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जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण ISBN: 978-93-93166-62-3 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
'पर्यावरण चेतना' के संदर्भ में काजल सूरी का नाटक 'धरा रह रह के पुकारेगी' |
डॉ. बंदना ठाकुर
सहायक प्राध्यापक
हिंदी विभाग
जम्मू विश्वविद्यालय
जम्मू भारत
पल्लवी देवी
शोधार्थी
हिंदी विभाग
जम्मू विश्वविद्यालय
जम्मू, भारत
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DOI:10.5281/zenodo.14961793 Chapter ID: 19805 |
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भूगोल का सबसे महत्वपूर्ण अंग है- पर्यावरण। पर्यावरण जैविक तथा अजैविक तत्वों के योग से निर्मित वह तंत्र है, जिसके अंतर्गत संपूर्ण सृष्टि समाहित है। जैविक तत्वों में मनुष्य पेड़ - पौधे, जीव - जंतु तथा सूक्ष्म जीव शामिल हैं वहीं अजैविक तत्वों में प्रकाश, वायु, मिट्टी, पर्वत, नदियां, तापमान, ऊर्जा, अग्नि, वायुमंडलीय गैसें इत्यादि सम्मिलित हैं। 'पर्यावरण' संस्कृत के आवरण में 'परि' उपसर्ग लगने से बना है। इसका पुराना अर्थ तो आवरण या पर्दा ही है ; परंतु आजकल इसमें एक नई स्थिति का आशय प्रकट करने वाला अर्थ भी लग गया है। यह परिस्थिति की तुलना में कुछ अधिक विस्तृत क्षेत्र का और परिवेश की तुलना में कुछ परिमित या सीमित क्षेत्र का सूचक है। इसमें किसी ऐसी विशिष्ट काल अवधि , घटना - चक्र, जन- समाज, स्थल आदि का भाव भी निहित है, जिसकी कोई पृथक और स्वतंत्र सत्ता होती है और जिसका मनुष्य की जीवनचर्या और मन पर अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है।"[1] सामान्य अर्थ में पर्यावरण से तात्पर्य उन समस्त स्थितियों, दिशाओं और अवस्थाओं से है जो मानव और जीव-जंतुओं को चारों ओर से घेरे हुए हैं। पर्यावरण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से मनुष्य और पृथ्वी के समस्त प्राणियों के दैनिक जीवन को विशेष रूप से प्रभावित करता है। पर्यावरण मनुष्य को प्रकृति से विरासत में मिला वह रक्षा कवच है जो उसके आसपास के वातावरण को स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। आज मानवीय जीवन विज्ञान और तकनीकी ज्ञान से बुरी तरह उलझ चुका है । ऐसे समय में मानव और उसके पास - परिवेश की सौम्यता का न्यून होते जाना आवश्यक ही आश्चर्यजनक तथा चिंतनीय विषय है। अपनी भौतिक लालसाओं की पूर्ति हेतु मनुष्य प्रकृति की इस अमूल्य देन को क्षति पहुंचाने से पीछे नहीं हट रहा। वह पर्यावरण को असंतुलित करने का कार्य करता जा रहा है। जिस कारण विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का दंश उसे आज झेलना पड़ रहा है। इसी कारण भूकंप, ज्वालामुखी, सुनामी, भूस्खलन, हिमस्खलन, मृदा अपरदन जैसी प्राकृतिक आपदाएं प्रतिदिन कहीं ना कहीं देखने को मिल रही हैं ।वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश के लोगों ने भयानक प्राकृतिक आपदा का सामना किया। बादल फटने से बाढ़ और भूस्खलन के कारण यहां 341 लोगों की मौत हुई। वहीं अनेक पशुओं ने भी अपने प्राण गंवाए और विभिन्न प्रकार के नुकसान प्रदेश को खेलने पड़े। इस तरह की बहुत सी घटनाएं उत्तराखंड में घटित हुई। वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ और भूस्खलन देश की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक थी, जिसे आज तक कोई भी नहीं भुला पाया। इस त्रासदी में कई घर बर्बाद हुए और हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई। देश की राजधानी दिल्ली में भी जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम तेजी से बदलता है। दिल्ली में खत्म होती गर्मियों पर किए गए रिसर्च में बताया गया की जलवायु परिवर्तन में शहर को पहले की अपेक्षा ज्यादा गर्म बना दिया है, जिससे सर्दियों की शुरुआत के बावजूद रात के समय भी तापमान कम नहीं हो रहा। जिस कारण लोगों को कूलर और एसी की ज्यादा आवश्यकता पड़ रही है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पर्यावरण प्रदूषण की व्यापक समस्या हमें यह सोचने पर विवश करती है कि आखिर क्यों हमारा प्राकृत और सहज जीवन असंतुलित हो उठा, क्यों औद्योगिकीकरण और विकास के मुद्दे हमारे ऊपर और प्रकृति के ऊपर हावी होते जा रहे हैं? पर्यावरण असंतुलन का प्रभाव हर जगह बढ़ता जा रहा है और इसीलिए पर्यावरण संरक्षण और उसे संतुलित बनाए रखना आवश्यक है जिसके लिए लोगों में चेतना लाने की चेष्टा की जानी चाहिए। चेतना शब्द से अभिप्राय ज्ञान, बुद्धि, जागृति, समझ आदि से है। पर्यावरण संरक्षण हेतु मानव की जागरूक मानसिकता और उसके असंतुलित स्वरूप को संतुलित करने हेतु मनुष्य द्वारा किए जाने वाले प्रयास ही पर्यावरण चेतना कहलाते हैं। पर्यावरण संरक्षण वर्तमान समय का सबसे गंभीर मुद्दा है, जिस पर चिंतन मनन करना प्रत्येक सामाजिक प्राणी का कर्तव्य है। इस कर्तव्य को निभाने में अधिकांश साहित्यकारों ने अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है। हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में पर्यावरण संरक्षण हेतु चिंतन - मनन का विषय साहित्यकारों के केंद्र में है। कविता, कहानी, उपन्यास के साथ साथ नाटक में भी इस प्रकार का लेखन हो रहा है। जिनमें नाटककार काजल सूरी द्वारा रचित हिंदी नाटक "धरा रह रह के पुकारेगी" को ले सकते हैं। यह एक रंग नाटक है,जिसकी रचना इन्होंने सन् 2023 में की है। इस नाटक के माध्यम से इन्होंने तीव्र गति से बढ़ रहे वनोन्मूलन पर चिंतन करते हुए समाज में पर्यावरण सहित विशेष रूप से वृक्षों के संरक्षण हेतु चेतना जगाने का भरसक प्रयास किया है। "वृक्ष प्रकृति की अनमोल धरोहर है कुछ भी ना लेकर यह वृक्ष मानव जाति और पास - परिवेश को बहुत कुछ प्रदान करते हैं"[2] वृक्षों की बेहिसाब कटाई से मनुष्य धरती की हरियाली को समाप्त करता जा रहा है , जिसके कारण धरती का तापमान तीव्रता से बढ़ रहा है। 