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Social Media and Society ISBN: 978-93-93166-41-8 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
सोशल मीडिया का युवाओं पर प्रभाव |
रामकल्याण मीना
सह आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
झालावाड़, राजस्थान, भारत
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DOI: Chapter ID: 17487 |
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एक
सुप्रसिद्ध कहावत है ’’आवश्यकता आविष्कार की जननी है।“ आवश्यकता हर नए आविष्कार और
खोज के पीछे मुख्य आधार है। यह मानवीय आवश्यकता थी जिसने पहले व्यक्ति को खाने के लिए
भोजन खोजने, रहने के लिए घर का निर्माण और जंगली जानवरो से बचने के लिए हथियार बनाने
का कार्य किया। दुनिया जानती है जब थॉमस एडीसन ने प्रकाश की जरूरत महसूस की तो उन्होंने
बल्ब का आविष्कार किया और इस तरह पूरे विश्व में रोशनी प्रदान की। टेलीविजन, रेडियो,
मोबाइल, फोन और अन्य कई आविष्कार हुये। संचार के साधनों का विकास हुआ इससे हमारी जिंदगी
सहज और पूर्ण भी बनी है। मीडिया संचार का वह माध्यम है जिसकी लोगो तक व्यापक पहुंच
व प्रभाव है। जनसूचना का ही नहीं अपितु जनजागरण एवं जनशिक्षण का महत्त्वपूर्ण कार्य
करता है। लोकतांत्रिक देशों में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के साथ मीडिया
को ’’चौथा स्तम्भ’’ माना जाता है। मीडिया कई रूपो में हमें जानकारी पहुंचा रहा है और
नागरिको को सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मीडिया
के कुछ रूप भी है जैसे समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट एवं सोशल मीडिया। आज
सोशल मीडिया ने सभी को विभिन्न आन्दोलनों एवं सामाजिक बहसो को चलाने में युवाओ को एक
नया मंच प्रदान किया है। मीडिया के संबंध में डैन ब्रान ने ठीक ही लिखा है ’’मीडिया
अव्यवस्था का उचित हथियार है।[1] संचार
साधनों के विकास की वजह से ग्लोबल विलेज की अवधारणा को बढ़ावा मिला है। मीडिया एक शक्तिशाली
दवा की तहर है अगर दवा का सही इस्तेमाल किया जाए तो यह कई बीमारियो को ठीक कर सकती
है, अगर दवा का दुरूपयोग किया जाए तो यह जहर बन सकती है। सोशल मीडिया का ही प्रभाव
है कि जो दुनिया कभी रहस्यमयी लगती थी सोशल मीडिया ने उसे वास्तविकता में प्रकट कर
दिया भारत आज सोशल मीडिया के बड़े बाजार के रूप में उभर चुका है। सोशल मीडिया शब्द एक
कम्प्यूटर आधारित तकनीक को संदर्भित करता है जो आभासी नेटवर्क और समुदायो के माध्यम
से विचारो, विचारो और सूचनाओ को साझा करने की सुविधा प्रदान करता है। सोशल मीडिया इंटरनेट
आधारित है और उपयोगकर्ताओ को व्यक्तिगत जानकारी, दस्तावेज वीडियो और फोटो जैसी सामग्री
का त्वरित इलेक्ट्रॉनिक संचार प्रदान करता है। उपयोगकर्ता वेब-आधारित सॉफ्टवेयार या
एप्लिकेशन के माध्यम से कम्प्यूटर, टैबलेट या स्मार्टफोन के माध्यम से सोशल मीडिया
से जुड़ते है।[2] सबसे
लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफार्म, निम्न है-[3] फेसबुकः- फेसबुक
आज के समय में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध होने वाला प्लेटफार्म है। इस प्लेटफार्म के माध्यम
