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Research Phenomenon ISBN: 978-93-93166-26-5 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
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अर्थशास्त्र और नैतिकता (Economics and Morality) |
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अमित कुमार शर्मा
सहायक आचार्य
अर्थशास्त्र विभाग
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
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DOI:10.5281/zenodo.8383210 Chapter ID: 18078 |
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आर्थिक विश्लेषण मूल्य मुक्त (Value Freee) नहीं है अर्थात् यह नैतिक या
नैतिक विचारों के सम्बन्ध तटस्थ या स्वतन्त्र नहीं है। अर्थशास्त्र का यह एक
विशिष्ट आधार है जो अर्थशास्त्रियों को यह कहने के लिए प्रेरित करता है कि
संसाधनों का बंटवारा कुशल होना चाहिए या उच्च लाभ वाली नीतियों को निम्न लाभ वाली
नीतियों की तुलना में वरीयता (Preference) दी जानी चाहिए।
अर्थशास्त्र में, इन मूल्य निर्णयों का आधार लोगों की
प्राथमिकताएँ हैं और आर्थिक मूल्य निर्णयों में अन्तर्निहित केन्द्रीय विचार (Underlying
Central Idea) यह है कि जितना हम लोगों की प्राथमिकताओं को संतुष्ट
कर सकते हैं, उतना ही बेहतर होगा। जब हम भूख को दूर करने, गरीबी को कम करने, बीमारी का इलाज करने ,
तथा कला या प्रकृति के आनन्द को सम्भव बनाने के बारे में सोचते हैं
तो वरीयताओं की संतुष्टि के लक्ष्य पर बहस (Debate) बहुत ही
मुश्किल हो जाता है। आखिरकार, वरीयताएँ वही हैं जो व्यक्ति
चाहते हैं और अर्थशास्त्री केवल लोगों की वरीयताओं को मापने और जोड़ने का प्रयास
करते हैं। अन्तर्निहित विचार अत्यधिक सामाजिक कल्याण (Maximum Social
Welfare) को बढ़ावा देना है और अधिकतम कल्याण को बढ़ाना, वास्तव में, बहुत विवादास्पद
(Controversial) नहीं होना चाहिए। समाज में चीजों की स्थिति के
सम्बन्ध में न्याय से सम्बन्धित सभी नैतिक दृष्टिकोण (Moral
Approach) व्यक्तिगत उपयोगिता (Individual Utility), अच्छा (Good), कल्याण (Welfare) तथा भलाई (Well-Being), इत्यादि को समाहित करते हैं,
लेकिन इनमें से कई अलग-अलग नैतिक अवधारणाएँ और नैतिक दृष्टिकोणों की
एक शृंखला है और इनमें से कुछ नैतिक विचारों के पैरोकार (Advocates) कल्याणकारी अर्थशास्त्र (Welfare Economics) के
अध्यधिक आलोचक हैं और समाज की पसंद को आँकने के लिए इसके उपयोग करने के खिलाफ तर्क
देते हैं। ये मुद्दे, वास्तव में, बहुत जटिल (Complex) हैं। हम दो प्रकार के नैतिक सिद्धान्तों के बीच अन्तर करके इसकी शुरूआत
करें। प्रथम, वह दृष्टिकोण है जो व्यक्तिगत व्यवहार, व्यक्तिगत गुण, गलत और सही के बारे में निर्णय,
10 आज्ञाओं (Ten Commandments) जैसे
नियम (परमेश्वर द्वारा मूसा को दिए जाने वाले नियम), और
अश्लील साहित्य (Pornography), ड्रग्स (Drugs) और समलैंगिकता (Homosexuality) पर ध्यान
केन्द्रित करता है। नैतिकता के प्रति इस दृष्टिकोण को आध्यात्मशास्त्रीय विचार (Deontological
Thought) कहा जाता है जो व्यक्तिगत कार्यों की नैतिकता पर
केन्द्रित होता है न कि उन कार्याें के परिणामों (Outcomes) पर। दूसरे, नैतिक सिद्धान्त का प्रकार परिणामवादी (Consequentialist) कहा जाता है। यह सिद्धान्त वस्तुओं/चीजों की नैतिकता को इनके परिणामों से
आँकता है। कल्याणवादी अर्थशास्त्र (Welfare Economics) निश्चित रूप से परिणामवादी (Consiquentailist) है। यह समाज के कल्याण या बुराई के बारे में सवालों पर केन्द्रित है। कल्याणवादी अर्थशास्त्र का नैतिक दृष्टिकोण एक दूसरे परिणामवादी सिद्धान्त, उपयोगितावाद (Utilitarianism),
से भी निकटता से संबंधित है जो पूरे समाज की भलाई को अधिकतम करना
चाहता है। हालांकि, अर्थशास्त्र को कभी-कभी उपयोगितावादी (Utilitarian) के रूप में वर्णित किया जाता है, लेकिन दोनों के बीच
कुछ महत्त्वपूर्ण अन्तर है। अर्थशास्त्री कभी-कभी सामाजिक कल्याण को सैद्धान्तिक
