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महात्मा गाँधी : समसामयिक प्रासंगिकता ISBN: 978-93-93166-17-3 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
नागरिक जीवन : अन्तर्राष्ट्रीय सन्दर्भ में प्रासंगिकता (महात्मा गाँधी के सन्दर्भ में) |
डॉ. विकास चौधरी
सहायक आचार्य
इतिहास
राजकीय महाविद्यालय, मारवाड़ जंक्शन
पाली, राजस्थान, भारत
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DOI: Chapter ID: 15949 |
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सारांश अगर मानव जाति का सबसे अच्छा अध्ययन स्वयं मानव है तो वह अध्ययन और भी
उत्कृष्ट हो जाता है जो एक ऐसे महापुरुष के विचारों का विश्लेषण करता है जो केवल
अपने सम सामयिकों में ही नहीं, अपितु वर्तमान समय में भी
प्रासंगिक है। वर्तमान समय में महाशक्तियों के मध्य संघर्ष, आतंकवाद, महामारी, विश्व के विभिन्न देशों की ध्वस्त होती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी आदि अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं में गाँधी
विचारधारा और अधिक प्रासंगिक लगने लगती है। गाँधीजी के सत्य, अहिंसा व सत्याग्रह संबंधी विचार से विश्व के अनेक महापुरुष
भी अपने जीवन के किसी न किसी स्तर पर प्रभावित रहे हैं। संपूर्ण विश्व में गाँधीजी
के विचारों का प्रभाव स्पष्ट रुप से दृष्टिगत होता है। आज विश्व में गाँधी दर्शन
ही एक ऐसा दर्शन है जो एक आदमी को बुनियादी अधिकार सामाजिक स्तर पर मानवीय
दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है तथा अहिंसा को माध्यम बनाकर इस रासायनिक हथियारों
की संस्कृति में अहिंसा का परचम लहराता है। मुख्य शब्द महात्मा गाँधी, प्रासंगिकता, नागरिक जीवन,
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर, आतंकवाद, बेरोजगारी, गाँधीवाणी, हरिजन, हिंद स्वराज, अशांति में गाँधी,
गाँधीवाद, मानवता, भौतिकवाद, मानव चेतना, सत्य, अहिंसा, राजनैतिक चेतना,
चिंतन आदि। प्रस्तावना भारत की भूमि पर गाँधीजी का आविर्भाव एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। वे न
केवल एक राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक व धार्मिक विचारक थे वरन् भारत में समग्र क्रांति
के अग्रदूत थे। गाँधीजी शोषण मुक्त,
समानता पर आधारित स्वावलम्बी व विकेन्द्रित समाज की स्थापना करना चाहते थे। इस
समाज में अमीर व गरीब का भेद नहीं होगा। यह समाज रंग, जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र व वर्ग विभेद से
परे एक स्वतंत्र समाज जो तमाम विषमताओं एवं अन्याय,
शोषण, अत्याचार से मुक्त हो। इस
प्रकार गाँधीजी की विचारधारा केवल एक पक्ष पर आधारित नहीं है, अपितु यह समग्र दर्शन है। इसी प्रकार गाँधीजी का नागरिक
जीवन के प्रति दृष्टिकोण वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में प्रासंगिक है। अध्ययन का उदेश्य वर्तमान समय में लोगों के मध्य यह विवाद का विषय है कि गाँधीवादी विचारधारा
वर्तमान में सार्थक है क्या ? महात्मा गाँधी ने कहा था कि
‘‘आँख के बदले आँख का प्रतिशोध भरा कानून अगर विश्व में लागू
