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"अपने-अपने अजनबी" का पुनर्मूल्यांकन |
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Reevaluating of "Apne Apne Ajnabi" | |||||||
Paper Id :
19350 Submission Date :
2024-10-08 Acceptance Date :
2024-10-22 Publication Date :
2024-10-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14185065 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
सच्चिदानंद
हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा तीन उपन्यास लिखे गए उनमें से 'अपने-अपने अजनबी' उनका तीसरा उपन्यास है जिस पर अस्तित्ववाद का प्रभाव देखने को मिलता है इस उपन्यास
के सभी पात्रों में योके एक ऐसी महिला
का चरित्र अदा करती है जो इच्छा मृत्यु चाहती है मृत्यु का सामना करने को लेकर
लिखा गया यह अज्ञेय का कम शब्दों में एक विशेष उपन्यास है। विशेषताएं- इस उपन्यास को अज्ञेय द्वारा तीन अध्यायों में विभाजित किया गया है तथा पात्रों को आधार में लेकर इसे तीन भागों में बाँटा है इस उपन्यास के नामकरण का आधार पात्र है जैसे प्रथम अध्याय 'योके और सेल्मा' द्वितीय अध्याय 'सेल्मा' तथा तृतीय अध्याय 'योके' है। योके इस उपन्यास का ऐसा दबंग पात्र है जो मृत्यु का साक्षात्कार करती है तथा अंतिम पल में भी इच्छा मृत्यु चुनती है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Sachchidanand Hiranand Vatsyayan Agyeya wrote three novels, out of which 'Apne-Apne Ajnabi' is his third novel on which the influence of existentialism is visible. Among all the characters of this novel, Yoke plays the character of a woman who wants euthanasia. This is a special novel of Agyeya in few words, written on facing death. Features- This novel has been divided into three chapters by Agyeya and based on the characters, it has been divided into three parts. The basis of naming this novel is the characters, like the first chapter is 'Yoke and Selma', the second chapter is 'Selma' and the third chapter is 'Yoke'. Yoke is such a strong character of this novel who encounters death and chooses euthanasia even at the last moment. |
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मुख्य शब्द | पात्र-सेल्मा, योके, ऐकेलोफ, जगन्नाथ्, पॉल सोरेन | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Characters- Selma, Yoke, Akeloff, Jagannath, Paul Soren | ||||||
प्रस्तावना | लेखक आज आपको हिन्दी साहित्य जगत के सबसे चर्चित उपन्यास 'अपने-अपने अजनबी' की
कथा सुनाता है, जिसे सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा 1961 में रचा गया
है। अज्ञेय हिन्दी साहित्य जगत में ऐसी सख्सियत हैं, जिन्हें 1978 में कितनी नावों मे कितनी बार रचना के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1964
में साहित्य अकादमी पुरूस्कार से नवाजा गया है। 'अपने-अपने अजनबी' निश्चय ही एक लघु उपन्यास है, इस उपन्यास की रचना कर अज्ञेय
जी ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। कहीं-कहीं ऐसा महसूसस होता है कि यह
उपन्यास विदेशी उपन्यास का हिन्दी रूपान्तरण है इस उपन्यास में योके और सेल्मा के
