P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- XII , ISSUE- III November  - 2024
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
श्री राजेन्द्र यादव के साहित्य में विधायी-विविधता का अनुशीलन
Study of Methodical Diversity in the literature of Shri Rajendra Yadav
Paper Id :  19509   Submission Date :  2024-11-16   Acceptance Date :  2024-11-22   Publication Date :  2024-11-25
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DOI:10.5281/zenodo.14556988
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कृष्ण कुमार गुप्ता
प्राचार्य
महारानी महिला महाविद्यालय
धौलपुर
राजस्थान, भारत
सारांश

हिंदी साहित्य विश्व का विशद साहित्य है जिसने समय-समय पर अनेकों साहित्यकार दिए हैं जिन्होंने अपनी-अपनी लेखनी से साहित्य की विभिन्न विधाओं, यथा- गद्य, पद्य, नाटक, उपन्यास, समालोचना आदि को वैश्विक स्तर पर ऊंचाइयां प्रदान की हैं और जो अपने साहित्यिक योगदान के कारण हिंदी साहित्य इतिहास में स्थान प्राप्त कर चुके हैं। प्रत्येक साहित्यकार विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व का धनी होता है।  ऐसे ही एक साहित्यकार थे श्री राजेन्द्र यादव जिन्होंने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा को अपनी लेखनी से ऊंचाइयां प्रदान कीं और जिनको हिंदी साहित्य प्रेमियों द्वारा लम्बे समय तक याद किया जायेगा।

आधुनिक हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार श्री राजेन्द्र यादव लेखनी के ऐसे जादूगर थे जो अपनी कलम से किसी भी प्रकार का सृजन कर सकते थे। विधायी विविधता उनके साहित्य की अनुपम विशेषता थी। अपने समकालीन लेखकों और साहित्यकारों की किसी एक विशेष विधा के क्षेत्र में कार्य करने की प्रवृत्ति से अलग हटकर उन्होंने हिंदी साहित्य की प्रत्येक विधा पर अपनी सफलतापूर्वक लेखनी चलाई और पाठकों के ह्रदय पर अपनी रचनाओं के माध्यम से गहरी छाप छोड़ी। राजेन्द्र यादव को प्रायः 'नई कहानी' उपविधा के साथ जोड़ कर स्मरित किया जाता है और उनके द्वारा किये गए अन्य कार्यों को कम याद रखा जाता है जो सही नहीं है। वह नई कहानी जो नग्न यथार्थ के चित्रण में विश्वास करती है, के समर्थक और लेखक तो थे ही, परंतु इसके साथ-साथ उनके उपन्यास, लेख, कविताऐं, सम्पादकीय आदि भी समान रूप से स्मरण योग्य हैं।

प्रस्तुत शोधपत्र के अंतर्गत लेखक ने श्री राजेन्द्र यादव की विधायी विविधता पर प्रकाश डाला है और साथ ही यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि राजेन्द्र यादव इस अर्थ में एक सच्चे और स्वतंत्र साहित्यकार थे कि उन्होंने अपने सृजन को किसी एक विधा तक सीमित नहीं रखा।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Hindi literature is a vast literature of the world which has given many writers from time to time who have given heights to various genres of literature, such as prose, poetry, drama, novel, criticism etc. at the global level with their writings and who have got a place in the history of Hindi literature due to their literary contribution. Every writer is rich in a unique personality and work. One such writer was Shri Rajendra Yadav who gave heights to almost every genre of literature with his writings and who will be remembered for a long time by Hindi literature lovers.
The great writer of modern Hindi literature, Shri Rajendra Yadav was such a magician of the pen who could create any kind of creation with his pen. Methodical diversity was the unique feature of his literature. Breaking away from the tendency of his contemporary writers and litterateurs to work in the field of a particular genre, he successfully wrote on every genre of Hindi literature and left a deep impression on the hearts of readers through his creations. Rajendra Yadav is often remembered by associating him with the subgenre of 'Nayi Kahani' and his other works are remembered less, which is not right. He was not only a supporter and writer of the Nayi Kahani which believes in the portrayal of naked reality, but along with this, his novels, articles, poems, editorials etc. are also equally memorable.
In the present research paper, the author has thrown light on the methodical diversity of Shri Rajendra Yadav and has also tried to prove that Rajendra Yadav was a true and independent writer in the sense that he did not limit his creation to any one genre.
मुख्य शब्द हिंदी साहित्य, 'नई कहानी', प्रवृत्तियां, कार्यक्षेत्र , विधायी, विविधता बहु-आयामी।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Hindi Literature, 'New Story', Trends, Scope, Methods, Diversity, Multi-Dimensional.
प्रस्तावना

