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राजेन्द्र यादव और नई कहानी: साहित्यिक
समीक्षा |
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Rajendra Yadav and New Story: Literary Review | |||||||
Paper Id :
19507 Submission Date :
2024-10-06 Acceptance Date :
2024-10-22 Publication Date :
2024-10-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14512178 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
आजादी के बाद हिंदी कहानी के इतिहास में एक नए आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसे नई कहानी आंदोलन के नाम से जाना जाता है। यह आंदोलन हिंदी कहानी के इतिहास का सबसे महत्त्वपूर्ण आंदोलन माना जाता है। इस आंदोलन के ध्वजवाहकों में मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव और कमलेश्वर प्रमुख हैं। इन सब के साथ ही कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी और निर्मल वर्मा आदि ने भी इस आंदोलन में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सामान्यतः 1956 में भैरव प्रसाद गुप्त के नई कहानी विशेषांक के साथ ही इस कहानी आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है। तत्कालीन समय में लोगों का गाँव से शहरों की तरफ पलायन हो रहा था। अतः लोग समाज से अलग हो रहे थे और शहरों में एकाकी जीवन जीने को मजबूर थे। परिणाम स्वरूप लोगों में अधूरापन, निरर्थकता बोध और सम्बन्ध-हीनता जैसे आयामों की वृद्धि हो रही थी। इस दौर में महिलाएँ भी शिक्षित, जागरूक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही थी। अतः स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में भी बदलाव देखने को मिला। राजेन्द्र यादव हिन्दी साहित्य में कहानीकार के रूप में एक प्रमुख नाम है। राजेन्द्र यादव ने अपने लेखन में व्यक्तिगत जीवन में जो देखा, सुना, भुगता, अनुभव किया, उसे शामिल किया। उनकी कहानियों में मध्यवर्गीय जीवन और पारिवारिक विघटन जैसे विषयों को उठाया गया है। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं ये हैं- कुलटा मसिजीवी, शह और मात, अनदेखा अनजान पल, एक इंच मुस्कान आदि। उनकी कहानियों में से कुछ में आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण पति-पत्नी के संबंधों में तनाव पैदा होना और परिवार टूटना जैसे विषय उभरे हैं। टूटना मेरी सर्वाधिक प्रिय कहानियों में से एक है. इसमें पति पत्नी के रिश्तों के बीच की टूटन को बहुत प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया गया है, लेकिन इस कहा नी का पूरा स्वाद तभी मिलेगा जब आप खुद इसे पढ़ेंगे। प्रस्तुत शोधपत्र जो
गुणात्मक शोध की श्रेणी में आता है, राजेन्द्र
यादव के 'नई कहानी' आंदोलन समर्थित विचारों की समग्र समीक्षा का प्रस्तुतीकरण है जिसके
अंतर्गत अन्य बातों के अलावा 'नई कहानी' की प्रवृत्तियों और राजेन्द्र यादव की कहानियों पर उक्त प्रवृत्तियों
