ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- IX , ISSUE- VIII November  - 2024
Anthology The Research

विद्यार्थियों के नैतिक मूल्यों पर शिक्षा का प्रभाव

Impact Of Education On Moral Values Of Students
Paper Id :  19426   Submission Date :  2024-11-11   Acceptance Date :  2024-11-23   Publication Date :  2024-11-25
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DOI:10.5281/zenodo.14229556
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बेदराम
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिक्षा विभाग
आर०पी०पी०जी० कॉलेज
कमालगंज, फर्रुखाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

शिक्षा का लक्ष्य जीवकोपार्जन में सहायता करना ही नहीं, नैतिकता का पाठ पढ़ना भी होना चाहिए| आधुनिक शिक्षा तर्क एवं विज्ञान पर आधारित है| वह मानव मस्तिष्क का विकास करती है, ज्ञान के द्वार खोलती है, मनुष्य को चिंतनशील बनती है| शिक्षा मानव में नैतिक मूल्यो जैसे सहयोग, सहिष्णुता, दया, ईमानदारी आदि का विकास करती है सदगुण एवं सदचरित्र के अभाव में मानव में पशु-प्रवृत्तियां बलवती हो जाती हैं| वह निर्दयी, निर्मम, ईर्ष्यालू, अत्याचारी एवं चरित्रहीन बन जाता है ऐसी दशा में व्यक्ति पर नियंत्रण रखना समाज के सामने एक समस्या बन जाती है|

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The aim of education should not only be to help in earning livelihood, but also to teach morality. Modern education is based on logic and science. It develops human brain, opens the doors of knowledge, makes man thoughtful. Education develops moral values ​​in man like cooperation, tolerance, kindness, honesty etc. In the absence of virtues and good character, animal instincts become strong in man. He becomes ruthless, cruel, jealous, cruel and characterless. In such a situation, controlling a person becomes a problem for the society. Only a person endowed with moral qualities is loyal and duty-bound. In this way, education helps in maintaining social control by developing moral qualities and building character in man. A child is the future of the society. And if the future gets polluted, the nation will also get polluted. Clearly, to make this future beautiful and healthy, moral values ​​are required in man. The first organized effort regarding value-based education was started in 1982 at IIT Delhi. Here, in continuation of the special lecture of late Professor D.S. Kothari on the subject of “Science of Human Values”, a committee was formed. This committee was entrusted with the responsibility to explore the possibilities of starting a formal course on human values ​​for engineering students. With this objective, the present study is moving along various dimensions.
मुख्य शब्द विद्यार्थियों, नैतिक, मूल्यों, शिक्षा, प्रभाव|
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Impact, Education, Moral Values ​, Students.
प्रस्तावना

नैतिक गुणों से युक्त व्यक्ति ही निष्ठावान एवं कर्तव्य परायण होता है| इस प्रकार शिक्षा मानव में नैतिक गुणों का विकास एवं चरित्र का निर्माण कर सामाजिक नियंत्रण बनाए रखने में योग देती है| बच्चा समाज का भविष्य है| और यदि भविष्य प्रदूषित हुआ तो राष्ट्र भी प्रदूषित होगा स्पष्टतः इस भविष्य को सुंदर तथा स्वस्थ बनाने के लिए मनुष्य में नैतिक गुणों की आवश्यकता है| मूल्य परक शिक्षा के बारे में पहले संगठित प्रयास 1982 में आई0आई0टी0 दिल्ली में प्रारंभ किया गया| 

अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य विद्यार्थियों के नैतिक मूल्यों पर शिक्षा के प्रभाव का अध्ययन करना है |

साहित्यावलोकन
“मानवी मूल्यो का विज्ञान” विषय पर स्वर्गीय प्रोफेसर डी0एस0 कोठारी के विशेष भाषण के अनुक्रम में एक समिति का गठन किया गया| इस समिति को इंजीनियरी के छात्रों के लिए मानवीय मूल्यों पर औपचारिक पाठ्यक्रम शुरू करने की संभावनाओं का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंप गई| इसी उद्देश्य से प्रस्तुत अध्ययन विविध आयामों के साथ गतिमान है|
मुख्य पाठ

विद्यार्थियों को अवधारणाएं बनाने में होने वाली कठिनाइयां-

1. बालक का बौद्धिक विकासबाल बुद्धि आखिर बाल बुद्धि है| वह इतना बुद्धिमान नहीं होता की नैतिक अवधारणाओं को सीख समझ सके और उन विविध स्थितियों को भी जान ले जिसमें विविध नैतिक अवधारणाएं लागू होती हैं |

