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भारतीय संस्कार : परिवर्तित आयाम ISBN: 978-93-93166-25-8 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
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मूल्यों के लिए शिक्षा |
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डॉ. अखिलेश कुमार सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिक्षक प्रशिक्षण विभाग
राठ महाविद्यालय, पैठानी, पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखंड, भारत
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DOI: Chapter ID: 17113 |
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परिचय (Introduction) प्रत्येक समाज जहाँ एक ओर
अपने बच्चों को शिक्षा द्वारा कुछ विशेष प्रकार का ज्ञान तथा कौशल प्रदान करने का
प्रयत्न करता है, वहाँ उसके साथ-साथ वह उसमें कुछ गुणों का विकास करने का भी
यत्न करता है, जो उनको अच्छा नागरिक बनाने में सहायता करे। इस प्रकार की
शिक्षा को हम मूल्य शिक्षा कहते है। प्राचीनकाल में जब
सार्वजनिक शिक्षा अस्तित्व में नहीं आयी थी तब इस प्रकार की शिक्षा केवल धार्मिक
संस्थाओं में ही प्रदान की जाती थी। विभिन्न विश्वासों के अनुरूप अच्छे नागरिक बन
सके। इस प्रकार की शिक्षा प्रदान करने का केन्द्र प्रायः धार्मिक संस्थान हुआ करते
थे, परन्तु इस प्रकार की शिक्षा के जहाँ एक ओर कुछ लाभ थे, वही दूसरी ओर इसकी
कुछ हानियां भी थी। यहाँ एक ओर इस प्रकार की शिक्षा विद्यार्थियों को अच्छा मानव
बनने में सहायता करती थी, वहीं दूसरी ओर यह शिक्षा उनके अन्दर धार्मिक कट्टरपन के बीज
बोने में सहायक होती थी, जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्तियों में दूसरे विश्वासों को
मानने वाले के प्रति द्वेष की भावना आ जाती थी। इस प्रकार जहाँ एक ओर धर्म पर
आधारित नैतिक शिक्षा समाज में एकता स्थापित करने में सहायक होती थी तो दूसरी ओर
मानव समाज में यह अशान्ति भड़काने में सहायक होती थी। मूल्यों का अर्थ मनोवैज्ञानिक अर्थ - जो हमारी इच्छा को पूरा करता है वह मूल्य है। जैविक अर्थ - मूल्य उस क्रिया की विशेषता है, जो हमारे जीवन की
सुरक्षा एवं वृद्धि में सहायक होती है। दार्शनिक अर्थ- मूल्य किसी व्यक्ति या वस्तु से सम्बन्धित होते है, बल्कि किसी विचार या
दृष्टिकोण से सम्बन्धित होते है। अतः जो चीज किसी व्यक्ति के लिए उपयोगी होती है, वही उसके लिए
मूल्यवान बन जाती है। मूल्यों की परिभाषाएं 1. ऑलपोर्ट के अनुसार - ‘‘मूल्य ऐसे व्यवहार
को कहते है, जिसे हम प्राथमिकता देते है।’’ 2. एन0टी0 राम जी के अनुसार - ‘‘मूल्य वे होते है जिन्हें
चाहा जाता है, मूल्यों को प्रचलन की धारणा में जीवन के उन मार्ग दर्शक के
सिद्धान्तों में लिया जाता है, जो हमारे शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के
लिए उपकारी है तथा सामाजिक भलाई और समायोजन की ओर अग्रसर करते है और जिनका हमारी
संस्कृति से ताल-मेल है।’’ उपर्युक्त परिभाषाओं के
अध्ययन के पश्चात् यह स्पष्ट होता है कि मूल्य- 1. विचारों, आदर्शो, आकांक्षाओं का
सम्मिलित रूप है। 2. इनका चुनाव समाज द्वारा इनकी उपयोगिता के आधार पर किया जाता
है। 3. इन मूल्यों का उद्देश्य समाज का मार्गदर्शन करना है। मूल्य
