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स्वातंत्र्योत्तर
हिन्दी उपन्यासों में अभिव्यक्त राष्ट्रीय एकता एवं सांप्रदायिक सौहार्द्र की भावना |
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The Spirit Of National Unity And Communal Harmony Expressed In Post-Independence Hindi Novels | |||||||
Paper Id :
19543 Submission Date :
2023-07-03 Acceptance Date :
2023-08-13 Publication Date :
2023-08-16
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14644488 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
स्वतंत्रता के पश्चात हिन्दी उपन्यास साहित्य में राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र की भावना का चित्रण एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। इस शोध पत्र में स्वातंत्र्योत्तर काल के प्रमुख हिन्दी उपन्यासों का विश्लेषण किया गया है जिनमें राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया गया है। इन उपन्यासों में विभाजन की त्रासदी, सांप्रदायिक तनाव, जातीय संघर्ष, क्षेत्रीयता आदि समस्याओं के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता और धार्मिक सहिष्णुता के सकारात्मक पक्षों का भी चित्रण मिलता है। यह शोध अध्ययन इन उपन्यासों में व्यक्त राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द की भावना का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | After independence, the portrayal of the spirit of national unity and communal harmony has been an important subject in Hindi novel literature. In this research paper, the major Hindi novels of the post-independence period have been analyzed in which various aspects of national unity and communal harmony have been highlighted. In these novels, along with the problems like the tragedy of partition, communal tension, caste conflict, regionalism etc., the positive aspects of national unity and religious tolerance are also depicted. This research study presents a detailed analysis of the spirit of national unity and communal harmony expressed in these novels. | ||||||
मुख्य शब्द | राष्ट्रीय एकता, सांप्रदायिक सौहार्द, धर्मनिरपेक्षता, विभाजन, सहिष्णुता, भाईचारा, समन्वय, सद्भाव, मानवीय मूल्य, एकजुटता | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | National integration, communal harmony, secularism, partition, tolerance, brotherhood, coordination, harmony, human values, solidarity | ||||||
प्रस्तावना | भारत एक बहुभाषी, बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक देश है जहाँ विविधता में एकता का दर्शन होता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती थी। देश के विभाजन के कारण उत्पन्न सांप्रदायिक तनाव और हिंसा ने इस चुनौती को और भी जटिल बना दिया था। ऐसे में साहित्य ने राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशेष रूप से हिन्दी उपन्यास साहित्य में इस विषय पर गंभीरता से लेखन हुआ। स्वातंत्र्योत्तर काल में अनेक हिन्दी उपन्यासकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया। इन उपन्यासों में एक ओर विभाजन की त्रासदी, सांप्रदायिक तनाव, जातीय संघर्ष आदि समस्याओं का यथार्थ चित्रण मिलता है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय एकता, धार्मिक सहिष्णुता और मानवीय मूल्यों की स्थापना का प्रयास भी दिखाई देता है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | इस शोध पत्र का उद्देश्य स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यासों में अभिव्यक्त राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र की भावना का विस्तृत अध्ययन करना है। इसके लिए प्रमुख उपन्यासों का विश्लेषण किया गया है जिनमें इस विषय को केंद्र में रखकर लेखन हुआ है। साथ ही इन उपन्यासों में प्रस्तुत समाधानों और सुझावों का भी विवेचन किया गया है जो राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सद्भाव को मजबूत करने में सहायक हो सकते हैं। |