2. शिक्षण प्रकारप्रौढ़ जन प्रायः बालको से यह कहते पाए जाते हैं कि यह ठीक नहीं है इसे मत करो उन्हें यह कम बताया जाता है क्या ठीक है और उन्हें क्या करना चाहिए मूल्य संवायों के निषेधात्मक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता है और विद्यात्मक पक्ष पर कम | परिणाम स्वरूप श्रेयम का मार्ग अपरिमाजित ही रह जाता है |

3. सामाजिक मूल्यों में परिवर्तनसामाजिक मूल्यों के अनुसार ही बालकों को व्यवहार करते हुए देखते हैं| यदि सामाजिक मूल्य बदलते हैं तो उन्हें भी अपना व्यवहार बदलना चाहिए| किशोर एवं प्रौढ़ तो वैसा कर भी लेते हैं किंतु बालकों को इसमें कठिनाई होती है|

4. विभिन्न नैतिक मूल्य समवाय बालक उस समय भ्रमित हो जाता है जब वह प्रत्यक्ष देखता है और अनुभव करता है| कि सभी एक जैसा व्यवहार नहीं करते लोगों के मूल्य समवाय है अलग-अलग रूप में देखकर  उसका भ्रांत होना स्वाभाविक है| पुनः वह जब यह देखता है कि उसके पालक एवं शिक्षक जैसा दूसरों से करने के लिए कहते हैं| वैसा स्वयं नहीं करते तो उसकी भ्रांति और बढ़ जाती है और सही गलत में भेद करने में स्वयं को अक्षम पाता है|

5. विभिन्न स्थितियों में बदलाव-नैतिक मूल्यों के सूक्ष्म वेदों को समझ पाना बालक के लिए कठिन होता है| उदाहरणार्थ- यदि उसे यह सिखाया गया है कि अपने खेल खिलौने मित्रों में मिल बाटकर खेलना चाहिए, तो स्कूल के कार्य को भी मित्रों के बीच बांट लेने को कुछ कुत्सित क्यों समझा जाता है|

6. सामाजिक दबावों से संघर्ष- एक समुदाय विशेष की नैतिक मान्यताएं जिन्हें बालक ने अपना लिया है| दूसरे समुदाय द्वारा संभवता मान्य न हो| बालक यह जानता है की लड़ाई झगड़ा करना एक बुरी बात है, किंतु जब एक दूसरा समुदाय इस व्यवहार में भीरू या डरपोक समझने लगता हैं| तो बालक यह नहीं समझ पाता कि उसका व्यवहार कैसा हो ताकि उसे समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त हो सके| इनके अतिरिक्त हमारी दूषित परीक्षा प्रणाली भी मूल्यो के अभ्यातीकरण में एक बड़ी बाधा है| वर्तमान परीक्षा प्रणाली ने विद्यार्थियों में इस धारणा को जन्म दिया है| की परीक्षा पास करके डिग्री या डिप्लोमा प्राप्त करना ही शिक्षा का परम लक्ष्य है| अतः मूल्य परक शिक्षा के लिए सफल कार्यान्वयन के लिए मौजूदा परीक्षा प्रणाली में अमूल परिवर्तन की आवश्यकता है| परीक्षा प्रणाली में परिवर्तन के अतिरिक्त शिक्षक का चारित्रिक आदर्श भी इस संदर्भ में महत्व का है |मूल्यो का पहला और विधिवत संस्कार विद्यालयों में मिला करता है| अब बच्चा अपने घरेलू और आस -पड़ोस के परिवेश से निकाल कर थोड़े वृहद परिवेश में प्रवेश करता है| उसके हम जोली बच्चे भिन्न-भिन्न परिवारों तथा पृथक - पृथक पृष्ठभूमियों से अलग-अलग संस्कारों को लेकर आते हैं उनके साथ ताल मेंल रखना  उनसे कुछ सीखना तथा उनको कुछ सिखाना आदि क्रियाएं चलती रहती हैं| विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने मूल आधारित एक योजना शुरू की हैइस योजना का उद्देश्य विश्वविद्यालय और कॉलेजों को ऐसे कार्यक्रमों में मदद करना हैजिससे विद्यार्थियों और शिक्षकों में मूल्य आधारित शिक्षा को बढ़ावा मिले| 25 मई 1995 को आयोग ने अपनी बैठक में शिक्षा को उच्च स्तर पर मूल्य परक बनाने की कार्य योजना पर विचार करते हुए विचार व्यक्त किया की विकासात्मक मुद्दों पर समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता हैइन्हें बुनियादी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिएऔर इनमें अन्य मुद्दों जैसे मूल्यपरक शिक्षा, मानवाधिकार, पर्यावरण अध्ययन, जनसंख्या अध्ययन, लिंग संबंधी मुद्दों आदि को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए|

