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भारत में हिन्दी की
वर्तमान स्थिति : एक अवलोकन |
Current Status of Hindi in India: An Overview |
Paper Id :
19277 Submission Date :
2024-09-15 Acceptance Date :
2024-09-23 Publication Date :
2024-09-25
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बन्दना सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
बी.एड. विभाग
राठ महाविद्यालय, पैठाणी
पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखण्ड, भारत
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सारांश
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सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और शास्त्रीय दृष्टि से विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि भाषा केवल भावनाओं को आदान-प्रदान करने का माध्यम ही नहीं है अपितु स्वयं के बारे में विचार एवं चिंतन मनन करने का माध्यम भी है। भावनाओं का आदान-प्रदान एवं सार्थक और समग्र चिंतन निज भाषा के द्वारा ही संभव है। किसी भाषा का सीधा संबंध देश की संस्कृति से होता है। अतः हिंदी भी भारतीय संस्कृति का मूल आधार है जो अपने आंचल में समस्त भारतीय संस्कृतियों को समाये हुए हैं। हिंदी भाषा की सबसे बड़ी शक्ति इसकी वैज्ञानिकता, मौलिकता, सरलता, सहजता एवं मधुरता है। हिंदी हम भारतीयों की आत्मा और पहचान है यह न केवल हम भारतीयों की पहचान है अपितु यह हमारी सभ्यता, संस्कृति, संस्कारों एवं परंपराओं का सच्चा संवाहक भी है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान एवं संस्कृति तथा आधुनिक ज्ञान एवं प्रगति के मध्य सेतु भी है। इस भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह कि है इसमें जो बोला जाता है वही लिखा भी जाता है। हिंदी इतनी समृद्ध, सरल, सहज और मधुर भाषा है कि जिस भाषा से मिलती है बड़े ही सहज भाव से उसके शब्दों को अपनाकर अपने आप में समाहित कर लेती है चाहे वह शब्द किसी भी भाषा का हो। हिन्दी बहती नदी की धारा की तरह सब के लिए उपयोगी एवं कल्याणकारी है। इसमे वसुधैव कुटुम्बकम का पवित्र भाव निहित है। अतः हिंदी का स्वरूप बहुत ही उदार एवं समावेशी है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद |
By analysing from cultural, scientific and classical point of view, it is known that language is not only a medium to exchange emotions but also a medium to think and contemplate about oneself. Exchange of emotions and meaningful and holistic thinking is possible only through one's own language. A language is directly related to the culture of the country. Hence, Hindi is also the basic foundation of Indian culture which contains all the Indian cultures in its lap. The biggest strength of Hindi language is its scientific nature, originality, simplicity, spontaneity and sweetness. Hindi is the soul and identity of us Indians. It is not only the identity of us Indians but it is also the true carrier of our civilization, culture, rituals and traditions. It is also the bridge between our ancient knowledge and culture and modern knowledge and progress. The biggest feature of this language is that whatever is spoken in it is also written. Hindi is such a rich, simple, easy and sweet language that it adopts the words of the language it meets and incorporates them in itself with great ease, no matter which language the word belongs to. Like the stream of a flowing river, Hindi is useful and beneficial for everyone. It contains the sacred sentiment of Vasudhaiva Kutumbakam. Hence, the nature of Hindi is very liberal and inclusive. |
मुख्य शब्द
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हिन्दी, भाषा, भारत, समृद्ध, संरक्षण. अंग्रेजी, एकता, अखंडता। |
