शोध संकलन
ISBN: 978-93-93166-97-5
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प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक स्वरूप का अनुशीलन

 डॉ. कृष्ण कुमार गुप्ता
प्राचार्य
महारानी महिला महाविद्यालय
धौलपुर
  राजस्थान, भारत 

DOI:10.5281/zenodo.14628214
Chapter ID: 19569
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सारांश 

प्रेमचंद भारतीय साहित्य के एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित लेखक थे, जिन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज की विविधताओं और जटिलताओं को गहरे तरीके से उकेरा। उनकी कहानियाँ न केवल मानव मनोविज्ञान और समाज के विभिन्न पहलुओं का प्रतिबिंब हैं, बल्कि इनसे समाज में व्याप्त असमानताओं, उत्पीड़न, और अन्याय को भी उजागर किया गया है। प्रेमचंद ने अपने साहित्यिक कार्यों में समाज के विभिन्न तबकों, जैसे किसानों, मजदूरों, स्त्रियों, और शोषित वर्गों की पीड़ा और संघर्ष को प्रमुखता से चित्रित किया है। प्रेमचंद का साहित्य भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को चित्रित करता है, जिसमें उनका ध्यान समाज की सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ, जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और शोषण की समस्या पर अधिक था। उनकी कहानियाँ समाज के हर वर्ग और उसके संघर्ष को परिलक्षित करती हैं। इस शोधपत्र का उद्देश्य प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक स्वरूप का गहन विश्लेषण करना है, जो उनके साहित्यिक दृष्टिकोण और सामाजिक सुधार की ओर उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।

प्रेमचंद की कहानियों में समाज का चित्रण अत्यधिक वास्तविक है। उनकी कहानियाँ केवल कथा नहीं, बल्कि समाज का गहन अध्ययन भी हैं। वे अपने समय के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए पात्रों के माध्यम से समाज के कमजोर वर्गों की स्थिति को सामने लाते हैं। प्रेमचंद के पात्र अपने संघर्ष और कठिनाइयों से समाज के अभिजात वर्ग की असंवेदनशीलता और उत्पीड़न को उजागर करते हैं। प्रेमचंद के लेखन में शोषण और असमानता के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। उनकी कहानियाँ सामाजिक असमानताओं को चुनौती देती हैं और यह दर्शाती हैं कि कैसे समाज के गरीब, कमजोर और पिछड़े वर्ग शोषण का शिकार होते हैं। प्रस्तुत अध्यायान्तर्गत हिंदी साहित्य के प्रमुख कहानीकार प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक स्वरूप का अनुशीलन प्रस्तुत किया गया है।

मुख्य शब्द: हिंदी साहित्य, सामाजिक स्वरूप, जातिवाद, शोषण, सामाजिक संघर्ष, सामाजिक न्याय

प्रेमचंद का व्यक्तित्व एवं कृतित्व

प्रेमचंद (1880-1936) हिंदी साहित्य के युगप्रवर्तक लेखक माने जाते हैं। मुंशी प्रेमचंद भारतीय साहित्य के महान कथाकार और उपन्यासकार माने जाते हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में व्याप्त सामाजिक असमानताओं के प्रति उनकी जागरूकता भी उनके लेखन का अभिन्न हिस्सा है। प्रेमचंद ने भारतीय ग्रामीण समाज की वास्तविकताओं और उसकी परेशानियों को अपनी कहानियों में जीवंत किया है। प्रेमचंद जी का साहित्यिक योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है और वे हिंदी और उर्दू साहित्य के महानतम लेखकों में माने जाते हैं। उन्होंने भारतीय समाज, उसकी समस्याओं और उसकी जटिलताओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया।

समाज का चित्रण

प्रेमचंद के साहित्य में भारतीय समाज की विभिन्न समस्याओं का विस्तार से चित्रण किया गया है। उन्होंने समाज के हर तबके, विशेषकर गरीब, शोषित और दलित वर्ग की समस्याओं को प्रमुखता दी। उनके लेखन में सशक्त सामाजिक मुद्दे जैसे गरीबी, भेदभाव, बाल विवाह, शिक्षा, धर्म, और राजनीति पर गहरी सोच दिखाई देती है।

रचनाओं का विविधता

प्रेमचंद की रचनाएँ न केवल उपन्यासों और कहानियों में सीमित थीं, बल्कि उन्होंने निबंध, नाटक और निबंध भी लिखे। उनके प्रमुख उपन्यासों में "गबन," "कर्मभूमि," "गोदान," और "निर्बल का अधिकार" शामिल हैं, जो भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं।

