|
महात्मा गाँधी : समसामयिक प्रासंगिकता ISBN: 978-93-93166-17-3 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
महात्मा गांधी : एक अनोखे पर्यावरणविद |
इनाम नबी सिद्दीकी
अवकाश प्राप्त प्रोफेसर
वनस्पति विज्ञान विभाग
विनोबा भावे विश्वविद्यालय
झारखंड हजारीबाग़ भारत
|
DOI: Chapter ID: 15793 |
This is an open-access book section/chapter distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. |
सारांश महात्मा गांधी ने पर्यावरण पर किसी स्वतंत्र ग्रंथ की रचना नहीं की थी, लेकिन उन्होंने पर्यावरण,
प्रदूषण, जैवविविधता (Bio-diversity) के संबंधित खतरों को समय से
पूर्व ही महसूस कर लिया था। पर्यावरण के संबंध में उनके द्वारा की गई कुछ
टिप्पणियां दर्शाती है कि कैसे गांधी ने उन अधिकांश पर्यावरणीय समस्याओं का
पूर्वानुमान लगा लिया था जिनका आज हम सामना कर रहे हैं और उनका निराकरण भी बता
दिया था। आज से 100 साल पहले साफ हवा और पानी,
टिकाऊ विकास (sustainable
development), वृक्षारोपण (aforestation) सोनखाद (manure) आदि पर गांधी जी की समझ, चिंतन और भारत की स्वतंत्रता व लोकतंत्र के प्रति उनके
विचार आज 21वीं सदी में भी उन्हें समकालीन बनाते हैं। मुख्य शब्द: महात्मा
गांधी, पर्यावरण, प्रदूषण, जैवविविधता, टिकाऊ विकास, वृक्षारोपण, सोनखाद। प्रस्तावना पूरी दुनिया यह जानती है कि महात्मा गांधी एक शांतिवादी,
मानवतावादी, क्रांतिकारी, राजनीतिक नेता एवं संत थे। लेकिन यह बहुत कम लोग जानते
हैं कि वह एक पर्यावरणविद भी थे। गांधी और पर्यावरण पर बातें करते समय यह ध्यान
में रहना चाहिए कि गांधी के चिंतन या लेखन में पर्यावरण शब्द का प्रयोग नहीं
मिलता। यह तो अंग्रेजी के Environment शब्द के हिंदी अनुवाद के
रूप में प्रचलन में आया है। सच तो यह है कि गांधी जी के समय में पर्यावरण प्रदूषण
जैसी कोई समस्या विद्यमान थी ही नहीं। पर्यावरण पर उन्होंने किसी स्वतंत्र ग्रंथ की रचना भी नहीं
की थी। यहां यह जान लेना चाहिए कि पर्यावरण शब्द का चलन नया है, पर इससे जुड़ी चिंता या चेतना नई नहीं है, वह भारतीय संस्कृति के मूल में रही है। महात्मा गांधी जैसे
युग पुरुष ने पर्यावरण, प्रदूषण, जैवविविधता (Biodiversity) के संबंधित खतरों को समय से पूर्व ही महसूस कर
लिया था। पर्यावरण के संबंध में उनके द्वारा की गई कुछ टिप्पणियां दर्शाती है कि
कैसे गांधी ने उन अधिकांश पर्यावरणीय समस्याओं का पूर्वानुमान लगा लिया था जिनका आज हम सामना कर रहे हैं और उनके निराकरण
भी बता दिया था। गांधी भारत को अप्रतिबंधित उद्योगवाद और भौतिकवाद के लिए
पश्चिम का अनुसरण नहीं करना चाहते थे। अपनी पुस्तक हिंदस्वराज "Indian Home Rule, 1909 में उन्होंने कहा था- ’’आधुनिक शहरी और औद्योगिक सभ्यता में ही मनुष्य के विनाश के
बीज निहित हैं।’’ लेकिन
उन्होंने कभी नहीं कहा कि औद्योगीकरण निरर्थक है। उनका दृष्टिकोण था कि लालच और जुनून
पर अंकुश होना चाहिए। उनका मानना है कि ’’पृथ्वी सभी जीवों की जरूरत पूरी करने के लिए प्रचुर मात्रा
में संसाधन प्रदान करती है, किंतु लालच
पूरी करने के लिए नहीं’’ टिकाऊ विकास "Sustainable
Development" का केंद्र बिंदु
समाज की मौलिक जरूरतों को पूरा करना होना चाहिए।
इस अर्थ में उनकी पुस्तक ’’हिंदस्वराज’’ टिकाऊ विकास "Sustainable
Development" का घोषणापत्र "manifesto" है। गांधी जी ने मिलों, कारखानों तथा
दूसरे जन गतिविधियों द्वारा धुआं और ध्वनि द्वारा वायु को गंदा करने तथा नदियों और
