|
शोध संकलन ISBN: 978-93-93166-97-5 For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8 |
भारत-अमेरिका संबंध (मोदी सरकार कार्यकाल के परिप्रेक्ष्य में) |
प्रो. बनवारी लाल मैनावत
प्राचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय कन्या महाविद्यालय
गंगापुर सिटी, राजस्थान, भारत
|
DOI:10.5281/zenodo.10863311 Chapter ID: 18756 |
This is an open-access book section/chapter distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. |
प्रस्तावना भारत और अमेरिका के राजनीतिक संबंध अत्यधिक पुराने संबंध हैं। अभी तक लगभग 25 से अधिक बार भारतीय प्रधानमंत्रियों और भारतीय राष्ट्रपतियों ने अमेरिका का दौरा किया है, जबकि पांच बार से अधिक बार अमरीकी राष्ट्रपति भारत आए। भारत की आज़ादी के बाद अमेरिका से उसके संबंध शीतयुद्ध के दौर, अविश्वास और भारत के परमाणु कार्यक्रम को लेकर खिंचाव में बंधे रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से दोनों देशों के संबंध मैत्रीपूर्ण रहे हैं जो निरंतर अधिक से अधिक सहयोग आधारित हो रहे हैं। आर्थिक और राजनीतिक मोर्चों पर भी दोनों देशों के बीच सहयोग में वृद्धि हुई है। भारत-अमेरिका संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भारत और अमेरिका दोनों देशों का इतिहास कई मामलों में समान रहा है। दोनों ही देशों ने औपनिवेशिक सरकारों के खिलाफ संघर्ष कर स्वतंत्रता प्राप्त की (अमेरिका वर्ष 1776 और भारत वर्ष 1947) तथा स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में दोनों ने शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया परंतु आर्थिक और वैश्विक संबंधों के क्षेत्र में भारत तथा अमेरिका के दृष्टिकोण में असमानता के कारण दोनों देशों के संबंधों में लंबे समय तक कोई प्रगति नहीं हुई। अमेरिका पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का समर्थक रहा है, जबकि स्वतंत्रता के बाद भारत में विकास के संदर्भ समाजवादी अर्थव्यवस्था को महत्त्व दिया। इसके अतिरिक्त शीत युद्ध के दौरान जहाँ अमेरिका ने पश्चिमी देशों का नेतृत्व किया, वहीं भारत ने गुटनिरपेक्ष दल के सदस्य के रूप में तटस्थ बने रहने की विचारधारा का समर्थन किया। 1990 के दशक में भारतीय आर्थिक नीति में बदलाव के परिणामस्वरूप भारत और अमेरिका के संबंधों में कुछ सुधार देखने को मिले तथा पिछले एक दशक में इस दिशा में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। नेहरू से मोदी तक भारत-अमेरिका संबंध: महत्वपूर्ण तथ्य नेहरू सरकार कार्यकाल जवाहर लाल नेहरू 1949 में अमेरिका की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री, अमरीकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के मेहमान बने। उन्होंने 1956, 1960, 1961 में अमेरिका की यात्राएं की। 1959 में अमरीकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइज़नहावर भारत का दौरा करने वाले पहले अमरीकी राष्ट्रपति थे। भारत में उन्होंने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मुलाक़ात की और संसद को संबोधित किया। 1960 में संयुक्त राष्ट्र महासभा सम्मेलन के दौरान नेहरू ने राष्ट्रपति आइज़नहावर से मुलाक़ात की। नेहरू ने केनेडी को चिट्ठी लिखकर मैकमोहन रेखा को सीमा मानने का अनुरोध किया था। शीतयुद्ध के दौरान भारत ने तटस्थता की घोषणा की थी। भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में उभरा। पूरे शीतयुद्ध काल में अमेरिका से रिश्तों में हिचकिचाहट थी तो रूस और भारत के बीच निकटता बढ़ी। 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री नेहरू ने राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी को ख़त लिखकर मैकमोहन लाइन को सीमा रेखा मानने का अनुरोध किया। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध तक दोनों देशों के बीच करीबी और मित्रवत रहे। सर्वपल्ली राधाकृष्णन जून 1963 में वह अमेरिका की यात्रा करने वाले भारत के पहले राष्ट्रपति बने। इसी वर्ष अमरीकी कृषि विशेषज्ञ नॉरमन बोरलॉग भारत आए और भारतीय वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन के साथ मुलाकात के बाद 'हरित क्रांति' के बीज पड़े जिसके परिणामस्वरूप एक दशक में ही भारत खाद्यान्न संकट से आत्मनिर्भरता की तरफ़ बढ़ गया। उन्होंने 1966 और 1971 में अमेरिका यात्रा की। 1969 में अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन भारत आए और वह यहाँ तत्कालीन कार्यवाहक राष्ट्रपति हिदायतुल्लाह से मिले। 1971 में भारत-पाकिस्तान के तीसरे युद्ध के दौरान अमरीका ने चीन के साथ निकटता के संदर्भ में मध्यस्थ की भूमिका का निर्वाह किया और पाकिस्तान को सहयोग किया। भारत ने सोवियत संघ के साथ 20 साल के लिए दोस्ती और सहयोग संधि पर दस्तख़त किए। शीतयुद्ध काल में गुटनिरपेक्षता की नीति से यह क़दम उलट था। 1974 में परमाणु परीक्षण के साथ भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच सदस्यों के बाद ऐसा करने वाला पहला देश बना। परमाणु परीक्षणों की वजह से भारत- अमेरिका सम्बन्ध अगले दो दशकों तक तनावपूर्ण रहे। मोरारजी देसाई सरकार कार्यकाल मोरारजी देसाई ने 1978 में अमेरिका यात्रा की। 1978 में ही अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर भारत यात्रा पर राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से मिले तथा साथ ही उन्होंने भारतीय संसद को भी संबोधित किया। कार्टर ने परमाणु अप्रसार अधिनियम खड़ा किया और भारत सहित तमाम देशों के परमाणु संयंत्रों के परीक्षण की मांग की। भारत के इनकार के बाद अमेरिका ने भारत के साथ सभी तरह का परमाणु सहयोग समाप्त कर दिया। 1984 में अमरीकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के भोपाल कारखाने में गैस रिसाव के बाद हज़ारों लोगों की मौत हुई। भारत ने अमेरिका से कंपनी के सीईओ के प्रत्यर्पण की कोशिश की। इस घटना से भारत- अमेरिका के द्विपक्षीय रिश्ते और तनावपूर्ण हो गए। राजीव गांधी सरकार कार्यकाल राजीव गांधी ने 1985 में दो बार और 1987 में एक बार अमेरिका की यात्रा की। उन्होंने 1985 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से मुलाक़ात की। 1990 में अमरीका के डिप्टी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र रॉबर्ट गेट्स ने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु युद्ध का ख़तरा टालने के लिए दोनों देशों का दौरा किया। पीवी नरसिम्हराव सरकार कार्यकाल पीवी नरसिम्हराव ने 1992 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सम्मेलन में राष्ट्रपति बुश से मुलाक़ात की तथा 1994 में पुनः अमेरिका का राजकीय दौरा किया। 1991 में आर्थिक उदारीकरण के चलते भारत- अमेरिका के कारोबारी संबंधों में सुधार देखा गया। इंद्र कुमार गुजराल सरकार कार्यकाल इंद्र कुमार गुजराल ने वर्ष 1997 में संयुक्त राष्ट्र महासभा सम्मेलन के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मुलाक़ात की जिसको दोनों देशों के मित्रवत संबंधों की दिशा में सकारात्मक कदम के रूप में देखा गया। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार कार्यकाल अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा वर्ष 2000 में अमरीकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र का संबोधन किया गया। इसी वर्ष राष्ट्रपति क्लिंटन ने भारत दौरे के दौरान राष्ट्रपति के आर नारायणन से मुलाकात की। दोनों देशों के मध्य ऊर्जा और पर्यावरण पर द्विपक्षीय समझौता हुआ और उन्होंने भी भारतीय संसद को संबोधित किया। 