भारतीय संस्कार : परिवर्तित आयाम
ISBN: 978-93-93166-25-8
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भारतीय संस्कृति में बदलते परिदृश्य

 कृष्णा गौर
एसोसिएट प्रोफेसर
संस्कृत विभाग
राजकीय कन्या महाविद्यालय, चौमू
 जयपुर, राजस्थान, भारत 

DOI:
Chapter ID: 17569
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भारत की छवि विश्वगुरु के रूप में हुआ करती थी जिसके कई कारण हैं| भारत में सबसे समृद्ध ज्ञान निधि वेद भारत में ही ऋषि द्वारा देखे गए कहा गया है। ऋषिः मंत्रदृष्टराः अर्थात ऋषियों ने वेद मंत्रों को देखा है अनुभव किया है तथा प्राचीन काल में भारत में वैदिक साहित्य एवं वैदिक संस्कृति का प्रचलन था। आर्यों की धर्म, दर्शन एवं जीवन के उड़ान पक्षों का चित्र करने वाले वेद ही थे।[1]

भारत संस्कृति प्रधान देश है इस संस्कृति की मुख्य विशेषताएं निम्नांकित हैं

1. प्राचीनता- भारत की समस्त सांस्कृतिक प्रथाएं और मूल्य रिग वैदिक काल से लेकर आज तक भी बने हुए हैं आज भी ईश्वर की पूजा यज्ञ आदि का विधान है वेदों में बीज रूप में उपलब्ध विधाओं का पल्लवन हुआ है।

कवि इकबाल ने उचित कहा है-

यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से

कुछ ऐसी बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।

इसी प्रकार भारतीय संस्कृति त्याग तप एवं तपोवन में आस्थावान है।

2. सहिष्णुता- भारत में अनेक प्रकार के धर्म और संप्रदाय पाए जाते हैं किंतु धार्मिक सहिष्णुता एवं एकता व सामंजय को महत्व दिया जाता है एवं दिया जाता रहेगा।

3. पुनर्जन्म में विश्वास- आत्मा अजर अमर है और मरने के बाद वह अपने कर्म अनुसार जन्म लेती है।

जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु, जन्म ध्रुवं मृतस्य च।

भगवान श्री कृष्ण ने कहा हम सभी मानते हैं कि जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है एवं जो मरा है उसका फिर जन्म होता है।

4. अतिथि देवो भव- भारतीय संस्कृति में आने वाले व्यक्ति का सम्मान किया जाता है और शरण में आने पर किसी पर भी घात नहीं किया करते हैं।

5. मातृ देवो भव पितृ देवो भव- माता एवं पिता को देवतुल्य स्थान दिया गया है श्रवण कुमार अपने कंधों पर अपने माता पिता को तीर्थ यात्रा करवाता है, भगवान राम माँ कैकेयी व पिता की आज्ञा से वनवास को चले जाते हैं।

बदलते परिदृश्य-

भारत में पहले से ही वसुधैव कुटुंबकम् की बात मानी जाती रही है किंतु आजकल ग्लोबलाइजेशन का एक नया युग आया है भारतीय संस्कृति को जहां इस से कुछ लाभ प्राप्त हो रहे हैं लेकिन इसके दुष्परिणाम भी बहुत ज्यादा देखने को मिल रहे हैं जो क्रमशः हैं -

1. माता-पिता का सम्मान करने की प्रवृत्ति बच्चों में घट रही है।

2. सम्मिलित परिवार जो भारत की एक बढ़िया  परिवेश थी, चरमरा गई है, एकल परिवार बढ़ गए हैं।

3. खानपान में बदलाव से यहां अनेक बीमारियां आने लगी है फास्ट फूड एवं दूरदर्शन पर विज्ञापन देखकर बच्चे एवं बड़े तक डब्बे बंद जूस पीने लगे हैं जबकि हमारे यहां ताजा रस पीने का प्रचलन रहा है पहले दूध- छाछ से हम मेहमानों का स्वागत कर उनको आरोग्य भी बनाते थे आज किसी के आने पर चाय पिलाना/कोल्ड ड्रिंक पिलाने का चलन आने से हममें से हर व्यक्ति को बी.पी./ डायबिटीज आज कोई ना कोई बीमारी है।

4. पहनावे पर भी इसका का तक असर पड़ रहा है खासकर युवतियां अपनी पारंपरिक पोशाकों को छोड़कर छोटे और अभद्र वस्त्र पहनने लगी है जिसके लिए निश्चित रूप से पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण जिम्मेदार है पुरुष भी सुविधाजनक धोती-कुर्ते को छोड़कर भरी गर्मी में टाइट पैंट एवं शर्ट पहनने लगे हैं कड़ी धूप में माथे की पगड़ी/साफे का इस्तेमाल ना कर पानी की कमी, धूप की तेजी बर्दाश्त करते हैं।

5. भाषा पर भी गहरा असर पड़ा है माँ को  और पिता को डेट कहना टीवी से सीख कर ऐसा ही व्यवहार करने लगते हैं।

6. लिव इन रिलेशनशिप हमारे यहां नहीं था 16 संस्कारों में विवाह एक पवित्र संस्कार है जिसमें गृहस्थी बसाकर युवक एवं युवतियां मर्यादा में रहकर सभी सुख भोगते हुए परिवार का पालन कर कर्तव्य पथ से डिगा नहीं करते थे।

7. वर्ण व्यवस्था को तोड मरोड़ कर बेरोजगारी की पंक्तियों में भीड़ नजर आती है पहले पिता अपने साथ बच्चों को कोई कला अवश्य सिखाते थे किंतु अब खेत जमीन बेचकर भी केवल अक्षर ज्ञान लेते हैं या कुछ सूचनाओं को याद कर डिग्री लेकर और फिर बेरोजगार डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।

आधुनिक युग में मन तथा हृदय को प्रिय लगने वाले आचार विचार आज के मशीनी युग में न्यून है और यदि है भी तो दोष युक्त है जैसे मदिरापान करना, सिनेमा देखना, उपन्यास पढ़ना यह शरीर को अच्छे लगते हैं लेकिन मन को दूषित कर देते हैं।

कुल मिलाकर वास्तविकता यह है कि मन की शांति एवं हृदय व शरीर को पुष्टि देने वाली वस्तुओं का ही हमें प्रयोग करना चाहिए।

References-

1. जे.सी. नारायण, नितिन पब्लिकेशन, अलवर

2. श्रीमद्भगवद्गीता

3. रामचरितमानस

4. राजस्थान पत्रिका