|
|||||||
गुप्तकालीन चित्रकला में नारी का स्वरूप |
|||||||
Female Form in Gupta Period Paintings | |||||||
Paper Id :
19228 Submission Date :
2024-08-01 Acceptance Date :
2024-08-21 Publication Date :
2024-08-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.13759890 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/anthology.php#8
|
|||||||
| |||||||
सारांश |
गुप्त कालीन मूतियाँ एवं चित्र तत्कालीन समाज का दर्शन कराती है। गुप्त काल में ब्राह्मण, शैव, वैष्णव, बौद्ध एवं जैन धर्म से सम्बन्धित चित्रों एवं मूतियाँ निर्मित की गयी है। गुप्तकालीन चित्रकला में नारियों का स्वरूप एलोरा, वाघ, अजन्ता, एलीफेन्टा, बादामी, भूमरा का शिव मन्दिर, देवगढ़ का दशावतार मन्दिर, नागार्जुनकोण्डा, एहोल, अकोंरावाट इत्यादि स्थानों पर नारियों का चित्रण बहुतायत में प्राप्त होता है। एलोरा के कैलाशनाथ मन्दिर में शिव-पार्वर्ती के विवाह का अकंन प्राप्त होता है। अजन्ता में मरणासन्न राजकुमारी का दृष्यांकन किया गया है। एलीफेन्टा में पार्वती के साथ कुछ राक्षसियों का दृष्य अकिंत किया गया है। बादामी में पॉचवीं शताब्दी और छाठवीं शताब्दी के मध्य में नारियों का चित्राकन किया गया है। उदयगिरि मे उदयन और वासवदत्ता तथा दुष्यन्त एवं शकुन्तला की कथाओं पर आधारित चित्रों का अंकन किया गया है। भूमरा के शिव मन्दिर में महिषासुर मर्दिनी दुर्गा का दृष्यांकन मिलता है। साँची के तोरण द्वारों पर यक्षणियों की आकृति अंकित है। बोधगया, नागार्जुनकोण्डा, जावा, वोरोवदूर, अंकोरवाट, इत्यादि स्थलों से रामायण एवं महाभारत से सम्बन्धित नारी व पुरुष पात्रों का चित्राकन मिलता है। |
||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The Gupta period's beads and paintings give a glimpse of the society of that time. In the Gupta period, paintings and beads related to Brahmin, Shaiv, Vaishnav, Buddhist and Jain religions were made. In Gupta period's paintings, depictions of women are found in abundance at places like Ellora, Bagh, Ajanta, Elephanta, Badami, Shiva temple of Bhumara, Dashavatara temple of Devgarh, Nagarjunakonda, Aihole, Akonravat etc. In the Kailashnath temple of Ellora, depiction of Shiva-Parvati's marriage is found. In Ajanta, the scene of a dying princess has been depicted. In Elephanta, the scene of some demonesses with Parvati has been depicted. In Badami, women have been painted between the fifth century and the sixth century. In Udayagiri, paintings based on the stories of Udayana and Vasavadatta and Dushyant and Shakuntala have been painted. In the Shiva temple of Bhumara, one finds the depiction of Mahishasura Mardini Durga. The figures of Yakshinis are engraved on the archways of Sanchi. Paintings of male and female characters from Ramayana and Mahabharata are found at places like Bodh Gaya, Nagarjunakonda, Java, Borovadur, Akorwart, etc. | ||||||
