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अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक समावेशन हेतु स्वतंत्रता के पश्चात किये गए प्रयास |
भारत सिंह
प्राचार्य
सरदार भगत सिंह संघटक राजकीय महाविद्यालय,
पुवायां, शाहजहाँपुर
एम.जे.पी. रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली उत्तर प्रदेश, भारत
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DOI:10.5281/zenodo.13943314 Chapter ID: 19252 |
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सारांश शिक्षा किसी भी समुदाय के विकास का सबसे
महत्वपूर्ण साधन मानी गयी हैI भारतीय समाज में जन सामान्य के लिए और विशेष रूप से
अनुसूचित जातियों व जनजातियों के बहुमुखी विकास के लिए शैक्षिक सुविधाओ के विकास
की आवश्यकता अनुभव की गयीI भारत देश अनेको विविधताओं वाला देश है जहाँ पर विभिन्न संस्कृतियों के लोग
निवास करते है I भारतीय संविधान में सभी वर्गों को समानता में लाने के लिए
विभिन्न उपबंध किये गएI प्रस्तुत शोधपत्र में उन
सभी उपबंधो शिक्षा नीतियों ,शिक्षा आयोगों के प्रतिवेदनों का जिक्र करने का प्रयास
किया गया है जिनके द्वारा समाज के वंचित शोषित और आर्थिक कमजोरो हेतु शैक्षिक
प्रावधान करके उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाकर समाज का उपयोगी और आर्थिक विकास
में सहयोगी सदस्य वनाया जा सके चूंकि किसी भी देश का विकास उस देश के सम्पूर्ण
नागरिको द्वारा ही निर्धारित होता हैI देश
की आय को अच्छा वनाने के लिए उस देश की प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाना होगा तभी वह देश
आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकता है I जो भी देश समृद्धि के मार्ग पर जाना चाहता है
उसे पहले वैक्तिक समृद्धि के रास्ते पर चलना होगाI वैयक्तिक विकास हेतु प्रत्येक नागरिक को शिक्षित करने के लिए प्रयास करने
पड़ेंगे और प्रत्येक वर्ग को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराने हेतु विशेष उपबन्ध
करने होते हैं Iभारत देश में अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा हेतु किये गए प्रयासों
का वर्णन अग्रलिखित पत्र में किया गया हैI प्रमुख शव्द : अनुसूचित जनजाति, शिक्षा, शैक्षिक प्रावधानI प्रस्तावना भारत देश में अनेक संस्कृतियों, धर्मो, विभिन्नताओं, मतपंथों, आदि के लोग निवास करते
हैंI इंडियन गजेटियर में जन जातियो को निम्नलिखित शव्दों में परिभाषित किया गया है
‘जनजाति अनेक परिवारों अथवा परिवार समूहों का संकलन है जिसका एक सामान्य नाम होता
है ‘जो सामान्य बोली बोलते है एक निश्चित भू भाग पर रहने का दावा करते हैं और अन्तर्विवाह
नहीं करते हैं”I लिटन के शव्दों में’ जनजाति जंगलों में रहने वाले ऐसे व्यक्तियों
का समूह है जिनमें क्षेत्रीय, सांस्कृतिक तथा सामुदायिक एकता होती हैI "समाज
के वे लोग जो संतोषजनक सामाजिक, सांस्कृतिक व् आर्थिक दर्जे से वंचित रह गए उन्हें
वंचित वर्ग कहा जाता है। अनुसूचित जनजातियो को निम्न प्रकार से वंचन का सामना करना
पड़ा। सांस्कृतिक रूप से वंचित वर्ग को धार्मिक स्थानों पर पूजा करने हेतु प्रवेश
का अवसर नहीं दिया जाता था, वे मंदिर में जाकर पूजा नहीं कर सकते ये स्थितियां उन्हें अन्य लोगो से अलग कर देती
हैं और वे भारतीय संस्कृति की जानकारी से वंचित रह जाते हैं। आर्थिक रूप से वंचित
