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हाइकु का विकास और सौंदर्य |
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The Evolution and Beauty of Haiku | |||||||
Paper Id :
19237 Submission Date :
2024-09-11 Acceptance Date :
2024-09-14 Publication Date :
2024-09-16
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.13938383 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
हाइकु लम्बी कविता नहीं है, यह सतत वर्णीय होकर भी सम्यक है। अधूरापन
इसमें नहीं है और यह सौंदर्य की अभिव्यक्ति सम्पूर्णता से करती है। यह
कविता त्रयी (विलक्षण सौंदर्यबोध, साहित्य परम्पराबोध, विरल स्वाद बोध) के
चौखटे में रहकर स्वयं को स्थापित करती है, और स्थापित किया है। आज हजारों
हाइकुकार अपने-अपने तरीके से हाइकु लिख रहे हैं लेकिन सबको हाइकु कह पाना
कठिन है और ना ही किसी हाइकुकार की हाइकु का विश्लेषण सम्भव है। जैसी कविता
का अपना स्वभाव और अंदाज होता है वैसे ही श्रेष्ठ हाइकु का अपना स्वभाव और अंदाज होता है। जिस कारण वह विशिष्ट रूप में पहचान ली जाती है। हाइकु के इसी लक्षण की व्याख्या प्रस्तुत लेख का उद्देश्य है जिसे लेखक ने कुछ उदाहरणों से पुष्ट करने का प्रयास किया है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Haiku is not a long poem, it is complete even though it has seventeen words. There is no incompleteness in it and it expresses beauty completely. This poem establishes itself within the framework of the trilogy (extraordinary aesthetic sense, literary tradition sense, rare sense of taste), and has established itself. Today thousands of haiku writers are writing haiku in their own way but it is difficult to call all of them haiku and neither is it possible to analyse the haiku of any haiku writer. Just like a poem has its own nature and style, similarly a good haiku has its own nature and style. Due to which it is recognized as unique. The purpose of this article is to explain this characteristic of haiku, which the author has tried to substantiate with some examples- | ||||||
मुख्य शब्द | हाइकु, कविता। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Haiku, poem. | ||||||
प्रस्तावना | हाइकु के सम्बन्ध में भारतीय हाइकुकारों ने बड़ी गम्भीरता से विचार किया।
प्रो॰ सत्यभूषण वर्मा ने ‘जापानी कविताएँ’ शीर्षक में बाशों की प्रसिद्ध
हाइकुओं का अनुवाद प्रस्तुत किया। अब तक के सुलभ तथ्यों के आधार पर प्रो॰
आदित्य प्रताप सिंह को हिन्दी का प्रथम हाइकुकार माना गया है।[1] डॉ॰ शिव
मंगल सिंह ‘सुमन’ ने भी प्रो॰ आदित्य प्रताप सिंह को हाइकु विधा का अग्रणी
माना है।[2] हिन्दी का प्रथम हाइकु ‘सोन नदी’ है जो 1951 में प्रकाशित
हुए।[3] इसके बाद हिन्दी हाइकु का प्रकाशित होने के बाद जिस विकास से हमारा
परिचय होता है, वह संक्षिप्त में इस प्रकार है- 1. डॉ॰ भगवत शरण अग्रवाल-
(शाश्वत क्षितिज-1985, टुकड़े-टुकड़े आकाश-1987, अर्ध्य-1995, सबरस-1997,
