Multidimensional Aspects of Geography
ISBN: 978-93-93166-30-2
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बरेली जनपद की जनांकिकी विशेषताओं का भोगोलिक अध्ययन

 डॉ. शिव कुमार सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर
भूगोल विभाग
राजेन्द्र प्रसाद पी0जी0 कॉलेज
मीरगंज, बरेली  उत्तर प्रदेश, भारत  

DOI:
Chapter ID: 17327
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आज जनांकिकी शब्द से सभी विषयों के विशेषज्ञराजनीतिज्ञ और नीति निर्माता भली-भांति चिर परिचित है साथ ही विश्व के लगभग सभी देश विकास की रणनीति में इसका प्रयोग कर रहे हैं। यदि इस शब्द के इतिहास काल की बात की जाए तो निसंदेह 1662 जान ग्रांण्ट से लेकर 1925 अल्फर्ड जे लोटका तक का समय रहा है। यद्यपि वर्तमान में जनांकिकी शब्द के तत्वों का अध्ययन जनसंख्या के बहुआयामी अध्ययन में किया जाता रहा है तथापि आज यह शब्द मानवीय जिज्ञासा के कारण और परिणाम को ठोस आधार प्रदान करने में मील का पत्थर साबित हो रहा है।

जनसंख्या शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1662 में फ्रैसिस बेकन ने अपने लेख Greatness of Kingdom and status में किया था[1] तत्पश्चात 1855 एशिले गुईलार्ड द्वारा रचित पुस्तक (Elements de statistique Humaine Ou Demographic Comaree) में जनांकिकी शब्द का प्रयोग कर श्रेय प्राप्त कर लिया था, जबकि इससे पूर्व प्राणिशास्त्री फिलिक्स प्लैटर 160911 तक बेसल में फैली माहामारी से प्रभावित लोगों के अध्ययन में इस शब्द का प्रयोग कर चुके थे। एचिले गुईलार्डने जनांकिकी को परिभाषित लिखा है कि यह जनसंख्या की सामान्य गति और भौतिक,सामाजिक तथा बौद्धिक दशाओं का गणितीय ज्ञान है।[2] उक्त परिप्रेक्ष्य में डा0 एन.एस.अग्रवाल ने जनांकिकीय और जनसंख्या अध्ययन का अन्तर स्पष्ट करते हुए लिखा है कि जनांकिकी मात्र जनसंख्या सांख्यकी से संम्बन्धित है जबकि जनसंख्या अध्ययन का वृहद क्षेत्र है क्योंकि यह विश्लेषणातमक विवेचन से संम्बन्धित है।‘‘[3]

आज सामान्यतः विश्व के सभी विकसित एवं विकासशील देश अर्थव्यवस्था और आर्थिक क्रियाओं को लागू करने के लिये उस अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्र विशेष की संम्पूर्ण जानकारी होना आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य है दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जनसंख्या संम्बन्धी जानकारी एकत्रित किये बिना उस देश अथवा क्षेत्र विशेष की समृद्धि और वृद्धि व विकास का अध्ययन व विश्लेषण दुरुह कार्य है। उक्त के संम्बन्ध में आर्गिन्सकी ने जनसंख्या के महत्व को बड़े ही सुन्दर शब्दों में विवेचित किया है- यदि आप यह जानना चाहते हैं कि राष्ट्र कितनी तीव्र गति से आधुनिकीकरण की ओर प्रगति कर रही है तो व्यवसायों की संख्या, उद्योग और सेवाओं में लगी जनसंख्या के प्रतिशत दर की ओर ध्यान देना होगा‘‘।[4] वर्तमान में जनांकिकी अध्ययन में समाविष्ट और विष्टिभाव दोनों का ही प्रयोग श्रेस्कर रहता है।

यह सर्वमान्य सत्य है कि जनांकिकी  किसी क्षेत्र अथवा देश की विकासनीति को उचित दिशा प्रदान करने में सक्षम है और यह सम्पूर्ण मानवीय संसाधन के गत्यात्मक प्रभाव को वर्तमान एवम् भविष्य में जानने में एक उचित उपकरण सिद्ध हो रहा है।

आज जब भारत देश में चहुमुखी विकास हेतु नीति निर्माताओं का ध्यान जाता है तो निसंदेह जनांकिकी से कोई नीति निर्माता अछूता नहीं रहता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए बरेली जनपद में परिवर्तित जनांकिकी विश्लेष्ण का क्षेत्रीय अध्ययन एक मॉडल के रुप में हितकारी साबित हो सकता है।

