Chronicles on Development and Their Related Aspects
ISBN: 978-93-93166-57-9
For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8

राष्ट्रीय आंदोलन में बिलासपुर की भूमिका: गांधीवादी आंदोलन के संदर्भ में

 डॉ. पूजा शर्मा
सहायक प्राध्यापक
इतिहास विभाग
शासकीय बिलासा कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बिलासपुर  छत्तीसगढ़, भारत  

DOI:10.5281/zenodo.15101005
Chapter ID: 19899
This is an open-access book section/chapter distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में क्षेत्रीय स्तर की घटनाओं का विशेष महत्व है। देशव्यापी आंदोलन को शक्ति विभिन्न क्षेत्रीय घटनाओं से प्राप्त हुई। छत्तीसगढ़ राज्य भी इससे अछूता नहीं रहा, मुख्य धारा के प्रत्येक आंदोलन में छत्तीसगढ़ ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। डॉ. रामकुमार बेहार ने लिखा हैं किसी राष्ट्रीय आंदोलन के प्रवाह की खोज किसी एक प्रांत अथवा राज्य की सीमाओं के भीतर करना वैसा ही दुस्साहस होगा जैसा किसी सरिता की जलधारा को उस समुद्र से विलग करना, जिसको कि वह आपूरित करती है। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के महायज्ञ में देश के प्रत्येक भाग की जनता ने अपनी आहूति दी। राष्ट्रीय आंदोलन में छत्तीसगढ़ की भूमिका भी कम नहीं हैं।[1]
बिलासपुर छत्तीसगढ़ राज्य का दूसरा सबसे बड़ा जिला है यह छ.ग. की संस्कारधानी और न्यायाधानी के रूप में जाना जाता है और महत्वपूर्ण स्थल है। पुरातत्व, इतिहास, कला, साहित्य, भाषा एवं जनजातीय विशिष्टता आदि की दृष्टि से बिलासपुर जिला अपनी एक अलग पहचान रखता है। देशव्यापी राष्ट्रीय आंदोलन और छत्तीसगढ़ के आंदोलन में बिलासपुर ने महत्वपूर्ण भूमिका, निभाई, यहां के स्वतंत्रता सेनानियों ने उदारवादी, उग्रवादी, क्रांतिकारी, गांधीवादी एवं सैन्यवादी सभी धाराओं में अपना योगदान किया।
बिलासपुर जिले में राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रदूत ई राघवेन्द्र राव, कुंजबिहारी अग्निहोत्री एवं बैरिस्टर छेदीलाल थे। 1902 में बिलासपुर में जिला कांग्रेस का सम्मेलन आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता बी.एम.मुंजे ने की। राघवेन्द्र राव की शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई थी वे ‘यंग इंडिया’ के संबंधित था सूरत अधिवेशन में उन्होंने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे तिलक के करीबी और गरम-नरम दल को एकीकृत करना चाहते थे। ई राघवेन्द्र राव बिलासपुर म्युनिसिपल्टी कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इसका उपयोग उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के प्रसार हेतु किया।[2] ई. राघवेन्द्र राव के नेतृत्व में जिला कौंसिल एवं म्युनिसिपल्टी ने अनेक नियम पारित किए कार्यक्रम में प्रारंभ में झण्ड वंदन, वंदेमातरम गायन, खादी की अनिर्वायता आदि।[3] कई राष्ट्रवादियों को ई. राघवेन्द्र राव ने पुलिस अव्याचारों के बचाया। जफर अली बिलासपुर जिला हेडक्वार्टर के मजिस्ट्रेट थे। इनकी मुठभेड उग्रवादी ताराचंद्र से हुई ताराचंद की जमानत राव साहब ने ली।