के प्रभाव को दर्शाया गया है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | After independence, a new movement started in the history of Hindi stories, which is known as the Nai Kahani Movement. This movement is considered to be the most important movement in the history of Hindi stories. Mohan Rakesh, Rajendra Yadav and Kamleshwar are the prominent flag bearers of this movement. Along with all these, Krishna Sobti, Mannu Bhandari and Nirmal Verma etc. also made their important contribution in this movement. Generally, this story movement is considered to have started with Bhairav Prasad Gupta's Nai Kahani special issue in 1956. At that time, people were migrating from villages to cities. Hence, people were getting separated from society and were forced to live a lonely life in cities. As a result, dimensions like incompleteness, sense of futility and lack of relationship were increasing among people. In this period, women were also becoming educated, aware and financially self-reliant. Hence, changes were also seen in man-woman relationships. Rajendra Yadav is a prominent name in Hindi literature as a story writer. Rajendra Yadav included in his writings what he saw, heard, suffered and experienced in his personal life. Topics like middle class life and family disintegration have been raised in his stories. Some of his major works are- Kulta Masijivi, Shah aur Maat, Andheka Anjaan Pal, Ek Inch Muskaan etc. In some of his stories, topics like tension in the relationship between husband and wife and family breakdown due to poor financial condition have emerged. Tootna is one of my most favourite stories. In this, the breakdown between the relationship of husband and wife has been depicted very effectively, but you will get the full taste of this story only when you read it yourself. The present research paper, which comes under the category of qualitative research, is a presentation of a comprehensive review of Rajendra Yadav's ideas supported by the 'Nayi Kahani' movement, under which, among other things, the trends of 'Nayi Kahani' and the influence of the said trends on Rajendra Yadav's stories have been shown. |
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मुख्य शब्द | हिंदी साहित्य, कहानीकार, स्थान, सृजनशीलता , पूत के पाँव, सतत, परिणत। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Hindi Literature, Story Writer, Place, Creativity, Feet of Son, Continuous, Changing. | ||||||
प्रस्तावना | राजेन्द्र यादव जी का संक्षिप्त परिचय
प्रख्यात हिंदी साहित्यकार श्री राजेन्द्र यादव का जन्म 28 अगस्त, 1929 को आगरा में हुआ था एवं उनकी मृत्यु 86 वर्ष की आयु में 28 अक्टूबर, 2013 में हुई। जब से उन्होंने होश संभाला, उनकी सृजनशीलता सक्रिय रही और उन्होंने हिंदी साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा के क्षेत्र में कुशलता पूर्वक कार्य किया। प्रखर बुद्धि के धनी राजेन्द्र यादव, साहित्यकार के रूप में प्रारंभ से ही 'पूत के पाँव पालने में दिख जाते हैं' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए सतत रूप से शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में ऊंचाइयों के शिखर को स्पर्श करते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहे। राजेन्द्र यादव की
प्राथमिक शिक्षा उर्दू में हुई। तदोपरांत मैट्रिक की पढ़ाई उन्होंने झाँसी में की।
इसके बाद, आगरा
में रहकर बी.ए और हिंदी विषय में एम.ए की डिग्री प्रथम श्रेणी के साथ हासिल की। साहित्य के क्षेत्र
