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हिंदी साहित्य : एक अनुदित संकलन ISBN: 978-93-93166-31-9 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
मनोहर श्याम जोशी के साहित्य (कहानी) में मानवीय संवेदना (आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य के सर्वाधिक चर्चित लेखक मनोहर श्याम जोशी की कहानियों में मानवीय सवेंदना |
सोनम रानी
सहायक आचार्य
हिंदी साहित्य विभाग
श्री सिद्धि विनायक सह शिक्षा महाविद्यालय
हनुमानगढ़ राजस्थान, भारत
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DOI: Chapter ID: 16413 |
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हिन्दी साहित्य में मानवीय संवेदना के भावो से युक्त अनेक रचनाएँ संकलित है। मानवीय संवेदना में मनुष्य के भाव, विचार, संवेग आदि आते है। मनुष्य के मन के विचारो, भावो को जब लिखित रुप में रचा जाता है, तभी एक श्रेष्ठ रचना बनती है। क्योंकि बिना भाव के लिखी रचना केवल मात्र शब्दो का व्यर्थ आडम्बर बन कर रह जाती है। जिस रचना को लिखते समय कवि/लेखक के मन में जैसे श्रेष्ठ विचार या भाव होगें वह रचना उतनी ही श्रेष्ठ होगी। ऐसी रचना को पढ़ते समय पाठक भी भावयुक्त हो जाता हैं। उसकी सवेंदना जाग्रत हो जाती है। जिस रचना को जिस भाव से लिखा जायेगा उसी भाव की जाग्रति पढ़ते समय पाठक के मन में भी होती है। वह रचना मनुष्य व समाज पर अच्छा प्रभाव डालती है। हिन्दी साहित्य में अनेक कवि/लेखक हुए हैं जिन्होने अपने रचना कर्म के माध्यम से तत्कालीन परिस्थितियों को जनता तक पहुचायाँ हैं। ’’साहित्य समाज का दर्पण हैं।’’ प्रत्येक साहित्य में समाज में व्याप्त परिस्थितियों, संस्कृति आदि का वर्णन होता है। प्राचीन हिन्दी साहित्य में क्योंकि वीर रस प्रधान है, उस समय के समाज में वीरता, साहस आदि के भाव थे, युद्ध का माहौल था, इसलिए आदि काल के साहित्य में वीर रस प्रधान था। मध्यवर्ती समय में जब मुगल आक्रमण के कारण समाज व्यवस्था बिगड़ रही थी तब सामान्य जनता को ईश्वर याद आये। मध्यवर्ती हिन्दी साहित्य में भक्ति का प्राधान्य था। रीतिकाल में साहित्य का भाव श्रृगांर रस से युक्त है। समय के साथ-साथ समाजिक परिस्थितियॉ, वातावरण बदलता रहा तो उस समय के साहित्यकारों कीं रचनाओं में विषय साम्रगी परिवर्तित होती हैं। प्रेमचन्द जी के साहित्य में समाज में व्याप्त कुरितियों, आडम्बरों का वर्णन किया गया है। उन्होंने अपने नाटकों, उपन्यासों, कहानियों आदि कें माध्यम से समाज कि स्थितियों कों बदलनें का आहवान किया हैं। माखनलाल चतुर्वेदी आजादी की हुँकार से युक्त रचनायें लिखते क्योंकि उन्होंने पराधीन भारत के कष्टों और
बेड़ियो को देखा व महसूस किया हैं। उनकी कविता में आक्रोश है व पराधीनता की वेदना
का भाव है। आधुनिक हिन्दी साहित्य में आधुनिक समाज की परिस्थितियों व नयें मूल्यो
से अवगत कराया। आधुनिक साहित्यकार मनोहर श्याम
जोशी की कहानियॉ प्रचलित बासी कहानी कला के अभ्यासजड़ फॉर्मूलों को ध्वस्त करती हैं