राजेन्द्र यादव (28 अगस्त,1929- 28 अक्टूबर, 2013) उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे ऐसे अप्रतिम प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे जिन्होंने हिंदी विषय में एम.. करने के साथ एवं उससे पहले ही साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलानी प्रारंभ करदी थी। उनका कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत था। उनके बारे में यह कहावत कि 'साहित्यकार परिस्थितियों की उपज होता है' पूर्णतः चरितार्थ होती है क्योंकि उनके जीवन की विभिन्न परिस्थितियों जैसे स्त्री एवं पुरुषों के साथ उनकी मित्रता, उनका वैवाहिक जीवन, समकालीन साहित्यकारों से उनके व्यक्तिगत संबंध एवं उनकी सतत रूप से बढ़ती हुई रूचि और सामान्य से अलग हटकर कुछ करने की इच्छा आदि ने उनको आगे चलकर उनको बहु-आयामी साहित्यकार के रूप में स्थापित किया। कहानी-संग्रह, उपन्यास, कविता, आत्मकथा व्यक्ति-चित्र, समीक्षा-निबंध-विमर्श, संपादन, अनुवाद आदि वे विभिन्न साहित्य के क्षेत्र हैं जिन पर अपनी लेखनी से राजेन्द्र यादव जी ने अमिट छाप छोड़ी है और हिंदी साहित्य प्रेमियों के ह्रदय में अपना स्थान और प्रभाव बनाया है।

राजेन्द्र  यादव का स्थान आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात साहित्यकार के रूप में उनके द्वारा दिए गए योगदान के कारण सदैव सुरक्षित रहेगा। उपन्यास सम्राटमुंशी प्रेमचंदके  कथा-मासिकहंसके संपादन से उन्होंने न केवल अपनी एक अलग पहचान कायम की, अपितु  अनेकों समकालीन रचनाकारों को भी साहित्यिक मंच प्रदान किया। उनकी लेखनी साहित्य की किसी एक विधा तक सीमित नहीं थी, अपितु उन्होंने सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई एवं और हिंदी जगत में अनुपम कृतियों का सृजन किया।सारा आकाश’, ‘उखड़े हुए लोगऔरशह और मातउनके लोकप्रिय उपन्यास माने जाते हैं। वहींएक इंच मुस्कानउपन्यास उनकेमन्नू भंडारीके साथ मिलकर लिखा था।
अध्ययन का उद्देश्य
  1. हिंदी साहित्य का संक्षिप्त परिचय प्रदान करना
  2. हिंदी साहित्यकारों की मूल भावनाओं का परिचय प्रदान करना
  3. राजेन्द्र यादव जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालना
  4. राजेन्द्र यादव जी की साहित्य साधना और उनके साहित्यिक योगदान पर टिप्पणी एवं समीक्षा करना
  5. हिंदी साहित्य की 'नई कहानी' उपविधा की विशेषताओं और प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालना। 
साहित्यावलोकन

साहित्यकार के रूप में राजेन्द्र यादव जी का महत्वपूर्ण स्थान है। उनको समझने के लिए उनकी आत्मकथा की गहराई में जाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने स्मृति का अवलम्बन लेकर अपने गुजरे अतीत को अपनी रचनाओं में तरतीबबद्ध किया है। उनकी रचनाओं में उनके अतीत के वे अंश छुपे हैं जिन्होंने उनके जीवन और बौद्धिक व्यक्तित्व को गतिशीलता प्रदान की। उनके बारे में यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपने प्रति दूसरों के अविश्वास व स्वयं के विश्वास के द्वंद्व में लगभग चालीस वर्षों का जीवन व्यतीत किया। उनकी आत्मकेन्द्रितता ने उनकी उत्तरदायित्वहीनता को प्रकट करते हुए प्रतिकूल परिस्थितियों में पत्नी के उपेक्षा भाव को उजागर किया है।[1]

राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में जीवन मूल्य और प्रकृति का सजीव वर्णन है। उनके उपन्यासों में राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक प्रकृति का सजीव वर्णन है। उनके अनुसार, आधुनिक युग में राजनीति कार्यों को निर्धारित व प्रतिष्ठित करने वाली एक मात्र शक्ति है। हर समय का अपना एक मुख्य और नियंता स्तर होता है। मध्यकाल में मुख्य स्तर धर्म था जिसको समझे बिना न उस काल के साहित्य को और न जीवन को समझा जा सकता था। आधुनिक समय की केन्द्रीय शक्ति राजनीति है जिसको समझे बिना न साहित्य लिखा जा सकता है और न समझा जा सकता है।[2]

 हिंदी पत्रिकाओं और कुछ समाचार पत्रों के अधिकांश संपादक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने कुछ असाधारण करने का सपना देखा था और जिन्होंने लेखक बनने का वादा किया था। संपादक के अंतर्मन में उसके अपने अवलोकन एवं प्रत्यक्षीकरण छुपे होते हैं जो उसे सम्पादकीय लेखन के साथ साथ साहित्य की अन्य विधाओं से जोड़ते हैं और उन विधाओं में अपनी लेखनी के प्रयोग हेतु प्रेरित कर उनका साहित्य के क्षेत्र में मार्गदर्शन करते हैं। [3]

राजेन्द्र जी एक सुलझे हुए एवं पारखी नजरों के धनी संपादक थे जिनकी अंतर्दृष्टि उनको शीघ्र ही इस बात का बोध करवा देती थी कि क्या कोई रचना प्रकाशन योग्य है अथवा नहीं। उन को कोई रचना पसंद आती थी तो वे उसकी तारीफ़ में हद से ज़्यादा बढ़ जाते थे। इसका एक उदाहरण मेरी कहानी रंदियाँ है, जो जमा करने के 13 दिन के भीतर ही हंस में प्रकाशित हो गई। हंस के लिए किसी कहानी पर इतनी जल्दी फ़ैसला लेना दुर्लभ था।[4]

राजेन्द्र यादव जी के उपन्यास उनकी विषय-विविधता की पुष्टि करते हैं। उनका कथानक, पात्र-संरचना, घटना-प्रधानता अत्यंत उल्लेखनीय हैं। स्वातंत्रयोत्तर हिंदी उपन्यास साहित्य को नया मोड़ देकर उसे वास्तविक जीवन से जोड़ने वालों में राजेन्द्र यादव का नाम शीर्षस्थ है। सारा आकाश से लेकर मंत्रविद्ध तक की अपनी उपन्यास यात्रा में राजेन्द्र यादव ने समाज एवं व्यक्ति की स्थितियों, गतिविधियों और विशेषताओं को परिभाषित करते हुए बाहरी तथा भीतरी रूप का चप्पा-चप्पा छान लिया है।[5]

मुख्य पाठ

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत अध्ययन हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार श्री राजेन्द्र यादव जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के अनुशीलन पर आधारित वर्णनात्मक शोध है जिसके अंतर्गत अपने पूर्व ज्ञान तथा उपलब्ध, पुस्तकों और प्रकाशित शोध अध्ययनों से अध्ययन सामग्री प्राप्त कर विचार को विकसित किया गया है और निष्कर्ष निकाला गया है। शोधपत्र लेखन करते समय साहित्य शोध हेतु निर्धारित शोध पद्धति और शोध प्ररचना को पूर्णतः ध्यान रखा गया है जिससे प्रस्तुत शोध की वैज्ञानिक प्रकृति को सुनिश्चित किया जा सके।
विश्लेषण

राजेन्द्र यादव का सृजित साहित्य सरल एवं काव्यशास्त्र की अलंकारिक भाषा से स्वतंत्र है। उनके तीन उपन्यास- 'सारा आकाश', 'शह और मात' 'एक इंच मुस्कान' उनको समझने के लिए पर्याप्त हैं क्योंकि उनके पात्रों में उनकी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष झलक देखी जा सकती है। 'मुड़ मुड़ के देखता हूं' उनकी आत्मकथा है जिसमें उन्होंने अपने जीवन के प्रमुख पहलुओं को प्रस्तुत किया है। उन्हें लंबे वक्त तक अतीत में रहना भले पसंद न हो, लेकिन यह तय है कि उन जैसी स्मृति कम ही लोगों की होगी। अपनी आत्मकथा में राजेन्द्र यादव ने उन स्मृति खंडों को स्थान प्रदान किया है जिन्होंने उन्हें गतिशील बनाए रखा। जो याद रखने योग्य नहीं था, उसको याद करने में न तो उन्होंने समय बर्बाद किया और न ही उसको अपनी रचनाओं में स्थान प्रदान किया।

हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन की शुरुआत 1955 - 56 से मानी जाती है। नई कहानी के प्रवर्तकों में प्रमुख नाम कमलेश्वर, मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी आदि का आता है। नई कहानी हिंदी साहित्य के कहानी लेखन की एक परिपक्व अवस्था है, जो पूर्ववर्ती कहानियों से अनेक स्तरों पर भिन्न थी। इस दौर में लिखी गई कहानियाँ कल्पनाप्रधान या आदर्शवादी न होकर वास्तविक जीवन को प्रस्तुत करती थीं।

नई कहानी की प्रमुख प्रवृत्तियाँ [6]

  1. नई कहानी में 'भोगे हुए यथार्थ' पर अत्यधिक फोकस किया गया।
  2. पूर्ववर्ती कहानियाँ पूर्वाग्रह से युक्त होती थीं लेकिन नई कहानियाँ किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से मुक्त थीं।
  3. इन पर सार्त्र के अस्तित्ववाद का प्रभाव भी दिखता है।
  4. इनमें यौन नैतिकता को लेकर नया आयाम देखने को मिलता है। इनके अनुसार नैतिकता का पैमाना किसी व्यक्ति द्वारा समाज के लिए किए गए उसके कर्तव्य होने चाहिए न कि उसका यौन आचरण।
  5. नई कहानियों में न तो घटनाओं की कोई श्रृंखला मिलती है और न ही कोई निश्चित शुरुआत और अंत। कथानक में विखराव स्पष्ट रूप से दिखता है।
  6. नई कहानी ने शहरी मध्य वर्ग को कहानी के केन्द्र में स्थापित किया।
  7. इसकी एक महत्त्वपूर्ण विशेषता कृष्णा सोबती द्वारा लिखी गई 'बोल्ड' कहानियाँ भी थीं। 'द सेकेंड सेक्स' की लेखिका सीमोन द बोउर ने जो काम पश्चिमी साहित्य में किया था, वही काम हिंदी साहित्य में कृष्णा सोबती ने किया। इस दौर की कुछ प्रमुख कहानियाँ इस प्रकार हैं - एक और जिंदगी(मोहन राकेश), राजा निरबंसिया (कमलेश्वर), मित्रो मरजानी (कृष्णा सोबती), वापसी (उषा प्रियंवदा), टूटना (राजेन्द्र यादव), लन्दन की एक रात(निर्मल वर्मा), चीफ की दावत(भीष्म साहनी) आदि।

इसमें कोई संदेह नहीं कि नई कहानी अपनी पूर्ववर्ती कहानियों से अनेक स्तरों पर श्रेष्ठ थी लेकिन कुछ स्तरों पर कमजोर भी थी। नई कहानी में यथार्थ का वर्णन तो किया गया, लेकिन उस समय मौजूद समस्याओं के समाधान पक्ष पर चर्चा नहीं की गई। इसके अतिरिक्त कहीं - कहीं अनावश्यक रूप से यौन प्रसंगों को कहानी में डाला गया है, कहानी में प्रसंगानुसार जिसकी कोई जरूरत महसूस नहीं होती। समग्रतः नई कहानी हिंदी कहानी के इतिहास का स्वर्णिम दौर था।[7]

राजेन्द्र यादव जी को नई कहानी विधा से जोड़कर स्मरण किया जाता है। वास्तव में उन्होंने हिंदी कहानी के प्रचलित रूप से हटकर कहानी की नई परंपरा स्थापित की जिसको उनकी अधिकांश कहानियों जैसे- अपने पार, बिरादरी बाहर, एक कमजोर लड़की की कहानी, जहां लक्ष्मी कैद है, तलवार पंचहजारी, प्रतीक्षा, सिंहवाहिनी और पेट्रोल-पंप आदि में आभास किया जा सकता है। 'वे हमें बदल रहे हैं' राजेन्द्र यादव की  संभवत: अंतिम पुस्तक है। इसमें संपादक बलवंत कौर ने उनके 2007 से 2011 के बीच के हंस के संपादकीय संकलित किए हैं। इन्हें पढ़ते हुए लेखक की वैचारिकी को समझा जा सकता है। स्थानप्राप्त सम्पादकीय वे मूल्य और मान्यताएं है जिन पर राजेन्द्र यादव समय-समय पर अनेकों विवाद होने के बाबजूद भी अडिग रहे। इनमें सांप्रदायिकता, स्त्री विमर्श, समकालीन युवा कहानी, विचारधारा और साहित्य, रचना और विचार पर जमकर विमर्श हुआ है।