से आसानी के साथ किसी दूसरे इंसान के साथ में कनेक्ट कर सकते है और उससे बात कर सकते
है। (यू-ट्यूबः)- यह
एक शेयरिंग प्लेटफार्म है। इसकी मदद से किसी भी जानकारी को लोगो के साथ शेयर कर सकते
है। यू-ट्यूब का इसतेमाल हम सभी करते है और आज के समय में यू-ट्यूब इस हद तक बढ़ गया
है कि हम किसी भी चीज की जानकारी यू-ट्यूब के माध्यम से आसानी से प्राप्त कर सकते है। इंस्टाग्रामः- इंस्टाग्राम
का इस्तेमाल बिजनेस को बढ़ाने और मार्केटिंग के लिए किया जा रहा है। इसके अंदर हम वीडियो
के माध्यम से या फोटो के माध्यम से अपने विचार लोगो के साथ में शेयर कर सकते है। स्नेपचैटः- यह
एक मल्टी मीडिया मैसेजिंग ऐप है इसके ऊपर आसानी के साथ फोटो और वीडियो को मैसेज की
सहायता से कनेक्ट कर सकते है। ट्विटरः- ट्विटर
एक माइक्रो ब्लॉगिंग सोशल मीडिया ऐप है जिसके ऊपर अपने विचारो को लोगो के साथ में शेयर
कर सकते है। लिंकडीन (Linkdin)- यह
एक सोशल मीडिया ऐप है जिसका आमतौर पर इस्तेमाल जॉब प्रोफेशनल करते है इसके ऊपर जॉब
ढूंढ सकते है और लोगो को जॉब भी दे सकते है इस ऐप के ऊपर बिजनेस से जुड़ा हुआ कोई भी
विचार शेयर कर सकते है। पिंटरेस्ट (Pinerest)- पिंटरेस्ट
एक फोटो शेयरिंग एप है इसके अंदर फोटो अपलोड करनी होती है। इसके अन्दर एक पिन पिक्चर
ऑप्शन मिलता है इसके अंदर अलग-अलग केटेगरी होती है। इसके अनुसार फोटो को अपलोड कर सकते
है। व्हाट्सअप (Whatsapp)- व्हाट्सअप
एक ऐसा ऐप है जिसकी मदद से किसी के साथ में कनेक्ट ;ब्वददमबजद्ध कर सकते है और वीडियो
फोटो शेयर कर सकते है और साथ ही साथ किसी से भी बात कर सकते है। यह एक फ्री ऐप है जिस
पर आसानी से मैसेजिंग कर सकते है। क्यूरा (Quora) - यह
मुख्य रूप से एक पब्लिक क्वेश्चन प्लेटफार्म है जिसके ऊपर जाकर अपने किसी भी प्रकार
के सवाल अपलोड कर सकते है और लोग उसका जवाब देते है। सोशल
मीडिया से संबंधित मुद्देः- सोशल
मीडिया से संबंधित मुद्दे निम्न है-[4] निजता का अधिकारः- सोशल
मीडिया विनियमन के कई समर्थको का मानना है कि देश की अखण्डता और गरिमा को बनाए रखने
के लिये विनियमन आवश्यक है। क्योंक बीते कुछ वर्षो में सोशल मीडिया पर हेट स्पीच, फेक
न्यूज और राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ तेजी से बढ़ रही है। दूसरी
ओर इस कदम के विरोधियों का मानना है कि यदि सोशल मीडिया का अधिक विनियमन किया जाता
है तो इससे नागरिको की निजता का अधिकार प्रभावित होगा जो कि संविधान के अनुकूल नहीं
है। इंटरनेट शटडाउनः- हाल
ही में सोशल मीडिया के माध्यम से फैलने वाली अफवाहों और फेंक न्यूज से प्रेरित हिंसा
एवं अराजकता को नियंत्रित करने के लए सरकार द्वारा कई बार इंटरनेट सेवा को बंद किया
गया। यह
मांग उठती रही है कि इंटरनेट को मानवाधिकार माना जाए और सरकारे चाहें किसी भी कारण
से मजबूर क्यो न हो, इंटरनेट सेवाओ पर पाबंदी न लगा सके। सरकारो
का कहना है कि इंटरनेट या सोशल मीडिया के जरिये संवदेशनशील सूचनाएँ बाहर न भेजी जा
सके, गलत संदेशो, खबरो, तथ्यो और फर्जी तस्वीरों का प्रचार प्रसार न हो, इसके लिए हालात