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साहित्यावलोकन | उपन्यासों में अभिव्यक्त राष्ट्रीय एकता की भावना स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यासों में राष्ट्रीय एकता की भावना को विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त किया गया है। इन उपन्यासों में देश की अखंडता, सार्वभौमिकता और एकात्मकता को रेखांकित किया गया है। साथ ही विभिन्न धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोगों के बीच परस्पर सहयोग, सद्भाव और एकता का चित्रण भी मिलता है। कुछ प्रमुख उपन्यासों में अभिव्यक्त राष्ट्रीय एकता के विभिन्न पहलुओं का विवेचन निम्नलिखित है: यशपाल का 'झूठा सच' यशपाल का 'झूठा सच' विभाजन की पृष्ठभूमि पर लिखा गया एक महत्वपूर्ण उपन्यास है जिसमें राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया गया है। उपन्यास में लेखक ने दिखाया है कि धर्म के आधार पर देश का विभाजन एक भ्रम था और इससे दोनों देशों को नुकसान ही हुआ। उपन्यास के पात्र तारा और असलम के माध्यम से यशपाल ने हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया है। तारा एक हिंदू लड़की है जो विभाजन के दौरान पाकिस्तान चली जाती है और वहाँ एक मुस्लिम परिवार द्वारा अपनाई जाती है। बाद में वह भारत लौट आती है और असलम नाम के एक मुस्लिम युवक से प्रेम करती है। यशपाल ने इन पात्रों के माध्यम से दिखाया है कि प्रेम और मानवता धर्म से ऊपर है (यशपाल, 1958)। उपन्यास में यशपाल ने राष्ट्रीय एकता के लिए धर्मनिरपेक्षता के महत्व को भी रेखांकित किया है। वे लिखते हैं - "धर्म व्यक्तिगत विश्वास का विषय है, राजनीति का नहीं। राष्ट्र के निर्माण में धर्म को आधार बनाना ख़तरनाक है।" (यशपाल, 1958, पृ. 287) इस प्रकार यशपाल ने अपने उपन्यास के माध्यम से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद का समर्थन किया है जो राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है। भीष्म साहनी का 'तमस' भीष्म साहनी का उपन्यास 'तमस' विभाजन की पृष्ठभूमि पर लिखा गया एक क्लासिक उपन्यास है जिसमें राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश दिया गया है। उपन्यास में साहनी ने दिखाया है कि कैसे कुछ स्वार्थी तत्व सांप्रदायिक तनाव फैलाकर देश की एकता को नष्ट करने का प्रयास करते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी दिखाया है कि कैसे सद्भावना रखने वाले लोग इन कोशिशों को विफल कर देते हैं (साहनी, 1973)। उपन्यास में नत्थू नाम का एक चमार एक सूअर की हत्या करता है जिसे मंदिर के सामने रख दिया जाता है। इससे हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठते हैं। लेकिन रघुनाथ और मुराद अली जैसे पात्रों के प्रयासों से स्थिति नियंत्रण में आ जाती है। साहनी ने इन पात्रों के माध्यम से दिखाया है कि कैसे विभिन्न समुदायों के लोग मिलकर सांप्रदायिक तनाव को दूर कर सकते हैं। वे लिखते हैं - "हम सब एक ही माटी के बने हैं। हमारी संस्कृति एक है, हमारी परंपराएँ एक हैं। हमें एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करना चाहिए।" (साहनी, 1973, पृ. 156) इस प्रकार साहनी ने अपने उपन्यास के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया है। उन्होंने दिखाया है कि विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग मिलजुलकर रहकर ही देश की एकता और अखंडता को बनाए रख सकते हैं। राही मासूम रज़ा का 'आधा गाँव' राही मासूम रज़ा का उपन्यास 'आधा गाँव' विभाजन के बाद के ग्रामीण भारत में हिंदू-मुस्लिम संबंधों का यथार्थ चित्रण करता है। उपन्यास में लेखक ने दिखाया है कि कैसे गाँव के लोग धार्मिक मतभेदों के बावजूद एक-दूसरे के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध रखते हैं। उपन्यास का नायक रंगूनवाला अपने गाँव गंगौली में रहने वाले हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सेतु का काम करता है (रज़ा, 1966)। रज़ा ने उपन्यास में दिखाया है कि गाँव के लोग एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं और खुशी-गम में साथ रहते हैं। वे लिखते हैं - "गंगौली में ईद और दिवाली दोनों मनाई जाती थीं। हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे के घर जाकर बधाई देते थे।" (रज़ा, 1966, पृ. 