'धरती को बुखार हो जाएगा' वाक्य नाटक में विशेष रूप से प्रयोग किया गया है ताकि गांव के कम पढ़े-लिखे लोगों में भी वनोन्मूलन के दुष्परिणामों के प्रति चेतना जागृत हो सके। पुनर्जन्म में विश्वास का सहारा लेते हुए नाटय लेखिका ने इस नाटक का आरंभ और अंत किया है जबकि नाटक की मुख्य कथा फ्लैशबैक की तकनीक से आगे बढ़ती है। विक्रम जिसका पिछले जन्म में नाम विनोद होता है, वह अपने दोनों जन्मों में पहाड़ी इलाके में एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ ऑफिसर बनकर आता है। इस पहाड़ी इलाके का सबसे ताकतवर व्यक्ति है - राजा ठाकुर, जो जंगलों से पेड़ कटवा कर लकड़ी का अवैध कारोबार करता है इसी वजह से विनोद और राजा ठाकुर दोनों में अनबन शुरू हो जाती है। राजा ठाकुर की बेटी रचना जिसका पुनर्जन्म में नाम सरिता है, वह और विनोद दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं। विनोद रचना को बताता है कि पेड़ों के साथ हमारा आत्मीय संबंध है। वे हमें विभिन्न प्रकार के फायदे पहुंचाते हैं, जिस बारे में वह उसे बताता हुआ कहता है कि "जानती हो रचना यह जंगल, यह पेड़, हमारी धरती के फेफड़े हैं, ये हमारी हवा को शुद्ध करते हैं, हमें शुद्ध पानी और शुद्ध भोजन देते हैं, हमें नई ताकत और ताजगी की देते हैं और मानसिक तौर से भी हमें शांति का अनुभव करवाते हैं"[3] और रचना हंसते हुए उसे बोलती है, " तुम्हारा मतलब..., जहां हरियाली वहां खुशहाली..."[4] अर्थात विनोद उसे समझाने का प्रयास करता है कि यह पेड़ ही धरती का गहना हैं , इन्हीं से धरती हरी-भरी और वातावरण स्वच्छ रहता है। इंसान सांस भी तभी ले पाएगा जब पेड़-पौधे होंगे। इस संदर्भ में विनोद कहता है,"पेड़ एक न कटने पाए, हरियाली न मिटने पाए।"[5] पेड़ ना होंगे तो हरियाली नहीं होगी। प्राकृतिक जीवन हमें शांति और स्फूर्ति का अनुभव करवाता है। विनोद और रचना दोनों मिलकर गांव के लोगों को जागरुक करते हैं कि पेड़ ही उनका जीवन हैं । यदि वे लोग यह पेड़ काटने देंगे या काटेंगे तो मौसम में भी बहुत बदलाव आ जाएगा। पेड़ काटने से धरती का तापमान बढ़ेगा और खूब गर्मी हो जाएगी। फसल को भी समय से पानी नहीं मिलेगा क्योंकि समय पर बारिश नहीं होगी और उसे समय बारिश होने से फसल खराब हो जाएगी। पेड़ रहेंगे तो समय पर बारिश होगी। गांव का जीवन नामक व्यक्ति उनकी बात को समझता है, जिस संदर्भ में वह लोगों को जागरूक करने का प्रयास करता हुआ कहता है, "जानते हो पिछले साल कब बारिश आई? ठेठ सितंबर में। ऐसा कभी होते देखा है? मई जून की बारिश मार्च और सितंबर में हो रही है"[6] वनोन्मूलन संरक्षण के प्रति चेतना विनोद और रचना समस्त गांववासियों में लाने में सफल तो होते हैं लेकिन राजा ठाकुर उनकी किसी भी बात का समर्थन नहीं करता और गैर कानूनी तरीके से पेड़ कटवाने की अपनी ज़िद पर अड़ा रहता है। अपनी इस स्वार्थ पूर्ति के लिए वह अपने एक डॉक्टर मित्र को जंगल ले आता है और उसे कहता है कि यह लिख दे की पेड़ काटने से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा। जिससे वह फॉरेस्ट ऑफिसर को अपने रास्ते से हटा सके और सरलता से इन पेड़ों को कटवा पाए। डॉक्टर स्वयं भी इसी इलाके का निवासी है और पर्यावरण के प्रति चिंतित भी है। इसलिए वह जानता है कि उसके इस तरह अवैध तरीके से पेड़ों को काटने की अनुमति दिलवाने से पर्यावरण को कितनी क्षति पहुंचेगी। यही बात वह अपने मित्र राजा ठाकुर को समझने का प्रयत्न करता है ताकि वह भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक हो-"तुम समझ नहीं रहे हो दोस्त, यहां का वातावरण, प्रदूषण की सीमा लांघ रहा है। कार्बन डाइऑक्साइड गैस, वातावरण में बढ़ती ही जा रही है, और उसे दूषित कर रही है।"