में उनका पदार्पण शिक्षा के दौरान ही हो चुका था जब उन्होंने
विद्यालयी शिक्षा के दौरान ही ‘दास्तान-ए-अमीर हमजा’ नामक उपन्यास पढ़ लिया था जो अपने आप में चौंकाने वाली बात थी। उनके
किशोर मन पर हिंदी साहित्य के अन्य कवियों के अलावा रामधारी दिनकर की कविताओं ने
अमिट छाप छोड़ी जिसकी परिणति कालांतर में उनके द्वारा स्वयं साहित्य सृजन के रूप
में हुई। |
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अध्ययन का उद्देश्य |
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साहित्यावलोकन | हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन की शुरुआत 1956 से मानी
जाती है। नई कहानी के प्रणेता मोहन राकेश, कमलेश्वर
और राजेन्द्र यादव हैं। आम तौर पर माना जाता है कि नई कहानी का नाम भैरव प्रसाद
गुप्ता द्वारा संपादित पत्रिका 'नई कहानी विशेषांक' से लिया गया है। नई कहानी वैचारिक दृष्टिकोण से
कहानी के निर्माण का विरोध करती है। नई कहानी आंदोलन भारतीय युवाओं के मोहभंग, हताशा, पीड़ा, पूंजीवाद, बढ़ते
बाजारवाद के कारण मानवीय भावनाओं के विस्थापन, बेरोजगारी
और स्वतंत्रता के बाद कम होते करियर के अवसरों की कहानी कहता है। [गुप्ता, डॉ. सारिका, 2022] हिंदी नई कहानी आंदोलन लघु कथाओं, आलोचना और साहित्यिक इतिहास के लिए प्रभावशाली
था। इस आंदोलन ने एक तरफ शैली, बयानबाजी और शैली पर ध्यान
देने और दूसरी तरफ सामाजिक वास्तविकता के प्रति प्रतिबद्धता की विशेषता वाले
आधुनिकतावादी यथार्थवाद की शुरुआत की। कहानी लेखन की इस विधा ने लेखक, पाठक और चरित्र के बीच एक ऐसा पारस्परिक
सामंजस्य विकसित किया जो पहले हिंदी साहित्य में मौजूद नहीं था और जिसने अलगाव की
सार्वभौमिक रूप से पहचाने जाने वाली शर्तों में मध्यम वर्ग की श्रेणी को फिर से
परिभाषित किया। [मणि, प्रीता, 2019] ‘नई कहानी आंदोलन स्वतंत्रता
के बाद हिंदी लघु कथा साहित्य में एक नया चलन था जो 1954 और 1963 के बीच
पनपा। नई कहानी के स्थापित लेखकों में जिन
लेखकों को सम्मिलित किया जाता है, उनमें प्रमुख हैं- मोहन
राकेश, भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा, राजेंद्र
यादव, कमलेश्वर और अमरकांत आदि। इन
लेखकों का मानना था कि कला को भौतिक दुनिया से अलग नहीं किया जा सकता है और
इसलिए नई कहानी के संदर्भ में विचार और भावना समान रूप से महत्वपूर्ण थे। मध्यम
वर्गीय परिवारों में विघटन, मूल्यों का क्षरण, असुरक्षा, उदासी, अकेलापन और चिंता आदि के आधार पर कहानीकारों
द्वारा यह महसूस किया गया कि हिंदी कथा साहित्य में परिवर्तन की आवश्यकता है।
"नई कहानी" में एक समान विचारधारा, रुझान
या चिंताएँ नहीं थीं, बल्कि यह कई वास्तविकताओं और
प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करती थी और उनसे जूझती थी। [सिंह, मधु, 2016] तीन ऐसे हिंदी लेखकों यथा, विजयदान
देथा, राजेन्द्र यादव एवं ओमप्रकाश
वाल्मीकि, जिनकी मृत्य वर्ष 2013 के
अंत में हुई थी, का साहित्य सृजन अपने आप में
अनुपम और अतुलनीय था और साथ ही ऐसा था जिसमें समकालीन लेखन प्रवृत्तियां और
विशेषताओं को देखा जा सकता था। यह हिंदी
लेखन की दुनिया में व्यापक और निरंतर चल रहे मंथन को दर्शाता है। उनका लेखन हिंदी
लिखित दुनिया की अनाकार प्रकृति का प्रमाण है जो परस्पर विरोधी दुनियाओं को एक साथ
रहने की अनुमति देता है। [कुमार, अविनाश, 2014]
‘श्री राजेन्द्र यादव हिन्दी
के प्रतिष्ठित साहित्यकारों में से एक हैं, उनकी
