P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- XII , ISSUE- IV December  - 2024
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika

मैथिली शरण गुप्त कृत यशोधरा : एक अनुशीलन

Maithili Sharan Gupts Yashodhara: A Study
Paper Id :  19514   Submission Date :  2024-12-02   Acceptance Date :  2024-12-20   Publication Date :  2024-12-25
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DOI:10.5281/zenodo.14632490
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कृष्ण कुमार गुप्ता
प्राचार्य
महारानी महिला महाविद्यालय
धौलपुर
राजस्थान,भारत
Abstract

मैथिलीशरण गुप्त कृत 'यशोधरा' एक नारी-प्रधान कविता है जिसके अंतर्गत  गौतम बुद्ध  द्वारा सिद्धि प्राप्ति हेतु अचानक अपनी पत्नी यशोधरा का परित्याग कर चले जाने के पश्चात यशोधरा द्वारा अनुभवित विरहजन्य पीड़ा को प्रकट किया गया है।यशोधरामैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है जिसका प्रकाशन सन् 1933 . में हुआ। अपने छोटे भाई सियारामशरण गुप्त के अनुरोध करने पर मैथिलीशरण गुप्त ने यह पुस्तक लिखी थी। यशोधरा महाकाव्य में गौतम बुद्ध के गृह त्याग की कहानी को केन्द्र में रखकर यह महाकाव्य लिखा गया है। इसमें गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की विरहजन्य पीड़ा को विशेष रूप से महत्त्व दिया गया है। यह गद्य-पद्य मिश्रित विधा है जिसे चम्पूकाव्य कहा जाता है। यशोधरा का निरवधि विरह अत्यंत कारुणिक है। विरह की दारुणता से भी अधिक उसको प्रिय का चोरी चोरी जाना खलता है। पुत्र राहुल के पालन पोषण का दायित्व उसको घुट-घुट कर जीने के लिए बाध्य कर देता है और वह चाहते हुए भी मरने का निर्णय नहीं ले सकती।

सिद्धि प्राप्त होने के बाद जब बुद्ध लौटते हैं तो सब लोग उनका स्वागत करते हैं, किंतु मानिनी यशोधरा अपने कक्ष में ही रहती है। अंततः स्वयं बुद्ध उसके द्वार पर पहुचते हैं और भीख मांगते हैं। यशोधरा उन्हें अपनी अमूल्य निधि राहुल को दे देती है और स्वयं भी उनका अनुशरण करती है।

Keywords यशोधरा, एक, अनुशीलन, बहु-विधायी, सिद्धार्थ, दृष्टिकोण, स्त्री, वेदना, अभिव्यक्ति
Introduction

प्रस्तुत शोधपत्र के अंतर्गत मैथिलीशरण गुप्त कृत 'यशोधरा' के अंतर्गत नायिका यशोधरा का व्यक्तित्व वर्णन है जो उसको संसार की अन्य महिलाओं से श्रेष्ठतर  सिद्ध करता है।

Objective of study
  1.  मैथिलीशरण गुप्त व्यक्तित्व और कृतित्व का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करना।
  2.  मैथिलीशरण गुप्त कृत 'यशोधरा' की प्रबंधकाव्य के रूप में समीक्षा करना।
  3.  मैथिलीशरण गुप्त कृत 'यशोधरा' में नायिका यशोधरा के चरित्र की अनुरागिनी, जननी और मानिनी के रूप में समीक्षा करना।
  4. यशोधरा की विरह व्यथा पर टिप्पणी कर उसको आदर्श भारतीय नारी के रूप में स्थापित करना।
Review of Literature

1. श्रीनिवासुलु, टी. (2013) ने अपने शोधपत्र 'गुप्त जी की यशोधरा में पल्लवित सामाजिक दृष्टिकोण' के अंतर्गत यशोधरा का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि यशोधरा देवदह के महाराज दण्डपाणि की पुत्री है। परिणय के लिए आयोजित महोत्सव में कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ सभी राजकुमारियों में यशोधरा को सर्वश्रेष्ठ मानकर परिणयसूत्र में बंध जाते हैं। यशोधरा के सुखमय वैवाहिक जीवन से उनको एक पुत्र की प्राप्ति होती है। कुछ समय पश्चात ही अपने नेत्रों से जरावस्था को विभिन्न असहनीय रूपों में देखकर खिन्न हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप सिद्धार्थ विश्व में प्राप्त विपुल वित का स्वेच्छा से परित्याग कर वीतराग हो जाते हैं। इस घटना के पश्चात यशोधरा के अबला जीवन की कहानी यहीं से प्रारम्भ होती है। गुप्त जी की यशोधरा सकल गुणों से सुसज्जित आधुनिक भारतीय नारी के लिए एक उदाहरण है।