संभलने तक इंटरनेट सेवाओ को बाधित करना ही एकमात्र रास्ता बचता है। अभिव्यक्ति
स्वतंत्रताः- ’’भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ए) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार’’ की गारंटी
देता है। यह भारत के सभी नागरिको के लिए एक मौलिक अधिकार है। संविधान
के इस अनुच्छेद के आधार पर कुछ लोगो द्वारा सोशल मीडिया पर सरकार के नियंत्रण इंटरनेट
शटडाउन और अत्यधिक विनियमन का विरोध किया जाता है हालांकि यह ध्यान में रखा जाना चाहिए
कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी को भी ’’पूर्ण’’ स्वतंत्रता नहीं देती। युवाओ
पर सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रभावः- युवाओ
पर सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रभाव निम्न है-[5] सम्पर्क
और संबंधः- फेसबुक
और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंच किशोरो और युवा वयस्को को अपनेपन और स्वीकृति की एक
भावना प्रदान करते है। कोरोना महामारी के दौरान इसका चौतरफा प्रभाव स्पष्ट तौर पर नजर
आया जब इसने ’’आइसोलेशन’’ में रह रहे लोगों और प्रियजनो को आपस में जोड़े रखा। सकारात्मक
प्रेरणाः- सोशल
नेटवर्क सहकर्मी प्रेरणा (Peer Motivation) का सृजन कर सकते है और युवाओ को नई एवं
स्वस्थ आदते विकसित करने के लिए प्रेरित कर सकते है। युवा ऑनलाइन माध्यम से अपने लिए
सकारात्मक रोल मॉडल भी ढूँढ सकते है। पहचान निर्माणः- युवावस्था
ऐसा समय होता है जब युवा अपनी पहचान को संपुष्ट करने और समाज में अपना स्थान पाने का
प्रयास कर रहे होते है। सोशल मीडिया किशोरो को अपनी विशिष्ट पहचान विकास हेतु एक मंच
प्रदान करता है। युवा सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करते है वे बेहतर प्रगति का अनुभव
करते है। अनुसंधानः- मानसिक
स्वास्थ्य विशेषज्ञ और शोधकर्ता सोशल मीडिया का उपयोग प्रायः डेटा एकत्र करने के लिए
करते है जो उनके अनुसंधान में योगदान करता है। इसके अलावा थेरेपिस्ट एवं अन्य पेशेवर
लोग ऑनलाइन समुदायो के अंदर परस्पर नेटवर्क स्थापित कर सकते है, जिससे उनके ज्ञान और
पहुँच का विस्तार हो सकता है। अभिव्यक्ति
प्रदान करनाः- सोशल
मीडिया ने युवाओ को एक-दूसरे के पक्ष में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया
है। सशक्त भावो, विचारो या ऊर्जा की अभिव्यक्ति और सदुपयोग से यह बेहद सकारात्मक प्रभाव
उत्पन्न कर सकता है। गेटवे टू टैलेंटः- सोशल
मीडिया आउटलेट छात्रो को अपनी रचनात्मकता और विचारो को तटस्थ दर्शको के साथ साझा करने
और एक ईमानदार प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिये एक मंच प्रदान करते है। प्राप्त प्रतिक्रिया
उनके लिये अपने कौशल को बेहतर ढंग से आकार देने की मार्गदर्शक बन सकती है यदि वे उस
कौशल को पेशेवर रूप से आगे बढ़ाना चाहते है। रचनात्मकता
को बढ़ावाः- सोशल
मीडिया युवाओ को उनके आत्मविश्वास और रचनात्मकता को बढ़ाने में मदद कर सकता है। यह युवाओ
को विचारो की और संभावनाओं की दुनिया से जोड़ता है। ये मंच छात्रो को अपने मित्रो और
अपने सामान्य दर्शको के साथ जुड़ने के मामले में अपने रचनात्मक कौशल का प्रयोग करने