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद |
Hindi, Language, India, Prosperity, Protection. English, Unity, Integrity. |
प्रस्तावना
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हमारा देश सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं भाषायी दृष्टि से विविधताओं वाला देश है। जैसे एक माली के बगीचे में नाना प्रकार के फूल एक साथ खिलते हैं, ठीक उसी प्रकार हमारे देश भारत में नाना प्रकार की संस्कृति, वेश-भूषा, खान-पान, रीति-रिवाज, परंपराएं और अनेक भाषा-भाषी लोग बड़े प्रेम, स्नेह, सहयोग एवं सद्भाव से एकता और अखंडता के सूत्र में बंध कर एक साथ रहते हैं। यहां पर भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का एक कथन बहुत ज्यादा चरितार्थ होता है-
“चार कोस पर पानी बदले, आठ कोस पर वाणी। बीस कोस पर पगड़ी, बदले तीस कोस पर धानी।।
आजादी के समय इतनी विविधताओं वाले देश में जनसंपर्क स्थापित करना आसान नहीं था। तब संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता प्राप्त हुई। हिंदी को मान्यता इसलिए नहीं प्राप्त हुई कि यह सबसे अधिक सरल, सहज, विकसित और समृद्ध भाषा है, अपितु इसलिए कि एकता और अखंडता का परिचय देते हुए संपूर्ण भारत के लोगों ने इसे स्वीकार किया। समता, समन्वय और एकता भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभ है। भाषा का कार्य सीमाओं और गतिरोधों को दूर कर सामान्य जनसंपर्क स्थापित करना है और हिंदी इस कार्य में पूर्ण रूप से सक्षम है, तभी तो इतनी विविधता होते हुए भी एकता और अखंडता का प्रतिबिंब यहां की सांस्कृतिक गतिविधियों में आसानी से दृष्टिगोचर होता है। भारत में हिंदी ही एकमात्र भाषा है जो पूरे भारत को एकता के सूत्र में पिरोकर अखण्ड भारत का दर्शन कराती है, बल्कि सच्चाई तो यह है कि किसी शिखर पर चढ़कर अखण्ड भारत को देखना है, यहां की भौगोलिक विविधताओं को समझना है और हिंदुस्तान के अर्थ को जानना व समझना है तो इसका मात्र एक ही साधन है और वह है हिंदी। हिंदी हम सब भारतवासियों की आन- बान-शान है। इसलिए हमारे संविधान के आठवी अनुसूची में इसे स्थान दिया गया है और इसे राजभाषा का दर्जा भी दिया गया है। इस भाषा ने अपनी सरलता और मधुरता की वजह से पूरे भारत में जनसंपर्क भाषा के रूप में अपना स्थान प्राप्त किया है और साथ ही आजादी के समय कई महत्वपूर्ण आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है।
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अध्ययन का उद्देश्य
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- वर्तमान समय में भारत में हिन्दी भाषा की स्थिति को जानना।
- वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत में हिन्दी भाषा के महत्व को जानना व समझना।
- हिन्दी भाषा को संरक्षित एवं संवर्धित करने के लिए सरकार की नीतियों को जानना।
- किस प्रकार हिन्दी भाषा को संरक्षित एवं संवर्धित कर भविष्य में राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जा सकता, को जानना।
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साहित्यावलोकन
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वर्तमान समय में हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हिंदी का शब्दकोश दुनिया का सबसे बड़ा भाषिक शब्दकोश है। वर्तमान समय में इंटरनेट पर हिंदी भाषा भी स्वीकार्य एवं लोकप्रिय हो रही है साथ ही हिंदी पत्रकारिता एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से दुनिया भर में प्रचारित एवं प्रसारित हो रही है। भारत के आकाशवाणी और दूरदर्शन चैनल भी हिंदी को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने में निरंतर कार्यरत है। दुनियाभर में टी 0 वी 0 चौनलों के माध्यम से हिंदी कार्यक्रमों के प्रसारण से भी हिंदी भाषा को वैश्विक पहचान मिली है। आज दुनिया के 132 देशो में भारतीय मूल के लगभग दो करोड़ लोग अपना कामकाज हिंदी भाषा में करते हैं और अपनी