ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- IX , ISSUE- XII January  - 2025
Innovation The Research Concept
हिंदी साहित्य और भारतीय सिनेमा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
Historical Perspective of Hindi Literature and Indian Cinema
Paper Id :  19497   Submission Date :  2025-01-01   Acceptance Date :  2025-01-21   Publication Date :  2025-01-25
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DOI:10.5281/zenodo.14909178
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गायत्री चौहान
सहायक प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष
हिंदी विभाग
पीएम श्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
खरगोन, मध्य प्रदेश, भारत
सारांश

हिन्दी साहित्यहिन्दी भाषा में लिखी गई रचनाओं का समूह है। साहित्यज्ञान और अनुभव का संचित कोष होता है। यह कलात्मक शैली में लिखी गई रचनाओं का भंडार है। साहित्य के प्रमुख रूप हैंगैर-काल्पनिक गद्यकाल्पनिक गद्यकवितानाटकलोककथाएँ। सन 1913 भारतीय सिनेमा और भारतीय साहित्य के लिए एक उल्लेखनीय वर्ष है। इस वर्ष जहॉं एक तरफ गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर को उनकी महान कृति 'गीतांजलिके लिए साहित्य का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ थातो वहीं दूसरी तरफ दादा साहब फाल्के द्वारा अपनी फिल्म 'राजा हरिश्चंद्रके जरिये भारतीय सिनेमा की नींव रखी गई थी।  इसी प्रकार हिन्दी सिनेमाजिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता हैहिन्दी भाषा में फ़िल्म बनाने का उद्योग है। बॉलीवुड नाम अंग्रेज़ी सिनेमा उद्योग हॉलीवुड के तर्ज़ पर रखा गया है। हिन्दी फ़िल्म उद्योग मुख्यतः मुम्बई शहर में बसा है। ये फ़िल्में हिन्दुस्तानपाकिस्तान और विश्व के कई देशों के लोगों के दिलों की धड़कन हैं।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Hindi literature is a collection of works written in the Hindi language. Literature is the accumulated treasure of knowledge and experience. It is a storehouse of works written in an artistic style. The main forms of literature are: non-fiction prose, fictional prose, poetry, drama, folktales. The year 1913 is a remarkable year for Indian cinema and Indian literature. This year, on one hand, Gurudev Rabindranath Tagore received the Nobel Prize for Literature for his great work 'Gitanjali', while on the other hand, the foundation of Indian cinema was laid by Dada Saheb Phalke through his film 'Raja Harishchandra'. Similarly, Hindi cinema, also known as Bollywood, is the industry of making films in the Hindi language. The name Bollywood is kept on the lines of the English cinema industry Hollywood. The Hindi film industry is mainly located in the city of Mumbai. These films are the heartbeat of the people of India, Pakistan and many countries of the world.
मुख्य शब्द प्रकृताभाषा और अपभ्रंश भाषा, धार्मिक अनुष्ठान एवं निश्चित स्वरूप, लाभ केंद्रित दृष्टिकोण, अस्पृश्यता, जातिवाद, पर्दा प्रथा, बाजारवादी प्रवृत्ति, साहित्य के दृष्टि से पदबद्ध रचनाएं इत्यादि
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Prakritbhasha And Apabhramsa Language, Religious Rituals And Fixed Form, Profit-Oriented Approach, Untouchability, Casteism, Purdah System, Market-Oriented Tendencies, Literary Compositions Etc.
प्रस्तावना

