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अशोक के स्तम्भ लेखों (Pillar Edicts) का भौगोलिक महत्व |
डॉ. धर्मेंद्र कुमार तिवारी
विषय विशेषज्ञ
प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय
लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत
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DOI:10.5281/zenodo.8354300 Chapter ID: 18092 |
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मौर्य शासक अशोक का भारत ही नहीं वरन् विश्व के महानतम् सम्राटों में
महत्वपूर्ण स्थान है। अपने पिता बिन्दुसार की मृत्यु के पश्चात उसने विशाल मौर्य
साम्राज्य पर शासन (273 ई.पू.-236 ई.पू.) किया। अशोक का इतिहास हमें मुख्य रूप से उसके द्वारा उत्कीर्ण करवाए गए विभिन्न
लेखों से ज्ञात होता है। उसके अभिलेख देश के लगभग सभी भागों से प्राप्त हुए हैं।
इन अभिलेखों से हमें उसकी साम्राज्य सीमा का निर्धारण करने में काफी सहायता मिलती
है, साथ ही
उसके धर्म और प्रशासन से सम्बन्घित बातों की जानकारी के लिए अभिलेख ही महत्वपूर्ण
स्रोत हैं। सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने 1837 ई0
में अशोक के लेखों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की और कालान्तर में 1915
ई0 में ’मास्की’ से प्राप्त लेख में जब ’अशोक’ का
नाम पढ़ लिया गया तब यह भ्रम भी समाप्त हो गया अशोक के लेखों का ’देवानांपिय’ उपाधि धारित शासक कौन है। अशोक के
अभिलेखों को मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- 1. शिलालेख 2. स्तम्भलेख 3. गुहालेख शिलालेख देश के 8 भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं, जिन पर 14 विभिन्न प्रकार के दीर्घ लेख उत्कीर्ण किए
गए हैं। इन 14 दीर्घलेखों के अतिरिक्त कुछ अन्य शिलालेख भी
देश के भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त हुए जिन्हें ’लघु
शिलालेख’ की संज्ञा दी गई है। स्तम्भलेख पाषाण स्तम्भों पर
उत्कीर्ण किए गए हैं और यह देश के 6 भिन्न-भिन्न स्थानों से
प्राप्त हुए हैं। इन पाषाण स्तम्भों पर उत्कीर्ण लेखों की संख्या 7 है। इनके अतिरिक्त स्तम्भों पर अशोक की कुछ राजकीय घोषणाएं भी उत्कीर्ण की
गई हैं जिन्हें ’लघु स्तम्भलेख’ की
संज्ञा दी जाती है। वर्तमान बिहार प्रान्त के गया जिले में स्थित ’बराबर’ नामक पहाड़ी की गुफाओं से अशोक द्वारा आजीविक
सम्प्रदाय के भिक्षुओं हेतु गुहा-दान किए जाने का वर्णन गुफा की तीन दीवारों पर
उत्कीर्ण मिलता है, जिसे गुहालेख की संज्ञा दी जाती है।
उपर्युक्त इन अधिकांश लेखों की भाषा प्राकृत और लिपि ब्राम्ही है। मात्र दो
शिलालेख ;मानसेहरा तथा शहबाजगढ़ीद्ध जो कि भारत के
पश्चिमोत्तर भाग से प्राप्त हुए हैं, उनकी लिपि ब्राम्ही न