मुख्य शब्द | वार्तालाप, मरणासन्न राजकुमारी, नारियों, गुफाएँ। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Conversation, Dying Princess, Women, Caves. | ||||||
प्रस्तावना | प्राचीन काल से लेकर आज तक कला मानव संस्कृति का अभिन्न अंग के रूप में जीवित रही है। भूगर्भशस्त्रियों एवं पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा किये गये खोजों से जो स्मारक, मूतियाँ एवं उपकरण प्राप्त हुए है, उनका विश्लेषण करने से हमें ज्ञात हुआ है कि मानव का मूर्तिकला एवं चित्रकला से सम्बन्ध हजारों वर्ष पहले से था। मानव का जीवन कला से किसी न किसी प्रकार जुड़ा रहा है। मानव का उद्देश्य आध्यात्मिक और अपनी अभिव्यक्ति प्रदान करना था। कला व्यक्ति और समाज दोनों के संवेगो, आचरण और अनुभूति पर मनुष्य और उसके समस्त परिवेश के मध्य सन्तुलन की स्थापना करती है। गुप्तकालीन मूर्तियाँ एवं चित्र तत्कालीन समाज की कला एवं संस्कृति का पूर्ण अनुभव कराती है। कलाकारों ने मूर्तियों एवं चित्रों में स्त्री का विशेष स्थान प्रदान किया और साथ-ही साथ सत्य ज्ञान, भक्ति, प्रेम, अहिंसा, शान्ति, कल्याण जैसे तत्वों को उसमें केन्द्रीभूत किया। इस प्रकार कला को यथार्थ रूप में प्रकट किया गया। प्रारम्भ में मानव अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने में असमर्थ रहा। परन्तु धीरे-धीरे एक समय ऐसा आया कि कला अपनी चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयी और कला का स्वर्ण युग कहलाया। यह युग था गुप्तकाल। गुप्त काल में ब्राह्मण धर्म, शैव धर्म, वैष्णव धर्म, बौद्व धर्म एवं जैन धर्म से सम्बन्धित चित्रों एवं मूर्तियाँ बनायी गई है। बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्रों एवं मूर्तियों पर हिन्दू देवी-देवताओं का प्रभाव दिखाई पड़ता है। बौद्ध धर्म से सम्बन्धित मूर्तियों एवं चित्र चैत्य बिहार और गुफाओं में परिलक्षित होता है। जबकि हिन्दू धर्म से सम्बन्धित मूर्तियों एवं चित्र मन्दिरों में निर्मित व चित्रांकित की गयी है। |
||||||
अध्ययन का उद्देश्य |
प्रस्तुत शोध पत्र में गुप्तकालीन मन्दिरों, गुफाओं, चैत्यों, विहारों, स्तूपों एवं स्मारकों में निर्मित चित्रों एवं मूर्तियों का अध्ययन करते हुए नारी के स्वरूप की विवेचना करना है। इतिहास के विद्यार्थियों, शोधार्थियों, प्राध्यापकों एवं इतिहास में रुचि रखने वालों को गुप्तकालीन स्त्रियों की स्थिति से अवगत कराना है तथा भविष्य में उनके द्वारा किये जाने वाले शोध-कार्य में सहयोग भी प्रदान करना है। |
||||||