दूसरे जल निकायों को गंदा करने पर लोगों की आलोचना की था। अपने एक लेख कि "key to health" (स्वास्थ्य कुंजी) 1948 में उन्होंने साफ हवा की जरूरत पर रोशनी डाली। इसमें स्वच्छ वायु पर एक अलग से अध्याय है जिसमें कहा गया है कि शरीर में तीन
प्रकार के प्राकृतिक पोषण की आवश्यकता होती है - हवा, पानी, और भोजन लेकिन साफ हवा सबसे आवश्यक है। 1930 के दशक के अंतिम दिनों में उन्होंने लोकतंत्र को परिभाषित
करते हुए कहा था कि इसमें सभी नागरिकों को शुद्ध हवा और पानी उपलब्ध होना चाहिए।
शुद्ध हवा के लिए उन्होंने वृक्षारोपण (aforestation) तथा वृक्ष की पूजा का बड़ा महत्व बताया था। आज से 100 साल पहले साफ हवा और पानी पर गांधी जी की समझ, चिंतन और भारत की स्वतंत्रता व लोकतंत्र के प्रति उनके
विचार आज की सदी में भी उन्हें समकालीन बनाते हैं। गाँधी जी ने स्वच्छता को स्वतंत्रता से भी ज्यादा जरूरी बताया। उन्होंने गाँवों में खुले
शौच का विकल्प शौचालय के बजाय शौच को एक
फुट गहरे गड्ढे में मिट्टी से ढक देना
मानते थे। ’’मेरे सपनों
के भारत’’ पुस्तक में
वह सफाई और खाद पर चर्चा करते हुए लिखते हैं ’’इस भयंकर गंदगी से बचने के लिए कोई बड़ा साधन नहीं चाहिए; मात्र मामूली
फावड़े का उपयोग करने की जरूरत है।’’ दरअसल, गाँधीजी शौच को सीधे-सीधे ’’सोनखाद manure" में बदलने के पक्षधर थे। वह जानते थे कि मल को संपत्ति में
बदला जा सकता है। गाँधी जी का सपना ’’घर-घर शौचालय’’ की बजाय ’’घर-घर कंपोस्ट’’ के लक्ष्य पर काम करने का था। आज के दौर में जबकि एकल होते परिवारों के कारण
और खेतों में आधुनिक उपकरणों के कारण मवेशियों की घटती संख्या, परिणाम स्वरूप घटते गोबर की मात्रा के कारण जैविक खेती पहले
से ही कठिन हो गई है। ऐसे में गाँधी का सपना घर-घर कंपोस्ट पर हमें विचार करना
चाहिए। गाँधी जी ने सादगी और समता पर आधारित एक ऐसे समाज की बात की
जिसमें अपने आप पर्यावरण के विनाश की समस्याएं न्यूनतम हो जाती है। बड़े शहरों को
विकास का प्रतीक मानने के दौर से उन्होंने गांव को अधिक महत्व देने की ओर ध्यान
दिलाया और ग्रामीण विकास में पर्यावरण की रक्षा पर अधिक जोर दिया। हिंसा और नफरत के दौर से गुजर रही दुनिया को गांधी रास्ता
दिखाते हैं। उन्होंने युद्ध और अतिविनाशक हथियारों के उपयोग की संभावना को समाप्त
करने के लिए शांति प्रयास पर बल दिया। ये
हथियार पूरे पर्यावरण तथा मानवता पर खतरा हैं। अहिंसा की सोच एक बहुत व्यापक सोच
है जो बेहतर दुनिया बनाने और दुख-दर्द को टिकाऊ रूप से कम करने से जुड़े हैं। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि गाँधी जी की सोच में
अहिंसा, सादगी, समता और पर्यावरण की रक्षा का बेहद सार्थक मिलन है जो
दुनिया को ऐसी राह दिखाता है जिसमें न्यायसंगत ढंग से बड़ा पर्यावरणीय संकट
उत्पन्न किए बिना, अमन चैन से सभी लोग अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकते हैं
और अमन - चैन से रहते हुए टिकाऊ विकास (sustainable development) कर सकते
हैं। गांधी जी ने एक समग्र जीवन का
नेतृत्व किया जो प्रकृति के सिद्धांतों से मेल खाता है तथा पर्यावरण हितैषी (Environment friendly) है। गांधी ने
पर्यावरण संरक्षण शब्द का प्रयोग नहीं किया था लेकिन जो उन्होंने कहा और कर दिखाया
वह उनको एक अनोखा पर्यावरणविद बनाता है। References 1. Gandhi, M.K. Hind Swaraj
or Indian Home Rule, 1909, - Complete book online 2. Gandhi, M.K. Key to Health,
1942, Published in 1954, Navjivan Mudranalaya, Ahemadabad
3. Gandhi, M.K. Mere Sapno ka
Bharat, Reprint in 2014, Rajpal Prakashan, |