होकर खरोष्ठी है। अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या 7 है जो देश के निम्नलिखित 6 भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं- 1. दिल्ली-टोपरा 2. दिल्ली-मेरठ 3. लौरिया अरराज 4. लौरिया नन्दनगढ़ 5. रमपुरवा 6. प्रयाग-कोसम (कौशाम्बी) दिल्ली-टोपरा और दिल्ली-मेरठ अभिलेख प्रारम्भ में अपने मूल-स्थल टोपरा (कनिंघम के अनुसार टोपरा गांव वर्तमान हरियाणा राज्य में सुध के पास स्थित
था)[1] और मेरठ में ही स्थापित करवाए गए थे, कालान्तर में इन्हें दिल्ली में लाकर स्थापित करवाया गया। डॉ0 रोमिला थापर के अनुसार- ’’दिल्ली-टोपरा और
दिल्ली-मेरठ स्तम्भों का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि फिरोजशाह ;तुगलकवंशी, मध्यकालीन शासकद्ध उन्हें उनके
मूल-स्थानों टोपरा और मेरठ से दिल्ली लाया था।’’[2] सम्भवतः
यह दोनों स्थल अशोक के साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र से उत्तर-पश्चिम की ओर
जाने वाले महत्वपूर्ण पथ पर एक विश्राम स्थल के रूप में थे। उत्तर-पश्चिम की ओर
जाने वाले व्यापारियों द्वारा इन दोनों स्थलों को यदि अपना विश्रामालय चुना गया
होगा तो निश्चय ही यह स्थल जन-संकुल रहे होंगे अर्थात इनके आस-पास आबादी का
विस्तार रहा होगा। इन दोनों स्थलों पर अभी तक खुदाई नहीं हुई है अतः यह कहना
मुश्किल है कि स्तम्भ लेख स्थापित करने हेतु ये स्थान क्यों चुने गए।[3] सम्भवतः जन-संकुल और महत्वपूर्ण व्यापारिक पथ पर स्थित होने के कारण ही
सम्राट अशोक द्वारा अपने इन अभिलेखों को स्थापित करने हेतु इस स्थल का चयन किया
गया होगा। लगभग 1750 ई0 में
दिल्ली-मेरठ स्तम्भ के रूप में अशोक का यह पहला लेख मिला था, जिसे पादरी टीफेन्थेलर ने दिल्ली में, दिल्ली-मेरठ
स्तम्भ के टुकड़े के रूप में देखे थे। सन् 1750 ई0 के लगभग ही दिल्ली-टोपरा स्तम्भ की खोज कैप्टन पोलियर ने की थी, जिसे सन् 1801 ई0 में एशियाटिक
रिसर्चेज में प्रकाशित किया गया था।[4] यह स्तम्भ 42 फीट 7 इंच उंचा है।[5] लौरिया-अरराज स्तम्भ वर्तमान उत्तरी बिहार में अपने मूल-स्थल पर ही प्राप्त
हुआ है और इस पर सम्भवतः सिंह की मूर्ति स्थापित थी। यह स्तम्भ जमीन से साढ़े 36 फीट उंचा
था।6 इस प्रान्त को बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्र के रूप में
जाना जाता था इसलिए संभव है कि इस अभिलेख को इस स्थल पर किसी धार्मिक महत्व से ही
स्थापित किया गया हो। स्मिथ जैसे विद्वानों का सुझाव भी है कि- ’’इस प्रदेश के स्तम्भ पाटलिपुत्र से नेपाल जाने वाले राजपथके मार्ग चिन्ह
के रूप में स्थापित थे।’’[7] लौरिया-नन्दनगढ़ का स्तम्भ भी वर्तमान उत्तरी बिहार के नन्दनगढ़ ग्राम में स्थित
था और यह लौरिया-अरराज के समीप ही स्थापित किया गया था। इस स्तम्भ की उंचाई 32 फिट साढ़े 9
इंच थी और इसका शीर्ष 6 फिट 10 इंच उंचा था।[8] इस स्तम्भ के समीप ही कुछ
अन्त्येष्टि टीले पाए गए हैं। विश्वास किया जाता है कि वृज्जियों के वे प्राचीन
चैत्य हैं जिनका उल्लेख बुद्ध ने किया है।[9] रमपुरवा स्तम्भ भी वर्तमान बिहार प्रान्त के उत्तरी हिस्से में ही स्थित था।