कई प्रकार के होते है, जिनकी सूची इस प्रकार है-
मूल्यों का निर्धारण 1. सुखवादी सिद्धान्त - किसी
वस्तु के मूल्य का निर्धारण इस बात से किया जाता है कि उसमें हमारी इच्छाओं को
सन्तुष्ट करने की कितनी शक्ति है। 2. उपयोगिता वादी सिद्धान्त -
प्रत्येक उपयोगी वस्तु मूल्यवान है। 3. नियमन सिद्धान्त- जो समाज
के संगठन में सहायक हो वह मूल्य है। 4. प्रयोगवादी सिद्धान्त -
अतीत एवं वर्तमान में किये गये प्रयोग ही मूल्य है। 5. भावात्मक सिद्धान्त -
व्यक्ति अपनी भावनाओं के अनुसार मूल्यों को निश्चित करता है। शिक्षात्मक मूल्यांे का योगदान शिक्षात्मक मूल्य वे
क्रियाएं है, जो शिक्षा के दृष्टिकोण से अच्छी, उपयोगी एवं मूल्यवान
हो। शिक्षात्मक मूल्यों से व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन का निम्नलिखित लाभ हो सकते
है- 1. रोजी कमाने एवं भौतिक उन्नति
की क्षमता। 2. व्यवसायिक कुशलता का विकास। 3. चरित्र का विकास। 4. स्वस्थ एवं सन्तुलित
व्यक्तित्व का विकास। 5. अनुभव का पुर्नगठन एवं पुनः
निर्माण। 6. अच्छी नागरिकता का विकास। 7. पर्यावरण के साथ अनुकूलन
एवं उसका परिष्कार। 8. व्यक्ति की आवश्यकताओं की
पूर्ति। 9. अवकाश काल का सदुपयोग। 10. सामाजिक कुशलता का विकास। 11. राष्ट्रीय एकता का विकास। 12. नेताओं एवं प्रशिक्षित
कार्यकर्ताओं के आदर्श। अतः शिक्षात्मक मल्य मानव
जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, इन्हीं के द्वारा व्यक्ति
अपना व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन सफलतापूर्वक गुजारता है। मूल्यों का वर्गीकरण 1. परम्परागत मूल्य 2. भारतीय संविधान द्वारा
प्रतिपादित मूल्य 3. जीवन शैली में परिवर्तन के
परिणाम स्वरूप विकसित मूल्य 1. परम्परागत मूल्य- परम्परागत मूल्यों का
सम्बन्ध उन आदर्शों सिद्धान्तों तथा विश्वासों से होता है, जो प्राचीन काल से
ही जीवन का मार्ग दर्शन करते आ रहे है। इस प्रकार हम कह सकते है कि इन मूल्यों का
आधार समाज की संस्कृति होती है। ये मार्गदर्शक सिद्धान्त आदर्श तथा विश्वास पीढ़ी
दर पीढ़ी हस्तान्तरित होते रहते है, अर्थात् एक पीढ़ी से दूसरी
पीढ़ी को सौप दिये जाते है। इन्हें शाश्वत मूल्य भी कहा जाता है। इसका कारण यह है
कि समाज में चाहे कितने परिवर्तन क्यों न हो इन मूल्यों का महत्व कम नहीं होता। इन
मूल्यों की दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि ये मूल्य किसी भी समाज की अलग पहचान
होते है। इन मूल्यों से हटकर वह समाज अपनी पहचान खो देता है। परम्परागत मूल्य निम्न है - i. सत्य ii. अहिंसा iii. करूणा iv. शान्ति v. क्षमाशीलता vi. सादगी vii. ज्ञान के लिए खोज viii. धैर्य ix. ज्ञान का प्रचार x. सहयोग 2. भारतीय संविधान द्वारा
प्रतिपादित मूल्य - आधुनिक युग में केवल उन
देशों को छोड़कर जहाँ एक विशेष राजधर्म है। सभी देशों में धार्मिक शिक्षा निरपेक्ष
विधि से प्रदान की जाती है। स्वतंत्र भारत के संविधान में भी कुछ मूल्यों का
उपयुक्त स्थान दिया गया है, जो एक नैतिक शिक्षा का आधार बन सकते है इनमें जो निम्नलिखित
है- (i) स्वतंत्रता
- स्वतंत्रता मानव जाति का
आधार भूत तथा बहुत महत्वपूर्ण मूल्य है। भारतीय संविधान में इस सामाजिक मूल्य को
बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। भारतीय समाज का सुचारू रूप से चलाने के लिए