इन्द्रधनुष-2000, हूँ भी, नहीं भी-2004)। 2. डॉ॰ सुधा गुप्ता- (खुशबू का
सफर-1985, लकड़ी का सपना-1989, तरुदेवता पाखी पुरोहित-1997, कुकी जो
पिकी-2000, चाँदी के अरघे में-2000, धूप से गपशप-2002, अकेला था समय-2004,
बाबुना जो आएगी-2004, चुलबुली रात ने-2006, कोरी माटी के दीये-2009, सफर के
छाले हैं-2009, खोई हरी टेकरी-2013)। 3. डॉ॰ लक्ष्मण प्रसाद नायक-
(हाइकु-575-1985, दर्राें पर की राई-1987, जुगनु प्रभा-1990, देखन में छोटे
लगे-1995)। 4. रमेश कुमार त्रिपाठी- (उनके बोल-1989, अनुभूति कलश-1995, मन
के सहचर-2001)। 5. विजेन्द्र कुमार जैमिनी- (त्रिशूल-1990)। 6. नीरज
ठाकुर- (साँप और सीढ़ी-1991)। 7. मनोज सोनकर- (चितकबरी-1992,
खुर्दबीन-1999)। 8. डॉ॰ रमाकान्त श्रीवास्तव- (अग्नि पखेरू-1995, जीवन
दर्पण-1997, चिंतन के विविध क्षण-2001, बालश्री-2002, प्यासा वन पाखी-2004,
कल्पना के स्वर-2006)। 9. उर्मिला कौल- (अनुभूति-1995, बिल्ब पत्र-2004,
बोनसाइ-2004)। 10. डॉ॰ मिथिलेश दीक्षित- (स्वर विविध क्षण बोध-1996, तराशे
पत्थरों की आँख-2009, सदा रहे जो-2010, अमर बेल-2011, एक पल के लिए-2011,
आशा के बीज-2011, लहरों पर धूप-2011, परिसंवाद-2011, बोलती यादें-2012,
मेरे प्रतिनिधि हाइकु-2018)। 11. प्रो॰ आदित्य प्रताप सिंह- (साँसों की
किताब-1997, बेल के पत्ते-2004)। 12. शैल रस्तौगी- (प्रतिबिम्बित-1998,
सन्नाटा खिंचे दिन-2001, दुःख तो पाहुने हैं-2002, अक्षर हीरे मोती-2003,
बाँसुरी है तुम्हारी-2007, मेहंदी लिखे खत-2003)। 13. रमेश चंद शर्मा
‘चंद’- (क्षण के कण-1998, कौंध-2000, क्षणांश-2001)। 14. सिद्धेश्वर- (पतझर
की साझ-1998)। 15. सदाशिव कौतुक- (गुलेल-1999, आरपार-2001, नकेल-2002, एक
तिली-2006)। 16. रामनारायण पटेल- (वियोगिनी-1998)। 17. सत्येन्द्र मिश्र-
(वक्त दस्तक देगा-1999)। 18. रामनिवास पंथी- (वर्तमान की आँखें-1999)। 19.
नलिनी कांत- (ज्योति विहग-2000, हाइकु शब्द छवि-2004, हाइकु गीत वीणा-2005,
सर्वमंगला-2001, हाइकु बाल विनोद-2002, हाइकु ऋचाएँ-2011)। 20. प्रदीप
कुमार दाश ‘दीपक’- (मइनसे के पीरा-2000, हाइकु चतुष्क-2000, प्रकृति की गोद
में-2017, महकते जज़्बात-2024, दीप और पतंग-2021)। 21. सतीश दुबे- (शब्द
बेदी-2000)। 22. दया कृष्ण विजवर्गीय- (त्रिपदिका-2000, एक और वामन-2002)।
23. जवाहर इन्दु- (इतना कुछ-2000)। 24. प्रेम नारायण यंत्र-
(उर्ध्वमूल-2000)। 25. भगवत भट्- (आखर पाँखी-2000)। 26. पवन कुमार जैन-
(पाँच सात पाँच-2000)। 27. डॉ॰ महावीर सिंह- (मन की पीड़ा-2001, प्यार के
बोल-2002)। 28. सूर्यदेव पाठक ‘पराग’- (उडे परिन्दे-2001)। 29. राजेन्द्र
बहादुर सिंह ‘राजन’- (कदम्ब-2001)। 30. उर्मिल अग्रवाल- (ख्याल बुनती
हूँ-2001, भोर आस-पास है-2014)। 31. बिन्दु महाराज ‘बिन्दु’- (आचमन-2001)।
32. सन्तोष कुमार सिंह- (आस्था के दीप-2002, आईना सच कहे-2003, हाइकु
गंगा-2007, हाइकु सुगंधा-2015)। 33. श्याम खरे- (अंकुश-2002, बरसता
दर्द-2004, मुखर मौन-2005)। 34. राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’- (मन की
बात-2002)। 35. माता प्रसाद विश्वकर्मा- (अनोखे फूल अनोखे रंग-2002)। 36.