साहित्यावलोकन | गुप्तकालीन कला पर अनेक विद्धानों ने कार्य किया है जिनमें कुछ इस प्रकार है। वी0एस0 अग्रवाल की गुप्ता गोल्डेन एज आफ इण्डियन आर्ट, आर0 के0 मुखर्जी की नोट्स आन अर्ली इण्डियन आर्ट, वी0स्मिथ की हिस्ट्री आफ फाइन आर्ट इन इण्डिया एण्ड सिलोन, वासुदेवशरण अग्रवाल की भारतीय कला, आनन्द कुमार स्वामी की हिस्ट्री आफ इण्डियन एण्ड इण्डोनेशिया आर्ट, ए0 एल0 श्रीवास्तव की लाइफ इन साँची स्कल्पचर, राम कृष्ण दास की भारतीय चित्रकला, सर जान मार्शल की मान्यूमेन्टस आफॅ साँची, विमलेश कुमार पाण्डेय की भारतीय कला एवं प्रतिमा विज्ञान, वृजभूषण श्रीवास्तव की प्राचीन भारतीय प्रतिभा विज्ञान एवं मूर्तिकला नामक पुस्तकों पर उक्त विद्धानों ने भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। इन अध्ययनों में गुप्तकालीन कला में स्त्रियों की स्थिति पर बहुत सी सामग्री का छूट जाना स्वाभाविक ही है। प्रस्तुत शोध पत्र गुप्त कालीन चित्रकला में स्त्रियों की स्थिति को उद्धाटित करने का एक विनम्र प्रयास किया गया है। |
||||||
मुख्य पाठ |
गुप्त कालीन गुफाफो में एलोरा[1], बाघ[2], अजन्ता[3], कन्हैरी[4], एलीफेन्टा[5], बादामी[6], सित्तनवासल[7], सिगरिया[8], नलतीगिरि[9], उदयगिरि[10], रत्नगिरि[11], खन्दागिरि[12], द्योकेश्वर का गुफा मन्दिर[13], इत्यादि स्थलों से स्त्रियों को बहुतायत चित्राकित किया गया है। इसके साथ-ही साथ गुप्त काल के मन्दिरो भूमरा का शिव मन्दिर[14] तिगवॉ का विष्णुमन्दिर[15], कंकाली देवी का मन्दिर 16, नचना कुठार का पार्वती मन्दिर[17], मुक्तेश्वरी मन्दिर[18], साँची का स्तूप[19], बौद्ध गया[21], देवगढ़ का दशावता मन्दिर, भीतरगॉव का मन्दिर[22], नागार्जुनकोण्ड[23], कांची का मन्दिर[24], एहोल के मन्दिर[25], मोहिया का वामन मन्दिर[26], अगंईखेड़ा[27], वोरोबदूर,जावा एवं अंकोरवाट[28] के मन्दिरों में भी नारियों का चित्रण विभिन्न प्रकार से अंकित है। एलोरा के कैलाश नाथ मन्दिर में शिव-पार्वती के विवाह का दृष्याकिंत है।[29] मन्दिर के बाहर बायीं भित्ति पर महिषासुरमर्दिनी का चित्र चित्राकित किया गया है। मन्दिर में एक स्थान पर शिव एवं पार्वती के बीच किसी विषय पर वार्तालाप करते हुए दर्शाया गया है। यहाँ के मन्दिरों पर हिन्दू बौद्ध एवं जैन तीनों धर्मो का प्रभाव परिलक्षित होता है। वाघ की गुफा सं0 4 में शिव-पार्वती की प्रतिमा का चित्रांकन किया गया है।[30] दो चित्र अभय मुद्रा में अंकित हैं। इसी गुफा में बरामदे की दीवार के ऊपर चार नारियों का चित्र अंकित किया गया है। एक अन्य दृश्य में गायन वादन, नृत्य एवं जुलूस का दृष्य अंकित किया गया है। एक स्थान पर चार नारी आकृतियों को चित्रित किया गया है। चारों नारियाँ धोती पहने हुए हैं।[31] अजन्ता की गुफा सं0 1 में मार विजय का प्रसिद्ध चित्र अंकित है। यह सुन्दर महिलाओं का एक समूह है। इनकी आँखों में वासना दिखायी पड़ती है। ऐसा प्रतीत होता है कि बुद्ध की तपस्या को भंग करने के लिए चित्रित किया गया है।[32] गुफा के बरामदे में भित्ति पर बुद्ध के जन्म के अनेक दृश्य हैं। पूजागृह की बायीं ओर की भित्ति पर चार नारियां एवं दाहिनी ओर सुन्दर महिलाओं का समूह अंकित है। गुफा सं0 16 में बरामदे की वायीं भित्ति पर मरणासन्न राजकुमारी का चित्र चित्रांकित किया गयाहै। नारी के मुख पर वेदना का भाव दिखायी प़ड़ रहा है। इसी गुफा में सुजाता का चित्र, शुद्धोदन एवं महामाया का चित्र, मायादेवी का स्वप्न चित्र, राजा रानी के संवाद का दृष्य अंकित है।