भारतीय संविधान में निम्नलिखित स्वतंत्रता दी गई है- i. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ii. भ्रमण की स्वतंत्रता iii. व्यवसाय धारण करने की स्वतंत्रता iv. संघ बनाने की स्वतंत्रता v. सभा करने की स्वतंत्रता (ii) समानता
- प्रतिष्ठा तथा अवसर में
समानता प्रजातांत्रिक समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कानून की दृष्टि से सभी
नागरिक समान है। भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान समझता है तथा धर्म, लिंग या जन्म के
स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं रखता। परन्तु समाज के किसी शोषित
वर्ग के स्वार्थो की रक्षा करने के लिए समानता के नियमों में कुछ ढील दी जा सकती
है- जैसे- अनुसूचित जनजातियों
तथा जातियों के लिए कुछ विशेष रियायतें दी जा सकती है। जैसे- किसी शैक्षणिक
संस्थान में प्रवेश लेने के लिए या कोई नौकरी प्राप्त करने के लिए जहाँ पर इन
जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। ऐसा उनको निर्धनता की दल-दल से
ऊपर उठाने के लिए किया जाता है। (iii) विश्व
बन्धुत्व की भावना - आज केवल राष्ट्रीय स्तर पर
ही भ्रातृत्व की भावना का विकास करने के मूल्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
आज का युग अन्तः राष्ट्रीयता का युग है। आज के युग में यह संसार एक ज्वालामुखी
पर्वत के शिखर पर बैठा है जो किसी भी समय फट सकता है। अर्थात् संसार में कुछ
संवेदनशील स्थान है, जहाँ पर किसी भी समय किसी भी छोटी सी बात को लेकर दो देशों
में लड़ाई भड़क सकती है और यह लड़ाई केवल उन दो देशों तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि विश्व युद्ध
का रूप धारण कर सकती है। इसलिए लोगों के मन में आक्रामकशीलता आ जाती है, इसलिए विश्व
बन्धुत्व को एक महत्वपूर्ण मानव मूल्य के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। आज हमारा
प्रयास विश्व परिवार की भावना का विकास करने से है, जिससे आवश्यकता पड़ने पर हम
संसार के किसी भी कोने में रहने वाले लोगों की सहायता करने के लिए तत्पर हो सके
एवं विश्व शान्ति के लिए प्रयास करे। (iv) वैज्ञानिक
दृष्टिकोण- आज का युग विज्ञान का युग
है। ऐसे में प्राचीन रूढ़ियों, परम्पराओं या अन्ध
विश्वासों के साथ चिपके रहना सामाजिक विकास के लिए उपयुक्त नहीं है, इसलिए स्वतंत्रता के
पश्चात् यह अनुभव किया गया है कि लोगों के दृष्टिकोण को वैज्ञानिक बनाना बहुत
आवश्यक है। आज वैज्ञानिक दृष्टिकोण को एक सामाजिक मूल्य के रूप में स्वीकार किया
गया है, ताकि व्यक्ति अपनी प्राचीन मान्यताओं को छोड़कर प्रत्येक बात
को वैज्ञानिक ढंग से सोचे तथा ‘तथ्य तथा प्रचार’ में अन्तर कर सके।
किसी बात को वह तब न माने जब तक तर्क के आधार पर उसका वस्तुनिष्ठ ढंग से परीक्षण न
कर ले। (v) सामाजवादी
मूल्य- लोकतांत्रिक समाजवादी
व्यवस्था में निम्नलिखित सामाजवादी मूल्य भी होंगे - 1. पदवी तथा अवसर के प्रति समानता का आदर। 2. धन का समान बंटवारा। (vi) धर्म
निरपेक्ष मूल्य - धर्म निरपेक्षता स्वतंत्रता
का मुख्य सामाजिक मूल्य है, इसका तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों को अपने धर्म के
अनुसार आचरण करने की स्वतंत्रता होगी परन्तु इस बात को ध्यान रखना होगा कि लोगों