2.  गर्ग, डॉ. संध्या (2016) ने अपने अध्ययन 'हिंदी कविता में स्त्री वेदना की अभिव्यक्ति' के अंतर्गत राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त के नारी व्यथा के ज्ञान पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि 'स्त्री की दयनीय और चिंतनीय स्थिति के लिए पुरुष की संकीर्णता और नारी की शारीरिक अक्षमता उत्तरदायी हैं। स्त्री भी स्वयं को इस सीमित दृष्टिकोण से देखने की अभ्यस्त रही है। करणीय-अकरणीय का बौद्धिक अधिकार विद्वान पुरुषों, दार्शनिकों व समाज सुधारकों का। है मैथिलीशरण गुप्त की निम्नांकित पंक्तियाँ भारतीय नारी की वास्तविक दशा को प्रस्तुत करती हैं-

अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी।

आँचल में है दूध और आंखों में पानी।

3. राम, डॉ. लालजीत (2020), अपने शोधपत्र 'मैथिलीशरण गुप्त: नारी भावना' के अंतर्गत मैथिलीशरण द्वारा अपनी कृति 'यशोधरा' में विद्यमान उच्च नारी मूल्यों की पुष्टि करते हुए लिखते हैं किमैथिलीशरण गुप्त कृत 'यशोधरा' गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के विरही जीवन की दारुण कथा है। उनके पति गौतम बुद्ध अपने जीवन के महान लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उनको बिना बताये उनको निद्रावस्था में छोड़ कर इस विचार के साथ गृह त्याग देते हैं कि उनकी पत्नी उनसे इतना अधिक प्रेम करती है कि वह उनको अपने से दूर नहीं जाने देगी। इस घटना से यशोधरा अपने को तिरस्कृत और अपमानित महसूस करती है। वह विरह-वेदना को सहन नहीं कर पाती जिसकी पुष्टि निम्नलिखित पंक्तियों से होती है-

सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,

पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा आघात,

सखि, वे मुझसे कह कर जाते,

कह, तो क्या वे मुझसे अपनी पथ-बाधा ही पाते।

4. वाधवा, सोनाली (2021) अपने शोध अध्ययन जिसका शीर्षक है -फेमिनिस्ट लिटरेरी क्रिटिसिज्म मीट्स फेमिनिस्ट थिओलॉजी: यशोधरा एंड द राइज ऑफ़ हाजिओग्रफ़िकल फिक्शन इन मॉडर्न फेमिनिस्ट रीविजिनिंग' के अंतर्गत टिप्पणी की है कि नारीवादी पुनरावलोकन ने कथा साहित्य में पौराणिक नायिकाओं के विविध पुनर्कथन को जन्म दिया है। सीता और द्रौपदी, दो प्रसिद्ध भारतीय पौराणिक चरित्रों को पौराणिक कथा साहित्य में विभिन्न क्षमताओं में दर्शाया गया है। यशोधरा, बुद्ध की पत्नी, इस पुनरीक्षण परियोजना में हाल ही में जोड़ी गई हैं। यशोधरा की कहानी के तीन पुनर्कथन हैं - जिनमें से प्रत्येक दूसरों से मौलिक रूप से भिन्न है। इसका परिणाम चरित्र के इर्द-गिर्द भौगोलिक कथाओं का उदय है  जो प्रेम और आध्यात्मिकता के बौद्ध लोकाचार के प्रति उत्तरदायी है।

5. कुमारी, रूचि एवं झा, स्मिता (2023) ने अपने संयुक्त अध्ययन 'रीइन्वेंटिंग मार्जिनलाइज़्ड वॉइसेस: ए स्टडी ऑफ़ वोल्गा'ज़ द लिबरेशन ऑफ़ सीता एंड यशोधरा' के अंतर्गत लिखा है कि 'द लिबरेशन ऑफ़ सीता एंड यशोधरा बुद्ध के अप्रत्याशित प्रस्थान के बाद उनकी पत्नी की कहानी बताता है, और वे अतीत के सक्रिय पुनर्निर्माण, संशोधन और परंपरा के पुनर्निमाण का उदाहरण देते हैं। इस प्रकार, लेखक वैकल्पिक दृष्टिकोण से प्राचीन परंपरा का प्रतिनिधित्व करके और उम्र और पीढ़ियों में महिलाओं के साथ नेटवर्किंग करके महिला सामूहिकता का निर्माण करता है।