2001 में वाजपेयी ने अमेरिका दौरा किया। उन्होंने 2002 और 2003 में संयुक्त राष्ट्र महासभा सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति बुश से मुलाक़ात की। 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में तनाव आया था। अमरीकी राजदूत को वापस बुलाने के साथ राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान क्लिंटन ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को वॉशिंगटन बुलाया। इसके बाद पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर अपनी सेनाएं पीछे हटाईं। 2001 में बुश प्रशासन ने आर्थिक प्रतिबंध हटाए जिसके बाद दोनों देशों के मध्य पुनः सहयोगपूर्ण संबंध स्थापित हुए। मनमोहन सिंह सरकार कार्यकाल मनमोहन सिंह ने 2004 में संयुक्त राष्ट्र महासभा सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति बुश से मुलाक़ात की तथा वर्ष 2005 और 2008 में अमेरिका का दौरा किया। 2006 में राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भारत में मिले और परमाणु समझौते पर दस्तख़त किए। मनमोहन सिंह ने 2008 और 2009 में जी-20 आर्थिक सम्मेलन में एवं 2010 में परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में भाग लिया। 2010 में ही राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मुंबई आकर भारत-अमरीकी कारोबारी सम्मेलन को संबोधित किया। बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुलाक़ात की एवं संसद को संबोधित किया। 2013 में मनमोहन सिंह का आख़िरी अमरीकी दौरा हुआ। 2005 में अमरीकी विदेश मंत्री कॉन्डोलीज़ा राइस के भारत दौरे के साथ भारत- अमेरिका संबंधों में सुधार हुआ। भारत और अमेरिका ने रक्षा सहयोग पर समझौता किया। 2005 में दोनों देशों की सेनाओं का पहली बार संयुक्त नौसैनिक युद्धाभ्यास हुआ। इसी वर्ष दोनों देशों ने 10 साल के लिए नागरिक परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए और इसी के साथ अमेरिका ने 30 साल के लिए भारत से परमाणु कारोबार पर लगे स्थगन को हटा लिया। भारत ने भी अपने नागरिक और सैन्य परमाणु संयंत्रों को अलग रखने और सभी नागरिक संयंत्रों को आईएईए की देखरेख में लाने को मंज़ूरी दी। 2008 में मुंबई हमलों के दौरान अमरीका ने एफ़बीआई जांचकर्ताओं को भारत भेजा। 2010 में भारत और अमेरिका ने पहली बार इंडिया-यूएस स्ट्रेटेजिक डायलॉग की नींव डाली। इसी साल राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का समर्थन किया। 2011 में भारत और अमेरिका ने साइबर सिक्योरिटी के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए, जो स्ट्रैटेजिक डायलॉग का ही हिस्सा है। 2014 में न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ़्तारी का विवाद हुआ। कुछ समय बाद भारत में अमरीकी राजदूत नैंसी पॉवेल ने इस्तीफ़ा दिया। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी जीत पर बधाई दी और अमेरिका यात्रा का न्यौता दिया जो इस बात का संकेत था कि अमेरिका भारत के साथ अपने संबंध मजबूत करना चाहता है। मोदी सरकार कार्यकाल निःसंदेह, मोदी सरकार कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच संबंध अप्रत्याशित रूप से समृद्ध हुए हैं। आशा की जाती है कि आने वाले समय में भी मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के संबंध और भी अधिक अच्छे होंगे और दोनों देश मित्रता के सूत्र में बंधकर एक साथ आगे बढ़ते रहेंगे और एक-दूसरे का सहयोग करते रहेंगे। नई दिल्ली में पहली बार हुई भारत-अमेरिका ‘टू प्लस टू’ वार्ता ने दोनों देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता लाने में विशेष योगदान दिया है। जब से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है, तब से अमेरिका-भारत संबंध वास्तव में समृद्ध हुए हैं। इस दिशा में सबसे अहम बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जून 