के धार्मिक विश्वास एवं आदर्श दूसरों के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक जीवन
में किसी भी प्रकार से बाधक नहीं होने चाहिए। इस विवेचना से यह हम कह
सकते है कि धर्म निरपेक्षता के मूल्य निम्न है- i. सभी धर्मो के प्रति आदर। ii. पूजा करने की स्वतंत्रता। iii. नागरिक कार्यो की व्यवस्था करते समय धर्म को बीच में न
लाना। इसका अर्थ कदापि यह नहीं है
कि किसी धर्म को माना ही न जाय बल्कि सभी धर्मो के लोगों को समान अवसर प्रदान करने
चाहिए। (vii) न्याय
- न्याय का अर्थ है कि सबके
साथ न्यायोचित व्यवहार करना। न्याय तथा ईमानदारी को भी सामाजिक मूल्यों में
सम्मिलित किया जा सकता है, जो तीन प्रकार के होते है- i. सामाजिक न्याय ii. आर्थिक न्याय iii. राजनैतिक न्याय 3. जीवन शैली में परिवर्तन के
परिणाम स्वरूप विकसित मूल्य - कई मूल्य आधुनिक जीवन शैली
के परिणाम स्वरूप भी विकसित होते है, जिन्हें समाज को धारण करना
होता है। इस प्रकार के कुछ मूल्य निम्नलिखित है- (i) वैज्ञानिक
दृष्टिकोण - आधुनिक युग में वैज्ञानिक
दृष्टिकोण जिसमें स्वतंत्र विचार धारा तथा तार्किक निर्णय करने की शक्ति के गुण
आते है, जो प्रत्येक नागरिक में होने चाहिए। जब व्यक्ति में
वैज्ञानिक चिन्तन की आदत का विकास हो जाता है तो उसमें अच्छे-बुरे, सत्य-असत्य में भेद
करने की क्षमता आ जाती है। (ii) पर्यावरण
की सम्भाल - प्राकृतिक साधनों का शोषण
विश्व की जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लालची व्यक्तियों द्वारा
शीघ्र से शीघ्र धन बटोरने के लिए औद्योगिक तथा वैज्ञानिक कृषि के लिए हो रहा है।
यह शोषण प्रायः - 1.
बन कटाव 2.
भूमि कटाव 3.
औद्योगिकीकरण 4. कृषि व्यापार की ओर झुकाव (iii) छोटे
परिवार का महत्व - आज के युग में छोटे परिवार
को नकारा नहीं जा सकता। छात्रों में यह सोचने की योग्यता प्रदान करनी चाहिए कि
परिवार का आकार छोटा रखा जा सकता है। यदि इस पर नियंत्रण किया जाय तो जनसंख्या की
सीमा निर्धारित करने से राष्ट्र का जीवन उत्तम तथा सुविधाजनक बन सकता है, इसीलिए कहा गया है- ‘‘छोटा परिवार सुखी
परिवार’’। (iv) जीवन
का अधिक तेज एवं जटिल होना- समय के साथ-साथ जीवन तेज
एवं जटिल होता जा रहा है। परिवार, समाज, समुदाय, व्यवसाय एवं राजनीति
का वातावरण निरन्तर जटिल होता जा रहा है। आज के विद्यार्थियों को ऐसी नैतिक
स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे दूसरों पर निर्भर
होने की बजाय स्वयं निर्णय लेने को मजबूर हो सकते है। (v) विद्यार्थियों
का प्रौढ़ों पर कम विश्वास- आधुनिक युग में युवकों की
कुछ विशेष समस्याएं है, वे प्रौढ़ों के प्रत्येक व्यवहार को आँखे बन्द करकेसही नहीं
मानते। राजनीतिज्ञों पर तो उनका विश्वास बहुत कम है। इस प्रकार जिन मूल्यों की
सिफारिश उनकी पुस्तकों में की गई है, उनको भी वे प्रासंगिक नहीं
मानते। प्रायः ऐसा देखने में आया है कि बहुत से युवक सिगरेट, मदिरा तथा नशीली
दवाओं का प्रयोग करने लगे है। इसलिए यह और भी आवश्यक बन जाता है कि विद्यार्थियों
को अपनी जीवन शैली को धारण करने में सहायता दी जाय तथा विस्तृत रूप से विचार किये
जांय। मानवीय तथा सामाजिक मूल्यों की शिक्षा के महत्वपूर्ण
उद्देश्य - मूल्य शिक्षा को दूसरे