हो गया तो संपूर्ण विश्व अंधा हो जायेगा।’’
वर्तमान में जब घृणा और बदले की मानसिकता व्यक्तिगत स्तर के ऊपर
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आ चुकी है,
विश्व में आंतकवाद चरम सीमा पर है ऐसी समस्याओं के मध्य गाँधी विचारधारा और
अधिक प्रासंगिक दृष्टिगत होती है और इसका विश्लेषण करना आवश्यक है। साहित्यावलोकन डॉ मनोज कुमार बहरवाल ने अपने ग्रंथ ‘भारतीय राजनीतिक चिंतक’ उदयपुर, 2014 में आतंकवादी घटनाओं, मानवाधिकारों का हनन,
जनता पर अत्याचार, असहाय लोगों को बंधक बनाना
आदि समस्याओं का निराकरण गाँधीवादी उपायों से संभव बताया है। पी.के. त्यागी ने
अपनी पुस्तक ‘भारतीय राजनीतिक विचारक’ नई दिल्ली, 2013 में डॉ. राजेन्द्र
प्रसाद के गाँधी के प्रति विचारों को अभिव्यक्त किया है जो वर्तमान विश्व की
अशांति में गाँधी के विचारों को प्रासंगिकता सिद्ध करती है। जैन माणक ने अपनी पुस्तक ‘गाँधी के विचारों की 21 वीं
सदी में प्रासंगिकता’ जयपुर, 2010 को सात अध्यायों में विभक्त किया है जिसमें गाँधीजी के
सामाजिक और राजनीतिक विचारों का आधार अहिंसा है। कोर्टराइट डेविड ने अपने ग्रंथ ‘गाँधी एण्ड विमोण्ड’
नई दिल्ली, 2007 में नस्लभेद आंदोलन की
सफलता में अहिंसात्मक आंदोलन के योगदान का वर्णन प्रस्तुत किया है। लुइस फिशर ने अपने ग्रंथ ‘द लाइफ ऑफ महात्मा’ के भाग-2 में लिखा है कि गाँधी प्रेम और सद्भावना के अमर
प्रतीक है उक्त कथन वर्तमान परिपेक्ष्य में प्रासंगिकता को दृष्टिगत करता है। 25
दिसंबर, 2003 को न्यूयॉर्क टाइम्स
नामक समाचार पत्र में इराक में शांति स्थापित करने हेतु अमरिका द्वारा किये गये
अहिंसात्मक प्रयासों का वर्णन किया है। डॉ. राधाकृष्णन ने ‘मेमोरियल सेक्शन ऑफ गाँधीज 70जी बर्थ डे’ 1949 में जॉर्ज मार्शल के विचारों का वर्णन किया हैं जिसमें
उन्होंने कहा था कि ‘महात्मा गाँधी संपूर्ण मानव
चेतना के प्रवक्ता है।’ उपरोक्त स्रोत सामग्री के आधार पर प्रस्तुत शोध-पत्र में नागरिक जीवन व
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में प्रासंगिकता संबंधी गांधीजी के विचारों को प्रस्तुत
किया गया है। नागरिक जीवन: अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में प्रासंगिकता वैश्विक स्तर पर व्याप्त हिंसा,
मतभेद, बेरोजगारी, महंगाई तथा तनावपूर्ण वातावरण में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक
है कि गाँधी के सत्य व अहिंसा पर आधारित विचारों की आज कितनी प्रासंगिकता महसूस की
जा रही है। अमेरिका पर 9/11 को हुए आतंकवादी हमले ने संपूर्ण विश्व की राजनीति का
रूख ही परिवर्तित कर दिया। इस आतंकी आक्रमण के उपरांत जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने इसे
अमेरिका के स्वाभिमान पर हमला मानते हुए आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की
जिसमें वह पूर्णतः सफल भी नहीं रहे। नवंबर 2008 में अमेरिका में राष्ट्रपति के
चुनाव संपन्न हुए जिसमें विजय एक अश्वेत प्रत्याशी बराक ओबामा की हुई जिन्होंने
महात्मा गाँधी द्वारा बनाये गये सत्य,
शांति एवं अहिंसा के मार्ग पर चले हुए दुनिया में शांति स्थापित करने की बात