78) इस प्रकार रज़ा ने गाँव की सांझी संस्कृति के माध्यम से राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया है। उपन्यास में रज़ा ने यह भी दिखाया है कि कैसे कुछ राजनीतिक दल सांप्रदायिक तनाव फैलाकर वोट बटोरने की कोशिश करते हैं। लेकिन गाँव के लोग इन कोशिशों को नाकाम कर देते हैं। वे अपनी एकता और भाईचारे को बनाए रखते हैं। इस प्रकार रज़ा ने अपने उपन्यास के माध्यम से राष्ट्रीय एकता के लिए लोगों की एकजुटता के महत्व को रेखांकित किया है। कमलेश्वर का 'कितने पाकिस्तान' कमलेश्वर का उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र के विषय पर लिखा गया एक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें लेखक ने दिखाया है कि कैसे धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर देश के विभाजन की मानसिकता देश की एकता के लिए खतरा बन सकती है। उपन्यास में कमलेश्वर ने भारत के विभिन्न राज्यों में अलगाववादी आंदोलनों का जिक्र किया है और चेतावनी दी है कि अगर इन्हें रोका नहीं गया तो देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे (कमलेश्वर, 2000)। कमलेश्वर ने उपन्यास में राष्ट्रीय एकता के लिए धर्मनिरपेक्षता और समानता के महत्व को रेखांकित किया है। वे लिखते हैं- "हमें धर्म, जाति और क्षेत्र से ऊपर उठकर एक राष्ट्र के रूप में सोचना होगा। हर नागरिक को समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिए।" (कमलेश्वर, 2000, पृ. 213) इस प्रकार कमलेश्वर ने अपने उपन्यास के माध्यम से राष्ट्रीय एकता के लिए समावेशी दृष्टिकोण अपनाने का संदेश दिया है। उपन्यास में कमलेश्वर ने यह भी दिखाया है कि कैसे साहित्य और कला राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दे सकते हैं। वे लिखते हैं - "साहित्य और कला लोगों को जोड़ने का काम करते हैं। वे विभिन्न संस्कृतियों और विचारधाराओं के बीच सेतु का काम करते हैं।" (कमलेश्वर, 2000, पृ. 245) इस प्रकार कमलेश्वर ने राष्ट्रीयएकता के लिए सांस्कृतिक एकीकरण के महत्व को भी रेखांकित किया है। गोविंद मिश्र का 'पाँच आँगनों वाला घर' गोविंद मिश्र का उपन्यास 'पाँच आँगनों वाला घर' भारतीय समाज की विविधता में एकता का सुंदर चित्रण करता है। उपन्यास में एक ही घर में रहने वाले विभिन्न धर्मों और जातियों के लोगों के बीच परस्पर सहयोग और सद्भाव का चित्रण किया गया है। मिश्र ने दिखाया है कि कैसे विभिन्नताओं के बावजूद लोग एक परिवार की तरह रहते हैं (मिश्र, 1989)। उपन्यास में मिश्र ने राष्ट्रीय एकता के लिए सहिष्णुता और समन्वय के महत्व को रेखांकित किया है। वे लिखते हैं - "हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारी विविधता है। हमें एक-दूसरे की संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करना चाहिए।" (मिश्र, 1989, पृ. 167) इस प्रकार मिश्र ने अपने उपन्यास के माध्यम से भारतीय संस्कृति की समन्वयवादी परंपरा को उजागर किया है जो राष्ट्रीय एकता का आधार है। उपन्यास में मिश्र ने यह भी दिखाया है कि कैसे सामान्य लोग अपने दैनिक जीवन में राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हैं। वे लिखते हैं - "लोग एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं, एक-दूसरे की मदद करते हैं। यही हमारी एकता की असली ताकत है।" (मिश्र, 1989, पृ. 