विषयों की तरह अगले विषय के तौर पर नहीं पढ़ाया जा सकता। इस प्रकार की शिक्षा का
उद्देश्य तो बच्चों में कुछ सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों को विकसित करना होता है, जिससे उनके जीवन
शैली में गुणात्मक प्रगति हो सके। सामाजिक तथा मानवीय मूल्यों के लिए निम्नलिखित
उद्देश्य हो सकते है - (1) विद्यार्थियों में आधारभूत
सामाजिक एवं मानवीय गुणों का विकास- शिक्षा का मुख्य उद्देश्य
विद्यार्थियों में कुछ आधारभूत मानवीय गुणों का विकास करना है, जैसे- सफाई, सत्य, अहिंसा, कठोर परिश्रम, प्रेम, समानता, समाजवाद, धर्म निरपेक्षता, प्रजातंत्र, सहयोग, साहस, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, पर्यावरण सम्भाल तथा
छोटे परिवार का महत्व। (2) विद्यार्थियों को
उत्तरदायित्व निभाने वाले नागरिक बनाने को प्रोत्साहन देना - स्कूल शिक्षा दूसरा मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को प्रगतिशील तथा जिम्मेदार नागरिक बनाना है, ताकि वे अपने व्यक्तित्व तथा सामाजिक जीवन में सफल हो सके। (3) विद्यार्थियों को उनके
सामाजिक तथा आर्थिक जीवन से अवगत कराना - मूल्य शिक्षा का एक
महत्वपूर्ण उद्देश्य विद्यार्थियों को उनके सामाजिक तथा आर्थिक जीवन से अवगत कराना
है ताकि वे देश की दशा को समझने तथा उसमें सुधार लाने का प्रयत्न करें। (4) विद्यार्थियों को उदार
विचारों का बनाना - शिक्षा के इतने अधिक प्रसार
होने के बावजूद भी देश के संकुचित प्रवृत्तियां बहुत अधिक मात्रा में विद्यमान है।
हमारे देश के लोग धर्म, जाति, भाषा के आधार पर अभी भी
बंटे हुए है। इसका मुख्य कारण अशिक्षा, अज्ञानता आदि जातिगत
बुराइयाॅ, राजनैतिक दलों का गलत प्रचार-प्रसार आदि। इसलिए आवश्यकता इस
बात की है कि शिक्षा उनके विचारों तथा व्यवहारों को अधिक उदार बनाये। ऐसा केवल
मूल्य शिक्षा द्वारा ही सम्भव है। (5) विद्यार्थियों में आत्म
सम्मान की प्रवृत्ति का विकास करना- मूल्य शिक्षा विद्यार्थियों
में आत्म सम्मान की भावना का विकास करती है। उनके अन्तर्निहित गुणों को विकसित
करने में प्रोत्साहन दें। (6) विद्यार्थियों में ठीक
प्रकार के दृष्टिकोण को विकसित करना- सामाजिक और नैतिक शिक्षा
विद्यार्थियों में कुछ उपयुक्त दृष्टिकोण को उत्पन्न करती है, यदि विद्यार्थी में
ठीक प्रकार के दृष्टिकोण होंगे तो उनका व्यवहार भी ठीक होगा। बिना ठीक प्रकार के
मूल्य शिक्षा के विद्यार्थियों में गलत प्रकार की धारणाएं पनप सकती है जैसे-
पूर्वाग्रह ईष्या तथा निष्क्रिय रहने की आदत इसलिए मूल्य शिक्षा विद्यार्थियों में
अपने प्रति, देश के प्रति विश्व के प्रति, सभी धर्मों के प्रति तथा
अपने पर्यावरण के प्रति ठीक प्रकार के दृष्टिकोण उत्पन्न करें। मूल्यों के स्रोत (1) धर्म धर्म मूल्यों एवं
सिद्धान्तों का सशक्त स्त्रोत है। अधिकांश मूल्य एवं सिद्धान्त धर्म द्वारा प्रदान
किये गये है। धर्म हमें उन नैतिक बन्धनों की ओर संकेत करता है जो प्रेम, त्याग और समाज सेवा
द्वारा मानव जाति में सम्बन्ध स्थापित करते है। वटैण्ड रसल के विचारानुसार - ‘‘धर्म समाजिक
कृतज्ञता की भावना का स्त्रोत है।’’ धर्म सभी वांछित सामाजिक
नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का समूह है। मनुष्य से इन्हीं मूल्यों को अपने आचरण
एवं चरित्र में व्यक्त करने की अपेक्षा की जाती है। विभिन्न धर्मों ने विभिन्न
