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शोध संकलन ISBN: 978-93-93166-97-5 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
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दुग्ध की मात्रा एवं गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला कारक - संक्षेप में |
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अनिल कुमार गुप्ता
सह - प्राध्यापक
विभाग डेयरी एससी के. एवं टेक (पूर्व में ए.एच एवं डेयरी)
आर.के. (पी.जी.) कॉलेज
शामली, यूपी, भारत
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DOI:10.5281/zenodo.10298016 Chapter ID: 18316 |
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जैसा की विदित है कि सभी स्तनधारी पशुओ का दुध समान अवयवो से सुसंधित होता है लेकिन इन अवयवो की प्रतिशत मात्राएँ भिन्न पायी जाती है। इन अवयवो में बसा, प्रोटीन, लेम्टोज एवं खनिज लवण शामिल है। इन अवशेषो में बसा की मात्रा सबसे अधिक विचलनशील (variable) होती है लेकिन अन्य अवयव बहुत कम प्रभावित होते है। दुध की मात्रा (उत्पादकता/उपज) एव गुणवत्ता (संगठन) में होने वाले विभिन्नताए (variation) एवं उनके सम्भावित कारको को वर्गीकृत करके प्रदर्शित किया गया है। दुग्ध में विभिन्नताएं/कारक (VARIATION IN MILK / FACTORS) 1. प्रत्यक्ष विभिन्नता (Apparent variation) a. प्रयोगात्मक त्रुटि के कारण विभिन्नता (variation due to experimental error) b. विश्लेषण तकनीकी के कारण विभिन्नता (variation due to experimental technique) 2. वास्तविक विभिन्नता/कारक (Real variation/factor) I. पैतृक कारक (Herediatary factors) a. पशुओ का व्यक्तित्व (Individuality of animal) b. पशुओ की जाति (species of the animal) c. पशुओ की नस्ल (Breed of the animal) II. पर्यावरणी कारक (Environmental factors) a. आंहार व खिलाने का ढंग (Feeds & feeding) b. ऋतु एवं जलवायु (seasons & climate) c. तापमान का प्रभाव (Effect of temperature) d. दोहन का समय (Time of milking) III. कार्यिकी कारक (Physiological factors) A. अनियन्त्रणशील कारक (Uncontrollable factors) a. पशुओ की उम्र (Age of animal) b. ब्यॉल की अवस्था (Stage of Lactation) c. पशु का स्वभाव व प्रकृति (Animal behaviour & Nature) d. पशु का रंग (Colour of animal) e. पशु का आकार (Size of animal) f. मदकाल का प्रभाव (Effect of oestrous cycle) g. गर्भकाल का प्रभाव (Effect of the gestation period) h. हार्मोन का प्रभाव (Effect of hormones) i. पशुओ के अयन चतुर्थ में विभिन्नताए (Udder quarter variation) B. नियन्त्रणशील कारक (Controllable factors) a. पशु का स्वास्थ्य (Health of animal) b. अयन संक्रमण (Udder infection) c. व्यायाम का प्रभाव (Effect of exercise) d. पशु द्वारा जल का ग्रहण (Water intake by animal) IV. विविध कारक (Miscellaneous factors) अथवा दोहक से सम्बन्धित कारक (factors relating to milker) a. दोहक का स्वभाव (Habit of milker) b. दोहन तकनीकी एवं कुशलता (Milking techniques & efficiency ) c. पशुओ के साथ व्यवहार (Behavior with animal) d. दोहन की बारम्बरता एवं अन्तराल (Effect of frequency & interval of milking) e. दोहन में विलम्ब का प्रभाव (Effect of delayed milking) दोहन के भाग (Portion