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Research Trends in Business and Management ISBN: 978-93-93166-71-5 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
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भारत में दुग्ध सहकारिता - चित्रण |
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अनिल कुमार गुप्ता
सह - प्राध्यापक
विभाग डेयरी एससी के. एवं टेक (पूर्व में ए.एच एवं डेयरी)
आर.के. (पी.जी.) कॉलेज
शामली, यूपी, भारत
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DOI:10.5281/zenodo.10297912 Chapter ID: 18315 |
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भारत में दुग्ध सहकारिता का विकास भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल के सुझाव पर खेडा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ (Kaira Brtrict Cooperative Milk Producer Union) का 1946 में पंजीकरण हुआ जोकि अमूल (Kaira Brtrict Cooperative Milk Producer Union) के नाम से विख्यात है। इस समय इन संघ में मात्र 2 डेरी समितिया तथा जिनका दुध संग्रह मात्र 250 लीटर प्रतिदिन था। सन् 1946 से 1952 तक अमूल का एक मात्र उद्देश्य बम्बई के दुग्ध बाजार में अपना एकाधिकार करना था क्योकि सन् 1930 में पालसन ने अपनी डेरी को बम्बई से आनन्द में स्थान्तरित करके सयन्त्र स्थापित किया था 1952 में अमूल को इस कार्य में सफलता मिली तथा बम्बई सरकार ने पालसन से अपना दुग्ध संविदा (Milk contract) निरस्त करके अमूल को दे दिया। 1954 में अमूल ने मक्खन, घी तथा दुध चूर्ण के लिए एक संयन्त्र स्थापित किया जिनकी वित्तीय सहायता अमूल को UNICEF से मिली। इस में 1965 में एक ओर संयन्त्र स्थापित किया सन् 1993 में एक पूर्णतय स्वचालित आधुनिक डेरी की स्थापना की गई। आनन्द पद्वति की डेरी सहकारी समितियॉ (Anand Pattern of Dairy Coooprative ) (APDCs) की मुख्य विशिष्टताएं निम्न है। 1. एकल लाभ साधन A (Single Commodity approach) 2. विकेन्द्रित निर्णय (Decentralized decision making ) 3. त्रि सोपानिक संगठनात्मक रचना (Decentralized decision making ) 4. तकनीकी सहायता प्रदान करने का प्रावधान (Provisten of providing technical input) 5. ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान (Important Contributing development of rural) अमूल पद्वति कृषको को उनके द्वारा सृजित किए गये संसाधनो का नियंत्रण करने के अवसर प्रदान करती है। आनन्द पद्वति की प्राइमरी ईकाई ग्राम दुग्ध उत्पादन सहकारी समिति (Village Milk Producer’s Cooperative society) जोकि एक गॉव मे दुग्ध उत्पादको का स्वैच्छक संघटन है। जोकि अपने उत्पादक दुग्ध की बिक्री करने का इच्छुक है प्रत्येक दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति का सदस्य होता है। जोकि मिलकर एक प्रबन्ध समिति का गठन करते है। संघ द्वारा संचलित डेरी में अधिशेष दुग्ध के लिए एक दुग्ध शुष्कन संयत्र होता है। इसका अपना एक पशु चारा संयन्त्र भी है। जोकि चारे की बाजारीय कीमत से 20-30 प्रतिशत कम पर पोष्टिक संतुलन चारा उपलब्ध कराता है। सन् 1964 में भारत के प्रधानमंत्री स्व0 श्री लाल बहादुर शास्त्री ने ग्रामीण दुग्ध उत्पादको को प्राप्त हो रहे लाभ से प्रभावित होकर आनन्द पद्वति पर आधारित एक राष्ट्रीय संगठन की इच्छा जताते हुए इन रूप में 1965 में राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board) की स्थापना की थी इस का मुख्यालय आनन्द में बनाया गया। इसके सर्वप्रथम अध्यक्ष Dr. Verghese Kurien थे, जिनके सानिध्य में श्वेत क्रांन्ति प्रारम्भ की गयी थी। NDDB को भारत सरकार के अन्तर्गत डेनिश सरकार व अमूल ने भी आर्थिक सहायता प्रदान की। सन् 1969 में भारत सरकार ने श्वेत क्रांन्ति का प्रस्ताव पास किया। इस कार्यक्रम को विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme) अर्न्तगत उपहार के रूप में दुग्ध पदार्थ भी मिले सन् 1970 में भारतीय डेरी निगम (World Food Programme) की स्थापना की जिसका कार्य श्वेत क्रान्ति के लिए उपहार स्वरूप मिले दुध पदार्थो को प्राप्त करके उनका परीक्षण, गुणवत्ता, संग्रहण प्रयोग करने वाली डेरी तक परिवहन तथा मूल्य को प्राप्त करने का कार्य था। तकनीकी सहायता के रूप में कार्य NDDB ने किया। 1987 में IDC को NDDB में विलय कर दिया गया। सहकारी शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द Co-operari से हुई जिसमें Co का अर्थ है, के साथ तथा operari का अर्थ है, कार्य सम्पन्न करना। अतः सहकारी Cooperative शब्द का भाव है। साथ मिलकर कार्य सम्पन्न करना। जिस प्रकार से हमारे शरीर के विभिन्न अंग एक साथ मिलकर कार्य करते है। ठीक इसी प्रकार सहकारिता की संकल्पना भी प्रकृति से उदगत हुई है। दूसरे शब्दो में सहकारिता सम्बन्धी सभी व्यक्त्यिो के हितो को एक सामूहिक कार्यवाही के रूप में पूरा करता है। सहकारिता का इतिहास बहुत प्राचीन है। इस युग में ’कुला’ ’ग्रामा’ शरेनी तथा जट्टी नाम के रूप में चार सहकारी संस्थान होते है। शनै - शनै इसमें संयुक्त परिवार के रूप ले लिया जोकि ’असमर्थता’, रोगो तथा बुढापा के प्रति बचाव प्रदान करता है। इस युग में हम सभी उत्पादन संसाधन विपणन तथा वितरण के क्षेत्र में सहयोग लेते है। दुध उद्योग में गॉव स्तर पर उत्पादक सहकारी समितियॉ, जिला स्तर पर संसाधन सहकारी समितिया तथा राज्य स्तर पर वितरण सहकारी समितियां फेंडरेशन के रूप में पहचानी जाती है। मध्याथ द्वारा उत्पादको को कम कीमत देना, उत्पादक और उपभोक्ता के मध्य प्रभावकारी सम्बन्ध बनाना, उत्पादन व गुणवत्ता में सुधार करना, अपने लाभ को बढाने के लिए सहकारी समिति के सदस्यो को विभिन्न बाहरी प्रक्रियाओ में जोडना आदि के रूप सहकारिता के लाभ है। सहकारिता के मूलभूत सिद्धांत 1. मुक्त एवं स्वैच्छिक सदस्यता 2. लोकतान्त्रिक शासन, समानता पर सीमित लाभ 3. बचत का न्यायोचित वितरण 4. विभिन्न सहकारी समितियो के बीच सहयोग तथा सहकारी शिक्षा। कोई भी क्षेत्र का व्यक्ति अपनी इच्छानुसार जिनकी आयु 18 वर्ष से अधिक हो, समद्व घोषित न हो तो साथ में उसका स्वस्थ मस्तिष्क व उत्तम चरित्र हो तथा सहकारी समिति का सदस्य बन सकता है। राज्यो के अपन अपने सहकारी सोसाइटी अधिनियम होते है। जिस समिति का उद्देश्य विभिन्न सहकारी समिति के अनुसार अपने सदस्यो के आर्थिक लाभो को प्रोन्नत करना होता है, वह रजिस्टर की जा सकती है। इनके लिए राज्य सरकार समितियो को एक रजिस्टर नियुक्त करती है। इसके पास समितियो के पंजीकरण करने से लेकर उनको समाप्त करने तक सभी अधिकार होते है। एक समिति 18 वर्ष से अधिक उम्र के न्यूनतम 10 सदस्यो के साथ गठित की जा सकती है। यदि समिति के अधिकार सीमित हो तथा इस प्रकार की समिति के पास कुल पूॅजी का 20 प्रतिशत से अधिक शेयर पूंजी नही होनी चाहिए इसका प्रबन्धन एक समिति द्वारा जिसमें अध्यक्ष, सचिव व सदस्य व अन्य व्यक्त्ति जिनको समिति के कार्यो के सम्बन्ध में निवेश देने के लिए नियम व उपनियमों के अर्न्तगत शक्ति दी गयी हो व पंजीकृत समिति अपने सदस्यो व अन्य पंजीकृत समिति का ऋण दे सकती है। रजिस्ट्रार स्वयं समिति के कार्यो का निरीक्षण स्वयं अथवा किसी अन्य व्यक्ति को जॉच के लिए प्राधिकृत कर सकते है। रजिस्ट्रर जॉच के बाद आव 75 प्रतिशत सदस्यो