[33] गुफा सं0 17,19 एवं 26 के द्वार पर यक्ष-यक्षणियों का चित्र अंकित है। गुफा के बायीं भित्ति पर राहुल दर्पण का दृश्य है। यशोधरा राहुल को भिक्षा के रूप में समर्पण करने के लिए एक टक दृष्टि से तथागत के मुख-मंडल की ओर देख रही है। तथागत के मुख-मंडल पर करुणा के भाव अंकित किये गये है। इसी गुफा में श्रृंगार प्रसाधन, गन्धर्व, दिव्य अपसराओं का चित्रण हुआ है। यहीं पर एक न्याय का चित्र दर्शाया गया है। एक सुन्दर स्त्री राजा के सामने सिर झुकायें खड़ी है। राजा हाथ में तलवार लिये न्याय करता प्रतीत हो रहा है। बगल में बैंठी दासियों के मुख मंडल पर भय का भाव अंकित है। कन्हेरी बम्बई से 16 मील उत्तर और वोरिविली स्टेशन से 5 मील की दूरी पर सिथत है। इसका प्राचीन नाम कृष्णगिरि था। हीनयान गुफाओं के आन्दोलन के लगभग अन्तिम काल में कन्हेरी गुफाओं (द्वितीय शताब्दी ई0) का समूह अस्तित्व में आया। इसके बाद पॉचवीं शताब्दी में महायान धर्म से सम्बन्धित कुछ अकंन कार्य सम्पन्न हुआ। कन्हेरी गुफाओं के भित्ति पर सामान्य जीवन से सम्बन्धित दृश्यों का अंकन दिखायी पड़ता है। बरामदे के सामने स्थिति दिवार पर दोनों ओर सम्पत्ति मूतियों, दो सिंह स्तम्भोंयुक्त और ऊपर-नीचे ग्रास पट्टियों से परिवेष्टित हैं। पुरुष उष्णीष, भारी कर्ण कुण्डल, कण्ठ और हार अंगद, कटक, मेखला और चुन्नटदार धोती पहने हुए है। उनके दाहिने हाथ में चंवर है। पुरुषों के दक्षिण भाग में उत्कीर्ण स्त्रियाँ भी वस्त्रालंकारों से सुशोभित है और लम्बे कद की है। चैत्य के अन्दर बनी दो खड़ी हुई नारी आकृतियाँ विशेष रूप से दर्शनीय है। एलीफेन्टा गुफा बम्बई से लगभग पांच मील की दूरी पर एक टापू के ऊपर स्थित है। यहाँ की चित्रकला एवं मर्तिकला में शैव सम्प्रदाय को विशेष महत्व दिया गया है। गुफा के दाहिने ओर नटराज शिव की मूर्ति निर्मित है। शिव के बायीं ओर पावर्ती और दाहिनी ओर गणेश की आकृति अंकित है। गणेश की आकृति के नीचे एक नारी आकृति है। इस आकृति को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि शिव की ध्यान मुद्रा को भंग कर रही है। इसी गुफा में एक दूसरा चित्र है जिसमें शिव के बायीं ओर पार्वती है और पार्वती के नीचे कुछ राक्षसियों की आकृति बनी हुई है। मुख्य गुफा के भीतर शिव-पार्वती का विवाह का दृष्य अंकित है। पार्वती के पास एक नारी अपने हाथ में पात्र लिए खड़ी है। इसी गुफा की दक्षिणी दीवार पर पार्वती को क्रोधित मुद्रा में दर्शाया गया है। बादामी गुफा, हिन्दू, बौद्ध एवं जैन धर्म से सम्बन्धित है। यह कर्नाटक राज्य के बालाकोट जिला में स्थित है। यहाँ की गुफा में पॉचवीं शताब्दी और छठीं शताब्दी के मध्य में चित्रों और मूर्तियों के अंकन का कार्य किया गया था। गुफा सं0 9 में मण्डप की छत्र पर महल का चित्र अकिंत है जिसके मध्य में संगीतज्ञ एवं नर्तकी है। इसी गुफा में मण्डप के सामने वाली छत पर एक स्त्री बीणा बजा रही है।