of milking) 1. प्रत्यक्ष विभिन्नता (Apparent variaton)- दुध का विश्लेषण के दौरान दोष मिलते है जिसके कारण दुध के सही रासायनिक संघटन का पता नही लग पाता वे सभी इस श्रेणी के अन्तर्गत आते है उपरोक्त दुध में दोष दो कारणों से हो सकते है प्रयोगात्मक त्रुटि के कारण विभिन्नता – (variation due to experimental error) यह विभिन्नता तकनीश्यिन के व्यक्तिगत प्रभाव के कारण देखी जाती है जिनमें तकनीशियन के उपकरण प्रयोग करने में विभन्नता होने के कारण इससे प्राप्त परिणाओं मे असमानता मिलती है यह असमानतये किसी भी प्रयोग मे इस्तेमाल किए गये रसायन द्रवो की शक्ति (strength) में अंतर के कारण भी हो सकती है। विश्लेषण तकनीकी के कारण- (Variation due to experimental technique) यह दुध में किसी अवयव की मात्रा ज्ञात करने के लिए उसमें प्रयोग की जाने वाली विभिन्न तकनीकि विधियो तथा प्रयोग सूत्र के कारण मिलती है। उदाहरण के तौर पर दुध में बसा ज्ञात करने के लिए विभिन्न विधियो जैसे की गर्वर विधि, बेेबकॉक विधि तथा रोज गाटिब से प्राप्त परिणामो में विभिन्नता। 2. वास्तविक विभिन्नता (Real variation) पैतृक कारक (Hererdiatory factor). यह कारक पीढी दर पीढी होते है। पशुओ का व्यक्तित्व (Hererdiatory factor) इसके कारण एक ही नस्ल को एक समान आहार, समान वातावरण तथा समान प्रबन्ध देने पर भी उनके दुध उत्पादन व उसमें बसा लेक्टोज व प्रोटीन प्रतिशत में बहुत असमानता पाई जाती है। पशुओ की जाति (Species of animal) प्रत्येक जाति के पशुआ के दुध का रसायनिक संघटन विभिन्न होता है जोकि निम्न तालिका से स्पष्ट हो जाता है। Table: 1 Average Chemical Composition of milk of different specie’s
Source – Compiled from various sources पशुओ की नस्ल (Breed of animal) प्रत्येक नस्ल से प्राप्त दुध की मात्रा तथा उसके संगठन में शामिल विभिन्न अवयवो की मात्रा में विभिन्नता होती है। भारतीयो गायो की नस्ले अमेरिकन और यूरोपियन गायो की तुलना में उत्पादकता में कम होती है। लेकिन दुध अवयवो की मात्रा इनमें अधिक होती है। Tabel: 2- Average Milk composition of selected breeds of cows in percentage
Source –Average complied from various sources ecourses. ndri.res.in Table: 3 Average Milk composition of selected breeds of buffalos
Source – Milk and its products NCERT – (1991) Gross composition of milk fer different breeds of goat in percentage.
Source – Singh Such S.N. and Sengar OP (1960) Final Technical Report P.L<480 scheme, RBS. College, Bichpuri, Agra. पर्यावरणीय कारक (Environmental factor) यह वातावरणीय कारणो से उत्पन्न होता है। ये निम्न है। आहार व खिलाने का ढंग (Feeds & feeding) यह सर्वभौमिक है कि अच्छा व संतुलित आहार पशु के दुध की उत्पादकता व गुणवत्ता से अधिक बनाता है। आहार से सामान्यता दुध की मात्रा बहुत प्रभावित होती है। लेकिन बसा की प्रतिशत मात्रा बहुत कम प्रभाव देखा गया क्योकि बसा की प्रतिशत मात्रा इनके पैतृक गुण के अर्न्तत आता है। न्यूनतम खिलाई (Under feeding) इनमें पशुओ को आहार उनकी आवश्यकता से कम दिया जाता है। इस स्थिति में पशुओ का दुध उत्पादन कम होकर उसके शरीर पर चर्बी का भण्डार कम हो जाता है। लेकिन बसा प्रतिशत पर कोई प्रभाव नही पडता, साथ में बसा रहित ठोस (S.N.F) की