कुंदन पाटिल- (उमंग-2002)। 37. रघुनाथ भट्ट- (हाइकु शती-2002)। 38. केशव
शरण- (कड़ी धूप-2003)। 39. मदन मोहन उपेन्द्र- (चिड़िया आकाश चीर गई-2003)।
40. भास्कर तैलंग- (मन बंजारा-2003)। 41. स्वर्ण किरण- (दहेज-2003)। 42.
इन्दिरा अग्रवाल- (कालांश-2004)। 43. रमाकान्त- (नृत्य में अवसाद-2003)।
44. सावित्री डागा- (बूँद-बूँद में सागर-2003)। 45. रामनिवास मानव- (शेष
बहुत कुछ-2003)। 46. गौरी शंकर श्रीवास्तव- (उधेडबुन-2003)। 47. डॉ॰ गोपाल
बाबू शर्मा- (मोती कच्चे धागों में-2004, आस्था की धूप-2015)। 48. प्रदीप
श्रीवास्तव- (एक टुकडा जिन्दगी-2004)। 49. निर्मल ऐमा- (धरा के लिए-2004)।
50. डॉ. मिर्जा हसन नासिर- (हाइकु शताष्टक-2004)। 51. भास्कर-
(मकड़जाल-2004)। 52. डॉ. राजकुमारी पाठक- (उज़डा चाँद-2004)। 53. नीलमेन्दु
सागर- (दोनाभर त्रिदल-2004, मोनालिसा की मुस्कान-2005)। 54. रमेश कुमार
सोनी- (रोली अक्षत-2004, पेड़ बुलाते मेघ-2018)। 55. डॉ॰ राजेन्द्र वर्मा-
(बूँद बूँद बादल-2005, सौंदी महक-2021)। 56. साधुशरण वर्मा ‘सरन’- (आज़ादी
की अहिल्या-2005)। 57. रामप्रसाद अटल- (ज्वलंत-2005)। 58. चन्द्रशेखर शर्मा
‘शेखर’- (कोतवाल नशे में-2006)। 59. मुचकुन्द शर्मा- (फिर बोराये
आम-2006)। 60. कश्मीरी लाल चावला- (हाइकु यात्रा-2007, यादें-2009, बाँके दरिया-2012, भविष्य के सितारे-2013, हाइकु रत्न-2016)। 61. धनंजय मिश्रा-
(आकाश गंगा की छाँव में-2007)। 62. शैल कुमार सक्सेना- (क्षितिज-2007)। 63.
सतीश राज पुष्करण- (बूँद-बूँद रोशनी-2008, शब्दों सजी वेदना-2012)। 64.
हारुन रशीद अश्क- (जाग गई शाम-2008)। 65. मीना अग्रवाल- (जो सच कहे-2008)।
66. कुंदन लाल उप्रेती- (नदी बेआग हुई-2008, सूली लटका चाँद-2008, तीर बनी
कलम-2016)। 67. प्रदीप गर्ग ‘पराग’- (शब्द शब्द है मोती-2008)। 68.
सुरेन्द्र वर्मा- (धूप कुंदन-2009, दहकते पलाश-2016)। 69. कमलेश भट्ट
‘कमल’- (अमलतास-2009)। 70. पुष्पा जमुवार- (वक्त के साथ-साथ-2010)। 71.
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’- (मेरे सात जनम-2011, माटी की नाव-2013, बंद
करलो द्वार-2019)। 72. देवेन्द्र नारायण दास- (गुलाबों का शहर-2012, झरे
पत्ते बोलते-2016)। 73. हरेराम समीप- (बूढ़ा सूरज-2012)। 74. हरिराम पथिक-
(कहता कुछ मौन-2012)। 75. प्रकाश कांबले- (प्रकाश के हाइकु-2012)। 76. डॉ.
अनीता कपूर- (दर्पण के सवाल-2012)। 77. हेमन्त जकाते- (मर्ममय-2012, बूँद
में सागर-2014)। 78. नरेन्द्र प्रसाद नवीन- (यथार्थ की जमीन-2012)। 79.