2017 में वाइट हाउस की यात्रा थी जहां रिश्तों को लेकर काफी प्रगति हुई। विदेश सचिव गोखले की यात्रा इस बात का सकारात्मक संकेत है कि दोनों देशों के संबंध फल-फूल रहे हैं। न केवल भारत, अपितु अमेरिका को भी यह उम्मीद है कि संबंध और बेहतर होंगे। गोखले की अमेरिका यात्रा मील का पत्थर सिद्ध हुई। गोखले की अमेरिका ने तीन दिवसीय यात्रा के दौरान विदेश विभाग से महत्वपूर्ण विचार-विमर्श और सामरिक सुरक्षा को लेकर बातचीत की थी। इस दौरान व्यापक द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की गई। इसके अलावा उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए साझा दूरदृष्टि, रक्षा और सुरक्षा सहयोग मजबूत करने के रास्तों के बारे में चर्चा की जो इस बात को स्पष्ट करती है कि उन्होंने अफगानिस्तान के साथ-साथ भारत-पाकिस्तान की स्थिति पर भी चर्चा की। 2014 से नरेंद्र मोदी के प्रीमियरशिप के दौरान भारत-संयुक्त राज्य के संबंधों में काफी सुधार हुआ है। वर्तमान में, भारत और अमेरिका एक व्यापक और विस्तारित सांस्कृतिक, रणनीतिक, सैन्य और आर्थिक संबंध साझा करते हैं[1] जो विश्वास की कमी की विरासत को दूर करने के लिए विश्वास निर्माण उपायों (सीबीएम) को लागू करने के चरण में है। प्रतिकूल अमेरिकी विदेश नीतियों और प्रौद्योगिकी इनकार के कई उदाहरणों द्वारा लाया गया - जिसने कई दशकों से संबंधों को प्रभावित किया है। हाल के प्रमुख घटनाक्रमों में भारत की अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास, भारतीय और अमेरिकी उद्योगों के बीच घनिष्ठ संबंध, विशेष रूप से सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी), इंजीनियरिंग और चिकित्सा क्षेत्र, एक तेजी से मुखर चीन का प्रबंधन करने के लिए एक अनौपचारिक प्रवेश, काउंटर पर मजबूत सहयोग शामिल हैं। आतंकवाद, अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों का बिगड़ना, दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों पर निर्यात नियंत्रण में ढील (99% लाइसेंस के लिए अब स्वीकृत हैं)[2] और भारत के रणनीतिक कार्यक्रम के लिए लंबे समय से अमेरिकी विरोध को उलट देना। अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार एशियाई भारतीयों द्वारा ज्ञान आधारित रोजगार के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका में आय सृजन ने हर दूसरे जातीय समूह को पीछे छोड़ दिया है।[3] समृद्ध एशियाई भारतीय प्रवासी का बढ़ता वित्तीय और राजनीतिक दबदबा उल्लेखनीय है। यूएस $ 100,000 के औसत राजस्व के साथ भारतीय अमेरिकी परिवार अमेरिका में सबसे समृद्ध हैं और इसके बाद चीनी अमेरिकी 65,000 अमेरिकी डॉलर हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में औसत घरेलू राजस्व 63,000 अमेरिकी डॉलर है। फरवरी 2016 में, ओबामा प्रशासन ने अमेरिकी कांग्रेस को सूचित किया कि वह पाकिस्तान को आठ परमाणु-सक्षम F-16 लड़ाकू विमान और आठ AN/APG-68(V)9 हवाई रडार और आठ ALQ-211(V) सहित मिश्रित सैन्य सामान प्रदान करने का इरादा रखता है।[4] भारत सरकार ने पाकिस्तान को F-16 लड़ाकू विमानों की बिक्री के संबंध में अपनी अस्वीकृति व्यक्त करने के लिए भारत में अमेरिकी राजदूत को तलब किया।[5] फरवरी 2017 में, यू.एस. में भारतीय राजदूत नवतेज सरना ने नेशनल गवर्नर्स एसोसिएशन (एनजीए) के लिए एक स्वागत समारोह की मेजबानी की, जिसमें 25 राज्यों के राज्यपालों और 3 और राज्यों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने भाग लिया। वर्जीनिया के गवर्नर और एनजीए अध्यक्ष टेरी मैकऑलिफ ने कहा कि "भारत अमेरिका का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार है। हम भारत, भारत-अमेरिका संबंधों के रणनीतिक महत्व को स्पष्ट रूप से समझते हैं। जैसे-जैसे हम अपनी 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था को विकसित कर रहे हैं, भारत हमारी तकनीक, चिकित्सा व्यवसायों के निर्माण में हमारी मदद करने में इतना महत्वपूर्ण रहा है। हम एक ऐसे देश को पहचानते हैं जो रहा है अमेरिका का इतना करीबी रणनीतिक सहयोगी। इसलिए हम राज्यपाल आज रात यहां हैं।"