हिंदी साहित्य : एक अनुदित संकलन
ISBN: 978-93-93166-31-9
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हिंदी हमारी अस्मिता और राष्ट्रभाषा की वास्तविक अधिकारिणी

 डॉ संजय श्रीवास्तव
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिक्षा प्रशिक्षण विभाग
डी.ए.वी. ट्रेनिंग काॅलेज
कानपुर  उत्तर प्रदेश, भारत 
डॉ0 श्रीकृष्ण पटेल
एसोसिएट प्रोफेसर
शिक्षा प्रशिक्षण विभाग
डी.ए.वी. ट्रेनिंग कॉलेज
कानपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

DOI:
Chapter ID: 16108
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सारांश
भारत एक बहुरूपी, बहुजातीय, बहुव्यवसायी और बहुभाषायी देश है। यह अनेकताओं और विविधताओं की रंगस्थली है। इसे अनेक रूपों वाले देश को एक बनाने वाली जो विशेषता है वही भावात्मक एकता है। भावात्मक एकता हेतु भावों की अभिव्यक्ति का श्रेष्ठतम साधन भाषा है। सांस्कृति एवं भाषायी विविधता से भरे देश में हिंदी सदियों से पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य कर रही है। हिन्दी की सबसे बड़ी शक्ति इसकी वैज्ञानिकता, मौलिकता, सरलता है।
मुख्य शब्द: राष्ट्रभाषा, अस्मिता, हिन्दी
प्रस्तावना
मनुष्य का श्रेष्ठ गुण भाषा का ज्ञान है, भाषा भावों की अभिव्यक्ति का श्रेष्ठतम् माध्यम है। इसी के माध्यम से हम ने केवल अपने विचारों को दूसरों तक सम्प्रेषित करते हैं बल्कि यह हमारी बुद्धि के विकास में भी सहायक है, चूंकि हिन्दी हमारे देश की राजभाषा है, अतः हिन्दी भाषा का विकास हमारे राष्ट्र की उन्नति से जुड़ा है। फ्रांस, जापान, अमेरिका, ब्रिटेन जर्मनी आदि सभी देशों ने अपनी राष्ट्रभाषा के विकास के माध्यम से ही राष्ट्रोन्नति की, तब हम क्यों नहीं ऐसा कर सकते? यह प्रश्न विचारणीय है। हिन्दी विश्व की प्राचीनतम् भाषा संस्कृत से न केवल उत्पन्न है बल्कि संस्कृत भाषा के 50 प्रतिशत से अधिक शब्द हिन्दी में समालेखित हैं। संस्कृत ज्ञान-विज्ञान की सर्वोत्कृष्ट भाषा है, यह कम्प्यूटर शिक्षण की भी श्रेष्ठ भाषा है, ऐसा शोधों द्वारा प्रमाणित हो चुका है। नासा ने 2035 तक संस्कृत भाषा को कम्प्यूटर की भाषा बनाने का लक्ष्य रखा है, यह संस्कृत भाषा की वैज्ञानिक उपयोगिता को दर्शाता है।  
हमारे देश में 14 सितंबर, 1949 को हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। राष्ट्रभाषा समिति ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपने यथासंभव प्रयास किये, किन्तु दुर्भाग्यवश आज आजादी के अमृत महोत्सव (75 वर्ष बाद तक) हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई। वर्ष 2006 से भारत सरकार ने प्रतिवर्ष 10 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस मनाने की घोषणा की थी। भाषा राष्ट्र के निवासियों के विचारों की अभिव्यक्ति होती है। यदि हम हिन्दी के विकासकाल व इतिहास पर एक नजर डालें तो भारतीय भाषाई इतिहास के सजीव पृष्ठों पर हिन्दी भाषा ’’सत्य का उत्स’’ है। 
सत्य का उत्स (भावों की अभिव्यक्ति मातृभाषा द्वारा संभव) 