और प्रगति प्रयोग की व्यंग्य कथा के लिये नई राहों की तलाश कथानक और कथ्य
दोनों कों कपट और कमीनोपन से मुक्त करते हुए समय समाज और इतिहास की धड़कनों सें
जोड़नें वाली आख्यान, प्रकरण, वर्णन, वार्ता संवाद, श्रुति सब कुछ कों एक मार्मिक गल्प में बदलने वाली कहानियॉ। हिन्दी में नई
कहानी के आंदोलन में ’निर्मल वर्मा’, ’कमलेश्वर’, ’शिव प्रसाद सिंह’,
’मोहन राकेश’ के साथ मनोहर श्याम जोशी को
भी भुलाया नहीं जा सकेगा कि उनकी कहानियो का रुप, रंग, लहजा एक दम अलग हैं। मनोहर श्याम जोशी के सामने
समस्याओं की सुलगती टहनियॉ कितनी ही लपटे छोड़ रही हों, उनके चिंतन के औजार ऐसे है कि वे उनके सोचने का- सजय़ंग, विचारो की प्रकिया और अर्थ-संदर्भ को बदल लेते हैं। सोच की ढंग व्यंग्य वक्रोक्ति बिंडबना में समाया होकर समय समाज की पीड़ाओ, भावनाओं, प्रश्नकुलताओं पर समाज-तथ्यों को
बटोरकर चौकन्ना सजग और प्रबुद्ध हो जाता है। मनोहर श्याम जोशी की कहानियों का
सृजन-संघर्ष केवल कथ्य और संवेदना, ज्ञान और
कर्म से जुड़े विचारों से होते हैं। अपनी मानसिक रचना में मनोहर श्याम जोशी उन
तर्क-कर्कश, कटु तिक्त आधुनिक बुद्विजीवीयों के
सच्चे उत्तराधिकारी दिखाई देते है, जो सजावटी चिंतन की
खुली मजाक बनाता हैं। भीतर की वैयक्तिक स्वतंत्रता को सर्वाधिक सम्मान देने वाला
निर्भय चितंक स्वाधीन मनुष्य। पश्चिमी भावबोध की जूठन को हितकार की दृष्टि से हटाने वाला रचनाकार यही है न ’कैसे किस्सागो’ की रचना प्रक्रिया का रहस्य- रुपक, नास्टेज्लिया, फंतासी जाल। इसी फंतासी जाल के भीतर से ’सिल्वरवैडिंग’ ’एक दुर्लभ व्यक्तित्व’ ’शक्कर
पारे’ ’जिदंगी के चौराहे पर’ जैसी
कहानियॉ लिखकर किया। गुडिया की पीड़ा में समाया अभावों का बचपन, पूरा मोहभंग है तो धुऑ का काला जीवन शायद इन्हीं सिसकियों से घबराकर दालान
में खूंटे से बॅधी बकरी-सी मिमियाती जिंदगी का दर्द हैं। नजरबंद- झोपड़ी की
कराह-कथा का मौन चीत्कार और पिछवाहे बहती शहर की गंदगी के भार से दबी हुई नाली
की हल्की-सी कल-कलकी आवाज में दुखियारी स्त्रियों की सिसकियों का दहाडता
आंतक। आंतक और गंदगी में बकरीनुमा नारी कष्ट, मुर्गियों की चोंच के कडे़ प्रहार, इन प्रहारो
के बीच दबा क्षत-विक्षत दलितों, स्त्रियों, अनगणित हीराओं का परिवार और संध्या की नीरवता में धूंये का थमा-थका
स्तम्भ रुपाकार। कुछ देर में न जाने कितना समय और नवजात शिशु कि मृत्यु का हाहाकार झोपड़ियों के अंदर से टाट की ओर से निकली औरत कि ओफीलियायी चीख और अंत में 1904 में नया ज्ञानोदय ’में छपी लम्बी कहानी’
’कैसे हो माट्साब आप ?’ का पसरा
ज्ञानवरी जगत। नक्सलवादी, हिंसावाद को गोदी में खिलाता
माट्साब का गांधीवाद।
मनोहर श्याम जोशी के सम्पूर्ण
कथा जगत में एक यज्ञ प्रश्न बबूल के काटें की तरह बिंधा हुआ है, जिसका
घायलपन भीतर तक दबाए वे जिंदगी- भर शहरों की सड़को पर अटकते- भटकते रहे, यह भटकन छोटी न थी।
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