जनपद बरेली राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से 252 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 530 जो (दिल्ली-लखनऊ) पर है। जनपद की एतिहासिक पृष्ठभूमि महाभारत काल से ही रही है। भौगोलिक दृष्टि से जनपद उत्तर भारत के दक्षिणी हिमालय और रामगंगा के समीपवर्ती क्षेत्र में विस्तृत है। जनपद  28.19° से 58.54° उत्तरी अक्षांश तथा 78.58°से 79.47° पूर्वी देशान्तर के मध्य समुद्र तल से 165 मीटर की औसत ऊंचाई वाले गंगा के उपजाऊ मैदान में 4120 किलोमीटर भूदृभाग घेरे हुए है।[4] जनपद की उत्तर से दक्षिण की लम्बाई 102 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम की चौड़ाई 80 किलोमीटर है।[5] जो रामगंगा नदी व उसकी सहायक नदियों द्वारा सिंचित होता है जिससे जनपद की कृषि अर्थव्यवस्था  सुदृढ़ होती है।

प्रशासनिक दृष्टिकोण से जनपद को छः तहसीलों तथा 15 विकासखंण्डों में विभाजित किया गया है। जनपद का मुख्यालय बरेली नगर में स्थित है जो राज्य एवम् देश के अन्य भागों से सड़क, रेल व वायु मार्ग भली भांति जुड़ा हुआ है। बरेली अन्य समीपवर्ती जनपदीय सीमाओं में पूर्व में पीलीभीत और शाहजहांपुर, पश्चिम में रामपुर, दक्षिण में बदायूं और उत्तर में उधम सिंह नगर (उत्तराखंड) से लगा हुआ है।

जहां एक ओर मानवीय दृश्य भूमि में यातायात व अन्य आर्थिक एवम् सामाजिक संसाधनो की सुलभता से परिर्वतन को पर्याप्त प्रोत्साहन मिलता है वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधन यथा- उपजाऊ भूमिजल, मिट्टी इत्यादि की उपलब्धता और कृषि उत्पादकता का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। अतः यहां यह कहा जाय की जनसंख्या वृद्धि से मानव की सभी प्रकार की आवश्यकताओं में वृद्धि से मानवीय भू-दृश्य के साथ साथ क्षेत्रीय प्राकृतिक वातावरण भी प्रभावित हो रहा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

यहां यह भी तथ्य उल्लेखनीय है कि मानव संसाधन प्रमुख होते हैं जो प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता और अस्तित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए प्राकृतिक तथा मानवीय तत्वों के गत्यात्मक और अन्योन्य प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप मानव संसाधन अर्थात जनसंख्या के प्रथम अध्यक्ष और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। यह भी सत्य है कि जनसंख्या ही  भौगोलिक वातावरण का सबसे निर्णायक तत्व है जो भौगोलिक तत्व, संसाधन और कारक तीनों में सम्मिलित रहता है यही कारण है कि मानव की जनसंख्या संस्कृति एवं अन्य विशेषताएं विश्लेषण के सबसे महत्वपूर्ण तत्व हो जाते हैं।

जनसंख्या वृद्धि

जनसंख्या वृद्धि सामान्यतः किसी भू-भाग में एक निश्चित समय अवधि में निवास करने वाले लोगों की संख्या में हुए परिवर्तन से होता   है। यह भी सत्य है कि किसी क्षेत्र विशेष की जनांकिकी गत्यात्मक पर जनसंख्या वृध्दि के कारकों का अधिक प्रभाव परिलक्षित नहीं होता है।

बरेली जनपद में जनसंख्या के परिवर्तित स्वरूप पर दृष्टिपात किया जाय तो हम पाते हैं कि जनपद की जनसंख्या 1901 में (1089874) थी जो कि 1951 में 16.43 प्रतिशत बढ़ कर (1268958) हो गई। इस अवधि में जनपद की जनसंख्या में 1911 से 1921 के दशक में विभिन्न बीमारियों के कारण कमी दर्ज हुई।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् 1951 से 2011 तक जनपद की जनसंख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि दर रही है जिसके फलस्वरूप 1901 की तुलना में प्रतिशत वृद्धि तथा 1951 से 2011 में 351 प्रतिशत बढ़ कर (4448358)[5] हो गई। इस वृद्धि का प्रमुख कारण देश में स्थिरता, स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं में सुधार, रोजगार के उचित अवसरों में वृद्धि इत्यादि रहे हैं।