[7] राजा ठाकुर अपने मित्र का कहा भी नहीं मानता और अपनी बात पर अड़ा रहता है। पर्यावरण को असंतुलित करने के इस कार्य में जब कोई भी उसका समर्थन नहीं करता तब वह दूसरे गांव से दुगुनी मजदूरी पर मजदूरों को लाकर रात में पेड़ कटवाने का निश्चय करता है। पिता के इस कृत्य पर रचना फिर से उन्हें जागरूक करती हुई कहती है कि "डैडी मैं आपसे हाथ जोडकर विनती करती हूं की पेड़ मत काटिए, पेड़ नहीं होंगे तो सांसें कहाँ से लाएंगे आप।"[8] नाटक में रचना एक संवेदनशील पात्र है।उसे पता है कि पर्यावरण का संतुलित बने रहना हमारे लिए कितना जरूरी है। उसी की तरह गांव वाले भी पर्यावरण के प्रति जागृत है और वे ठाकुर का विरोध करते हैं - "पेड़ नहीं काटने देंगे हम,पेड़ काटकर इस धरती को बंजर मत बनाओ, नहीं, हम पेड़ नहीं काटने देंगे ।"[9] इस विरोध का कोई भी सकारात्मक प्रभाव अपने पिता पर ना पड़ते देख रचना पेड़ से लिपट जाती है और कहती है की वह प्रत्येक पेड़ से लिपट कर उसे बचाएगी। उसी का सहयोग करते हुऎ विनोद भी पेड़ों से लिपट जाता है पर राजा ठाकुर इस पर भी पसीजते नहीं।इस विरोध में रचना और विनोद दोनों अपने प्रणों की आहूति दे देते हैं। रचना अपनी अंतिम सांस लेटे हुऎ भी पिता से कहती है "पेड़ नहीं कटने दिया डैडी मैंने , यह पेड़ नहीं कटने दिया।"[10] रचना और विनोद दोनों मरते हुऎ फिर जन्म लेकर पेड़ों की रक्षा करने की कसम खाते हैं वहीं इस घटना में अपनी बेटी की मृत्यु से आहत होकर राजा ठाकुर पागल हो जाता है और अपनी आखिरी सांस तक वनों की रक्षा करने का प्रण लेता है। जब दोबारा से पुनर्जन्म लेकर विनोद और रचना उसी जगह आते हैं तो वह उन्हें देखकर अशचार्य चकित रह जाता है और उन्हें उनके पिछले जन्म की पूरी कहानी सुनाता हुआ पश्चाताप से व्याकुल होकर उनसे कहने लगता है कि "पागलपन में भी मैंने किसी को एक भी पेड़ नहीं काटने दिया। किसी की हिम्मत ही नहीं की मेरे होते इस जंगल में से एक भी पेड़ काट सके। यह जंगल तुम्हारी अमानत है इसे इतने वर्षों से संभाल कर रखा है मैंने।"[11] इस प्रकार देखें तो काजल सूरी का नाटक धरा रह रहा के पुकारेगी पर्यावरणीय चेतना से पूर्ण रूप से ओतप्रोत है। इन्हाेंने विनोद और रचना के साथ-साथ कम पढ़े लिखे ग्रामीण वासियों को माध्यम बनाकर पाठक और दर्शक वर्ग में पर्यावरण और वनोनमूलन के संरक्षण हेतु चेतना जगाने का सफल प्रयास किया है। आज के समय में, जब पर्यावरण संकट अपने चरम पर है, इस तरह के नाटकों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। ये नाटक हमें याद दिलाते हैं कि पर्यावरण की रक्षा करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है और हमें इसके लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। ये नाटक समाज को पर्यावरण के प्रति जागरूक करते हैं और उन्हें प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संदर्भ ग्रन्थ सूची
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