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कालीबंगा एक आद्य ऐतिहासिक
विरासत एक सर्वेक्षण |
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Kalibanga: A Protohistoric Heritage: A Survey | |||||||
Paper Id :
19461 Submission Date :
2024-11-05 Acceptance Date :
2024-11-21 Publication Date :
2024-11-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14378901 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
राजस्थान में पूर्व हड़प्पा का प्रसिद्ध पुरास्थल कालीबंगा हैं जो वर्तमान हनुमानगढ़ जिले घग्घर के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित हैं घग्घर पूर्व में सरस्वती व दृषद्वती नदी का हिस्सा थी आरेल स्टीन ने इस पुरास्थल की ओर पहले पहल संकेत दिया 1951-52 में अमलानन्द घोष इसकी खोज की। इस प्रकार कालीबंगा संस्कृति प्रकाश में आई। घोष ने 1952-53 में करीब 10-12 हड़प्पा संस्कृति के स्थल खोजे। घोष ने ही सर्वप्रथम इसे कालीबंगा नाम दिया। चूंकि यहाँ काले रंग की चूड़ियाँ सर्वाधिक मात्रा में मिली हैं। इस समय घोष भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक थे। इन्होने व्यवस्थित रूप से इसके उत्खनन का महत्वपूर्ण कार्य शुरू करवाया। पुरातत्वविद् बी.वी.लाल और बी. के. थापर के निर्देशन में 1960 के दशक में निरन्तर उत्खनन कार्य किया गया। उत्खनन से दो संस्कृतियों के अवशेष मिले- प्राक् हड़प्पा और हड़प्पा। कालीबंगा की प्राचीनता 4000 ई.पू. तक जाती है शायद यह राजस्थान की प्राचीनतम संस्कृति हैं। लाल व थापर ने इसका काल 2300 ई.पू. से 1800 ई.पू. के मध्य माना हैं। उत्खनन में पाँच स्तर मिले हैं। प्रथम दो स्तर पूर्व हड़प्पा कालीन एवं अन्तिम 3 स्तर हड़प्पा युगीन हैं। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Kalibanga is a famous pre-Harappan site in Rajasthan which is located on the southern bank of Ghaggar in the present Hanumangarh district. Ghaggar was formerly a part of the Saraswati and Drishadvati rivers. Aurel Stein first pointed out this entire site. Amalananda Ghosh discovered it in 1951-52. Thus, Kalibanga culture came to light. Ghosh discovered about 10-12 Harappan culture sites in 1952-53. Ghosh was the first to name it Kalibanga. Since black coloured bangles were found in the largest quantity here. At that time, Ghosh was the Director General of the Archaeological Department of India. He started the important work of its excavation in a systematic manner. Continuous excavation work was done in the 1960s under the guidance of archaeologists B.V. Lal and B.K. Thapar. Remains of two cultures were found from the excavation - Pre-Harappan and Harappan. The antiquity of Kalibanga is 4000 BC. Perhaps this is the oldest culture of Rajasthan. Lal and Thapar have considered its period to be between 2300 BC and 1800 BC. Five levels have been found in the excavation. The first two levels are of the pre-Harappan period and the last 3 levels are of the Harappan period. | ||||||
मुख्य शब्द | कालीबंगा, आद्य-ऐतिहासिक, विरासत, सर्वेक्षण। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Kalibanga, proto-Historical, Heritage, Survey. | ||||||
प्रस्तावना | प्राक् हड़प्पा युगीन अवशेष -
बी.वी. लाल के अनुसार कालीबंगा शुद्धतः ताम्र पाषाणिक पुरा
स्थल हैं यहाँ के निवासी कांसे से भी परिचित हो गये थे। उत्खनन से दो टीले मिले
हैं पूर्वी टीला व पश्चिमी टीला दोनों टीले अलग अलग सुरक्षा प्राचीर से घिरे थे।
दुर्ग (पश्चिमी टीला) का द्विभागीकरण था टीलों की किले बन्दी अत्यन्त दुर्लभ बात
थी। पूर्व हड़प्पा युगीन अवशेषों में कच्ची ईटों के मकान मिले हैं. तन्दूरी चूल्हे
मिले हैं जो ईरान टर्की व इराक के समान हैं यह उक्त देशों के साथ व्यापारिक
संबन्धों को दर्शाता हैं। आजकल तन्दूरी रोटी के प्रचलन को कालीबंगा से जोड़ा जा
सकता है (भारत के संदर्भ में) कालीबंगा के पूर्व हड़प्पा युगीन मृदमांडो में छोटे पैरदार प्याले प्रमुख हैं। भण्डारण के लिए बड़े-बड़े घड़े मिले हैं। एच.डी.