नैतिक मूल्यों के उद्देश्य

1. मानव व्यक्तित्व का समुचित विकास- भारतीय जीवन में नैतिकता तथा आध्यात्मिकता संबंधी मूल्य मानव व्यक्तित्व के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है| भारत के सभी धर्मो की शिक्षा में व्यक्ति का  महत्व स्वीकार किया गया है| व्यक्तित्व विकास के लिए यह आवश्यक है कि नैतिकता तथा आध्यात्मिकता पर आधारित संबंधों का संक्षिप्त विकास किया जाए शिक्षा में बालक के व्यक्तित्व का आदर कर उसे नैतिक उत्तरदायित्व बहन करने योग्य बनाया जा सकता है |

2. नैतिक उत्तरदायित्व- व्यक्तिगत व्यक्तित्व महत्वपूर्ण है अतः सभी को अपने कार्यों के परिणामो के लिए  उत्तरदायी रहना चाहिए| नैतिक उत्तरदायित्व तथा स्वयं अनुशासन प्रोणता तथा परिपक्वता का परिचायक हैं|

3. संस्थाएं- मानव में उचित दृष्टिकोण का विकास करने में संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान है| वह हमारे जीवन में नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करती हैं| घर बच्चों का संरक्षण करता है तथा संस्था बच्चों की शिक्षा व्यवस्था तथा उनके उचित विकास में सहायक होती हैं |

4. सत्य के प्रति आस्था का विकास- मानव मस्तिष्क को ज्ञान प्राप्त करने की स्वतंत्रता आवश्यक है| परंपराओं तथा रीति रिवाज ने हमारी बौद्धिक स्वतंत्रता की नैतिकता से हमें दूर कर दिया है| बौद्धिक स्वतंत्रता के अभाव में व्यक्ति झूठ तथा मक्कारी की ओर बढ़ता है| अतः आवश्यक है कि बालक में नैतिक शिक्षा शिक्षण के द्वारा सत्य प्राप्त की ओर अग्रसर हो |

5. सुख की खोज- नैतिक शिक्षा शिक्षण के द्वारा बालक के सुख की वृद्धि होना आवश्यक है| यह सच्चा सुख व्यक्तिगत साधनों, प्रेम , आपसी सद्भाव तथा अन्य का आदर करने से मिलता है| अतः नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा वर्तमान के सुखों को त्याग कर भविष्य के सुखों के लिए जाने की क्षमता का विकास किया जाना चाहिए | इसके लिए रचनात्मक कार्य, कला, साहित्य, संगीत तथा सौंदर्य बोध कराने वाली विधियों का अभ्यास कराया जाना चाहिए तथा गुटबंदी, संघर्ष दबाव आज से बच्चों को दूर रखना उपयोगी होगा |
6. अच्छाई के लिए आदर विकसित करना- नैतिक शिक्षा शिक्षण के माध्यम से बालक में अच्छाई के प्रति आदर भी विकसित होना आवश्यक है इसके लिए मस्तिष्क चरित्र तथा रचनात्मक विकास होना आवश्यक है संस्था को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अच्छाई तथा गुणों का विकास करने के लिए प्रत्यनशील रहना चाहिए |

7. भ्रातृत्व विकास- नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा भ्रातृत्व विकास होना आवश्यक है| हम चाहते हैं कि देश में स्वयं नियंत्रित नागरिक विकसित हो और वह नागरिक अपनी आराम उन्नत के लिए प्रत्यनशील न होकर उनकी उन्नत के लिए प्रत्यन करें जो इन पर आश्रित हैं| ऐसी भ्रातृत्व भावना मानवीकरण की ओर ले जाती है| तथा उनके प्रति सहान भूत विकसित करती है इस  दृष्टि से भ्रातृत्व भौतिक सहायता से अधिक ही है|

8. नैतिक समानता - सभी व्यक्तियों तथा बालकों को एक से नैतिक स्तर से मापा जाए| सभी को बराबर समझा जाए| नैतिक शिक्षा के द्वारा यह विचार विकसित किया जाना अति आवश्यक है कि ना कोई किसी से बड़ा या ना छोटा है और ना कोई किसी को हानि पहुंचा सकता या लूट सकता है| सभी को एक दूसरे से इस प्रकार व्यवहार करना सीखना चाहिए जैसा कि वह दूसरों से चाहता है| इसके लिए शाला में भ्रातृत्व तथा दोस्ती की भावना विकास आवश्यक है| बच्चों में नैतिक शिक्षा के माध्यम से ऐसी भावना का विकास करना आवश्यक है कि वह अन्याय,  द्वेष, विशेषाधिकार, स्वतंत्रता के हरण दबाव आज का विरोध करें तथा घृणा से देखें शाला के अनुभवों के द्वारा इन मूल्यों की पुष्टि तथा विकास किया जाए |