भगवत दूबे- (हाइकु रत्न-2012)। 80. रामनिवास मानव- (मेहंदी रचे हाथ-2012)।
81. डॉ॰ कुँवर दिनेश- (पगडण्डी अकेली-2013, बारहमासा-2014, हाइकु
माला-2014, आँगन में गौरेया-2017)। 82. डॉ॰ हरदीप कौर- (ख्वाबों की
खुशबू-2013)। 83. राजकुमार प्रेमी- (शब्द डरते नहीं-2013)। 84. मिथलेश
कुमारी मिश्र- (रात में जन्मा सूर्य-2014)। 85. कुमुद रामानंद बंसल-
(सम्बन्ध सिन्धु-2014, स्मृति मंजरी-2015)। 86. कृष्णा वर्मा- (अम्बर बाँचे
पाती-2014, मनकी उड़ान-2021, सिन्दूरी भोर-2021)। 87. रचना श्रीवास्तव-
(भोर की मुस्कान-2014, सपनों की धूप-2021)। 88. डॉ॰ आशा पाण्डे- (खिले हैं
शब्द-2014)। 89. अनिता ललित- (चाँदनी की सीपियाँ-2015)। 90. डॉ॰ आनन्द
शाक्य- (मेरी जिज्ञासा-2015)। 91. पुष्पा मेहरा- (सागर मन-2015, झील
दर्पण-2023)। 92. डॉ॰ ज्योत्सना शर्मा- (आँसू नहाइ-भोर-2015)। 93. सुदर्शन
रत्नाकर- (मन पंक्षी-सा-2016, लहरों के मन में-2022)। 94. विभा रश्मि-
(कुहू तू बोल-2016)। 95. सूर्य नारायण गुप्त- (चूँ-चूँ-चूँ-2016,
चीं-चीं-चीं-2017, पीड़ा के दीप-2019, सूर्य का दर्द-2021)। 96. कैलाश
वाजपेयी- (तीन टिप्पे-2017)। 97. बलजीत सिंह- (डाली का फूल-2017)। 98. मधु
सिंधी- (मधुकृति-2017)। 99. डॉ॰ विष्णु शास्त्री ‘सरल’- (हाइकु
मंजरी-2017)। 100. डॉ॰ राजीव कुमार पाण्डे- (मन की आँखें-2017)। 101. डॉ॰
सुरंगमा यादव- (यादों के पक्षी-2018, भावप्रकोष्ठ-2021, गाएगी सदी-2024)।
102. किरण मिश्रा- (सुगंधा-2018)। 103. रंजना राजीव श्रीवास्तव- (धुंध के
पार-2019, शून्य और सृष्टि-2019)। 104. निवेदिता श्री- (पात लजीले-2019)।
105. शशि पुरवार- (जोगिनी गंध-2019)। 106. मीना छिब्बर- (नदी खिल
खिलाई-2021)। 107. डॉ॰ जेन्नी शबनम- (प्रवासी मन-2021)। 108. भीकम सिंह-
(सिवानों पे गाँव-2021)। 109. ऋता शेखर ‘मधु’- (वर्ण सितारे-2021)। 110.