मात्रा थोडी कम हो जाती है। अधिकतम खिलाई (Over feeding) इसमें पशुओ को उसकी आवश्यकता से अधिक आहार दिया जाता है। इस स्थिति में पशुओ के दुध उत्पादक व उसकी संघटन पर कोई प्रभाव नही पडता। लेकिन पशुओ के शरीर में चर्बी की मात्रा अधिक होकर पशु मोटा हो जाता है। सामान्य खिलाई (Normal feeding) इस अवस्था में पशु को उनकी आवश्यकता के अनुसार आहार दिया जाता है। जिससे पशुओ के दुध उत्पादन व उनके संघटन पर कोई प्रभाव नही पडता। कुपोषण (Mal-Nitration) इस अवस्था में पशुओ को आहार पेट भर मिलता है। लेकिन वह इतना कमजोर होता है कि उसे अपनी शरीर की आवश्यकतानुसार उससे पोषक तत्व नही मिल पाते। यह कुपोषण की श्रेणी में आता है। इस अवस्था में पशुओ का दुध उत्पादन व उसका संघटन दोनो ही बुरी तरह प्रभावित होते है। ऐसा किसी पशु को बीमारी की स्थिति में होता है। आहार में हरा चारा तथा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा में वृद्वि करने पर दुध का उत्पादन तथा दुध में कैरोटीन व राइबोफ्लोरिन की मात्रा में वृद्वि होती है। पशुओ को बिनौले या नारियल खल देने पर उसके दुध बसा में सन्तृप्त वसीय अम्लो की मात्रा बढने के साथ बसा कणो के आकर में भी वृद्वि होती है। इसके कारण दुध से बनने वाले घी तेलीय प्रकृति को होता है। आहार में हरे चारे की वृद्धि करने से कैल्सियम व फास्फोरस की मात्रा में वृद्वि होती है। ऋतु एवं जलवायु (Season and climate) ग्रीष्म ऋतु मं पशुओ की भूख सामान्य से कम हो जाती है। इसके साथ ही आर्द्रता की दशा भी अच्छी नही होती। इन दशाओ में पशु अपना पूरा आहार न खा पाने के कारण सीधा दुग्ध उत्पादन को कम करके प्रभावित करता है। वर्ष की इन ऋतु मुख्यतः वर्षा ऋतु जब हरे चारे की उपलब्धता अधिक होती है। तब दुध की उत्पादन बढता है लेकिन बसा प्रतिशत कम हो जाती है। यह पाया गया है कि नवम्बर महीने में बसा की मात्रा सबसे अधिक तथा जून महीने में सबसे कम होती है। ठण्ड ऋतु में बसा प्रतिशत अन्य ऋतुओ से अधिक पायी जाती है। बसा रहित ठोस की मात्रा नवम्बर से जनवरी में सर्वाधिक तथा अप्रैल से अगस्त तक सबसे कम पायी जाती है। तापमान का प्रभाव ( Effect of temperature) वातावरणीय ताप से अधिक उताव चढाव दुध के उत्पादन में संघटन दोनो को प्रभवित करते है। अधिकतम दुध उत्पादन के लिए 15 से 25 डिग्री तापान सर्वोपयुक्त तथा वातवारण में तापमान 35°ब् से अधिकत तथा 10°ब् से कम हाने पर उत्पादन कम हो जाता है। दुध में विटाामिन क् की मात्रा पशुओ को सूर्य के प्रकाश में रखने पर बढ जाती है। दोहन का समय (Time of milking) सुबह व शाम के दुध की मात्रा व उसमें बसा प्रतिशत समान सही पायी जाती बसा की मात्रा में 0.3 से 1.5 प्रतिशत तक अन्तर पाया जाता है। यह अन्तर दो दोहन के बीच की अवधि के कम से अधिक के कारण मिलता है। कार्यिकी कारक (Physiological factors) अनियन्त्रणशील कारक (Ucontrollable Facters) पशओ की उम्र (Age of animal) जिस प्रकार पशु की उम्र बढती है ठीक वैसे - वैसे ही उस पशु के दुध का उत्पादन घटता जाता है इसीलिए प्रारम्भ में दुध का उत्पादन बढना उसके पश्चात् स्थिर रहना तथा अन्त में धीरे धीरे कम हो जाना ही पशु की उम्र बढने का धोतक सिद्व होता है। साधारणतः गाय के दुध उत्पाद 6-7 दुग्धन अवस्था (Latation periods) तक बढती है। फिर उसके बाद घटती है। बसा की मात्रा तीसरे दुग्धन तक बढती रहती है। चौथे