मॉडल में, उपयोगितावादी तरीके से (व्यक्तियों की उपयोगिताओं
के योग के रूप में) परिभाषित करते हैं, लेकिन एक व्यावहारिक मामले के रूप में, हम उपयोगिता
को सीधे माप नहीं सकते या व्यक्तियों की उपयोगिताओं की तुलना (Comparision
of Utilities) नहीं कर सकते। नतीजतन, अर्थशास्त्री
इसके बजाय प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार पर भरोसा करते हैं और अपनी वरीयता क्रम (Preference
Ordering) के प्रतिबिम्ब के रूप में अपनी पसंद को लेते हैं।
उदाहरण के लिए, बी पर ए के लिए प्राथमिकता, बी पर ए चुनने के साक्ष्य पर आधारित है। विकल्पों एवं वरीयताओं के बीच इस सम्बन्ध को बनाने के लिए अर्थशास्त्री मानते
हैं कि व्यक्ति विवेकशील (Rational) है ताकि वास्तविक चुनाव व्यक्तिगत स्तर
पर उपयोगिता के अधिकतम (Maximisation of Utility) को प्रदर्शित करे तथा व्यक्तिगत स्तर पर वरीयताओं के इस क्रम के आधार पर,
अर्थशास्त्रियों के दृष्टिकोण इन वरीयताओं को व्यक्तिगत स्तर पर
जोड़ते हैं ताकि संसाधनों या वस्तुओं में होने वाले परिवर्तनों के समग्र भुगतान करने
की इच्छा (Agreegate Willingness to Pay) को मापा
जा सके। एक क्रिया या नीति, जो कुशल होगी, जो अधिक व्यक्तियों को उनकी अधिक प्राथमिकताओं को पूरा करने की अनुमति (Allow) देती है और इसकी सामाजिक कल्याण के उच्च स्तर को प्राप्त करने के रूप में
व्याख्या की जाती है। प्रत्येक व्यक्ति का भुगतान करने की इच्छा में समान भार (Same
Weight) होता है, भले ही ए डालर के मूल्य
बहुत भिन्न उपयोगिताओं को दर्शातें हों। आर्थिक विश्लेषण को, अन्य नैतिक दृष्टिकोणों के सन्दर्भ में, कैसे व्याख्यायित (Interpreted) किया जाना
चाहिए, जो अर्थशास्त्र के साथ संघर्ष (Conflict) कर सकते हों ? यहाँ दिया गया दृष्टिकोण, और वाद में, विस्तारित सुझाव देता है कि अर्थशास्त्र
को सभी नीतिगत निर्णय लेने के लिए सर्वउद्देशीय निर्णय नियम (All
Purpose Decision Rule) के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए,
क्योंकि विचार करने के लिए अक्सर अन्य मुद्दे होंगे। इन अन्य
मुद्दों में समानता, अधिकार और निष्पक्षता की नैतिक धारणाएँ (Moral
Notions) शामिल हैं जो कुछ मामलों में बहुत महत्त्वपूर्ण हो
सकती हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि इन मामलों में आर्थिक विश्लेषण को छोड़ (Abandoned) देना चाहिए। अर्थशास्त्र और अन्य दृष्टिकोणों के बीच अर्थात् उनकी ताकत और
सीमाओं (Strength and Limitations) के बीच एक
बेहतर सन्तुलन को ध्यान में रखने की जरूरत है। अन्य नैतिक दृष्टिकोण (Other Moral Viewpoints): आइए, कई अन्य वैकल्पिक नैतिक विचारों पर विचार करें। कई पश्चिमी
परम्पराओं (Western Traditions) में समानता एक महत्त्वपूर्ण
विचार है और आर्थिक नीतियों के बारे में बहस (Debates) में
यह एक बहुत प्रभावशाली व्यावहारिक चिन्ता (Effective Practical Concern) है। समानता के पक्ष में होना आसान है लेकिन समानता के लिए सर्वसम्मत
समर्थन (Unanimous Support) जल्दी से भंग (Disolve) तब हो जाता है जब कोई पूछता है कि समानता किसकी ? हम
क्या बराबरी करने की कोशिश कर रहे हैं? उदारवादी (Libertarians)
अधिकारों की समानता (Equality of Rights) चाहते
हैं; उपयागितावादी चाहते हैं कि सभी का कल्याण समान रूप से
हो; कुछ पर्यवेक्षक (Observers) सम्मान
की समानता के पक्ष (Equality of Respect) में हैं और अन्य,
अवसर की समानता (Equality of Opportunity) को
बढ़ावा देते हैं। अधिकांश लोग इस बात से सहमत होंगे कि अधिकार स्वतन्त्रता और उदारता
की धारणाएँ समाज में अच्छाई के आंकलन के लिए आवश्यक हैं। लेकिन, एक बार फिर, सतह के नीचे उनकी परिभाषा, औचित्य और नैतिक रूप से अच्छा क्या है यह तय करने के लिए अपने बारे में
असमान और परस्पर विरोधी प्रश्नों की एक मनमौजी सारणी (Mind Boggling Array)
मौजूद है। स्वायत्त्ता (Autonomy) और
आत्मनिर्णय (Self-determination) स्वतन्त्रता के दो
महत्त्वपूर्ण पहलू हैं, लेकिन एक व्यक्ति की स्वतन्त्रता