[4] ताराचंद ने बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन के समय छात्रों एवं मजदूरों का संगठन बनाया, राजनीतिक जागरूकता व शिक्षा जागृत करने वाले वह बिलासपुर के प्रथम कर्मकर्ता माने जाते है।[5] बिलासपुर में राष्ट्रवाद का उदय एवं गांधीवादी आंदोलन के प्रारंभ होने के पूर्व बैरिस्टर छेदीलाल, ऋबकराव देहनकार, कुंजबिहारी अग्नि होत्री का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। 
बिलासपुर में होमरूल आंदोलन की शाखायें स्थापित की गई इसमें नागेन्द्रनाथ डे, मुंथी अकबर खां, ठाकुर मनमोहन सिंह, त्रयंबकराव डेहनकर, गजाधर साव, गोंविद प्रसाद तिवारी एवं अंबिका प्रसाद वर्मा की भूमिका थी। युदंनंदन प्रसाद वर्मा ने बाल समाज पुस्तकालय एवं ठाकुर छेदीलाल ने सेवा समिति बनाकर राष्ट्रीय जागरण का कार्य किया।[6] कांग्रेस के अधिवेशन एवं कार्यक्रमों में भाग लेने के बाद बिलासपुर के नेताओं में उदारवादी एवं उग्रवादी दोनों ही प्रवृत्तियों के लोग थे। 
1920 में असहयोग आंदोलन प्रांरभ हुआ निर्धारित कार्य बिलासपुर में लागू किया गया। बिलासपुर के वकालत का त्याग करने वालों में ई. राघवेन्द्र राव एन.आर. खान खोजे, बैरस्टिर छेदीलाल आदि प्रमुख थे। बद्रीनाथ साव के मकान में राष्ट्रीय विद्यालय खोला गया, यहां शिक्षक की भूमिका यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव वे निदाई।[7] गंगाधर गोपाल राव दीक्षित ने नायब तहसीलदार का पद त्याग दिया, हाफिज हाकीम खां, बजीर खां एवं अकबर खां ने खपरगंज स्कूल के मैंदान में सार्वजनिक सभा की। जिसमें खिलाफत आंदोलन का संचालन किया गया।[8] कठघोरा के मनोहर लाल शुक्ल, सेठ नौबत राम, मुंगेली के गणपति लाल, सीपत के रूपचंद, रतनपुर के बाबा पुरूषोत्तम दास, जांजगीर के हाफिज खान, बिलासपुर के सिदेश्वर त्रिवेदी, सिद्ध गोपाल तिवारी, बशीनाथ गंगाप्रसाद तिवारी ने खादी प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक स्वदेशी खादी स्टोर नार्मल स्कूल रोड़ में कैलाश सक्सेना सर्वदत्त बाजपेयी एवं अमर सिंह सहगल द्वार संचालित किया गया।[9] मद्यपान के बहिस्कार हेतु यहां धरने दिए गया। पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘कर्मवीर’ समाचार पत्र के माध्यम से छात्रों को स्कूल कालेज बहिस्कार की प्ररेणा दी। गांव एवं शहरों में चरखे बाटें गए ताकि विदेशी कपड़ों का बहिस्कार हो। देवतादीन तिवारी ने खादी स्टोर खोला। गांधी जी की रायपुर यात्रा में बिलासपुर में तिलक स्वराज्य फंड के लिए दान किया। दिसम्बर 1921 में रतनपुर में क्षेत्रीय कांग्रेस की सभा बुलाई गई। इस समय तक बिलासपुर में कांग्रेस के 14338 सदस्य बन चुके थे। इस प्रकार बिलासपुर जिले में लोगों ने सहयोग आंदोलन में अभूतपूर्व उत्साह के साथ काम भाग लिया। बिलासपुर में ही हीरालाल कलार की शराब दुकान कटी में धरना दिया गया सरकार ने धरना 144 लगाकर धान देने वालों को गिरफ्तार किया।[10]