मूल्यों का निरूपण किया है हिन्दू धर्म ने ‘मोक्ष’ को जीवन का अन्तिम
लक्ष्य माना है। हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म, इस्लाम धर्म, जैन धर्म, इसाई धर्म तथा अन्य धर्मो
ने जीवन के निम्नलिखित मूल्यों को निरूपित किया है- i. आत्म नियंत्रण ii. समाज के लिए त्याग iii. अहिंसा iv. सत्यता v. समाज सेवा vi. सादगी vii. पवित्रता viii. भक्ति ix. धर्मनिष्ठा x. प्रेम xi. उदारता xii. शान्ति आदि। दर्शन दर्शन मूल्यों का एक और
महत्वपूर्ण स्त्रोत है। तत्व ज्ञान, तर्क नीतिशास्त्र, सौन्दर्य-ज्ञान, तथा मूल्यों के
अध्ययन को दर्शन कहा जाता है। विभिन्न जीवन दर्शन एवं शिक्षा दर्शनों जैसे-
भौतिकवाद, प्रकृतिवाद, प्रयोजनवाद, आदर्शवाद, यथार्थवाद, अस्तित्ववाद, मानवतावाद, प्रगतिवाद आदि ने
विभिन्न जीवन मूल्यों का निरूपण किया है। कोई भी दर्शन-विशेष व्यक्ति और समाज के
विचारों, जीवन पद्धति तथा मूल्यों को प्रभावित करता है। समय
स्थितियों एवं दर्शन के परिवर्तन के साथ जीवन मूल्यों एवं जीवन पद्धति में भी
परिवर्तन हो जाता है। साहित्य साहित्य भी ‘मूल्यों’ का महत्वपूर्ण एवं
प्रभावशाली स्त्रोत है। साहित्य एवं समाज का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। साहित्य की
विभिन्न विद्याओं- काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि में
सामाजिक जीवन के मूल्य प्रतिबिम्बित होते है। साहित्य का अध्ययन प्रायः उचित दृष्टिकोण, रूचियों एवं भावनाओं
एवं मूल्यों का निर्माण करता है। (4) सामाजिक रीति रिवाज- सामाजिक रीति रिवाज भी
मूल्यों का महत्वपूर्ण स्त्रोत है, सामाजिक विश्वास, सामाजिक नियम, सामाजिक कार्यकलाप, सामाजिक और
सांस्कृतिक विरासत, विचार पद्धति, आचरण पद्धति, समाज में नारी का
स्थान, संयुक्त परिवार पद्धति, एकल परिवार पद्धति, व्यवसाय, कला कौशल, ललित कलाएं, व्यापार आदि सामाजिक
रीति-रिवाज विभिन्न प्रकार के मूल्यों का निरूपण करते हैं। (5) विज्ञान विज्ञान एक सामाजिक क्रिया
है, एक सामाजिक संस्था है और मूल्यों का महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
विज्ञान ने हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह हमारे समूचे अस्तित्व
में परिवर्तन ला रहा है। स्वास्थ्य शिक्षा, उत्पादन यातायात संचार
व्यवसाय यहां तक की राष्ट्र की नीति में भी विज्ञान के कारण कई महत्वपूर्ण
परिवर्तन हो रहे है। इनका समाजिक संगठनों तथा सांस्कृतिक नैतिक एवं सौन्दर्यात्मक
संवेदनाओं पर सशक्त प्रभाव पड़ रहा है। अतः विज्ञान संस्कृति के भौतिक एवं अभौतिक
तत्वों को प्रभावित कर रहा है। बार्बर के विचारानुसार विज्ञान जिन मूल्यों का
समर्थन करता है वे इस प्रकार है- 1. विचारशीलता 2. उपयोगितावाद 3. व्यक्तिवाद 4. प्रगति एवं सुधारवाद अतः विज्ञान औचित्यपूर्ण चिन्तन उदार मानसिकता, ईमानदारी, विनम्रता दूसरों के दृष्टिकोण का सम्मान, सहयोग, सत्यम् शिवं सुंदर के मूल्यों को सुदृढ़ करने में सहायता प्रदान करता है इस प्रकार विज्ञान सामाजिक, मानवतावादी, नैतिक सौन्दर्यात्मक, बौद्धिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का महत्वपूर्ण स्रोत है यदि विश्व को सुरक्षित जीवन-यापन करना है तो विज्ञान एवं धर्म को मिलकर चलाना होगा। |