अक्सर दूसरों की स्वतन्त्रता के साथ संघर्ष करती है; अक्सर
एक प्रकार की स्वतन्त्रता पर लगाये गये प्रतिबन्ध दूसरे प्रकार की बाधाओं को दूर
करने में मदद करेंगे। उदाहरण के लिए, एक सही नियम व्यक्तिगत
कार्यों को बाधित करता है, लेकिन सभी के लिए स्वतन्त्रता को
बढ़ाता है। नैतिक रूप से, स्वतन्त्रता का मूल्यांकन करने के
लिए यह तय करने की आवश्यकता है कि लोगों के लिए कौन से उद्देश्य सबसे महत्त्वपूर्ण
हैं और किस प्रकार की बाधाएँ (Obstacles) चिन्ता का विषय (Moral
Concern) हैं। जब भी समाज में संघर्ष होता है तो न्याय के प्रश्न Question of Justice) उठते हैं। न्याय उन व्यवस्थाओं के बारे में समझौतों (Aggrements), सहयोग (Cooperation), वार्ताओं (Negociations)
या अनुबंधों (Contracts) और नैतिक निर्णयों (Moral
Judgements) से सम्बन्धित हैं। न्याय के विचार को व्यक्तिगत बातचीत
(Individual Interaction) और हितों के टकराव (Conflict
of Interests) को रेफरी (Referee) करने के
तरीके के रूप में देखा जा सकता है, ताकि सहयोग के लाभों को
सुरक्षित किया जा सके। लेकिन यहाँ मुख्य समस्या यह है कि न्याय की धारणाएँ
स्वतन्त्रतावादियों (Libertarians) और उपयोगितावादियों (Utilitarians)
दोनों के विचारों के अनुकूल (Compatiable) हैं।
स्वतन्त्रतावादियों के लिए, स्वतन्त्रतावादियों द्वारा
मान्यता प्राप्त अधिकारों का सम्मान करने के लिए न्याय नीचे आता है।
उपयोगितावादियों के लिए न्याय में ऐसे नियम शामिल हैं जो सहयोग की सुविधा और हितों
के टकराव को दूर करके उपयोगिता को अधिकतम करते हैं। यदि आय असमानता समानता के आधार
पर एक समूह के लिए अन्यायपूर्ण है तो इस आय का पुनर्वितरण अधिकारों और स्वतन्त्रता
के उलंघन (Violating Rights and Freedom) के आधार पर दूसरे
समूह के लिए अन्यायपूर्ण होगा। साधन, साध्य और यन्त्र (Means, Ends and
Instruments): दार्शनिक मानते हैं कि नैतिक विचारों के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उनका
औचित्य (Justifications) है। जैसा कि पूर्व में स्पष्ट किया गया है कि
कर्तव्यपरायण या धर्मशास्त्रीय सिद्धान्त (Deontological Theories) नैतिक नियमों को निरपेक्ष रूप (Absolute Term) में
न्यायोचित मानते हैं; वे स्वयं में और अपने आप में सही या
अच्छे हैं जैसे कि सच बोलना। वैकल्पिक दृष्टिकोण, नैतिक
नियमों को उनके अन्त या परिणामों के सन्दर्भ में न्यायसंगत देखता है और परिणामवादी
नैतिक विचारों में कल्याणवादी अर्थशास्त्र (Welfare Economics), उपयोगितावाद (Utilitarianism), समतावाद (Egalitarianism),
निष्पक्षता की धारणा (Notion of Fairness), न्याय
(Justice) और सामाजिक अनुबंध दृष्टिकोण (Social
Contract Approach) शामिल हैं। परिणामवादी सिद्धान्त (Consequentalist Theories) एक उपकरणवादी व्याख्या (Instrumentalist
Interpretation) के साथ अधिक न्यायसंगत है जो नैतिक नियमों को,
एक वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए, उपकरणों
के रूप में देखता है। अर्थशास्त्र में, यह आम तौर पर
संस्थानों के बारे में हमारी समझ के समान है, ऐसे यन्त्र के
रूप में जो व्यक्तियों की पसन्द और कार्याें को बाधित, परिवर्तित
या सीमित करता है, जिसके परिणामस्वरूप समाज को लाभ होता है।
इन व्यक्तियों के साथ नैतिक विचारों में सुनहरा नियम (Golden Rule) और कांट की स्पष्ट अनिवार्यता (Kant's Categorical Imperative) शामिल है। हम सभी ऐसे समाज में बेहतर हैं जहाँ लोग सच बोलते हैं, चोरी या गन्दगी न करने की बात करते हैं और फुटपाथ पर चलते समय दांयी ओर
रहने की बात करते हैं। जहाँ विचार यह है कि कानून, नीतियों
और नैतिक नियमों सहित संस्थाएँ अस्तित्व में आती हैं, क्योंकि
वे उपकरणों के रूप में कार्य करती हैं, जो समाज को समग्र रूप
से लाभान्वित करती हैं। एक समाज जहाँ हत्या करना (Murder), झूठ
बोलना (Lie), घास पर चलना (Walk on the Grass), काम से बचना (Shirk Work) या दूसरों से चोरी करना (Steal
from Other) अनैतिक है, उन समाजों की तुलना