1922 में असहयोग आंदोलन का स्थगन और स्वराज्य दल का गठन दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई। बिलासपुर जिले में ई. राघवेन्द्र राव और बैरिस्टर छेदीलाल ने स्वराज्य पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। 1923 के चुनाव में ई. राघवेन्द्र राव निर्वाचित हुए। मध्य प्रदेश में स्वराज पार्टी के अध्यक्ष सेठ गोविंद दास एवं सेक्रेटरी ई. राघवेन्द्र राव को बनाया गया।[11] 1923 में झण्डा सत्याग्रह प्रांरभ हुआ। जिसमें चरखायुक्त तिरंगा झंडा प्रतीक चिन्ह के रूप में फहराना शुरू किया गया। मध्यभारत में यह जबलपुर से प्रारंभ होकर नागपुर तक सत्याग्रही पहुंचे लगे बिलासपुर में 31 मार्च 1923 को टाउनहाल में यह प्रारंभ हुआ। सभी प्रमुख सत्याग्रहियों के साथ।[12] राजनीतिक जागृति की यह निसाल थी जिसमें बड़े पैमाने पर सत्याग्रही नागपुर पहुंचे और गिरफ्तार हुए। नागपुर में छत्तीसगढ़ और बिलासपुर के सत्याग्रहियों ने बड़े पैमाने पर पहुंचकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को मजबूती दी। 
बिलासपुर में वासुदेव देवरास के नेतृत्व में एक वानर सेना का गठन किया गया।[13] यह वस्तुतः छात्रों और बालकों का संगठन था जो विदेशी वस्तु और मादक द्रव्यों के दुकानों पर धरना देते  थे। छोटी-मोटी गुप्तचरी करते थे और समाचारों के आदान प्रदान में भूमिका निभाते थे। ऐसा विवरण मिलता है कि जरहाभाठा के वेयर हाउस क्षेत्र में वानर सेना  ने बड़ा धरना दिया था जिसे सरकार को परेशानी हुई। 
सविनय अवज्ञा आंदोलन में  मई 1930 में ठाकुर छेदीलाल की अध्यक्षता में एक जिला राजनैतिक परिषद का सम्मेलन हुआ। बिलासपुर नगर पालिका समिति के डॉ. शिवदुलारे मिश्र में झण्डा फहराने हेतु प्रस्ताव पारित कराया टाउनहॉल में क्रांतिकुमार भारतीय ने झंण्डा फहराया जिसमें कारण उन्हें 6 माह कठोर कारावास मिला। बिलासपुर में नमक कानून तोड़़ने के लिए प्रतीकात्मक व्यवस्था गोड़पारा में भी गई। 23 अगस्त को गोड़पारा में ही गढ़वाली दिवस मनाया गया। बिलासपुर के पथरिया के जंगलों में आदिवासियों ने की जंगल सत्याग्रह किया।[14] डॉ. शिवदुलारे मिश्र एक चिकित्सक थे और उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को चिकित्सा सुविधाएं प्रदान कर स्वतत्रंता आंदोलन में महत्वपवूर्ण भूमिका निभाई। 
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान ही दीवाकर कार्लिकर के नेतृत्व में शराब दुकानों पर धरना दिया और दुकान की सारी शराब को बहा दिया गया। कालीचरण नामक स्वतंत्रता सेनानी ने क्रांतिकुमार भारतीय साथ टाउनहाल में झण्डा फहराया और कारावास प्राप्त किया। मुंगेली में सतनामी समाज के लोगों ने की 1930 में शराब दुकान पर धरना दिया और गिरफ्तार हुए।[15] सभी धर्म, समाज जाति और वर्ग के लोग किसी न किसी प्रकार के राष्ट्रीय आंदोलन में भूमिका निभा रहे थे चाहे वह बच्चे हो, महिलाएं हो या बुर्जुग बिलासपुर भी गांधीवादी आंदोलन में आंतप्रोत था। 