व पांचवे में स्थिर तथा इसके बाद धीरे-धीरे घटने लगता है। ब्यॉत की अवस्था (Stage of lactation) दुध का संघटन ब्यॉल अवस्था पर आधारित होती है। बच्चा देने के तुरन्त बाद का क्षरण (secretion) जिसे हम खीस (colostrum) कहा जाता है। उनका रसायनिक संघटन दुध से बिल्कुल भिन्न होता है। खीस में ग्लोबुलिन की मात्रा दुध से बहुत अधिक तथा प्रोटीन, क्लोराइड की मात्रा भी अधिक होती है। लेकिन बसा व लेम्टोज की मात्रा दुध की तुलना में कम होती है। ब्यॉत के शुरूके दिनो से दुध उत्पादन बढता है। तथा बाद में घट कर सामान्य हो जाता है। जब दुध का उत्पादन अधिक होता है। तब बसा व वसा सहित ठोस की मात्रा कम होता है। लेकिन दुध की मात्रा कम होन पर भी इनकी मात्राये बढ जाती है। पशुओ का स्वभाव व प्रकृति (Animal behavior & nature) एक ही पशु के दुध के विभिन्न नमूनो के संघटन में भिन्नता पायी जाती है। यह व्यक्तिगत पशुओ के स्वभाव के कारण होता है। साथ ही साथ पशुओ की प्रकृति में भिन्नता होती है कुछ पशु शान्त स्वभाव के तथा कुछ उग्र प्रकृति के होते है। उग्र प्रकृति के पशुओ के प्रबन्धन में थोडी असुविधा होने के कारण उनका दुध उत्पादन शान्त पशुओ की तुलना में कम होता है। पशुओ के स्थान परिवर्तन से भी दुध उत्पादन व उसका संघटन प्रभावित होता है। पशुओ का रंग (Colour of animal) गहरे रंग की गाय तथा भैसो के दुध में विटामिन क् की अधिकता सफेद व कम गहरे रंग के पशुओ की तुलना में अधिक होती है। गहरे रंग की पशुओ की त्वचा सूर्य के प्रकाश धूप से अल्टा वायलेंट किरणो का अवशोषण अधिक करती है फलस्वरूप् कोलेस्ट्राल विटातिन क् में बदल जाता है। पशुओ का आकार (Size of animal) सामान्य अवस्था में बडे आकार के दुधारू पशुओ का दुध उत्पादन छोटे आकार के दुधारू पशुओ की तुलना में अधिक पाया जाता है। मदकाल का प्रभाव (Effect of oestrous cycle) पशु के मदकाल में पशु अत्यन्त चंचल तथा परेशान रहने के कारण उसकी उर्जा का एक से दो दिन तक अधिक व्यय होती है। जिससे पशुओ के दुध का उत्पादन एस समय घट जाता है। साथ में पशु इस दौरान अन्तिम दुध को निकालने नही देता जिस कारण बसा की मात्रा इस दौरान कम हो जाती है। इस अवस्था में पशु दुध रोक (Hold -up) भी कर सकता है। अथवा कम देता है। गर्भकाल का प्रभाव (Effect of gertation period) गर्भधारित पशुओ की तुलना में बिना गर्भ धारित पशु का दुध का उत्पादन अधिक होने के साथ संघटन भी अच्छा होता है। गर्भ के 4 माह की अवस्था से दुध में ठोस तत्वो की मात्रा में वृद्वि होती है। जोकि क्रमशः बढती देखी गयी है। गर्भकाल की अन्तिम अवस्था में दुध के संगठन में तीव्र परिवर्तन होते है। हार्मोन का प्रभाव (Effect of homones) यह प्रमाणित हो चुका है। यदि गायो को आयोडीन प्राप्त केसीन अथवा Thyro protein आहार में दी जाती है। तो उसके दुध उत्पादनो एवं उसमें बसा प्रतिशत दोनो ही एक साथ वृद्वि करते है। क्योकि दोनो ही पदार्थो में से Thyroxine होता है। यह Thyroxine हार्मोन पशु के शरीर में उपापचयी दर (Metabolic rate) में वृद्वि के कारण होता है। प्राकृतिक रूप में यह हार्मोन Thyroid gland से स्त्रावित होती है। कृत्रिम रूप से भी पशुओ को Thyroxine हार्मोन दिया जा सकता है। मादा पशु की अण्डाशय (overy ) से स्त्रावित estrogenn हार्मोन दुध के उत्पादन को कम करता है। लेकिन इसमें कुल ठोस का प्रतिशत बढाता है