में कल्याण के उच्च सामान्य स्तर प्राप्त करने की सम्भावना अधिक है, जहाँ ये नैतिक कोड (Moral Codes) मौजूद नहीं हैं।
वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए नैतिक कोड हमेशा पर्याप्त नहीं होते, जैसे अपने बच्चों को हमेशा सच बोलना सिखाना। अक्सर हमें कानूनों (Laws),
दण्डों (Penalities), और विनियमों (Regulations),
के साथ नैतिक नियमों को सुदृढ़ करने (Reinforce), या पूरक (Complementary), करने की आवश्यकता होती है।
जिस तरह से परिणामवादी नैतिक विचार साधनों (Means) की बजाय
अन्त (Ends) पर जोर देते हैं, उसी तरह
अर्थशास्त्री नीतिगत मुद्दों को देखने का तरीका अपनाते हैं। व्यवहार में अर्थशास्त्र और नैतिकता (Economcs and Morality in
Practice): व्यापार नीति (Trade Policy) और वैश्वीकरण (Globalisation) विवादास्पद विषय है, क्योंकि वे नैतिक और आर्थिक
मुद्दों के बीच सम्बन्ध को बढ़ाते हैं। इन मुद्दों पर प्रकाश डालने के लिए लैरी
समर्स (Larry Summers) द्वारा 1991 में
प्रस्तुत एक ज्ञापन (Memo) को देखते हैं जो उस समय
विश्व बैंक के अर्थशास्त्री थे और अब हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष हैं
(देखें बाक्स)। हम ज्ञापन तथा उन पर लगी आपत्तियों (Objections) को तर्क में सम्मिलित करना चाहते हैं। साथ ही हम नैतिक मुद्दों को दूसरे
प्रकार के अन्य मुद्दों से अलग करना चाहते हैं। ज्ञापन में मूल विचार यह है कि अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों को अमीर देशों से
गरीब देशों में स्थानान्तरित करना (Relocation), अमीर और गरीब दोनों देशों के
लोगों के लिए पारस्परिक रूप से फायदेमंद हो सकता है क्योंकि इसके पीछे मूल तर्क यह
है कि इससे आवंटन क्षमता (Allocative Efficiency) में वृद्धि
होगी। समर्स यह सुझाव दे रहे हैं कि प्रदूषण उत्पन्न करने वाले उद्योगों को कम
विकसित देशों (Less Developed Countries) में हस्तानान्तरित
होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और यह उन तरीकों से किया जाना चाहिए,
जिनमें प्रत्येक सरकार की मंजूरी के साथ किये गये बाजार लेनदेन (Market
Transactions) और स्वैच्छिक आदान-प्रदान (Voluntary
Exchanges) जैसे कुछ प्रारम्भिक प्रोत्साहन के साथ या विश्व बैंक के
समर्थन शामिल हों। अधिक प्रदूषण के मुआवजे (Compensation) के
रूप में, गरीब देशों के पास प्रदूषणकारी उद्योगों से अधिक
नौकरियाँ और आय हांेगीं। उच्च आय वाले देशों में, कुछ
नौकरियों और आय के नुकसान की भरपाई पर्यावरणीय गुणवत्ता (Environmental
Quality) में सुधार से की जायेगी। समर्स का सुझाव है कि इस तरह के
बदलाव का शुद्ध लाभ दोनों देशों के लिए सकारात्मक (Helpful) होगा
और इसके लिए वे कई कारण बताते हैं।
प्रथम, समर्स का यह मानना है कि निम्न आय वाले देश में प्रदूषण की दी
गयी मात्रा की लागत कम हो सकती है, क्योंकि उसका जनसंख्या
घनत्व अक्सर कम होता है, इसलिए प्रदूषण की दी गयी मात्रा का
मानव पर प्रभाव, कम आबादी वाले देशों की तुलना में ज्यादा
आबादी वाले क्षेत्रों पर ज्यादा होगा। गैर-रेखीयता (Non-Linearity) के बारे में उनकी टिप्पणी का अर्थ है कि केवल कुछ स्थानों में उच्च घनत्व
पर प्रदूषण की समान मात्रा को केन्द्रित करने की तुलना में एक विस्तृत क्षेत्र में
प्रदूषण फैलाना कम खर्चीला हो सकता है। वह, यह भी बताते हैं
कि प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले कुछ स्वास्थ्य सम्बन्घी जोखिम (Health
Risks) जीवन में देर से होते हैं (जैसे प्रोस्टेट कैंसर) ताकि
उन प्रभावों को उस आबादी में कम किया जा सके, जहाँ कम
व्यक्ति आमतौर पर एक उम्र विशेष (Particular Age) में
ही पहुँचते हैं। उनका यह भी मानना है कि उच्च आय वाले लोग हवा की बेहतर गुणवत्ता
को प्राप्त करने के लिए अधिक मूल्य, निम्न आय वाले लोगों की
तुलना में, देने को तैयार होते हैं, ताकि
उच्च आय वाले देश में, हवा की गुणवत्ता में सुधार उन लोगों
के लिए अधिक मूल्यवान होगा और यह लाभ गरीब देश में रहने वाले लोगों के लिए वायु