भाषा और शैली

प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में सहज और आम बोलचाल की भाषा का उपयोग किया। वे साहित्य को जनता तक पहुँचाने में विश्वास रखते थे, इसलिए उनकी भाषा सरल, सटीक और प्रभावशाली थी। उनकी लेखन शैली संवेदनशील, विचारशील और समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

नैतिकता और आदर्श

प्रेमचंद की रचनाओं में नैतिकता और आदर्श का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। वे मानते थे कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को सुधारना भी होना चाहिए। उनकी कहानियों और उपन्यासों में आदर्शवाद और नैतिक मूल्यों का संरक्षण प्रमुख था।

उपलब्धियाँ और सम्मान

प्रेमचंद की रचनाओं को आज भी व्यापक रूप से पढ़ा और सराहा जाता है। उनकी लेखनी ने समाज में सुधार के लिए एक सशक्त आवाज उठाई। उनका योगदान भारतीय साहित्य को एक नया दिशा देने में महत्वपूर्ण था और आज भी उनकी रचनाएँ शिक्षा, समाजशास्त्र और साहित्य में अध्ययन का प्रमुख विषय मानी जाती हैं।

प्रेमचंद का साहित्यिक प्रभाव

प्रेमचंद का साहित्य भारतीय समाज के प्रति गहरी समझ और प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उनके लेखन ने हिंदी और उर्दू साहित्य को एक नया आयाम दिया। उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं, जैसे सामाजिक अन्याय, शोषण, और मानवाधिकार। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में "गोदान" को भारतीय साहित्य की सबसे प्रभावशाली कृतियों में से एक माना जाता है, जिसमें ग्रामीण भारत की समस्याओं का बेहतरीन चित्रण किया गया है।

प्रेमचंद जी का साहित्य भारतीय समाज के प्रति एक गहरी सोच और संवेदनशीलता का परिणाम है। उनकी रचनाएँ आज भी हमें यह सिखाती हैं कि साहित्य न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह समाज सुधार का एक शक्तिशाली उपकरण भी है। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को नया दृष्टिकोण और पहचान दी। उनकी कहानियों और उपन्यासों में यथार्थवाद और समाजवादी दृष्टिकोण का मिश्रण देखने को मिलता है। वे ऐसे लेखक थे जिन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज में व्याप्त दोषों और असमानताओं को उजागर किया। प्रेमचंद की कहानियाँ महिलाओं की स्थिति को भी प्रमुखता से उठाती हैं। उन्होंने स्त्री के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न को बड़ी गंभीरता से दिखाया। पत्नी और निम्न जाति की स्त्री जैसी कहानियों में उन्होंने स्त्रियों के अधिकारों की अनदेखी और उनके शोषण को उजागर किया है। प्रेमचंद के पात्रों में बहुत सी महिलाएँ हैं जो अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी समाज में सम्मान और पहचान की कमी से जूझती हैं।

प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में मानवता और नैतिकता की बात की है। उनके पात्र कभी-कभी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और समाज के दबावों के कारण गलत निर्णय लेते हैं, लेकिन अंततः प्रेमचंद उनके अंतर्मन में नैतिकता और समाज के प्रति संवेदनशीलता की ज्योति को उजागर करते हैं। ईदगाह में हामिद का अपने दादी के लिए प्यार और तर्पण उसकी नैतिक ऊचाई को दर्शाता है, जो एक छोटे बच्चे से अपेक्षित नहीं होता।

प्रेमचंद की कहानियाँ समाज के वास्तविक स्वरूप को उजागर करती हैं। वे केवल कथा कहने तक सीमित नहीं रहते, बल्कि समाज की विसंगतियों और असमानताओं पर गहरी टिप्पणी करते हैं। उनकी कहानियाँ आज भी समाज में व्याप्त असमानता, शोषण और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष का संदेश देती हैं। प्रेमचंद का लेखन न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर भी प्रकाश डालता है, जिससे पाठक सामाजिक परिवर्तनों की दिशा को समझ सकें।