कर रहे थे न कि राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की नीतियों का अनुसरण करने वाले जॉन मैकेन की।
इस घटना ने संपूर्ण विश्व में एक बार फिर यह प्रश्न अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा कर
दिया कि कहीं आज हिंसापूर्ण वातावरण में महात्मा गाँधी के आदर्शों की पुनः
प्रासंगिकता तो महसूस नहीं की जा रही है। ‘गाँधीजी की मृत्यु के
उपरांत भी गाँधीवाद उस समय तक जीवित रहेगा जब तक तारे चमकते है और सागर मचलते हैं।’ स्वर्गीय डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के इन शब्दों में गाँधीवाद
के स्थायी प्रभाव की उचित अभिव्यक्ति हुई है। उनका नीतिशास्त्र और राजनीति को मिला
देना और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिये सत्य और अहिंसा
पर बल देना, गाँधीजी की राजनीतिक
विचारों को दी हुई एक अन्यतम् देन समझी जानी चाहिए। भौतिकवाद के उस युग में
गाँधीवाद ही इस अंधकारमय और अव्यवस्थित संसार के लिए आशा की एक किरण है। इसी से
मानव सभ्यता जो ज्वालामुखी के मुख पर खड़ी है,
बच सकती है।[1] अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर (विशेषकर पश्चिमी प्रेस) गाँधीजी पर जो समाचार
प्रकाशित हुए है उन्हें देखने से गाँधी विचारधारा का विश्व में कितना प्रभाव है यह
हमें दृष्टिगत होता है। 11 जनवरी, 2003 को इलीनोयस (अमरीका)
के गवर्नर ने 167 मृत्युदण्ड प्राप्त कैदियों की सजा उम्रकैद में बदल दी थी। अपने
इस फैसले में उन्होंने महात्मा गाँधी के विचार ‘आँख के बदले आँख’ का उल्लेख भी किया है और कहा कि वे नेल्सन मंडेला और बिशप
टूटू से प्रभावित होकर यह निर्णय कर रहे हैं।[2] न्यूयॉर्क टाइम्स ने 25 दिसम्बर, 2003 को अपनी रिपोर्ट में कहा कि लंदन से एक बस भरकर
कार्यकर्ता इराक के लिए रवाना हुए है जो वहाँ से निर्दोष नागरिकों की रक्षा के लिए
जा रहे हैं।[3] इसी प्रकार नार्वे में एक इंस्टीट्यूट कोसोवो और बोस्निया में कार्य करने वाले
शांति रक्षकों को प्रशिक्षण दे रहा है। इस प्रशिक्षण में एक संपूर्ण पाठ्यक्रम
महात्मा गाँधी पर जोड़ा गया है। केलिफोर्निया में एक स्कूल टीचर जॉन कीगले ने स्वयं
को एक पेड़ से चैन से बाँध रखा है। वह 1 नवंबर,
2002 से इसी पेड़ पर बने हुए एक प्लेटफॉर्म पर रह रहा है। यह एक 400 वर्ष
पुराना ओक वृक्ष है जिसकी प्रजाति को वह समाप्त होने से बचाना चाहता है। 11 जनवरी, 2003 को जब पुलिस ने जबरन उसे हटाया तो उसने कहा कि मैं यह
सब महात्मा गाँधी के अहिंसा धर्म में विश्वास रखने के कारण ही कर पाया। इस घटना से
विदित है कि गाँधीजी वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी प्रासंगिक है।[4] दक्षिण अफ्रीका सरकार ने प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार देने की घोषणा की यह
पुरस्कार दक्षिण अफ्रीका के बाहर के उन लोगों को प्रदान किया जायेगा जिन्होंने
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान व लोकतंत्र की स्थापना के उपरांत दक्षिणी अफ्रीका के
नागरिकों के हितों हेतु कार्य किया है। प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा के समय