गुणवत्ता में गिरावट से होने वाले नुकसान से ज्यादा होगा। अब तक के तर्क पूरी तरह से कल्याणवादी अर्थशास्त्र के मूल सिद्धान्तों के
अनुरूप हैं। समर्स हमेशा खुद को अच्छी तरह से या नाजुक ढंग (Delicately) से
नहीं समझाते हैं, लेकिन अब फिर भी अन्य अर्थशास्त्रियों के
लिए एक आन्तरिक ज्ञापन (मेमो) था न कि सार्वजनिक वितरण के लिए। हालाँकि, वह मौलिक रूप से, वह सुझाव दे रहे हैं कि स्वच्छ हवा
की सापेक्ष कीमत (आय या नौकरियों के मूल्य के सापेक्ष हवा का मूल्य) अमीर देशों की
तुलना में गरीब देशों में कम है और परिणामस्वरूप सम्भावित लाभ है व्यापार। एक चीज जो समर्स को परेशानी (Trouble) में डालती है वह है उनका मेमो शुरू
करने का तरीका। जब वह यह सुझाव देते हैं कि स्वास्थ्य को खराब करने वाले प्रदूषण
की लागत बढ़ी हुई अस्वस्थता और मृत्युदर से छूटी हुई कमाई/ प्राप्तियों पर निर्भर
करती है और इस प्रकार यह गतिविधि पूरे देश में न्यूनतम मजदूरी पर की जानी चाहिए।
इस कथन का अर्थशास्त्र द्वारा समर्थन नहीं किया जा सकता। यह कथन यह धारणा देता है
कि लोग केवल उतने ही मूल्यवान हैं जितने कि वे अपने जीवनकाल (Life Time) के दौरान आय अर्जित करते हैं, इसलिए यह कहा जाता है
कि कम वेतन पाने वालों का जीवन, उच्च वेतन पाने वालों के
जीवन से कम महत्त्वपूर्ण है। याद रखें, कल्याणकारी
अर्थशास्त्र उपयोगिताओं की पारस्परिक तुलना (Inter Personal Comparision of
Utility) करने के लिए कोई आधार नहीं प्रदान करता, इसलिए हम सीधे तौर पर इस बारे में कुछ नहीं कह सकते कि एक व्यक्ति का जीवन
दूसरे व्यक्ति के जीवन के सापेक्ष कितना मूल्यवान (Valuable) है। यह बिन्दु, विशेष रूप से, नैतिक
मूल्य निर्णय लेने के लिए प्रासंगिक (Relevant) है, क्योंकि नैतिकता का सम्बन्ध नैतिक मूल्य को (व्यक्तियों और उनकी विशेषताओं
के) आँकने के आधार से है । यहां समर्स को यह गलत लगता है। हालाँकि, अर्थशास्त्र जिसकी अनुमति देता है, वह
लोगों की खुद को स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति उजागर (Expose) करने
की इच्छा में अन्तर (Recognition of the Difference) की
मान्यता है। आर्थिक विश्लेषण यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि गरीब देशों के लोग,
उच्च आय वाले देशों के लोगों की तुलना में, आय
के बदले में वायु की गुणवत्ता छोड़ने के लिए औसतन अधिक इच्छुक हैं। यदि ऐसा है तो
यह गरीब और अमीर देशों के बीच भुगतान करने की सापेक्ष इच्छा में अन्तर की तरह है
और यह स्वैच्छिक तथा पारस्परिक रूप से लाभप्रद व्यापार से लाभ के अवसर का
प्रतिनिधित्व करता है। इस निष्कर्ष के साथ कई समस्याएँ भी हैं। सबसे पहले, हम यह
सुनिश्चित नहीं कर सकते कि गरीब देशों में लोगों को प्रदूषण से होने वाले
स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में पर्याप्त जानकारी होगी या वे अनावश्यक जोखिम (Unnecessary
Risk) से बचने के लिए सूचित निर्णय (Informed Decision) लें सकेंगे या कार्य कर सकेंगे। चूँकि आर्थिक विश्लेषण पसन्द के आधार के
रूप में पूर्ण जानकारी (Perfect Knowledge) पर आधारित है,
अतः पर्याप्त जानकारी की अनुपस्थिति या गलत जानकारी, वास्तव में व्यापार से लाभ के बारे में आर्थिक निष्कर्ष को अमान्य (Invalidate)
कर सकती है। दूसरा, हम इस बात को लेकर अस्वस्थ
(Sure) नहीं हो सकते कि निम्न आय वाले देश में इस प्रकार के
निवेश का लाभ नीचे (Trickle Down) जाएगा और वास्तव में
गरीबों को लाभ होगा। यदि उद्योग स्थानान्तरण (Industrial Relocation) के किसी कार्यक्रम पर इन लोगों की सहमति के बिना, जो
सबसे अधिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे। सरकारों के बीच बातचीत की गई तो यह
सम्भव है कि पहले से वंचित कुछ व्यक्तियों को प्रत्याशित लाभ (Anticipated
Benefits) में से कुछ भी हिस्सा नहीं मिले, जबकि
वे बढ़े हुए बोझ (प्रदूषण) का अधिकांश हिस्सा वहन करते हैं। सरकारी भ्रष्टाचार,
कुछ या सभी लाभों को जनंसख्या में वितरित करने की बजाय उन्हें हड़प (Siphon