[35] गुफा के अन्दर एक छोटा लम्बाकार अलंकरण है जिस पर महिषासुर मर्दिनी की उभरी हुई मूर्ति बनी है। इसके दोनों ओर गन्धर्व, मूर्तियाँ है। गुफा सं0 दो के पूर्वी भाग में दो नारियां अंकित है। गुफा सं0 3 में वोधिसत्व का अंकन हुआ है। इसके ऊपर एवं नीचे लम्बे केशों वाली नर-नारी और बालक का चित्र मिलता है। गुफा सं0 4 में शिव-पार्वती, कामदेव, दासियाँ और नर-नारी का चित्रांकन प्राप्त होता है। गुफा के प्रवेश द्वार पर पृथ्वी-देवी का चित्र निर्मित है। भारत के तमिलनाडु राज्य के युद्धकोट्टई जिले के सित्तनवासल गाँव में स्थित एक द्वितीय शताब्दी ई0 पू0 में निर्मित गुफा है। जैन धर्म से सम्बन्धित अरिहतों के इस मन्दिर में सातवी शताब्दी के चित्रों के अवशेष मिलते हैं जिनकों काला, हरा, पीला,नारंगी नीला एवं श्वेत रंगों से बनाया गया था। गुफा का सबसे प्रसिद्ध चित्रण नृत्य करती हुई दो अप्सराओं का हैं। इनके दोनों हाथ में चूड़ियाँ, कगंन और वाजूबन्द है। गले में लम्बे-लम्बे हार पहने हुए प्रतीत होता है। इस चित्र की मुद्रा भरत के नाट्य शास्त्र में वर्णित मुद्रा के काफी समान है।[36] गुफा में बने स्तम्भ के सामने भाग में इसी प्रकार की अप्सरा का चित्र निर्मित है। इसके केश विन्यास अति सुन्दर है। स्तम्भ के उत्तरी भाग में राजा और रानी का चित्रण हुआ है। रानी राजा के पीछे बनायी गई है। रेखांकन एवं आकृतियों की मुद्रायें अजन्ता, एलोरा, सिंगारिया और बाघ की कला की भाति हैं। सिगरिया श्री लंका के मध्य प्रान्त में डबुंला शहर के उत्तरी मटाले जिले में स्थित एक प्राचीन चट्टान है। इसका निर्माण कार्य पांचवी शताब्दी ई0 में हुआ था। यहाँ से दो चित्रों का अंकन विशेष रूप में उल्लेखनीय है। एक चित्र में एक नारी के सिर पर मुकुट है। कान में बड़े-बड़े बाले हैं। मस्तक पर किया गया श्रृंगार सुन्दर है। गले में मोतियों की मालायें है। एक हाथ मंे कमल पुष्प है तो दूसरा हाथ वक्ष स्थल पर है। दूसरा चित्र भी इसी प्रकार एक नारी का है। एक स्थान पर राजा कश्यप अैर उनकी रानी अपनी दासियों के साथ बौद्ध विहार की पूजा के लिए जाते हुए चित्रित किया गया है। यहाँ के चित्रों का विषय धार्मिक न होकर सामाजिक है। ऐसा लगता है कि भारतीय और श्रीलंका के कलाकारों ने एक साथ एक स्थान पर प्रशिक्षण प्राप्त किया होगा। नलतीगिरि उड़ीसा राज्य में बौद्ध स्थल के रूप में स्थित है। यहाँ से तारा की एक मूर्ति प्राप्त हुई है जो अपने चार भुजाओं को ऊपर की ओर उठाये हुए हैं और वायें हाथ में बज्र लिये हुए है। नलतीगिरि मन्दिर की दीवार पर अन्य अनेक सुन्दर मूर्तियों का चित्रांकन किया गया है। उदयगिरि मध्यप्रदेश राज्य में विदिशा के पास स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है। यहॉ पर चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं का एक समूह हैं जो गुप्त काल की है। यहॉ पर लगभग 40 गुफाएं हैं। उदयगिरि की सबसे प्रमुख गुफा रानी गुफा कहलाती है। यह दो मन्जिला है। नीचे वाले भाग में उदयन एवं वासवदत्ता तथा दुष्यन्त एवं शकुन्तला की कथाओं पर आधारित चित्रांकन किया गया है। स्वर्गीय नारी, चार नर-नारी का समूह दृष्य अंकित है। यहॉ पर स्थित गणेश गुफा में तीन आकृतियां हाथी पर विराजमान है और दोनो ओर नारी का चित्र है। एक स्थान पर उदास मुद्रा में नारी अपने सहेलियों के साथ बैठी हुई है।