सांकलिया के अनुसार इन सभी पात्रों को चाक पर बनाया गया था। इन पर काले व सफेद
चित्रकारी अंकित हैं चित्रों में फूल, पत्ती, पौधे, वृत्त
हिरन उल्लेखनीय हैं जो पारिस्थितकीय संतुलन को प्रदर्शित करते हैं। कालीबंगा का
प्राकसैधव नगर कच्ची ईटों से निर्मित सुरक्षा प्राचीर से घिरा था। कालान्तर में
राजपूताने में वृहद्रस्तर पर दुर्ग निर्माण सुरक्षा की दृष्टि से होने लगा। जुते
हुए खेत की साक्ष्य प्राक् सैधन्व अवशेषों में प्रमुख है। यह खेत आवास क्षेत्र से
बाहर मिला है इस खेत में उत्तर से दक्षिण की ओर पूर्व से पश्चिम की ओर जोते जाने
के अवशेष मिले हैं। कालीबंगा के आसपास आज भी इसी प्रकार खेतों की जुताई होती हैं।
लाल व थापर के अनुसार खेत की इस प्रकार की जुताई से हल के प्रयोग के साथ ही दो
प्रकार की फसलें चना और सरसों उगाये जाने के अवशेष मिले हैं। एक साथ दो फसलें आज
भी कालीबंगा के आसपास के क्षेत्रों में बोयी जाती है। प्राक् हड़प्पीय कालीबंगा
निवासी एक साथ दो फसले उगा कर उत्पादन को बढ़ाया जिससे नगरीय अथवा हड़प्पा युगीन
कालीबंगा संस्कृति निर्मित हुई होगी। इससे भौतिक जीवन की प्रगति शुरू हुई। प्रस्तर
ब्लेड, मणके, शंख, तांबे की चूड़िया मिट्टी से बना गाडी का पहिया व हड्डी की नोंक प्राक् सैन्धवकार्ल अवशेष है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य एक आद्य
ऐतिहासिक विरासत कालीबंगा का अध्ययन करना है । |
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साहित्यावलोकन | पुरातत्वविद एचडी सांकलिया ने अपनी पुस्तक प्री एण्ड प्रोटो हिस्ट्री इन इण्डिया में लिखा है- The Discovery and careful excavation of a Harappa City per haps a third capital in Rajasthan Seems to clarify and Amplify over Knowledge of the indus civilization. कालीबंगा उत्खनन के विशेषज्ञ विद्वान बीवी लाल ने लिखा है कि कालीबंगा सरस्वती घाटी की रखवाली करने वाली तीसरी प्रान्तीय राजधानी हो सकती है, कालीबंगा के महत्व कों इंगित किया। एचडी सांकलिया लिखते हैं कि The most important data which Kalibanga provides is the insight in to the origin or better earlier phases of the indus civilization. |
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मुख्य पाठ |
कालीबंगा से प्राप्त हड़प्पा संस्कृति के अवशेष - इतिहासविद् आरेल स्टीन एवं अमलानन्द घोष के अनुसार कालीबंगा की हड़प्पा कालीन संस्कृति में प्राक् हड़प् संस्कृति का विस्तार दिखाई देता है। नगर नियोजन - यहाँ से प्राप्त सुरक्षा प्राचीर समान्तर चतुर्भुज आकृति की है। यह आकार हड़प्पा की सुरक्षा प्राचीर का है। यह करीब 3 से 7 मीटर मोटी थी इस पर बुर्ज व अट्टालिकायें भी मिली है। कालीबंगा नगर में तीन मुख्य सड़कें पूर्व पश्चिम की ओर व पाँच मुख्य सड़के उत्तर दक्षिण की ओर मिली है। पक्की हुई सड़कों क अवशेष कालीबंगा से ही प्राप्त हुए है। ये सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। व्यवस्थित व सुनियोजित मकान मिले है। गलियों व सड़कों पर किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं दिखता यह उनका सभ्य व अनुशासित होने का प्रमाण है मकानों के बाहर आयता कार चबूतरें मिले है जो आराम करने के काम आते होगें। मकान कच्ची ईटों व पत्थरों के बने थे। मकानों के अन्दर खुला आंगन गोल कुआ आंगन के तीन ओर 6-7 कमरे होते थे। प्रत्येक घर में पाकशाला व शौचालय भी मिला हैं। मकानों की फर्श अंलकृत ईटों से निर्मित थी जिसका कोई धार्मिक महत्व रहा होगा। इस प्रकार उनके मकान हवाधार रहे साफ सफाई उनकी विशिष्टता रही। अंलकृत एवं टाइल युक्त फर्श कालीबंगा की निजी विशेषता थी। जल निकासी - पुरातत्वविद एच.