off) सकता है। यह निश्चित रूप से देशों के बीच किसी भी प्रकार के
लेन-देन के लिए एक आम चिन्ता (Common Concern) का विषय है,
चाहे यह स्थानान्तरण नकद रूप में हो या भोजन के रूप में हो या फिर
गंदी फैक्ट्रियों के रूप में। भ्रष्टाचार (Corruption) और
भाईचारावाद (Cronyism) की स्थितियों में नीतिगत विफलताएँ (Policy
Failures) देखी गयी हैं। तृतीय, निम्न आय वाले देश में प्रदूषण मानक (Pollution
Standards) तथा उनके प्रवर्तन (Enforcement) कमजोर
होते हैं। इसलिए प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग को एलडीसी में ले जाने से प्रदूषण का
स्तर उच्च हो सकता है। हालाँकि, यह परिणाम पूरी तरह से लोगों
की प्राथमिकताओं के अनुरूप हो सकता है। एलडीसी में आय के सापेक्ष वायु गुणवत्ता का
मूल्य कम हो सकता है, जैसा कि पर्यावरणीय कुजनेट्स वक्र (Environmental
Kuznets Curve) स्पष्ट करता हैं। यदि एलडीसी में लोग स्वच्छ हवा से
अधिक अतिरिक्त आय को महत्त्व देते हैं, तो हम उम्मीद करेंगे
कि उनके वायु गुणवत्ता मानक कमजोर होंगे और उनकी प्रवर्तन एजेन्सियाँ (Enforcement
Ajencies) उच्च आय वाले देश की तुलना में कम होगी, जहाँ हवा की गुणवत्ता बहुत अधिक प्राथमिकता बन गयी है। वास्तव में, उसी रतह एलडीसी में सरकारें संग्रहालयों (Museaums) और प्रदर्शन कलाओं (Performing Arts) पर कम खर्च
करना चाहती हैं अर्थात् यहां गरीबी की व्यापकता, नौकरियों की
कमी और सार्वजनिक धन की कमी को देखते हुए पर्यावरणीय गुणवत्ता (Environmental
Quality) की सापेक्ष प्राथमिकता (Relative Preference) भी कम होती है। इन मुद्दों के नैतिक आयाम जटिल (Complex) और अन्ततः अस्पष्ट (Ultimately
Ambigious) हैं। समतावादी (Egalitarians) यह जानना चाहेंगें कि क्या गरीब देशों में प्रदूषण का स्थानान्तरण समानता
को बढ़ावा देगा, लेकिन समानता किसकी ? प्रदूषण
? नौकरियाँ ? आय ? अवसर ? प्रदूषण के स्थानान्तरण से अधिकार और
स्वतन्त्रता कैसे प्रभावित होंगे ? यह प्रस्ताव (Proposal)
इस विचार का विरोध करता है कि विकासशील देशों में लोगों को स्वच्छ
हवा में सांस लेने का अधिकार है, लेकिन नौकरियों और आय के
अवसरों के अधिकार के बारे में क्या, जो इसके साथ आ सकते हैं ? इस विषय पर बहस में जो स्पष्ट है वह यह है कि कुछ पर्यवेक्षक जो एलडीसी में
प्रदूषण के स्थानान्तरण पर आपत्ति जताते हैं, वे प्रदूषण को, उत्पादन
में, अन्य आगतों (Inputs) जैसे- श्रम,
भूमि या पूँजी के रूप में देखने के तरीके से काफी अलग तरीके से
देखते हैं। एक भावना है कि प्रदूषण अपने आप में अनैतिक (Immoral) है और प्रदूषण को व्यापार करने की अनुमति देना एक हत्यारे को काम पर रखने
(Hiring an Assassin), कोकीन के लिए बाजार (Market
for Cocaine) बनाने या बाल श्रम का समर्थन (Endorsing
Child Labour) करने के समान है। अर्थशास्त्र सीधे प्रदूषण या कोकीन
व्यापार के लिए नैतिक अर्थाें को श्रेय (Moral Cannotations) नहीं देता, बल्कि इसके बजाय परिणामों और विशेष रूप
से उत्पन्न होने वाले बाह्यताओं (Exteranalities) पर ध्यान
केन्द्रित करता है। यदि कोकीन के बाहरी प्रभावों के कारण प्रदूषण को कम करने या
प्रतिबंधित करने के लिए कोई मामला बनता है तो आर्थिक विश्लेषण उस निष्कर्ष पर
पहुँचेगा और अर्थशास्त्री सबसे अधिक लागत प्रभावी साधनों की तलाश करेंगे। यदि
प्रदूषण पर नैतिक कलंक (Moral Stigma) लगाने से काम पूरा हो
जाय, तो यह बहुत अच्छा है। प्रदूषणकारी उद्योगों को एलडीसी में स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित किया
जाना चाहिए या नहीं, इसका निर्णय करने के लिए कई सम्भावित विचार हैं, लेकिन कोई स्पष्ट निष्कर्ष नहीं है। विचार के विरूद्ध प्रत्येक नैतिक तर्क
के लिए एक नैतिक कलंक (Moral Stagima) भी प्रतीत होता है।
किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए, विभिन्न मुद्दों और
विचारों को तौलना और संतुलित करना आवश्यक है। लेकिन अभी भी एक मुद्दा और है,
और वह यह है कि अन्दाजा (Weighting) कौन लगाये?