जनपद भी कृषि प्रधान होने के कारण जनपद की कुल जनसंख्या का 68.76 प्रतिशत भाग कृषि पर आज भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में आश्रित है। 1901से 1941 की अवधि में जनपदीय जनसंख्या का कृषि पर आश्रित प्रतिशत 71.5 था। जनसंख्या द्वारा रोजगार उपलब्धता व अवसर के कारण जनपद की ग्रामीण तथा नगरीय जनसंख्या के अनुपात में पर्याप्त अन्तर दृष्टिगोचर हो रहा है।

1901 में 89.8 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या थी और 10.2 प्रतिशत नगरीय थी और 1941 में ग्रामीण जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हो कर 91.3 प्रतिशत हो गई इस अवधि के दौरान नगरीय जनसंख्या में कमी आई और घट कर 8.7 प्रतिशत रह गई। इस अवधि में नगरीय जनसंख्या में कमी का प्रमुख कारण तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था थी साथ ही 1921 में फैली माहामारी से लोगों में जीवन में अस्थिरता पैदा हो गई थी।

1951 में देश की राजनीतिक परिस्थितियों में परिवर्तन हुआ देश आजाद हुआ और नीतियों में बदलाव आया स्थिरता का वातावरण बना नए-नए रोजगार के अवसर प्रदान हुए जिसके नगरीय जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होती गई। आज जनपद की कुल जनसंख्या का लगभग 35 प्रतिशत भाग नगरीय जनसंख्या के अन्तर्गत आता है शेष 65 प्रतिशत भाग ग्रामीण जनसंख्या के अन्तर्गत आता है। इस परवर्तित स्वरूप का प्रमुख कारण नगरीय क्षेत्रों में उपलब्ध रोजगार के अवसर और शिक्षानवीतम तकनीकी जानकारी, स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाजीवन सुरक्षा इत्यादि हैं। परिणाम स्वरूप नगरीय क्षेत्रों पर जनसंख्या का निरन्तर बढ़ता दबाब एक सोचनीय प्रश्न है ?







जनपद बरेली में जनसंख्या वृद्धि-1901 से 2011

वर्ष

कुल जनसंख्या

दशकीय वृद्धि 

(प्रतिशत में)


वर्ष

कुल जनसंख्या

दशकीय वृद्धि

(प्रतिशत में)

1901

1089874

---

1961

1478498

17-00

1911

1094419

00-4

1971

1779867

20-00

1921

1013649

07-00

1981

2273838

28-00

1931

1072148

06-00

1991

2834614

25-00

1941

1175935

10-00

2001

3618589

27-00

1951

1268958

08-00

2011

4448359

23-40

स्रोत-जनगणना एवं जिला सांख्यिकीय पत्रिकाएं।[6]


मानव या मानव समूह का एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास का करना  दोनो ही स्थानों के लिए उचित नहीं होता है। ज्यादातर मामलों में जनसंख्या स्थानांतरण जीवन-स्तर को लेकर होता है जो सीमित अवधि में अधिक प्रभावपूर्ण नहीं होता किन्तु प्राकृतिक कारकों से हुआ प्रवसन दीर्घकालीन होता है, जिससे प्रवासित क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

जनपद बरेली में ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में प्रवास का प्रमुख कारण सामाजिक एवम् आर्थिक हैं जिससे जनपद की ग्रामीण एवम् नगरीय जनसंख्या का केवल अनुमानित प्रतिशत ही है वास्तविक भिन्न हो सकता है।

जनांकिकी के दृष्टिकोण से जनपद में 1921 से 2011 तक ग्रामीण एवम् नगरीय जनसंख्या का विश्लेषण निम्न है -

जनपद बरेली में ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या प्रतिरुप-1921 से 2011

वर्ष

(प्रतिशत में)

 

वर्ष

(प्रतिशत में)

ग्रामीण

नगरीय

ग्रामीण

नगरीय

1921

89-80

10-20

1971

76-60

23-40

1931

90-50

09-50

1981

73-10

26-90

1941

91-30

08-70

1991

71-40

28-60

1951

87-80

12-20

2001

70-70

29-30

1961

82-50

17-50

2011

67-30

32-70

         स्रोत- जनपदीय वार्षिक सांख्यकीय पत्रिकाएं।


जनांकिक अध्ययन के प्रमुख घटक के अंतर्गत जनसंख्या का स्थानीय वितरण एवम् घनत्व महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।


जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने में प्राकृतिक कारको का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सामान्यतः सघन जनसंख्या उन्ही क्षेत्रों में पायी जाती है जहाँ समतल धरातल, समजलवायु, उपजाऊ मिट्टी, प्रचुर मात्रा में खनिज तथा जल प्राप्ति आदि की सुविधाएँ होती हैं। जलवायु सम्बन्धी तत्व जो मानव संकेंद्रण की प्रक्रिया को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। मानव पर प्रभाव डालने वाले तत्वों में जलवायु सबसे महत्वपूर्ण घटक है। पर्यावरण की लगभग समान परिस्थितियाँ होने पर भी भू-भाग विशेष में जनसंकेन्द्रण में विषमता दृष्टिगोचर होती है, जिसके लिए भौतिक कारको के स्थान पर सांस्कृतिक आर्थिक तथा राजनैतिक कारक अधिक उत्तरदायी रहते हैं।

जनसंख्या वितरण तथा घनत्व की असमानता के आधार पर सम्पूर्ण जनपद को चार जनसंख्या वितरण क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है-

1. अत्यधिक जनघनत्व वाले क्षेत्र- इस श्रेणी के अन्तर्गत 900 व्यक्ति से अधिक निवासित लोंगों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें फतेहगंज प0, मझगवांआलमपुर-जाफराबाद और नबाबगंज हैं जिनका घनत्व क्रमशः 900,1410,1085,1049 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर है।

2. अधिक जनघनत्व वाले क्षेत्र- इस श्रेणी में उन क्षेत्रों को रखा गया है जिनका जनघनत्व 700 से 899 व्यक्ति है, जिसमें शेरगढ़मीरगंज रामनगरबिथरी-चैनपुर सम्मिलित हैं

3. मध्यम जनघनत्व वाले क्षेत्र- इस श्रेणी के अन्तर्गत 600 से 700 व्यक्ति के मध्य निवासित लोंगों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें बहेड़ीरिच्छाभोजीपुरा और भदपुरा विकासक्षेत्र आते हैं, जिनका घनत्व क्रमशः 603,684,608,690 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर है।

4. कम जनघनत्व वाले क्षेत्र- इस श्रेणी के अन्तर्गत 600 से कम व्यक्ति से कम निवासित लोंगों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें क्यााराफरीदपुर और भुता विकास क्षेत्र आते हैं, जिनका घनत्व क्रमशः 458,535,556 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर है।

लिंग संरचना

अर्थव्यवस्था एवं समाज के विकास में यौन या लिंग अनुपात की महत्वपूर्ण भूमिका के परिणामस्वरूप इसका अध्ययन अपरिहार्य होता है, क्योंकि क्षेत्रीय आधार पर जनसंख्या के यौनानुपात में पायी जाने वाली विभिन्नता सामाजिक एंव आर्थिक प्रगति में असन्तुलन का प्रमुख कारण एवं सूचक होती है । यौन अनुपात में क्षेत्र एवं कालगत विभिन्नता मानव जीवन के विभिन्न आयु वर्ग में दोनों लिंगों में मृत्युदर तथा स्थानान्तरण के कारण उत्पन्न असन्तुलन से प्रभावित होती है । विभिन्न आर्थिक तथ्यों को प्राभावित करने वाले बहुत से जनांकिकीय तथ्य जैसे- वृद्धि, वैवाहिक संरचना और व्यवसायिक संरचना को यौनानुपात में हुए परिवर्तन से किसी आर्थिक भू-दृश्य के गत्यात्मक प्रतिरुप यौनानुपात में हुए परिवर्तन से किसी न किसी स्तर पर सम्बन्धित होते हैं ।

जनपद बरेली में 2011 की जनगणना के अनुसार 2357665 पुरुष तथा 2090694 स्त्रियाँ हैं अर्थात प्रति हजार पुरुषों के पीछे 888 स्त्रियाँ हैं[7] जो उत्तर प्रदेश 912 तथा भारत 943 के औसत से पर्याप्त कम हैं। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या कम होने के निम्नलिखित कारण हैं-