[37] रत्नागिरि ओडिसा के जाजपुर जिले में विरुपा नदी के पास स्थित है। यह एक प्रसिद्ध बौद्ध केन्द्र है। यहाँ से तारा की दो भुजाओं वाली त्रिभंग मुदा में मूर्ति प्राप्त हुई है। गले में कई मालायें है। कमर में पेटिका बंधी हुई है। सिर पर मुकुट और कान में कर्णभूषण हैं। यहाँ की मूर्तियां आध्यात्मिक भावों को अभिव्यक्त करने में सफलता प्राप्त की है। द्योकेश्वर का गुफा मन्दिर महाराष्ट्र के औरगांबाद के दक्षिणी भाग से आठ मील की दूरी पर स्थित है। मुख्य मण्डप के उत्तरी भाग में गंगा और यमुना की आकृतियाँ अपनी दासियों के साथ निर्मित है। मण्डल के दक्षिणी भित्ति पर सप्तमातृका का अंकन हुआ है गर्भगृह में प्रवेश करने के साथ ही दाहिनी ओर गज-लक्ष्मी का अंकन हुआ है। गर्भगृह के पश्चिमी भाग में कुछ साधारण आकृतियाँ बनी है। भूमरा का शिव मन्दिर पाचँवी शताब्दी के मध्य निर्मित हुआ है। यह मन्दिर मध्य प्रदेश के सतना जनपद में जबलपुर-इटारसी रेलमार्ग पर स्थित है। इसके गर्भगृह के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ मकर वाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना की सुन्दर मूर्तियाँ अकिंत हैं। यहाँ से प्राप्त एक मण्डप पर यमुना की मूर्ति कछुए पर खड़ी हुई पाते है। इसके दाहिनी ओर खड़ी दासी देवी के छत्र को अपने हाथ में धारण किये हुए हैं। कई झरोखों के खण्ड भी प्राप्त हुए हैं। सभी अलंकरण से युक्त हैं। एक झरोखा में महिषासुरमर्दिनी दुर्गा का अंकन हुआ है। तिगवाँ का विष्णु मन्दिर मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में तिगवाँ नामक स्थान के ऊँचे-टीले पर स्थित है। इसका निर्माण काल पॉचवीं शताब्दी माना जाता है। इस मन्दिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार के ऊपर एक पक्षी की मूर्ति बनी हैं। गर्भगृह के प्रवेश पर निर्मित ताखों पर दाहिनी-पार्श्व पर मकर वाहिनी गंगा एवं बायें पार्श्व में कूर्मवाहिनी यमुना की मूर्तियाँ प्रदर्शित की गयी है। तिगवॉ का ककांली देवी का विष्णु मन्दिर के द्वार के ऊपरी भाग में यक्षिणी की आकृति है जो बुद्धिष्ट तोरण में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। गंगा-यमुना की आकृति दोनो ओर बने प्लास्टर पर बनाई गई है। साथ में तीन स्त्रियों का अंकन भी किया गया है। सबसे अधिक महत्वपूर्ण मन्दिर ईरान मन्दिर है जो बीना नदी के तट पर स्थित है। मन्दिरों में विष्णु, वराह एवं नरसिंह देव के मन्दिर प्रमुख है, जिनकों गंगा की मूर्ति के साथ अलंकृत किया गया है। नचनाकुठार का पार्वती मन्दिर मध्य प्रदेश के पन्ना जनपद में स्थित है। मन्दिर में गंगा-यमुना की आकृतियों का अंकन द्वार के नीचे भाग पर किया गया है। मन्दिर के द्वार के दोनो ओर प्रेमासीन मुद्राओं का अंकन हुआ है। द्वार के ऊपर उड़ती हुई आकृतियों का अंकन है। मन्दिरों का अलंकरण उच्च कोटि का है। मन्दिर के झरोखों में कहीं-कहीं महिषासुर मर्दिनी का चित्र अंकित है। मुक्तेश्वरी मन्दिर