रचनाओं पर निरंतर विचार होता रहता है. परन्तु सभी यत्र-तत्र बिखरा हुआ है, अनेक छोटी-मोटी आलोचनाएं या लेख उनके साहित्यिक
व्यक्तित्व को उजागर करते रहते हैं, परन्तु
एक पूर्ण प्रयास इसके पूर्व अभी तक नहीं किया गया है, उनके कतिपय उपन्यास पढ़ने के पश्चात यह इच्छा
जागृत हुई कि उनकी कृतियों पर कार्य किया जाय, उनकी
साहित्यिक कला की रचना प्रक्रिया में, तटस्थ
विश्लेषित प्रवृत्ति का प्रभाव हिन्दी साहित्य में यथावत बना हुआ है। यादवजी
हिन्दी साहित्य के सच्चे भक्त हैं, उनकी
भिन्न-भिन्न कृतियों द्वारा यह निश्चित होता है कि हिन्दी साहित्य को अधिकाधिक
समृद्ध बनाना उनका एकमात्र लक्ष्य है, शोधकार्य
में इसी लक्ष्य को जानने का प्रयास किया गया है। यादवजी की कला का विधिवत उद्घाटन
मेरा तथ्य रहा है, यादवजी की कृतियों पर किया
गया यह कार्य हर दृष्टिकोण से सर्वथा मौलिक है’।
[तिवारी, डॉ. प्रेमलता, 2010] |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत अध्ययन
साहित्यिक अध्ययन होने के कारण गुणात्मक अध्ययन है जो प्राथमिक एवं द्वितीयक, दोनों
प्रकार के तथ्य संकलन पर आधारित है। प्राथमिक तथ्यों का स्रोत राजेन्द्र यादव की
कहानियां एवं उनकी स्वयं की कृतियां हैं, जबकि द्वितीयक तथ्यों का स्रोत, परंपरागत स्रोतों के अलावा, विभिन्न वेबसाइटों पर उपलब्ध ऐसे
शोध अध्ययन और शोधपत्र हैं जिनका संबंध राजेन्द्र यादव के व्यक्तित्व और कृतित्व
से है। लेखक द्वारा इस बात को सुनिश्चित किया है कि शोधाध्ययन की प्रकृति
वैज्ञानिक हो जिसके लिए उसके द्वारा साहित्यिक शोध के उन समस्त चरणों का अक्षरशः
पालन किया गया जो साहित्यकारों एवं वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित हैं और जिनके
पालन किये जाने की अपेक्षा साहित्य के प्रत्येक शोधार्थी से की जाती है। |
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परिणाम |
राजेन्द्र यादव जी का विस्तृत कार्यक्षेत्र राजेंद्र यादव का कार्यक्षेत्र बहुत ज्यादा विस्तृत रहा
जिसकी पुष्टि उनके द्वारा कलकत्ता प्रवास के दौरान ‘ज्ञानोदय’ पत्रिका के संपादन एवं हिंदी अध्यापक के रूप में कार्य से, तथा कालांतर में दिल्ली में स्थायी निवास बनाकर रहने एवं साहित्य साधना
में लीन होने से होती है। वैवाहिक जीवन राजेन्द्र यादव की धर्मपत्नी मन्नू भंडारी उनकी ही भांति
प्रख्यात हिंदी साहित्यकार थीं। उन दोनों का प्रथम औपचारिक परिचय कलकत्ता के बालीगंज
में हुआ था। हिंदी साहित्यकार एवं लेखक होने के नाते दोनों एक-दूसरे से परोक्ष रूप से पहले से ही परिचित थे। प्रारंभिक परिचय के बाद
प्रायः उन दोनों की आपस में पुस्तकों, लेखकों और
साहित्यिक विषयों पर चर्चा होती थीं जो बाद में समय के साथ-साथ
पहले व्यक्तिगत चर्चाओं में और तदोपरांत प्रेम के रूप में परिणत हुई। उनका विवाह
मन्नू भंडारी के साथ 22 नवंबर 1959 को विवाह हुआ। उनकी बेटी का नाम ‘रचना’ है। राजेंद्र यादव का साहित्यिक योगदान राजेन्द्र यादव का हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान है।
उनका संबंध आधुनिक हिंदी साहित्य से है। उन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य की लगभग
समस्त विधाओं में अपनी लेखनी का सफल प्रयोग किया। इसके आलावा, उन्होंने ‘कमलेश्वर’ और ‘मोहन
राकेश’ के साथ ‘नई कहानी
आंदोलन’ की शुरुआत की थी जिसके परिणामस्वरूप उनको विशेष
रूप से नई कहानी विधा से जोड़कर याद किया जाता है। राजेन्द्र यादव एक प्रख्यात