हिंदी साहित्य का इतिहास

प्राचीन इतिहासकारों ने अतीत की व्याख्या भी इसी दृष्टिकोण से कीअर्थात् वे परिवर्तनशील अतीत में से भी उन प्रवृत्तियों का अनुसन्धान करते रहे जो मनुष्य को स्थायी एवं अमर बनाती हैं। उन्होंने घटनाओं एवं क्रिया-कलापों की व्यवस्था भौतिक उपलब्धियों एवं वैयक्तिक सफलताओं की दृष्टि से कम करके समष्टि-हित की दृष्टि से अधिक की। इसीलिए महाभारतकार ने जहां इतिहास को एक ऐसा पूर्ववृत्त माना जिसके माध्यम से धर्मअर्थकाम और मोक्ष का उपदेश दिया जा सके तो पौराणिकों ने ऋषियों एवं महापुरुषों के चरित-गान को 'इतिहासके रूप में स्वीकार करते हुए घटना की अपेक्षा चरित्र को अधिक महत्व प्रदान किया।

यद्यपि आगे चलकर बाणकल्हण आदि इतिहासकारों ने इससे भिन्न दृष्टि को अपनाते हुए आध्यात्मिकनैतिक एवं चारित्रिक तत्त्वों की अपेक्षा यथार्थपरक वस्तु एवं तथ्यों को अधिक महत्त्व प्रदान कियाकिन्तु काव्यात्मकता एवं अलंकृति का मोह वे भी न त्याग सके। इसीलिए जहां प्राचीन युग में भारतीय इतिहासकारों की रचनाएं चारित्रिकमूल्योंनैतिक उपदेशों व आध्यात्मिक रूपकों से युक्त होकर पौराणिक रूप में परिणत हो गयींवहां परवर्ती इतिहासकारों की रचनाएं शुद्ध इतिहास की अपेक्षा 'काव्यात्मक इतिहासया 'ऐतिहासिक काव्यके रूप में विकसित हुई। वस्तुतः भारत का प्राचीन इतिहासकार सत्य-शोधन तक ही सीमित नहीं रहावह 'शिवंऔर 'सुन्दरम्के समन्वय के लिए भी बराबर सचेष्ट रहा। इसे व्यावहारिक दृष्टि से जहां उसका 'गुणकहा जा सकता हैवहां सैद्धान्तिक दृष्टि से यह उसका सबसे बड़ा 'दोषभी माना जा सकता हैक्योंकि उसने इतिहास के कलेवर में कला और नीति को स्थान देकर उसे शुद्ध ऐतिहासिकता से वंचित रखा। फिर भीयदि इतिहास के कलात्मक या काव्यात्मक रूप का किसी भी दृष्टि से कोई महत्त्व है तो उस दृष्टि से भारतीय इतिहासकार को सर्वोच्च स्थान प्रदान किया जा सकता है। वास्तव में भारतीय इतिहासकार ने अपनी संस्कृति एवं जीवन के आदर्शों के अनुरूप ही इतिहास के क्षेत्र में भी संश्लेषणात्मक व समन्वयात्मक दृष्टिकोण का परिचय देते हुए उसमें सत्यंशिवं व सुन्दरम् के समन्वय का प्रयास कियाजो उसकी परम्पराओं को देखते हुए उचित व स्वाभाविक कहा जा सकता है।

अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य हिंदी साहित्य और भारतीय सिनेमा के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य का अध्ययन करना है
साहित्यावलोकन

हिंदी साहित्य का इतिहास

प्राचीन इतिहासकारों ने अतीत की व्याख्या भी इसी दृष्टिकोण से कीअर्थात् वे परिवर्तनशील अतीत में से भी उन प्रवृत्तियों का अनुसन्धान करते रहे जो मनुष्य को स्थायी एवं अमर बनाती हैं। उन्होंने घटनाओं एवं क्रिया-कलापों की व्यवस्था भौतिक उपलब्धियों एवं वैयक्तिक सफलताओं की दृष्टि से कम करके समष्टि-हित की दृष्टि से अधिक की। इसीलिए महाभारतकार ने जहां इतिहास को एक ऐसा पूर्ववृत्त माना जिसके माध्यम से धर्मअर्थकाम और मोक्ष का उपदेश दिया जा सके तो पौराणिकों ने ऋषियों एवं महापुरुषों के चरित-गान को 'इतिहासके रूप में स्वीकार करते हुए घटना की अपेक्षा चरित्र को अधिक महत्त्व प्रदान किया।