विमल चन्द्र पाण्डेय के अनुसार- ’’यह लेख बिहार के चम्पारन जिले में रामपुरवा गांव में पाया
गया।’’[10] इस स्तम्भ की उंचाई 44 फिट
साढ़े 9 इंच थी।[11] बिहार प्रान्त का
उत्तरी भाग गंगा और हिमालय के मध्य स्थित होने के कारण अत्यन्त उपजाउ था, अतः इस प्रदेश में जन-संकुल अधिक रहा होगा। इस दृष्टि से इस क्षेत्र के
स्थल स्वाभाविक रूप से अभिलेखों की स्थापना हेतु उपयुक्त रहे होंगे। डॉ0 रोमिला थापर के अनुसार- ’’बौद्ध धर्म के बहुत से
पवित्र स्थल इसी क्षेत्र में थे इसलिए यह देश भर के तीर्थ-यात्रियों के लिए आकर्षण
का केन्द्र रहे होंगे।’’[12] प्रयाग-कोसम स्तम्भ लेख वर्तमान में इलाहाबाद के किले में स्थित है। इसे
सम्राज्ञी का अभिलेख और कौशाम्बी अभिलेख या संघभेद अभिलेख भी कहा जाता है।[13] कनिंघम
का मत था कि प्रारम्भ में इसे अशोक ने कौशाम्बी में स्थापित किया था, क्योंकि इसमें अशोक कौशाम्बी के महामात्रों को निर्देश देता है।[14]
यह स्तम्भ 12 फीट 7 इंच
उंचा है।[15] कौशाम्बी आधुनिक कोसम है, जो यमुना के बाएं तट पर इलाहाबाद ;वर्तमान प्रयागद्ध
के 28 मील दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित है। बुद्धकाल में
धार्मिक महत्व का स्थान होने के कारण कौशाम्बी ने देश के विभिन्न भागों के लोगों
को अपनी ओर आकर्षित किया होगा इसलिए अभिलेखों के लिए यह एक श्रेष्ठ स्थल रहा होगा।
कालान्तर में गुप्त शासक समुद्रगुप्त और मुगल शासक जहांगीर सहित अनेक शासकों ने
अशोक के इस स्तम्भ पर अभिलेख खुदवाए। इसे इलाहाबाद के किले में सम्भवतः जहांगीर ने
ही स्थापित करवाया होगा।[16] इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि मौर्य सम्राट अशोक एक
धर्मप्रिय शासक था और वह अपने प्रशासन में जन-कल्याण को ही सर्वोपरि महत्व देता
था। इसलिए अपने विचारों और शासनादेशों को उसने स्तम्भों पर उत्कीर्ण करवाकर
धार्मिक और जन-संकुल स्थलों सहित प्रमुख व्यापारिक मार्गों के समीप स्थापित करवाए
जिसे पढ़कर साम्राज्य का प्रत्येक जन लाभान्वित हो सके। संदर्भ-ग्रन्थ- 1. पाण्डेय, विमल चन्द्र- प्राचीन भारत का
राजनीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास, संस्करण-चतुर्थ 1995,
पृ0 453 2. थापर, रोमिला- अशोक और मौर्य साम्राज्य
का पतन, हिन्दी संस्करण 1999, पृ0
231 3. उपर्युक्त 4. मुखर्जी, राधाकुमुद- अशोक, संस्करण-प्रथम 1974, पृ0 8 5. उपर्युक्त- पृ0 75 6. उपर्युक्त 7. थापर, रोमिला- उपर्युक्त- पृ0
233 8. मुखर्जी, राधाकुमुद- उपर्युक्त- पृ0
75 9. थापर, रोमिला- उपर्युक्त 10. पाण्डेय, विमल चन्द्र- उपर्युक्त 11. मुखर्जी, राधाकुमुद- उपर्युक्त- पृ0
75 12. थापर, रोमिला- उपर्युक्त- पृ0
235 13. थापर, रोमिला- उपर्युक्त- पृ0
229 14. पाण्डेय, विमल चन्द्र- उपर्युक्त 15. मुखर्जी, राधाकुमुद- उपर्युक्त
16. थापर, रोमिला- उपर्युक्त- पृ0
229-230 |