भाषा भावों की अभिव्यक्ति का श्रेष्ठतम साधन हैं। इसी के माध्यम से हम अपने विचारों को संप्रेषित कर पाते हैं। भाषा नहीं हो तो विचारों का प्रकटीकरण संभव नहीं है। भाषा ही तो सबकुछ है। इसलिए इतिहास के सजीव पृष्ठों हिन्दी भाषा देवभाषा के माध्यम के सत्य का उत्स है। इसी कारण विश्व की अन्य भाषाएँ अपनी-अपनी देशी अस्मिता बनाये रखने के लिए संघर्ष करती दिखाई देती हैं। इस संघर्ष की छटपटाहट को विश्व के अनेक छोटे-छोटे देशों में देखा जा सकता है। 
अपने देश के स्ववतंत्रता संग्राम का आधार हिन्दी भाषा थी। हिन्दी भाषा के माध्यम से ही इतने महान संग्राम को जीतना संभव हो सका। स्वतंत्र भारत में राम मनोहर लोहिया जी ने ’’अंग्रेजी हटाओ-हिन्दी लाओ’’ के आंदोलन का सूत्रपात किया था। उनके सशक्त प्रयासों के बाद भी दुर्भाग्यवश भारत को उस औपनिवेशिक शक्तिशाली मानसिकता से मुक्त करना संभव नहीं हो सका, जिसमें अंग्रेजी को मानना ही विद्वता की निशानी माना जाता है। आज हिन्दी विश्व में चीनी भाषा मंदारिन के बाद सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। विश्व में 75 करोड़ से ज्यादा लोग हिन्दी बोलते व समझते हैं। दुर्भाग्यवश वर्तमान स्थिति इतनी संवेदनशील है कि भाषा के प्रश्न को गैर राजनीतिक ढंग से सोचना भी संभव नहीं प्रतीत होता है। हिन्दी हमारी संस्कृति में रची-बसी है। बहुसंख्यक नागरिकों के संपर्क के लिए हिन्दी अनिवार्य है। वर्तमान में अपने उत्पादों को भारतीय बाजार में आच्छादित करने के लिए हिन्दी आवश्यक है ऐसी विदेशी कंपनियाँ सोचती हैं, इसलिए विदेशी नागरिक भी हिन्दी सीखने का प्रयास कर रहे हैं। आखिरकार उन्हें अपने उत्पाद के तकनीकी महत्व, आवश्यक सूचनाएँ, उत्पादों का विज्ञापन हिन्दी भाषी लोगों के बीच ही करना है। यह हिन्दी भाषा की महत्ता को रेखांकित करता है। आज विदेशों में भी हिन्दी का महत्व बढ़ रहा है। फिजी में सन् 1999 में इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया, माॅरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय स्थित है। अमेरिका, इंग्लैंड आदि कई देशों के लोग हिन्दी भाषा सीख रहे हैं। 
राजनैतिक कारणों से विरोध
हिन्दी कई राज्यों की भाषा है जैसे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखण्ड, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि। इनका प्रशासनिक कार्य हिन्दी के माध्यम से ही चलता है। इस सत्य के बावजूद लोगों को अंग्रेजी के प्रति आकर्षण कम होता नजर नहीं आता। आज यह भाषा हिन्दी से अधिक सशक्त बन गई है। लोगों को लगता है यदि अपना बच्चा अंग्रेजी नहीं जानता तो वह कितना भी प्रतिभाशाली हो सफल नहीं हो सकता, इसलिए शिक्षा के निजी क्षेत्रों में अंग्रेजी माध्यम का स्कूल चलाना एक बेहद लाभकारी व्यवसाय बन चुका है जो कि अंग्रेजी के प्रति प्रेम तथा हिंन्दी की उपेक्षा को दर्शाता है। भारतीय समाज को देखकर शंका होती है कि क्या सचमुच हम हिन्दी के समर्थक हैं या ऐसा होने का मात्र दिखावा करते हैं। हिन्दी का विरोध सबसे पहले दक्षिण भारत के राज्यों विशेषकर तमिलनाडु में था, बंगाल में भी इसका विरोध रहा है किन्तु आजकल चुनावों में हिन्दी भाषी लोगों को आकर्षित करने के लिए वहाँ के राजनीतिक दल अब हिन्दी में पोस्टर