यदि अमेरिकियों, आमतौर पर समर्स की योजना,
को नैतिक रूप से संदिग्ध (Morally Questioable) माना है, क्या उनका विचार निर्णायक होना चाहिए?
क्या सवाल गरीब देशों के नागरिकों पर छोड़ देना चाहिए या उनकी
सरकारों पर? यह सम्प्रभुता (Sovereignity) और आत्मनिर्णय (Self-Determination)
के बारे में नैतिक प्रश्न उठाता है। साक्ष्य (Evidence) बताते हैं कि एक देश के नागरिक नैतिक मुद्दाों को उसके प्रकार के आधार पर,
सम्प्रभुता का सम्मान करने और दूसरे देशों के लोगों या सरकारों को
स्थगित करने के लिए तैयार हैं। हालाँकि, बहुत से लोग इस बात
से भी सहमत होंगे कि रंगभेद (Apartheid), बाल श्रम (Child
Labour) या गुलामी (Salavery) के मामले में
हस्तक्षेप करना स्वीकार्य है या कई बार नैतिक रूप से आवश्यक है, उदाहरण के लिए व्यापार प्रतिबन्ध। लेकिन यह नैतिक तर्क मुद्दे की
निरन्तरता के साथ किसी बिन्दु पर सम्प्रभुता के अधिकारों (Rights of
Sovereignty) से अधिक हो सकता है, जैसे
कि महिलाओं की पारम्परिक भूमिकाएँ (Traditional Role of Women), मृत्यु-दण्ड (Capital Punishment), पशु अधिकार (Animals
Right), पवित्र गाय (भारत में), वन सुरक्षा (Forest
Security), इत्यादि। स्पष्ट रूप से, यह कई
आयामों और परस्पर विरोधी नैतिक पहलुओं के साथ एक जटिल मुद्दा है जिसकी अलग-अलग
व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग व्याख्या की जाएगी। इसके विपरीत, समर्स
ने इन जटिलताओं की सराहना (Appreciation) नहीं की और इसके
वजाय कल्याणकारी अर्थशास्त्र के एक संकीर्ण अनुप्रयोग (Narrow Application)
के आधार पर एक स्पष्ट और दृढ़ निष्कर्ष का मार्ग दिखाया। हमें इस सब से क्या मतलब निकालना चाहिए (What Should We Make of All
This?) - अर्थशास्त्र मूल्य निर्णय (Value Judgement) लेने का एक दृष्टिकोण प्रदान करता है जो न तो पूर्ण है और न ही व्यापक (Comprehensive)
है। फिर भी, कोई भी विकल्प जिसे समाज में
व्यापक समर्थन (Widespread Support) प्राप्त हो सकता
है, वह भी अपूर्ण (Imperfect) और
अस्पष्ट (Ambigous) प्रतीत होता है। कुछ लोग यह तर्क दे सकते
हैं कि अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण में कम खामियाँ (Flaws) हैं
और अन्य विकल्पों की तुलना में अधिक व्यापक सहमति (Widespread
Agreement) है, लेकिन यहाँ जोर देने
वाली अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समाज को क्या करना चाहिए। साथ ही साथ इसके
बारे में निर्णय लेने के लिए कई विचारों और मानदण्डों पर विचार करना चाहिए। कई
सेटिंग्स (किसी वस्तु की पृष्ठभूमि) में, शुद्ध लाभ का
अनुमान लगाना प्रमुख विचार हो सकता है, उदाहरण के लिए,
समानता, अधिकार या निष्पक्षता पर प्रभाव तटस्थ,
ऑफसेटिंग या अस्पष्ट हैं। हालाँकि, कई अन्य
संटिंग्स में अधिकारों, समानता या निष्पक्षता के बारे में
चिन्ताएँ दक्षता पर भारी पड़ेगी और उस वास्तविकता को अनदेखा करना अर्थशास्त्र का
दुरूपयोग (Misuse) होगा। इस बात पर जोर देना जरूरी है कि अर्थशास्त्र, अपने आप में, नैतिक
वस्तुओं (Moral Goods) और अनैतिक वस्तुओं (Immoral
Goods) के बीच अन्तर की पहचान करने का कोई सीधा तरीका प्रदान नहीं