मध्यकालीन हिंदी साहित्य

मध्य युग के दौरान धार्मिक रचनाएँ पुस्तकालयों में पाए जाने वाले साहित्य का प्रमुख रूप थीं। मध्य युग में कैथोलिक पादरी समाज के बौद्धिक केंद्र थेऔर यह उनका साहित्य था जो सबसे अधिक मात्रा में लिखा गया था।  इस समय अवधि (दोनों धार्मिक और अर्ध-धार्मिकसे अनगिनत भजन बचे हैं । धार्मिक अनुष्ठान स्वयं निश्चित रूप में नहीं थाऔर कई प्रतिस्पर्धी मिसालों ने मास के क्रम की व्यक्तिगत अवधारणाओं को निर्धारित किया। कैंटरबरी के एंसेलम , थॉमस एक्विनास और पियरे एबेलार्ड जैसे धार्मिक विद्वानों ने लंबे धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ लिखेजो अक्सर ग्रीक और रोमन बुतपरस्त लेखकों की शिक्षाओं को चर्च के सिद्धांतों के साथ समेटने का प्रयास करते थे। संतों के जीवन यापन की कहानियाँ भी अक्सर लिखी जाती थींजो भक्तों को प्रोत्साहित करने और दूसरों को चेतावनी देने के लिए होती थीं। मध्य युग के दौरानयूरोप की यहूदी आबादी ने भी कई बेहतरीन लेखकों को जन्म दिया। स्पेन के कॉर्डोबा में जन्मे मैमोनाइड्स और फ्रांस के ट्रॉयस में जन्मे राशी इन यहूदी लेखकों में से दो सबसे प्रसिद्ध और सबसे प्रभावशाली हैं ।

हिंदी साहित्य की वर्तमान स्थिति

भाषा एवं साहित्य के प्रति रुचि होना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि भाषा व साहित्य से ज्ञान प्राप्त होता है। दस से पंद्रह वर्ष की उम्र के बच्चों में अध्ययन की रुचि नहीं है क्योंकि उनके विद्यालय का बस्ता ही बहुत बड़ा बन गया हैयह सुनने को मिलता है। परंतु यदि आप पढ़ते हुए या अध्ययन करते हुए दिखाई देंगे तो आने वाली पीढ़ी भी आपका अनुकरण कर सकती है। हिन्दी भाषा की आलोचना करने वाले अधिकतर वही लोग हैं जो शिक्षा विभाग में प्राथमिकता अँग्रेज़ी को दे रहे हैं। हिन्दी की आलोचना तो होनी ही नहीं चाहिए। हिंदी के नाम से मात्र हिंदी दिवस मनाने या भवनों की स्थापना करके धन बटोरना ही पर्याप्त नहीं है। हिंदी भाषा का विकास होइसके लिए निरंतर प्रयास किए जाने चाहिए। हिंदी भाषा के निरंतर होते विस्तारीकरण के पीछे कुछ प्रमुख बातें सामने आती हैंयह विदेशी भाषाओं के शब्दों को स्वयं में आत्मसात करने की क्षमता रखती है अर्थात् हिंदी भाषा का लचीलापन उसके विकास में सहयोगी सिद्ध हुआ है। हिंदी भाषा को बोलने-समझने वाले व्यक्तियों का संख्या बल काफी अधिक हैजिस कारण यह संपर्क भाषा के तौर पर आसानी से स्थापित हो जाती है। उपभोक्तावादी संस्कृति ने भी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में काफी योगदान दिया है। बाजार के दृष्टिकोण से बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विज्ञापनों और बाजार की भाषा को समझने के लिए हिंदी की ओर बढ़ रही हैंहालांकि यह एक लाभ केंद्रित दृष्टिकोण ही है परंतु इससे भाषायी प्रसार हो रहा है इसे नकारा नहीं जा सकता।