प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक स्वरूप का वर्णन

"कफन", "गोदान", "ठाकुर का कुआं", "दो बैल", "ईदगाह", "बड़े घर की बेटी", आदि कहानियों के माध्यम से प्रेमचंद ने सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समस्याओं को अत्यंत संवेदनशीलता से चित्रित किया है। प्रेमचंद की कहानियाँ सामाजिक संरचना की खामियों, जैसे जातिवाद, आर्थिक विषमताएँ, और शोषण को उजागर करती हैं। उनकी कहानियों में समाज के विभिन्न वर्गों का चित्रण किया गया है, विशेष रूप से निम्न और मध्यवर्गीय समाज की परेशानियाँ। प्रेमचंद की कहानियों में भारतीय समाज का यथार्थ चित्रण बहुत गहराई और संवेदनशीलता के साथ किया गया है। उनकी रचनाएँ समाज के विभिन्न वर्गों, उनकी समस्याओं, संघर्षों, और भावनाओं का ईमानदार और सजीव वर्णन प्रस्तुत करती हैं। उनके साहित्य में सामाजिक स्वरूप के निम्नलिखित पहलुओं को प्रमुखता से देखा जा सकता है:

ग्रामीण जीवन का चित्रण

  1. प्रेमचंद की कहानियाँ मुख्य रूप से भारतीय गाँवों की पृष्ठभूमि पर आधारित होती हैं। वे किसानों की दुर्दशा, ज़मींदारी प्रथा, गरीबी, शोषण, और सामाजिक कुरीतियों को उजागर करती हैं।
  2. "पूस की रात" में किसान हल्कू की गरीबी और कष्टपूर्ण जीवन का वर्णन है।
  3. "दो बैलों की कथा" में पशु-प्रेम और किसानों की संघर्षशीलता की झलक मिलती है।

सामाजिक भेदभाव और अन्याय

  1. प्रेमचंद ने जाति, वर्ग, और लिंग आधारित भेदभाव के प्रति अपनी कहानियों में तीव्र विरोध व्यक्त किया है।
  2. "सद्गति" कहानी में जाति आधारित अत्याचार और दलित समाज की पीड़ा को दर्शाया गया है।
  3. "ठाकुर का कुआँ" में अछूतों की पीड़ा और उच्च वर्ग के अन्याय को उजागर किया गया है।

महिला सशक्तिकरण और समस्याएँ

  1. प्रेमचंद ने अपने समय की महिलाओं की स्थिति, उनके संघर्ष, और समाज में उनकी भूमिका को भी प्रमुखता दी।
  2. "गुल्ली डंडा" में बचपन की यादों और महिला पात्रों की मजबूती दिखती है।
  3. "निर्मला" उपन्यास और अन्य कहानियाँ महिलाओं की त्रासदी और समाज की रूढ़िवादिता को उजागर करती हैं।

आर्थिक शोषण और वर्ग संघर्ष

  1. प्रेमचंद ने गरीबों और अमीरों के बीच आर्थिक असमानता और इसके परिणामस्वरूप होने वाले संघर्षों का यथार्थवादी चित्रण किया है।
  2. "कफन" में गरीबी के कारण मानवीय संवेदनाओं के ह्रास का मार्मिक चित्रण है।
  3. "नमक का दरोगा" ईमानदारी और नैतिकता की महत्ता को प्रस्तुत करती है।

सामाजिक कुरीतियों का विरोध

  1. प्रेमचंद की कहानियाँ बाल-विवाह, दहेज प्रथा, अंधविश्वास, और अन्य सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करती हैं।
  2. "बालक" कहानी में बाल विवाह की समस्या को दिखाया गया है।
  3. "बड़े घर की बेटी" में पारिवारिक संबंधों और मर्यादा को केंद्र में रखा गया है।

प्रेमचंद की कहानियों एवं कथा साहित्य से सम्बंधित पूर्व प्रकाशित शोध अध्ययन का पुनरावलोकन

कई शोधकर्ताओं ने प्रेमचंद की कहानियों पर विस्तृत अध्ययन किया है। उनके कार्यों का विश्लेषण विभिन्न दृष्टिकोणों से किया गया है, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और यथार्थवादी दृष्टिकोण शामिल हैं। पूर्व प्रकाशित शोधों में यह दिखाया गया है कि प्रेमचंद ने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय समाज की समस्याओं को सामने रखा और उन्हें हल करने का आह्वान किया। प्रेमचंद के कथा साहित्य पर कई शोधपत्रों और लेखों का योगदान हुआ है, जो उनके लेखन के विविध पहलुओं को समझने में मदद करते हैं। प्रेमचंद के कथा साहित्य पर शोधपत्रों में अक्सर सामाजिक यथार्थवाद, मानवतावाद, हिंदी साहित्य में योगदान, संस्कृति और परंपरा आदि।