के लिए प्रोत्साहित करते है। डिजिटल
सक्रियता और सामाजिक परिवर्तनः- सोशल
मीडिया समुदाय के अंदर प्रभाव उत्पन्न करने का माध्यम बन सकता है। यह उन्हे न केवल
अपने समुदाय के अंदर बल्कि पूरे विश्व में आवश्यक विषयो से अवगत कराता है। सन्तुष्टी प्राप्त करनाः- आम
आदमी सोशल मीडिया का उपयोग करके खुद को संतुष्ट पा रहा है। रेलवे टिकटिंग, लाइफ इंश्योरेंस,
ई-कॉमर्स, ई-टिकिटिंग और ई-गवर्नेंस जेसी सुलभता सोशल मीडिया का उपहार हे। मीडिया के
सकारात्मक पक्ष की बात करे तो पाते है कि सेहत, शिक्षा, रोजगार बाजार व्यापार और खेती
किसानो जैसे कार्यों में भी मीडिया की पहुंच गहरी हो गई है। बेहतर सेहत के देशी-विदेशी
नुस्खे, घातक बीमारियो के सहज इलाज और गुमशुदा की खोज, वर-वधु खोजने से लेकर भविष्यफल
और वास्तुशास्त्र की जानकारी सोशल मीडिया के जरिए जितनी सुलभता से आज हासिल हो रही
है वैसी कभी नहीं हुई यदि हमें जीवन, परिवार और समाज की बेहतरी के लिए सोशल मीडिया
का उपयोग करे तो अनेक लाभ घर बैठे भी प्राप्त कर सकते है। कृषि, बागवानी, उद्योग धन्धे,
व्यापार, बेहतर शिक्षा, बेहतर सेहत, सुगम यात्रा, कानून की जानकारी, अनेक समस्याओं
के निदान, आँधी तुफान, बाढ़, बारिश, अकाल और पूरी दुनिया के एक-एक कण और पल की स्थिति
की जानकारी आज सोशल मीडिया के जरिए उपलब्ध कराई जाती है। पुस्तकों का स्थान धीरे-धीरे
वेबसाइट्स ने ले लिया है। अनेक एप्स मुफ्त में नेट पर उपलब्ध है इन्हे डाउनलोड करके
इनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है।[6] युवाओ
पर सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभावः- सन्
1750 में पेरिस की सबसे बड़ी साहित्यिक संस्था डी जान एकेडमी की ओर से निबंध प्रतियोगिता
का आयोजन किया गया था। इस प्रतियोगिता का विषय था ’’विज्ञान तथा कला की प्रगति ने नैतिकता
को भ्रष्ट करने में योग दिया है अथवा उसे विशुद्ध करने में।’’ रूसो के शब्दो में
’’उसका मस्तिष्क हजारो प्रकाश की किरणों से चकाचौंध हो गया। समाज के प्रति उसके क्रांतिकारी
विचारो का एकाएक स्रोत फूट निकला।’’ रूसो ने यह सिद्ध किया कि विज्ञान और कला ने मनुष्य
का पतन किया है। मानव समाज की प्रारम्भिक अवस्था में सब मनुष्य सरल और निष्पाप जीवन
बिताते हुए आनन्दपूर्वक रहते थे। वर्तमान समाज की सब बुराइयों का मूल सभ्यता की उन्नति,
ज्ञान का प्रेम और सभ्य समाज का कृत्रिम जीवन है।[7] जो कही न कही सत्य साबित हो रही
है। संक्षेप
में युवाओ पर सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार हैः- मानव
सामाजिक प्राणी से वर्चुअल प्राणी बनता जा रहा हैः- प्रत्येक
हाथ में सस्ते मोबाइल फोन की उपलब्धता से आज सामाजिक मीडिया उसके जीवन में इतना पैठ
कर चुका है कि उसे अपने आस-पास के वातावरण की चीजें दिखाई ही नहीं देती। भारत की लगभग
दो-तिहाई से अधिक आबादी आज अपना अधिकतर समय ऑनलाइन सामाजिक नेटवर्किंग साईट्स जैसे
फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब, व्हाट्सअप पर व्यतीत कर रही है। आज लाईव चैट,
अपडेट्स एवं वीडियो शेयरिंग लोकप्रिय होते जा रहे है। इन प्लेटफार्म पर वर्चुअल संबंध