के अन्दर की छत समानान्तर है। इसके मध्य में महादेव एवं दुर्गा जी की मूर्ति है। हरीति और अर्द्धनारीश्वर का अकंन प्लास्टर के दानों ओर किया गया है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के समीप विदिशा से लगभग छः मील की दूरी पर साँची नामक स्थान पर स्तूप का निर्माण किया गया था। इस स्तूप में चार दिशाओं में चार प्रवेश द्वार निर्मित किया गया था। उत्तरी प्रवेश द्वार पर सबसे सुन्दर आकृति एक स्त्री की है जो वृक्ष के नीचे खड़ी है। तोरण में दोनों ओर यक्षिणी की आकृति बनी है। स्तूप में बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का अंकन है। एक स्थान पर मायादेवी को अलंकारिक ढंग से बैठा हुआ दर्शाया गया है। कमल के फूल के आगे माया देवी को लक्ष्मी के रूप में अंकित किया गया है। यक्षिणी की मूतियाँ चारों प्रवेश द्वारा पर निर्मित है। दक्षिणी द्वार के ऊपर मध्य में कमल पर आसीन मुद्रा में आकृति बनी हुई मिलती है। तोरण की बडेरी पर गौतम की तपस्या को भंग करने के लिए नर्तकियों को नृत्य करते हुए दर्शाया गया है। बिहार राज्य के गया जनपद में बोध गया नामक स्थान स्थित है। यहीं पर भगवान बुद्ध ने सम्बोधि प्राप्त की थी। यहाँ चटटान पर बना मन्दिर महाबोधि मन्दिर बिहार कहलाता है। वोधिगृह में चतुर्दिक अशोक ने एक वेष्टिनी बनवायी थी। इस पर उत्कीर्ण लेखों से ज्ञात होता है कि यह इंद्राग्निमित्र की रानी कुरंगी और ब्रहमामित्र की रानी नागदेवा का धार्मिक दान था। यहां पर जातक दृष्य, बुद्ध के जीवन की ऐतिहासिक घटना, मिथुनाकृतियाँ, तोरण और वेदिका पर दो नारी एक पुरुष के साथ, गजलक्ष्मी का प्राचीन नाम श्री देवी के रूप में अंकन मिलता है।[39] देवगढ़ का दशावतार मन्दिर उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में बेतवा नदी के तट पर स्थित है। इस मन्दिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार अत्यन्त आकर्षक है। प्रवेश द्वार के दोनों पार्श्व में गंगा-यमुना की आकृति अंकित है। मन्दिर के वेदिका पर तीन पुरुष एवं एक नारी आकृति है। एक अन्य दृष्य में राम-सीता और लक्ष्मण वन को जा रहे हैं। उनके स्वागत में अगस्त मुनि और उनकी पत्नी को दर्शाया गया है।[40] सीता हरण, राजा सुग्रीव और उसकी पत्नी रुमा, अंगद, देवकी, वासुदेव गोपियों, कृष्ण, सुदामा, रुकमिणी इत्यादि आकृतियों का अंकन प्राप्त होता है। भीतरगाँव का मन्दिर कानपुर जिले के भीतरगॉव नामक स्थान पर स्थित है। पॉचवीं शताब्दी ई0 का यह मन्दिर सम्पूर्ण रूप से पकाई हुई ईटों द्वारा निर्मित है। इस मन्दिर के उत्तरी भाग में चार भुजा वाली मूर्ति दुर्गा की है। द्वार के दोनों ओर गंगा एवं यमुना की आकृति बनी हुई है। गंगा अपने वाहन मगर पर है। दोनों ओर दासियॉ छत्र लिए खड़ी हुई है। गंगा देवी का दाहिना हाथ दासी के सिर पर रखा हुआ है। मन्दिर में एक गोलाकार अलंकरण है जिसमें मुस्कुराती हुई नारी व खिड़की में से बाहर की ओर झांक रही है। मन्दिर के वाह्य दिवारों और गवाक्षों में देवताओं की मृण्मूर्तियों के साथ ही रामायण एवं महाभारत के कथानकों से