मुख्य पाठ

भारत में सिनेमा के विकास की जिम्मेदारी क्षेत्रवार क्रमशः (बॉलीवुड), तेलुगू सिनेमा (टॉलीवुड), असमिया सिनेमा (असम), मैथिली सिनेमा (बिहार), छॉलीवुड (छत्तीसगढ़), ब्रजभाषा चलचित्रपट (उत्तर प्रदेश), गुजराती सिनेमा (गुजरात), हरियाणवी सिनेमा (हरियाणा), कश्मीरी (जम्मू एवं कश्मीर), झॉलीवुड (झारखंड), कन्नड सिनेमा (कर्नाटक), मलयालम सिनेमा (केरल), मराठी सिनेमा (महाराष्ट्र), उड़िया सिनेमा (ओडिशा), पंजाबी सिनेमा (पंजाब), राजस्थान का सिनेमा (राजस्थान), कॉलीवुड (तमिलनाडु) और बाङ्ला सिनेमा (पश्चिम बंगाल) शामिल हैं। भारतीय सिनेमा ने २०वीं सदी की शुरुआत से ही विश्व के चलचित्र जगत पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।। भारतीय फिल्मों का अनुकरण पूरे दक्षिणी एशिया, ग्रेटर मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व सोवियत संघ में भी होता है। भारतीय प्रवासियों की बढ़ती संख्या की वजह से अब संयुक्त राज्य अमरीका और यूनाइटेड किंगडम भी भारतीय फिल्मों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार बन गए हैं। एक माध्यम(परिवर्तन) के रूप में सिनेमा ने देश में अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल की और सिनेमा की लोकप्रियता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ सभी भाषाओं में मिलाकर प्रति वर्ष 1,600 तक फिल्में बनी हैं। भारतीय सिनेमा किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक लोगों द्वारा देखी गई फिल्मों का उत्पादन करता है; 2011 में, पूरे भारत में 3.5 बिलियन से अधिक टिकट बेचे गए, जो हॉलीवुड से 900,000 अधिक थे।भारतीय सिनेमा कभी-कभी बोलचाल की भाषा में इंडीवूड के रूप में जाना जाता है।

भारतीय सिनेमा व्यवसाय के रूप में

भारतीय सिनेमा उद्योग भाषा द्वारा खंडित है। बॉलीवुड या हिंदी भाषा फिल्में सबसे बड़ा 43% बॉक्स ऑफिस राजस्व का योगदान करता है। तमिल सिनेमा और तेलुगू सिनेमा फिल्में 36% राजस्व का प्रतिनिधित्व करते हैं।दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग दक्षिण भारत की चार फिल्म संस्कृतियों को एक इकाई के रूप में परिभाषित करता है। ये कन्नड़ सिनेमामलयालम सिनेमातेलुगू सिनेमा और तमिल सिनेमा हैं। हालाँकि ये स्वतंत्र रूप से विकसित हुए हैं लेकिन इनमे फिल्म कलाकारों और तकनीशियनों के आदान-प्रदान और वैष्वीकरण ने इस नई पहचान के जन्म में मदद की।

भारत से बाहर निवास कर रहे प्रवासी भारतीय जिनकी संख्या आज लाखों में हैंउनके लिए भारतीय फिल्में डीवीडी या व्यावसायिक रूप से संभव जगहों में स्क्रीनिंग के माध्यम से प्रदर्शित होती हैं।इस विदेशी बाजार का भारतीय फिल्मों की आय में 12% तक का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसके अलावा भारतीय सिनेमा में संगीत भी राजस्व का एक साधन है। फिल्मों के संगीत अधिकार एक फिल्म की 4 -5 % शुद्ध आय का साधन हो सकते हैं।