आजीविका चला रहे है। कोई भी भाषा देश की सीमाओं को तब पार करती है जब उसमें कोई विशिष्ट गुण हो और साथ ही उसका शब्दकोश एवं साहित्य समृद्ध हो। इन सभी मानदंडों पर हिंदी खरी उतरी है तभी तो सात समंदर पार भी आज विश्व के 140 देशो में 500 से अधिक केन्द्रों में हिंदी भाषा में अध्ययन-अध्यापन का कार्य और शोध कार्य हो रहा है। कंप्यूटर, मोबाइल फोन और आई पैड पर हिंदी की पहुंच इस बात को प्रमाणित करती है कि आने वाले समय में हिंदी वैश्विक स्तर पर और अधिक मजबूत होगी। उपर्युक्त बातों से स्पष्ट होता है कि वैश्विक स्तर पर हिंदी अपने पांव मजबूती के साथ पसार रही है और यह हम सबके लिए बहुत ही गर्व की बात है लेकिन अपने ही देश में हिंदी को अनेक उपेक्षाओं का शिकार होना पड़ रहा है और इसके पाव संकुचित हो रहे हैं। अतः हम कह सकते हैं कि भारत में हिंदी का अस्तित्व खतरे में है। हम सबके लिए यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि पूरे भारत को एकता और अखंडता के सूत्र में बांधने वाली हिंदी को संरक्षित करने के लिए हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाड़ा मनाने की आवश्यकता पड़ रही है। जिस हिंदी की वजह से आज हम आजादी की खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं उसी हिंदी को अपना अस्तित्व बचाने के लिए इतनी जद्दोजहत करनी पड़ रही है। |
मुख्य पाठ
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वर्तमान समय में हमारे देश में अंग्रेजी भाषा का इतना वर्चस्व हो गया है कि हर मां-बाप अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं क्योंकि अंग्रेजी मीडियम में पढ़े-लिखे बच्चों को ज्यादा स्मार्ट और समझदार समझा जाता है जबकि हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़े-लिखे बच्चों को कमतर एवं गंवार समझ जाता है। आज अंग्रेजी मीडियम से शिक्षा ग्रहण करके फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने में लोग गर्व का अनुभव करते हैं जबकि हम सभी को एक सूत्र में बांधने वाली हिंदी भाषा में लोग शिक्षा ग्रहण करने एवं बोलने में शर्मिंदगी महसूस करते है। गाँधी जी ने कहा था कि-मै विदेशी माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा को राष्ट्रीय संकट मानता हूँ। दुर्भाग्य की बात तो ये है कि आजादी के समय ही गाँधी जी ने इस संकट को भांप लिया था लेकिन आजादी के 78 सालों बाद भी हम इस संकट से अंजान बने हुए है। इंदौर में 19 अप्रैल 1935 को गांधी जी ने भाषा के संबंध में कहा था कि “हम उनकी भाषा को छाती से चिपकाए हुए हैं जिन्होंने हमें गुलाम बनाया।” हिंदी भाषा के महत्व को समझाते हुए गांधी जी ने कहा था कि- मातृभाषा बालक के लिए उतना ही स्वाभाविक और आवश्यक है जितना बच्चों के शरीर के विकास के लिए मां का दूध। मै बच्चों के मानसिक विकास के लिए मां की भाषा को छोड़कर दूसरी भाषा को लादना मातृभूमि के प्रति पाप समझता हूं। इससे स्पष्ट है कि बालक के सर्वांगीण विकास के लिए मातृभाषा कितना जरुरी है। अपनी मातृभाषा के बिना कोई भी राष्ट्र गूंगा और बहरा है। सच्चाई तो यह है कि हम सभी आज गूंगे एवं बहरे बने हुए हैं और उस भाषा को अपने सीने से लगाए बैठे हैं जो भाषा हमारी गुलामी का प्रतीक है। गाँधी जी अंग्रेजी के इस मोह से पिंड छुड़ाना स्वराज्य का अनिवार्य अंग मानते थे लेकिन भारत की विडम्बना तो देखिये आजादी के 78 सालों बाद भी हम सब इस मोह से छूटने की वजाय दिन-प्रतिदिन उसमे जकड़ते जा रहे है। भारत में अंग्रेजी भाषा को जानने वाले 6.10 फीसदी लोग हिन्दी भाषा के 44 फीसदी लोगों पर हावी हैं। हम आज भी अंग्रेजी भाषा की जंजीरों से जकड़े हुए हैं उससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। हिंदी भाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने लिखा है- अंग्रेजी पद के जदपि, सब गुन होत प्रवीन। पै निज भाषा ज्ञान विन, रहत हिन कै हिन।। निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल। विन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय कौ सूल।।