सबसे प्रमुख नाम महात्मा गाँधी का था। इस पुरस्कार की घोषणा करने वाले के मन में
शायद गाँधीवादी विचारधारा रही होगी जो विश्व पटल पर आज भी प्रासंगिक है। आज विश्व जब रूस-यूक्रेन युद्ध से जुझ रहा है इस समय किसी भी देश में
शांतिमार्च निकलना हो या अत्याचार व हिंसा का विरोध किया जाना हो या हिंसा का
जवाब अहिंसा से देने की बात हो यह समस्त घटनायें गाँधीवाद के बिना सार्थक नहीं है।
अतः यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि गांधीजी के विचार, उनका दर्शन तथा सिद्धांत कल भी प्रासंगिक थे, आज भी प्रांसगिक है और विश्व में कल भी प्रासंगिक रहेंगे। 29 अगस्त, 1947 को राजकुमारी अमृतकौर
से कहे गये गाँधीजी के शब्द स्पष्ट है,
’तुम्हें मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता एक समुद्र है। कुछ बूँदे
मैली हो जाये तो समुद्र मैला नहीं हो जाता है। मृत्यु के क्षण तक तुम्हें यत्नशील
रहना है कि समुद्र मैला न हो।’[5] गाँधीजी के अपने शब्दों
में उनका जीवन मानवता के लिए एक संदेश है। उस मानवता के लिए जो अपने जीवन के अंतिम
चरण में प्रतीत होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका के एक भूतपूर्व विदेश मंत्री जॉर्ज
मार्शल ने कहा था कि महात्मा गाँधी संपूर्ण मानव चेतना के प्रवक्ता है। सर
स्टेफर्ड क्रिप्स ने गाँधीजी की हत्या पर कहा था कि,
’मैं किसी भी समय के निः संदेह निकट अतीत के,
किसी भी व्यक्ति को नहीं जानता जिसने भौतिकवाद पर आत्मा की शक्ति के प्रभुत्व
को इस निर्णायक रूप से प्रदर्शित किया हो।’
डॉ. राधाकृष्णन के शब्द में, ‘मानव भावना में जो भी
उदात्ततम् है वह उसको हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं। उन्होनें मानवीय प्रयासों के
शाश्वत् महत्त्व के प्रति अपने विश्वास के द्वारा मानव अस्मिता को ज्योतित किया
है।’[6] वर्तमान भारत में ही नहीं विश्व की राजनीति एवं समाज में गाँधी दर्शन की पताका
लहरा रही है। गाँधीवादी दर्शन भौतिक एवं सुव्यवस्थित दर्शन है जिसमें सात्विकता
एवं आध्यात्मिकता निहित है जो कि मानव को आत्मज्ञान व अनुशासन का ज्ञान प्रदान
करती है। इसमें मानवतावाद, नैतिकता, प्रेम, सहानुभूति, सेवा एवं समर्थन की भावना निहित है। यहीं वह आधार है जिस पर
सृष्टि टिकी हुई है एवं मानव ने अपना विकास किया है। गाँधी दर्शन एक ऐसी दवा है जो
विश्व में व्याप्त हिंसा, घृणा, अविश्वास तथा मानवीय क्रूरताओं जैसी घातक बीमारियों का इलाज
कर सकता है। इसी प्रकार विश्व में आतंकवादी गतिविधियाँ, उनके द्वारा प्रयोग में अपनाये जाने वाले विनाश के तरीके, जनता पर अत्याचार,
नरसंहार, मानवाधिकारों का हनन आदि
उदाहरण है जिनका निराकरण धैर्य व धीरज से कार्य करते हुए गाँधीवादी उपायों से संभव
है [7] वर्तमान समय में समस्त भौतिक बुराईयों का अंत मानव को गाँधी दर्शन के
आत्मज्ञान, आत्मसाक्षात्कार, आत्मबल व आत्मानुशासन में तथा ईश्वर के प्रति ध्यान के
सिद्धांत में ही मिल सकता है।[8] वर्तमान की अनैतिक राजनीति व राजनीति में नैतिक मूल्यों के पतन जैसी समस्या का
स्थायी समाधान गाँधीजी के दर्शन ‘राजनीति के आध्यात्मिकरण’ से प्राप्त हो सकता है। वर्तमान विश्व धार्मिक वैमनस्य की