विभा रश्मि त्रिपाठी- (प्रेम पाँखुरी-2021)। 111. रंजना वर्मा- (चुटकी भर
रंग-2021, जुगनु-2021)। 112. डॉ॰ विश्व दीपक बमोला ‘दीपक’- (क्षितिज के
आयाम-2021)। 113. डॉ॰ कैलाश कौशल- (नीलकंठी मैं-2022)। 114. सुनीता दीक्षित
‘श्यामा- (भोर किरण-2023, वसुंधरा की आत्मा-2023, अनकहे आँसू-2023,
ख्वाहिश की डोर-2023, प्रकृति प्रेम-2023, ओस की बूँद-2023, धरा की
गोद-2023)। 115. शिव डोयले- (शब्दों के मोती-2023)। 116. सत्येन्द्र
छिब्बर- (आठवाँ रंग-2023)। 117. उषा माहेश्वरी पुंगलिया- (अंजूरी भर
धूप-2024)। |
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अध्ययन का उद्देश्य |
प्रस्तुत शोधपत्र के उद्देश्य हिंदी काव्य की एक विधा हाइकु के विकास और सौंदर्य का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है। |
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साहित्यावलोकन | व्यक्तिगत संग्रहों (संपादित संग्रह जानकारी के अभाव में छोड़ दिये हैं, उनका अलग लेख में विश्लेषण किया जायेगा) के साथ-साथ प्रो. सत्य भूषण वर्मा द्वारा संपादित हाइकु मासिक पत्रिका 1978 से, प्रो. आदित्य प्रताप सिंह द्वारा संपादित हाइकु मासिक पत्रिका 1978 से, महावीर सिंह, शम्भूशरण सिंह द्विवेदी द्वारा संवादित त्रिशूल 1986 से, लक्ष्मण प्रसाद नायक द्वारा संपादित गुंजन 1996 से, कश्मीरी लाल चावला द्वारा संपादित अदबीमाला 1996 से, डॉ. भगवत शरण अग्रवाल द्वारा संपादित हाइकु भारती त्रैमासिक पत्रिका 1998 से, डॉ. जगदीश व्योम द्वारा संपादित हाइकु दर्पण वर्ष 2001 से, बिन्दु जी महाराज ‘बिन्दु’ द्वारा संपादित तृतीया 2002 से, प्रदीप कुमार दाश ‘दीपक’ द्वारा संपादित हाइकु मंजूषा वर्ष 2006 से तथा हरदीप कौर संधु और रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ द्वारा संपादित हिंदी हाइकु वेब पत्रिका (जो वर्ष 2010 से प्रकाशित हो रही है) की सक्रियता का हिंदी हाइकु में मूल्यवान विस्तार है, वहीं कुछ साहसी और प्रयोगधर्मी पत्रिकाओं के विशेषांकों को भी हिंदी हाइकु के विकास और विस्तार के रूप में देखा जा सकता है जिनमें प्रमुख रूप से- डॉ. कुँवर दिनेश की पत्रिका हाइफन का वर्ष 2014 में हाइकु विशेषांक, डॉ. आनन्द सुमन सिंह की पत्रिका सरस्वती सुमन का वर्ष 2014 में हाइकु विशेषांक, डॉ. उमेश महादोषी की पत्रिका अविराम साहित्यिकी का हाइकु विशेषांक वर्ष 2019 में आया। इसी कड़ी में डॉ. रामकुमार घोटड का सारा-वैश्विक हिंदी हाइकु विशेषांक वर्ष 2023 में आया। इन हाइकुकारों का योगदान और डॉ. करूणेश प्रकाश भट्ट के शोध से पता चल रहा है कि इस दौर में अच्छी खासी संख्या हाइकुकारों की है और वे विषयाधारित हाइकु धड़ल्ले से लिख रहे हैं। जिनसे हाइकु समग्र और अपूर्व की ओर प्रवृत्त हुई है, मात्रा के दृष्टिकोण से आप कुछ भी कह लें पर गुणात्मकता में यह हाइकु का सोपान मात्र ही है। निश्चित तौर पर हाइकु कविता अभी धुँधलके में है लेकिन कुछ हाइकुकारों ने इस धुँधलके को भेदने का कार्य किया है जिनमें सबसे पहला नाम डॉ. सुधा गुप्ता का है- लुक-छिप के प्रेम का यह बिम्ब देखने लायक है, मगर हर कोई हाइकु में मात्रा ही देखता है। ये हाइकु प्रेम के एक रूप को उजागर करता है। हाइकु का एक रूप ऐसा भी है जो मन में रोमांच और झुरझुरी पैदा करता है। कृष्णा वर्मा का ऐसा ही एक हाइकु देखिए- चार दीवारी फाँद आ कूदा चाँद।