डी. सांकलिया के अनुसार कालीबंगा संस्कृति से सार्वजनिक नालियों के अवशेष नहीं मिले हैं किन्तु घरों में पेड़ों के तने को कुरेदकर नालियां उपयोग में ली गई थी। जहाँ मकानों के निर्माण में कच्ची ईटों का प्रयोग किय गया वहीं नालियों व स्नानागारों में पक्की ईटों का प्रयोग होता था। गन्दे जल निकासी के लिए कदाचित व्यक्तिशः प्रयास किये जाते होगें। जो उनकी स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को इंगित करता हैं अर्थात उनका स्वच्छता का भाव कितना उच्च था। अग्नि वैदिकायें- निचले नगर के उत्खनन से चबूतरे पर वेदिकाएं मिली हैं इनका निश्चित ही
धार्मिक महत्व रहा होगा। धर्म- उत्खनन से ज्ञात सामग्री से धर्म की प्रकृति स्पष्ट नहीं होती वृषभ की मृण्मूर्तियां और अंगधारी मानव आकृति के आधार पर पशुपति पूजा की ओर संकेत मिलता है। भोजन उत्खनन से ज्ञात होता है कि कालीबंगा निवासी शाकाहारी व मांसाहारी रहे होगें। मुख्य खाद्यान्न गेंहू, जौ व चना रहा होगा। गाय, बैल, भैंस, सुअर, हाथी, ऊंट, गैण्डा, बारहसिंगा, गधा व हिरण से परिचित थे। इनमें से कुछ का प्रयोग भारवाहक के रूप में करते होगें। शवाधान हड़प्पा लोथल व मोहन जोदड़ों की भांति यहां के लोग शवों के गाड़ते थे। उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर गोल शवाधान व आयताकार शवाधान की जानकारी मिलती हैं। आयताकार शवाधानों में शवों को उत्तर की ओर सिर करके लिटाया गया है। सिर की ओर मृदुपात्र रखे मिले है जो कि पुनर्जन्म का द्योतक हैं। आज भी यह परम्परा पूरे उत्तर मिले है जो पुर्नजन्म में विश्वास भारत में प्रचलित है। एच डी सांकलिया के अनुसार कालीबंगा के लोग शवों को जलाते भी थे। शल्य क्रिया - उत्खनन से प्राप्त एक बच्चे की खोपड़ी में छह वृत्ताकार छेद मिले है इसमें सिर
दर्द की बीमारी का इलाज किया गया होगा। यह शल्य चिकित्सा के उन्नत स्वरूप की ओर
ध्यान दिलाता है। मृदभांड कालीबंगा की हड़प्पा युगीन मृदभांड सुन्दर और गाढ़े लाल रंग के हैं इन पात्रों में पैर युक्त तस्तरिया, छिद्रित पात्र, प्याले, व फल सब्जी रखने के पात्र विशिष्ट है। आर एस शर्मा के अनुसार मोहन जोदड़ों हडप्पा व कालीबंगा के उत्खनन से अन्नागार मिले हैं यह आपात स्थिति में काम आते होगें धातु निर्माण यहाँ के निवासी पत्थर के साथ साथ तांबे का प्रयोग करते थे। यहाँ के उत्खनन से तांबे के सर्वाधिक बाणाग्र मिले हैं यद्यपि सर्वाधिक उपकरण पाषाण निर्मित रहे होगें ये तांबे में टिन मिलाकर कांसा बनाने के विधि से भी परिचित थे| भाषा व लिपि बी वी लाल के अनुसार सैन्धव लिपि दांये से बांयी ओर लिखी जाती थी किन्तु कालीबंगा के उत्खनन से Indus Script के अवशेष नहीं मिले। मार्टीमर व्हीलर के अनुसार कालीबंगा की लिपि हड़प्पा की भांति हलाकृतिक मिलती है जो बांयी ओर से दांयी ओर लिखी जाती थी। लेकिन इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका हैं। |
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निष्कर्ष |
वस्तुतः हडप्पा व मोहनजोदड़ों की भांति कालीबंगा भी सिन्धु सभ्यता का प्रमुख केंन्द्र रहा होगा, अंलकृत एवं टाइलयुक्त फर्श, पकी सड़के, जुता हुआ खेत, लकड़ी की नालियां हड़प्पा व मोहन जोदड़ों से प्राप्त नहीं होते साथ ही हड़प्पा व मोहन जोदड़ों से प्राप्त होने वाली सड़को की नालियां एवं मातृ देवी की मूर्तिया कालीबंगा में अनुपस्थित हैं। इसका क्या कारण रहा होगा कहना बड़ा मुश्किल हैं वैसे कालीबंगा विविधता में एकता का अनुपम उदाहरण है। प्रायः हर पुरा स्थल की अपनी निजी विशेषताएं होती है यही बात कालीबंगा पर भी लागू होती हैं। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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