सम्बन्धित मूर्तियॉ जुड़ी हुई है। नागार्जुनकोण्डा अमरावती से लगभग 95 किमी0 उत्तर में कृष्णा नदी के बाँये तट पर स्थित है। यहां पर स्तूप मिला है। स्तूप के प्रदक्षिणापथ पर निर्मित शिलाखण्ड के ऊपर बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का दृष्य अंकित है। एक शिला खण्ड पर सुजाता प्रकरण का दृष्य अंकित है। बुद्ध के बायी ओर सुजाता और उसकी दासी का दृष्य है। एक स्थान पर सुजाता को सिहोसन पर बैठे हुए बुद्ध को छूते हुए दर्शाया गया है। एक शिलाखण्ड पर श्रृंगार करती हुई नारी का अंकन है। नारी का वक्षस्थल एवं गले में माला पहने हुए अंकित किया गया है। काँची का मन्दिर उभरी हुई आकृतियों के लिए विख्यात है। इस मन्दिर में बहुत सी सुन्दिर नारियों का अंकन मिलता है। यहां पर दुर्गा की आकृति को अति सुन्दर ढंग से अंकित किया गया है। एहोल मन्दिर के बरामदों के स्तम्भों पर आलिंगनयुक्त आकृतियां बनाई गई है। मन्दिर के प्रवेश द्वार के बायी ओर ब्रहमचारिणी नारी सहयोगी के साथ खड़ी हुई है। एक अन्य स्थान पर नारी को त्रिभंग मु्रदा में दर्शाया गया है। उसके पास दासी खड़ी है और थोड़ी ही दूर पर बन्दर की आकृति है। वरामदे के स्तम्भों पर ब्रहमा के साथ सरस्वती एवं सावित्री को अंकित किया गया है। मोहिया का वामन मन्दिर के प्रवेश द्वार पर दासी का चित्र अंकित है। अंगईखेड़ा से गजलक्ष्मी और मिथुन मूर्तियों के कई खण्ड प्राप्त हुए है। यहॉ पर मातृदेवी का भी अंकन हुआ है। बोरोबदूर, जावा और अंगकोरवाट के मन्दिरों में नारी चित्रांकन बहुतायत प्राप्त होता है। बोरोबदूर में विभिन्न चित्र और मूतियाँ विभिन्न मंजिलों में देखने को मिलती है। एक स्थान पर नृत्यांगना को राजकुमार सिद्धार्थ के सामने नृत्य करते हुए दर्शाया गया है। राजकुमार अपनी पत्नी के साथ सिंहासन पर बैठे हुए है। एक स्थान पर मायादेवी का स्वप्न एवं मायादेवी और यशोधरा को मन्दिर मे पूजा करते हुए दिखाया गया है। जावा के मन्दिरों में रामायण के दृष्यों का अंकन देखने को मिलता है। मन्दिरों में राजा दशरथ एवं उनकी पत्नियां अंकित है। अंगकोरवाट के मन्दिरों में रामायण एवं महाभारत के आधार पर चित्रांकन किया गया है। |
||||||
निष्कर्ष |
गुप्त कालीन मन्दिरों, गुफाओं, चैत्यों, बिहारों, स्तूपों एवं स्मारकों में नारियों के स्वरूप को विभिन्न प्रकार से चित्रांकित किया गया है। इस काल की स्त्रियों को प्रत्येक स्थान पर पाया जाना उनकी सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में हिस्सेदारी की अनुभूति कराती है। कला के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति उनकी सामाजिक उत्कृष्ठता दर्शाती है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि गुप्त कालीन चित्रकला में नारियों के विभिन्न प्रकार के स्वरूपों के चित्रांकन को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि जितना सम्मान इस काल में नारियों को प्राप्त था उतना सम्मान भारतीय इतिहास के अन्य किसी कालखण्ड में नही प्राप्त था। |
||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
|