सविनय अवता आंदोलन के दौरान 25 नवम्बर 1933 को गांधीजी का बिलासपुर आगमन हुआ। बैरिस्टर छेदीलाल ने जरहाभाठा में उनका स्वागत किया। गांधी जी ने कुंजबिहारी अग्नि होत्री के निवास में भोजन और विश्राम किया। यहां महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए धनराशि एकत्र कर गांधी जी को सौंपा। जहां गांधी जी ने जनता को संबोधित किया उस स्थान को गांधी चौक नाम दिया गया।[16] इस सभा में बिलासपुर की ओर से गांधी जी को 2000 रू. की थैली भेंट की गई। सभा की समाप्ति के बाद लोग उस चबुतरे में, ईंट पत्थर यहां तक कि मिट्टी भी अपने साथ ले गए जिस पर गांधी जी बैठे थे यह एक अन्यंत प्रभावशाली घटना थी। राष्ट्रीय नेता का आगमन और मार्गदर्शन प्राप्त करना।[17]
1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ हुआ बिलासपुर में रामगोपाल तिवारी ठाकुर छेदीलाल, सीतामणी  ओसवाल, पचकौड़ मंुडुक सिंह क्षत्रीय, डॉ. आर.पी. राय किशन चंद आदि ने नेतृत्व किया। गांधी जी के आह्वान पर छत्तीसगढ़ के सैंकड़ो सत्याग्रही अप्रेल 1941 में युद्ध विरोधी नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर बढ़े, उन्हें ललितपुर उत्तर प्रदेश में गिरफ्तार कर झांसी जेल में बंद कर दिया था[18] बिलासपुर से अमर सिंह सहगल, यदुंनंदन प्रसाद श्रीवास्तव को बंदी बनाया गया और कई नेताओं पर अर्थदण्ड लगाया गया। व्यक्तिगत सत्याग्रह का उद्देश्य ब्रिरिस साम्रज्यवाद का विरोध समिति एवं प्रतीकात्मक रूप में करना था। गांधी जी के इस आंदोलन ने सत्याग्रहियों के धैर्य और कर्मठता की परीक्षा । 
अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हुआ, बिलासपुर की आंदोलन की आग में झुलसता रहा गिरफ्तारी व दमनचक्र चलता रहा । बिलासपुर जिले में आंदोलन के संचालन के लिए श्री राजकिशोर वर्मा को डिक्टेटर नियुक्त किया गया जेल आई.जी. जठार ने बिलासपुर जेल का निरीक्षण किया इसमें उनकी उपेक्षा करने पर भूरेलाल व गणेश प्रसाद को कठोर याताना दी गई, जुलुस, सभा और गिरफ्तार रोज की घटना होने लगी पुलिस की प्रवृत्ति पैशाचिक होती जा रही ।[19] 14 अग्रस्त 1542 का जुलूस निकाला गया जिमसें छात्रों द्वारा सहायक जिला मजिस्ट्रेट व असिस्टेंट कमिशनर की कार पर पथराव एवं लाठी चार्ज किया। नगर का माहौल खराब होते देख15 दिन के लिए धारा 144 लगा दी गई।[20] 12 दिसम्बर को डॉ. शिव दुलारे मिश्र एवं अमर कुमार गुप्ता की तलासी ली गई उनपर मुकदामा चलाया गया।[21] जिला कार्यालय में तिरंगा फहराने पर गणेश प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया। बिलासपुर के मुरलीधर मिश्र एवं मधुकर प्रसाद दुबे भूमिगत आंदोलन का संचालन कर रहे थे।[22] बिलासपुर में जेल में बंद आंदोलन कारियों ने 2 अक्टूबर  1942 को कैदखाने में ही महात्मा गांधी का जन्म दिन मनाने का निर्णय लिया जुलुस निकाला गिरफ्तारी दी। जिले के विभिन्न तहसीलों शिवरीनारायण, मुंगेली, जांजगीर, अकलतरा आदि में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आंदोलन को आगे बढ़ाया।[23] 22 अगस्त को जिला कार्यालय भवन में जधोवा बाघ नामक व्यक्ति ने तिरंगा फहराकर सनसनी फैलादी लाठी चार्ज हुआ आंदोलन हिसात्मक होने लगा।[24] इस प्रकार बिलासपुर में भारत छोड़ों कांग्रेस व्यापक क्षेत्र में फैला आंदोलन का स्वरूप हिसात्मक होने के कारण दमनचक्र की अत्यंत कठोर था लेकिन गांधीवादी के सत्याग्रहियों ने अब आर पार की लड़ाई लड़ी। 