पर प्राप्त आवेदन पर समिति के पंजीकरण का विघटन भी कर सकते है। पंजीकृत सहकारी समिति के लिए कम्पनी के अधिनियम प्रभावी नही होते। सन् 1969 में NDDB ने एक एकीकृत डेरी विकास कार्य क्रम तैयार किया जो कि Operation flood-2 कार्यक्रम के नाम से पहचाना गया इस प्रस्ताव के अर्न्तगत भारत के चार महानगरो कोलकत्ता, मुम्बई दिल्ली व मद्रास के क्षेत्रो में आनन्द पद्वति पर आधारित 18 दुध सहकारी समितियो का गठन किया जोकि निवेश दुग्ध उत्पादन, दुग्ध संसासधन और विपणन की गारन्टी प्रदान कर सके। सन् 1980 तक 13270 ग्राम डेरी सहकारी समितियो की स्थापना की गई जिसमें व्यावानायिक स्तर पर 17.47 लाभ कृषक परिवार सम्मिलित हुए थे ग्रामीण दुग्ध संयन्त्रो की क्षमता परियोजन पूर्व स्तर 6.6 लाख लीटर से बढकर 45.38 लाख लीटर हो गयी है। तथा निष्पादन स्तर (Through put level) 4.60 लाख लीटर से बढकर 33.87 लाख लीटर प्रतिदिन बढ गया। डेरी उद्योग में संगठन के रूप में निजी सरकारी और सहकारी होते है। यहॉ तक की निजी डेरियो का सम्बन्ध है। यह स्वयं के अर्जित लाभो पर केन्दित होती है। इनके द्वारा दुध उत्पदाको को कोई प्रोत्साहन नही मिलता। दूसरी ओर सरकार द्वारा संचालित दुध सप्लाई योजनाओ का कार्य संतोषजन नही है। अतः सहकारी संगठन जोकि छक्क्ठ के रूप में कार्यन्वित है, के द्वारा साथ में अमूल मॉडल जैसी सफल दुध सहकारिता व ऑप्रेरेशन फ्लड यह दर्शाते है कि सहकारी नीतिया पर संगठित डेरी उद्योग ही ऐच्छिक सार्थक परिणाम दे सकते है। इनके लिए ग्रामीण स्तर पर दुध उत्पादको के आर्थिक स्तर में सुधार पर विशेष केन्द्रित होने की जरूरत है। डेरी सहकारी समितियो की त्रि-सोपानिक संरचना (Three Tier Structure of Dairy Cooperation) देश में सहकारी समितियॉ, प्रापण (Procurement), प्रक्रियन (Processing) व विपणन (Marketing) तीन स्तरो पर कार्य करती है। प्राथमिक स्तर पर ग्राम दुध उत्पादन सहकारी समिति Village Milk Producer Cooperative Society (VMPCs) इसके सचिव का चयन दिन प्रतिदिन कार्यो के लिए चयनित प्रतिनिधियो द्वारा किया जाता है। इनके प्रमुख कार्य दुग्ध इकट्ठा करना, गुणवत्ता की जॉच करना, संघो को दुग्ध भेजना, बिल तैयार करना, भुगतान लाना व नियमित रूप से उत्पादको को वितरित करना साथ में पशु चारा की बिक्रि व पशु चिकित्सा व कृत्रिम गर्माधान सेवाए देना। दुसरे स्तर पर अर्थात जिला स्तर पर जिला सहकारी संघ District Cooperative Milk Producer union) (DCMPU) होती है। इसकी सहायता उन्ही उत्पादको को दी जाती है। जो दुध की आपूर्ति करते है तथा जिला समिति तथा अन्य किसी सहकारी संस्थान द्वारा पंजीकृत होते है एवं जिले की सभी ग्राम दुग्ध उत्पादन समितियॉ इसके सदस्य है। इसके प्रमुख कार्यो में ग्राम दुग्ध सहकारी समितियो का संघटन और पर्यवेक्षण VMPCs से प्रक्रियन (Processes) और दुग्ध पदार्थ बनाने के लिए दुध को इकट्ठा करना DCMPU के नियमित भुगतान का सुनिश्ति करना, इनके क्रमिको को प्रशिक्षण देना, सदस्य उत्पादन किसानो व महिलाओ किसानो को शिक्षित करना कृत्रिम गर्भाधान सुविधा व पशुचारा वितरण करना आदि शामिल है। तीसरे स्तर पर - जिले के सभी संघ मिलकर एक फेडरेशन की स्थापना करते है। फेडरेशन विशेष राज्य के सभी संघो की देखभाल करता है। जिसका राज्य सहकारी दुग्ध फेडरेशन State Cooperative Dairy Federations के नाम से जाना जाता है। जोकि उत्पादन सम्बन्धी कार्यक्रम उत्पादको की बिक्री थोक खरीद में समन्वय करना, प्रशिक्षण, परामर्श तथा सहयोगी कार्यक्रमो में फडेरेशन की मद्द सम्बन्धी कार्य करता है। इसी को त्रि-गोपनीय संरचना/ व्यवस्था जोकि प्राथमिक स्तर पर ग्राम, जिला स्तर व