बैनर का उपयोग कर रहे हैं। यह सर्वविदित सत्य है कि इतिहास के हर कालखण्ड में भाषा, सत्ता की मुखापेक्षी रही है। कभी हमारे देश की मुख्य भाषा संस्कृत थी, परंतु जैसे ही वह कालखण्ड समाप्त हुआ और सत्ता पर मुगलों का अधिकार आया तो फारसी का वर्चस्व बढ़ गया। मैंकाले जैसे चतुर, कूटनीतिज्ञ ने बडी़ ही चतुराई से षडयंत्र करके अंग्रेजी को सभ्य एवं सम्मानित लोगों की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। वह यह सिद्ध करने में सफल हो गया कि अंग्रेजी जानना सभ्यता की निशानी है और हमारी गुलाम मानसिकता इस षडयंत्र. का पर्दाफाश नहीं कर पाई, जिसका परिणाम आज हमारे सामने है।   
भाषा एवं संस्कृति की मानसिक दासता 
आज अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड जैसे देशों में हिन्दी कक्षाएँ आयोजित कह जा रही है। यह जानते हुए भी कि अंग्रेजी भाषा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुप्रचारित भाषा है और विश्व भर में भ्रमण, व्यापार, शिक्षा, संचार आदि के क्षेत्र में इसका लाभ मिलता है। आधुनिक युग में किसी भी राष्ट्र को शक्ति या सैन्य बल के द्वारा लम्बे समय तक गुलाम नहीं बनाया जा सकता है। जैसा कि हमारे देश में अंग्रेजी की चल रही है। अंग्रेजी का प्रभाव तो अंग्रेजों के रहते हुए भी इतना नहीं था जितना स्वतंत्र भारत में दिखाई देता है। 
हिंदी की सशक्तता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि श्रीलंका में पिछले चुनावों में राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिन्दी फिल्मों के नायकों को चुनाव प्रचार के लिए आमंत्रित किया था। हिंदी हमारी मातृभाषा है और इस भाषा के प्रति हमारे मन में लगाव होना चाहिए। षडयंत्र के द्वारा हो सकता है कि थोडा़ बहुत व्यतिक्रम आ जाये, परंतु यह स्थिति देर तक नहीं चलने वाली। इसलिए निकट भविष्य में हिन्दी भाषा की अस्मिता को नष्ट करके जिस अंग्रेजी भाषा को वरीयता दी गई है, उसे टूटना ही है। पुनः हिन्दी की प्रतिष्ठा होगी और हिंदी की महत्ता बढे़ेगी। अतः हमें अभी से हिन्दी भाषा को बचाने, उसे समृद्ध करने के लए कटिबद्ध हो जाना चाहिए। 
निष्कर्ष  
भारत में विविधता में एकता की संस्कृति का पोषक है। वस्तुतः भारतीय उपमहाद्वीप एक ऐसा भषिक क्षेत्र है जो अनेकता में एकता का अत्यंत सटीक निदर्शन प्रस्तुत करता है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध कहावत है ’’कोस-कोस में बदले पानी, दस कोस पे बदले बानी’’, हिन्दी भाषा मात्र भावों को व्यक्त करने का साधन नहीं है अपितु सांस्कृतिक विभिन्नताओं के बीच देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाली महत्वपूर्ण कड़ी भी है। हम सभी भारतवासियों का कर्तवय है कि इस एकता के साधन को उचित आदर व सम्मान दें। 
’’हिन्दी,
मुझमें ज्योति और जीवन है। 
मुझमें यौवन ही यौवन है। 
मुझे बुझा कर देखे कोई 
बुझने वाला दीप नहीं मैं,
जो तट पर मिल जाया करती
ऐसी सस्ती सीप नहीं मैं।
शब्द शब्द मेरा मोती है,
सघन अर्थ ही मेरा धन है।
मुझमें ज्योति और जीवन है’’
                (श्रीकृष्ण सरल)
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