साहित्यकार होने के साथ-साथ एक प्रतिष्ठित संपादक भी थे
जिन्होंने ‘हंस’ कथा मासिक
पत्रिका का लगभग 25 वर्षों तक संपादन किया था। राजेन्द्र यादव: नई
कहानी के प्रमुख समर्थक राजेन्द्र यादव हिंदी कथा साहित्य के प्रमुख पड़ाव 'नई
कहानी' के प्रमुख समर्थक थे। सन् 1950 के बाद हिंदी कहानी के कथ्य, संवेदना एवं शिल्प
में स्पष्ट परिवर्तन दिखाई देता है। इस युग के कहानीकार को बदले हुए मूल्यों के
अंतर्गत व्यक्ति और समाज का संबन्ध नये सिरे से स्थापित करना पड़ा। सन् 1957-58 तक नयी कविता नई कहानी हेतु आंदोलन चला जिसकी परिणति लेखकों और कथाकारों
द्वारा पूर्व में प्रचलित परमपरागत कहानी लेखन कार्य से अलग हट कर लेखन कार्य किया
एवं विशिष्ट प्रवृत्तियों से युक्त कहानियां लिखीं जिनको नई कहानी की संज्ञा दी
गई। नई कहानी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें भोगे हुए
यथार्थ को व्यक्त किया गया था। इस यथार्थ में जिस तरह जीवन में बिखराव आया था वैसा
ही बिखराव कहानियों में भी आया। अतः इन कहानियों में कोई निश्चित शुरुआत और अंत
नहीं है। एक ही कहानी में दो कथानक साथ चल रहे थे। पहले की कहानियों में घटनाओं की
एक निश्चित श्रृंखला होती थी लेकिन नई कहानियों में ऐसा कुछ नहीं था। इसमें तो कभी - कभी
एक छोटी सी घटना पर ही पूरी कहानी लिख दी जाती थी।
इस दौर में कहानी लेखन की नई शैलियाँ विकसित हुईं, जैसे
डायरी शैली आदि। साथ ही किसी एक शैली को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया गया। इन
कहानियों में भाषा के स्तर पर भी अनेक प्रयोग किए गए।नए शब्दों का प्रचलन तेजी से
बढ़ा। प्रतीकात्मक भाषा तो पहले से ही प्रचलन में थी लेकिन नई कहानी आंदोलन में
प्रतीकात्मकता और बिम्बात्मकता जैसे तत्व कहानी में अपने चरम स्तर पर मौजूद हैं।
नयी कहानी नये युग बोध और नये भाव बोध की कहानी है। नयी कहानी की प्रमुख प्रवृतियां
स्पष्ट है कि नयी कहानी में नयी चेतना की प्यास थी। चिंतन के स्तर पर पुरातन मूल्यों और विश्वासों के प्रति खुली चुनौती थी। कहानीकार ने कल्पना का सहारा छोड़कर यथार्थपरक चित्रण कर सामाजिक दायित्व का निर्वाह किया है। राजेन्द्र यादव के कथा साहित्य पर 'नई कहानी' संकल्पना का पूर्ण प्रभाव दृष्टिगोचर होता है जो इस तथ्य की पुष्टि भी करता है कि राजेन्द्र यादव परंपरागत कहानी से हटकर नई कहानी से जुड़कर कहानियां और उपन्यास लिखना चाहते थे और उन्होंने ऐसा किया भी। नई कहानी आंदोलन हिंदी कहानी इतिहास का सर्वाधिक परिपक्व दौर था। नई कहानी पर अत्यधिक प्रयोगशीलता का आरोप लगता है, लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बिना प्रयोगशीलता के हम नवीन, विकसित और परिपक्व ढाँचे को नहीं प्राप्त कर सकते। राजेन्द्र यादव जी का रचना-कोष कहानी-संग्रह
उपन्यास
कविता
आत्मकथा
व्यक्ति-चित्र
समीक्षा-निबंध-विमर्श
संपादन
अनुवाद
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निष्कर्ष |
नयी कहानी के शिल्प की विशेषताओं में निम्न लिखित को सम्मिलित किया जाता है जिनको राजेन्द्र यादव ने अपने कथा साहित्य एवं विशेषरूप से अपनी कहानियों में पालन करने का प्रयास किया, तथा साथ ही अपनी कहानियों के कथानक, पात्र संरचना, शैली आदि के द्वारा यह सिद्ध किया कि 'नई कहानी' ही कहानी के वास्तविक अर्थ को सिद्ध करती है-
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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