साथ ही इस हार्मोन से दुध में कुल प्रोटीन की प्रतिशत में वृद्वि होती है। लेकिन केसीन का प्रतिशत स्थिर रहता है। पिट्यूटरी ग्रन्थी ( Pituitrary glands) से स्त्रावित हार्मोन prolactin पशु के दुग्धकाल को नियन्त्रित करने के लिए साथ इसकी मात्रा कृत्रिम रूप से देने पर पशुओ का उत्पादन व उसमे बसा प्रतिशत दोनो बढते है। Oxytoxin हार्मोन Posterior pitutary gland से स्त्रावित होता है। यह हार्मोन पशुओ को दुध देने (Let down) के लिए जिम्मेदार होता है। इसका प्रभाव कृत्रिम रूप से पशु को देने से 5-7 मिनट तक रहता है। इसी समय के दौरान पशु अपना सभी दुग्ध देता है। पशुओ के अयन चतुर्थको में विभिन्नता (Udder quarter variation) अयन के चतुर्थको (quarters) के कारण दुध के उत्पादन तथा उसके संघटन में भिन्नता मिलते है। भैंस में अगले क्वाटर्न से 40 प्रतिशत या पिछले क्वाटर्न से 60 प्रतिशत दुध निकालता है गाय की स्थिति मे इसके विपरीत पाया जाता है। इसके साथ बाना प्रातिशत में भिन्नता $ 0.2 प्रतिशत तक हो सकती है। उत्पादन व बसा प्रतिशत में भिन्नता हर ब्यॉत में होती है साथ में दुध दुहने के क्रम का भी उत्पादन व बसा प्रतिशत पर प्रभाव पडता है। जो क्वाटर्न पहले दुहे जाते है। उनमें बाद में दुहे जाने क्वाटर्न की तुलना में दुध का उत्पादन तथा उसमें बसा प्रतिशत दोनो ही अधिक होते है। नियन्त्रणशील कारक (Controlable facters) पशुओ का स्वास्थ्य (Health of animal) यदि पशु अस्वस्थ है उस स्थिति में वह आहार लेना भी कम कर देता हैैै फलस्वरूप उसका दुध उत्पादन भी कम होगा साथ में दुध में बसा प्रतिशत भी कम होगी। कुछ दवाओ के कृत्रिम प्रयोग से भी पशु की पाचकता प्रभावित होती है। जिनके कारण दुध उत्पादन कम हो जाता है। अयन संक्रमण (Udder infection) अयन में सक्रमण होने पर दुध की उत्पादकता कम हो जाती है तथा दुध का संगठन भी प्रभावित होता है थनैला (Mastitis ) बीमारी में पशु का दुध उत्पादन कम होकर दुग्ध के संगठन मे वसा, प्रोटीन तथा लैक्टोज का स्तर कम होकर क्लोराइड की मात्रा बढ जाती है। जिससे दुध की P.H 7.4 तक होकर दुध में क्षारीयता आ जाती है। इसमें पशु की स्तन ग्रन्थियॉ सक्रंमित हो जाती है। जोकि दुग्ध देना रोक देती है। व्यायाम का प्रभाव (Effect of exercise) पशु का एक ही स्थान पर बंधे रहने के कारण उनको व्यायाम न मिलने के कारण दुध की उपज तथा दुध में वुल ठोस पदार्थ अपोनाकृत कम मिलते है। लेकिन पशुओ को हल्का व्यायाम देने पर शरीर मे आहार की पाचकता बढने से दुध उत्पादकता व ठोस पदार्थो दोनो की मात्रा में वृद्वि होता है। लेकिन अधिक व्यायाम पशुओ को देने से आहार की पाचकता कम होकर उत्पादन कम हो जाता है। पशु को खुरहरा करने से पशु स्फूर्ति व नवीनता महसूस करता है। जिसके कारण दुध में उत्पादन में 10 प्रतिशत तक वृद्वि हो जाती है व्यायाम का प्रभाव से Alveoli को शक्ति मिलती है। जिसस भोजन की पाचकता शीघ्र हो जाती है। जिससे पशु के रक्त में दुध के पूर्वगामी तत्व (Precursor) के आने के कारण दुध की अच्छी गुणवत्ता देने मे सहायक होते है। पशुओ द्वारा जल का ग्रहण (Water intake by animal) ऐसे अनुसंधानो में पाया गया है कि पशु को शुष्क काल (Dry period) में एक भाग शुष्क पदार्थ पर 3.6 भाग जल तथा दुधकाल (Lacertian period) में एक भाग शुष्क पदार्थ का 5.3 गुणा जल पीना चाहिए विभिन्न प्रयोगो के द्वारा