आग में जल रहा है, इस भीषण आग पर गाँधीजी के
धर्मनिरपेक्षता रूपी पानी से ही काबू पाया जा सकता है।[9] वर्तमान विश्व शस्त्रीकरण की प्रतियोगिता में है जिसने अफगानिस्तान, ईराक, लेबनान, यूक्रेन आदि संस्कृतियों को समाप्त कर दिया है। संपूर्ण
विश्व की मानवीय सभ्यता व राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय जनमत यहीं चाहता है कि इस
भीषण नरसंहार व मानवीय क्षति से मुक्ति प्राप्त हो। 14 मार्च, 2015 को ब्रिटेन के ऐतिहासिक पार्लियामेंट स्क्वायर पर
नेल्सन मंडेला, विंस्टन चर्चिल के पास
महात्मा गांधी की कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई है जो विश्व शांति की ही सूचक
है।[10] ऐसे में हमें विश्व की उपरोक्त समस्या का समाधान गाँधी दर्शन के अहिंसा, प्रेम व मानव जीवन के प्रति समर्पण भाव व मानव सम्मान व सुरक्षा
जैसे सिद्धातों में ही दृष्टिगत होती
है।[11] अमेरिका में नस्लभेद आंदोलन की शुरुआत मोंटगोमरी में रंगभेद के बहिष्कार
आंदोलन से प्रारंभ हुई थी। यहाँ सिटीबसों के ड्राइवर अश्वेत यात्रियों के साथ
दुर्व्यवहार करते आ रहे थे। इस भेद से लड़ने के लिए अश्वेत समुदाय ने बसों के
बहिष्कार का निर्णय लिया। इस प्रकार यह बहिष्कार लगभग 381 दिनों तक चला तथा अंत
में अमरिकी अश्वेतों के इस अहिंसक आंदोलन की विजय हुई। इस आंदोलन के समर्थन में
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि बसों में नस्ल के आधार पर यह पृथक्करण असंवैधानिक
है।[12] निष्कर्ष सारांशतः महात्मा गाँधी के नागरिक जीवन से संबंधित विचार वर्तमान
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में प्रासंगिक है। वैश्विक स्तर पर व्याप्त समस्त समस्याओं
जैसे नस्लभेद, आतंकवाद, नैतिक मूल्यों का पतन,
युद्ध आदि का समाधान अन्ततः गाँधीवाद से ही संभव है। विश्व के विभिन्न
राष्ट्रों में लोकतंत्र की स्थापना हो या विभिन्न राष्ट्रों द्वारा सत्य, अहिंसा व सत्याग्रह का पालन हो यह वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय
संदर्भ में गाँधीजी को प्रासंगिक सिद्ध करती है। संदर्भ ग्रंथ सूची 1. त्यागी पी.के.: भारतीय राजनीतिक
विचारक, नई दिल्ली, 2013, पृ. 430 2. ‘द टेलीग्राफ’ कोलकाता, जनवरी, 12, 2003, वांशिंगटन से प्राप्त समाचार 3. न्यूयॉर्क टाइम्स: दिसंबर 25, 2003 4. एसोसिएटेड प्रेस, जनवरी, 11, 2003 5. लुइस फिशर: द लाइफ ऑफ महात्मा, भाग-2, 1955 पृ. 286 6. डॉ. राधाकृष्णन: मेमोरियल सेक्शन
ऑफ गाँधीज 70जी बर्थडे, 1949, पृ. 360 7. बहरवाल, डॉ. मनोज कुमार: भारतीय राजनीतिक चिंतक, उदयपुर, 2014 पृ. 438 8. महादेव प्रसाद: महात्मा गांधी का
समाज दर्शन, हरियाणा, 1973ए पृ. 126 9. सिंह, रामजी: द रेलेवेन्स ऑफ गाँधीयन थॉट, नई दिल्ली, 1983, पृ. 79 10. राजस्थान पत्रिका, कोटा संस्करण,
फरवरी 23, 2015, पृ. 16 11. जैन, माणक: गाँधी के विचारों की 21वीं सदी में प्रासंगिकता, जयपुर, 2010, अध्याय 1-7 12. कोर्टराइट, हेविड: गाँधी एण्ड विमोण्ड, नई दिल्ली, 2007, पृ. 67
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