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महात्मा गाँधी : समसामयिक प्रासंगिकता ISBN: 978-93-93166-17-3 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
महात्मा गाँधी की वैचारिक विरासत |
सुनील वर्मा
सहायक आचार्य
कॉलेज शिक्षा
राजकीय महाविद्यालय
केकड़ी, अजमेर राजस्थान, भारत
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DOI: Chapter ID: 16110 |
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सारांश हाल ही में बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने कहा कि, “यदि आज
गांधीजी से मुलाकात हो जाए, तो उनसे यही पूछूँगा कि चीन
से कैसे निपटा जाए ? दलाई लामा का यह कथन इस बात
को स्पष्ट करता है कि पश्चिम उदित विचारधाराएं यथा उदारवाद, लोकतांत्रिक, उदारवाद, साम्यवाद के पास समस्याओं के समाधान नहीं है। महात्मा गांधी के विचार हर
युग में प्रासंगिक हैं और रहेंगे। महात्मा गाँधी का निर्वाण हुए सत्तर वर्ष से भी अधिक समय हो गया। लेकिन जब भी
कोई मुश्किलों का दौर आता है तो महात्मा की बातें कार्यपद्धति, साधन
समाधान की भाँत्ति प्रतीत होते हैं, क्योंकि उनके विचार
युगान्तरकारी है।” शोध पत्र में भारतीय राजनीतिक व्यवस्थाओं में संवाद की कमी, धार्मिक
असहिष्णुता, बहुलवाद की अस्वीकार्यता जैसे समीचीन
मुद्दों के साथ-साथ पोषणीय विकास की अवधारणा के संदर्भ में महात्मा गाँधी के जीवन, विचार और अनुप्रयोगों की उपादेयता का अध्ययन केन्द्रित रहेगा। विश्व के विभिन्न देशों में महात्मा गाँधी को एक कुशल संगठनकर्त्ता, जननायक
और संवाद कौशल में दक्ष व्यक्तियों के रूप पढ़ा और समझा जाता है। गाँधीजी बौद्धिक
रूप से विश्व प्रेमी इंसान थे, उनका मनोमस्तिष्क
धार्मिक समभाव, सदाश्यता, सेवा, सद्भावना और परोपकार के कार्यों का पर्याय रहा है। मुख्य बिन्दु : विरासत, जननायक, सत्याग्रह, जातीय दंभ, पोषणीय विकास, पेड़ न्यूज विकृत पत्रकारिता, सर्वोदय, राजनीतिक शुचिता। परिचय महात्मा गाँधी के जीवन पर माँ पुतली बाई के धार्मिक आचार-विचार, डेविड
थोरो, रस्किन, ईसा, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, अब्राह्म लिंकन, बुकर टी. वाशिंगटन के विचारों
और सिद्धान्तों का गहरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में जातीय दंभ के विरुद्ध जन आक्रोश को पूरे समुदाय
के सफल विद्वेष-मुक्ति संघर्ष में बदल दिया था। इस संघर्ष को उन्होंने सत्याग्रह
का नाम दिया। यह एक ऐसा संघर्ष था जो विभिन्न महाद्वीपों में इस तरह के प्रतिरोधों
को प्रेरित करता रहा है, यह वह जादू है जो दुनिया आज देख रही है। 1960 के दशक में मार्टिन लूथर किंग जूनियर और उनके साथियों ने अमेरिका के
नागरिक आंदोलन में गाँधीजी से प्रेरित होने की बात कहीं। 1990 के दशक में जब नेल्सन मंडेला ने 27 वर्षीय
लम्बी कैद और विजयी संघर्ष के बाद घोषणा की, कि उनका
नया दक्षिण अफ्रीका सभी जातीय लोगों को समान अधिकार देगा तो मानवता में गाँधी की
आस्था एक बार फिर सही साबित हुई। 9 जनवरी 1915 को गाँधीजी
जब भारत लौटे, तो वे दक्षिण अफ्रीका की प्रायोगिक
कार्यशाला से सत्याग्रह की फौलादी संकल्प शक्ति और संघर्ष की क्षमता साथ लेकर आए
थे। उन्होंने चम्पारन के अनुप्रयोग से भारतीय जनमानस में विश्वास पैदा किया।