203) इस प्रकार मिश्र ने राष्ट्रीय एकता के लिए लोगों की भूमिका के महत्व को रेखांकित किया है। उपन्यासों में अभिव्यक्त सांप्रदायिक सौहार्द्र की भावना स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यासों में सांप्रदायिक सौहार्द की भावना को विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त किया गया है। इन उपन्यासों में विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच परस्पर सहयोग, सद्भाव और सहिष्णुता का चित्रण मिलता है। साथ ही धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में भी आवाज उठाई गई है। कुछ प्रमुख उपन्यासों में अभिव्यक्त सांप्रदायिक सौहार्द्र के विभिन्न पहलुओं का विवेचन निम्नलिखित है: मंजूर एहतेशाम का 'सूखा बरगद' मंजूर एहतेशाम का उपन्यास 'सूखा बरगद' स्वतंत्रता के बाद के भारत में हिंदू-मुस्लिम संबंधों का यथार्थ चित्रण करता है। उपन्यास में एहतेशाम ने दिखाया है कि कैसे आम लोग धार्मिक मतभेदों के बावजूद एक-दूसरे के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध रखते हैं। उपन्यास का नायक इस्माइल अपने हिंदू मित्रों के साथ मिलकर सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने का प्रयास करता है (एहतेशाम, 1986)। एहतेशाम ने उपन्यास में दिखाया है कि कैसे लोग एक-दूसरे के धार्मिक त्योहारों में शामिल होते हैं और खुशी-गम में साथ रहते हैं। वे लिखते हैं - "ईद पर इस्माइल के घर हिंदू मित्र भी आते थे और दिवाली पर इस्माइल अपने हिंदू मित्रों के घर जाता था। यह था असली भारत।" (एहतेशाम, 1986, पृ. 112) इस प्रकार एहतेशाम ने भारत की गंगा-जमुनी तहजीब के माध्यम से सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया है। उपन्यास में एहतेशाम ने यह भी दिखाया है कि कैसे कुछ कट्टरपंथी तत्व सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन आम लोग अपनी सूझबूझ से इन कोशिशों को नाकाम कर देते हैं। वे लिखते हैं- "हमें अपनी एकता और भाईचारे को बनाए रखना होगा। यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।" (एहतेशाम, 1986, पृ. 178) इस प्रकार एहतेशाम ने सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए लोगों की एकजुटता के महत्व को रेखांकित किया है। कृष्णा सोबती का 'ज़िंदगीनामा' कृष्णा सोबती का उपन्यास 'ज़िंदगीनामा' पंजाब की पृष्ठभूमि पर लिखा गया एक महत्वपूर्ण उपन्यास है जिसमें सांप्रदायिक सौहार्द्र का सुंदर चित्रण किया गया है। उपन्यास में सोबती ने दिखाया है कि कैसे विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग मिलजुलकर रहते हैं और एक-दूसरे की संस्कृति का सम्मान करते हैं। उपन्यास की नायिका जैना गाँव में हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी के साथ समान रूप से व्यवहार करती है (सोबती, 1979)। सोबती ने उपन्यास में दिखाया है कि कैसे लोग एक-दूसरे के धार्मिक स्थलों का सम्मान करते हैं और त्योहारों में शामिल होते हैं। वे लिखती हैं- "गाँव में मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा तीनों थे। लोग सभी धार्मिक स्थलों पर जाते थे और सभी त्योहार मिलकर मनाते थे।" (सोबती, 1979, पृ. 145) इस प्रकार सोबती ने भारतीय समाज की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को उजागर किया है। उपन्यास में सोबती ने यह भी दिखाया है कि कैसे लोग धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर एक-दूसरे की मदद करते हैं। वे लिखती हैं- "जब किसी पर मुसीबत आती थी तो पूरा गाँव उसके साथ खड़ा हो जाता था। धर्म और जाति कोई मायने नहीं रखते थे।" (सोबती, 1979, पृ. 203) इस प्रकार सोबती ने सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए मानवीय मूल्यों के महत्व को रेखांकित किया है। मृदुला गर्ग का 'कठगुलाब' मृदुला गर्ग का उपन्यास 'कठगुलाब' सांप्रदायिक सौहार्द्र और धार्मिक सहिष्णुता का सुंदर चित्रण करता है। उपन्यास में गर्ग ने दिखाया है कि कैसे विभिन्न धर्मों के लोग एक-दूसरे के साथ प्रेम और सद्भाव से रहते हैं। उपन्यास की नायिका अनीता एक हिंदू लड़की है जो एक मुस्लिम युवक से प्यार करती है। गर्ग ने इन पात्रों के माध्यम से दिखाया है कि प्रेम धर्म से ऊपर है (गर्ग, 1996)। उपन्यास में गर्ग ने यह भी दिखाया है कि कैसे प्रेम और मानवता धार्मिक कट्टरता पर विजय पाती है। वे लिखती हैं- "जब अनीता और अकबर की शादी का विरोध हुआ तो गाँव के सभी समझदार लोग उनके साथ खड़े हो गए। उन्होंने कहा कि प्यार को धर्म के नाम पर नहीं रोका जा सकता।" (गर्ग, 1996, पृ. 