Main Text

मैथिलीशरण गुप्त का संक्षिप्त परिचय एवं उनका बहु-विधायी साहित्यिक योगदान

राजकमल प्रकाशन समूह के संपादक के शब्दों में- मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1886 को झाँसी (उत्तर प्रदेश) जिले में चिरगाँव के एक सम्पन्न वैश्य परिवार में हुआ। शिक्षा पूर्ण न होने के बाबजूद भी गुप्त जी को स्वतंत्र रूप से हिन्दी, संस्कृत और बांग्ला भाषा एवं साहित्य का ज्ञान था। उनकी संगीत रूचि ने मुंशी अजमेरी को उनका पसंदीदा संगीतकार बना दिया।

उन्होंने काव्य-रचना का आरम्भ उपनामरसिछेन्द’ ‘सरस्वतीसे ब्रजभाषा में 1905 से किया। उन पर महावीर प्रसाद द्विवेदी के प्रभाव को स्पष्टतः देखा जा सकता था क्योंकि उन से प्रभावित होकर ही  उन्होंने खड़ी बोली में काव्य-रचना की। आप द्विवेदी-मंडल के नियमित सदस्य भी थे।

हिंदी साहित्य को उनका प्रमुख योगदान यह था कि उन्होंने अपनी कृतियों से खड़ीबोली को काव्य-माध्यम के रूप में स्वीकृति दिलाने में सफलता प्राप्त की। उनकी प्रथम  काव्य-कृतिरंग में भंगथी जिसका प्रकाशन 1905 में हुआ जिसके बादजयद्रथ-वधऔरभारत-भारतीके प्रकाशन से लोकप्रिय होकर वह  उत्तरोत्तर सफलताओं के शिखर की ओर उन्मुख होते रहे और उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1930 में महात्मा गांधी द्वाराराष्ट्रकविकी अभिधा प्रदान की जिसको सम्पूर्ण साहित्य जगत ने सही ठहराया।

मैथिलीशरण गुप्त ने हिंदी साहित्य को अनेकों ऐसी कृतियां दीं जो अनेकों वर्ष बाद भी हिंदी पाठकों में लोकप्रिय हैं और जो गुप्त जी के व्यक्तित्व को समझने में बहुत सहायक हैं। उनकी प्रमुख कालजयी कृतियाँ- ‘जयद्रथ-वध’, ‘भारत-भारती’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘मंगल-घरऔरविष्णु प्रियाआदि हैं। गुप्त जी ने बांग्ला और संस्कृत की कुछ पुस्तकों का अनुवाद भी किया। गुप्त जी ने बांग्ला से मुख्यतः माइकेल मधुसूदन दत्त की काव्य-कृतियोंविरहिणी वज्रांगनाऔर मेघनाद-वधका पद्यानुवाद भी किया, तथा साथ ही उन्होंने संस्कृत के भास लिखित अनेक नाटकों का भी अनुवाद किया।श्रद्धांजलि और संस्करणनामक पुस्तक उनके उत्कृष्ट गद्य लेखन के प्रमाण हैं। हिंदी साहित्य में मैथिलीशरण गुप्त को भारतीय राष्ट्रीय जागरण और आधुनिक चेतना के महान कवि के रूप में याद किया जाता है।

मैथिलीशरण गुप्त के साहित्यिक योगदान हेतु उनको समय-समय पर अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जिनमें से कुछ सम्मान पुरस्कार हैं- ‘हिन्दुस्तान अकादमी पुरस्कार’, ‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’, हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारासाहित्य वाचस्पति’, ‘पद्म भूषणआदि। मैथिलीशरण गुप्त का निधन12 दिसम्बर, 1964 को हुआ जो हिंदी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।

'यशोधरा' का कथानक

कथारम्भ गौतम के वैराग्य चिंतन से होता है। जरा, रोग, मृत्यु आदि के दृश्यों से वे भयभीत हो उठते हैं। अमृत तत्व की खोज के लिए गौतम पत्नी और पुत्र को सोते हुए छोड़कर 'महाभिनिष्क्रमण' करते हैं। यशोधरा का निरवधि विरह अत्यंत कारुणिक है। विरह की दारुणता से भी अधिक उसको खलता है प्रिय का "चोरी-चोरी जाना"। इसर समझती है परंतु उसे मरण का भी अधिकार नहीं है, क्योंकि उस पर राहुल के पालन-पोषण का दायित्व है। फलत: "आँचल में दूध" और "आँखों में पानी" लिए वह जीवनयापन करती है। सिद्धि प्राप्त होने पर बुद्ध लौटते हैं, सब लोग उनका स्वागत करते हैं परंतु मानिनी यशोधरा अपने कक्ष में रहती हैं। अंतत: स्वयं भगवान उसके द्वार पहुँचते हैं और भीख माँगते हैं। यशोधरा उन्हें अपनी अमूल्य निधि राहुल को दे देती है तथा स्वयं भी उनका अनुसरण करती है। इस कथा का पूर्वार्द्ध एवं इतिहास प्रसिद्ध है पर उत्तरार्द्ध कवि की अपनी उर्वर कल्पना की सृष्टि है।