राष्ट्रवादियों की भाँति गाँधीजी की महत्वाकांक्षा ब्रिटिश साम्राज्यवाद से
मुक्ति थी, परन्तु वे इस लक्ष्य की
प्राप्ति राजनीति के तौर-तरीकों और सामाजिक अवरचना में बदलाव लाकर करना चाहते थे।
राजनीतिक और सामाजिक अवरचना में परिवर्तन के कारण ही गाँधी मार्ग को समाज के सभी
तबकों का, राजनीति की विभिन्न धाराओं का समर्थन प्राप्त
हुआ और राष्ट्र का लक्ष्य हासिल हुआ। राजनीति के प्रति गाँधीजी का नजरिया नैतिक, लोकतांत्रिक और पूर्वाग्रह मुक्त था।।
गाँधीजी ने हिंसा को किसी भी रूप में स्वीकृति नहीं दी अतएवं भारतीय जनता
सार्वजनिक जीवन में हिस्सेदारी निभाने आगे आ सकी। पं. नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी
ऑफ इण्डिया’ में लिखा है कि गाँधीजी के सत्य और अहिंसा
के अटूट व्रत ने भारतीय जनता में ब्रिटिश शासन के भय और आंतक को समाप्त कर दिया।
सत्याग्रह ने जनता को नैतिक रूप से सशक्त बनाया। उद्देश्य 1. गाँधीजी के विचार निर्माण पर विभिन्न व्यक्तियों और
पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करना। 2. महात्मा गाँधी के प्रमुख विचारों सन्य, अहिसाँ, सत्याग्रह, सर्वोदय
का अवबोध कराना। 3. गाँधींजी की वैचारिक विरासत की भविष्योन्मुखी रूपरेखा का
अंकन करना। 4. महात्मा गाँधी के विचारों को आधुनिक समस्याओं के संदर्भ में
समझने का प्रयास करना। 21वीं शताब्दी की वैश्विक समस्याओं में बेहद जटिल समस्या के
पोषणीय विकास की। पोषणीय या सतत् विकास का अर्थ है कि संसाधनों का उपयोग इस तरह
किया जाए कि भावी पीढ़ी भी उनका प्रयोग कर सकें, दूसरे
शब्दों में भावी पीढ़ी की क्षमताओं को नुकसान पहुँचाए बिना वर्तमान पीढ़ी का विकास
करना। गांधी दर्शन में यद्यपि हमें सतत् विकास की अवधारणा का स्पष्ट उल्लेख नहीं
है, परन्तु उनके द्वारा बनाए गए रचनात्मक कार्यक्रम
विकास का ऐसा प्रथम खाका खींचता है जो प्रकृति और प्राकृतिक वातावरण को हानि नहीं
पहुँचाता। पोषणीय विकास के साथ गाँधीजी गरीबी, असमानता और अन्याय से मुक्त समाज की
परिकल्पना करते हैं जिसे उन्होंने सर्वोदय कहा। सर्वोदय का विचार गाँधीजी ने जॉन
रस्किन से सीखा। सर्वोदय समाज का अर्थ है ऐसा समाज जिसमें निर्धनतम व्यक्ति का
विकास सुनिश्चित हो सके। सर्वोदय समाज की अवधारणा से उन्होंने समाज में व्याप्त
वर्ग, जाति, लिंग भाषा जैसे
भेदभावों पर आधारित विभाजनों को समाप्त करने का प्रयास किया। महात्मा गाँधी के बुनियादी संस्कारों का ही प्रतिफल है कि द्वितीय विश्व युद्ध
के बाद नवोदित लोकतंत्रों में भारतीय लोकतंत्र सफलता की कसौटी पर खरा है। एशिया, अफ्रीका
और लैटिन अमेरिका ही नहीं यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित महाद्वीपों में भी
परम्परागत धार्मिक विचारों का पुनर्निर्माण हो रहा है। इस पुनर्निर्माण की आड़़ में
धार्मिक संघर्ष भी होता नजर आता है। धार्मिक दृष्टि से असहिष्णु देशों की सूची में
भारत का चौथा स्थान है। सभी धर्मों के सकारात्मक तत्वों को समझना और धार्मिक सीखों
का सम्मिलन आज समय की जरूरत है। गाँधीजी के आश्रम संकल्प सर्वधर्म समभाव सभी
धर्मों की समानता को बढ़ावा देते हैं। उनका मत था कि
आत्मा एक ही होती है, परन्तु वह कई शरीरों में चेतना का
संचार करती है। हम शरीर कम नहीं कर सकते, फिर भी आत्मा