आयु संरचना

आयु संरचना किसी भी क्षेत्र विशेष की आधारभूत विशेषता होती है। किसी भी क्षेत्र में भिन्न-भिन्न आयु के लोग निवास करते हैं। आयु विशेषरूप में वह समय अन्तराल है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति विशेष के जन्म से लेकर अद्यतन तक की समयावधि को सम्मिलित किया जाता है, किन्तु स्थानीय लोगों की आयु संरचना में आवासित लोगों की आयु को पूर्ण वर्षों में किया जाता है इसमें मास व दिनों का कोई विशेष महत्व नही होता है। आयु संरचना की विभिन्नताएँ सामाजिक व आर्थिक भिन्ताओं को भी जन्म देती आयु-संरचना का महत्त्व (Importance of Age Structure) आयु संरचना के विवेचन का आज निम्न क्षेत्रों में अत्यधिक महत्व है-

(1) आयु संरचना के अध्ययन से हमें किसी क्षेत्र के मानव संसाधन व श्रम शक्ति का आसानी से पता लगाया जा सकता है।

(2) आयु व्यक्ति की कार्य क्षमता, दृष्टिकोण और विचारों को प्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करती है जिससे क्षेत्र विशेष और राष्ट की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर प्रभाव का गणन आसानी किया जा सकता   है।

(3) आयु संरचनाकरता अनुपात या आश्रितों के अनुपात को भी ज्ञात किया जा सकता है। निर्भरता अनुपात में कमी होने पर आर्थिक विकास तथा जीवन यापन स्तर उच्च रहने की पूर्ण संम्भावना रहती है।

(4) किसी देश की भावी जनसंख्या वृद्धि प्रतिरूप को जानने के लिये उस देश की आयु संरचना ज्ञान जानना अत्यन्त आवश्यक भिन्न-भिन्न आयु वनों में मनुष्यों की संख्या को जनसंख्या आयु संरचना कहते हैं। यह आयु संरचना समय के साथ-साथ परिवर्तित होती रहती है। यह सत्य है कि जब जनसंख्या में बच्चों की संख्या अधिक होती है तो पराश्रितता अनुपात अधिक होता है ठीक इसी प्रकार 15 से 29 के आयु वर्गों में अधिक जनसंख्या होने पर वहां की कार्यशील जनसंख्या का अनुपात किया जा सकता है। 59 से अधिक आयु वर्ग में जब जनसंख्या में वृद्धि हो रही हो तो मान लेना चाहिए कि इस प्रकार को जनसंख्या के लिये स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं पर अधिक पूंजी खर्च करनी पड़ेगी। और यदि किसी क्षेत्र की जनसंख्या में युवाओं की संख्या अधिक है तो वहां जन्म दर को उच्च होने के कारण युवा जनसंख्या होगी जैसे-एशिया, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका के विकसित देशों में ऐसी जनसंख्या संरचना प्रारूप परिलक्षित होते हैं ठीक इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में जन्म-दर होती है और लोग दीर्घ आयु वाले होते हैं तो जनसंख्या काल को प्रभावित कहा जाता है। कभी-कभी अप्रत्याशित घटनाएं यथा-युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के करण किसी निश्चित आयु वर्ग के लोगों की मृत्यु पर आयु संरचना का संम्पूर्ण स्वरूप ही बिगड़ जाता है। सामान्यतः किसी भी देश, प्रदेश अथवा क्षेत्र विशेष की आयु संरचना को मुख्यतः चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

(1) वाल आयु वर्ग (0 से 14 वर्ष) 865022 (पुरुष) 770202 (स्त्री)

(2) प्रौढ़ आयु वर्ग (15 से 59 वर्ष) 1492643 (पुरुष) 1320492 (स्त्री)

(3) वृद्ध आयु वर्ग (60 वर्ष से उपर) 143761 (पुरुष) 134267 (स्त्री)

उपरोक्त आंकडे़ जनगणना 2011 के अनुसार हैं।[8]

यद्यपि जनपद बरेली में आयु वर्ग के अन्तर्गत प्रति पांच वर्षों पर आयु वर्ग है, तथापि सम्पूर्ण आयु वर्ग को उपरोक्त के आधार पर विभक्त कर विवेचन व परीक्षण करने से ज्ञात होता है कि बरेली की जनसंख्या के इन तीन वर्गों में वृद्ध जनसंख्या का अनुपात सबसे कम परिवर्तनीय रहा है। सबसे अधिक परिवर्तन बाल आयु वर्ग और सामान्य परिवर्तन दर प्रौढ़ आयु वर्ग में दृष्टिगोचर होती है।