अन्तिम स्तर के रूप में राज्य। राष्ट्र स्तर पर डेरी संघ जिस प्रकार फेडरेशन राज्य स्तर पर होता है। वैसी ही राष्ट्रीय स्तर पर भारत का राष्ट्रीय सहकारी डेरी फेडरेशन (National Cooperative Dairy federation of India) (NCDFI) होता है। इसका 1970 में पंजीकरण हुआ तथा इसने अपना कार्य 1985 में आरम्भ किया इसके अर्न्तगत 21 राज्य सहकारी दुग्ध फेडरेशन (SCDF) इसके अर्न्तगत 170 जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ तथा 74500 ग्राम दुग्ध उत्पादक (VMPCs) तथा 98 लाख दुग्ध उत्पादक कृषको की सदस्यता शामिल है। इसके प्रमुख कार्य निम्न है। 1. आन्तरिक दुग्ध सहकारिता सम्बन्ध बनाना। 2. दुग्ध प्रबन्धन पर अनुसंधान, प्रकाशन व परामर्श का कार्य। 3. छक्क्ठ तथा भारत सरकार मंत्रालय के साथ बराबर सम्पर्क में रहना। 4. सहकारी समितियो के कार्यो में राजनीति व राज्य के हस्तक्षेप को रोकना। 5. सभी राज्यो के लिए एक नीति बनाना। दुग्ध सहकारी संघ का गठन ग्राम स्तर की कई सहकारी समितियॉ (Cooperative sureties) मिलकर जिला स्तर पर सहकारी संघ (Cooperative Milk Union) का निर्माण करती है। ये संघ के सदस्य सहकारी समितियो के Individual share holder भी होते है। जिनको 100रू0 का एक शेयर लेना आवश्यक है। साथ में प्रत्येक सहकारी समिति में 10 सदस्यो का होना भी आवश्यक है। प्रत्येक समिति का एक सचिव होता है। संघ का अनुशासन संचालको के मण्डल (Board of Directors) द्वारा सम्पन्न होता है। इसमें निम्न सदस्य होते है। 1. एक सभापति (Chairman) जिनका चयन सदस्यो द्वारा होता है। 2. तीन व्यक्ति सदस्य समिति के द्वारा (Individual Share holders) 3. एक सहकारी बैंक ; (Cooperative Bank) विभाग का सदस्य 4. एक सहकारी (Cooperative) विभाग का सदस्य 5. दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियो के 6 सदस्य 6. एक दुग्ध विशेषज्ञ इस प्रकार संघ मण्डल में कुल 13 सदस्य होते है। सहकारी दुध संघो में फैलाव में उत्पन्न समस्याये (Problem in expanding the Cooperative Milk Unions) 1. दुग्ध उत्पादन छोटे पैमाने पर होने के साथ अधिकतर गॉवो में फैला हुआ है। 2. उपभोक्ता की जरूरत कम कीमत पर दुग्ध उपलब्ध होना है। वह गुणवत्ता पर ध्यान नही देता जिसके कारण अपमिश्रण करने वालो के साथ प्रतियोगिता होने के कारण संघ को हानि उठानी पडती है। 3. परिवहन की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण दुग्ध दूरी से नही आ पाता है। 4. दुग्ध को ग्रामीण केन्द्रो पर संचित करने पर ठण्डा व निरोग क्रिया से दुध के मूल्य में वृद्वि आती है। 5. उत्पादको को आर्थिक सुविधाएं बहुत कम मिलती है। सुधार के सुझाव (Suggestion for improvement) 1. उत्पादक को पशु खरीदने, चारे-दाने खरीदने यन्त्रो को खरीदन के लिए बिना ब्याज की ऋण सुविधा सरकार को देनी चाहिए। 2. अपमिश्रण पर कठोर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए। 3. परिवहन की सुविधा व सडको की सुविधा प्राप्त होनी चाहिए। 4. देश में सहकारी संगठनो को बढावा मिलना चाहिए। 5. पशुओ को कृत्रिम गर्भाधान व चिकित्सीय सुविधा कम मूल्य पर देनी चाहिए। भारत में दुग्ध ग्रिड रोजाना (Milk Grid Schem In India) सामान्यत दुग्ध का उत्पादन गॉवो के सीमान्त व लघु दुग्ध उत्पादको द्वारा होता है। जबकि इसका उपयोग विशेषतया शहरी क्षेत्रो में उपभोक्ता द्वारा किया जाता है। इसीलिए दुग्ध को अपनी उत्पादक क्षेत्र में शहरी परिवेश के उपभोक्ता तक स्थानंतरण करना होता है। इन योजना का उद्देश्य उत्पादक को उनका उत्पादन लागत पर उचित लाभ दिलवाते हुए शहरो के उपभोक्तओ को उचित रेट पर दुग्ध उपलब्ध कराना होता है। इस योजना