वर्ग भरतीय जनसँख्या का एक बड़ा भाग गरीबी
रेखा के नीचे जीवन यापन करता है जो अपने
बालको के भरण-पोषण में अपने को कभी भी समर्थ नहीं पाते वे अपने बच्चो को विद्यालय नहीं भेज पाते सामाजिक
रूप से वंचित वर्ग को समाज में निम्न वर्ग का माना जाता था देश के कुछ भागों में
तो इनको छूने से भी मना कर दिया जाता थाI भारत में कुछ जातियों को
अश्पृश्य या अछूत कहा जाता था जिनको छूने मात्र से अन्य जातियों के लोग स्वयं को
अपवित्र मानने लगते थेI 1934 में भारत सरकार
ने इन अछूत समझी जाने वाली जातियों को कुछ विशेष सुविधाएँ देने के लिए एक अनुसूची
तैयार की जिसमे लगभग 425 जातियों के लगभग छः करोड़ लोगों को शामिल किया। इस सूची
में शामिल होने के कारण इन जातियों को अनुसूचित जाति कहा गया। भारतीय संविधान में
अनेको ऐसे उपबंधों व अनुच्छेदों का प्रावधान किया गया है जिससे समाज के प्रत्येक
व्यक्ति और देश के सभी नागरिकों को मुख्य धारा में लाने का कार्य किया गया हैI समाज में इन्हीं में से एक वर्ग ऐसा है जो समाज की मुख्य धारा से अभी भी दूर है जिसे समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए शासन-प्रशासन
ने विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन किया हैI विभिन्न आयोगों ,शिक्षा आयोगों, शिक्षा
नीतियों में अनुसूचित जातियों के बालकों की शिक्षा सम्बन्धी प्रावधान किये हैं
जिससे अनुसूचित जनजातियों के बालक व् बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करके समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके और उनके
सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक अधिकारों की रक्षा करके उन्हें विकास का उचित अवसर
प्राप्त हो सकेI डॉ सर्वपल्ली के शव्दों में, "शिक्षा परिवर्तन का साधन
है जो कार्य साधारण समाजों में धर्म और
सामाजिक एवं राजनैतिक संस्थाओ
द्वारा किया जाता था, आज वह शिक्षा संस्थाओ द्वारा किया जाता है”I ओटावे के शव्दों
में यदि कहा जाये तो निम्न प्रकार कह सकते हैं कि शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का
कारण स्वीकार नहीं किया जाता हैI यह तो समाज पर निर्भर रहने वाली
एक परिवर्तनशील वस्तु हैI निसंदेह रूप से शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण योग देती है, पर
इसका प्रभाव मुख्य न होकर गौण होता है I" (शिक्षा के सिद्धांत :गुरुसरन दास
त्यागी,अग्रवाल पब्लिकेशन आगरा ) जार्ज
एफ केलर ने कहा है कि "शिक्षा सांस्कृतिक सातत्य
की आवश्यक शर्त है । यह सांस्कृतिक परिवर्तन का प्रमुख साधन भी है। शिक्षा के
माध्यम से किसी भी व्यक्ति के समक्ष उत्पन्न समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। अनुसूचित
जनजातियों को प्रदान की जाने वाली शैक्षिक सुविधाएँ :
अनुसूचित जनजातियों की
शिक्षा हेतु संवैधानिक प्रावधान : अनुच्छेद 16 : सभी नागरिकों को अवसर की समानता
अनुच्छेद 17 छुआ छूत को दूर करके इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया अनुच्छेद 18
राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में किसी भी नागरिक को
धर्म, भाषा, मूल वंश, जाति के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं किया जायेगा। अनुच्छेद