माध्यम से मृत्यु के संबंध में दो जीवन दृष्टियों का वर्णन किया गया है। अज्ञेय ने
स्वयं इस उपन्यास के सम्बन्ध में स्पष्ट किया है कि मृत्यु को सामने पाकर कैसे
प्रियजन भी अजनबी हो जाते है और अजनबी प्रियजन हो जाते है। यह
कहानी विदेश में घटित होती है, जिस कारण इसके पात्र भी विदेशी है। गहराई से इस
उपन्यास का अध्ययन व विश्लेषण करने पर यह बात पता चलती है कि यह उपन्यास पूर्व और
पश्चिम तथा मृत्यु और जीवन संबंधी दो जीवन -दृष्टियों का टकराव है तथा
अस्तित्ववाद से भी प्रभावित है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 'अपने-अपने अजनबी' अज्ञेय कृत एक श्रेष्ठ उपन्यास है। वर्तमान समय में इस उपन्यास के अध्ययन का उद्देश्य निम्न है कि इसे पढ़कर पाठक के मन से मृत्यु का भय जाता रहेगा तथा पाठक स्वतंत्र मन से हर कार्य को बखूबी कर पाएगा। वह महसूस करेगा की मृत्यु मनुष्य की नियति है तथा इससे मनुष्य बच नहीं सकता है। वर्तमान समय में तो मृत्यु और भी सरलता से मानव को अपना शिकार बना रही है। अधिकतर मौत दुर्घटना या बीमारी की वजह से हो रही है जिनका सामना करके हर एक व्यक्ति स्वयं को हताशा और निराशा में डुबो देता है और वह हर एक वो कार्य करने से डरता है जिससे उसे थोड़ा भय होता है। इस प्रकार हम इस उपन्यास का अध्ययन किए रहते हैं तो हिम्मत सी रहती है और निडरता और सतर्कता से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं मृत्यु भय से रहित होकर। |
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साहित्यावलोकन | साहित्य समस्त कलाओं की अपेक्षा समाज के साथ जिन कारणों से जुड़ा है उसमें भाषा मुख्य है और भाषा एक जैव सामाजिक सत्ता है। यही वह साधन है जिससे समाज के समस्त व्यवहार साहित्य में प्रकट होते हैं। इसलिए ही तो साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है और आलोचना समाज के इस दर्पण के परीक्षण का माध्यम है। सामाजिक अवधारणा के सेस से आलोचक साहित्यिक कृति का मूल्यांकन करता है। आज के युग में हर पढ़े-लिखे मनुष्य के हाथ में मीडिया आ चुका है, जिसे चाहे वह अपने आप का कितना ही प्रचार-प्रसार कर ले। आज लेखक अपने बंद कमरे में बैठकर सारे अनुभव नेट से उकेर कर कलमबद्ध करने में लगा है। जैसे प्रेमचंद ने होरी के जीवन का भोग व संघर्ष करते हुए एक जीवन का दौर तय किया,तब गोदान सामने आया। मनीषियों ने, पाठकों ने जब उसका अवलोकन किया तो पुस्तक का महत्व सामने आया वास्तव में पाठक ही सबसे पहले किसी कृति का आलोचक होता है जो उस कृति का मूल्यांकन कर सकता है। आलोचक का लेखक, कृति और समाज के प्रति उत्तरदायित्व बनता है। रचनाकार के लिए उसका मूल्यांकन एक ओर प्रेरक तो दूसरी और मार्गदर्शन का काम करता है। |
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मुख्य पाठ |
प्रथम खण्ड की प्रमुख घटनाएँ यह उपन्यास योके और सेल्मा का अचानक बर्फ के नीचे घर में कैद होने से शुरू होता है। योके अपने प्रेमी पॉल सारेन के साथ पर्वतीय क्षेत्र में घूमने के लिए निकलती है। अचानक बर्फीला तूफान चल पडता है। तूफान चलने के कारण योके, सेल्मा के घर में शरण लेती है जो कि एक पर्वत पर स्थित है परन्तु योके का प्रेमी पाल सारेन का कोई पता न हीं चलता। यह उपन्यास दिन ब दिन घटित होता है तथा प्रत्येक घटना को योके अंकित करती है।