नीलम (2019) ने अपने शोधपत्र "हिंदी साहित्य में प्रेमचंद का योगदान" के अंतर्गत प्रेमचंद की रचनाओं में किसान, स्त्री, गरीब और श्रमिकों के जीवन का मार्मिक चित्रण किया है तथा साथ ही उनके जीवन पर आधारित अनेक कहानियों और उपन्यासों का विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है।

शर्मा, अर्चना (2021) का शोधपत्र "वृद्ध विमर्श के आईने में प्रेमचंद का कथा साहित्य" इस तथ्य की पुष्टि करती हैं कि प्रेमचंद की कहानियां जैसे- 'बेटों वाली विधवा', पंच परमेश्वर' आदि वृद्धजनों की अनकही समस्याओं और उनकी दयनीय दशा को प्रतिबिंबित करती हैं।

शर्मा, सारिका (2022) ने अपने शोधपत्र "मुंशी प्रेमचंद का हिंदी साहित्य में योगदान" के अंतर्गत उल्लेख किया है कि प्रेमचंद आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने अपने समय में रहे। किसान जीवन के यथार्थवादी चित्रण में प्रेमचंद हिंदी साहित्य में अनूठे और लाजबाब साहित्यकार हैं। प्रेमचंद का कथा साहित्य जितना समकालीन परिस्थितियों पर खरा उतरता है उतना ही आज भी है। 

दास, जोसफ़ (2024) अपने शोध पत्र "प्रेमचंद का साहित्य, साहित्यिक विशेषताएं एवं  जीवनमूल्यों का विश्लेषणात्मक अध्ययन" के अंतर्गत लिखते हैं कि प्रेमचं द का साहित्य यथार्थवाद और सामाजिक सुधार की भावना से ओतप्रोत है। उनकी रचनाएँ ग्रामीण भारत की समस्याओं, शोषण, गरीबी, और सामाजिक अन्याय पर प्रकाश डालती हैं। प्रेमचंद की साहित्यिक विशेषताएं उनके पात्रों की वास्तविकता, संवाद की स्वाभाविकता और कथा की सरलता में प्रकट होती है।  उनके जीवन मूल्यों में मानवीयता, न्याय और करुणा प्रमुख हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ "गोदान," "गबन," और "निर्मला" हैं जो समाज की जटिलताओं और मानवीय संवेदनाओं का सजीव चित्रण करती हैं। प्रेमचंद का साहित्य समाज सुधार के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

मांढरे, सावित्री सूर्यकांत (2024) ने अपने अध्ययन "मुंशी प्रेमचंद के कहानी साहित्य में चित्रित वृद्ध विमर्श" के अंतर्गत पत्र प्रेमचंद की कहानियों में वृद्ध पात्रों की स्थिति और उनसे संबंधित सामाजिक मुद्दों का विश्लेषण किया है। उनका अध्ययन प्रेमचंद द्वारा लिखित 'बेटोंवाली विधवा' जैसी कहानियों का विशेष उल्लेख करता है।

शोध अध्ययनों का विश्लेषण एवं समीक्षा

प्रेमचंद के साहित्य पर किए गए अध्ययन मुख्य रूप से उनके सामाजिक विचारों और उनकी कहानियों में सामाजिक यथार्थ का विश्लेषण करते हैं। इन अध्ययनाओं में प्रेमचंद की कहानियों के माध्यम से भारतीय समाज की जटिलताओं और असमानताओं को समझाने की कोशिश की गई है।

अनुसंधान अंतराल

हालांकि प्रेमचंद पर कई शोध किए गए हैं, फिर भी उनकी कहानियों में छिपे गहरे सामाजिक स्वरूप और उनके सामाजिक दृष्टिकोण पर और अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है।

उद्देश्य

  1. हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद के स्थान और योगदान को प्रस्तुत करना।
  2. मुंशी प्रेमचंद के कथा साहित्य पर संक्षिप्त समीक्षा करना।
  3. प्रेमचंद की कहानियों की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालना।
  4. प्रेमचंद की कहानियों में प्रस्तुत एवं अभिव्यक्त सामाजिक स्वरुप को उल्लेखित करना।

प्राक्कल्पना

  1. कथा साहित्य हिंदी साहित्य की अनुपम विधा है।
  2. मुंशी प्रेमचंद का कथा साहित्य समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण है।
  3. प्रेमचंद की कहानियों में तत्कालीन समाज की बुराइयों का यथार्थ चित्रण है।
  4. प्रेमचंद की कहानियां सामाजिक स्वरुप के चित्रण के साथ-साथ सामाजिक बुराइयों के निदान हेतु संदेश भी देती हैं।