[4] उगे गुलाब हाइकु को रचने का एक अनोखा ढंग रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ के पास है जिस कारण वे खूबसूरती का संप्रेषण करने में समर्थ हुए हैं। मैं यह नहीं कहता कि ऐसी खूबसूरती सभी हाइकुओं में संभव है, परन्तु संभव है-यादों के वसन्त ने लगा दी आग।[5] दे दूँ मुस्कान क्या शब्दों के संव्यवस्थित प्रयोग से सौंदर्य को बढ़ाया जा सकता है? यदि बढ़ाया जा सकता है तो किस सीमा तक? जिस पर बड़े खूबसूरत तरीके से डॉ. कुँवर दिनेश ने विचार किया है-जब, जहाँ तुमको होए थकान।[6] मेघों का नाद भगवत शरण अग्रवाल भी हाइकु के प्रमुख स्वर हैं। वे जीवन की गहरी अनुभूतियों का हाइकुकार के रूप में परिशीलन करते रहे हैं। यह हाइकु उनका स्वयं का भोगा हुआ यथार्थ है-हृदय को बींधती प्रिय की याद।[7] टहुके मोर कमलेश भट्ट ‘कमल’ हाइकु में प्यार की वजह व्यक्त करते हैं, जो हाइकु के माध्यम से प्यार की मौलिक अभिव्यक्ति है और उनके चिंतन का महत्त्वपूर्ण विषय भी-याद आ गया कौन इतनी भोर।[8] प्रीति, हाँ प्रीति वहीं गोपाल बाबू शर्मा प्यार की नयी जमीन तोड़ते नज़र आते हैं जिसे वह पाते हैं उसे हाइकु में अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं, उनकी यह अभिव्यक्ति सौंदर्य का परावर्तन करती है-दुनिया में सुख की एक ही रीति।[9] प्यार की चाह भाग्य की दुर्दशा को व्यंग्य में व्यक्त करता अनिता ललित का हाइकु जिसमें एक और ही तरह की अनुभूति होती है और पाठक भाव-विभोर हो जाता है-अजीब विसंगति मिलती आह।[10] मीत ने छला प्यार में पीड़ा की अभिव्यक्ति को आगे बढ़ाता डॉ. सुरंगमा यादव का हाइकु जैसे पीड़ा का आलोडन करता हुआ, सौंदर्य को अभिव्यक्त करता है-हाथों की लकीरों से क्या करूँ गिला।[11] चला के तीर प्यार के अभाव पर कैसा अमर हाइकु है रश्मि विभा त्रिपाठी का कि ‘अगली बार’ कहने से कैसी व्यंग्य की छठाएँ फूटती हैं। इस प्रकार की अभिव्यक्ति का रूप तो विपुल है लेकिन उसमें जो फलित के स्वरूप पाया जाता है वह हाइकु में सौंदर्य का योगदान है- फिर पूछा तुमने कहाँ है पीर।[12] करना प्यार प्रेम के संदर्भ में प्रेम का अन्तःस्वरूप जानना आवश्यक होता है वरना प्रेम की राह में जज्बात अनकहे रह जाते हैं जिसे हाइकु में प्रदीप कुमार दाश ‘दीपक’ ने खूबसूरती से पिरोया है-आऊँ जो दुनिया में अगली बार।[13] प्रेम की राह अनकहे से रहे कुछ जज़्वात।[14] |
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निष्कर्ष |
हालाँकि उदाहरणस्वरूप लिये गये ये सभी हाइकु प्रेम की अभिव्यक्तियाँ हैं। लेकिन हाइकु के सौन्दर्य में नवनिर्माण जैसे हैं। इन उदाहरणों में ग्यारह हाइकुकारों के नाम आये हैं, पचासों हाइकुकार छूट गये हैं जिनके आने चाहिए थे, यह मेरी अल्प जानकारी के कारण हुआ है कि मैं उनके हाइकू पढ़ नहीं पाया फिर भी जो बात मैं कहना चाह रहा हूँ, उसका लब्बोलुआब यही है कि हाइकु का प्रभाव बनता है यदि लिखते वक्त कविता की दृष्टि और निष्ठा का भाव रखा जाए। इस लेख में जिन ग्यारह हाइकुकारों के हाइकु शामिल हैं, उनमें अपनी रचना शीलता के प्रति निष्ठा का भाव रहा है। जैसा मुझे इनके हाइकु पढ़ने से लगा। आप भी इन हाइकुओं को पढ़ेंगे तो लगेगा कि हाइकु काव्य से निकटतर हो गया है और उसका सौन्दर्य विराट। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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