46 विशेष वर्ग के लोगों को विशेष शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करने की सिफारिश करता है। स्वतंत्र भारत में गठित विभिन्न आयोगों द्वारा जनजातियो की शिक्षा हेतु किये गए प्रयास स्वंत्रता के पश्चात्
भारत की जनता की शिक्षा हेतु निम्न लिखित आयोगों एवम शिक्षा नीतिओ में निम्न
विन्दुओ को सम्मिलित किया गया। स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग डॉ. सर्वपल्ली
राधाकृष्णन की अध्यक्षता में 1948 में गठित हुआ जिसने अपने प्रतिवेदन में उच्च
शिक्षा के उन्नयन हेतु शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करने के साथ प्रशासन व
वित्त ,शिक्षा के माध्यम ,छात्रों के
कल्याण की योजनाओं को सम्मिलित करने, परीक्षाओ में सुधार की सिफारिश की। इस आयोग
के पश्चात् डॉ.लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग का
गठन किया गया जिसने अपने प्रतिवेदन में शिक्षा के उद्देश्यों, स्वरूप, प्रशासनिक
व्यवस्था,पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुझाव दिए। सन 1960-61 में श्री यूं.एन .ढेवर की
अध्यक्षता में अनुसूचित जातियों व जनजातियों की शिक्षा हेतु ढेवर आयोग का गठन किया
गया जिसने इन वर्गों की शिक्षा हेतु कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए। 1964 में
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग डॉ .दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में गठित किय गया
जिसने अपना प्रतिवेदन “शिक्षा एवं राष्ट्रीय प्रगति ” शीर्षक से भारत सरकार
को प्रेषित किया जिसमें सभी वर्गों की शिक्षा की महत्वाकांक्षा प्रदर्शित हुईI राष्ट्रीय शिक्षा नीति
1986 में जन जातियों की शिक्षा के लिए निम्न सुझाव दिए गए-
नई शिक्षा नीति 1986
में अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा हेतु निम्न सुझाव दिए नये विद्यालयों का निर्माण किया जाये, मात्र
भाषा व क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा प्रदान
की जायेI जनजातियों के शैक्षिक उन्नयन हेतु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किये गए प्रयास राज्य सरकार ने अनुसूचित
जाति व् जनजाति के छात्रों को अनिवार्य रूप से छात्रवृत्ति देने की एक योजना
1981-82 से प्रारंभ कीI राज्य सरकार ने छठी कक्षा तक सभी
बालक-बालिकाओं को निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की एवं कक्षा दस तक पढने वाले सभी
जनजातियों के विद्यार्थियो के शुल्क की धनराशि सीधे स्कूल को हस्तगत करने का कार्य
कियाI मेधावी
विद्यार्थियों को विशेष छात्रवृत्ति प्रदान करने की व्यवस्था भी राज्य सरकार
द्वारा की गयीI ओद्योगिक
प्रशिक्षण केन्द्रों में प्रशिक्षण
प्राप्त करने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने का प्रावधान किया
गया जिसकी राशि 37.50 रूपये प्रतिमाह निर्धारित की गयीI प्रदेश के प्रत्येक प्राइमरी
पाठशाला में पढने वाले दो विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने हेतु प्रतिमाह 5 रुपया
प्रति छात्र छात्रवृत्ति प्रदान करने का प्रावधान किया
गया और कक्षा तीन व् चार में वार्षिक परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले
विद्यार्थी को दस रुपया प्रतिमाह छात्रवृत्ति दिए जाने का प्रावधान किया गयाI ऐसी शिक्षा संस्थाएं जो अनुसूचित जाति व जनजाति के बालकों