मिनटो में और अनेक व्यक्तियों के साथ स्थापित हो जाते है। इस तरह से बने संबंधों में
कोई गहराई, भावनात्मक जुड़ाव, प्रत्यक्षता नहीं होती। ऐसे संबंध हमारे इसी समाज में
लेकिन आभासी सतहों पर बने होते है। जब हम समाज निर्माण की बात करते है तो समाज वैज्ञानिक
कहते है कि समाज का निर्माण होता है। व्यक्तियों के बीच पाए जाने वाले सामाजिक संबंधों
से और सामाजिक संबंधों के लिए तीन आवश्यक शर्ते है (1) व्यक्तियो का होना (2) उनका
अर्थपूर्ण व्यवहार (3) एक दूसरे के व्यवहार या क्रियाओं से प्रभावित होना। लेकिन आज
वर्चुअल संसार में युवा पीढ़ी इस प्रकार के संबंधों का निर्माण कर रही है जिसमें वह
उलझती जा रही है। बिलवर श्राम (1964) ने लिखा है कि संचार साधनो के द्वारा जिस प्रकार
की सामग्री का प्रवाह होता है उसी के अनुरूप समाज की मुख्य व्यवस्था निर्धारित होती
है। लाईक, डिसलाईक, कमेंट के अधिक से अधिक नम्बरो को प्राप्त करने के इस चक्कर में
भीतर ही भीतर युवा पीढ़ी शून्य के नम्बर से भरती जा रही है। इस आभासी दुनिया में ओवर
कम्युनिकेशन है और जिस असल संसार में वे रहते है वहां के संवाद ही नहीं है। मानव सामाजिक
प्राणी से वर्चुअल प्राणी बनता जा रहा है।[8] नैतिकता का पतनः- सोशल
मीडिया के माध्यम से अश्लीलता खुला सेक्स, खुली दोस्ती और अनजानी दोस्ती का सबसे बुरा
असर युवाओं के मन और शरीर पर देखा जा रहा है। हिंसा, ठगी, क्रूरता और भ्रष्टाचार के
नए चेहरे भी आए इसने नई पीढ़ी को बहुत संकुचित और स्वार्थी बना दिया है। भारतीयता
के उच्चतम भाव का लुप्त होनाः- सोशल
मीडिया ने नई पीढ़ी को हर स्तर पर प्रभावित किया है। दिन ही नहीं रात भी सोशल मीडिया
ने नाम हो गई है। भारत के गाँव और अफ्रीकी देशो के किसी गाँव को जोड़ने में एक मिनट
भी नई लगता। अपने गाँव की मौलिकता, नूतनता और उत्तमता इससे प्रभावित हो रही है। भारतीय
संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, भाषा, विज्ञान और आध्यात्म सभी कुछ विदेशी प्रभाव के
कारण विकृत होते जा रहे है इस तरह से मिलावटी जीवन शैली बनती जा रही है जो न तो भारतीय
रह पा रही है और न तो पूर्णतः विदेशी ही। संस्कृति के खुलेपन ने सोशल मीडिया के जरिए
नई पीढ़ी को एक ’’वास्तु’’ में तब्दील कर दिया है। नई पीढ़ी इसे ’’मॉडर्न’’ विकास के
रूप में एक दीवाने के रूप में स्वीकार करती जा रही है। इससे भारतीयता का उच्चतम भाव
कही लुप्त हो गया है।[9] इंटरनेट
की लतः- युवाओं
में अनियंत्रित सोशल मीडिया के उपयोग से इंटरनेट की लत लग जाती है। बच्चे जितना अधिक
समय सोशल मीडिया पर बिताते है वे उतनी ही नई कहानियाँ और विचारो के सम्पर्क में आ जाते
है जो वे तलाशना चाहते है। इंटरनेट के माध्यम से तरह-तरह के काले धंधे प्रारम्भ हो
रहे है। इनमें नशीली दवाओ के सौदे, माफिया ऑपरेशन्स, देह व्यापार, अश्लीलता, अवैध हथियारो
की सौदागरी, जासूसी, अश्लील साहित्य, जुआ, जालसाजी, आतंकवादी तोड़फोड़ ऑनलाइन धोखाधड़ी
इत्यादि अपराध हो रहे है। प्रोफेसर इंदर सिन्हा की पुस्तक साइबर जिपसीज: ए टूª टेल
ऑफ लस्ट वार एंड, ब्रिट्रेयल ऑन द इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर में साइबर की जाल साज दुनिया