[6] अक्टूबर 2018 में, भारत ने अमेरिका के CAATSA अधिनियम की अनदेखी करते हुए दुनिया की सबसे शक्तिशाली मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक, चार S-400 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद के लिए रूस के साथ 5.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऐतिहासिक समझौता किया। रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने के भारत के फैसले पर अमेरिका ने भारत को प्रतिबंधों की धमकी दी।[7] 21 दिसंबर 2020 को, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंधों को बढ़ाने के लिए मोदी को लीजन ऑफ मेरिट से सम्मानित किया। लीजन ऑफ मेरिट ऑस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री स्कॉट मॉरिसन और जापान के पूर्व प्रधान मंत्री शिंजो आबे के साथ, QUAD के "मूल वास्तुकार" के साथ मोदी को प्रदान किया गया था।[8] दोनों देश चीन की बढ़ती समुद्री उपस्थिति और प्रभाव को लेकर चिंतित हैं। भारतीय आशान्वित हैं कि बाइडेन प्रशासन भारतीय आप्रवासन के साथ-साथ परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में प्रवेश के लिए वीजा आवश्यकताओं को कम करेगा। दोनों देशों को व्यापार बढ़ने की उम्मीद है। हालाँकि, यूएस-इंडियन संबंध अप्रैल 2021 में तनावपूर्ण होने लगे, जब भारत को संक्रमणों में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ा। घरेलू वैक्सीन उत्पादन को प्राथमिकता देने के लिए अमेरिका ने टीके के उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1950 का रक्षा उत्पादन अधिनियम लागू किया था।[9] निष्कर्ष प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी मोदी अमेरिका को भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं और संबंधों को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मोदी सरकार के कार्यकाल में अमेरिका से जितने प्रगाढ़ संबंध निर्मित किये हैं, उतने प्रगाढ़ संबंध पूर्व में किसी भी सरकार के कार्यकाल में नहीं हो सके। यह सब मोदी जी की दूर दृष्टि, विश्व बंधुत्व की भावना, वैश्वीकरण में विश्वास और उदारवादी नीतियों के कारण संभव हुआ है। जहाँ एक ओर उन्होंने राष्ट्रप्रेम से प्रेरित हो कर कोई भी ऐसा समझौता नहीं किया जिससे भारत को शर्म का सामना करना पड़े, तो वहीं, दूसरी ओर उन्होंने ऐसे कई समझौते किये जिसके परिणामस्वरूप भारत वैश्विक आर्थिक विकास की मुख्य धारा से जुड़ सके और साथ ही वैश्विक शांति स्थापना में अपना योगदान दे सके। मोदी सरकार कार्यकाल में स्थापित और विकसित भारत-अमेरिकी संबंध निश्चित रूप से भविष्य में दीर्घकाल तक चलेंगे और दोनों राष्ट्रों में सतत विकास की धारा को प्रवाहित करेंगे। वर्ष 2014 में भारत और अमेरिका के संबंधों को एक नई गति मिली। मोदी के कार्यकाल में वर्ष 2016 भारत और अमेरिका के बीच संसाधनों के आदान-प्रदान का समझौता हुआ। भारत और अमेरिका की लंबी वार्ता के बाद दोनों देशों के बीच सामरिक साझीदारी कायम हुई। इसके बाद दोनों देश एक दूसरे के सैन्य संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं। इस समझौते के तहत दोनों देश एक दूसरे के जहाजों और विमानों को ईंधन की आपूर्ति या अन्य जरूरी सामान मुहैया कराना था। मार्च, 2016 में रायसीना डायलाग के दौरान अमेरिका की पैसिफिक कमान के प्रमुख एडमिरल हैरी हैरिस ने दोनों देशों से अपील की थी कि उन्हें अपने संबंधों पर ऊंचाई पर ले जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब दोनों देशों को