शैक्षिक-संरचना

मनुष्य की जिज्ञासा और ज्ञान ही सबसे बड़ा संसाधन है क्योंकि प्राकृतिक वातावरण के तत्व विभिन्न मानवीय विशेषताओं विविध प्रकार के ज्ञान, मेल-भाव, सामाजिक संगठन, राजनैतिक संगठन आदि के रहते ही संसाधन बन पाते हैं। यही नहीं मनुष्य के ज्ञान और सांस्कृतिक बौद्धिक क्षमता में भी परिवर्तन एवं परिवर्द्धन के साथ-साथ विविध संसाधनों एवं उनकी उपयोगिता में भी परिवर्तन होता रहता है। यही तथ्य किसी क्षेत्र की जनसंख्या एवं उसकी कृषि संसाधनों पर भी प्रयुक्त होता है। शिक्षित एवं ज्ञानयुक्त मनुष्य सीमित कृषि संसाधनों का अधिकाधिक एवं समुचित प्रयोग एवं कृषि कार्य में तकनीकी परिवर्तन करके कृषि व्यवसाय में विभिन्न प्रकार के सुधारों के माध्यम से अधिकाधिक उत्पादन ले सकता है। इसके लिए कृषि में संलग्न जनसंख्या का शिक्षित होना अति आवश्यक है।

साक्षरता

जनपद बरेली में 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या में 58.49 प्रतिशत भाग ही शिक्षित है । साक्षरता का यह अनुपात उत्तरप्रदेश तथा भारत के औसत (क्रमशः 69.72 तथा 74.04 प्रतिशत) बहुत कम है। जनपद के ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में साक्षरता की दृष्टि से असमानता है । ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 54.04 तथा नगरीय क्षेत्रों में 70.53 प्रतिशत व्यक्ति ही शिक्षित है । स्त्री व पुरुषों में साक्षरता का प्रतिशत और भी असमान है। क्योंकि स्त्री व पुरुषों में साक्षरता उनकी कुल संख्या की क्रमशः 48.3तथा 67.5 प्रतिशत है

व्यावसायिक संरचना

व्यावसायिक संरचना के अध्ययन हेतु कुल जनसंख्या तथा जनशक्ति के वास्तविक अर्थ का स्पष्टीकरण आपेक्षित है। कुल जनसंख्या से तात्पर्य किसी क्षेत्र या भू-भाग में निवास करने वाले कुल व्यक्तियों जिनमें स्त्री, पुरुष तथा बच्चे सम्मिलित हैं, की संख्या से होता है। जबकि उस क्षेत्र या भू-भाग में आर्थिक कार्यों की आवश्यकतानुसार माँग से सम्बन्धित जनसंख्या का वह भाग जो उसमें सम्मिलित हो जाता है, उसे जनशक्ति कहते हैं। आर्थिक दृष्टिकोण से जनशक्ति को दो वर्गों में रखा जा सकता है-

(1) सक्रिय जनसंख्या जो जनशक्ति का वह भाग है जो आवश्यकतानुसार उत्पाद कार्यों तथा सेवाओं में लगा रहता है तथा

(2) निष्क्रिय व असक्रिय जनसंख्या- जो जनशक्ति का वह भाग है जो स्वयं अपने घर में अथवा स्वजनों या सम्बन्धियों के यहाँ गृह कार्य कर रहा होता है। इसमें विद्यार्थी, अवकाश प्राप्त तथा कर (टैक्स) पेंशन, रॉयल्टी आदि पर जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति सम्मिलित होते हैं।

व्यावसायिक संरचना से तात्पर्य कार्यरत जनसंख्या के विभिन्न प्रकार आर्थिक व्यवसाय अथवा क्रिया-कलापों में संलग्न होने से होता है। इसका जनसंख्या के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास में विविध पक्षों से घनिष्ठ कार्यात्मक संबंध होता है। यही नहीं किसी क्षेत्र की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना एवं उसके क्षेत्रीय प्रतिरुप पर वहाँ की अर्थव्यवस्था प्रादेशिक अन्योन्य क्रिया तथा व्यापार आदि की विकास अवस्था का प्रतिबिम्ब होता है।