का परत दत परत भंडाफोड़ है। यह भी बताया गया कि इंटरनेट कैसे समाज और परिवारो को जोड़ने
की बजाय उन्हे तोड़ने का कारण बन रहा है।[10] मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँः- कई
अध्ययनों में सोशल मीडिया के उपयोग और अवसाद के बीच घनिष्ठ संबंध पाया गया है। एक अध्ययन
के अनुसार मध्यम से गंभीर अवसाद लक्षण वाले युवाओ में सोशल मीडिया का उपयोग करने की
संभावना लगभग दुगनी थी सोशल मीडिया पर किशोर अपना अधिकांश समय अपने साथियो के जीवन
और तस्वीरो को देखने में बिताते है। यह एक निरन्तर तुलनात्मकता की ओर ले जाता है, जो
आत्म सम्मान और ’’बॉडी इमेज’’ को नुकसान पहुंचा सकता है और किशोर में अवसाद एवं चिंता
की वृद्धि कर सकता है। सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप स्वास्थ्यप्रद,
वास्तविक दुनिया की गतिविधियो पर कम समय व्यय किया जाता है। सोशल मीडिया फीड्स को स्क्रॉल
करते रहने की आदत-जिसे वैम्पिंग कहा जाता है के कारण नींद की कमी की समस्या उत्पन्न
होती है।[11] आत्मीयता का संकटः- सोशल
मीडिया पर उस युवा पीढ़ी के हजारो दोस्त और उनसे आभासी संबंध है लेकिन वास्तविक रूप
से शायद कोई नहीं। तभी तो मन की कहने-सूनने वालो की कमी के कारण से आत्महत्या की दर
में बढ़ोतरी दिखाई देती है। तकनीक के विकास के साथ-साथ आज सच्चे दोस्त कही खो गए है।
संवाद रीतने लगे है। एरिक्सन (1968) लिखते है कि युवा और माता पिता के मध्य जब दूरी
बढ़ जाती है तो आत्मीयता का संकट पैदा हो जाता है। पहले यह विवाह द्वारा और अब वर्चुअल
दुनिया द्वारा इस संकट से बाहर निकलने का प्रयास करता है। जैसा की अवलोकित किया गया
है कि युवा पीढ़ी की स्मार्ट गैजेट्स के साथ स्मार्ट बनने की यह लत जीवन के बेहद निजी
पलो में भी नहीं छूटती और रिश्तो को गहराई से नहीं पनपने देती। एक कमरे में बैठे हुए
पति-पत्नि अपने-अपने स्मार्टफोन में इतना खो जाते है कि एक दूसरे के विचारों को जान
ही नहीं पाते। आमने-सामने बैठकर की गई बातचीत, हँसी मजाक, मान-मनुहार सोशल मीडिया के
विभिन्न प्लेटफार्म के लाईक और कमेन्ट में खोती जा रही है।[12] साइबर-धमकी या साइबर बुलिंगः- एक
साइबर बुली, विशिष्ट सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को झूठी, शर्मनाक या शत्रुतापूर्ण जानकारी
देने के लिए इसका उपयोग करता है सोशल मीडिया के प्रमुख नकारात्मक प्रभावों के बीच साइबर
बुलिंग सबसे खतरनाक है जो इस तरह के असामान्य अतर्ज्ञान बन गया है। लंबे समय तक साइबर
बदमाशी के शिकार लोग अक्सर डिप्रेशन, अलगाव, अकेलापन, तनाव और चिंता में रहते है वह
अपने आत्मसम्मान में कमी को महसूस करता है और कुछ तो आत्महत्या जैसे मनावैज्ञानिक समस्याओं
तक कर बैठते है। इन गतिविधियों को उग्र बनाने वाले साइबर बुलिंग के पीछे सोशल मीडिया
उपयोगकर्ताओं की नासमझी का बहुत बड़ा हाथ होता है। फेसबुक डिप्रेशनः- फेसबुक
डिप्रेशन एक भावनात्मक असंतुलन है जो सोशल मीडिया के उपयोग से जुड़ा है जब एक किशोर
को अपने सोशल मीडिया के दोस्तों में हीनता महसूस करते है तो वे अक्सर डिप्रेशन यानी