करता है। लोगों की भुगतान करने की इच्छा बाजार विनिमय से सम्भावित शुद्ध लाभ का
सुझाव देती है, लेकिन शिशुओं, गुर्दे,
नायिका या दासों के बाजारों के बारे में क्या ? मुद्दा यह नहीं है, कि रेखा कहाँ खींचनी है और ऐसी
रेखाएँ कैसे खींचनी हैं। कुछ लोगों के लिए, यह एक नैतिक
प्रश्न है, कुछ प्रकार की वस्तुएँ और सेवाएँ बिल्कुल अनैतिक
हैं। लेकिन क्या यह भी एक ऐसा प्रश्न नहीं है, जिससे कल्याण
पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी मिल सके ? क्या किडनी का
बाजार पारस्परिक रूप से लाभप्रद आदान-प्रदान के माध्यम से कल्याण बढ़ाएगा ? कुल मिलाकर, नीतिगत निर्णयों के आधार के रूप में किसी विशेष नैतिक दृष्टिकोण
के उपयोग का प्रस्ताव करने में विनम्रता का एक मजबूत मामला प्रतीत होता है।
दृष्टिकोणों के समग्र या संयोजन का समर्थन करना आसान है, यह
पहचानते हुए कि प्रत्येक दृष्टिकोण में कमियाँ हैं। वास्तविक दुनिया में, यह वही है जो हम अक्सर (लेकिन हमेशा नहीं) देखते हैं: अधिकार, निष्पक्षता और समानता जैसे विचारों द्वारा दक्षता को बढ़ावा देना। कुछ
लोगों को इस विचार पर आपत्ति होगी कि नैतिकता को विनम्रता से संयमित किया जाना
चाहिए, यदि इन नैतिकताओं को सही और गलत के बारे में पूर्ण,
निर्विवाद निर्णय समझा जाए। इसमें वह निहित है, जिसे कुछ लोग अर्थशास्त्र की एक बड़ी कमजोरी के रूप में देखेंगे; इसके तरीके सभी व्यक्तियों के मूल्यों का औसत करके सामान्य आधार या समझौता
स्थिति खोजने का प्रयास करते हैं, जैसा कि उनकी प्राथमिकताओं
में पता चलता है। कई अलग-अलग नैतिक दृष्टिकोण वाले समाज में, स्वतन्त्रतावाद (Libartarianism) से लेकर साम्यवाद (Communitarianism)
तक और प्रकृति के कई अलग-अलग दृष्टिकोण वायोसेण्ट्रिज्म (Biocentrism)
से पारिस्थितिक-नारीवाद (Eco-Feminism) तथा
गहन पारिस्थितिकी (Deep Ecology) तक, इन
पदों का औसत कुछ व्यक्तियों के लिए असन्तोषजनक होगा। अर्थशास्त्र इनमें से किसी भी
दृष्टिकोण को अमान्य (Invalidate) नहीं करता है, बल्कि, यह एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास करता
है जो इन सभी दृष्टिकोणों को इस हद तक समान उपचार (Equal Treatment) प्रदान करता है जो लोगों की प्राथमिकताओं में प्रतिबिम्बित (Refelected)
होते हैं। सन्दर्भ सूची (References): 1. डेनियल हाउसमैन एण्ड मिसेल मैकफेरसन (1996),” इकोनॉमिक एनॉलिसिस एण्ड मॉरल फिलॉसफी”, कैम्ब्रिज
यूनिवर्सिटी प्रेस, न्यूयार्क। 2. डेनियल डब्ल्यू0 ब्रोमली एण्ड जोउनी
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पब्लिकेशन, आक्सफोर्ड। 3. अमर्त्य सेन (1977),”रेसनल फूलः ए
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फ्रीडम”, एन्कर बुक्स, न्यूयार्क। 5. वतन एरिल्ड एण्ड डेनियल डब्ल्यू0 ब्रोमली
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जर्नल ऑफ इनवॉयरन्मेण्टल इकोनॉमिक्स एण्ड मैनेजमेण्ट, 26 नम्बर 2: 129-148। 6. विलियम के0 जेगर (1995), “इज ससटेनविलिटी ऑप्सनल ? इक्सैमिनिंग द डिफरेन्स
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कम्प्टीशन एण्ड अदर येसेस”, हारपर एण्ड ब्रदर्स, न्यूयार्क। |