यह सिद्व हो गया है। कि जल ग्रहण 20 प्रतिशत बढाने पर उत्पादन 3.5 प्रतिशत तथा बसा प्रतिशत 10.7 प्रतिशत तक बढ जाता है। विविध कारक (Miscellaneous factoers) अथवा दोहक से सम्बन्धित कारका (Facters relating to milker) दोहक का स्वभाव (Habit of milker) दुध का मात्रा तथा संगठन दोना ही दोहक के स्वभाव से प्रभावित होते है। दोहक के अपूर्ण दोहन से दुध की मात्रा व संगठन दोनो ही प्रभावित होते है। यदि अन्तिम दुध को दोहक पशु के शरीर में बिना निकाले छोड देता है तब दुध की मात्रा के साथ-साथ बसा की मात्रा भी घट जाती है। दोहक मे बार-बार बदलने से भी दुध की उत्पादन कम हो जाती है। दोहक तकनीकी व कुशलता (Mikinig techniques efficiency) दोहन की पूर्ण अस्त विधि- (Fitsting Method) पशुओ के आरामदायक होने के कारण दुग्ध उत्पादकता में वृद्वि करती है नित्य एक निश्चित समय पर नियमित दोहन करने से दुग्ध की उपज बढती है। दुग्ध को 5-7 मिनट में निकाल लेना चाहिए अन्यथा की स्थिति में Oxytoxin हार्मोन का प्रभाव कम होकर दुध का उत्पादन कम हो जाता है। अतः दोहन में पूर्णता साथ में नियमितता के साथ समान गति से करना चाहिए थनो को गीला भी नही करना चाहिए। इन सभी गतिविधियो से दुध का उत्पादन में वृद्वि होती है। एक कुशल दोहक अन्तिम दुध (Striping milk) को भी आसानी से निकाल लेता है। इस दुध में वसा प्रतिशत अधिक होती है। पशुओ के साथ व्यवहार (Behaviuor with animal) दोहन के समय पशु स अच्छा प्यार भरा व्यवहार करने से पशु से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। दोहन के समय पशुओ के डरने से Adernal glands से adernelin हार्मोन स्त्रावित होकर oxytoxin हार्मोन के प्रभाव को रोकता है। जिससे उत्पादकता व गुणवत्ता दोनो में गिरावट आती है। दोह की बारम्बारता व अन्तराल (Effect of frequency & interval of milking) यदि दुध दोहन की बारम्बारता बढाकर उसका अन्तराल घटाते है उस स्थिति में दुध उत्पादकता व बसा प्रतिशत दोनो ही अधिक हो जाते है। रोजाना 24 घण्टे में पशुओ का दो बार की तुलना में तीन बार दोहना उनकी उत्पादकता में 10 प्रतिशत की वृद्वि करता है। दोहन में विलम्ब का प्रभाव (Effect of delayed milking) दोहन में अधिक विलम्ब होने पर दुध का संघटन रक्त के समान हो जाता है। इसमें दुध में बसा, लैम्टोज तथा केसीन की मात्रा घट जाती है। इसके विपरीत ग्लोब्यलिन तथा क्लोराइड की मात्रा बढ जाती है। दोहन के भाग (Portion of milking) ऐसा पाया गया है कि दोहन के पहले भाग में बसा प्र्रतिशत न्यनतम बीच भाग में औसत तथा अन्तिम भाग में अधिकतम होती है। पूर्ण दोहन करने पर ही वांछित दुध में बसा प्राप्त होती है। साथ में पूर्ण उत्पादन भी मिलता है। References 1. Rai M.M (1997)- Dairy chemistry & Animal Nurtriten kalyani Publishers. 2. S.S, Bhati and Lavania, G.S. (2000) Dairy Science . V.K. Prakashan Meerut. 3. David, J.(2011) Technological advances in market milk, kitab Mahal, Allahabad ISBN- 225-414-0. 4. Janeerss, R and Pattorn, S (1959)-* Principles of Dairy chemistry, John Wileys USA. 5. Johar Indrejeet Dairy Technology & Quality Control Rama Publishing house, Meerut. 6. Srivastava S.M (1981)- Mik and its propertiers, Kalyani Publisheous
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