भारतीय सिनेमा का सामाजिक संदेश

हमारे समाज में ऐसी कई आदतें और परंपराएँ हैं जो अज्ञानता पर आधारित हैं और हमारे समाज की उन्नति में बाधा डालती हैं। जाति व्यवस्थाअस्पृश्यतादहेज और पर्दा प्रथा की कठोरता ने हमारे समाज को बहुत नुकसान पहुँचाया है। फ़िल्में इन बुराइयों के खिलाफ़ लड़ाई में काफ़ी मदद कर सकती हैं। क्योंकि इनका इस्तेमाल राष्ट्रीय एकताशराबबंदीअंतरजातीय विवाहपरिवार नियोजन और निरक्षरता उन्मूलन जैसे मुद्दों को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है।

इस तरह के विषय हमारे समाज में बदलाव लाने में सहायक हो सकते हैं। इस फिल्म का उपयोग लोगों को अंधविश्वास से बाहर निकालने और उन्हें सही दिशा में ले जाने में सहायता करने के लिए किया जा सकता है। इसमें हमारी संस्कृति में अज्ञानता को खत्म करने में सहायता करने की क्षमता है।इसके अलावासिनेमा का उपयोग विभिन्न आवश्यक सामाजिक सुधारों को आरंभ करने और कार्यान्वित करने के लिए किया जा सकता है।

सिनेमा के प्रभावों को कई तरीकों से देखा जाता है। यह निर्माताओं और वित्तपोषकों के लिए एक आकर्षक और आकर्षक पेशा है। यह अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के लिए पैसा कमाने और सार्वजनिक मान्यता प्राप्त करने का एक तरीका है। इसे निर्देशककहानीकारसंगीतकार और छायाकार द्वारा एक कलात्मक कार्य माना जाता है। कुछ लोगों के अनुसारयह साहित्य का एक ऑडियो-विजुअल अनुवाद है जिसका अपना संदेश होता है। दूसरी ओरसरकार पैसे और नौकरियों का एक संभावित स्रोत है। अधिकांश फिल्म देखने वालों के लिएयह केवल मनोरंजन का एक सस्ता और आनंददायक स्रोत है। जो भी होसिनेमा ने सिनेप्रेमियों के लिए बाजार के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर कब्जा कर लिया है।

सिनेमा का नकारात्मक प्रभाव सिनेमा के व्यावसायीकरण के कारण मूल्यों और सूचनात्मकता का क्षरण हुआ है। भारत में फिल्म निर्माता और कलाकार सिनेमा को पैसा कमाने का एक साधन मानते हैंइसलिए वे विषय-वस्तु के दायरे को बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं करते और केवल लाभ कमाने से ही चिंतित रहते हैं।बड़े पर्दे पर दिलचस्प विषयों को देखना हमेशा तरोताज़ा और सुसंस्कृत करने वाला होता है। उनका दिमाग पर बहुत अनुकूल और लंबे समय तक चलने वाला प्रभाव होता हैलेकिन सस्ती और घटिया फिल्में दर्शकों के दिमाग पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। एक व्यापक धारणा है कि आज के अपराध सभी सिनेमाई प्रभावों का परिणाम हैं। खुले और प्रदर्शनकारी विषयों के अलावादूषित मेल फेंके जाते हैं। वे हमारी संस्कृति और समाज पर कहर बरपाते हैं। सिनेमा और टेलीविजन बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं।

इसका उद्देश्य फिल्मों या टेलीविजन शो को बहुत जल्दी खारिज करना नहीं है। चुनिंदा और विवेकपूर्ण कार्यक्रम का चयन वांछनीय होगा। छात्रों को अच्छी फिल्मों से परिचित कराया जाना चाहिए। किसी भी समय देखी जा सकने वाली फिल्मों और टीवी श्रृंखलाओं की संख्या सख्ती से सीमित होनी चाहिए।इस फिल्म का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह काफी शिक्षाप्रद है। इसमें शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन नतीजे देने की क्षमता है।