इंग्लैंड के विद्वान डॉ मैग्रेसर का मानना था कि. हिंदी दुनिया की महान भाषाओं में से एक है। भारत को समझने के लिए हिंदी का ज्ञान आवश्यक है। एक विदेशी विद्वान को हिंदी भाषा की महत्ता समझ में आ गई लेकिन हम भारतीय आज भी इस बात से अनभिज्ञ है या कह लीजिए कि समझना ही नहीं चाहते हैं। जापान के सुप्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर क्यूया दोई ने भी अपने विद्यार्थियों से कहा था कि-दस साल तक सीखी गई अंग्रेजी को बोलने से तीन महीने में सीखी गई हिंदी बोलना आसान है। उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि इन विदेशी विद्वानों को तो हिंदी की महत्ता समझ में आ गई लेकिन हम भारतीयों को यह बात समझने में न जाने अभी और कितने वर्ष लगेंगे। हम यह मानते हैं कि विश्व के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना है तो विदेशी भाषाओं का ज्ञान आवश्यक है लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि निज भाषा के ज्ञान के बाद ही अन्य भाषाओं को स्थान मिलना चाहिए ना कि निज भाषा की उपेक्षा करके। विदेशी भाषाओं को पढ़-लिख कर हम चाहे जितने भी प्रकांड विद्वान बन जाए लेकिन अपनी भाषा हिंदी के बिना भारतीयता का कोई अर्थ नहीं रह जाता ना ही हिन्दी की उपेक्षा करके हम विकसित भारत की संकल्पना कर सकते है। |
निष्कर्ष
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डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने कहा था कि- "जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है वह देश कभी उन्नत नहीं हो सकता।" अंततः हम कह सकते हैं कि वर्तमान समय में हिंदी के अस्तित्व को बचाना, संरक्षित करना और बढ़ावा देना ज्यादा आवश्यक हो गया है क्योंकि हिंदी हमारी विरासत है और अपनी विरासत को संरक्षित करना और आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करना हम सब की नैतिक जिम्मेदारी है। हम भारतवासी हिंदी को अगर जीवंत रखना चाहते हैं तो हिंदी का प्रयोग पढ़ने-लिखने और बोलने में ज्यादा से ज्यादा करना होगा। इसके लिए केन्द्र एवं राज्य स्तर पर भी कार्य करना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय भाषाओं (क्षेत्रीय) को पढाई का माध्यम बनाने पर बल दिया गया है खास करके हिन्दी पर विशेष बल दिया गया है। साथ ही हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी दूरदर्शन पर मन की बात हो या देश-विदेश में भाषण देना हो वो हिन्दी भाषा का प्रयोग करते है ताकि हिन्दी को बढ़ावा मिल सकें और आने वाले समय में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिल सकें। अब देखना यह होगा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और मानमीय नरेन्द्र मोदी जी का प्रयास भविष्य में कितना कारगर साबित होगा और हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त करने के लिए अभी और कितना लम्बा इन्तजार करना पड़ेगा वो सम्मान वो अधिकार कब तक मिलेगा जिसकी वो अधिकारिणी है। क्या भविष्य में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का कथन हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान का सपना साकार हो पाएगा क्या हिंदी भविष्य में राष्ट्रभाषा के सिंहासन पर विराजमान होगी, प्रश्न आसान है लेकिन उत्तर उतना ही मुश्किल। अंत में दो शब्द.- भारत माता के माथे की, झिलमिल-झिलमिल सी बिंदी हूँ। जन - जनमानस में प्रेम भरू, भारत की भाषा हिंदी हूँ।। |
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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- मातृभाषा में शिक्षण क्यों राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक ऐतिहासिक और क्रन्तिकारी प्रयास, प्रो. रमाशंकर दुबे, अगस्त 2020
- संवेदनाओं की अभिब्यक्ति का स्रोत, राजभाषा भारती, डॉ0 मनोरमा शर्मा, 2017
- सरल हिन्दी और राष्ट्रीय एकता, राजभाषा भारती, प्रो0 चर्तुभुज सहाय 2017
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