व्यावसायिक संरचना का गठन प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक, विय आर्थिक क्रियाओं से हुआ है। प्राथमिक क्रियाओं में कृषि, पशु पालन, मत्स्यपालन तथा वन व्यवस्था सम्मिलित होते हैं। द्वितीयक आर्थिक क्रियाओं में खनन कार्य, घरेलू उद्योग, विनिर्माण तथा विद्युत उत्पादन आदि कार्य होते हैं और शेष कार्य क्रियायें व्यापार, वाणिज्य,परिवहन, संचारसंग्रहण, विवरण प्रशासनिक कार्य, मनोरंजन तथा शिक्षा आदि को तृतीय वर्गीय क्रियाओं के अन्तर्गत सम्मिलित किया है। प्रत्येक क्षेत्र के आर्थिक स्वरुप में आने वाला परिवर्तन बहुत सीमा तक उपरोक्त आर्थिक क्रियाओं में हुए परिवर्तन पर निर्भर है अर्थात कार्यरत जनसंख्या का झुकाव किस वर्ग की क्रियाओं की है, इस तथ्य पर उस क्षेत्र का आर्थिक विकास निर्भर करता है। वैविध्य जो किसी क्षेत्र में भौतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा नैतिक कारकों के संदर्भ में घटित होता है, को भौतिक संसाधनों में की सुविधा आर्थिक दृष्टि से उपयोगी वन क्षेत्र तथा खनिज आदि प्रभावित करते हैं जिनमें परिवर्तन के अनुरूप ही व्यावसायिक संरचना में परिवर्तन होता रहता है ।


स्रोत-जिला सांख्यिकीय पत्रिका-2021 (9)

2011 की जनगणना के अनुसार जनपद बरेली की कुल जनसंख्या 31.9 प्रतिशत भाग ही पूर्ण कालिक रूप से कार्यशील है। जनपद अपेक्षाकृत कम क्रियाशील जनसंख्या अनुपात अथवा उच्च अश्रितता क्षेत्र में प्राकृतिक वृद्धि दर का सूचक है। व्यावसायिक संरचना करने से स्पष्ट है। कि यहाँ की शील जनसंख्या में कृषि एंव सम्बन्धित कार्यों में संलग्न व्यक्ति का अनु अधिक है। जनपद की कुल कार्यशील जनसंख्या का 56.73 भाग कृषको, कृषि श्रमिकों तथा पशुपालकों के रूप में प्रत्यक्ष रोजगार के लिए कृषि पर आधारित है। जनपद की कुल कार्यशील का मात्र 1.78 प्रतिशत निर्माण कार्य में, 7.83 प्रतिशत तथा वाणिज्य में, 3.31 प्रतिशत जनसंख्या परिवहन तथा संचार से, शेष 14.73 प्रतिशत जनसंख्या अन्य कार्यो में संलग्न है।

जनपद के जनसंख्या/जनांकिकी विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलता है कि जनपदीय जनांकिकी संरचना में क्षेत्रीय प्राकृतिक दशाओं तथा मानवीय अभिव्यंजना के फलस्वरुप विगत पांच दशकों बहुत परिवर्तन हुए हैं जहां एक ओर ग्रामीण जनसंख्या में कमी तो दूसरी ओर नगरीय जनसंख्या में वृद्धि से नगरीय क्षेत्रों में बढ़ते जनसंख्या के दबाब के कारण विभिन्न संमस्याओं का स्वरुप विस्तृत होता जा रहा हैं। चूंकि जनपद भी कृषि प्रधान होने के कारण उक्त प्रवसन को रोकने के लिए यथोचित प्रयास करना आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य भी हैं।

संदर्भ ग्रन्थ सूची

1. Tripathi, R.D : Janankikiya Evam Jansankhya Adhyayan Vasundhara Prakashan,1999, P.2

2. Guillard, Achille: A.B.Wolf in Encylopaedia of Social Sciences, Vol.5-6, PP.85

3. Agarwal, S.N.: India's Population Problems, McGraw Hill, Book Co., New Delhi, 1978, P.36

4. Organski, Katuerine, Population and world Power, New Delhi, Organski, KatPuerine

5. District Gazettier, 1968, P.21

6. District Gazettier, 1968, P.29

7. Jan Gadna Tanapad Bareilly, 2021.

8. Sameeksha, Janpad Bareilly, 2010-7.