अवसाद में पड़ जाते है। आत्म-सम्मान कम होनाः- ज्यादातर
किशोर लड़किया सोशल मीडिया पर समय बिताने के बाद मशहूर हस्तियों से अपनी तुलना करना
शुरू कर देती है और उनकी तरह पतली, सुंदर और अमीर दिखना चाहती है। किशोरवस्था में उन
व्यक्तियों को कॉपी करना सामान्य है जिन्हे वे अपना आदर्श मानते है और जिसकी वे प्र्रशंसा
करते है। यह नकल उनके स्वाभिमान और गरिमा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
अलग-अलग अध्ययनो से पता चलता है कि लड़किया जो सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताती है वह
अपने आपको उन मशहूर हस्तियो के समान चित्रित करने के लिए अपने मित्र मंडलियो से अलग
हो जाती है और आखिर में होता यह है कि उनके दोस्त उन्हे स्वीकार नहीं करते है और फिर
वे धीरे-धीरे आत्मसम्मान खो देती है। दैनिक गतिविधि में कमीः- सोशल
मीडिया का बहुत ज्यादा उपयोग करने वाले किशोर उन गतिविधियो पर पर्याप्त समय नही बिताते
है जो निश्चित रूप से मानसिक क्षमताओ, कौशल शारीरिक क्षमताओ को बढ़ाते है जो लोग रोजाना
व्यायाम करते है उनका शरीर एडोर्फिन छोड़ता है जो कि हमारे मस्तिष्क को सकारात्मक रहने
और डिप्रेशन को कम करने का संकेत देता है। इस प्रकार घटी हुई दैनिक गतिविधियाँ एडोर्फिन
के श्रोतो को कम करती है और इससे डिप्रेशन एक आम समस्या बन जाती है। एकाग्रता (ध्यान) में कमीः- आज
युवाओ पर सोशल मीडिया के नकारात्म्क प्रभाव को आसानी से देखे जा सकते है। विभिन्न कार्यो,
जैसे कि स्कूलवर्क, क्लासवर्क या होमवर्क, किसी भी महत्त्वपूर्ण चीज से निपटने के लिए
अधिक एकाग्रता की आवश्यकता होती है। लेकिन अब युवाओं को सोशल मीडिया का उपयोग करने
की आदत लग गई है। शोध बताते है कि निरन्तर सोशल मीडिया का उपयोग ध्यान पर प्रतिकूल
प्रभाव डालता है और अध्ययन, सीखने और प्रदर्शन में रूकावट पैदा करता है।[13] संवादहीनता की तरफ बढ़ती पीढ़ीः- हमारा
युवा कहना सुनना और संवाद करना मूल रहा है। सोशल मीडियाँ ने संचार और संवाद की सारी
व्यवस्था ही बदल डाली है। पहले लोग विवाह, त्यौहार जन्मदिन नया मकान, सालगिरह तथा किसी
शुभ अवसर पर कुछ भी अच्छा घटित होने की स्थिति में अपने दोस्तो, नातेदारो को बधाई और
शुभकामनाएँ लैण्डलाईन फोन से या मोबाइल फोन से भी बोलकर प्रेषित करते थे। सही समय पर
सही बात को प्रस्तुत करना, बड़ों के समक्ष एक निश्चित सीमा तक बोलना उचित व्यवहार करना,
यही सामाजिक नियंत्रण का एक सशक्त माध्यम भी था। लेकिन अब युवा पीढ़ी ऐसे अवसरो पर टेक्स्ट
संदेश से काम चलाती है और वे एक ही संदेश सभी जानकारो को प्रेषित करते है जैसे कि सभी
के प्रति उनकी भावनाएँ दुआए, हर्ष और शोक की अभिव्यक्ति समान है। इस तरह से भेजे गये
संदेशो में शब्द तो रोबोट बन गए है जो भावनाओ से परे दिखाई देते है और संवाद समाप्ति
की ओर दिखाई देने लगे है। सामाजिक संबंध जो सम्पर्क निकटता, घनिष्ठता के आधार पर दिखाई
देते थे। इस आभासी और संवादहीन संसार में उसका स्वरूप बदल गया है। संवादहीनता की यह
स्थिति संस्कृति के पतन का कारण भी बनती जा रही है।[14] भौतिकवाद को बढ़ावाः- दर्शन