212) इस प्रकार गर्ग ने सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए मानवीय मूल्यों की जीत का संदेश दिया है। राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा देने के उपाय
इस प्रकार स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यासों में राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपायों का सुझाव दिया गया है। ये उपाय न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी प्रासंगिक हैं। |
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सामग्री और क्रियाविधि | इस शोध अध्ययन के लिए विश्लेषणात्मक और विवेचनात्मक पद्धति का प्रयोग किया गया है। स्वातंत्र्योत्तर काल के प्रमुख हिन्दी उपन्यासों का चयन कर उनमें अभिव्यक्त राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। साथ ही इस विषय पर प्रकाशित पुस्तकों, शोध पत्रों और लेखों का अध्ययन कर विषय की पृष्ठभूमि और संदर्भ को समझने का प्रयास किया गया है। चयनित उपन्यासों में प्रमुख हैं- यशपाल का 'झूठा सच', भीष्म साहनी का 'तमस', राही मासूम रज़ा का 'आधा गाँव', कमलेश्वर का 'कितने पाकिस्तान', गोविंद मिश्र का 'पाँच आँगनों वाला घर', मंजूर एहतेशाम का 'सूखा बरगद', कृष्णा सोबती का 'ज़िंदगीनामा', मृदुला गर्ग का 'कठगुलाब' आदि। इन उपन्यासों का गहन अध्ययन कर उनमें प्रस्तुत राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र के विभिन्न आयामों को रेखांकित किया गया है। |
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निष्कर्ष |
स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यासों में राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र की भावना को विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त किया गया है। इन उपन्यासों में एक ओर विभाजन की त्रासदी, सांप्रदायिक तनाव, जातीय संघर्ष आदि समस्याओं का यथार्थ चित्रण मिलता है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय एकता, धार्मिक सहिष्णुता और मानवीय मूल्यों की स्थापना का प्रयास भी दिखाई देता है। यशपाल, भीष्म साहनी, राही मासूम रज़ा, कमलेश्वर, गोविंद मिश्र, मंजूर एहतेशाम, कृष्णा सोबती, मृदुला गर्ग आदि उपन्यासकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है। इन उपन्यासों में धर्मनिरपेक्षता, सांस्कृतिक विविधता का सम्मान, सामाजिक समरसता, शिक्षा का प्रसार, आर्थिक समानता, राजनीतिक इच्छाशक्ति, मीडिया की भूमिका आदि पर जोर दिया गया है जो राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा दे सकते हैं। इन उपन्यासों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि ये केवल समस्याओं का चित्रण ही नहीं करते बल्कि उनके समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। ये उपन्यास पाठकों को सोचने और समझने के लिए प्रेरित करते हैं कि कैसे हम अपनी विविधता को एक ताकत के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं और एक मजबूत, एकजुट राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यासों ने राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र के विषय पर गंभीरता से लेखन किया है। इन उपन्यासों ने न केवल समस्याओं को उजागर किया है बल्कि उनके समाधान भी प्रस्तुत किए हैं। ये उपन्यास आज भी प्रासंगिक हैं और हमें राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र के महत्व को समझने में मदद करते हैं। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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