यशोधरा की भाषा शैली

'यशोधरा' का प्रमुख रस श्रृंगार है, श्रृंगार में भी केवल विप्रलम्भ। संयोग का तो एकांताभाव है। श्रृंगार के अतिरिक्त इसमें करुण, शांत एवं वात्सल्य भी यथास्थान उपलब्ध हैं। प्रस्तुत काव्य में छायावादी शिल्प का आभास है। उक्ति को अद्भुत कौशल से चमत्कृत एवं सप्रभाव बनाया गया है। यशोधरा की भाषा शुद्ध खड़ीबोली है- प्रौढ़ता, कांतिमयता और गीतिकाव्य के उपयुक्त मृदुलता और मसृणता उसके विशेष गुण हैं, इस प्रकार यशोधरा एक उत्कृष्ट रचना सिद्ध होती है।

प्रबंध काव्य

शिल्प की दृष्टि से मैथिलीशरण गुप्त का प्रबंध काव्य उनकी कविता 'साकेत' से भी अधिक सुंदर है। काव्य-रूप की दृष्टि से भी 'यशोधरा' गुप्त जी के प्रबंध-कौशल का परिचायक है। यह प्रबंध-काव्य है- लेकिन समाख्यानात्मक नहीं। चरित्रोद्घाटन पर कवि की दृष्टि केन्द्रित रहने के कारण यह नाटय-प्रबंध है, और एक भावनामयी नारी का चरित्रोद्घाटन होने से इसमें प्रगीतात्मकता का प्राधान्य है। अत: 'यशोधरा' को प्रगीतात्मकता नाट्य प्रबंध कहना चाहिए, जो एक सर्वथा परम्परामुक्त काव्य रूप है।

यशोधरा: एक प्रेरणादायक आदर्श नारी चरित्र

यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है, परंतु वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है- "उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे।" सब मिलाकर यशोधरा आदर्श पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है।

प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समान तर्क, युक्तिपूर्वक वार्तालाप करता है, जो जन्मजात प्रतिभासम्पन्न बालक के प्रसंग में भी निश्चय ही अतिरंजना है।

यशोधरा एक चरित्र प्रधान काव्य है। इस ग्रन्थ की रचना का उद्देश्य ही उपेक्षिता यशोधरा के चरित्र को उभारना है। काव्य के नामकरण से ही सिद्ध हो जाता है कि यशोधरा ही इस काव्य की प्रमुख पात्र है। उसी की करुण गाथा को गूंथने के उद्देश्य से गुप्तजी ने इस काव्य की रचना की है। यशोधरा के विरहिणी रूप पर भी कवि ने ज्यादा प्रकाश डाला है। विरहिणी गोपा रात-दिन आँसू बहाती है। उसे जान पड़ता है कि उसका जन्म केवल रोने के लिए हुआ है। उस अबला जीवन की आँखों में सदैव पानी भरा रहता है और इसीलिए वह अपने पति को नयन-नीर ही देती है।

राहुल के सामने रोने से राहुल को कष्ट होता है, इसीलिए वह उसके सो जाने के बाद ही जी भरकर क्रन्दन करती है। इस प्रकार वह रोते-रोते रात काटती है।उन्माद की स्थिति में यशोधरा 'जाओ मेरे सिर के बाल' कहकर अपने एडीचम्बी सुन्दर केशों को काट डालती है और राहुल को अपने बाहुपाश मैं इतने जोर से जकड लेती है कि उसका दम घुटने लगता है। वास्तव में, वियोग का दुख जब अग्राह्य हो जाता है-- "मैं उठ धाऊँ।" वह अपने वनमाली को बुलाती है- वह भी जल्दी क्योंकि उसे भय है कि कहीं 'आँखों का पंछी' उनके आने से पूर्व ही न उड जाय, किन्तु गोपा को तुरन्त ही बोध होता है कि स्नेह तो जलने के लिए बना है और यह देह सब कुछ सहने के लिए बनी है।