9. आध्यात्मिक विकास- व्यक्ति के समुचित विकास हेतु नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा ऐसे संवेगात्मक तथा आध्यात्मिक अनुभवों को देना आवश्यक है जो जीवन के भौतिक तत्वों से परे हो| नैतिक मूल्यों का प्रभाव सामाजिक संबंधों में दृष्टिगोचर होता है| आध्यात्मिक मूल्य आंतरिक संवेगों तथा भावनाओं से प्रभावित होता है| आध्यात्मिक दृष्टिकोण हमारी अध्यात्मिक रचनात्मक क्रियो, धर्म के विचारों, मान्य रीति रिवाजो, महापुरुषों के जीवन की घटनाओं की स्मृति, आकाश के तारों को देखकर सोचने विचारने संसार की क्षण भंगुरता पर मनन करने आदि से बनता है| अतः हम नैतिकता को चाहे जिस साधन द्वारा प्राप्त करें शालाओं का यह परम कर्तव्य है कि वह बालकों को इन अनुभवों से प्रभावित करें| सालेय सामुदायिक जीवन स्वयं प्रेरणात्मक तथा ऊंचा उठाने वाला होना चाहिए|राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने मूल्य पर शिक्षा के निम्न उद्देश्य स्वीकार किये है-

1. नैतिक सौंदर्यात्मक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संवेदना का विकास करना|

2. छात्रों को जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समानता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझना और उन्हें इन मूल्यों के बनाना

3. विद्यार्थियों का विकास करना और उनको प्रतिबद्ध करना |

4. विद्यार्थियों को इन मूल्यो के अनुसार जीवन जीने और अभ्यास के लिए अवसर प्रदान करना इस प्रकार आज के सामाजिक परिदृश्य के संदर्भ में नैतिक शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक संदर्भ में व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व का शारीरिक और आध्यात्मिक विकास कर उनमें नैतिक निर्णय की क्षमता जागृत करना है| जिससे वह गतिशील समाज में सभी श्रेयस्कर मूल्य को अपने जीवन का अविभाज्य अंग बना सकें नैतिक शिक्षा को शाश्वत और समन्वयात्मक और आधुनिक परंपरागत और प्रगतिशील समस्त श्रेयस्कर मूल्यो की औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा है| नैतिक शिक्षा सैद्धांतिक भी है और व्यावहारिक भी यह जीवन की एक प्रगतिशील प्रक्रिया भी है और संवेदनशील प्रक्रिया भी यह व्यक्तिक प्रक्रिया भी है और सामाजिक प्रक्रिया भी|

निष्कर्ष

अतः यह कहा जा सकता है कि जहां व्यक्ति है वहां चरित्र की अनिवार्यता होती है जहां समाज वहां नैतिकता अनिवार्य है यह दोनों अनिवार्यताएं सदा होती हैं जीवन जीने की कला क्या है इन बातों को यदि शिक्षा नहीं सिखाएगी तो कौन सिखाएगा इन मूल्यों के बिना हर शिक्षा अधूरी है उन गुणों को हम नैतिक कहेंगे जो व्यक्ति के निज के सर्वाधिक विकास और कल्याण में किसी प्रकार की बाधा ना पहुंचाएं नैतिकता व्यक्ति की  उस विवेकशीलता को प्रदर्शित करती है जिसके द्वारा वह स्वहित साधन के साथ-साथ परहित में भी योगदान देती है व्यक्ति के जीवन में नैतिक मूल्यों एवं शिक्षा दोनों का योग महत्वपूर्ण है इस प्रकार व्यक्ति के जीवन में नैतिक मूल्यों एवं शिक्षा दोनों का ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है|

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
  1. पांडे डॉक्टर राम सकल मूल्य शिक्षा के परिपेक्ष, सूर्या पब्लिकेशन एंड संस मेरठ|
  2. गुप्त डॉक्टर नत्थू लाल मूल्य परक शिक्षा और समाज नमन प्रकाशन नई दिल्ली – 2000 |
  3. डागर बी0 एस0 शिक्षा तथा मानव मूल्य, हरियाणा साहित्य अकादमी चंडीगढ़ – 1992 |
  4. मलैया0 के0 सी0 नैतिक शिक्षा शिक्षक, विनोद पुस्तक मंदिर आगरा- 1986 |
  5. पाठक पी० डी० भारतीय शिक्षा और उसकी समस्याएं, विनोद पुस्तक मंदिर आगरा |
  6. माथुर एस०एस० शिक्षा मनोविज्ञान, आगरा विनोद पुस्तक मंदिर- 1993 |
  7. रमन बिहारी लाल शिक्षा के दार्शनिक और समाजशास्त्रीय सिद्धांत, रस्तोगी पब्लिकेशन मेरठ - 1994- 95