परम्परा में भौतिकवादी दर्शन उस दर्शन को कहा जाता है जो विश्व का मूलभूत तत्व जड़ को
मानता है। इस अर्थ में चार्वाक ही भौतिकवादी दर्शन है। क्योंकि वह जड़ के अतिरिक्त किसी
अन्य चेतन सत्ता को स्वीकार नहीं करता है। कुछ लोगो का मत है कि चार्वाक चर्व से बना
है जिसका अर्थ है भोजन करना। अतः ’’खाओ, पीओ, मोज करो’’ भौतिकवाद का सबसे बुरा प्रभाव
यह है कि यह आत्म सम्मान को कम करता है। एक भौतिकवादी व्यक्ति सांसारिक जीवन की विलासिता
को भोगने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। जैसे-जैसे सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ता गया
है भौतिकवाद अधिक बढ़ता गया है। सोशल मीडिया फिल्मी सितारो, खिलाड़ियो, धनी लोगो जैसी
मशहूर हस्तियों को ग्लेमराइज करके भौतिकवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। आज अधिकांश
लोग अधिक से अधिक धन संचय करना चाहते है। वे पैसे, बैंक बैलेंस, लग्जरी कारो और ऊँचे
और विशाल घरो के पीछे पड़े है। इस दौड़ में उन्हे धर्म और मानवता के सभी मानको को तोड़ने
में शर्म नहीं आती है, क्योंकि लालच और स्वार्थ को बढ़ावा मिलता है, परोपकार को नहीं।
भौतिकवाद हमारे सामाजिक ताने-बाने को नष्ट कर देता है। भौतिकवादी व्यक्ति कभी भी दिल
के मूल में खुशी का अनुभव नहीं करता है क्योंकि वह हमेशा अभावग्रस्त रहता है, जीवन
से कम संतुष्ट होता है और उच्च स्तर की चिंता, अवसाद और मादक द्रव्यों के सेवन का शिकार
होता है। अन्य
समस्याएँ- (अ)
धन, समय, सहजता, चिन्तन और चिन्ता की समस्या
सोशल मीडिया ने कृत्रिम ढंग से पैदा की है। अभिभावको के लए यह नई समस्या है। (ब)
आतंकवाद, साम्प्रदायिकता, नफरत, हिंसा नई बीमारियो की चपेट में आने का डर, मांसाहार,
शराबखोरी, धुम्रपान, गन्दी लत और अन्य अनेक समस्याएँ सोशल मीडिया के कारण तेजी के साा
बढ़ी है। (स)
सोशल नेटवर्किंग साइटो पर सूचना या विचार तेजी से फैलते है लेकिन अधिकांश सूचनाएँ अनियंत्रित
हो जाती है और जनता के बीच गलतफहमी पैदा कर सकती है। (द)
मॉबलिंचिंगः- सोशल मीडिया के जरिये अपवाह के चलते भीड़ द्वारा हत्या की घटनाएँ आम हो
गई है। निष्कर्षः- सोशल मीडिया आजकल दुनिया को देखने का हमारा नजरिया बदल रहा है। चाहे वह संचार के मामले में हो या सामाजिक सम्पर्क के मामले में। इसने युवा पीढ़ी को सकारात्मक और नकारात्मक दोनो तरह से प्रभावित किया है। यदि सोशल मीडिया के नकारात्मक पक्ष को हम नजरअंदाज करते रहे तो इसके दूरगामी नकारात्मक असर से हम बच नही सकते इसलिए सोशल मीडिया के अच्छे बुरे इस्तेमाल पर जरूर गौर करना चाहिए। मानव मूल्यों के खत्म होने और इंसान का वस्तु या यंत्र के रूप में तब्दील होने का खतरा निकट दिखाई दे रहा है। एक संतुलित जीवन, परिवार, समाज, संस्कृति और देश के लिए सोशल मीडिया के दोनो पक्षो पर हमे खुले मन से विचार करना चाहिए। यदि कानून बनाना पड़े तो भी कानून बनाकर गिरते जीवन मूल्यो को रोकने की कोशिश भी करनी होगी। संदर्भ ग्रंथ सूची 1.सिविल
सर्विसेज नोएडा (UP) मीडिया, व समाज भूमिका, चुनौतियाँ तथा प्रभाव’’ सितम्बर 2019,
पृ.169 2.www.investopedia.com’
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