इस प्रकार गांधीवादी आंदोलन में बिलासपुर की जनता ने सक्रिय भागीदारी एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। समाज के सभी वर्गों जिसमें केवल नेता ही नहीं बल्कि जनमानस के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। बिलासपुर में स्वतंत्रता आंदोलन और विशेषकर गांधीवादी आंदोलन राष्ट्रीय स्तर के क्रियाकलापों, घटनाओं और कार्यक्रमों का एक हिस्सा था। क्षेत्र में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता जनमय की अभिव्यक्ति, संगठित और दृढ़ता की भावना के साथ राष्ट्रीय स्तर स्तरी के आंदोलन से कदम में कदम मिलाकर चली। क्षेत्रीय स्वरूप होते हुए भी बिलासपुर में कई विशेष आंदोलन हुए यथा बालकों की वानरसेना और आदिवासी जंगल सत्याग्रह। इस प्रकार के आंदोलन ने बिलासपुर को राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में विशिष्ट सम्मान दिलाया।
संदर्भ ग्रंथ

    1. बेहार, डॉ. रामकुमारछत्तीसगढ़ का इतिहासराज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी रायपुर (..) 2009, पृ 214
    2.  वर्मा भगवान सिंह, छत्तीसगढ़ का इतिहास राजनीतिक एवं सांस्कृतिक (प्रारंभ से 1947 तक) मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ आकादमी भोपाल (.प्र.) 2001 पृ. 175
    3. प्रोसिडिंग बुक आफ म्यूनिसिपल्टी कमिटी बिलासपुर बुक नं. 17 (1916-119)
    4. शुक्ला, उमाशंकर मध्यप्रदेश की राजनीति में . राघवेन्द्र राव का योगदान पृ.15
    5. बिलासपुर जिला गजेरियर 1976,पृ. 74
    6. शर्मा, डॉ. रामगोपाल छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आंदोलनप्रकाशक विद्या शर्मा बिलासपुर .. 1994, पृ. 134
    7. शर्मा, जे.पी. मध्यप्रदेश में स्वतंत्रता आंदोलन पृ. 303
    8. पूवॉवत पृ. 31
    9. हरिठाकुर, प्यारेलाल सिंह की जीवन 1963 पृ. 14
    10. शर्मा, रामगोपाल पूवॉवत पृ. 136
    11. गजेटियर ऑफ इंडिया: मध्यप्रदेश, बिलासपुर जिला पृ. 76
    12. बेहार, डॉ. रामकुमार पूवॉवत पृ. 231
    13. निगम, लक्ष्मी नारायण छत्तीसगढ़ का इतिहास, छत्तीसगढ़ में सविनय अवला आंदोलन प्रकाशक देवबंधु संपादक ललित सुरजरू पृ. 27
    14. शर्मा, रामगोपाल, पूवॉवत पृ. 137
    15. शर्मा, भगवन सिंह पूवॉवत पृ. 187
    16. शर्मा, रामगोपाल पूवॉवत पृ. 138
    17. सक्सेना, सुधीर छत्तीसगढ़ के गांधी शवाश्री प्रकाशक, रायपुर, 2003, पृ. 65, 66
    18. शुक्ला, अशोक छत्तीसगढ़ का राजनीतिक इतिहास एवं राष्ट्रीय आंदोलन, सुधीर एण्ड कंपनी रायपुर पृ. 185
    19.  वर्मा, भगवान सिंह पूर्वावत पृ. 193-194
    20.  मिश्रा, डी.पी. हिस्ट्री ऑफ इंडिया क्रीडम मूवमेंट इन मध्यप्रदेश पृ. 168
    21.  डिस्ट्रीवर कॅलेण्डर पृ. 690
    22.  होम पोलिटिकल फाइल 18/09142 पक्षिक रिपोर्ट सितम्बर 1942
    23.  शर्मा, रामगोपाल पूवॉवत पृ.
    24.  बेहार, रामकुमार पूवॉवत पृ. 239