की एकता को स्वीकार करते हैं। वृक्ष का भी एक ही तना होता है, लेकिन उसकी कई सारी शाखाएं और पत्तियां होती है, इसी तरह एक ही धर्म सत्य है, लेकिन जैसे-जैसे
वह मनुष्य रूपी माध्यम से गुजरता है उसके कई रूप हो जाते हैं, विश्व शांति सततृ् विकास के अहम घटकों में से एक है। वैश्विक शांति और अमन-चैन के लिए राष्ट्रों, समुदायों, वर्गों, व्यक्तियों के बीच संवाद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। महात्मा गांधी की
प्रसिद्ध पुस्तक “हिन्द स्वराज” संवाद शैली में लिखी गयी। संवाद व्यक्ति, समूह, विचार के मध्य व्याप्त अंतराल को कम करता है। आपसी बातचीत, वार्ता से बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाता है दो व्यक्ति या दलों को
सार्थक वार्ता से तनाव को कम किया जा सकता है। संवाद, संघर्ष
को टालने का एक बेहतरीन यंत्र है। गाँधीजी ने सत्यग्रह की प्रयोगशाला दक्षिण
अफ्रीका में जातीय दंभ के विरुद्ध खुलकर बातचीत की। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका और
भारत की नस्लभेदी अंग्रेजी सरकार से मानव के नैसर्गिक अधिकारों और कानूनी आयामों
पर तर्कपूर्ण वार्ताएं की। गाँधीजी के इस संवाद की सर्वप्रमुख विशेषता रही है कि उन्होंने जातीय विभेद, अमानवीय
व्यवहार, शोषण इत्यादि से घृणा की, न कि घृणित व्यवहार करने वाले व्यक्ति से। गाँधीजी की वार्ता में समायोजन
या समझौता नहीं होता था, उनकी बातचीत से हल निकलता था, समस्या समाधान का मार्ग निकलता था। उनकी वार्ता शैली में न पक्ष था, न विपक्ष, न किसी की हार थी, न किसी की जीत। गाँधी मार्ग पर सब प्रसन्न होते थे, सबकी जय होती थी। वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में संवाद, वार्ता, बातचीत, लुप्त
होते जा रहे हैं वैश्विक व्यवस्थाओं के आंतरिक लोकतंत्र का दम घुट रहा है और बाहरी
लोकतंत्र महज दिखावा बनता जा रहा है। वैचारिक मतभेद कठोर हो रहे हैं और संघर्ष में
बदल रहे हैं, इस प्रसंग में गाँधी मार्ग की उपयोगिता
निर्विवाद है। भारतीय निर्वाचन प्रणाली निष्पक्षता, पारदर्शिता और सुचारू व्यवस्था के लिए
जानी जाती है। परन्तु प्रतिनिधि संस्थाएं न्याय और समानता के सिद्धांतों को लागू
करने में अक्षम साबित हो रही है। लोक सदन की कार्यप्रणाली पर संकट मंडरा रहा है और
सदन अपनी महत्ता खो रहे हैं। पूंजीपति ओर उद्योगपति दबाव समूह के रूप में कार्य
करते हुए स्वयं के स्वार्थों से सम्बन्धित कानून और प्रशासन का गठन और नियमन करवा
रहे हैं। प्रतिनिधि संस्थाओं की अक्षमता के साथ-साथ राजनीति का विकृत रूप मीडिया
और पत्रकारिता से सांठ-गांठ कर नया संकट खड़ा कर रहा है। पेड़ न्यूज, फेंक न्यूज, सोशल मीडिया में तोड़-मरोड़ कर पेश की
हुई खबरों से राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा, प्रतिद्वंद्विता
में तब्दील हो गयी है। पत्रकारिता का स्तर गिरता जा रहा है, खबरें ब्लैकमेलिंग का जरिया बनती जा रही है। गाँधीजी अपने व्यस्त सार्वजनिक जीवन के बावजूद एक संजीदा पत्रकार रहे, उन्होंने
बिना विज्ञापनों के कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। वे पत्रकारिता को बेहद
उत्तरदायी और जवाबदेह कार्य मानते थे। समाचार पत्रों की शरारतपूर्ण खबरों से आहत