राजेन्द्र यादव ने कई दशकों हिंदी साहित्य जगत में अनुपम साहित्य का सृजन किया था। उनकी मृत्यु को 11 वर्ष से अधिक हो चुके हैं, परंतु आज भी वे अपनी लोकप्रिय कृतियों के लिए जाने जाते हैं। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देने के लिए उन्हेंशलाका पुरस्कारसे सम्मानित किया जा चुका हैं। हिंदी साहित्य जगत उनको उनकी साहित्य साधना और योगदान के लिए सदैव उनका ऋणी रहेगा।
निष्कर्ष
राजेन्द्र यादव हिंदी साहित्य के ऐसे रत्न हैं जिनकी चमक सदियों बाद भी फीकी नहीं पड़ेगी और जो समय के साथ-साथ और अधिक प्रभावी तरीके से हिंदी पाठकों और विद्यार्थियों को अपनी रचनाओं और विधायी-विविधता की ओर खींचते रहेंगे। राजेन्द्र यादव की कहानियों में विषय-विविधता हैराजेन्द्र यादव की कहानी 'टूटना' में आर्थिक तंगी की वजह से पति-पत्नी के रिश्ते में तनाव आता है और परिवार टूट जाता है 'साइकिल' कहानी में आर्थिक संघर्ष के कारण पति का अपने दोस्त से स्वार्थी संबंध पत्नी को पसंद नहीं आता और उनके रिश्ते में दरार आ जाती है निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि विधायी -विविधता में उनकी रूचि ने उनको हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया। राजेन्द्र यादव हिन्दी साहित्य के जाने-माने लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार, और आलोचक थे वे हिन्दी साहित्य के 'नई कहानी' आंदोलन के अग्रणी थेराजेन्द्र यादव की कुछ और कहानियां और उनके कथा संग्रह ये रहे: देवताओं की मृत्यु, खेल खिलौने, जहाँ लक्ष्मी कैद है, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक, वहाँ तक पहुँचने की दौड़ राजेन्द्र यादव ने साहित्यिक पत्रिका 'हंस' का संपादन किया था यह पत्रिका मुंशी प्रेमचंद ने 1930 में शुरू की थी राजेन्द्र यादव ने 31 जुलाई, 1986 को प्रेमचंद की जयंती के दिन इस पत्रिका का पुनर्प्रकाशन शुरू किया था उन्होंने अपने मरते दम तक इस पत्रिका का संपादन किया
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
  1. ग्रोवर, डॉ. किरण (2014). राजेन्द्र यादव जी की आत्मकथा. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ क्रिएटिव रिसर्च थॉट्स, 2(10):4.
  2. सुमन यादव (2015). राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में जीवन मूल्य और प्रकृति का अनुशीलन. इंटरनेशनल मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च जर्नल-इंडियन स्ट्रीम्स रिसर्च जर्नल., 5(4). 
  3. राजेंद्र यादव और सुरेश कोहली (2013). कस्टोडिअन्स ऑफ़ लिटरेचर: ए नोट ऑन राइटर-एडिटर्स इन हिंदी. इंडियन लिटरेचर., 57, 6(278): 28-41.
  4. रामधारी सिंह दिवाकर (2021). रामधारी सिंह दिवाकर एवं अरुण नारायन परिचर्चा- इट टुक राजेन्द्र यादव ओनली 13 डेज टू पब्लिश माय शार्ट स्टोरी. फॉरवर्ड प्रेस, 2021
  5. कुजूर, कुर्शीला मनोनित (2023). राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में मानवीय अस्मिता: एक अध्ययन। मानविकी संकाय, रांची विश्वविद्यालय, रांची।
  6. https://hi.quora.com/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%A8%E0%A4%AF%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80
  7. https://www.academia.edu/19333038/%E0%A4%A8%E0%A4%88_%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A8_%E0%A4%94%E0%A4%B0_%E0%A4%AA_%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%95_%E0%A4%A4%E0%A4%A4_%E0%A4%B5