हिंदी साहित्य और भारतीय सिनेमा का तुलनात्मक अध्ययन

साहित्य जितना प्रभाव सिनेमा का समाज पर पड़ा हैउतना किसी अन्य कला का नहीं। सिनेमा अपने जन्म के साथ ही अपने जादुई आकर्षण के कारण समाज के हर वर्ग में काफी लोकप्रिय रहा है। परंतु यह एक विचित्र विडंबना है कि हाल-फिलहाल तक सिनेमा को बहुत अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। अब सिनेमा के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है। आधुनिक भारतीय समाज के मूल्य-बोध को निर्धारित-प्रभावित करने वाले कारकों में सिनेमा का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अपने जन्म के साथ विभिन्न पड़ावों से गुजरते हिंदी सिनेमा का इतिहास जाननादरअसलभारतीय समाज का मनोविज्ञान जानना भी है। प्रस्तुत लेख में हिंदी सिनेमा के महत्त्वपूर्ण बदलाव और समाज पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को रेखांकित करने की कोशिश की गई है। तो वहीं हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा तक जातीं हैं परन्तु मध्ययुगीन भारत के अवधीमागधी, अर्धमागधी तथा मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य को हिन्दी का आरम्भिक साहित्य माना जाता हैं। हिन्दी साहित्य ने अपनी अनेक शैलियों के लिए महत्वपूर्ण है:–गद्यपद्य और चम्पू। जो गद्य और पद्य दोनों में हो उसे चम्पू कहते है। खड़ी बोली की पहली रचना कौन सी हैइस विषय में विवाद है लेकिन अधिकांश साहित्यकार लाला श्रीनिवासदास द्वारा लिखे गये उपन्यास परीक्षा गुरु को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। जिनके माध्यम से समाज की स्थिति का संदेश देते हैं।

निष्कर्ष

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि ,भारतीय सिनेमा अपनी स्थितियों के अनुसार पर्याप्त मात्रा में घुस पीटकर ठोकरो का सामना करते हुए आज इस मुकाम पर पहुंची है और हिंदी साहित्य और सिनेमा के बीच पूरक संबंध है और दोनों के बगैर सिनेमा की कल्पना अवास्तविक है। व्यापक मानवीय एवं राष्ट्रीय हित इसमें निहित हैं। दूसरी और साहित्य में भी कम उतार नहीं आया है। हाल के दिनों में संचार साधनों के प्रसार और सोशल मीडिया के माध्यम से साहित्यिक अभिवृत्तियाँ समाज के नवनिर्माण में अपना योगदान अधिक सशक्तता से दे रही हैं। हालाँकि बाजारवादी प्रवृत्तियों के कारण साहित्यिक मूल्यों में गिरावट आई है परंतु अभी भी स्थिति नियंत्रण में है। आज आवश्यकता है कि सभी वर्ग यह समझें कि साहित्य समाज के मूल्यों का निर्धारक है जिसको सिनेमा के माध्यम से पटल पर रखा जाता है और उसके मूल तत्त्वों को संरक्षित करना जरूरी हैक्योंकि साहित्य जीवन के सत्य को प्रकट करने वाले विचारों और भावों की सुंदर अभिव्यक्ति है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
  1. सिनेमा और समाज, (संपादक- विजय अग्रवाल सत्साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
  2. भारत में संचार के माध्यम, (संपादक- डॉ. संजीव भनावत)
  3. मीडिया विमर्श आधुनिक, (संपादक- राम लखन मीणा)
  4. अग्रवाल, प्रहलाद, हिंदी सिनेमा सौ साल तक का सफर भाग~1 साहित्य भंडार इलाहाबाद, (प्रथम संस्करण 2014)
  5. हिंदी सिनेमा का इतिहास, (संपादक - मनमोहन चड्ढा)
  6. साहित्य के विविध आयाम, (संपादक- डॉ. सुधेश नालंदा प्रकाशन, दिल्ली)