15 दिसम्बर में योके पहली बार अपना अनुभव करती हुई लिखती है कि 'कब्र घर के दस दिन' सुना है कि दसवें दिन मुर्दे उठ बैठते है और किसी फ़रिश्ते के सामने अपने जीवन का हिसाब किताब रखते हैं। योके (नवयुवती) सेल्मा (वृद्धा) दोनों ताश खेलकर क्रिसमस और एपिफामिया (ईश्वर की पहचान का दिन) पर संवाद कर अपना समय व्यतीत करती हैं। धीरे-धीरे इस उपन्यास में दोनों का अन्तर्द्वन्द भी देखने को मिलता है। योके अपने अन्तर्द्वन्द के बारे में डायरी में लिखती है कि कई बार मेरा मन होता है कि जोर-जोर से चीखू अपने को मारू बाल-नोचू कैंची से अपना गला घोटू, साथ ही सेल्मा का अन्तर्द्वंद भी देखने को मिलता है कि कैसे वह कमरे में सामान इधर-उधर पटक देती है तथा जोर-जोर से गालियाँ निकालती है। 11 जनवरी को योके उस घर को कब्र घर न लिखकर काठघर की संज्ञा देती है वह कहती है कि मैं अपनी मुठ्ठी बंद करती व खोलती हूँ मुझे अपनी उंगलियों की गति से डर लगता है, मुझे नहीं लगता कि मैं उन्हें चलाती हूँ, वे अपने आप स्वतंत्र, अपने निरातम मन से चलती हैं। 12 जनवरी को योके उस घर को काठघर न लिखकर बिना कफन का घर लिखती है और लिखती कि यों बिना दबे बिना बर्फ को छुए अहेतुक मर जाना भी जीवन के अनुभव का अपमान करता है। 14 जनवरी डायरी का अंतिम अंश जिसमें योके अपनी खुशी को व्यक्त करती है क्योंकि आज एक महीने के बाद उसे धूप की पतली सी किरण दिखायी देती है। योके, सेल्मा को धूप दिखाना चाहती है पर वह उस स्थिति में नहीं है कि वह धूप देख सके फिर भी योके कोशिश करती है कि जिस कुर्सी पर सेल्मा बैठी उसे दरवाजे तक लाए परन्तु ऐसा करते-करते उसकी गर्दन अटक जाती है, वह स्थिर हो जाती है, सेल्मा धूप नही देख पाती। एक बार सेल्मा योके से कहती है कि मेरा मन न हो, मैं तुमसे मना करू तब भी तुम मुझे जोर जबरदस्ती कर धूप दिखाना। आगे योके को सेल्मा अपनी जवानी की कहानी सुनाती है, कहानी सुनाते-सुनाते सेल्मा कहां पर ठहर जाती है एकाएक उसकी मृत्यु हो जाती है। योके को इस बात का पता ही नहीं चलता तथा योके के मन में सेल्मा के प्रति दयाभाव उत्पन्न होता है। जैसे ही सेल्मा अपने प्राण त्यागती है, योके उसे बर्फ में दबा देती है और ऐसे समय जब योके उस घर को छोड़ रही होती है, तब उसे दूर कहीं छोटा सा काला सा धब्बा दिखाई देता है जिसे वह अपना प्रेमी पाल सारेन समझती है, जो कि उसे साथ चलने का इशारा कर रहा है। प्रथम अंक यहाँ समाप्त होता है। दूसरे खण्ड की मुख्य घटनाएँ इस खण्ड में सेल्मा अपनी जवानी के विषय में बताती है कि किस तरह वह यूरोपीय कस्बे में रहती थी और वहां उस कस्बे में बाढ़ आती-जाती रहती थी। अज्ञेय ने जिक्र किया कि 1906 की वह बाढ इतनी तीव्र थी कि उस समय पुल पर मात्र तीन दुकाने बची थी और दुकानों में मात्र तीन लोग सेल्मा, यान एकेलॉफ, फोटोग्राफर। यहां सेल्मा के स्वार्थी होने का भी जिक्र आया है कि किस तरह सेल्मा लोभी प्रवृत्ति की थी। जब यान एकेलॉफ उसके पास आता और गोश्त मांगने के लिए जाता है, तब सेल्मा उससे तिगुने दाम लेती है। तर्क देती कि जब किसी वस्तु की मांग बढ़ती है, तब ऐसा करना आवश्यक होता है, सेल्मा को लगता कि एक दिन फोटोग्राफर भी उसकी सहायता के लिए जरूर आयेगा। एक दिन फोटोग्राफर पीने का पानी मांगने के लिए सेल्मा के पास चला जाता है परन्तु सेल्मा कहती है कि पीने का पानी बहुत कम बचा है और मैने अभी चाय भी