शोध प्ररचना एवं शोध पद्धति

प्राथमिक एवं द्वितीयक तथ्य आधारित एवं वैज्ञानिक प्रकृति से ओतप्रोत प्रस्तुत शोध अध्ययन विवरणात्मक लेख है जिसके अंतर्गत मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में प्रस्तुत सामाजिक स्वरुप का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। इस अध्ययन में सामग्री का चयन प्रेमचंद की कहानियों से किया गया है, और उनका गहन विश्लेषण किया गया है। इस शोध में तुलनात्मक विधि, दस्तावेजी अध्ययन और आंतरिक विश्लेषण पद्धति का प्रयोग किया गया है।

वर्तमान में प्रेमचंद की कहानियों की प्रासंगिकता

प्रेमचंद की कहानियाँ आज भी समाज के विभिन्न पहलुओं को समर्पित हैं और उनका संदेश आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उनका साहित्य आधुनिक भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाली सामाजिक समस्याओं के समाधान की दिशा में मार्गदर्शन करता है। उनकी कहानियाँ भारतीय समाज की सच्चाईयों, विशेषतः ग्रामीण जीवन, सामाजिक विषमताओं और मानवीय संवेदनाओं को सजीव रूप में प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में साहित्य रचा, और उनकी कहानियाँ आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक मानी जाती हैं।

निष्कर्ष

प्रेमचंद की कहानियाँ भारतीय समाज के यथार्थ को उजागर करती हैं। उन्होंने समाज के शोषित और पीड़ित वर्गों को अपनी कहानियों का केंद्रीय पात्र बनाया। उनके साहित्य ने न केवल भारतीय समाज की सामाजिक संरचना पर प्रश्न उठाए, बल्कि समाज में बदलाव की आवश्यकता की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। प्रेमचंद की कहानियाँ न केवल अपने समय का दर्पण हैं, बल्कि वे आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी लेखनी में यथार्थ और आदर्श का अद्भुत संतुलन मिलता है। उनका साहित्य सामाजिक सुधार, मानवीय मूल्यों और समानता के प्रति प्रेरित करता है। उनकी कहानियों ने भारतीय साहित्य में युगांतरकारी परिवर्तन लाए हैं।

प्रेमचंद की कहानियाँ और तत्कालीन सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य

प्रेमचंद की कहानियों में तत्कालीन भारतीय समाज की असमानताएँ, गरीबी, जातिवाद और धार्मिक भेदभाव जैसे मुद्दे प्रमुख रूप से चित्रित होते हैं। उनके लेखन ने समाज के गरीब और शोषित वर्ग की आवाज़ को सामने लाया।

प्रेमचंद के तत्कालीन सामाजिक परिदृश्य की प्रमुख विशेषताएँ

उनके समय में भारतीय समाज में उच्च और निम्न वर्गों के बीच बड़ी खाई थी। जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और महिलाओं की स्थिति प्रमुख सामाजिक समस्याएँ थीं। प्रेमचंद की कहानियाँ इन समस्याओं को उजागर करती हैं और समाज में सुधार की आवश्यकता को सामने लाती हैं।

संदर्भ

  1. दास, जोसफ़. "प्रेमचंद का साहित्य, साहित्यिक विशेषताएं एवं  जीवनमूल्यों का विश्लेषणात्मक अध्ययन". इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ क्रिएटिव रिसर्च थॉट्स., 2024, 12(5). 
  2. मांढरे, सावित्री सूर्यकांत. "मुंशी प्रेमचंद के कहानी साहित्य में चित्रित वृद्ध विमर्श". इंटरनेशनल जर्नल फॉर मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च (IJFMR)., 2024, 6(1).
  3. नीलम. हिंदी साहित्य में प्रेमचंद का योगदान. कॉसमॉस: जर्नल ऑफ आर्ट्स एंड ह्यूमैनिटीज., 2019, 8(1). 
  4. शर्मा, अर्चना.  "वृद्ध विमर्श के आईने में प्रेमचंद का कथा साहित्य". इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिसर्च इन हिंदी., 2021 3(3):45_46
  5. शर्मा, सारिका (2022). "मुंशी प्रेमचंद का हिंदी साहित्य में योगदान".जर्नल ऑफ़ इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज एंड इनोवेटिव रिसर्च., 2022, 9(5).