दक्षिण चीन सागर में आपसी तालमेल से गश्त लगाना चाहिए। इसके बाद यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच संचार सुरक्षा समझौता हुआ। इसके बाद भारत ने अमेरिका के अन्य रक्षा सहयोगी देशों की श्रेणी हासिल कर ली। इस करार के बाद अमेरिका भारत को गोपनीय संदेश वाले उपकरण मुहैया करा सकता है। इन उपकरणों के माध्यम से भारत शांति या युद्ध के समय अपने बड़े सैन्य अफसरों और अमेरिका के सैन्य अफसरों के मध्य सुरक्षित गोपनीय संवाद कर सकता है। ये समझौता दोनों देशों के बीच विश्वास मजबूत करने की एक कड़ी थी। इसके आधार पर भारत और अमेरिका अपने रिश्तों के भविष्य की इमारत खड़ी कर सके। इससे दोनों देश एक दूसरे के निकट आए। हालांकि, यह समझौता दोनों देशों के लिए बाध्यकारी नहीं है। फरवरी, 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दो दिवसीय भारत यात्रा के बाद भारत-अमेरिका संबंधों को नई ऊर्जा मिली थी। अमेरिकी राष्ट्रपति की इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच ऊर्जा, रक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके साथ ही दोनों देशों ने आतंकवाद, हिंद-प्रशांत क्षेत्र जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए इन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर बल दिया था। भारत और अमेरिकी राष्ट्रपति ने दोनों देशों के संबंधों को 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण साझेदारी बताया था। इस वक्त 50 लाख से ऊपर भारतीय अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। भारतीय अमेरिकी पैरवी का ध्यान भारत की समस्याओं की ओर झुका है। अप्रवासन कानून के संबंध में, भारतीय प्रवासियों ने यू.एस की 1965 अप्रवासन नीति में भारतीयों के लिए अप्रवासन कानूनों के पक्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वर्ष 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने हिंदुओं की प्रशंसा करके भारतीय अमेरिकी लोगों की राजनीतिक भागीदारी पर प्रकाश डाला था। इसके बाद अमेरिकी राजनीति में भारतीय अमेरिकी का प्रभाव बढ़ रहा है। संदर्भ-सूची 1. Pant, Harsh V. "Indo-U.S. Relations: Moving Beyond the Plateau". Foreign Policy (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-01-23. 2. "US rules out treaty alliance with India, says that era is over". The Economic Times. अभिगमन तिथि 2022-01-24. 3. "USA's best: Indian Americans top community". web.archive.org. 2009-02-22. मूल से 22 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2022-01-24. 4. Chidan; Feb 14, Rajghatta / TNN / Updated:; 2016; Ist, 01:48. "US to give Pakistan eight F-16s, India fumes | India News - Times of India". The Times of India (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-01-25. 5. Feb 15, TNN / Updated:; 2016; Ist, 06:24. "F-16, Pervez Musharraf pour cold water on India-Pakistan talks | India News - Times of India". The Times of India (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-01-25. 6. "Latest News: India News | Latest Business News | BSE | IPO News". Moneycontrol (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-01-26. 7. "Yahoo Search - Web Search". in.search.yahoo.com. अभिगमन तिथि 2022-01-27. 8. "After UAE's 'Order of Zayed' Indian PM Narendra Modi & QUAD Allies Awarded 'Legion of Merit' By US Government". Latest Asian, Middle-East, EurAsian, Indian News (अंग्रेज़ी में). 2020-12-22. अभिगमन तिथि 2022-01-28 9. Jain, Rupam; Rocha, Euan (2021-03-11). "U.S. curbs on raw material exports could dent new Quad alliance's vaccine push" |