नहीं पी है चाहो तो तुम मेरे साथ चाय पी सकते हो, पर फोटोग्राफर को लगता है कि वह उससे भी चाय के तिगुने या चौगुने दाम मांगेगी और वह खाली हाथ चला जाता है। एक दिन सेल्मा देखती है कि फोटोग्राफर की दुकान धू-धू कर जल रही है वह अपने कमरे से यह दृश्य देखती है परन्तु उसके समीप जाने की कोशिश नहीं करती है। एक तरफ यान एकेलॉफ देखता है कि फोटोग्राफर की दुकान जल रही है और वहीं समीप में फोटोग्राफर कमर पर हाथ रखकर जोर-जोर से हंस रहा है। वह उसके पास जाने की कोशिश करता व पास जाता है तब फोटोग्राफर नदी मैं कूद कर अपनी जाने दे देता है। फिर एक दिन यान एकेलॉफ खाने के प्रयोजन से सेल्मा के पास जाता है और कहता है कि मेरे पास मात्र ये ही चंद सिक्के हैं। इनसे जितना गोश्त हो सकता है मुझे दीजिए। सेल्मा उसे बहुत कम गोश्त देती है और यान ऐकेलॉफ उन सिक्कों को सेल्मा के मुंह पर फेक देता है। कुछ समय के बाद यान ऐकेलॉफ, सेल्मा के पास जाकर माफी मांगता है और सेल्मा से कहता है कि यह मेरे पास अंतिम भोजन है जो आपसे मेरे चंद सिक्कों से लिया था, मैं चाहता हूँ तुम इसमें से अपना भाग निकाल लो, सेल्मा कुछ देर स्थिर खडी रहती है, तब यान एकेलॉफ कहता है चाहो तो तुम सारा ले सकती हो मैं यहां से चला जाता हूँ। सेल्मा उस भोजन से आधा भाग ले लेती है और अंदर अपने कमरे में चली जाती है। यान एकेलॉफ वहां से आने को होता है, तब सेल्मा यान एकेलॉफ से कहती है कि तुम मेरे से शादी करोगे। इस पर यान एकेलॉफ उसके शादी के प्रस्ताव को ठुकरा देता है और कहता कि मैं तुम्हारी इस सड़ी कमाई से शादी नहीं कर सकता। ऐसा कहकर वह वहां से चला जाता है। इसके पश्चात् सेल्मा अपनी सारी वसीयत यान एकेलॉफ के नाम करके अपनी खाने की तश्तरी, जिसमे उसने उससे आधा गोश्त लिया था, लेकर यान एकेलॉफ के पास जाकर वसीयतनामें की पर्ची यान एकेलॉफ को देती है, पर वह उसे फाड़ देता है। सेल्मा को लगता है कि वह यान के पास बैठकर नहीं खा सकती, तब वह अपने कमरे में चली जाती है। तीन-चार दिन के बाद यान एकेलॉक सेल्मा से कहता है कि कुछ सुरक्षा कर्मी नाव लेकर हमे ले जाने आए हैं, सो तुम मेरे साथ चलो। तब सेल्मा कहती है कि तुम्हे मेरा शादी का प्रस्ताव स्वीकार है? तब यान उसका हाथ पकडकर नाव पर खींचता है और दोनो एक ग्रहस्थ जीवन का आनंद लेते है। समय बीतता जाता है और यान एकेलॉक की मृत्यु हो जाती है। इस तरह दोनों का जीवन आगे बढता है। सेल्मा के तीन बच्चे हो जाते है इस प्रकार द्वितीय खंड समाप्त होता है। तृतीय खण्ड की प्रमुख घटनाएँ |
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निष्कर्ष |
यह उपन्यास अज्ञेय का ऐसा उपन्यास है, जो विदेशी पृष्ठभूमि पर लिखा गया है तथा इसके पात्र भी विदेशी ही लिए गए हैं। इस उपन्यास की केंद्रीय पात्र योके है, जो इस तथ्य को सिद्ध करना चाहती है कि मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है, जिस पर हमारा वश नहीं चलता है, पर योके इसे झुठलाती है तथा अंतिम समय में इच्छा मृत्यु चुनती है। यह उपन्यास व्यक्त करता है कि मृत्यु को सामने देखकर अपने पराए तथा पराए अपने हो जाते हैं। मृत्यु का हमारे जीवन पर पूरी तरह अधिकार होता है। यही इस उपन्यास का केंद्रीय तथ्य है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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