यशोधरा के आँसू इतने मूल्यवान है कि शुद्धोधन उन्हें लेकर 'मुक्ति मुक्ता' तक छोडने को तैयार है। विरहिणी यशोधरा व्रत रखती है, फटे-पुराने वस्त्र पहनती है। इस प्रकार राजभोग से वंचित यशोधरा केवल गौतम की चिन्ता में जी रही है। अनुरागिनी के रूप में उसके चरित्र की विशेषता यह है कि वह अनुरागिनी होते हुए भी मानिनी है। वह अपने पति से जितना अनुराग रखती है उतना भी मान रखती है। वास्तव में वह मीरा की भाँति अपने पति-परमेश्वर की उपासिका है।

Methodology

प्रस्तुत अध्ययन द्वितीयक तथ्यों पर आधारित शोधाध्ययन है जिसके अंतर्गत शोधपत्र लेखक ने क्रमबद्ध रूप से विचार विकास द्वारा मैथिलीशरण गुप्त कृत 'यशोधरा' की नायिका यशोधरा को आदर्श भारतीय नारी, प्रेमिका, पत्नी, माँ के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया गया है।

Conclusion

यशोधरा काव्य में नारी के मोहक रूप को नहीं, अपितु एक परित्यक्ता नारी की विरह-वेदना, एक पत्नी के आत्म-सम्मान, एक मां की करूणा, ममता एवं उत्तरदायित्व, एक अबोध बालक की चंचलता, उत्सुकता एवं जिज्ञासा एवं एक उद्विग्न गृहस्थ के गृह-त्याग एवं ज्ञान-सिद्धि-प्रसिद्धि प्राप्ति की लम्बी, उतार-चढाव वाली कथा को सफलतापूर्वक चित्रित करने का प्रयास किया गया है। यह एक प्रकार से यशोधरा के उपेक्षित, विस्मृत चरित्र के उत्थान का प्रयास है।

सिद्धार्थ को गौतम बुद्ध बनाने में उनकी पत्नी एवं नन्हें पुत्र राहुल के कष्ट, त्याग, बलिदान का भी योगदान है, इस ओर किसी का सहज ध्यान नहीं जाता। मैथिली शरण गुप्त ने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया है और यशोधरा को उचित सम्मान दिलाने का प्रयत्न किया है। यशोधरा और उसके बच्चे को, बिना बताए, बिना उनके भरण-पोषण एवं भविष्य की चिंता किये, सिद्धार्थ, एक रात, चुप-चाप, घर छोड़ कर, सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए, निकल जाते हैं।

वह एक स्वाभिमानी नारी थी, उसे इस बात का दुःख हुआ कि उसके पति ने उसे यह बात नहीं बताई और चुप-चाप, परिवार का त्याग कर निकल गए। बताने पर, आश्वस्त होने पर वह, इसके लिए उन्हें रोकती नहीं, अनुमति दे देती। बाद का जीवन, उसने अत्यंत सादगी में व्यतीत किया और एक जिम्मेदार मां के रूप में, अपने बेटे का लालन-पालन करती रही। उसे अपने पति के लौटने की प्रतीक्षा थी, किंतु उसका स्वाभिमान, उसे उनके पास दौड़ कर जाने से रोकता है।

गौतम को ही उसके पास जाकर भिक्षा मांगनी पड़ती है और वह उन्हें खाली हाथ नहीं लौटाती। अपना सर्वस्व तो वह पहले ही लुटा चुकी थी, अब अपने प्राण-स्वरूप एकलौते पुत्र को एवं स्वयं को उनके चरणों में अर्पित कर देती है। निश्चय ही इतनी तपस्या, इतना त्याग भारतीय नारी ही कर सकती है, क्योंकि यही हमारी संस्कृति हमें सीखाती है।

References
  1. कुमारीरूचि एवं झास्मिता (2023). रीइन्वेंटिंग मार्जिनलाइज़्ड वॉइसेसए स्टडी ऑफ़ वोल्गा'ज़ द लिबरेशन ऑफ़ सीता एंड यशोधराजर्नल ऑफ़ इंटरनेशनल वीमेन'स स्टडीज., 25(5)2. 
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  3. रामडॉलालजीत (2020). मैथिलीशरण गुप्तनारी भावनाज्ञानशौर्यम इंटरनेशनल साइंटिफिक रेफ़रीड रिसर्च जर्नल., 3(5):77-80. 
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  5. वाधवासोनाली (2021). फेमिनिस्ट लिटरेरी क्रिटिसिज्म मीट्स फेमिनिस्ट थिओलॉजीयशोधरा एंड द राइज ऑफ़ हाजिओग्रफ़िकल फिक्शन इन मॉडर्न फेमिनिस्ट रीविजिनिंगसेज ओपन.
  6. https://www.uok.ac.in/notifications/(3)%20Madhu%20Kumari%20Verma%20-%20Education.pdf