप से उनमें इसके प्रति रूचि व जागरूकता का विकास नहीं हो पाया। शोध अध्ययन से पुष्टि होती है कि मकराना पंचायत समिति में महिलाओं की तुलना में उच्च सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि वाले पुरूष ही राजनीति में सक्रिय रहे। शिक्षा के अभाव के कारण महिलाओं में अपने राजनीतिक अधिकारों की अज्ञानता रही। पुरूष वर्ग के परम्परावादी एवं रूढ़िवादी दृष्टिकोण के कारण उन्हें चुनावों में उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करने का अवसर कम ही दिया गया। यही कारण हे कि स्वतंत्रता के बाद मकराना पंचायत समिति में महिलाओं का राजनीति के उच्च पदों पर पहुंचना सम्भव नहीं हो पाया। निर्वाचित महिला के स्वतंत्र कार्य में हस्तक्षेप संविधान ने तो महिलाओं के लिए आरम्भ से ही अवसर खोल रखे हैं, परन्तु सामाजिक कुसंस्कारों, अंधविश्वासों, रूढ़िवादी परम्पराओं के घेरे में बंद विशेष रूप से ग्रामीण महिलाएं घर की चारदीवारी में ही अपना जीवन व्यतीत करती आई है। उन्हें सक्रिय राजनीति में भाग लेने के लिए कभी भी पुरूष वर्ग द्वारा प्रोत्साहित नहीं किया गया। इन समस्याओं के कारण ही आज महिला आरक्षण की आवश्यकता पड़ी ताकि वे देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक जीवन में अपनी भूमिका निभा सकें। आज जब कि उस स्थिति में बहुत परिवर्तन आ गया है, फिर भी महिलाएं पुरूषों की ऐसी मानसिकता से बच नहीं पाई है कि हर पहलू पर अन्तिम निर्णय पुरूषों का ही होना चाहिये। विशेषकर ग्रामीण महिलाएं किसी भी विषय पर निर्णय लेने में सक्षम नहीं है इसलिए महिला वर्ग पुरूषों द्वारा उत्पन्न व्यवधान को भोग रही है। यह बात निश्चित है कि जब तक सत्ता के शिखर पर बैठा पुरूष वर्ग पंचायती राज संस्थाओं की प्रतिनिधि महिलाओं को आगे आने के अवसर प्रदान नहीं करेंगे, उन्हें स्वतंत्र रूप से अपने अधिकारों का उपयोग नहीं हो सकता। चुनाव के दौरान महिला प्रतिनिधियों की सारी गतिविधियों का संचालन पुरूष के ही जिम्मे रहता है, लेकिन चुन लिये जाने के बाद भी पुरूष पति व रिश्तेदार का हस्तक्षेप कम नहीं होता है क्योंकि उनका मानना है कि पुरूषों के सहारे ही महिला अपनी स्वतंत्र राजनीतिक व सामाजिक भूमिका निभा सकती है। आत्मबल सामान्यतः प्रतिनिधि महिलाएं अशिक्षित अथवा अल्पशिक्षित हैं। निम्न आर्थिक स्तर पर जीवन यापन कर रहीं हैं। वे शोषण, कुपोषण तथा आसानी से सामाजिक हिंसा की शिकार हो जाती हैं। इनके व्यवहार में आत्मविश्वास की कमी, उदासीनता, निर्भरता तथा संगठन का अभाव जैसी दुर्बलताएं पाईं जाती हैं जिसका लाभ सरकारी अधिकारी और प्रभावशील लोग उठा रहे हैं। गांव के सबल पुरूष गांव के विकास संबंधी कार्यों को अपनी इच्छानुसार चला रहे हैं। महिला प्रतिनिधि आत्मबल की कमी के कारण भ्रष्टाचार जैसे अनैतिक कार्यों में समुचित हस्तक्षेप नहीं कर पा रही हैं। विकास कार्यों की अनभिज्ञता ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों का निर्धारण और क्रियान्वयन एक गम्भीर चिन्तन का विषय है। पंचायती राज व्यवस्था से यह अपेक्षा थी कि ग्राम पंचायतें अपने क्षेत्र के विकास संबंधी कार्यक्रम स्वयं तैयार करेगी और उनका क्रियान्वयन भी खुद ही करेगी। यह व्यवस्था लागू करते समय यह मान लिया गया था कि प्रतिनिधि चुनकर आयेंगे वे विकास से संबंधित विषयों की पहचान करने तथा उससे सम्बन्धित कार्यक्रम बनाने में समर्थ होंगे, किन्तु बड़ी संख्या में चुनकर आये हुए महिला प्रधानों, उप प्रधानों तथा सरपंचों के पास ऐसी पृष्ठ भूमि नहीं है कि वे इस प्रकार के कार्याें में समर्थ हों। ऐसे में पंचायतों के प्रतिनिधियों में प्रभावशाली लोगों तथा सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के अधीन होकर कार्य करने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। परिणामस्वरूप गांव की आवश्यकताओं के अनुरूप विकास कार्य न होकर सरकारी अधिकारियों और प्रभावशाली लोगों के स्वार्थों के आधार पर कार्यक्रम क्रियान्वित किए जा रहे हैं जो पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के नेतृत्व को सुदृढ़ करने के मूल उद्देश्य पर प्रहार है।
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निष्कर्ष
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भारत में यह मान्यता है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं, परन्तु मान्यता के विपरीत यहां लोगों का व्यवहार है। पुरूष प्रधान समाज में नारी प्रत्येक युग और प्रत्येक समाज में शोषित, दमित और पीड़ित है। भारत जैसे लोकतांत्रिक एवं लोकहितकारी देश में प्रति 54 मिनट में एक महिला के साथ बलात्कार होता है। प्रत्येक 26 मिनट में एक नारी उत्पीड़न की घटना घटित है। प्रत्येक 51 मिनट में एक छेड़खानी की घटना घटती है। प्रति 7 मिनट में एक महिला के विरुद्ध दण्डनीय अपराध किया जाता है। राजस्थान में भी प्रतिदिन तीन महिलाएं बलात्कार के 1052 मुकदमें दर्ज हुए जिनमें सर्वाधिक 16 से 30 वर्ष की महिलाएं थीं।
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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- गहलोत, जगदीश “राजपूताने का इतिहास” हिन्दी साहित्य मन्दिर जोधपुर 1966.
- चीफ ऑफ प्लान अधिकारी के अनुसार।
- “पंचायत समिति मकराना प्रधान से बातचीत के आधार पर”
- “पंचायत समिति मकराना उप प्रधान से बातचीत के आधार पर”
- “विभिन्न सरपंचों से बातचीत के आधार पर”
- “विभिन्न उप सरपंचों से बातचीत के आधार पर”
- “विभिन्न कार्यालय ग्राम पंचायत से प्राप्त जानकारी के अनुसार”
- डॉ. महिपाल, "ग्रामीण योजनायें और पंचायती राज", वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2011
- सुखवीर सिंह गहलोत, "राजस्थान पंचायती राज कानून", यूनिक ट्रेडर्स, जयपुर, 2022
- कुलदीप सिंह, "ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज", व्हाइट फालकन, दिल्ली, 2024
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