की शिक्षा में गहरी रूचि लेते और हरिजन वस्तियों में विद्यालय संचालित करते उन्हें
प्रदेश सरकार द्वारा अनुदान दिए जाने हेतु प्रावधान किया गयाI इन संस्थाओ को पाठ्यक्रम की शिक्षा के अतिरिक्त वाचनालयों
,पुस्तकालयों व छात्रावासों के लिए शिक्षा निदेशालयों द्वारा अनुदान देने का
प्रावधान किया गयाI अनुसूचित जाति ,जनजाति के ऐसे छात्र –छात्राएं जिनके माता
पिता की मासिक आय एक हजार रूपये प्रतिमाह से कम है उन्हें छात्रवृत्ति अनिवार्य
रूप से दिए जाने का प्रावधान किया गयाI इन वर्गों की चिकित्सा, अभियंत्रण एवम ओद्योगिक
कक्षाओं के लिए पुस्तकें व् अन्य उपकरण क्रय करने के लिए अनावर्ती सहायता प्रदान
की जाती हैI हाई स्कूल में प्रथम श्रेणी में
उत्तीर्ण होने पर प्रोत्साहन हेतु साईकिल दिए जाने की योजना है इन्टरमीडियट में एक
वार अनुत्तीर्ण होने पर भी शुल्क मुक्त की सुविधा जारी रखने का प्रावधान किया गयाI मेडिकल व इंजीनियरिंग की पढाई
करने वाले छात्रों को पुस्तकें उपलब्ध कराने हेतु बुकबैंक की योजना संचालित की गयीI उत्तर प्रदेश सरकार के हरिजन एवम
समाज कल्याण विभाग द्वारा छात्रावास योजना संचालित की गयीI प्रदेश के विभिन्न जनपदों में
छात्रावासों का निर्माण कराया गया इस योजना में पचास प्रतिशत अनुदान केंद्र सरकार
द्वारा और शेष राशि का वहन राज्य सरकार द्वारा किया जायेगाI जनजातीय बहुलता वाले क्षेत्रों में आश्रम विद्यालय खोलकर उनमें बालकों को
शिक्षा ,भोजन ,वस्त्र आवास ,पुस्तकें आदि की सुविधा निशुल्क उपलब्ध कराई जाने का
प्रावधान किया गयाI इसके
अतिरिक्त स्कूल पूर्व प्रशिक्षण देने के लिए व उन्हें स्कूली वातावरण से परिचित
कराने के लिए बालवाडी एवं शिशु सदन खोले जाने की व्यवस्था की गयीI इन वर्गों के छात्रों को उपस्थिति
पुरुस्कार देंने की व्यव्स्था की जाने के
साथ ही अभिभावकों को भी वित्तीय सहायता प्रदान की जायेI जनजातीय क्षेत्रों के बालकों
हेतु उनकी मात्र भाषा व क्षेत्रीय भाषा में पाठ्य पुस्तकें तैयार की जाएँI जनजातीय क्षेत्रो में आदिवासी व्
जनजातीय शिक्षक ही नियुक्त किये जाएँ और अन्य शिक्षकों को भी जनजातीय भाषा सीखने
को प्रेरित किया जायेI विद्यालयों में अवकाश स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किये जाएँI इन वर्गों के छात्रों के शैक्षिक
स्तर को सुधारने हेतु आवासीय सुविधाएँ आवश्यक रूप से प्रदान की जायेI मेडिकल इंजीनियरिंग ,तकनीकी तथा
सिविल सेवाओं जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में वैठने वाले इस वर्ग के छात्रों को
विशेष कोचिंग की व्यवस्था की जायेI
उपरोक्त योजनाओ व् सुझाओं को यदि पूर्णरूप से लागू कर दिया
जाये तो इस वर्ग के विद्यार्थी न सिर्फ अच्छी शिक्षा ग्रहण करेंगे वल्कि समाज में
एक उचित स्थान भी सुनिश्चित कर सकेंगे व सम्मानजनक जीवन जी सकेंगे Iइन प्रावधानों
के अतिरिक्त यह भी कहा जा सकता है कि सामाजिक रूढ़िवादिता तथा अन्धविश्वासो में
फंसे वर्ग के लोगों को शिक्षा के महत्व से परिचित कराया जायेI सरकार द्वारा प्रदान
की जाने वाली विशेष योजनाओ ,छात्रवृत्तियों ,निशुल्क पाठ्यपुस्तकों आदि का व्यापक
प्रचार –प्रसार किया जायेI इन वर्गों के सफल व्यक्तिओ या प्रख्यात व्यक्तिओं का सहयोग लिया जायेI सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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