में दुग्ध उत्पादन क्षेत्रो से लगातार दुग्ध उत्पादक शहरी केन्द्रो तक की दूरी को सड़क अथवा रेलमार्गो द्वार आपस में जोडा गया है। इस योजना के चलने से डेरी सयन्त्रो के नियमित तथा सुचारू संचालन में सामान्यता मिलती है। इस योजना को दो स्तरो पर प्रारम्भ किया गया है- राज्य दुग्ध ग्रिड योजना (Milk Grid Schem In India) इसके क्रियान्वन में दुग्ध का परिवहन राज्य के एक जिला क्षेत्र से दूसरे जिला क्षेत्र मे होता है। राज्य के एक जिला में Surplus Milk को दूसरे जिले में माँग होने पर राज्य के सहकारी संघ के निर्देश पर आपूर्ति की जाती है। राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड योजना (National Milk Grid Scheme) National Co-operative Dairy Federation of India NCDFI एक शीर्ष समिति है। राष्ट्रीय स्तर पर NCDFI के सदस्य State federation के होते है। इसको NMG Scheme बनाती तथा क्रियान्वित करती है। विभिन्न राज्यो के Federation अपने द्वारा उत्पादित, संसाधित, विपणित तथा फालतू दुग्ध (Surpli Milk) की सूचना NCDFI को देती है। विभिन्न राज्यो की Federation अपने राज्य के लिए दुग्ध की वह जरूरत जो कि किन्ही कारणो वंश SMG द्वारा पूर्ण नही हो पा रही है। उसको NCDFI को प्रेषित करती है। यह राष्ट्रीय संघ अपनी सदस्य ईकायो में से आपूर्ति की इच्छुक राज्य ईकाइयो की आपूर्ति का आदेश देती है तथा वह आपूर्ति करता है। NCDIF ने एक क्षेत्रीय कार्यक्रम समिति कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलाने के लिए बनाई है। तथा चारो पर सामांजस्य स्थापित करने के लिए एक केन्द्रीय कार्यक्रम समिति बनायी गयी है। एक सहकारी दुग्ध संघ द्वारा सम्पन्न प्रक्रियायें (Different treatment carried out by a Co-operating Milk Union) एक सहकारी दुग्ध संघ द्वारा ग्रामीण क्षेत्रो से दुग्ध को संग्रह कर शहर से उपभोक्ताओ तक पहुचाने के बीच में होने वाली विभिन्न प्रक्रियाओ के उल्लेख निम्न है। A. Receiving of the milk at milk chilling centres a. Collection b. Testing c. Weighting d. Cooling e. Transportation B. Receiving of the milk at dairy platforms a. Unloading of cans b. Inspecting of the cans c. Pumping & weighing of milk d. Pumping the milk to strorage tank C. Receiving of the milk in the pasteurization deptt. a. Standardization process of milk. b. Pasteurization process of milk (HTST Method). D. Receiving of the milk at bottling department. a. Bottling b. Capping of bottles c. Inspection the milk d. Delivery of the bottle to storage room. E. Marketing of the milk a. Transportation of the bottles b. Milk Depots विभिन्न राज्यों के सहकारी फेडरेशन ( Different State Cooperatvie Dairy Federation)
Details of Different District Cooperative Milk Prouducer union Ltd. in Gujrat State under Gujrat Cooperative Milk Marketing Federation (GCMMF) Anand.
References 1. Bhali, S.S, Lavania., G.S, (2000) Dairy Science दुग्धविज्ञान, V.K, Prakashan Baraut. 2. Sagwan, K.P.S, (2008)- Dairy Science & Technology दुग्धशाला विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी, Kalyani Publishers. 3. Jahur, I.J., Gupta, RamJi., दुग्ध संसाधन एवं मानव पोषण, Milk, Milk Proessing and Human Nutrition, Ram Publishing House Meerut. 4. David J. (2011) Technological Advances in Market Milk Kitab Mahal Publishers, Allahabad. 5. Hari Singh (1981)- Elements of Dairying – kukka Publishing house Baraut. |