होने पर उन्होंने समाचार-पत्रों को चलते फिरतें ‘प्लेग’ की संज्ञा दी थी। उन्होंने यह टिप्पणी भी की थी कि “यदि मुझे भारत का तानाशाह बना दिया जाए तो मैं सभी समाचार पत्रों पर
प्रतिबंध लगा दूंगा।” पत्रकारिता और राजनीति का घटिया
गठजोड़ लोकतांत्रिक संस्थाओं का विश्वास समाप्त कर देगा। महात्मा गाँधी राजनीतिक सहिष्णुता के लिए जाने जाते हैं। कांग्रेस में रहते हुए
अपनी कार्यशैली, सिद्धान्तों और कार्यक्रमों के कारण न केवल अन्य दलों और
व्यक्तियों में बल्कि कांग्रेस के भीतर ही कुछ लोग गाँधीजी के साथ वैचारिक साम्यता
नहीं रखते थे। इसके बावजूद गाँधीजी का उन व्यक्तियों के प्रति व्यवहार, नजरिया, दृष्टिकोण सामान्य ही रहा। द्विराष्ट्र
सिद्धान्त के उन्नायक मोहम्मद अली जिन्ना, अनुसूचित
जाति और जनजाति के लिए पृथक निर्वाचक मंडल के समर्थक डॉ. अम्बेडकर युवा
क्रांतिकारी और सैन्य संगठनकर्ता सुभाषचन्द्र बोस के साथ गाँधीजी के मतभेद होने के
बाद भी गाँधीजी के इनके प्रति सदाश्यता सहिष्णुता प्रेम और सदाकत प्रशंसनीय है।
परन्तु वर्तमान में भारतीय राजनीति में राजनीतिक सहिष्णुता समाप्त होती जा रही है।
विधायकों की सदस्यता के प्रश्न, किसी अति महत्वपूर्ण
मुद्दे पर बहस की मांग को लेकर विधायकों में आपसी मारपीट, झगड़ा, हिंसा लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं कही जा
सकती। राजनीतिक कटुता और चुनावी हिंसा देश के हर हिस्से में देखने को मिलती है। आजादी के बाद से देश में चुनावी हार-जीत होती रही है। जीतने वाले तब जीत का
जश्न मानते थे तो हारने वाले उसे स्वीकार करते थे। धीरे-धीरे जीत और हार को पचाने
की क्षमता कम होती जा रही है, हर दल किसी भी कीमत पर बस हर चुनाव जीतना चाहता है। इस
जीत और हार से उपजी आशा-निराशा इस राजनैतिक हिंसा को बढ़ावा दे रही है। देश का
मतदाता राजनीतिक रूप से जितना परिपक्व होता जा रहा है, राजनीतिक
नेताओं में उतनी ही अपरिपक्वता दिखायी दे रही है। हाल ही में पांच राज्यों
में मुख्यमंत्रियों के शपथग्रहण समारोह में विपक्षी दलों का शामिल नहीं होना
इसका उदाहरण है आज के दौर में राजनीतिक दल एक-दूसरे को विरोधी नहीं अपितु शत्रु की
तरह समझने लगे हैं। राज दल इस शत्रुता को रोकने के लिए कोई उपाय नहीं करते, राष्ट्रीय मुद्दों पर सर्वदलीय बैठकें नहीं होती। लोकतंत्र में सता
आती-जाती रहती है, लेकिन आमजन का विश्वास लोकतंत्र पर
बना रहना चाहिए। गाँधीजी ने राजनीति में एक नए प्रकार की जीवन शैली, नेतृत्व
की कला, नये राजनीतिक साधनों और मूल्यों को स्थापित
किया। गाँधीजी की वैचारिक विरासत के आध्यात्मिक, उत्तराधिकारी, विश्व के प्रत्येक कोने में मौजूद है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर, डेसमंड टूटू, दलाई लामा से लेकर आंग सांग सू की, महात्मा गांधी के अनुप्रयोगों, कार्यशैली और
व्यवहार को अपने जीवन में अपनाने वाले प्रमुख उदाहरण है, जिन्होंने संकल्प शक्ति के बल पर इतिहास की धारा को बदलने का काम किया है। संदर्भ ग्रंथ सूची 1. महात्मा गाँधी (एक अत्यन्त संक्षिप्त परिचय) - डॉ. नरेश
दाधीच वेडर पब्लिकेशन 2. महात्मा गाँधी का चिन्तन - डॉ. नरेश दाधीच, वेडर पब्लिकेशन 3. गाँधी कथा - डॉ. नरेश दाधीच, वेडर
पब्लिकेशन 4. ‘खोज गांधी की’ (गांधी रिसर्च फाउण्डेशन की मासिक पत्रिका) 5. गांधी मार्ग (अहिंसा-संस्कृति का द्वैमासिक) |